लम्बी कविता : प्राथमिक शिक्षक : प्रभात


‘प्राथमिक शिक्षक’ प्रभात की लम्बी कविता है. देश में प्राथमिक शिक्षा की दशा, दुर्दशा को समझने के लिए यह तमाम तरह के सर्वे और रिपोर्ट से कहीं अधिक सटीक और यथार्थ है. प्रभात की सृजनात्मकता और उनकी कविता की शक्ति का यह एक और प्रमाण है. यह एक रचनात्मक विस्फोट की तरह हमारे पास आती है.

आज बसंत पंचमी है निराला को स्मरण करते हुए उनकी लम्बी कविता ‘कुकुरमुत्ता’ की भी याद आई इस कविता को पढ़ते हुए.

यह कविता आप को नि: शब्द कर देती है.  


लंबी कविता : 
प्रा थ मि क शिक्षक                                  
प्रभात 





1.
पासबुस पढ़कर बीये किया है मैंने
बनबीक सीरिंज पडकर अैमे
डोनेसन से किया है बीएड

राजकीय प्राथमिक साला चूनावाला में पडाता हूं
नहीं मूड होता तो साथी गंगाराम कोली को फोन पर बता देता हूं
बिना बात सीएल खराब नहीं करता अगले रोज साइन लगा देता हूं
लेकिन फिर भी चूंकि आन-गारमेन्ट ड्यूटी है
जाना तो पड़ताईअै
घपला इतना करो जितना चल सके
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी आंख मारने की आदत)

तीन साल पहले जब मेरी नियुक्ति हुई यहां
इससे पहले अपणे क्या कहते हैं वो क्या नाम से
श्री रा.क. जोशी रा.उ.प्रा.वि. बोराड़ा में था
फिर इधर आया तो साब
तीन सौ बच्चे आते थे
अब तीस आते हैं
सब प्राइवेट स्कूलों में चले गए
और जाए भी क्यों नहीं साब
सरकारी स्कूल का तो भट्टा बैठ गया है क्या नाम से
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी आंख मारने की आदत)

अब देखिए न इतने सारे एनजीओ वाले स्कूलों में आते हैं
हम कहते हैं अच्छा है आओ
पढ़ाओ
हमसे तो नहीं बढ़ रहा आगे ये देस

तुम बढाओ




2.
अभी 19 से 23 का प्रशिक्षण था
जाणे कौणसी संस्था वाड़े आए थे
मैंने कहा गंगाराम यार मैं घूम आता हूं
मिसेज भी कई दिन से मारकेट-मारकेट रो रही थी
मैंनेका वो मारकेट हो आएगी और मैं प्रशि. में
एक दो घण्टा लेटसेट का तो देखो हर जगै चलताईअै
तो हम दोनों जणे साब चल दिए
हांलाकि रहजीडेंसिल था
पण अपण का सिद्धान्त है प्रशि. हो चाय स्कूल
साढे चार बजे से ज्यादा
किसी हालत में ठहरणे का सव्वाल ही नहीं
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी आंख...)

तो पौंच गए साब प्रशि. में
अब वहां बैठणे को जगै ही नहीं
छोटे-छोटे से दो कमरे
अब देखो शिक्साधिकारियों की उल्टी बुद्धि
अरे मैं खैता हूं जहां बैठणे को जगैई नहीं
ऐसी स्कूल में प्रशि. रखवायाई क्यों ?
मैंने तो बोल दिया पैले जगै देख लो
कल होगा प्रशि.
बारै तो बजी गए
सो नाश्ता किया और फ्री मूड से घर

अगले दिन जगै देखी
प्रशि.शुरू हुआ
वहां भी देखो भगवान की लीला
वैसा ही लटियानाला कमरा 
मैं तो खैता हूं इस गोरमेंट ने और इन एनजीओ वाड़ो ने
शिक्सकों को तो बेकूप बणा ही रक्खा है
भारतमाता को भी बेकूप बणा रक्खा है

तो साब प्रशि.शुरू हुआ
इधर ये हट्टे-कट्टे साठ सरकारी मास्टर
और उधर दो पतले-पतले छोरे
जो जाणैं नहीं एबसीडी
और आजायं शि.प्र्रशि. में
अब बो भी बेरोजगारी के मारे होते हैं भापड़े
और उनकी सुणता कौणअै
हम हमारे अधकारियों कीई नहीं सुणते
इधर तीन साल से एक जगै बणे हुए हैं
मजाअलै कोई हिला दे
सीदी शिक्सा मंत्री तक एप्रोचअै
और एप्रोच का तो आजकल देखो ऐसा है
किसी की एप्रोच नहीं है
एप्रोच है इसकी
किसकी ? पैसे की
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी आंख...)

अब वो दो छोरे पढाणे लगे साब हमको
बोले ये बताओ आपने जीवन में
कौनसी-कौनसी किताबें पढी हैं ?
मास्टरों ने जो पढ़ा था बता दिया
गद्य-पद्य संग्रह
कोर्स रीडर रैपिट रीडर
हिन्दी के श्रेस्ट निबंध
मानस हिन्दी व्याकरण आदि इत्यादि

अब छोरे अपणी बताणे लगे
कोई हज्जारों किताबों के नाम ले डाले
और मटों ने, जैसे तो टीच दिया हो टीचरों को
अब ये प्रेसटीज का सवाल हो गया कि नहीं
तो मैंने कहा रे देखो
हम भी अैमे बीएड हैं
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी...)

गोरमेंट ने कुछ सोच समजकर ही हमें पात्रता दी है
तुम लोगों को प्रशि. देना है तो दो नहीं देना मत दो
मास्टरों की इज्जतों के साथ छीना-झपटी क्यों करते हो ?

मेरे इतना बोलतेई तो मामला गरमा गया
मास्टरों ने ऐसी-ऐसी सुणाई उन छोरों को क पूछो मत
फिर मुझे ही दया आ गई क्या नाम से
अपण तो हिन्दू हैं न
हिन्दू में ये चीज जादा होती है
अब तो बिज्ञानिक रिसर्च और कई सर्बेंओं से भी
सिद्ध हो चुकी है ये बात कि हिन्दू में
ये चीज
जादा होतीअै

मैंने देखो पूरे मामले को कैसे टैं-किल किया
मुझे क्या है एक वो टोपिक याद था
और उनमें एक जो छोरा जादा बोलरा था
उसके मांउ झांककर मैंने कहा
देख बात ऐसी है
अबे सुण बे गुलाब
असिस्ट
अकड़ क्या दिखला रहा है कैपिटल-लिस्ट.

अब उन छोरों को भी मामला सांत करणाई था
बोले साब बहुत अच्छी कबिता है
अब ये बताओ ये किसकी है ?
मैंनेका किसकी है उसके तो मैं घर नहीं गया हूं
उसकी मैंने खीर नहीं खाई है
बैसे कबिता लिखणे वाड़ों के घरों में खीर बणती होगी
मुझे इसमें बिस्वास कमीअै
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह बांयी...)

