ब्लॉग आज सशक्त वैकल्पिक मिडिया है. सहज
उपलब्धता और तीव्र संप्रेषण के कारण इसने कम समय में ही हिंदी में अपनी जगह बनाई
है. इस पर विस्तार से चर्चा युवा अध्येता परितोष मणि ने अपने लेख में किया है. यह
आलेख महाराष्ट्र में ‘वेब मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य’ पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद
में पढ़ा जाना है. कुछ ई पत्रिकाओं का भी ज़िक्र है. ज़ाहिर है इस माध्यम की
संभावनाओं पर विचार और मूल्यांकन की जरूरत अभी भी बनी हुई है.
हिन्दी ब्लॉगिंग : स्थिति
और संभावनाएं
परितोष मणि
बींसवी सदी ज्ञान और तकनीक की सदी
के रूप में जानी जाती है, अगर यह कहें कि इस सदी
में तकनीक से सम्बंधित अनेक क्रांतियां घटित हुई, जिसने
न सिर्फ सारे विश्व को एक सूत्र में बांधा बल्कि सूचना और संचार की व्यवस्था को
अधिक से अधिक लोकतान्त्रिक और समावेशी भी बनाया तो शायद गलत नहीं होगा. निश्चय ही
यह तस्वीर का एक पहलू है, दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है
की इस सदी ने लोगो को तकनीक के मामले में जितना नजदीक किया हो या आत्मनिर्भर बनाया
हों, उदारवादी बाज़ार व्यवस्था ने अपने छद्म और भ्रमित
कर देने वाले तौर तरीकों से गरीब और निम्नवर्गीय
जनता को आर्थिक रूप से लगभग हाशिए पर पहुँचाने का
काम भी किया है. लेकिन पूरी दुनिया में अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए जिस तरह सामान्य जनता ने एकजुट होकर संघर्ष किया और वर्षों से सत्ता को गुलाम बना कर अपनी
जेब में डाले तानाशाहों को एक झटके में अर्श से
फर्श पर ला पटका, वह इस बात का सूचक है कि लोकतंत्र की
भावना और उसके अधिकारों की प्राप्ति के लिए लोग
किसी भी हद तक जा सकते है और बिना भय के किसी से भी टकराने का माद्दा रखते हैं, इसलिए यह कहने में कोई संकोच नहीं कि बेशर्म आर्थिक बाजारवाद के बावजूद भी
यह उदारतम विश्वव्यवस्था है, जिसने अनजाने ही सही, तकनीकी रूप से लोगो को आपस में जोड़ कर वैश्विक लोकतंत्र की व्यापक अवधारणा को आश्चर्यजनक रूप से संभव बनाया है.
ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, दर्शन आदि के साथ–साथ
बाज़ार का सर्वव्यापी और संपूर्ण नियंत्रणकर्ता होना इस युग की बड़ी परिघटना है.
वस्तुतः बाजारवादी व्यवस्था का प्रसार तकनीक के कंधो पर ही हुआ है. इस वैश्विक समय
में बाज़ार और तकनीक एक दूसरे के पूरक के तौर पर
उभर कर आये हैं. तकनीक का जो बाज़ार वैश्विक रूप से तैयार हुआ उसने न सिर्फ दुनिया में उदारीकरण की जबरदस्त आंधी ला दी है, जिस से कोई भी राष्ट्र बच नहीं पाया और जाने अनजाने इसके प्रवाह में बहने
लगा, बल्कि जनता के सामूहिक जुड़ाव के अनेक मंच तैयार
कर दिए. इस उदारीकरण की सबसे अच्छी बात यह रही कि इसने सूचना और अभिव्यक्ति के बरास्ते आम आदमी की सशक्त आवाज़ के रूप में अपनी
उपस्थिति दर्ज़ करायी. नई सदी तक पहुँचने के इस क्रम में वैश्विक धरातल पर इस अवधारणा को न सिर्फ पंख मिले बल्कि वह बहुत
अल्प समय में पूरी ताकत के साथ उड़ने भी लगी. बोलने की आज़ादी, जानने का अधिकार, सूचनाएं प्राप्त करने का अधिकार, मनुष्य के
मौलिक अधिकारों की श्रेणी में मजबूती से अपना स्थान बना चुके हैं और इसमें उसका सबसे बड़ा साथ निभाया है इन्टरनेट ने. अगर यह कहें कि
इन्टरनेट आज आम आदमी की आवाज़ के रूप में सामने आया है तो शायद गलत नहीं होगा.
