‘मैंने अन्त: वस्त्रों को देर तक सूँघा
वे अन्त: वस्त्र वहाँ सूख अवश्य रहे थे मगर धुले हुए नहीं
थे.
इस तरह उस स्त्री ने मेरा प्रेम स्वीकार किया.’
फरवरी का प्रेम गुलाब की तरह सुर्ख होता आया है, पर अम्बर की इन कविताओं में वह स्त्री का निकला रक्त है. यह स्त्री-पहचान का मुद्दा तो रहा है, हिंदी में शायद प्रेम पहली बार बन रहा है वह भी खासी वैचारिकता के साथ. प्रेमी जो कि चित्रकार है किसी स्त्री के अंत: वस्त्रों से प्रेम करने से अपने प्रेम की शुरुआत करता है.
अम्बर कहानी हो या कविता वर्जित
जगहों पर जाते हैं, हर बार एक नई उँचाई छूते हैं.
कविताएँ प्रस्तुत हैं.
कविताएँ
अम्बर पाण्डेय
अपने प्रेम के विषय में बताएँ, अम्बर जी?
१.
स्वच्छ,
श्वेत और धोने के लिए उपयुक्त रसायनों से
सुगंधित
कई दिन मैं दोपहर से पूर्व जाता था, जल्दी-जल्दी
बिना कुछ खाए, बिना नहाए हुए
क्योंकि स्त्री के अन्त:वस्त्रों से टपकते
पानी की ध्वनि
मेरी अनन्त नीरवता को भर देती थी हल्ले से
एक दिन जब आसपास कोई न था, दूर-दूर
तक डाकिया भी
आता दिखाई नहीं दे रहा था, मैंने
ख़ुद से ही आँख बचाकर
स्त्री के अन्त:वस्त्रों से टपकता पानी पी
लिया
जैसा कि मैंने आपको बताया मैं जागते ही निकल
जाता था
मैं बहुत देर से सोकर उठता था
मैं अक्सर प्यासा उठता था.
२
अन्त:वस्त्रों के चित्रों का विशाल संग्रह हो
जाने के बाद
एक दोपहर, जब तापमान चालीस डिग्री था,
जिस तार पर
वह वस्त्र सूख रहे थे वह एक तरफ़ आमों से भरे
वृक्ष और दूसरी तरफ़
नीले पर्दों वाली खिड़की के सरिए से बँधा था
और आधे तार तक गिलोय की
बेल सूखकर अटकी हुई थी
मैंने स्त्री का एक अन्त:वस्त्र चुरा लिया, उस
दिन वह लाल रंग का था
आप मुझे चरित्रहीन, निम्न
स्तरीय मनुष्य या स्त्री विरोधी समझ सकते है
इसमें दो बातें है-
एक तो उन अन्त: वस्त्रों से मुझे प्रेम था
दूसरी: मुझे इसकी बिलकुल भी परवाह नहीं कि आप
मेरे बारे में क्या सोचते है. मेरे बारे में
सोचने के लिए आपको
मेरी तरह प्रेम करना होगा. चोरी के अन्त:वस्त्र
अन्ततः प्रेम के सबसे आंतरिक भाग की
त्वचा थे.