पर जिन दिनों मैं आरएसके टेस्ट फाइट
करता था जब साब मैंने पढ़ी थी
ये तो किस्मतई खराब थी
और घरवाड़ों की थोड़ी पोजिसन डाउन थी
वरना आज किसी डिस्टिक के मालिक
होणे के लायक थे हम भी पर क्या करें
किसमत में तो ये डिपाटमेंट लिखा था
और देखो कवियों का तो ऐसाअै सुणो ध्यान से
गौर करणा जरा हमारी बात पे
कि किसी सायर ने कहा है
कि किसी सायर ने कहा है
जहां न पौंचे रवि वहां पौंचे कवि

पर ये रवि वो मिस्टर रविकांत तोसनीवाल नहीं है
जो शिक्सकों के पिछले प्रशि. में पधारे थे
इसमें सूर्य-चन्द्रमा वाड़े रवि की बात है

होल तालियों की गड़गड़ाट से गूंज उठा
मास-टर एकदम राजी हो गए
बोले अब लग रहा है कि प्रशि. चलराअै
प्रशि. तो देखो अपणे ही लोगों द्वारा होणा चईए
उनको क्याअै डिपाट की पूरी नोलेज होती है
सिक्सक क्या चाते हैं ये उनी को पता रहताअै
फिर तो शोरो-सायरी सुरू हो गई, उधर से कोई कहने लगा
नो नौलेज बिदाउट कोलेज
इधर से किसी ने कहा-
नो लाइफ बिदाउट बाइफ
अब इसमें बाइफ की जगै बाइक जादा सटीकअै
क्या ?
(क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह...)

इतने में हमारे बीओ साब आ गए
बोले प्रशि. कैसा चलरा है ?
सबने कहा साब अच्छा चलराअै
दयाअै आंपकी
और ऐसे ही प्रशि. रखवाओ तो क्या है टीचरों का नोलेज बढ़ता है
और जो टीचर एसटीसी ही किए हुए हैं उनका ये समझो कोलेज बढ़ता है
क्योंकि यहां कुछ सीकेंगे तो म्हा कुछ सिका पाएंगे
और अगर न्ह्याई कुछ नहीं सीके तो इस सदन के बीचोंबीच पधारे 
हमारे परम आदरणीय सर जी हम लोग म्हा क्या सिका पाएंगे
क्योंकि ???
क्योंकि इस देस के बच्चों का भविस्य शिक्सकों के हाथ में हैं
सिक्सकों की तरक्की होगी तो देस की तरक्की होगी

बैठो-बैठो खैके बीओ साब ने उसे तो बेटा दिया
फिर वे अपनी बात बताने लगे
बोले मैं देखो भौत सिद्धान्तवादी आदमी-इंसान हूं
और आज से नहीं मेरा शुरू से
अब क्या बताऊँ आपको कि
शुरू से भी शुरू से मेरा यही स्वतंत्र-सिद्धान्त रहा है कि
एक तो गद्दारी

गद्दारी नहीं करणी अपणे विभाग के साथ
क्यों ? क्योंकि हमारा विभाग हमें रोज-ही दे रहा है
रोजही से हमारे बाल-बच्चे पढ़ते लिखते आगे बढ़ते हैं
हम उन्हें अच्छे प्राईवेट स्कूलों में पढ़ा सकते हैं
किसी अच्छे ऐजुकेसनल सेन्टर में कोटा जैसी इन्स्टी-टूट में डाल सकते हैं
उससे क्या है हमारे बच्चों का भविस्य सुरक्षित होता है
तो पैली बात तो याद रखो-रोज-ही
दूसरी बात हमारे देस के दूसरे राष्ट्रपिता हुए हैं
श्रीमान् डा.स्वरपल्ली राधाकृष्णमनन
ये क्यों भूलते हो कि वो स्वयं अपने आप में
एक महान् से महान् शिक्सक भैभूति थे
तो इन राष्ट्रनिर्माण कार्य-कर्ताओं से हमें प्रेरणा लेनी चाईए
कुछ सीख तो अवश्यम्भावी रूप से ग्रहण करनी चाहिए
मैं तो कहता हूं जब आपका यह सुधि प्रशि.सम्पूर्णता की ओर अग्रसर हो
आप ये प्रण लेकर यहां से जायें कि
हम हमारे बच्चों को पढ़ाकर इस देस का
भाग्य तो क्या एक दिन तो तकदीर को भी बदलकर रख देंगे

होल तालियों की गड़गड़आट से गुंजायमान हो उठा
फिर चाय आ गई
लेकिन समोसे वाला नहीं आया
खैर माननीय सीआरसीएफ ने फोन लगाया
और वो भी सईसलामत आ गया
सीआरसीएफ की सख्त डू-टी बनती है कि
चाय हो चाये, नाश्ता उसके टाइम टेबल में
जरा भी गड़बड़ नहीं होनी चाहिए
वरना सीआरसीएफ होणे का मतलब ही क्या हुआ ?
क्या ? (क्या के साथ ही दीपक एमएलए की तरह...)

चाय के बाद बीओ साब ने फिर मिटिंग ली
ली क्या बल्कि दी, या ली कह लो एक ही बातअै
और साब की मीटिंग की ये खास बात आप
हमेशा देख लेणा कहीं भी कभी भी
कि जब वो बोलेंगे तो या तो
पेन-ड्रोप साइलेण्ट रहेगा या वो बोलेंगे
मजाअलै कोई दूसरी आवाज आ जाय

फिर बीओ साब ने पूछा
सबके अकाउण्ट में सैलरी पौंची कि नहीं ?
इसकी रिपोट चाहिए मुझको
सबने हाथ खड़े कर दिए क साब नहीं पौंची
बीओ साब चिल्ला धरे-नहीं पौंची ? कैसे नहीं पौंची ?
पौंच जानी चाहिए थी ? अब पौंच जाएगी
और कोई अन्यथा प्रोबलम ?

कईयों ने हाथ खड़े कर दिए
हमारे ये पैसा नहीं पौंचा
हमारे वो पैसा नहीं पौंचा
सरपंच से लेकर जइअन-अइअन
तैसीलदार सब हमपै अधकारी बणे रहते हैं
निर्माण के कामों में सबका तो दो परसेण्ट
पांच परसैण्ट बारा परसैण्ट फिक्स है
हमारे हाथ पल्लै क्या पड़ताअै
बताईए आप
फिर हमपै बाउण्ड्री बाल करातेई क्यों हो ?
हमें क्यों डिसट्रब करते हो ?

एकबार तो बीओ साब सकापका गए
बोले देखो-ऐसी बात इस सदन में करणा
सोभा नहीं देता
आंपई बताओ सोभा भैनजी सोभा देताअै क्या ?
सोभा भैनजी ने कहा-पता नही साब
आखिरकार बीओ साब ने सबको आ-स्वस्थ किया
कि सब हो जाएगा
लेकिन एक बात आप लोग कान खोलकर सुण लो
ऐ कानाराम कान क्या कुचर रहा है
तू भी कान खोल कर सुण
तेरे स्कूल से बार-बार सिकायत मिल रही है मुझे

तो मैं कह रहा था कि करो वो
जिससे देश का नाम रोशन हो
ठीक है तो मैंने आपको पूरे दो घण्टे का समय दिया

अब मुझे अगली मीटिग में जाणा है
मगर मैं ये तय नहीं कर पा रहा हूं
यहां खाणा है कि वहां खाणा है
कोई टीचर बोला-साब दोनों जगै ही खाणा है
चलो ठीक है वो बात मैं माननीय
सीआरसीएफ महोदय प्रभुदयाल जी से कर लूंगा
अरे अरे खड़े होने की जरूरत नहीं है
बैठो सब और अगर मुझे ये सिकायत
कहीं से मिल गई
मैं फोन कर करके पल-पल की रिपोट लेता रहूंगा
कि किसी भी सिक्सक ने समै का पालन नहीं किया
तो ये ठीक नहीं होगा