सबद |
ब्लॉग अपने प्रारंभिक अवस्था में ‘’वेबलॉग’’ के नाम से जाना गया. अपनी अभिव्यक्ति के
अनुसार ही ब्लॉग अनेक श्रेणियों में विभक्त किया गया यथा- पाठ्य
ब्लॉग, फोटो ब्लॉग, वीडियो ब्लॉग, म्यूजिक ब्लॉग, कार्टून ब्लॉग इत्यादि. ब्लॉग
निजी के साथ–साथ सामूहिक अभिव्यक्ति को भी ध्वनित करते हैं, यहाँ अपनी मौलिक अभिव्यक्ति और क्रिया–कलाप के साथ
दूसरों की अभिव्यक्ति और उनके विचारों को भी पर्याप्त स्थान दिया गया.
विश्व में वेब मीडिया का प्रथम प्रयोग अमेरिका में 29
अक्टूबर 1989 में “अर्पानेट” के नाम से हुआ. भारत में इसका
आरम्भ 1994 से हुआ
जिसे 15 अगस्त 1995 को व्यावसायिक रूप में तब्दील कर दिया गया. वेबसाइटों पर
निशुल्क रूप में निजी अभिव्यक्ति का प्रारंभ 1994 में TRIPODI.COM के नाम से हुआ. भारत में पहला अंग्रेजी ब्लॉग 1997 में अस्तित्व में आया. कुल
मिलकर ब्लॉगिंग की शुरुआत भारत में हो चुकी थी, लेकिन
मातृभाषा में अभी इसका प्रणयन शेष था. यह नितांत जरुरी भी था, विशेषकर भारत जैसे देश में जहाँ की बहुसंख्यक आबादी अपनी भाषा में अपनी
सर्जनात्मक अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करने के लिए व्यग्र थी. अंग्रेजी की जडता को
तोड़कर और अपनी भाषा में अपने विचारों और सूचनाओं को दूसरों तक पहुँचाने के रास्ते का आगाज़ किया श्री आलोक कुमार ने जिन्होंने पहली बार हिन्दी में ‘’नौ-दो
ग्यारह ‘’नामक ब्लॉग आरम्भ किया. उन्होंने पहली बार
चिट्ठी के बरक्स हिन्दी में ब्लॉग के लिए ‘’चिट्ठा’’का प्रयोग किया. बाद में यह ब्लॉग
के मानक हिन्दी अर्थ के लिए प्रयुक्त होने लगा. सन् 97 से लेकर 2000 तक हिन्दी
टाइप की जटिलताओं और कठिनाईयों के कारण बहुत अल्प लोग ही इस तरह के
ब्लॉग लेखन में रूचि लेते थे, लेकिन समय के साथ–साथ अनेक नए हिन्दी फोंट्स और हिन्दी की तकनीकी समृध्दता के कारण हजारो
ब्लॉगर ने अपने ब्लॉग के साथ हिन्दी दुनिया में कदम रखा.
