नीलोत्पल (जन्म: 23 जून 1975, रतलाम, मध्यप्रदेश) के दो कविता संग्रह ‘अनाज
पकने का समय‘ (भारतीय ज्ञानपीठ) और ‘पृथ्वी को हमने जड़ें दीं’ (बोधि
प्रकाशन) प्रकाशित हैं उन्हें कविता के लिए ‘विनय दुबे स्मृति सम्मान’ और ‘वागीश्वरी
सम्मान’ दिया गया है.
‘युद्ध और शांति’ शीर्षक से इन कविताओं
में नीलोत्पल युद्ध के कई पक्षों को देखते हैं, उसकी भयावहता और उसकी राजनीति की समझ
प्रस्तुत करते हैं, उनकी दृष्टि ‘युद्धरत आम आदमी’ पर भी है.
यह कविता श्रृंखला प्रस्तुत है.
युद्ध
और शांति
_________________________________________
नीलोत्पल
1.
युद्ध
केवल युद्ध नहीं होता
अंत
में
अधिक
हिंस्र
अधिक
अमानवीय बन जाता है
वह
बाज के पंजों में दबी
नन्ही
चिड़िया का आर्तनाद है
सरहद
से जो लौटा नहीं
उस
प्रतीक्षा में पथराई आंखें हैं
जो
डूब जाएंगी
मैं
इनकार करता हूं
दुनिया
के सारे युद्धों से
युद्ध
करुणा का अंत है.
2.
हालांकि
युद्ध
चारों तरफ़ है
जो
लिख रहे हैं
जो
नहीं लिख रहे हैं
वे
सब एक युद्ध में है
वे
जो लाइनों में लगे हैं
जो 13 रोस्टर का विरोध कर रहे हैं
जिन्हें
पिछले कई सालों से चिन्हित नहीं किया गया
वे
जो बेमियादी हड़ताल पर ही सद्गति को प्राप्त हुए
वे
किसान जो बार बार दिल्ली आकर
शासन
के बहरे कानों में
अपना
दर्द को सूखते हुए देखते हैं
वे
जिन्हें मुआवजा नहीं मिला
अपनी
आवाज़ उठाते उठाते
निरूपाय
से लगते हैं
सफाई
कर्मी, अतिथि शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता
जो
सड़कों के हवाले से हुमच रहे हैं
न्याय
करने वाले जज
ख़ुद
न्याय की शरण में
बाहर
सड़कों पर बैठ गए हैं
वे
सभी युद्धरत है.
3.
युद्ध
सिर्फ़ उस वक़्त युद्ध नहीं होता
जब
लड़ा जाता है
पहले
और बाद में
वह
भी मारे और पराजित किए जाते हैं
जिन्हें
अंत तक कुछ पता नहीं चलता.
4.
युद्ध
जीवन की सबसे बड़ी
विफलता
का दूसरा नाम है.
5.
युद्ध
दो देशों या अन्य देशों के बीच या खिलाफ़ नहीं होता
थोड़ा
वह सीमा के भीतर भी चलता है
ज्यादातर
मांओं के साथ होता है
कुछ
दोस्त है अलहदा
वे बेचैन
चील की तरह
शहर
के ऊपर मंडराते हैं
सरहद
की गोलाबारी से सहमे परिंदे
लौटते
नहीं
उनके
जर्जर घोंसले और मृत अंडे
समय
का भयावह मंजर है
दिलों
को तोड़ना यह भी युद्ध है.
6.
जिन्हें
युद्ध चाहिए
अंत
में मारे जाते हैं
जिन्हें
युद्ध नहीं चाहिए
अंत
में वे भी मारे जाते हैं
युद्ध
के बाद
कोई
उम्मीद नहीं बचती.
7.
जंगल
की लड़ाई
जंगल
में ही समाप्त हो जाती है
हमने
लड़ते हुए
कई
सरहदें लांघी हैं
यह
जानते हुए कि
युद्ध
एक क्षरण है
हमारी
तमाम उपलब्धियों का
फ़िर
भी हमने विसंगतियां बनाए रखी
उन्माद
हमारा नया हथियार हैं.
8.
युद्ध
के अनेक परिणाम है
लेकिन
एक स्थायी है
कि
वह कभी ख़त्म नहीं होता.
9.
डाल
से सिर्फ़ पत्ते नहीं झड़ते
थोड़ा
नमक
थोड़ा
आंसू भी गिरता है
आंखें
यह देख नहीं पाती
विदा
होने का एक अर्थ
यह
भी है कि पत्ते ही नहीं
एक
दिन पेड़ भी गुम हो जाता है
युद्ध
में हम शव नहीं गिन सकते
सारे
आंसू चीत्कार और भीतर के दंश को नहीं समझ सकते
एक
दिन यह भी समाप्त हो जाता है.
