मेघ - दूत : एलिस मुनरो (एमंडसैन) : अपर्णा मनोज






















एलिस मुनरो को २०१३ के साहित्य के नोबल पुरस्कार मिलने के बाद उनके व्यक्तित्व के प्रति    उत्सुकता और कृतित्व को लेकर उत्साह स्वाभाविक है. लेखिका-अनुवादक अपर्णा मनोज ने  उनकी एक प्रतिनिधि कहानी  एमंडसैनका हिंदी में अनुवाद किया है. एलिस मुनरो अपनी कहानियों के अप्रत्याशित अंत के लिए जानी जाती हैं. विविएन डॉ. फॉक्स से मिलती है, एक अंतरंग सम्बन्ध के बाद दोनों विवाह का निर्णय लेते हैं पर अंतिम समय में डॉ. फाक्स विवाह से इंकार कर देता है.

इस कहानी के सम्बन्ध में आलोचक Daniel Menaker ने माना है कि – मुनरो अपनी कहानियों में व्यक्ति की अननोइबिलीटी को उजागर करती हैं. इसके लिए वह कोई तर्क नहीं देतीं. बस कहती हैं कि हर व्यक्ति अपने भीतर न जानने जैसा समेटे है.हम जैसे दीखते हैं,वैसे होते नहीं. हम सभी तरह-तरह के अलगाव में जी रहे हैं. यह कभी भी जीवन में प्रत्यक्ष हो जाता है -जैसे कोई अनहोनी, जैसे कुछ भी आकस्मिक, अप्रत्याशित’“

लगभग दस हजार शब्दों की इस कहानी का अनुवाद आसान नहीं था. अपर्णा ने लगाव और ज़िम्मेदारी से यह कार्य सम्पन्न किया  है. 


अनुवाद
एलिस मुनरो : एमंडसैन                                                                   
अपर्णा मनोज


1.

स्टेशन के बाहर बैंच पर बैठकर मैं इंतजार कर रही थी. ट्रेन के आने पर स्टेशन खोला गया था, लेकिन अब वहां ताला था. बैंच के दूसरे छोर पर एक और स्त्री बैठी थी. घुटनों में झोला फंसाए. तेल से तर कागज़ में लिपटे ढेर सारे पार्सल्स झोले से झाँक रहे थे. मांस, कच्चे मांस की गंध, मेरे नथुनों में भर रही थी.

पटरियों के पार एक इलेक्ट्रिक ट्रेन खड़ी थी, खाली, प्रतीक्षारत.

वहां कोई मुसाफिर नहीं था. थोड़ी ही देर बाद स्टेशनमास्टर ने खिड़की से मुंह बाहर निकाला और "सैन" कहकर पुकारने लगा. मैंने सोचा वह किसी सैम नाम के व्यक्ति को पुकार रहा है. तभी सरकारी वर्दी पहने एक आदमी इमारत के आखिरी छोर से प्रकट हुआ और पटरियों को लांघकर ट्रेन में चढ़ गया. उसे देखकर स्त्री भी उठ खड़ी हुई और उसके पीछे चल दी. मैं भी उनके पीछे चल दी. गली के दूसरी तरफ से शोर सुनाई दे रहा था.

लकड़ी के चपटे तख्तों वाली छप्परदार अँधेरी कोठी का दरवाज़ा खुला और कई टोपीधारी लोग वहां से दौड़ते नज़र आये .उनकी जाँघों से खाने के डिब्बे टकरा रहे थे. वे इस तरह चिल्ला रहे थे जिसे सुनकर आप सोच सकते थे कि इस चीख-पुकार से घबराकर वहां  खड़ी ट्रेन किसी भी क्षण भाग सकती है. लेकिन ऐसा कुछ न हुआ और वे ट्रेन में चढ़ गए. रुकी हुई ट्रेन में वे एक दूसरे को गिन रहे थे कि कहीं उनका कोई साथी तो छूट नहीं गया और उन्होंने ड्राइवर को न चलने की हिदयात दी. तभी उनमें से एक को याद आया कि वह व्यक्ति तो सारा दिन से लापता है. ट्रेन चल दी थी और मेरे लिए यह समझ पाना मुश्किल था कि ड्राइवर ने तनिक भी उनकी बातों पर कान दिया हो.

वे लोग झाड़ियों के पास आराघर पर उतर गए - आराघर वहां से बमुश्किल दस मिनिट की दूरी पर था, उसके बाद एक झील थी जिसे बर्फ ने ढांप लिया था. ऐन उसके सामने एक लकड़ी की बड़ी सी इमारत थी. औरत ने अपने पार्सल्स को ठीक किया और उठ खड़ी हुई, मैं उसके पीछे हो ली. ड्राईवर ने एक बार फिर गुहार लगाई, "सैन"..  दरवाज़े खुल गए. कुछ औरतें चढने के इंतजार में थीं. उन्होंने मीट वाली औरत का अभिवादन किया और उसने लौटकर कहाआज का दिन बेकार रहा.

दरवाज़े धड़ाक से बंद हुए और ट्रेन चल दी.