इस पर एक भैनजी गमक उठी
सर मेरे तो हजबैण्ड लेने आ गए सर
दूसरी बोली शाम को गांव के लिए बस नहीं मिलती सर
तीसरी बोली मेरे पांव में लगरीअै सर
अब चलूंगी तब शाम तक पौंचूगी घर

देखो ये बातें तुम अपने सीआरसीएफ महोदय से कर लीजिए
अगर विशेस ही कोई समस्या है तो बात अलग है
जैसे कि ममता भैनजी के पांव की चोट
लेकिन ड्यूटी इज बी मस्ट होणी चाहिए आपकी

कहते हुए बीओसाफ निकल गए
अभी आया कहते हुए एक-एक करके
सारे सिक्सक भी पीछे से निकल गए
क्या ? (क्या के साथ ही दीपक एमएलए...)

इस तरह प्रशि. का दूसरा दिन
हंसी-खुसी के साथ सम्पन्न हुआ
तीसरा और अंतिम दिन तो आप जाणौ
सब को टीएडीए लेकर जाणे की जल्दी रहती है
तो उसमें खास ध्यान देणे वाड़ी बात नहीं है

अब करें भी क्या
स्कूल एक
मास्टर दो
एक-एक स्कूल में कार्यरत
पन्द्रह-पन्द्रह एनजीओ
इन भीसम प्रस्थितियों में आप क्या कर लो ?

एनजीओ वाड़े
और ये हमारे अधकारी लोग
सिवाय लुफ्फाजी के करते क्या है ?

इधर देखो इधर
छाती ठोक के खैता हूं
फील्ड की हमारी हमीं जाणतें हैं
हम हमारी ऐसी-कम
तीन तैसी कराएं क्या ?
अयं क्या करें हम ?
क्या ?
क्या ? (क्या के साथ ही दीपक एमएलए...)







3.
अरे ऐ लड़के टाइम क्या हो गया
घण्टी समै पर लगा दी थी तुमने ?
लगा दी थी, बढिया
सब कमरों के ताले खोले सफाई की ?ठीक
प्र-थाना हो गई ? ठीक
गंगाराम आ गया ? ठीक

आईए आईए रामसरूप जी
बड़े दिनों में दर्सण दिए
कहीं बार-वार चले गए थे क्या ?
और बाल-बच्चे खेती-बाड़ी गांव-ढाणी
सब बढ़िया तो है न ?

अपणा सब ठीक चलराअै साब आपकी दया से
फस्सक्लिास स्कूल चलराअै
अपण ने तो देखो साब इस ऐजूकेस-नल
डिपाट में आकर ये ही सीखा है
खरी खैणा और सुकी रहणा क्यों ?
गल्त खैराउं तो बताइए आंप हैंहैं
तो ये तो साब देस जो है न ऐसे ही चलेगा

और सु  णाओ
आपके तो मजे हैं जी
मैं तो कहता हूं छोटी नौकरी करनी है तो
आपकी तरै तैसील की करौ
ओवर इनकम के सोर्स भौत हैं
तौंगली उठाके आते हैं गंवार लोग
तौंगली झड़ाके चले जाते हैं
क्या ? (क्या के साथ ही दीपक एमएलए...)

हमारे अब आप देखो दो कमरों का ये पैसा है
नया अधिकारी आए दिन गिद्ध की तरह चक्कर काट रहा है
बूझो क्यों ? कमीशन तो पहले वाड़ा ले गया ज्यौं
अपण को कुछ खास नहीं मिला साब
येई कोई दो ढाई पांच सात के लमसम
बाकी कुच्छ लेण-देणा नहीं है
वो तो भला हो गंगाराम का जिसे
ईमानदारी का भू-खार छंडा रहता है चौबीसों धण्टे
वरना इसमें भी बांट-चूंट होई जाती
क्या ?(क्या के साथ ही...)

ऐ लड़के इधर आ बेटा
उसके लात क्यों मार्रा था ?
बो तेरे घूंसा क्यों मार्रा था ?
तुम यार फिल्मों में क्यों नहीं चले जाते
फाईटिंग बण जाणा वहां जाके ?
ऐसे इसकूल में लड़ना नहीं चाईये बेटे
भाई-भाई की तरह रैना चाहिए
जैसे हिन्दी-चीनी रहते हैं
अब चीनी में तो तुम समझ गए होगे
मीठी लगती है
पर हिन्दी में नहीं
समजने की जुरत भी नहीं

चल एक काम कर ये ले पैसे
और भाईसाब के लिए फोर-इस्क्वायर लिया
अपणै एसमएसी के मुख्य माननीय मेम्बर हैं भाईसाब

जान्ता तो है न कैसी आती है
ये पैकिट साथ में ले जा
और हां बच्चों से बोल कक्स्या में बैठें
खैना किताब खोलकर पाठ पढ़ो सारे
माटसाब डण्डा लेके आरे हैं
और सुण ले के आ फटाफट
हैडमास्टसाब वाड़े रूप में आणा
रूप में क्या वो रूम में आणा

और साब सुणाओ आपके पिलाट का क्या चलराहै ?
हमें भी उधरी कोई दिलाओ न
अब मास्टरी में तो देखो लेणा-देणा कुछ है नहीं
तीस हजार मिलते हैं
आप जाणौं क्या होता है इस मंहगाई के जमाने में
पेट्रोल की कीमत किसी भी मोमेन्ट पे बढ जातीअै

जीप की आवाज कैसी है ?
पोसार चैक करने वाले हैं शायद ?
बैठिए आप तो बिराजिए साब
अच्छा अच्छा नए बीओ साब पधारे हैं
आइए आइए
आइए साब
आइए आइए

और साब बड़े दिनों में दर्सण दिए
और अपणे इसकूल में वो
फर्नीचर वाड़े बज्ट क्या हुआ साब ?
अरे ऐ लड़के पाणी पिला साब को

अरे ऐ लड़के
पैली-दूसरी वाड़ो की छुट्टी कर दे क्विकली
साब आ गए समै नहीं है
और साब सुणाएं
बच्ची के सम्बन्ध का खहीं बैठा के नहीं
अब वो तो देखो लिखी होगी जो होगी
कर्तब करणा अपणा फर्ज है क्या नाम से

मैंने सुणा साब बर्मा को एपीओ कर दिया ?
अकेले अकेले बणाणे के चक्कर में होगा
बडिया किया
राह-रीत का तो जमाना ही नहीं रहा

इस बार शिक्सक दिवस पर सम्मान-वम्मान कराओ साब
आपके राज में नहीं होगा तो कब होगा
आप अपणा समझते हैं इसलिए
आपसे जो दिल में है वो कह देते हैं
वरना अप्पण को क्या तो लेणा सम्मान से
क्या देणा वम्मान से
क्यों साब क्या नाम से ?