10.
जिन्हें
नहीं पता
युद्ध
की हानियाँ
जब
वे भी युद्ध का समर्थन करते है
मुझे
यह समझने में दिक्कत होती है
कि
हम सिर्फ़ कॉलर के भीतर ही शरीफ़ हैं
अन्यथा
तो हमने जैसे कोई
हिंसक
पशु भीतर पाल रखा है
समय
बीतता है
और
एक दिन हम मारे जाते हैं
उन
मरे हुए लोगों में
एक
युद्ध जितना ही सन्नाटा
और
चीत्कार बची होती है.
11.
हर
युद्ध पिछले युद्ध की तरह
अंतिम
और निर्णायक घोषित किया जाता है
पिछली
बार की तरह
शांति
और समझौतों पर बहस होती है
शहीदों
की संख्या और उनके शौर्य के किस्से लिखे जाते हैं
लोग
जिन्हें युद्ध और सिनेमा में
लगभग
समान दिलचस्पी रहती है
अंत
में उबकर अपनी सीट छोड़कर
बाहर
निकल जाते हैं.
12.
एक
दिन आपसी जंग में
बहुत
सारी चीटियां मारी गईं
उनकी
उजड़ी बस्ती
और
लाशों के ढेर के बीच
कई
सारे गिद्द आ बैठे
जंगल
का यह पुराना नियम है
जो
मार दिया जाता है
उनके
निशान भी मिटा दिए जाते हैं.
13.
हम
अपने बनाए जंगल में रहते हैं
हम
निशान मिटाने के बाद
इस
बात पर बहस करते हैं
कि दूसरा
पक्ष हमेशा क्रूर होता है
जबकि
लड़ाई का बिगुल
हम
साथ मिलकर बजाते हैं.
14.
सीमाओं
के दोनों और कितने है
जो
लगातार इस कोशिश में रहते है
कि
किसी भी बिंदु पर
कोई
सहमति नहीं बने
ख़ासकर
जब रक्तपात मुंहबाए खड़ा हो
इनकी
शक्ल इतनी कॉमन है
कि
कभी-कभी ये हममें भी शामिल हो जाते हैं
और
समर्थन में साथ साथ चल पड़ते है
कुछ
फासलों के बाद
अंतर
पाटना मुश्किल हो जाता है
हम
जिसे राष्ट्रवाद कहते हैं
और
असहमतियों से डरते हैं
वह
शांति और इंसानियत से बड़ी नहीं
सच
बोलना भी देश के लिए है
अतिवादियों
से बचना भी देश बचाना है
हल
को समझना भी देश समझना है.
15.
सिर्फ़
देश कहने से देश नहीं बचता
लोगों
के बीच जाकर हांकना
और
कहना कि देश आज सुरक्षित है
वह
नहीं बचता
वह
पड़ोस को कोसने से भी नहीं बचता
देश
एक धागा है
आदि
से अंत तक
हमारे
आंसू, पसीने, प्रेम, दोस्ती, शांति
और
भावनाओं में गुंथा हुआ है
देश
अपने तट पर हिलता मस्तूल है
जिसे
हर हाथ ने थाम रखा है
16.
समय
थोड़ा असभ्य और बनावटी है
इसलिए
यह कहना कि
हमने
समझ लिया देश को
एक
महीन लकीर को काटने जैसा है
समझ
पैदा होते नहीं आती
वह
तब भी नहीं आती
जब
सारी सनक एक होकर चिल्लाती है
कि
देश बचाओ!!!
कभी-कभी
यह देश
हमारे
मानसिक विकार को भी ढोता है,
सहता
है
युद्ध
दो तरफा नहीं होता
एक
तरफा ही खेल है
जो
दोनों ओर से दिखाया जाता है.
17.
राजनीति
बड़ी क्रूर होती है
वह
अन्य अन्य परिस्थितियों में
पहचाने
जाने लायक
बहुत
कम सवाल छोड़ती है
जो
सवाल वह छोड़ती है
वह
कभी सुलझाने लायक नहीं होते
राजनीति
उवाच है
बड़ा
उवाच
और
हम उसका बड़बड़ाना
हम
बिखरे को समेटते हैं
राजनीति
समेट कर बिखेर देती है.
18.
इस
तरह से
कुछ
जानना असंभव है
जो
युद्ध के पक्ष में है
वे
घर के पक्ष में नहीं हो सकते
यह
सीधी बात है.
