नया साल मुबारक : शफ़ी अय्यूब











‘स्वागत हर्ष के साथ नव वर्ष का
रहे अमन आदम की बस्तियों में  
न्याय हो अधिक अधिक करुणा
सौन्दर्यबोध हो
कलाएं मनुष्यता की  
और
विकसित हो
धरती के सभी निवसियों में साथ रहने की उदारता.






इसी के साथ ही आप सभी का नव वर्ष में अभिनंदन. शफी अयूब ने उर्दू शायरी से कुछ चुन कर भेजा है सोचा क्यों ने आप से भी साझा किया जाए.





‘दिसंबर में  पूछूँगा  क्या हाल है’
शफ़ी अय्यूब




र्दू शायरी की दुनिया बड़ी रंगीन है. और उर्दू ग़ज़ल का तो कहना ही क्या? मीर व ग़ालिब से ले कर हसरत , फानी, जिगर, फैज़ , फिराक और बशीर बद्र  तक उर्दू ग़ज़ल ने दिलों पर राज  किया है. मेहदी हसन, गुलाम अली, जगजीत सिंह, पंकज उधास, अनूप जलोटा, हरि हरन, तलत अज़ीज़, सुखविंदर, चित्रा सिंह और न जाने कितने गायकों ने अपनी ग़ज़ल गायकी से वो नाम और मुकाम कमाया की किसी को भी जलन होने लगे. ग़ज़ल का हर एक शेर अपने अन्दर ख्याल का एक समंदर लिए रहता है. इसी लिए बड़ी से बड़ी बात कहने के लिए एक शेर पढ़ देना काफी होता है.
हमारे ज़माने में ग़ज़ल के बड़े मशहूर शायर डाक्टर बशीर बद्र ने एक बार बताया की उनकी लोकप्रियता का  ये हाल है की एक बार राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उनका शेर पढ़ा :
          
उजाले अपनी  यादों के  हमारे  साथ  रहने  दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये

दूसरी तरफ एक बार भोपाल से इंदौर जाते हुए उन्हीने देखा कि एक ट्रक के पीछे ढाले पर उनका ही ये शेर लिखा था कि :

मुसाफिर हैं हम भी, मुसाफिर हो तुम भी
किसी  मोड़  पर  फिर  मुलाक़ात  होगी

इसी तरह देश के पूर्व प्रधान मंत्री चन्द्र शेखर जी मात्र चार महीने प्रधान मंत्री रहे, जब उन्हें त्याग पत्र देना पड़ा तो पत्रकारों ने पुछा अब क्या करेंगे ? चन्द्र शेखर जी ने मुस्कुरा के जिगर मुरादाबादी का ये शेर पढ़ दिया :
कभी शाख व सब्ज़ा व बर्ग पर, कभी गुंचा व गुल व खार पर
मैं  चमन  में  चाहे  जहाँ  रहूँ , मेरा  हक़  है  फसले  बहार  पर

तो मालूम ये हुआ की मौक़ा कोई भी हो उर्दू ग़ज़ल का एक शेर आप की बात को प्रभावी ढंग से रखने में बहुत कारगर हथियार है.और जब मौक़ा नव वर्ष का हो, हर तरफ फिजाओं  में खुशियों के रंग बिखरे हों तो भला उर्दू शायरी का दामन खाली कैसे होगा. उर्दू के बहुत से शायरों ने नए साल की आमद पर अपने अपने ढंग से अपनी बात रखी है. किसी ने नए साल का स्वागत किया है तो किसी ने पुराने साल से कुछ शिकायत की है. उर्दू के मशहूर रोमानी शायर अख्तर शीरानी ने कहा है.
पलट सी गयी है  ज़माने  की  काया
नया साल आया, नया साल आया.

लेकिन एक और शायर फैज़ लुधयानवी ने नए साल के सामने कुछ चुनौतियाँ पेश कर दी हैं. वो कहते हैं:
तू नया है तो दिखा सुबह नई, शाम नई
वरना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई

लेकिन उर्दू के कुछ ऐसे शायर भी हैं जिन्हें और किसी बात से मतलब नहीं है. उन्हें बस नए साल का स्वागत करना है  और खुशियाँ मनानी हैं. वो कहते हैं :
नया साल आया है खुशियाँ मनाओ
नए आसमानों  से  आँखें  मिलाओ

या फिर एक आवाज़ नए साल में पिछले साल की नफरतों को भुलाने की बात करते हुए शायर कहता है कि  :

नए साल में पिछली  नफरत  भुला दें
चलो अपनी दुनिया को जन्नत बना दें.

इसी कड़ी में एक और शायर मैला राम वफ़ा कहते हैं :
अब की बार मिल के यूँ साल ए नव मनाएंगे
रंजिशें   भुला   कर   हम  नफरतें   मिटायेंगे

नव वर्ष के आगमन पर लोग अपने अपने ढंग से एक दुसरे को मुबारकबाद देते हैं. जो वर्ष गुज़र गया उसे सब लोग अपने अपने ढंग से याद करते हैं. उर्दू के कई शायरों ने गुज़रे साल और आने वाले साल को एक साथ याद किया है लेकिन अलग अलग अंदाज़ में.
          