एक बात है साब अपणा इस्कूल अफग्रेड हुआ है तो
इस बार फंक्सन में कुछ रंगा-रंग हो जाए
आपका आदेश हो तो खाद मंत्री जी से मैं बात कर लूं
अपणे गांव के ही हैं
आपके हाथों माल्यार्पण हो जाए मंत्री जी को
इस्कूल में एक और हैडपम्प की घोषणा पक्की समझो
वैसे इतने हैण्डपम्पों का करेंगे क्या
पाणी दे तो एक ही भौतअै
पर कुछ और घोषणा करवा लेंगे बिद्याल्यै बिकास के लिए
नगद जैसा कुछ

क्या है रे लड़के इधर क्या घूमरा है
कक्सा में जाके बैठ
अरे साब के बच्चे बोला न बाद में आणा
जो भी लाया है बाद में लाणा
देख्ता नहीं बीओ साब पधारे हैं

क्या हुआ साब चल दिए ?
बैठते न साब
अबी आए अबी चल दिए
दयाद्रस्टी रखणा

अरे ऐ लड़के
ले आया बेटा लेआ लेआ
भाईसाब को दे पाकिट
और रामझारे में पाणी लेके आ

तो ये हालत है साब
अधकारी लोग सिर पर छंडे रैहते हैं
अब पढाओ कब ?
आपके सामने खै गए कि नहीं
ये डाक नहीं भेजी बो डाक नहीं भेजी

मैं तो इस्पैस्ट खैता हूं
या तो डाक्खाना ही चला लो
या इस्कूल ही चला लो
पण ये तो ऐसे ही है सिस्टम
पूरा का पूरा सिस्टम भ्बस्ट हो गया है

अरे ऐ लड़के इधर आ
छुट्टी की धण्टी लगा
और सुण मोटर साईकिल के
पहिए चैक कर पंचर तो नहींयं
पंचर हो तो फटाफट गनी खां के जा
निकड़़ा के ला
देखें कितने जल्दी करता है
शाबास बेटा

और सुणाओ साब
अखबार पडो तो ले जाओ
ऐ लड़की सुषमा कमरों के ताले लगा

अच्छा साब राम-राम
इस्कूल खोलने में देरसेर हो जाती है तो
गांव में कोई कान तो नहीं हिलाता ना
वैसे तो आपके रहते कोई दिक्कत नहीं है
फिर भी जमाना खराब है साब
वैसे तो लड़कों को चाबी दे रक्खी है
फिर भी

अच्छा साब चलूंगा
तीन ही बजे हैं लेकिन
क्या है शाम को कुछ गैस्ट आणेवाले हैं
गांव यहां से नैट बीस पड़ता है

ओके ओलदि-भस्ट





4.
अरे ऐ लड़के टाइम क्या हो गया
घण्टी समै पर लगा दी थी तुमने ?
लगा दी थी, बढिया
सब कमरों के ताले खोले ? सफाई की ?ठीक
प्र-थाना हो गई ? ठीक

दो घण्टे हो गए कोई पीछे से आया तो नहीं था न ?
ठीक

अच्छा अब ऐसा करो
गंगाराम को आज डाक बणाणी है
भौत काम है
पोसारवाड़ी आई कि नहीं ?
आ गई ? ठीक
क्या बणारीअ
कढी ? ठीक

आज के अखबार ला दो
और सब बच्चे उसी कल वाड़े
पेड़ के नीचे बैठकर गिणती बोलो
तू बुलवाणा सौ तक की कम्पलेट
पैलै हिन्दी में फिर इंगलेसी में

और डण्डा टेबल के ऊपर रख देणा मैं आराऊँ
चल डण्डे को टेबिल के नीचे रख देणा
आजकल आरती-ए जाणें क्या आ गया है
अब आ गया तो आ जाणें दे
तू ऐसा कर ऊपरई रख देणा
होगी जो देखी जाएगी
समज में तो आए आया क्याअै
सब बच्चों से खैणा मुंह पर उंगली रखकर बोलें
किसी की मुंह से उंगली हटे तो बताणा
ओके अब जा

सुण ऐसा कर दो दरीपट्यिों को मिला कर इधर
बरण्डे में छाया में बिछा दे
और भागकर पुस्तकालय से
दोचार किताब उठा ला सिराणे के लिए
अब जा बेटा

हे राम हे राम
हे राम तेरी मर्जी
तू असली हम फर्जी
एक बात है अखबार भी क्या चीज बणा दीअै
कुछ भी देखो फिल्मी चित्र
सोने चांदी का भाव
पिलाट सिलाट की सूचना सब घर बैठे
कौड़ियों के मोल अबे-लेबल

राम-राम क्या जमाना आ गया
हिंसा चोरी डकैती बलत्कार के अलावा कुछ नहीं
चारों तरफ
समझ में नहीं आता
क्या होगा इस देस का ?

अरे तुम दोनों बच्चे फिर आ गए
जब तुम दो मिन्ट सांती के साथ बैठकर पढ़ ही नहीं सकते
क्यों आते हो स्कूल ?
क्यों अपणा और अपणे घरवाड़ों का समै खराब कररे हो
मुझे पता है नहीं पढ़ सकते तुम लोग
तुम्हारी सात पीढ़ी नहीं पढ़ी
तुम कैसे पढ़ोगे मेरे बाप
इधर आ
चल इधर आ
हाथ आगे कर
भगवान भी आ जाए न भगवान भी
तो तुझे नहीं पढा सकता
मैं तो चीजई क्याऊँ
क्योंकि तू तो वो चीजअै जो मैं भी नहींऊँ

तू भी हाथ आगे कर
जादा रोणा-धोणा है तो अपणे घर जाके करणा ये रिहर्सेल
ये तो कुच्छ भी नहीं है कुच्छ भी
हमारे जमाने में प.रामनराण शास्त्री पेड़ से
उल्टा लटका देते थे क्या ?
आंसू मत टपकाओ
इसे तो प्यार मानो प्यार
जाओ जाकर बैठो कक्सा में

और तू इधर सुण
किसी इंटलिजेंट से लड़के को भेज
कहीं भेजणा है बाहर
अब तुझे तो क्या भेजूं 
पांचूई में आ गया
ऊँट की नांई बढ़ गया
पांच सौ पांच और पांच सौ पांच कितने हुए
बता सकता है ?
नहीं न
यही तो मैं खैराऊँ
अल्लातालाई मालिक है तुमारा
मेरे समझ में नहीं आता
घरवाड़े ध्यान नहीं दे सकते बच्चों पर
तो पैदा क्यों कर देते हैं
अरे ये कोई गोड गिफ्ट थोड़े है
खैर तू जा यार दफा हो
दफा हो लेकिन कभी तीन सौ दो मत हो जाणा मेरे मालिक
आजकल स्कूलों पै वैसे ही ताले लगवा रहे हैं लोग
करे आंगणवाड़ी की सिस्टर
भरे मास्टर

और सुण सरिता को बोलणा
पाणी लेकर आएगी हैडपम्प से मांज कर
कौणसी वाड़ी सरिता को बोलेगा ?
सरिता चतुर्वेदी को
हां जा अब ठीक





5.
और भई गंगाराम सुणा क्या खबर
कबिता सुणाएगा ?
चल सुणा
देख यार हमें तो ये तेरी कबिता हो या बबिता
समझ में आती नहीं है क्या नाम से
लेकिन चल तू सुणा

सुणाणे लगा साब गंगाराम-

संस्कृति तो थी भली
और वह इंसानी मानवीयता को
यहां तक खींच लाई थी
लेकिन मानव की यह अमोल विरासत
अब छिन्न-भिन्न हो रही थी