19.
बहेलिया
अपने ख़ाली जाल में
बहुत
सी चिड़ियों को फांस लेता है
चिड़ियां
शोर करती हैं
बहेलिया
दूर से शांत होकर देखता है
थोड़ी
देर में आकाश
चीत्कारों
से भर जाता है
चीत्कार शांत होने पर
बहेलिया
नृशंस हंसी हंसता है
जबकि
हम सब
भूल जाते हैं
चिड़ियां
विद्रोह नहीं
अपनी
आज़ादी को कह रही थीं.
शांति
के लिए
यदि
युद्ध जरूरी है
तो
ऐसी शांति भी अशांत है
21.
इंसान
से इंसान के बीच का संबंध इतना है
कि
जितनी भी सीमाएं और रेखाएं
खींच
दी जाती रही
हमने
उन्हें पार किए बिना भी
संबंध
बनाएं
चाहे
उनका मक़सद एक दूसरे से भिन्न और व्यक्तिगत हो
22.
यह
जानना समझना कि
हिंसक
और क्रूर बातों में
शामिल
होने के लिए
हम
कभी तैयार नहीं रहे
हमने
ऐसा कोई पाठ नहीं पढ़ा
जो
अपने समकाल में या आगे चलकर
हथियार
उठाने या हिंस्र हो जाने के लिए कहता हो
तब
भी इस पृथ्वी पर
अनगिनत
युद्ध हुए हैं
लोग
मारे जाते रहे
सदियों
रक्त बहा
यह
जानना समझना कि
देवताओं
ने कितने युद्ध लड़े और क्यों लड़े?
23.
शांति
जीवन का स्थायी भाव है
यह
बात तुम्हारे पक्ष में
जाती
ज़रूर है कि
तुमने
फतेह हासिल की युद्ध में
जबकि
तुम्हारी संवेदनाओं में
कई
चिथड़ा लाशें हैं
जिनकी
मृत्यु अब असंभव है.
24.
तुम
एक युद्ध लड़ते हो
और
अपनी इंसानियत को
सदियों
पीछे धकेल देते हो
तुम युद्ध लड़ते हो
और
सभी स्त्रियां रोना छोड़ देती हैं
महज
अपनी मृत्यु तलक
तुम
एक युद्ध लड़ते हो
और तुम्हारी
आत्मा तुम्हें छोड़ देती है
जैसे तुम बिना दिल के पैदा हुए थे
तुम
एक युद्ध लड़ते हो
और
बकरी के सारे मेमने
जिन्हें
फूदकने के लिए धरती चाहिए
अपने
ख़ून सने पंजों के साथ
लौटते
हैं हमारी दुनिया में
तुम
एक युद्ध लड़ते हो
यह
लड़े जाने के सर्वथा खिलाफ़ है
तुम
आईने में उतरते हो
जो
एक दिन टूट जाता है
तुम
उसी अपनी टूटी छवि के शिकार हो
तुम
एक युद्ध लड़ते हो
मृत्यु
की हो रही बारिश के बीच
ढेरों
आंसुओं, गले हुए चुंबनों, लंगड़ाती मनुष्यता
और
निस्तब्ध प्रेम की करुण पुकार
सारा
कुछ जीवन के शेष भाग में रह जाता है
लोग
अंत तक प्रार्थना की जगह
आंसू
और उदासी को पढ़ते हैं
तुम
एक युद्ध लड़ते हो
याद
रखने लायक कुछ नहीं बचता
सब
कुछ तबाह और तिक्त स्मृतियों का शिकार हो जाता है
बचे
हुए विजेता
अंतिम
यात्रा में गल जाते हैं
कोई
आत्मग्लानि युद्ध के बोझ को कम नहीं कर सकती.
___________________________
neelotpal23@gmail.com
neelotpal23@gmail.com
कविता कितना कुछ कह देती है युद्ध पर लिखी यह कविता दुनिया के तमाम शब्द अपने भीतर समेटती जान पड़ती है ,कवि को एक सुंदर कविता के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंशानदार और संवेदनशील कविताएँ । नीलोत्पल को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और विचारोत्तेजक कविताएं। "बेचैन चील"में मुक्तिबोध भी यहां ध्वनित हो गए। और कितनी सूक्ष्मता से! मगध की स्मृति भी यहाँ दर्ज है। इन मननशील कविताओं के लिए बधाई, आभार।
जवाब देंहटाएंनीलोत्पल आरम्भ से ही कविता में अपने मंद्र धीर स्वर के कारण मुझे बहुत प्रिय हैं। वे मुक्तिबोध और देवताले की कर्मभूमि साझा करते हैं, उस धरती की विरासत उनके साथ रहेगी।
जवाब देंहटाएंबहुत यथार्थपरक और वर्तमान समय से संवाद करती हैं ये कविताए !
