इट्स माय ओन फाल्ट
(घरेलू- हिंसा पर विपिन चौधरी का लेख)
मैं अकेली ही सुबकती हूँ
मेरा रुदन क्या
जंगल में
गिरे हुए पेड़ की तरह है ?
रुदन की पुकार को सुनने के लिए
कोई भी मेरे करीब नहीं है
तब भी
क्या मेरा रुदन ध्वनित हो रहा है?
क्या दर्द की कोई आवाज़ है?
या कोई
आकार,
या
स्वभाव ?
अगर है,
तो क्या उसका आकार
आंसू की बूँद
जैसा है?
आंसू की बूंद
क्या कहीं लुप्त हो गयी
है?
या फिर वह अभी भी मौजूद है?
यदि
पीड़ा की कोई आवाज है
तो क्या वह अंधेरे में रुदन की सिसकियों
जैसी है ?
मुझ अकेली
के रोने को क्या कोई सुन नहीं
पायेगा ?
तब क्या
मेरा रुदन
कोई पुकार
नहीं बन सकेगा
घरेलू हिंसा की शिकार किसी अज्ञात भुगतभोगी
युवती द्वारा लिखी गयी यह कविता उन सभी
स्त्रियों की कविता है जो अर्से से घरेलू हिंसा का शिकार रही हैं. दरअसल समाज के
परम्परागत ढर्रे के अधीन स्त्री पति द्वारा की गयी प्रताड़ना को सार्वजनिक करते हुए
स्त्री घबराती है और चुप्पी साध लेती है इसी
चुप्पी का पोषण पाकर ही आज भी घरेल-हिंसा फल-फूल रही है. दूर-दराज़ के
गांवों में रहने वाली अशिक्षित महिलाओं से लेकर महानगरों की आधुनिक स्त्रियां इस
हिंसा का सामना करती हैं.
एक परियोजना के तहत वर्ष 2009 में पिलानी (राजस्थान) के दो गांवों की 170 महिलाओं के साक्षात्कार लिए गए जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि वे घरेलू-
हिंसा का शिकार रही हैं लेकिन उन्होंने
इसके खिलाफ कभी शिकायत दर्ज़ नहीं कारवाई. खुद मैंने कई नौकरीपेशा महिलाओं को इस हिंसा का शिकार
होते हुए देखा है. वे बरसों चुप रह कर हर जुल्म सहती जाती है और धीरे-धीरे अपनी
आवाज़ को खुद ही पूरी तरह से कुचल देती
हैं.
आज समाज में स्त्री-अधिकारों को लेकर चाहे
कितना भी शोर-शराबा देखने को मिल रहा हो लेकिन सरकारी स्तर पर घरेलू-हिंसा को रोकने के लिए कभी कोई ठोस मुहिम
नहीं चलाई गई. कुछ गैर-सरकारी संस्थाएं
जरूर इस दिशा में आगे बढ़ी हैं लेकिन वे भी प्रयाप्त नहीं हैं.
घरेलू हिंसा की समस्या सार्वभौमिक है. जब कभी
इस हिंसा का पानी सर से ऊपर उठ जाता है तो कुछ जरूर सुगबुगाहटें उठती है.
यदि हम सोचते हैं कि हमारे देश में ही घरेलू
हिंसा जायदा देखने को मिलती हैं तो आप
सिरे से गलत हैं. वास्तविक दृश्य यही है कि
भारत समेत अमेरिका जैसे विकसित देश में भी घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला
को यह कहते हुए सुनी जा सकती है "इट्स माय ओन फाल्ट".
संयुक्त राज्य अमेरिका के हैम्पशायर काउंटी में
नॉर्थम्प्टन शहर हैं, यह शहर अपने
कलात्मक संगीत और सांस्कृतिक हब के लिए जाना जाता है.
इसी नॉर्थम्प्टन शहर में रहने वाली 23 वर्षीय शैरी मोर्टन और उसके 18 महीने के बेटे
की उसके प्रेमी ने जनवरी 11, 1993 में क्रूरता के साथ हत्या कर दी थी. इस जघन्य हत्या से सारा शहर
दहल उठा और घरेलू हिंसा की क्रूरता का साक्षात प्रमाण दर्शाती शैरी मोर्टन और उनके बेटे
की हत्या के दसवें साल में यानि
जनवरी 11, 2003 को नॉर्थम्प्टन के मेयर और सिटी कौंसिल ने इस
शहर को घरेलू- हिंसा से मुक्त शहर घोषित करने की घोषणा कर दी. आज यह शहर एक मिसाल
के तौर पर देखा जा रहा है.
अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों और संयुक्त राष्ट्र
द्वारा किये गये विश्लेषण बताते हैं कि इथियोपिया
महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में सबसे आगे है. भारत में घरेलू -हिंसा
हमेशा से सामाजिक मानदंडों और आर्थिक निर्भरता के निहित एक विकराल मुद्दा रहा है. यहाँ लगभग 70% महिलाएं, घरेलू हिंसा की
शिकार हैं. घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को संरक्षण देने वाला 'घरेलू हिंसा कानून 2005' महिलाओं की कितनी
मदद कर सका है यह कहने की बात नहीं है.