सन् 2007 का वर्ष हिन्दी टाइपिंग और हिन्दी ब्लॉग
की दुनिया क्रांतिकारी परिवर्तन ले कर आया, जब यूनीकोड नाम का फॉण्ट सॉफ्टवेयर चलन में
आया, इस फॉण्ट को अनेक तरह की ब्लॉग सेवाओं में अत्यंत
सरलता से उपयोग में लाया जा सकता था. एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन तब आया जब गूगल
द्वारा google hindi transliteration प्रस्तुत
किया गया, इसने हिन्दी ब्लॉगिंग को मुख्यधारा के माध्यम
के रूप में स्थापित कर दिया. तब से ऐसे अनेक ब्लॉग आये जिन्होंने गंभीरतापूर्वक
अनेक राष्ट्रीय –सामाजिक मुद्दों पर पहल कर अपनी छाप
छोड़ी. चाहे बाढ़ हो, सूखा हो, आतंकवादी घटनाये हो,नक्सलवाद के नाम पर चिपकाये गए घटनाओं के पीछे का छुपा हुआ सच हों, सार्वजनिक व्यवस्थाओं में जोंक की तरह
घुस चुके भ्रष्टाचार का खुलासा हो, चुनाव हो, संगीत हो, साहित्यिक परिघटनाएं-सूचनाएं हों, राजनीतिक संदर्भों की हकीकत या अन्य कोई विमर्श, हिन्दी के ब्लॉग्स ने पूरी जिम्मेदारी से इनके पीछे छुपे सच्चाईयों को
उजागर कर बेहतर और तीव्र प्रस्तुति दी है.
जानकीपुल |
हिन्दी ब्लॉगिंग ने बेहतर माध्यम के तौर पर अपनी
उपस्थिति दर्ज कराई है. कम्पोजिट मीडिया के इस स्वरुप ने हिन्दी में आम आदमी की
संवेदनाओं को जागृत किया है, उन्हें अपनी अभिव्यक्ति के प्रदर्शन के लिए शब्द मुहैया कराये हैं. भारत में आज भी बाज़ार और
बाजारवादी ताकतों के छद्म यथार्थ के कारण समाचार पत्र या खबरिया चैंनल अपने रास्तो
से भटक कर मालिकों के एजेंटों के रूप में काम करने लगे लेकिन ब्लॉग पर ऐसा कोई
दबाब नहीं है जिसके कारण ये अभी भी मूल्य आधारित पत्रकारिता को बचाए हुए हैं.
ब्लॉगिंग ने सामाजिक मुद्दों और अन्य वैचारिक विषयों पर विमर्श के लिए अनेक लेखों
का निर्माण किया है, और इनके माध्यम से वैचारिक विमर्शो
और वाद –प्रतिवाद का व्यापक मंच तैयार किया है. ब्लॉग
समानान्तर मीडिया के रूप में स्थापित होकर एक नवीन सामाजिक क्रांति के जागरूक
पहरुए के रूप में हिन्दी जगत में खड़ा हुआ है. ब्लॉग लेखक पाठक से सीधे संवाद के
प्रभावशाली माध्यम के रूप में सामने आया है, इसने न
सिर्फ वैचारिक विमर्शो को प्रभावशाली रूप में सामने रखा है बल्कि सामान्य या हलकी
फुलकी सूचनाओं को पूरी व्यापकता के साथ प्रस्तुत किया है. ब्लॉग लेखन ने निजी
विचारों पर भी चर्चा हो पाए इसके लिए विस्तृत वातायन तैयार किया है और वह निजी
विचार परिष्कृत और परिमार्जित हो सके,यह अवसर भी पाठक को
उपलब्ध कराता है, इससे भी थोडा आगे जा कर कह सकते हैं कि यह स्थापित विचारों को परिवर्तित कर सकने का माद्दा भी रखता है. अगर
थोडा पीछे लौट कर जायें तो लोगो को पहले किसी भी