३
उसके बाद जैसी कि मेरी दिनचर्या थी- मैं पुनः
उसी प्रकार
अन्त: वस्त्रों का छायांकन करने जाता रहा, मेरी
एक महिला मित्र ने
देश में ख़राब होती राजनीतिक स्थिति, ग़रीबी
और इस तरह की चीज़ों पर
मुझे काम करने को कहा, उसने
किसी स्त्री के बाहर सूखते अन्त: वस्त्रों के चित्र खींचने को
अनैतिक माना, उसने मुझे उस स्त्री से इसकी
अनुमति लेने का आग्रह किया जैसे कि
अनुमति माँगने पर मुझे अनुमति मिल जाती और मैं
बदस्तूर चित्र खींचता रहता
एक मुझसे उम्र में छोटे मित्र ने इसे विकृति का
नाम दिया और तुरंत इसे बंद
करने के लिए कहता रहा मगर मैं तब तक चित्र
खींचता रहा जब तक कि मैंने
एक दिन उस स्त्री को अपना पीछा करते नहीं पाया
वह मेरे घर तक मेरा पीछा करते हुए आई
मगर घर के अंदर नहीं आई, शायद
वह मेरा पता जानने के लिए
मेरा पीछा कर रही थी, शायद
वह अपने पति को
यह बताती और उसका पति पुलिसकर्मी को
४
फ़िलहाल मैं अपने घर में बंद रहता हूँ
फ़िलहाल मेरे कैमरे की बैटरी ख़त्म हो चुकी है
फ़िलहाल आत्महत्या करने की विविध विधियों के
विषय में
मैं एक निबन्ध लिख रहा हूँ
फ़िलहाल मेरी उन अन्त: वस्त्रों के बिना जीवित
रहने की
कोई योजना नहीं
५.
किसी स्त्री के बाहर सूखते हुए अन्त: वस्त्रों
के चित्र पर
किसका अधिकार है यह नैतिक और क़ानूनी रूप से
विवाद का विषय है
यदि वे इतने निजी है तो बाहर क्यों है?
क्योंकि अंदर अन्धकार है
यदि उनका चित्र खींचने से उस स्त्री की गरिमा
का हनन होता है
तो वे बाहर क्यों है
क्योंकि अंदर बहुत अन्धकार है
मेरे अंदर भी बहुत अँधेरा है और मेरे लिए वे
अंत: वस्त्र प्रकाश का एकमात्र
स्रोत है
६.
मनोचिकित्सक से भेंट हुई.
उसका कहना था कि अन्त: वस्त्रों से
अनुराग एक प्रकार का मानसिक विकार है
और कि इसका सम्बंध बचपन की किसी दुर्घटना से
जुड़ा है
उसने यह भी कहा कि किसी भी राष्ट्र में जब
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
कुंठित होती है, वहाँ के नागरिकों में इस
प्रकार की विकृतियों का बढ़ना देखा जाता है
उसने स्तालिन के सोवियत संघ और अन्त: वस्त्रों
के आकर्षण पर लिखा एक
पुराना शोध पत्र पढ़ने को दिया. उसने मेरे प्रेम को प्रेम नहीं माना और यह
कहा कि मैं उससे मिलने प्रति शुक्रवार दोपहर
को आऊँ,
बातें करूँ.
इस समय अन्त: वस्त्रों के मेरे पास कुल छह सौ
चित्र है. कुछ
श्वेत श्याम, कुछ रंगीन और कुछ न श्वेत
श्याम न रंगीन.
कुछ केवल स्मृतियों में है- मन के रंग के.
७.
न पुलिस न उस स्त्री का पुरुष आया.
एक दिन वह स्त्री अवश्य आई. उसने पूछा कि मैं उसके अन्त: वस्त्रों के चित्र
क्यों लेता हूँ.
मैंने उससे पूछा क्या वह पुलिस के शिकायत नहीं
करेगी?
उसने कहा इससे उसका मज़ाक़ बनेगा. उसका पति
उससे गुस्सा हो सकता है
क्योंकि वह हमेशा उसे अपने अन्त: वस्त्र अंदर
सुखाने के लिए कहता है.
मैंने नहीं पूछा कि फिर वह उसे बाहर क्यों
सुखाती थी?
क्या वह अपने अन्त: वस्त्र अँधेरे में सुखाने
को स्त्री दमन का प्रतीक मानती है?
मैंने नहीं पूछा. मैंने स्त्री की उन अन्त:
वस्त्रों में कल्पना भी नहीं की.
मैंने यहाँ वह स्त्री कैसी थी इसका वर्णन भी
नहीं किया
शायद आपने ध्यान दिया होगा. मैंने अन्त: वस्त्रों का छायांकन करने के अलावा
कुछ नहीं किया. उस स्त्री की गोद में एक बच्चा
भी था.
८.