जवाब देंहटाएंटालस्टाय कहते हैं "युद्ध सीमा पर शुरू होने से पहले दिलो में शुरू हो जाता है "
नीलोत्पल को पढ़ना सुकून देता है।
जवाब देंहटाएंनील अद्भुत कवि है । उनकी कविताओं के अलग अलग रंग है ।
जवाब देंहटाएंबधाई हो नील
युद्ध और शांति को लेकर यह कविताएँ जिन सीमाओं का अतिक्रमण करती हैं वह दृष्टि कमाल है. हम हर पल युद्ध की जद्दोजहद में हैं. Neelotpal भाई की भाषा मुझे पसंद है. कविता में वे कलाकार की तरह होते हैं. ‘समालोचन’ का भी शुक्रिया इस मंच की सार्थकता के लिए ����
जवाब देंहटाएंगज़ब कविताएं हैं नीलोत्पल भाई।
जवाब देंहटाएंविशेषकर, उन्माद के इन दिनों में।
अरुण भाई, आप लगातार अच्छा कर रहे हैं।
नीलोत्पल ने कोई हंगामा नहीं किया।धीरे-धीरे अपनी मज़बूत जगह बनायी है।ये कविताएं उदाहरण हैं। बहुत बधाई और शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंयुद्ध जीवन की सबसे बड़ीविफलता का दूसरा नाम है.
जवाब देंहटाएंयुद्ध दो देशों या अन्य देशों के बीच या खिलाफ़ नहीं होता
थोड़ा वह सीमा के भीतर भी चलता है
ज्यादातर मांओं के साथ होता है
डाल से सिर्फ़ पत्ते नहीं झड़ते
थोड़ा नमक
थोड़ा आंसू भी गिरता है
आंखें यह देख नहीं पाती
विदा होने का एक अर्थ
यह भी है कि पत्ते ही नहीं
एक दिन पेड़ भी गुम हो जाता है
शांति के लिए
यदि युद्ध जरूरी है
तो ऐसी शांति भी अशांत है
तुम एक युद्ध लड़ते हो
और अपनी इंसानियत को
सदियों पीछे धकेल देते हो
तुम युद्ध लड़ते हो
और सभी स्त्रियां रोना छोड़ देती हैं
महज अपनी मृत्यु तलक
तुम एक युद्ध लड़ते हो
और तुम्हारी आत्मा तुम्हें छोड़ देती है
जैसे तुम बिना दिल के पैदा हुए थे
तुम एक युद्ध लड़ते होऔर बकरी के सारे मेमने
जिन्हें फूदकने के लिए धरती चाहिए
अपने ख़ून सने पंजों के साथ
लौटते हैं हमारी दुनिया में
बहुत ही कमाल की पंक्तियां हैं। नीलोत्पल की कविताओं को बड़े ध्यान से पढ़ना होता है। बहुत शांत मन से। जरा सी जल्दबाजी आपसे कुछ न कुछ छुड़वा बैठती है। नीलोत्पल को पढ़ते समय आपको न सिर्फ अपना दिमाग सजग रखना पड़ता है बल्कि अपनी इन्द्रियों को भी सजग रखना पड़ता है। नीलोत्पल शब्दों से गंंध, रंग, स्पर्श, ध्वनि आदि सब एक साथ रचते हैं। ऐसी कविताएंं बड़े ध्यान से पढ़े जाने की मांग करती हैं।
वाह ! बहुत ही मार्मिक संवाद है युद्ध की विभीषिका से।
जवाब देंहटाएंये कविताएं एक झरने के समान लगती हैं, और हम उसके साथ बहते जाते हैं, उस अनंत तक, जो कई पर्वतों,वनों, मैदानों, नदियों का सानिध्य लेता हुआ गहराई के समंदर में डूब जाता है।
युद्ध के परिणाम केवल युद्ध समाप्ति तक ही सीमित नहीं होते ।आने वाले कई पीढ़ियाँ इसके परिणाम को भुगतती रहती हैं।
युध्द शांति की इच्छा में उठाया हुआ वो कदम है, जो भविष्य को भी अशांति की संभावना में धकेलता रहेगा ।
नीलोत्पल को पढ़ना, उनके साथ समय व्यतीत करने के समान है।
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