किसी
एक विषय या भाव या विचार को लेकर कविता श्रृंखला लिखने का रिवाज है. अभी प्रेमशंकर शुक्ल की भीमबैठका पर कविताओं की एक पूरी किताब ही
प्रकाशित हुई है.
राहुल राजेश ने दरवाज़े को तरह-तरह से देखा
है. समझा है. उसे एक काव्यात्मक विस्तार दिया है.
दरअसल
कविताएँ यही तो करती हैं. जो चीजें अति परिचय के कारण पारदर्शी हो गयी हैं उनमें नया
अर्थ भरकर उन्हें सजीव कर देती हैं, वे एक
विचार में बदल जाते' हैं. उनका एक नैतिक मन्तव्य सामने आता है. इस तरह दुनिया
बर्दाश्त करने लायक बनी रहती हैं नहीं तो ऊब की हिंसा कब आत्महिंसा में बदल जाए कहा
नहीं जा सकता.
कवि सामूहिक
आत्महत्या से मनुष्यता को बचाते हैं.
दस कविताएँ
द र वा ज़े
राहुल राजेश
दोनों तरफ खुलते हैं
दरवाजे से टकराती है
मंदिर के पट हों
किले के कपाट हों
कि सिंहद्वार हो
बिन ताले
दैत्याकार दरवाजों पर भी कुदकते हैं कबूतर
1.दरवाजे घर की आँख होते हैं
किसी के आने का आभास
सबसे पहले उन्हें होता है
सबसे पहले उन्हें होता है
किसी का आना
सबसे पहले उन्हें दीखता है
जैसे कोई स्त्री आँख से
थाह लेती है किसी का मन
सबसे पहले उन्हें दीखता है
जैसे कोई स्त्री आँख से
थाह लेती है किसी का मन
दस्तक देते हाथ के स्पर्श से
पहचान लेते हैं दरवाजे
पहचान लेते हैं दरवाजे
बाहर कौन है!
2.दरवाजे घर के कान होते हैं
किसी के आने की आहट
सबसे पहले उनको होती है
सबसे पहले उनको होती है
सबसे पहले सुनाई देती है
उन्हें पिता की पदचाप
उन्हें पिता की पदचाप
दरवाजे की ओट में खड़ी
माँ की बुदबुदाहट भी
सबसे पहले वही सुनते हैं
माँ की बुदबुदाहट भी
सबसे पहले वही सुनते हैं
किसी के जाने का भान भी
सबसे पहले उन्हें ही होता है!
सबसे पहले उन्हें ही होता है!
3.दरवाजे घर के होंठ होते हैं
खुलते-बंद होते हैं
कुछ कहने की चाह में
अनकहे रह जाते हैं हर बार
कुछ कहने की चाह में
अनकहे रह जाते हैं हर बार
यात्रा पर निकलते लोगों के लिए
बुदबुदाते हैं प्रार्थनाएँ
आशीषते हैं उन्हें जी भर
बुदबुदाते हैं प्रार्थनाएँ
आशीषते हैं उन्हें जी भर
यात्रा से सकुशल घर लौट आने पर उनके
ईश्वर का धन्यवाद करते नहीं थकते
ईश्वर का धन्यवाद करते नहीं थकते
दो पाटों के बीच झाँकती आँखों को
चूमते हैं पिता की तरह
हौसला रखो बच्चो
चूमते हैं पिता की तरह
हौसला रखो बच्चो
4.दरवाजे घर की बाँहें होते हैं
सबसे पहले लपकते हैं
गलबाँही के लिए
गलबाँही के लिए
सबसे अधिक फैलते हैं
सबसे कसकर थामते हैं
सबसे कसकर थामते हैं
विदा में देर तक हिलते हाथ
सबसे देर तक झूलते हैं
दरवाजे की बाँहों में!