विषय पर न तो तार्किक–सारगर्भित दृष्टिकोण सहजता से उपलब्ध थे, न ही उसके प्रति अपने विचार व्यक्त कर सकने
की स्वतंत्रता. समाचार –पत्र,पत्रिकाएं, और न्यूज़ चैनल भी किसी हद तक वैचारिक और सूचनात्मक जिज्ञासा के शमन के
लिए अपर्याप्त थे. ब्लॉग लेखन ने ऐसी ही अनेक
जिज्ञासाओं को शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
अधिकांश हिन्दी ब्लॉग निजी अभिव्यक्तियाँ हैं, कुछेक
सामूहिक भी- इन ब्लॉग के माध्यम से
सूचना समाचार, साहित्य कला की अनेक अभिव्यक्तियां घटनाएं और विमर्श वेब पाठकों तक
पहुंचाई जा रही हैं. साहित्य की हर विधा, कला के सभी
रूप, समाचार विचार के सभी आयाम और सूचनाओं का एक विपुल
भण्डार हिन्दी ब्लॉग के माध्यम से हमारे पास आ रहा है. पूरे विश्व में इस समय करीब
15 करोड ब्लॉग है, जबकि हिन्दी में तकरीबन 25 से 30
हज़ार ब्लॉग अस्तित्व में हैं. कुछ ब्लॉग जहाँ अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को ध्यान
में रखते हुए सामाजिक,वैचारिक मुद्दों पर केंद्रित हैं जैसे यशवंत का ‘’भड़ास’’, रवीश कुमार का क़स्बा ,अविनाश दास का का मोहल्ला लाइव , चंद्र भूषण का पहलू, अभिनेता मनोज वाजपेयी का ब्लॉग, नसीरुद्दीन का ढाई आखर, कनाडा में बसे समीर लाल का उड़न
तश्तरी, अनिल यादव का हारमोनियम, प्रमोद सिंह का अजदक, जनतंत्र, भूपेंन का काफ़ीहाउस तो राजनीतिक प्रश्नों को उठाता हुआ पुण्य
प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग, पत्रकार प्रियदर्शन का बात पते की और आनंद प्रधान की तीसरा रास्ता.
सिनेमा की सूचनाओ और नई फिल्मो की बेबाक समीक्षा के
लिए प्रमोद सिंह का सिलेमा –सिलेमा ,दिनेश श्रीनेत का इंडियन बायस्कोप और महेन का चित्रपट जैसे ब्लॉग है. मीडिया के अनुतरित
प्रश्नों के जबाब मीडिया खबर और हुंकार, वहीँ संगीत पर सुरपेटी, ठुमरी और पारुल का
खूबसूरत ब्लॉग- चांद पुखराज का
है. साहित्य की बात करें तो बहुत सारे ब्लॉग है जो साहित्यिक पाठकों की जिज्ञासाओ
और भूख को शांत करने में निरंतर अपना योगदान दे रहे हैं जैसे उदय प्रकाश का वारेन हेस्टिंग्ज का सांड, अरुण
देव की कविताओं का ब्लॉग संवादी, कृष्णमोहन झा का कविता ब्लाग आवाहन, शब्दों के उत्पति – विकास और उनके अनुप्रयोगों
पर अजीत वर्नेद्कर की शब्दों का सफर, रवि कुमार का सृजन और संसार, यात्राओं पर नीरज जाट का मुसाफिर हूँ मैं यारों, विज्ञान के सवालो का जबाब देती अरविन्द
मिश्र की साईं ब्लॉग, जाकिर अली ‘रजनीश’ का तसलीम, खान-
पान पर मंजुला की रसोई इत्यादि अनेक ऐसे ब्लॉग है जो एक ही जगह पर अनेक रूचि और समझ के पाठकों को
सूचनाएं मुहैया कराते है और उनकी बौद्धिक भूख को शांत करते हैं.