मूल्य तो थे भले
और वे इंसानी उदात्तता को
यहां तक खींच लाए थे
लेकिन अब उनमें गहरी गिरावट आ गई थी

बदलाव का यह ऐसा दौर था
जिसने हृदयों के समीकरण बिगाड़ दिए थे 
वे मशीन की तरह धड़कने लगे थे
करुणा के आगार इंसानी हृदय
खण्डहरों में तब्दील हो गए थे
व्यक्तिगत जिन्दगियां खासी उजाड़
और जीवन विहीन थी

जीवन के होने के गान के नारकीय शोर में
जीवन के अभाव का अजब समारोह
धरती पर चल रहा था
एक ओर नगरों में शॉपिंग माल बढ़ रहे थे
दूसरी ओर कैंसर की तरह बढ़ रही थीं
झुग्गी झोंपड़ियां

इन झोंपड़पट्टियों में
भारी तादाद में रहते थे वे परिवार
जिन्हें कंगाल बनाने में इस शताब्दी ने
सारी ताकत झौंक दी थी

न्यूनतम मानवीय संवेदनाओं के साथ रहते थे
वे परिवार इन झोंपड़पट्यिों में
छोटे-छोटे चार-चार पांच-पांच साल के नग्न बच्चे
सुबह होते ही शहर में बिखर जाते थे कटोरा लिए
देर शाम थके हारे काम से लौटते थे अपने डेरों में
जहां उन्हें उनके जर्जर पिता मिलते थे
और भी जर्जर उनकी मांओं के बाल खींचकर
धरती पर दे मारते हुए
जहां उन्हें बड़ी बहनें मिलती थी
झुग्गी के अंधकार में जमीन खोदकर बनाए
पत्थर के चूल्हे पर खाद्य बनी बैठी हुई
जहां उन्हें राजनेताओं सरीखे सफेदपोश एनजीओ वाले मिलते थे
उन्हें खा जाने के लिए आए हुए

झुग्गी झोंपड़ियों और रेल की पटरियों के
बीच से जाते कच्चे रास्ते पर
यह तेरह चौदह साल की बच्ची
अपने घुटनों में सिर फंसाए बैठी है
इसके आठ कदम दूर
बीस-बाइस की उम्र के दो भारतीय नौजवान
बैठे हैं गिद्ध की तरह दृष्टि जमाए
लड़की धरती को कागज बना
तिनके से चित्र उकेर रही है धूल में
चित्र में उसने ढेरों-ढेर झुग्गी झोंपडियों में
हवा में हरहराते अपने झिलंगे से घर को बनाया है
घर के आगे बनाए हैं पेड़ जिनमें छाया है

और अब वह जार-जार रो रही है
उसका घर और पेड़
भीग रहे हैं उसके आंसुओं की
बारिश से
उसे उसका घर
आंसुओं की बाढ़ में बहता नजर आ रहा है

अब बाकी की कल सुणाणा यार
मेरे इसमें तेरी एक चीज समझ में आई
कि शहरों में सोफिंग माल बन रहे हैं
और ये ही इस कविता की क्या कहते हैं वो
जान है
और जान है तो जहान है
क्या ? (क्या के साथ ही...)

यार कुछ रूपैये चईए थे उधार
जेब में पड़े हो तो देना सौ-पचास
मुझे शाम को जाते वक्त क्या है
चौराहे से कुछ लेकर जाणा है
वो क्या कहा है न किसी सायर ने
जाती नहीं कम्बख्त मुंह को लगी हुई
मेरा पर्स आज घरवाड़ी ने निकाल लिया

अब चल तू डाक बणा फटाफट
मैं जरा सीआरसीएफ से मिलते हुए
घर निकलूंगा





6.
अरे ऐ लड़के टाइम क्या हो गया
घण्टी समै पर लगा दी थी तुमने ?
लगा दी थी बढिया
सब कमरों के ताले खोले सफाई की ?ठीक
प्र-थाना हो गई ? ठीक
गंगाराम आ गया ? ठीक


दो घण्टे हो गए कोई पीछे से आया तो नहीं था न ?

आया था ?
कौन ?
क्यों ?

मौसमी की मां
क्यों ?
मौसमी ने घर जाकर मेरी शिकायत की ?
क्या ?

कि कल मैंने उससे कहा कि
पढ़ने में क्या धरा है
तेरे घरवाड़ों से बोल शादी कर दे

तो ये क्या कोई घर जाकर बोलणे की बात थी
और फिर इसमें मैंने गलत क्या कहा ?

तू ऐसा कर घर जाकर
बुलाकर ला डोकरी को
कहणा माटसाब ने मौसमी की
छात्रबति लेणे के बुलाया है





7.
यार गंगाराम सच बताणा
मुझे सक होराअै
खहीं तू मेरेई पे तो नहीं बणाराअै
ये तेरी कबिताओं बबिताओं ललिताओं लतिकाओं को
क्या ? (क्या के साथ ही...)

खैर चल सुणा यार
तू भी क्या याद रखेगा
कैसा दिलदार कलिंग मिला था तुझे
तेरी गोरमेण्टसरवेण्टी में
सुणा

गंगाराम को तो सुणा कहणे की देर है
ओटो इस्टाटअ मेरा मटा

अपनी भाषा खो चुकने के बाद
तुम भाषा के शिक्षक बने हो
ताकि छीन सको बच्चों से उनकी भाषा
ताकि यथावत चले यह गलीज व्यवस्था

तुम में जरा भी बची होती अपनी भाषा
माने अपनी संस्कृति अपनी विनम्रता
और चीजों से अनुराग
और उन्हें अपने होने के आलोक में देख पाना

तुम पहले दिन ही बच्चों के बीच
उनके जीवन के उल्लास और उजास से भरी
भाषा के सम्पर्क में आकर
अपने आपको बौना अक्षम और निरुपाय पाकर
क्षमा मांगते कक्षा में पहले दिन ही
और निकल जाते फिर से नई शुरूआत करने
भाषा सीखने

तब तुम नहीं रहते व्यवस्था के लिजलिजे कारिंदे
तब तुम होते एक सच्चे शिक्षक
जिसके वाक्य इतने प्राणवान होते
कि बच्चों का तुमसे संवाद को जी करता

फिलहाल तो तुम्हें कोई भी टरका देता है
कोई भी ऐरा-गैरा शिक्षा प्रभारी
जिला शिक्षा अधिकारी

ये तूने हण्डरेण्ट पर-सेण्ट मेरे पर लिखी है
और डीओ साब पर

नहीं ये हम सब पर है

ये तेरी बणाणेवाड़ी बात है
लेकिन बेटा तेरी भाषावाड़ी बात है न
बो बिल्कुल गल्तअै
तेरी क्या भाषाअै ? रसहीन सुगंध बि-हीन
सुवाद बि-हीन
अरे भाषा तो हमारे पास है
भाषा की टकसाल लगा दें साड़ी

और एक बात तुझसे कहूं
तू मास्टरी छोड़
और किसी एनजीओं में चलेजा
यहां क्या लेगा

यहां से एनजीओ
एनजीओ से फंडीजेंसी
कैसा सुलभ सस्ता टिकाऊ बिकाऊ रास्ताअै
क्या ? (क्या के साथ ही...)