5.दरवाजे अंदर और बाहर
दोनों तरफ खुलते हैं
जैसे मन खुलता है
आँखें खुलती हैं
आँखें खुलती हैं
दरवाजे अंदर और बाहर की दुनिया के बीच
द्वार भी होते हैं और दीवार भी
द्वार भी होते हैं और दीवार भी
किसी की बाट जोहते
किसी के मुँह पर भड़ाम से बजते
किसी के मुँह पर भड़ाम से बजते
6.कोई भी बुरी नजर सबसे पहले
दरवाजे से टकराती है
दुश्मन सबसे पहले
दरवाजे से ही दो-दो हाथ करते हैं
दरवाजे से ही दो-दो हाथ करते हैं
दरवाजे ईसा मसीह की तरह
अपने सीने और पीठ पर कीलें ठुकवाते हैं
अपने सीने और पीठ पर कीलें ठुकवाते हैं
ताकि उनपर टंग सके
धूप-बारिश से बचाने वाली छतरी
सहारा देने वाली छड़ी
तन ढँकने वाली कमीज
हाट-बाजार के झोले
बच्चों के बस्ते
धूप-बारिश से बचाने वाली छतरी
सहारा देने वाली छड़ी
तन ढँकने वाली कमीज
हाट-बाजार के झोले
बच्चों के बस्ते
और हर वो चीज जिनके लिए
पूरे घर-भर में तुरंत मिल नहीं पाती
कोई मुनासिब-मनमाफिक जगह!
पूरे घर-भर में तुरंत मिल नहीं पाती
कोई मुनासिब-मनमाफिक जगह!
7.काठ की किवाड़ हो
मंदिर के पट हों
किले के कपाट हों
कि सिंहद्वार हो
टीन का टट्टर हो
कि कोई द्वार जर्जर हो
कि कोई द्वार जर्जर हो
राजा हो या रंक हो
देवता हो या दुश्मन हो
देवता हो या दुश्मन हो
सब दरवाजे के भीतर ही
सुरक्षित सोते हैं
सुरक्षित सोते हैं
दरवाजे के बाहर
सब असुरक्षित होते हैं!
सब असुरक्षित होते हैं!
8.कुछ दरवाजे होते हैं
बिन ताले
कुछ दरवाजों पर झूलते हैं
तिलिस्मी ताले
तिलिस्मी ताले
बंद रहना दरवाजों का रिवाज नहीं
पर तालों का ईजाद ही इसलिए हुआ
कि दरवाजे खुद ब खुद बंद तो हो जाएँ
पर खुद ब खुद खुल न पाएँ
कि दरवाजे खुद ब खुद बंद तो हो जाएँ
पर खुद ब खुद खुल न पाएँ
तब भी टूट ही जाते हैं
मजबूत से मजबूत ताले
मजबूत से मजबूत ताले
खोल ही लेते हैं
सब बंद दरवाजे
सब बंद दरवाजे
मोहब्बत करने वाले!
9.भव्य से भव्य, भयंकर से भयंकर किलों के
दैत्याकार दरवाजों पर भी कुदकते हैं कबूतर
चाहे वे कितने ही क्रूर शासक के
किले के क्यों न हों
चाहे वे खूँखार से खूँखार सिंहों के
जबड़ों की शक्ल में ही क्यों न हों
चाहे वे खूँखार से खूँखार सिंहों के
जबड़ों की शक्ल में ही क्यों न हों
दरवाजे स्वभाव से इतने विनम्र होते हैं
कि उनकी देह पर हर तरफ निकले
लंबे-लंबे नुकीले नश्तरों पर भी
बड़े आराम से घर बसा लेते हैं कबूतर!
लंबे-लंबे नुकीले नश्तरों पर भी
बड़े आराम से घर बसा लेते हैं कबूतर!
10.