पढ़ते -पढ़ते |
असुविधा |
लेकिन इन पत्रिकाओ में बहुत तेजी से अपनी जगह बनायी है अरुण देव द्वारा सम्पादित समालोचन ने, जो न सिर्फ अपने धारदार वैचारिक विमर्शो के लिए जाना जाता है, बल्कि नए साहित्य का जैसा वैविध्य यहाँ है उसी ने इस पत्रिका की लोकप्रियता को और पंख दिए हैं. सबसे बड़ी और बेहतर बात यह है कि रचना के प्रकाशन का जो मानक समालोचन ने निर्धारित किया है उसने इसकी ताज़गी हमेशा अक्षुण्ण रखने में मदद की है, ना सिर्फ यही बल्कि विवादों और वैचारिक दुराग्रहो से बचते हुए समालोचन का सारा ध्यान रचनात्मक संवेदना और और उसकी अभिव्यक्ति पर ही केंद्रित रहा है, किसी भी पत्रिका के लिए अपने सर्वग्राही स्वरुप को बनाये रखना बहुत बड़ी चुनौती होती है और समालोचन इसमें सफल रहा है. पत्रिका के बेहतर संपादन, सुरुचिपूर्ण कलेवर और सजग संपादकीय दृष्टि ने अभी तक करीब दो लाख पाठकों को अपनी तरफ आकर्षित किया जो इस पत्रिका की सफलता की कहानी का पुख्ता सबूत है. हिन्दी की छपने वाली साहित्यिक पत्रिकाओ के पाठक भी इतने नहीं होंगे जितने समालोचन के या इन साहित्यिक ‘इ’ पत्रिकाओं के हैं, ब्लॉग की लोकप्रियता का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा ? साहित्य–संस्कृति का पक्ष जो अब प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से हाशिए पर पहुँच गया था, उसे ब्लोगर पूरी शिद्दत और सम्मान के साथ अपने ब्लॉग में जगह दे रहे हैं.
अनुनाद |
हिन्दी चिट्ठो और चिट्ठाकारों ने अपने नए उपयोग के
लिए बिलकुल नई हिन्दी का निर्माण कर लिया है, जो साहित्यिक हिन्दी से कहीं
अलग और अधिक व्यापक है और अधिक लोगो को आसानी से समझ में आती है, हालाँकि भाषा की शुद्धता पर जो लोग चिन्ता जाहिर करते हैं उनके अपने तर्क
और निष्कर्ष... हो सकते हैं अधिक प्रभावी और बेहतर हों ..लेकिन यह भी सोचना चाहिए
कि अगर हिन्दी को वैश्विक और अधिक लोगों तक समझ में आने वाली भाषा बननी है तो वह
अधिक देर तक इस साईबर दुनिया में अपने को अलग –थलग नहीं
रख पायेगी. नए चिट्ठाकारो ने भाषा के इस व्यापकता को ध्यान में रखते हुए
अभिव्यक्ति के प्रदर्शन के लिए नई भाषा का निर्माण कर लिया. मीडिया और वेब मीडिया
के चर्चित चेहरे और हुंकार जैसा ब्लॉग चलने वाले विनीत कुमार चिट्ठाकारो के इस भाषाई सोच और परिवर्तन को जायज मानते हुए कहते हैं.
आपका साथ साथ फूलों का |
हिन्दी ब्लॉग के त्वरित विकास के बावजूद अभी
अंग्रेजी की तरह इसका विकास संतोषजनक नहीं है उसका प्रमुख कारण अभी भी हिन्दी
क्षेत्र में इंटरनेट का बेहद कम उपयोग है, लेकिन इसका भविष्य निरंतर पूर्वाभिमुख है. संतोषजनक बात यह है कि हिन्दी
चिट्ठाकारी उर्जावान और वैचारिक परिपक्वता से अभिप्रेत युवा चिट्ठाकारो का एक ऐसा
बड़ा समूह बनता जा रहा है जो हर तरह कि चुनौतियों और बाधाओं का सामना करने में
सक्षम है . यह हिन्दी क्षेत्र का सौभाग्य है कि चिट्ठो के माध्यम से बड़े
चिट्ठाकार अपनी अभिव्यक्ति पाठकों तक पहुंचाते ही रहते हैं, बल्कि बड़ी संख्या में नए और उर्जावान ब्लागरों ने अपने परिपक्व सोच के
स्तर से अपनी नवीन अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते रहते हैं.