दूसरे दिन जब वह स्त्री खिड़की से देख रही थी
उसका पति खिड़की को पीठ दिए भोजन कर रहा था
स्त्री के कंधों पर सिर टिकाए बच्चा सो रहा था
मैंने अन्त: वस्त्रों को देर तक सूँघा
वे अन्त: वस्त्र वहाँ सूख अवश्य रहे थे मगर
धुले हुए नहीं थे.
इस तरह उस स्त्री ने मेरा प्रेम स्वीकार किया.
निश्चय ही हमारा प्रेम अफ़लातूनी नहीं था
निश्चय ही हमारा प्रेम शारीरिक नहीं था.
निश्चय ही वह विशुद्ध प्रेम था
अन्त: वस्त्रों के विशुद्ध सूत की तरह.
९.
किसी ने छह हाथ गहरा, साढ़े
सात हाथ लम्बा गड्ढा खोदा है
मैं वहाँ गाड़ा गया हूँ. वह गड्ढा अन्त:
वस्त्रों के तार के नीचे खुदा है.
या अन्त: वस्त्रों के विशाल ढेर से मैं कितने
भी हाथ पाँव मारूँ
निकल नहीं पाता. मैं डूब रहा हूँ. मैं मरनेवाला हूँ.
यह मैंने लिखा अन्त: वस्त्र के एक चित्र के
पीछे.
उस घर में कोलाहल तो था
उस घर में जीवन के दसों चिह्न थे.
अन्त: वस्त्र नहीं थे.
शायद वह मुझसे किसी बात पर गुस्सा थी.
क्या उसने अन्त: वस्त्र पहनना छोड़ दिए थे
जैसे अपना हाथ कोई काट ले इस तरह
या धोना छोड़ दिए थे अपने अन्त: वस्त्र या
सुखाना
या उसने मुझे छोड़ दिया था?
अख़बार में छपा स्त्रियाँ अन्त: वस्त्र त्याग
रही है
मगर वह फ्रांस का समाचार था. हो सकता था उसके
पति को
हमारे प्रसंग के बारे में समाचार हो गया हो.
१०.
उसने कहा उसे गर्भपात हुआ है. उसने कहा इन
दिनों उसका पति
उसके कपड़े धो रहा है. उसने कहा वह घर के अंदर ही कपड़े सुखाता है.
उसने कहा उसे दुःख है कि उसने मुझे इतना दुःख
दिया.
उसने कहा कुछ दिनों तक मुझे उसके
अन्त:वस्त्रों से दूर रहना चाहिए.
उसने इसके आगे कुछ नहीं कहा. केवल एक दरवाज़े
की ओर संकेत किया.
मैं अंदर गया तो उस स्नानगृह में खून से भरा
उसका अन्त: वस्त्र सूख रहा था.
यदि मैं इसे लेता हूँ तो निश्चय ही मैं मानसिक
विकृति का शिकार हूँ
मगर क्या इस देश में सभी इसके शिकार नहीं.
यदि मुझे उसके अन्त: वस्त्रों से इतना प्रेम
था तो क्या उसके खून से नहीं हो सकता?
मैंने उसे खूँटी से उतारा, उसे
प्यार से तह किया और रूमाल की तरह
पतलून की जेब में रखकर लौट आया.
११.
यह सम्भव नहीं था कि मैं उसके अन्त: वस्त्रों
से प्रेम करता मगर उससे नहीं.
यह सम्भव नहीं था कि मैं उससे प्रेम करता मगर
उसके खून से नहीं.
यह सम्भव नहीं था कि मैं केवल उसके खून से
प्रेम करता मगर उससे नहीं.
यह सम्भव नहीं था कि मैं उससे प्रेम करता मगर
उसके अन्त: वस्त्रों से नहीं.
यह सम्भव नहीं था कि मैं उसके अन्त: वस्त्रों
से प्रेम करता तो उसे छुपाता.
प्रेम को छुपाया जाता है.
प्रेमपात्र को उघाड़ा जाता है.
प्रेमपत्र छुपाया जाता.