दीवारें पहले गिरती हैं
अमूमन आखिर में गिरते हैं दरवाजे
अमूमन आखिर में गिरते हैं दरवाजे
दीवारें बाद में टूटती हैं
सबसे पहले तोड़े जाते हैं दरवाजे
सबसे पहले तोड़े जाते हैं दरवाजे
दीवारें कम चोट खाती हैं
सबसे अधिक चोट खाते हैं दरवाजे
सबसे अधिक चोट खाते हैं दरवाजे
घर पहले उजड़ता है
अंत में उखड़ते हैं दरवाजे
अंत में उखड़ते हैं दरवाजे
ख़ाक हो गईं कितनी रियासतें-सियासतें
लेकिन अब भी बुलंद हैं दरवाजे
लेकिन अब भी बुलंद हैं दरवाजे
जहाँ-जहाँ मिट गए हैं, वहाँ
सबसे ज्यादा याद आए हैं दरवाजे!!
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हिंदी के युवा कवि और अंग्रेजी-हिंदी के परस्पर अनुवादक. नौ दिसंबर, 1976 को दुमका, झारखंड के एक छोटे-से गाँव अगोइयाबाँध में जन्म.
सबसे ज्यादा याद आए हैं दरवाजे!!
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हिंदी के युवा कवि और अंग्रेजी-हिंदी के परस्पर अनुवादक. नौ दिसंबर, 1976 को दुमका, झारखंड के एक छोटे-से गाँव अगोइयाबाँध में जन्म.
पहला गद्य-संग्रह 'गाँधी, चरखा और चित्तोभूषण दासगुप्त' (यात्रा-वृत्तान्त, अनुभव-वृत्त और डायरी-अंश) फरवरी, 2015 में ज्योतिपर्व प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित. पहला कविता संग्रह 'सिर्फ़ घास नहीं', साहित्य अकादमी-2013 तथा दूसरा
कविता-संग्रह 'क्या हुआ जो' ज्योतिपर्व प्रकाशन-2016, दिल्ली से प्रकाशित. कन्नड़ और
अंग्रेजी के युवा कवि अंकुर बेटगेरि की अंग्रेजी कविताओं का हिंदी अनुवाद 'बसंत बदल देता है मुहावरे' अगस्त, 2011 में यश पब्लिकेशंस, दिल्ली से प्रकाशित.
संप्रति भारतीय रिज़र्व बैंक में
सहायक प्रबंधक (राजभाषा)
संपर्क: राहुल राजेश, फ्लैट नंबर– बी-37, आरबीआई स्टाफ क्वार्टर्स, 16/5, डोवर लेन, गड़ियाहाट, कोलकाता-700029 (प.बं.)
मो.: 09429608159 ई-मेल: rahulrajesh2006@gmail.com
वाह । बेहतरीन कविताएँ । अरुण जी आप को और राहुल जी को हार्दिक बधाई । समालोचन आपकी कल्पनाशीलता और पुरुषार्थ से हमारी रचनाशीलता का आईना है । शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंराहुल जी की कविताएँ बेहतरीन हैं. आपकी भूमिका भी लाजवाब है जैसे इन सुन्दर कविताओं के सिर पर रखा हुआ ताज. दरवाजे वह जगह है जहाँ दीवारें नहीं बन सकी.शुक्रिया इस पोस्ट के लिए.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविताएं !!
जवाब देंहटाएंकविताएं और तस्वीरें मिल कर अद्भुत प्रभाव पैदा कर रही हैं समस्त रचनाओं में कथा तत्व भी प्रबल है।
जवाब देंहटाएंगजब की कविताएँ।।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (15-06-2017) को
जवाब देंहटाएं"असुरक्षा और आतंक की ज़मीन" (चर्चा अंक-2645)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत दिन बाद कविताएं पढ़ीं। कविता में फिर से विश्वास जगा। सच में, उससे बिदक गया था, विरत हो गया था - एक अरसे से। राहुल को श्रेय है - मेरा पुनर्निर्माण और कविता से छिटके प्रकाश से आलोकित करने के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर राहुल।
बहुत अच्छी कविताएँ लगी।दरवाजे को लेकर एक सीरीज लिखना अपने आप मे बड़ी बात है।बधाई आपको औऱ समालोचन को।
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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