अये जाते बरस तुझ को सौंपा खुदा को
मुबारक , मुबारक  नया साल  सब  को
चेहरे से झाड़ पिछले बरस की कदूरतें
दीवार  से  पुराना  कैलंडर  उतार  दे

जब जिस घडी हम नया साल , नया साल कह के खुशियाँ मना रहे होते हैं. उसी समय कुछ लोग पिछले साल के ज़ख्म सहला रहे होते हैं. कुछ लोग जीवन का एक और साल गुज़र जाने पर कुछ चिंतित भी नज़र आते हैं. ऐसे में एक शायर ये भी कहता है:
कुछ खुशियाँ , कुछ आंसू  देकर टाल गया
जीवन का  इक  और  सुनहरा  साल  गया

कुछ लोग समय की अवहेलना करते हैं. फिर समय उन्हें नज़र अंदाज़ कर देता है. मशहूर शायर इब्ने इंशा ने ऐसे ही लोगों को संबोधित किया है :

इक साल गया , इक साल नया है आने को
पर वक़्त का  अब भी होश नहीं दीवाने को

प्रसिद्ध शायर अहमद फ़राज़ ने भी एक बरस बीत जाने को अपने महबूब की जुदाई के एक बरस के रूप में याद किया है. वो कहते हैं :
आज इक और बरस बीत गया उस के बगैर
जिस   के   होते   हुए  होते  थे  ज़माने  मेरे

नए साल पर जब इतने शायरों ने इतनी बातें कही हैं तो हमारे सब से बड़े शायर मिर्ज़ा ग़ालिब भला कैसे खामूश रहते ? लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब तो मिर्ज़ा ग़ालिब हैं . हर बात अपने खास अंदाज़ में कहते हैं. अब ज़रा नए साल पे मिर्ज़ा असदुल्लाह खां ग़ालिब का ये अंदाज़  ऐ बयां देखिये:

देखिए  पाते  हैं  उश्शाक  बुतों  से  क्या  फैज़
इक बरहमन  ने कहा है के, ये  साल अच्छा है  

मशहूर शायर, फ़िल्मी नग्मा निगार, गीतकार क़तील शिफ़ाई ने मिर्ज़ा ग़ालिब को अपने ढंग से जवाब देने की कोशिश की है. लेकिन कहाँ मिर्ज़ा ग़ालिब के फ़िक्र की उड़ान और कहाँ क़तील शिफ़ाई ? लेकिन क़तील शिफ़ाई का शेर तो देख ही लें :

जिस बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
उस  को दफनाओ मेरे  हाथ  की  रेखाओं  में.

जब एक बरहमन ने ग़ालिब से कह दिया कि ये साल अच्छा है तो फिर कई शायरों ने उस बरहमन की खबर ली है. अहमद फ़राज़ भी सवाल उठाते हैं कि :
न शब ओ रोज़ ही  बदले हैं न हाल अच्छा  है
किस बरहमन ने कहा था की ये साल अच्छा है

बीसवीं सदी की आखिरी दहाइयों में जिस शायरा ने अपनी शायरी से फेमिनिज्म की एक नई कहानी लिखने का काम किया उस का नाम परवीन शाकिर है. “मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाउंगी, वो झूठ  बोलेगा और लाजवाब कर देगा.” जैसे शेर कहने वाली परवीन शाकिर ने भी नए साल पे एक नए अंदाज़ में अपने महबूब को निशाना बनाया है.
          
कौन जाने कि नए साल में तू किस को पढ़े
तेरा मेयार बदलता  है  निसाबों  की  तरह

नव वर्ष के हवाले से सब से खतरनाक शेर दिल्ली के अलबेले शायर अमीर क़ज़लबाश ने कहा-

यकुम जनवरी है, नया साल है
दिसंबर में  पूछूँगा  क्या हाल है

बहर हाल, नव वर्ष का आगमन होने को है. उर्दू शेर व शायरी के हवाले से हम ने जीवन के अनेक रूप देखे. शायरों ने अपने अपने ढंग से चेतावनी भी दी और नव वर्ष के आगमन का स्वागत करने और खुशियाँ मनाने का सलीक़ा भी सिखाया. इसी सन्दर्भ में हम भी आप सब को नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हुए नए साल के सूरज से सब के लिए खुशियाँ ले कर आने की परार्थना करते हैं.  
रघुपति सहाय फिराक़  गोरखपुरी की धरती का एक अदना सा शायर ( इन पंक्तियों का लेखक) शफी अय्यूब  भी अब अंत में अपने ढंग से इक बात कह रहा है :
अये नए साल के सूरज
नस्ल ए आदम के लिए अमन का पैगाम
सब  के    लि ए  खुशियों   भरा    जाम
सुबह ऐ बनारस  और  अवध  की शाम
ले कर आना है तो आओ
अये नए साल के सूरज.
____________

डॉ. शफ़ी अय्यूब
भारतीय भाषा केंद्र
जे एन यू, नई दिल्ली   

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  1. बहुत बढ़िया और मौजूँ पोस्ट के लिए समालोचन और शफ़ी साहब का शुक्रिया ... आप सब को उम्मीद से भरे नए साल की मुबारकबाद।
    यादवेन्द्र

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  2. मेरे जानते, इंशा का शेर समय की महत्ता पर नहीं है बल्कि दीवाने की ग़फ़लत की तारीफ में है । समय पर काम करने वाले, अनुशासित लोग उर्दू शायरी के हीरो कभी नहीं रहे । यूँ तो हर अशआर में मुख़्तलिफ़ पहलू होते हैं और किसी को अपनी व्याख्या का अधिकार भी है, फिर भी...रवायत तो और ही है ।

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