मनोभाव उघाड़ा जाता है.
१२.
उसने अस्पताल से फ़ोन किया कि ज़्यादा खून
जाने से वह अस्पताल में भर्ती है.
मैं गया तो वह अस्पताल के कपड़े पहने सो रही
थी.
उसका बच्चा उसके पास नहीं था.
उसके पास कोई नहीं था. उसे खून चढ़ाया जा रहा था.
उसने कहा उसने अन्त: वस्त्र नहीं पहने है. टाँगे
फैलाई और कहा,
अस्पताल में अन्त:वस्त्र पहनने की आवश्यकता
नहीं. मैंने उसे बताया दुनिया की
महान प्रेमकथाओं की नायिका की तरह
वह मरनेवाली नहीं. मैंने अस्पताल में खून दिया
जिसके बदले में
उसे खून मिला. वह घर लौट आई.
(Painting: Alen Malier) |
१३.
वे भी अन्त: वस्त्र ही थे. खून से सने कपड़े, पट्टियाँ
जो उसने मुझे उपहार में दिए. खोलने पर उस पर
लाल से कत्थई
कत्थई से गुलाबी, गुलाबी
से नारंगी होती हुई आकृतियाँ मुझे दिखाई देती थी
कहीं पर कमल नाल बनती हुई दिखती, कहीं
सरीसृप के पंख
कहीं घर कहीं सूरजमुखी के फूल
सबसे ज़्यादा उसके रक्त ने मेघ बनाए थे- मेघों
की पतलून पहने
एक आदमी को बनाया था जिसे मैंने आत्मचित्र के
नाम से मढ़ाया
मैंने उन सभी कपड़ों पर खून से बने चित्रों की
खोज की.
ऐसे हमारा प्रेम प्रगाढ़ हुआ. ऐसे मेरी कला
प्रौढ़ हुई.
१४.
साफ़ शफ़्फ़ाक सफेद अन्त:वस्त्रों से उधड़ी, फटी
चिंदियाँ
खून से भरी- हमारे सम्बन्धों का क्रम
(Trajectory of our love)
दो मनुष्यों का एक ही स्थान पर एक ही समय एक
दूसरे से
प्रेम करना बहुत दुर्लभ घटना होते हुए भी बहुत
सामान्य घटना है
दुर्लभ खगोलीय घटनाओं की तरह, जिन्हें
अख़बार हर बार अत्यंत दुर्लभ बताते है
और हर महीने ऐसी दुर्लभ खगोलीय घटनाएँ होती है.
१५.
मनुष्य इसलिए सर्वश्रेष्ठ कलाकृति है क्योंकि
मनुष्य नष्ट हो जाता है
मेरी उसके खून से उसकी बनाई किन्तु तब भी मेरी
यह कलाकृतियाँ अब नष्ट हो रही है
खून तैल रंग नहीं जो मरियम के बिना खून के
गर्भवती होने से लेकर
ईसा मसीह के सूली पर चढ़ने, पुनर्जीवित
होने से आज तक वैसा का वैसा रहे
खून जीवित स्त्री के शरीर से गिरकर भी नहीं
मरता
और हर जीवित प्राणी की तरह धीरे-धीरे मृत होता
है, फिर सड़ता है
कपड़े भी सड़ रहे थे, उसके
चित्र रूप बदल रहे थे, मेघों की पतलून पहना आदमी
पिस्तौल की तरह दिखाई देता था तो सरीसृप किसी
अप्सरा की तरह
मेरी मृत्यु के बाद बीस पच्चीस वर्ष से अधिक
नहीं होगी इन कलाकृतियों की उम्र
अजायबघरों से विशेषज्ञ रसायन लेकर आते है ताकि
बची रहे कलाकृतियाँ
किन्तु मैं उन्हें इन कलाकृतियों को छूने भी
नहीं देता
दूर-दूर के देशों के फ़ोटोग्राफर आते है ताकि
वे खींच ले इनके चित्र
मैंने इस पर भी कड़ी पाबंदी लगाई है
जैसे हमारा प्रेम नष्ट हो गया कुछ समय बाद
जैसे वह नष्ट हो गई कुछ समय बाद
जैसे मैं नष्ट हो जाऊँगा कुछ समय बाद
वैसे ही इन अन्त:वस्त्रों पर बने चित्रों को
भी नष्ट हो जाना चाहिए कुछ समय बाद.