यहां क्या मिलता है तुझे अट्ठारा
वहां अस्सी मिलेगा
तेरे जैसे नोलेजफुलों को तो
मुंह मांगी कीमत पर खरीदते हैं वे
पिछले दोएकई बरस में
बड़ी-बड़ी संस्थाओं में से बड़े-बड़े चले गए
क्या ? (क्या के साथ ही...)
क्योंकि भई उनका भीसतो
छिपा हुआ मकसद है न वही
शिक्सा का बाजार खड़ा कर देस की तबाही

लेकिन इस बार कबिता में तू बो माल लाया
कि टैमपास साड़ा होताई नजर आया

खैर बढिया
अब चल तू डाक बणा
मैं कक्सा देखता हूं





8.
गंगाराम जाणैं आज कहां मर गया ?
ये भी रामजीई होता जा रहा है जीव को
हजार बार कह दिया ये तेरी
कबिताओं और बबिताओं
ललिताओं लतिकाओं का चक्कर छोड़ साड़े
इनके चक्कर में यूंई किसी दिन
कुत्ते की मौत मर लेगा
क्या रक्खा है इनमें

जब हमारे डिपाट के शिक्सा मंत्री
माननीय राधारमण सर्राफ ही नहीं लिखते कबिता
तू क्यों इन चक्करों में पड़ताअै

अच्छा खुद फरार है
और कबिता टेबल पर छोड़ गया है
देखूं तो लिखा क्या है
कहीं मेरे बारे में तो नहीं ?

तुम और किसान

अच्छा ये तो हुआ सीरसक माने कबिता
बबिता में क्या लिखा है देखूं तो जरा

तुम वो हो जो काम करो तो न करो तो
आज की पूरी तन्ख्वाह पाओगे
तुम मेज पर पांव रखकर ऊँघने
और थड़ी पर चाय पीते हुए
पांच बजाने की भी तन्ख्वाह पाओगे
और अगर तुम दफ्तर में गए
और वहां तुमने कुछ काम निपटाए जरूरतमंदों के
और ऐवज में इसके
हफ्ता वसूलने की तरह पैसा वसूला उनसे
तब भी तुम आज की तुम्हारी पूरी तन्ख्वाह पाओगे
तुम इस देश की सरकार के दफ्तर के कार्मिक होने के नाते
भ्रष्ट आचरण में डूबने की भी पूरी तन्ख्वाह पाओगे
उन कामों की भी तन्ख्वाह पाओगे जो तुम नैतिकता की दृष्टि से देखो तो
राष्ट्रद्रोह जैसे होंगे
तुम त्यौहार और रविवार की भी तन्ख्वाह पाओगे
आराम करने के ऐवज भी तुम्हें पैसा मिलेगा
और इसी दौरान तुम्हें पदोन्नतियां और पुरस्कार भी मिलेंगे
क्या तुमने कभी महसूस किया है कि
किस कदर सुरक्षित है तुम्हारा जीवन
क्या तुम महसूस कर सकते हो
इस सुरक्षा के बदले में आखिर क्या देते हो तुम इस देश को ?

तुम्हारी सौ मांगें हैं और हजार शिकायतें
लगता है तुम हालात से जरा भी खुश नहीं हो
तुम क्या सोचते हो लालच लालच और लालच के सिवा क्या है वह
जिसके चलते कि खुश नहीं हो तुम ?

अगर कीटनाशकों ने सब्जियों को बर्बाद कर दिया है
तो यह किसने किया है ?
अगर भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है इस देश में
तो क्या तुम इस कुकर्म में शामिल नहीं हो ?
अगर अन्याय और हिंसा इतनी अधिक है कि
अखबार का हर पृष्ठ उससे रंगा दिखाई देता है
तो इसके विरूद्ध तुम क्या कोशिश कर रहे हो ?

सबकी तरह तुम भी प्रतीक्षा कर रहे हो
तुम्हें प्रतीक्षा पसंद है
तुम प्रतीक्षा करना चाहते हो
तुम जानबूझकर प्रतीक्षा करना चाहते हो

उधर वह किसान है तुम्हारा भाई
जो गांव में छूट गया है और खेतों में खट रहा है
वह आज दिनभर खेत में खटेगा
इसके ऐवज में आज उसे क्या मिलेगा ?
वह कल भी दिन भर खटेगा
पूरे हफ्ते पूरे महीने
वह चार महीने दिन रात एक कर के
मावनीयता की सच्ची मूर्ति की तरह जूझता रहेगा
अंत में उसे क्या मिलेगा
चार महीने के हरेक दिन के एवज में ?
खेती का मंहगा खर्चा काटने के बाद
उसे तुम्हारी चार दिन की तन्ख्वाह के जितना मिलेगा

जिसमें उसे सब कुछ करना है
बहन को कपड़े पहुंचाने हैं
बेटी के विवाह का तामझाम गाड़ना है
आसमान छूते भावों पर
गुड़ चीनी मसाले खरीदना ही खरीदना है
और केरोसीन चिमनी के लिए
या आत्मदाह के लिए

अरे क्या मगजमारी है यार
इसको पढ़कर ऐसा नहीं लगता क्या कि
कुण्ठित हो गया है गंगाराम

खैर पर आज मर कहां गया
मुझे तो चौकी जाणा था
थानदार साब को टैम दे रखा था मैने तो
कि कल हमारे स्कूल में प्र-थाना समै में आएं
और हमारे बच्चों को कुछ दिशा-ज्ञान दे जाएं
बाकी अंदर की बात तो ये है कि ऐसी बातों से
लिंक बणता है
टैम-बेटैम काम आते हैं ऐसे लोग
पिछले दिनों ही मेरा एक भतीजा टाइप लड़का
रैकी और रैफ में फंस गया था
ले देकर इन्हीं की मार्फत मामला रफा-दफा हुआ था
क्या ? (क्या के साथ ही...)





9.
आइए आइए गंगाराम जी आ गए
एक बात बता यार गंगाराम
बेटी के बाप मैं कब का यहां खट रहा हूं
कब का तेरा बेट देखराऊँ
तू चला-चला अब आयाअै

मैं तेरे बाप का नौकर हूं क्या यार जो
तेरे से तीन-तीन घण्टे पैलै आकर
सारे स्कूल को सम्हाड़ूंगा

या तो ऐसा है कि मुझे नौकर समज रखा है तूने
या फिर ऐसा है कि तेरी आदी तन्खा दे दिया कर
बण जाऊँ तेरा नौकर
नहीं मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी तेरी जाति से
क्योंकि जाति तो पांतिअै
तेरी तेरी पांतिअै
मेरी मेरे पातिअै
बोल तैयारअै तू हर महीने देणे ?
क्या ? (क्या के साथ ही...)