कहते हैं दुःख भी जीवन में नयी
राहें ले कर आता है और इन राहों
से गुज़रते हुए अगर लोगों में
जागरूकता फैलती है तो इससे अच्छी बात
क्या हो सकती है, मैसाचुसेट्स में
रहने वाली कुछ महिलाएं, जो खुद भी घरेलू
हिंसा की शिकार रही थी के संज्ञान में एक
आंकड़ा आया जिसमे लिखा था कि वियतनाम युद्ध (1959-1975) में 58,000 सैनिकों की मृत्यु हो गई थी और उसी वर्ष
51,000 महिलाओं की
मृत्यु उन पुरुषों द्वारा की गयी
जिन्होंने कभी उन महिलाओं से प्रेम
करने का दावा किया था, वे
महिलाएं इस आंकड़े को पढ़ कर दहल
गयी और
घरेलू-हिंसा की रोकथाम के लिए कुछ ठोस करने का सोचा. तब उन्होंने वर्ष
1990 की गर्मियों में यह
परियोजना को शुरू करने का बीड़ा उठाया, जिसे उन्होंने नाम दिया 'क्लोथ्सलाइन परियोजना'. बाद में इस योजना
की लोकप्रियता को देखते हुए इसे राष्ट्रीय शैक्षिक प्रयास का हिस्सा बनाया गया.
इस परियोजना में घरेलू हिंसा की व्यापकता को दर्शाने के लिए
महिलाओं द्वारा टी- शर्ट को सार्वजनिक
स्थानों पर प्रदर्शित किया जाता है. क्लोथ्सलाइन परियोजना, महिलाओं के खिलाफ
हिंसा के मुद्दे पर जागरूकता फ़ैलाने के लिए
काफी कारगर सिद्ध हुयी.
इस अभियान के बाद वहाँ के लोगों
ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा की
समस्या को करीब से देखा, समझा और महसूस
किया, इसके खिलाफ अपना विरोध दर्ज किया और इसे समाप्त करने के लिए
सार्वजनिक रूप से अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर
की.
एक रस्सी पर दूर तक फैलाये गए इन रंग-बिरंगे कपड़ों ने
शैक्षिक उपकरण के रूप में बखूबी काम किया. ये
कमीज़ किसी भी महिला के लिए उस वक़्त
मरहम के उपकरण बन जाता है,जब
मित्र और परिवार के लोग उस स्त्री के चुप्पे दुःख से परिचित हो आते है. तब ये कपड़े ही उन स्त्रियों
की आवाज़ बन जाते हैं. और पीड़िताएं भी जान
लेती हैं की वे अब अकेली नहीं हैं उनके दुःख में संसार उनके साथ है.
क्लोथ्सलाइन परियोजना के अंतर्गत घरेलू हिंसा की शिकार दिवंगत महिलाओं के परिजन भी अपने प्रेम को प्रदर्शित करते हुए कमीज़ पर अपने सन्देश लिखते हैं.
हिंसा की शिकार महिलायें अपने टी- शर्ट के
रंगों को कोड के रूप में इस्तेमाल करती
हैं.,मसलन सफ़ेद रंग, घरेलू हिंसा की वजह से हुयी मृत्यु को दर्शाता
है पीला या मटमैला रंग महिलाओं के ऊपर किये गए हमले को दर्शाता
है. लाल, गुलाबी और नारंगी रंग
बलात्कार और यौन उत्पीड़न की शिकार
महिलाओं के लिए है. नीले और हरे रंग की टी शर्ट का इस्तेमाल व्यभिचार और यौन
शोषण से पीड़ित महिलाएं करती हैं. बैंगनी या लैवेंडर यौन हिंसा
के प्रयास के लिए निर्धारित है. काले रंग
की टी शर्ट का इस्तेमाल वे महिलाऎं करती हैं जिनके ऊपर राजनैतिक हमले हुए हैं.
हमारे देश में भी कई स्वयं सेवी संस्थाएं हैं
जो समय-समय पर घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए मददगार साबित होती हैं. लेकिन इस हिंसा का पूर्ण रूप से समाधान सिर्फ भुगत-भोगी महिलाओं
के पास ही है
उन्हें ही निडर होकर सामने आना
होगा यह कहते हुए कि मेरी कभी कोई गलती नहीं थी.
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विपिन की कविताएँ यहाँ पढिये
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ई पता : vipin.choudhary7 @gmail.com
सारगर्भित लेख।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख ... घरेलू हिंसा स पीड़ित कई महिलाओं को देखा उनके दर्द को महसूस किया .. और निजी तौर व संस्थाओं के साथ मिल कर उनकी मदद की ... पर ऐसे लेख और ऐसी परियोजनाएं जिनका उल्लेख इस लेख में है..जिसमे रंगों का कोड पीडिता की पीड़ा के कारणों का बताता है, ऐसे किस्म के प्रयोग देश में भी हो तो शायद घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज दूर तक और जल्दी जायेगी... जरूर घरेलू हिंसा से मुक्त होगा हमारा देश .. लोगो में सूझ और विचारो से जुडी परिपक्वता आये ... विपिन जी और समालोचन को धन्यवाद इस लेख पर
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