सिताब दियारा |
चूँकि संपादन, प्रकाशन, प्रसार और अभिव्यक्ति पर अंकुश से घायल प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया की
अपेक्षा इस नवीन माध्यम में अभिव्यक्ति के निरंकुश प्रसार के असीमीत संभावनाओं की
विस्फोटक स्थिति को भी जन्म दिया है,बेवजह नहीं है कि इसका
आरंभिक तेवर अगर आक्रामक है तो अराजक भी. इसे संयमित ,संतुलित
किये जाने के साथ ही इसका समयानुकूल नियमन भी आवश्यक है. मौलिक अभिव्यक्ति के
स्वत्वधिकार की रक्षा के साथ साथ मर्यादित भाषा और कंटेंट के प्रयोग और पाठ की
शुद्धता की प्रस्तुति के प्रयत्न ब्लॉग जैसी विधा को और भी अधिक बेहतर और सामाजिक
स्वरुप देंगे. ब्लॉगर के लिए यह आवश्यक है कि जब तक ऐसी कोई व्यवस्था निर्मित नहीं
होती, अपनी मर्यादा का नियमन ब्लॉग के प्रयोक्ताओं को
स्वयं ही करना होगा क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संतुलित और सकारात्मक
प्रयोग ही ब्लॉगिंग का सर्वाधिक उज्जवलतम पक्ष है.
फर्गुदिया |
”कि अगले एक दशक में आप देखेंगे कि
हिन्दी ब्लागिंग सबसे शक्तिशाली विधा बन गयी है. आने वाले समय में हिन्दी ब्लागिंग
सभी तरह के समाचारों,सूचनाओ, और अभिव्यक्तियों कि वाहक बन जायेगी. मीडियाकर्मियों और हिन्दी ब्लागर का
समन्वय अवश्य ही इस दिशा में सकारात्मक क्रांति लाएगा’’.
इसमें कोई शक नहीं कि हिन्दी ब्लागिंग सृजन और
जनसंचार के क्षेत्र में नई संभावनाएं लेकर आई है. इसने एक उत्तेजक वातावरण का
निर्माण किया है तथा परस्पर संवाद और विचार –विमर्श के अनछुए रास्तो को
तलाश कर हमारे सामने उपस्थित किया है. यह अपनी शैशवावस्था से आगे बढकर किशोरावस्था
तक पहुँच गयी है. सिर्फ ब्लागर्स को अपने सामाजिक,राजनैतिक
और साहित्यिक सरोकारों का ध्यान रखना होगा और सामान्य जनता की आवाज़ बन कर उनके
लिए संघर्ष की जमीन तैयार करनी होगी, इस वैकल्पिक
मीडिया का सही और सार्थक अवदान तभी सिद्ध होगा.
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परितोष मणि-
उच्च क्षिक्षा जे.एन.यू से.
अज्ञेय की काव्य- दृष्टि प्रकाशित.
सूचनापरक लेख है. रोचक भी. परितोष को बधाई.
जवाब देंहटाएं...अच्छा अवलोकन ।
जवाब देंहटाएंभाई, बहुत अच्छा लिखा है, मैं जानकी पुल की कमियों को दूर करने की कोशिश करूँगा.
जवाब देंहटाएंअच्छा आकलन है. हिंदी ब्लगों के लिए एग्रिगेटर(रों) की जरूरत है. कहीं पे सारे ब्लागों की सूची भी रहनी चाहिए. यह भी पता चल सके कि ब्लाग-जगत में लेखकों का ही बोलबाला है या 'पाठक' भी ब्लाग पढ़ते हैं. वेब मीडिया के जरिए हम तकनीक-सक्षम पाठक युग में प्रवेश कर रहे हैं. भारत में टाइपिंग करने वाला पाठक तो बना नहीं (लेखक भी नहीं), क्लर्क की बने. कागज कलम से सीधे कीपैड-माउस पर छलांग लगी है. इस पहलू पर भी विचार होना चाहिए. क्या ब्लाग सामग्री पर कहीं शोध भी हो रहा है ? अगर हो रहा हो तो सूचियां, आंकडे इकट्ठे करने का काम हो जाएगा.