देख मेरी तरफ ध्यान से
और सुण
सियाराम की सी कर दूंगा
सस्पेण्ड करा दूंगा

कुछ नहीं लगता आजकल मास्टर को सस्पैण्ड कराणे में
गांव के एक आदमी की तिरछी नजर चाईए बस

या तो अपणे रंग-ढंग ठीक कर ले
मैं अपणी पर आ जाता हूं न
तो किसी गंगाराम की तो क्या
रामजी कीई नहीं सुणता
अब जा साइकिल का स्टैण्ड लगा
और डाक बणा आफिस में बैठकर
बच्चों को मैं देखता हूं




10.
सुणा है गंगाराम को सस्पैण्ड कर दिया ?
कर दिया और क्या
लगा दिया ठिकाणे
बीओ साब पे कबिता लिखता था
बो क्या समझता था
यहां सब बेकूप बैठै हैं

अभी तो सस्पैण्ड हुआ है
कल टर्मीलेट भी होगा

और इस बार वाला बीओ तो
महान वो है
सीदे-सीदे पचास हजार की ठुक गई है
इससे कम में सुल्टारा नहीं होणे वाड़ा
इसका तो कामी ये है
रोज एक मुर्गी पकड़ना
और हलाल करना
गांवों में लोग बैठा रखे हैं
कौण मास्टर कब क्या कर्राअै

धणौली में डोकरी मर गई थी
चरण मास्टर बच्चों की छुट्टी कर दाग में चला गया
पीछे से पौंच गया ये कव्वा समसान की खीर खाने
मैंने कहा नै महान वो है
कर दिया एपीओ

और एक ये बेकूप गंगारामअै
छोरी सर पे आरीअै
स्यादी करणीअै एक दो साल में
एक बार तो हार्ट अटैक आई चुका है
दूसरे में लमलेट हो लेगा
बैठे ठाले पेट पे लात मारी साड़े ने
खुद तो मरा जो मरा
परिबार को क्यों मारा
करेगा सो भरेगा इसमें क्याअै

पैलै तो मेरे पै और बीओ साब पै लिख लेता था
अब लिख बेटा किसपै लिखेगा
तेरा बाप महीं बैठता है रोज सामने
बिलॉक सिक्सा ओफिस में
कोई पुर्जा-वुर्जा लिखा मिल गया न कहीं
वहीं ठोक देंगा
बड़ा खडूंस आदमी है
मेरा तो उठणा-बैठणाअै उसके साथ
मैं तो अच्छी तरै जाणता हूं
उसके कारनामे

उसके बारे में मेरे से जादा
खांसे जाणेगा गंगाराम ?



11.
क्या ?
गंगाराम ने आत्महत्या कर ली ?
सक तो मुझे जभी हो गया था
जब उसने ये कबिता लिखी थी




1
मेरी ईमानदारी, सज्जनता
सच बोलने के साहस की
जरूरत तो खैर थी ही नहीं
लेकिन मुझमें इनके होने भर से
उन्हें परेशानी होने लगी
उन्होंने मुझे काम छोड़कर जाने के लिए
असहाय छोड़ दिया

ऐसा लग रहा है मैं गायब हो रहा हूं अपने ही शरीर में से
कोई और इसमें अपनी जगह बना रहा है
मेरे शरीर में हवा भर रही है
और सुस्ती और नींद और उबासी और उबकाई

मेरा चमड़ा मुटिया रहा है
मैं बेडोल हो रहा हूं
मेरा दिमाग निरर्थकताओं को
सहन कर पाने की क्षमता खोकर
और कुछ भी सार्थक न कर पाकर
एक अजीब से भोज्य पदार्थ में बदल रहा है
आज ये सारे परिवर्तन मुझे मुझमें होते दिख रहे हैं
कल को हो सकता है दिखना बंद हो जाएं
तब मेरे पिता,भाईबंधु, मकान मालिक आगे आएं
और मेरा मानसिक इलाज कराने
किसी सयाने-भोपे के पास ले जाएं




2
ये क्या चीज है जो मेरे सपनों में आती है
और मेरी जान लेना चाहती है
अदृश्य जानवर की तरह
मेरी छाती पर बैठ जाती है
और मुझे इस तरह से दबाती है
जैसे हत्यारे लोग
अंधेरे में स्त्रियों का गला दबा देते हैं तकिए से



3
बच्चों से खाली हो चुके हैं स्कूल के गलियारे
राहगीरों से खाली हो चुके हैं तमाम रास्ते
किसानों से खाली हो चुके हैं खेत
भेड़ बकरियों से खाली हो चुके हैं पहाड़
गाय भैंसों से खाली हो चुके हैं चरागाह
सूरज से खाली हो चुकी है आधी धरती




4
जीवन की अनिश्चित यात्रा में
तुम हो राह में मिले पेड़
पोखर हरे मैदान
और सुगम पगडण्डी की तरह
तुम हो वह सब जो पीछे छूट गया है

वक्त जरूरत तुमसे मिलना
आगे पता नहीं
होगा भी कि नहीं
और यात्रा भी अब यह
कितनी बाकी रही
कुछ निश्चित नहीं

बेहतर हो कि यह
समय रहते पूरी हो जाए
राह के दोनों ओर जगह-जगह
दिखाई पड़ते हैं ऐसे राहगीर भी
जिनके तन पर तार नहीं
पात्र में अन्न नहीं जल नहीं
खड़े रहने में अक्षम इन राहगीरों को देखता हूं
अभी चलना है कई-कई बरस

राह के पेड़
पोखर हरे मैदान
पगडण्डी
सब इनके लिए
हो चुके हैं अर्थहीन

गल चुकी है त्वचा
मगर शेष है यात्रा




12.
क्या ?
गंगाराम ने आत्महत्या नहीं की ?
क्यों ?

उल्टे कबिता लिखकर चिपकायी
बिभाग के सूचना पट्ट पर
और कबिता की पच्चीस
फोटो कोपी कराके बिभाग के बरामदे में बिखरा दी
ये देखो. 





ll महावन: तीन कविताएं ll


1
कुत्ता

वफादारी के गुण के बावजूद
रोटी जब मिलती है
जब वह टांगों में पूंछ दबाता है

मालिक के सामने
बार-बार पूंछ हिलाता है
पांवों को जीभ से चाटता है

इतना करने पर भी
मालिक रोटी को हाथ में पकड़े
अपना मनोरंजन करता है
उसकी बेचैनी और
खाना पाने की उत्सुकता से

अंत में ऊबने पर वह रोटी फेंकता है
दूर दालान में
कुत्ता फिंकी हुई रोटी को
ठीकठाक सी जगह में बैठकर खाता है

दयालु मालिक बैठा देख रहा है
वफादार कुत्ता पेट भर रहा है



2
खरगोश

तुच्छ नहीं
नन्हा प्राणी हूं
इस महावन का

चाहकर भी
शेर की तरह दहाड़ नहीं सकता
हाथी की तरह ध्यान नहीं खींच सकता
बाघ की तरह अपने भोजन को
वश में नहीं कर सकता

कभी भी कोई बाज मुझे ले
उड़ सकता है आकाश में

फिर भी हूं
अभी हूं
नन्हीं धुकधुकियां शरीर में लिए
अभी हूं

बहेलिए आ गए हैं मुझे खोजते
उनके पगों की दाब सुनते हुए हूं

कितने क्षण शेष हैं मेरे पास
बहुत सारे कि एक भी नहीं




3
मृग

फेंके हुए पत्थर से कटी है गर्दन
कि लोहे की भौंथरी धार से

कौन इस तरह घायल कर
गायब हो गया है इस पार से

यह मृग प्राण छूटने की प्रतीक्षा में
पड़ा है कब से
किसान के कच्चे घर के पीछे

किसान और उसकी पत्नी
देख जाते हैं बार-बार
देखो बेचारा कबसे
दम साधे आंखें फाड़े पड़ा है
प्राण छूटने की प्रतीक्षा में

पास के मृत कुंए की जगत पर खड़ी स्त्री
देख-देख व्याकुल हो रही है

कितना खून बह गया है
गर्दन लथपथ है
अपने ही खून से सिंची है

जो खून भीतर को सींचता था
अब बाहर को सींच रहा है

फिर उस स्त्री के मुंह से निकला
देखो इस बार फिर तड़पा
और यह आखिरी बार

मुंह से लहु भरी हवा निकली
गुजरते राहगीरों ने देखा बहता खून
उनके मन में  गंगा नहा आने की
पवित्र इच्छा जगी .