_________________
अम्बर की बात ही और है । क्या कहा जाए ! कविता पढ़कर हिन्दी कविता के एक बदनाम आंदोलन अकविता की याद आ गई । यह नई अकविता है । अम्बर पांडेय और जगदीश चतुर्वेदी में जो फ़र्क़ है वह यहाँ है । अम्बर की कल्पनाशीलता अपार है । राजकमल चौधरी का डिक्शन भी याद आता है । हिन्दी की समकालीन कविता जिस मध्यमवर्ग और मध्यमवर्गीय सोच में फंसी हुई है, यह कविता उस सोच को झिंझोड़ती है । वर्जित और वर्जनाओं की वासना से लिथड़ी हुई अम्बर की यह कविता बहुत तोड़फोड़ करती है और कविता का नया बोल्ड कैनवास तैयार करती है । हिन्दी की जड़ समकालीन कविता को किसी बड़े धक्के की ज़रूरत है जो अभिव्यक्ति के नए दरवाज़े खोले । अम्बर पांडेय की कविता यह काम करती है । अम्बर पांडेय और समालोचन का आभार ।
जवाब देंहटाएंआशय था: अकविता के अन्य शीर्षस्थ कवि रहे हैं - सौमित्र मोहन, मोना गुलाटी, गंगा प्रसाद विमल, नरेंद्र धीर तथा और भी कई। सौमित्र की ‘लुकमान अली’ आज भी ग़ज़ब की लगती है- पचास-बावन सालों बाद भी। युवा कवियों के लिए वह कविता स्टाइल बुक के तौर पर काम आ सकती है। कुछ अधिक दिलचस्पी रखने वाले ऐलेन गिंसबर्ग की कविता ‘हाऊल’ का मेरा अनुवाद पहल पत्रिका १११ में पढ़ सकते हैं । ०९७०२३९९३४४ WhatsApp पर मेरे संपर्क में आ सकते हैं। मैं सहर्ष अपना अनुवाद फ़ॉरवर्ड कर सकता हूँ ...
हटाएंगूदा के बाद ये कविताएँ - अदभुत और प्रशंसनीय है , जियो प्यारे खूब लिखों और यश कमाओ
जवाब देंहटाएंअखिलेश की कहानी चिट्ठी में बड़ी सहजता सलीके व संकेत भर से यह वर्जना टूटी है।फिल्म पैडमैन आदि ने कविताओं से पहले ही विमर्श चालू कर दिया है।हिन्दी कविता में इस पहल पर स्त्री विमर्श ज्यादा ईमानदार ढंग से अपना नजरिया पेश कर सकता है।
जवाब देंहटाएंवर्जित विषयों पर कुंठित मनोवृत्तियों को शब्दों की जादूगरी से सादे पन्नों पर रक्तश्राव से किया गया लेखन है।
जवाब देंहटाएंबस जहां लिखा है प्रेम वहाँ अदृष्ट भाव से मौजूद है वासना और कुंठा
कवि के रूप में तो नहीं लेकिन हाँ एक बेहतर समाज के लिए इस तरह की कविताओं पर गैर ज़रूरी बहस भी ज़रूरी नहीं प्रतीत होती
सच बात तो यही है कि इन कविताओं को काफी बारीकी से समझने और खंगालने की जरूरत है, क्योंकि वर्जित कह कर यदि हम किसी चीज पर बात करने से बचने की कोशिश करते हैं तो वही कुंठित मनोवृति का निर्माण होता है l