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख .. पढ़ जाने वाले प्रचिलित ब्लोग्स के बारे में जरुरी जानकारी ... परितोष जी को बधाई .. धन्यवाद समालोचन !!
जवाब देंहटाएंइस लेख में आपकी मेंहनत साफ़ दिख रही है| जिस व्यवस्थित तरीके से आपने ब्लागों की इस दुनिया से हमारा परिचय कराया है , वह सराहनीय है | साहित्यिक ब्लॉगों पर लेख लिखने के अपने अनुभव के आधार पर मैं आपके सामने आयीं मुश्किलों को समझ सकता हूँ | इसलिए दिल से आपका आभार..| और हाँ ...कोशिश रहेगी , कि 'सिताब दियारा' को और बेहतर बनाया जाय ..| शुक्रिया समालोचन..इस प्रस्तुति के लिए |
जवाब देंहटाएंजानकारी देने हेतु धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंस्वामी विवेकानंद का अपहरण
बहुत सुन्दर विश्लेषण बिटिया अक्षिता (पाखी) को शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानपरक और गहन आलेख, अभिव्यक्ति की नयी विधा के लिये।
जवाब देंहटाएंपारितोष बढ़िया आलेख है . ब्लॉग की दुनिया पर रोचक और गंभीर लेख .
जवाब देंहटाएंइस अच्छे लेख के लिए परितोष जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लाॅगों की वर्तमान स्थिति पर इस तरह के आलेख समय समय में प्रकाशित होते रहना चाहिए ताकि हमारे जैसे क्षुद्र ब्लाॅगर, अपने ब्लाॅग पोस्टों की विषय सामाग्री की, स्वयं समीक्षा कर सकें.
जवाब देंहटाएंव्यक्तिगत तौर पर , फेसबुक की प्रासंगिकता इन ब्लोग्स को पढ़ने का लोभ भी है जिनमे प्रमुखतः समालोचन ,जानकी पुल,सिताब दियारा,असुविधा, अनुनाद सबद और साथ फूलों का... (अपर्णा मनोज) ही हैं |शुक्रिया समालोचन ...धन्यवाद परितोष मणि जी
जवाब देंहटाएंलेख बढ़िया हैं. अर्ज़ बस इतनी कि न केवल असुविधा नियमित है (उसकी आवृति आमतौर पर हफ्ते में एक पोस्ट की रही है शुरू से) बल्कि जनपक्ष भी इसी नियमितता के साथ लगातार समाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर पोस्ट्स दे रहा है. इसे शिकायत न समझें, इतने सारे ब्लाग्स के बीच कहीं ध्यान न जाना एकदम स्वाभाविक है.http://jantakapaksh.blogspot.in
जवाब देंहटाएंऔर 'पाठकों की संख्या में इजाफा हो रहा है' पर आपत्ति दर्ज करें. मैं जानना चाहूंगा कि इस सूचना का स्रोत क्या है? ब्लॉग की स्टेटिसटिक्स इस सूचना को वेरीफाई नहीं करती. असुविधा के पाठकों की संख्या २००८ से ही कभी तुलनात्मक रूप से कम नहीं रही है. औसत पाठक संख्या साढ़े तीन सौ और औसत कमेन्ट संख्या १५ के आसपास है...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा कि अनहद का नांम आपने नहीं लिया....।।। लेख अच्छा है.... बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंआप जरा सुधार कर लें, मोहल्लालाइव मेरा ब्लॉग नहीं है बल्कि अब एक वेबसाइट है जिनके मॉडरेटर अविनाश दास हैं.लेख जानकारीपरक होते हुए भी कई जगहों पर तथ्यात्मक भूलें हैं. चूंकि शुरुआती दौर से ब्लॉग की दुनिया देख रहा हूं तो नजर चली गई.
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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