अब वहां सन्नाटा था और हवा जैसे बर्फ के माफिक. सनौबर के नाज़ुक पेड़ों की सुफेद छाल पर काले चकत्ते उभर आये थे और कुछ छोटे - छोटे बेतरतीब सदाबहार उनसे ऐसे लिपट गए थे जैसे उनींदे रीछ. जमी हुई झील समतल नहीं थी पर किनारे के साथ -साथ उठी जान पड़ती थी. ऐसा लगता था जैसे उठती -पड़ती लहरें बर्फ में तब्दील हो गई थीं. और वहां एक ईमारत खड़ी थी, जिसकी खिड़कियाँ कतार में दीख पड़ती थीं, आखिर में एक बरामदा था जो शीशे से बंद था. सब कुछ कितना सादगी भरा था, उत्तरी हवाओं में भीगा, श्याम और धवल -ऊँचे बादलों के गुम्बद तले कितना चुप,कितना विराट सम्मोहन!


पर सनौबर की छाल उतनी सफ़ेद न थीं. करीब से वह धूसर पीली,फीकी नीली,सलेटी थीं.

मीट वाली औरत ने मुझसे पूछा, "तुम कहाँ जा रही हो? मिलने का समय तो तीन बजे तक का ही है."

मैंने कहा, मैं मिलने नहीं आई हूँ. नयी टीचर हूँ."

"अच्छा,पर मुख्य द्वार से तुम्हें कोई भीतर नहीं जाने देगा. तुम मेरे साथ आ सकती हो. तुम्हारे पास सूटकेस इत्यादि?"

"स्टेशन मास्टर ने कहा है, वह बाद को पहुंचा देगा."

"तुम अपने में  खोयी हुई थीं."

"हाँ,यह सब इतना खूबसूरत है कि मैं बरबस ही यहाँ रुक गई थी."
बिल्डिंग के दूसरे  हिस्से में रसोईघर तक जब हम पहुंचे, लगभग चुप ही रहे. मेरा पूरा ध्यान अपने जूतों पर था इसलिए मैं कहीं और देख नहीं पायी.

"ठीक रहेगा यदि तुम इन्हें उतार दो."

मैं अपने जूतों से कुश्ती करती रही. वहां कोई कुर्सी नहीं थी. जूते उतार कर मैंने वहीँ पायदान पर रख दिए. औरत के जूतों के पास.

वह बोली, "उठाकर अपने साथ ही ले आओ और अपना कोट भी पहने रहो. यहाँ सामानघर को गरम रखने की कोई व्यवस्था नहीं है. न गर्माहट है और न रौशनी, सिवा उसके जो छोटे से झरोखे से भीतर आ पाता है और जहाँ तक मैं नहीं पहुँच पाती."

यह वैसा ही था जैसा स्कूल में सज़ा पाना. सामानघर में रुकना. हाँ,बिलकुल वैसी ही सिसियांध जैसी सर्दियों के मौसम में सीले कपड़ों से आती है, लिथड़े जुराबों में सने जूते और गंदे पैर !

बैंच पर खड़े होकर मैं झरोखे से झाँकने की कोशिश करती रही, पर विफल रही. वहीँ अलमारी की शेल्फ में स्कार्फ और टोपियों के बीच एक थैले पर मेरी नज़र पड़ी. इसमें खजूर और सूखे अंजीर थे. लगता था किसी ने चुराकर इन्हें यहाँ छिपा दिया था ताकि बाद को घर ले जा सके. अचानक मुझे ज़ोरों की भूख लगने लगी. ओंटारियो नॉर्थलैंड में कोरे चीज़ सैंडविच के सिवा मैंने कुछ नहीं खाया था. मैंने सोचा कि किसी चोर के हिस्से को चुराने में क्या हर्ज़ा है!लेकिन अंजीर मेरे मुंह में चिपक गए और मुझे धोखा दे दिया.

तभी कोई आया और मैं नीचे उतर गई.

यह कोई रसोइया नहीं था बल्कि स्कूल की एक लड़की थी. उसने सर्दियों का भारी भरकम कोट पहना हुआ था और बालों पर स्कार्फ लपेटे थी. वह जल्दबाजी में कमरे में दाखिल हुई. उसने अपनी किताबें बैंच पर इस तरह पटकीं कि वे ज़मीन पर गिर गईं. अपने बालों को स्कार्फ से आज़ाद किया और साथ ही जूते ढीले कर वहीँ फर्श पर उतार फेंके. उसे रोकने वाला वहां कोई न था.

"ओह!मैं आपसे टकरा गई. मुझे पता नहीं चला. यहाँ बाहर से कहीं ज्यादा अँधेरा है. क्या आपको ठण्ड नहीं लग रही? किसी के इंतजार में हैं आप?"

"डॉक्टर फॉक्स के इंतजार में."

"अच्छा,ठीक है..फिर तुम्हें अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी. मैं उन्हीं के साथ शहर से आई हूँ. क्या तुम बीमार हो? अगर तुम बीमार हो तो तुम्हें यहाँ न आकर उनसे मिलने सीधे शहर जाना चाहिए था."

"मैं यहाँ नयी अध्यापिका हूँ."