जवाब देंहटाएंमहिलाओं के संबंध में समाज बहुत ही दकियानूसी रहा है, खासकर उसके शरीर ,आत्मा और मन को समझने में वह असफल भी रहा है l स्त्री के अंतर्वस्त्र दरअसल कुंठित मनोभावों नहीं ,उन चीजों पर सामान्य ढंग से बहस और चर्चा करना चाहते हैं जो एक बेहतर समाज के लिए जरूरी है l सामान्य आजादी और देश के विकास का बहुत बड़ा क्षेत्र इससे जुड़ा हुआ है, क्योंकि यदि हम महिलाओं के महावारी या शारीरिक मानसिक बातों को अंधेरों में ,घर के अंदर कैद कर ही रखेंगे तो वह आने वाले समय में कुंठित मनोवृति के विकास का एक बहुत बड़ा कारण है ना सिर्फ पुरुष समाज उन कुंठाओं को लेकर उत्सुक रहता है बल्कि स्त्री स्वयं भी बेवजह लज्जा और जिम्मेदारियों के बोझ को लेकर कई तरह के तनाव और विकृतियों का शिकार होती रहती है l
अतः इन कविताओं का जो क्षेत्र है ,उसे मानसिक विकृति कह कर खारिज नहीं किया जा सकता है, बल्कि मानसिक विकृतियों के विकास से के मूल अवधारणाओं को समझने के लिए बेहद ही जरूरी चर्चाएं वो प्रारंभ करती हैं !
कविता को वर्जित इलाके में जाना ही चाहिए��। इस कविता में वह पैशन घुला है जो किसी कला के लिए जरूरी माना गया। कल्पित जी ने सही कहा, यह आज की अकविता है.. ��। अंतःवस्त्र का कविता का विषय होना कोई बड़ी बात नहीं, बात यह जरूरी है कि वहां वह रूपक किस रूप में है । शादी शुदा स्त्री से प्रेम करने और लिखने के लिए यदि ब्रा का रूपक साधते हैं तो वहां रक्त मांस मज्जा तो होगी ही। जरूरी यह है कि अंबर ने प्रेम को उसकी प्रकृति में पवित्र और मासूम रहने देने के अपने प्रयास में सफलता पाई है। बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रेम इससे सुंदर क्या होगा। स्त्री को उसकी संपूर्णता में स्वीकार करना। कविता हमारे भीतर बहती है । प्यार को इस तरह देखना भी अदभुद है
जवाब देंहटाएंप्रेम रूपक रचने में विभेद नहीं करता।
जवाब देंहटाएंप्रेम के अमूर्तन को मूर्त और अमूर्ततम करती कवितायें,जहां बिम्ब मन की पर्तों में छिपते चलते हैं अपने संपूर्ण स्पंदन के साथ।
बधाई।
अम्बर की कविताएँ नये क्षितिज खोलती हैं
जवाब देंहटाएंप्रेम को छुपाया जाता है.
प्रेमपात्र को उघाड़ा जाता है.
प्रेमपत्र छुपाया जाता.
मनोभाव उघाड़ा जाता है. 👌
संपूर्ण कविता का सार इसी मे दिखा मुझे... इसे ही आपने शब्दों के जाल से बुन दिया हो जैसे, प्रेम को शारीरिक तह से उखाड़ कर मनोभाव पर ही टिका दिया!