 
__________________________

प्रभात 
१९७२  (करौलीराजस्थान)

प्राथमिक शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम विकासशिक्षक- प्रशिक्षणकार्यशालासंपादन.
राजस्थान में माड़, जगरौटी, तड़ैटी, आदि व राजस्थान से बाहर बैगा, बज्जिका, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी भाषाओं के लोक साहित्य पर संकलन, दस्तावेजीकरण, सम्पादन.

सभी महत्वपूर्ण पत्र – पत्रिकाओं में कविताएँ और रेखांकन प्रकाशित
मैथिली, मराठी, अंग्रेजीभाषाओं में कविताएँ अनुदित

अपनों में नहीं रह पाने का गीत’ (साहित्य अकादेमी/कविता संग्रह)
बच्चों के लिए- पानियों की गाडि़यों में, साइकिल पर था कव्वा, मेघ की छाया, घुमंतुओं
का डेरा, (गीत-कविताएं ) ऊँट के अंडे, मिट्टी की दीवार, सात भेडिये, नाच, नाव में
गाँव आदि कई चित्र कहानियां प्रकाशित

युवा कविता समय सम्मान, 2012, भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार, 2010, सृजनात्मक
साहित्य पुरस्कार, 2010

सम्पर्क :1/551, हाउसिंग बोर्ड, सवाई माधोपुर, राजस्थान 322001    

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  1. बीच-बीच में गंगाराम की पंक्तियाँ ज़रा लंबी हो गईं, फिर भी हिंदी का नायाब dramatic monologue है यह कविता।

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  2. अच्छी. धारदार. मार्मिक. अब इंतज़ार बस इस बात का है कि कोई नाट्य मंडली आए और इस प्रदीर्घ संवाद कविता के मंचन के बारे में सोचे.

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  3. लंबे समय के बाद एक जीवंत, अपने देशकाल से सीधे संबोधित, अप्रतिम कविता पढ़ी है।

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  4. बहुत ही अच्छी कविता. एकदम सटीक

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  5. 'समालोचन' के माध्यम स इस बड़बोले समय में चुपचाप अपना काम करने वाले युवा कवि और प्राध्यापक अरुण देव वास्तव में हिंदी के लिए एक भला काम कर रहे है। जो काम बड़ी - बड़ी पत्रकाये इत- उत होने वाले लिटरेरी फेस्टिवल्स नहीं कर पा रहे है वह 'समालोचन' कर रहा है और वह भी एक लगभग अजाने से कस्बे से।
    प्रभात की यह लम्बी कविता सचमुच हमारी आज की की हिंदी की एक बड़ी कविता है जो अपने समय के सच को सच्चे शब्दों में बयान करने वाली कविता है। कविता समय सम्मान 2012 से समानित प्रभात हमारे समय के एक एक ऐसे कवि हैं जो शोरशराबे से दूर और निस्पृह रहकर रच रहे हैं।अपनी 'धीरे' शीर्षक कविता में वे खुद कहते है :

    इतना धीरे चलना चाहता हूँ जीवन में
    जितना धीरे चलते हैं गड़रिए बीहड़ में

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  6. जब ये कविता लिखी जा रही थी तब प्रभात से इस पर चर्चा होती रहती थी.जब लिखी जाचुकी तो उसने मुझे पढ़ने दी. कविता पढ़कर मैं हतप्रभ था. वाकई गंगाराम कोली मेरा और प्रभात का प्रिय पात्र है. आज समालोचन पर और अब अम्बुज की वॉल पढ़कर मन गदगद है.

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  7. स्तब्ध और बेचैन करती कविताएँ . पहली कविता की लम्बाई और कहीं कहीं दुहराव खलता नहीं है , क्योंकि इसी तरह धीरे धीरे एक त्रासद विद्रूप खुलता जाता है . पाठक आने वाली आत्महत्या की खबर सुनने के लिए तैयार होता चलता है , पर इस खबर का झूठ साबित होना उस तैयारी को बेकार कर देता है . आख़िरकार बिना किसी कवच के उसे इस कविता का सामना करना पड़ता है .

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  8. पूरी पढ़ी ।अद्भुत ।संरचनात्मक संयोजन भी अन्तरवस्तु से घनघोर तादात्म, घटनाक्रम भी नाट्य रूपक ,भाषा यथार्थ को नंगा करती हुई ,उच्चारण की मठ्ठर मूर्खतापूर्ण आवृत्ति सब ,राग दरबारी के समकालीन कविता है ।अद्भुत ।

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  9. बहुत ही मार्मिक सत्य है कविता में | शिक्षा व्यवस्था की वर्तमान अवस्था में अधिकांश सरकारी स्कूल खासकर प्राथमिक पाठशाला दोयम दर्जे के बन कर रह गए हैं | शिक्षा व्यवसाय में तब्दील हो गयी है | गरीब- से - गरीब भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने से अब हिचकता है | समाज में शिक्षक का जो दर्जा था, उसमे भी ऐतिहासिक पतन हुआ है | इस कविता में सरकारी प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान दशा का कच्चा चिट्ठा खोला गया है | प्रभात जी ने अपने शिक्षा क्षेत्र के अनुभवों को बड़ी कुशलता के साथ इस कविता में पिरोया है | इस विचारोत्तेजक कविता के लिए प्रभात जी को साधुवाद |

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  10. मैं तो जैसे उस प्राथमिक शाला में ही रह गया हूँ। यह हमारा आज का यथार्थ जीवन है। अद्भुत्त कविता है। पता नहीं कितने दिनों तक बार-बार याद आएगी। कवि प्रभात को शुभकामनाएँ। अरुण देव जी का आभार कविता पढ़वाने के लिए।

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  11. धैर्य और पाठकीय अनुशासन की मांग करती अद्भुत कविता ...आश्चर्य हुआ पढ़ते समय बार बार ये अहसास कि ये मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले की कहानी है..यही कविता की ताकत है कि वह राजस्थान ,मध्यप्रदेश ,उत्तरप्रदेश कही की भी हो सकती है..

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  12. लंबे समय बाद अच्छी कविता पढी अरुण जी का शुक्रिया ..

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  13. हिंदुस्तान में जो शिक्षा की परवाह करते हैं, इसमें कोई शक नहीं कि उनके लिए यह रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता है। यह दुर्भाग्य है इस देश का कि इस कविता का यथार्थ देश में इतनी सघनता के साथ व्याप्त है और इसे देखने के लिए दिल्ली से बहुत अधिक दूर जाने की कोई जरूरत नहीं है। बाकी जहां से दिल्ली वाकई दूर है, वहाँ तो दिल्ली दूर है ही।

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  14. आँखें खोलने वाली कविता है , प्राथमिक शिक्षा पर सटीक वृत्तांत .

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