शानदार 😘😘
समालोचन का आभार । अंबर की रचनाएं किसी भी एक विषय के बहाने समय की जांच पड़ताल करती हैं वो भी subtle भंगिमा के साथ । कवियों को यह आना ही चाहिए।
जवाब देंहटाएंप्रेम का ऐसा अनन्य, शाश्वत सुन्दर स्वरूप न देखा न पढा । आज कविता पढते पढते संपूर्ण देह में जो पवित्र अनुभूति हुई है, वो अवर्णनीय है।
जवाब देंहटाएंखुश हूँ कि भविष्य के एक महाकवि के साहित्य सौन्दर्य को फलते-फूलते देखने की साक्षी मैं भी हूँ ।
अंतर्वस्त्र की अंतर्कथा । गूढ़ विषय पर लिखी गयी कविताएं संस्कृत में लिखी गयी मांसल कविताओं की याद दिलाती हैं ।
जवाब देंहटाएंस्त्री देह को लेकर पौराणिक वर्जनाओं एवं अवसादों से फूटी ये कवितायें बोल्ड होने के बावजूद वासना पूर्ण स्त्री देह गाथा नहीं हैं । ये प्रेम की एक अनूठी परिभाषा भी रचती हैं यही इनकी विशिष्टता है।
जवाब देंहटाएंअम्बर पाण्डेय के पास जो काव्य-शिल्प है, वह वर्तमान में दुर्लभ है। यह कथा-कविता देह के इतर चलती है जबकि सारी बातें देह और देहत्वक् पर केन्द्रित हैं। ऐसी अनुभूतियों से गुजरकर लिखते हुए कितना साहस चाहिए होता है! प्रेम को प्रस्तुत करने के लिए जो कोण चुना गया है, जो बिम्ब लिये गये हैं, अद्भुत हैं।
जवाब देंहटाएंफ्रायड की दृष्टि में भले हीं स्त्री के अंगवस्त्रों से प्रेम भी पुरुष की अतृप्त काम-वासना का हीं इजहार है, लेकिन साहित्य में यह सवाल दैहिक और विशुद्ध का उतना नहीं है , जितना कि उस आदिम गंध का जो पुरुष और स्त्री में होती है। कविता का प्रेम की बनी-बनायी लीक से हटकर एक वर्जित प्रदेश में आना रोमांचक भी है और नैतिक भी।
जवाब देंहटाएंतुम इतने ढीठ लेखक हो कि नैतिकतावादी पहले ही तुम्हें गरिया गरिया के थक चुके हैं और अब यू आर लाइसेंस्ड टू किल। एन्ड यू डू इट अगेन एन्ड अगेन। वैद स्कूल की चीज़ है लेकिन अम्बराना टच ने उसे स्कूल से पास आउट कर दिया है।
जवाब देंहटाएंपढ़ीं। बहुत जगह राजकमल चौधरी याद आये। क्यूँ आये पता नहीं। किसी को देखकर किसी की याद हो आना शायद हमारे ही मन की किसी तरह की कोई विकृति होती होगी, क्यूंकि होते तो दोनों भिन्न ही; और हम जानते भी हैं। आशुतोष सर के कमेंट में वैद स्कूल वाली बात से सहमति। जियो।
जवाब देंहटाएंऐसी कविताओं को पढ़ते हुए लोग बहुधा वही भूल करते हैं जो रीयलिस्टिक आर्ट का प्रशंसक एब्सट्रेक्ट आर्ट को न समझने की प्रक्रिया में करेगा। या यह हठ कि फ्रांसिस्को गोया की आकृतियाँ ऐसी असामान्य क्यों हैं, और यदि असामान्य हैं तो वह दुनिया का जानामाना कलाकार क्यूँ कहलाता है। पहले तो ये कविताएँ उत्कृष्ट स्तर की कला का उत्पाद हैं दूसरे यदि यह किसी विकृति का चित्रण हैं तो भी ही उतनी ही उत्कृष्ट कला का प्रतिसाद हैं। सो इन्हें कविताओं की तरह पढ़ा जा सकता है। विषय से अरुचि होने पर त्यागा भी जा सकता है।
जवाब देंहटाएंमुझे बस यह शिकायत है कि कहाँ तो यह घोषणा करनेवाले थे कि अब से कवि नहीं रहा, कहाँ यह नई खेप। बात का भरोसा करना है या नहीं?
Yuck.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल नई तरह की कविताएँ
जवाब देंहटाएंअम्बर की यह कविता एक तरह से हिंदी की वर्तमान कविता का प्रति संसार है.वे वर्जना के इलाके में सहज आवाजाही करते हुए असम्भव से लगते काव्य शिल्प में कविता को संभव कर दिखाते हैं.समालोचना और अम्बर का शुक्रिया एक एक अलहदा आस्वाद की कविता को पढवाने के लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत ही कमाल कविताएं हैं।
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