"अरे, तुम ही हो? टोरंटो से हो क्या?"

"हाँ."
उसने कुछ विराम दिया, शायद यह आदरसूचक था. पर नहीं, यह तो मेरे कपड़ों का जायज़ा लिया जा रहा था.

"यह वाकई अच्छा है. कॉलर पर यह रोयेंदार क्या है?"

"ईरानी मेढ़े का..दरअसल यह कृत्रिम है.

"तुम क्या मुझे बेवकूफ समझती हो?. न जाने क्यों तुम्हें यहाँ रुकाया गया है- तुम्हारी कुल्फी जम जायेगी यहाँ. माफ़ करना..तुम डॉक्टर से मिलना चाहती हो, मैं तुम्हें रास्ता बता सकती हूँ. मुझे यहाँ की हर चीज़ पता है. अपने जन्म से ही मैं यहाँ हूँ. मेरी माँ रसोई चलाती हैं. मैं मैरी हूँ. तुम्हारा नाम?"

"वीवी. विविएन."

"अगर तुम शिक्षिका हो तब तो तुम्हें मिस होना चाहिए..मिस?"

"मिस हाइड."

"टैन योर हाईड, "माफ़ी मांगते हुए वह बोली."काश तुम मुझे पढ़ातीं. पर मुझे तो शहर के स्कूल में जाना पड़ता है. कैसा बेफकूफी भरा नियम है यह!क्योंकि मुझे यक्ष्मा नहीं है, इसलिए."

बातें करते हुए वह मेरे आगे-आगे चल रही थी. दरवाज़े से सामानघर के आखिरी छोर तक, फिर अस्पताल के उस मुस्तकिल से गलियारे में.. मोम जैसा लिनोलियम,फीका पड़ा हरा रंग..और वही एंटीसेप्टिक गंध..

"अब तुम यहाँ पहुँच गई हो.मैं रेड्डी को बुलाती हूँ."

"कौन?रेड्डी कौन?"

"रेड्डी फॉक्स..किसी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं पर मैं और अनाबेल डॉक्टर फॉक्स को इसी नाम से बुलाते हैं."

"यह अनाबेल कौन हैं?"

"ओह! अब नहीं है.मर चुकी है वह.तुम्हारी इसमें कोई गलती नहीं.यहाँ सब इसी तरह है..मैं हाई स्कूल में हूँ.अनाबेल कभी स्कूल जा ही नहीं सकी.
उन दिनों जब मैं पब्लिक स्कूल में थी तभी रेड्डी स्कूल टीचर लाया था.मैं नयी टीचर के साथ घंटों रहा करती.सोहबत देने के लिए."



2.
वह एक अध-खुले दरवाज़े पर रुकी और सीटी बजाने लगी.

"देखो, मैं अध्यापिका को लायी हूँ."

भीतर से पुरुष कंठ सुनाई दिया,"ठीक है मैरी..आज के लिए इतना काफी है."
वह चली गई.मेरे सामने सामान्य कद का व्यक्ति खड़ा था,जिसके छोटे-छोटे लाल-सुनहरी बाल गलियारे की कृत्रिम रौशनी में चमक रहे थे.

"तो आप मैरी से मिल लीं,"वह बोला."उसके पास खुद पर कहने के लिए अथाह है .गनीमत कि वह आपकी कक्षा में नहीं है.आपको रोज़ाना उसे झेलना नहीं पड़ेगा .या तो लोग उसकी बातों में आ जाते हैं या फिर एकदम ही नहीं."

वह मुझे अपने से दस या पंद्रह साल बड़ा लगा और उसके बात करने का अंदाज़ भी इसी तरह का था.अपने में मगन,मेरा भावी मालिक..उसने मेरी यात्रा के बारे में पूछा,सूटकेस के अरेंजमेंट्स के बारे में..वह जानना चाहता था कि टोरोण्टो के बाद  इस निर्जन में मैं कैसे रहूंगी,शायद मेरे लिए यह उबाऊ हो.

"ऐसा बिलकुल नहीं,यह बेहद खूबसूरत है,"जोड़ते हुए मैंने कहा-

"यह एकदम रूसी उपन्यासों के भीतर का सा है.."

उसने पहली बार मुझे गौर से देखा.
"ऐसा,सच में?कौनसे रूसी उपन्यास जैसा?"

उसकी आँखें भूरी-नीली थीं.एक भौंह तनिक नुकीली होकर ऊपर को उठ गई थी.

ऐसा नहीं था कि मैंने रूसी उपन्यास कभी न पढ़े हों.पर उस एक तिरछी भँव ने,उसके हंसी बनाते उग्र हाव-भाव ने मुझे पस्त कर दिया और "वॉर एंड पीस" के सिवा मेरे दिमाग में कोई दूसरा नाम नहीं बचा.इसका नाम लेना मुझे ठीक नहीं लगा क्योंकि इसे तो कोई भी बता सकता था.

"वॉर एंड पीस."

"चलो बढ़िया है यह भी कि यहाँ हम लोग चैन -अमन के साथ हैं.पर अगर यह युद्ध होता,जिसकी तुम्हें ललक है तो तुम्हें यहाँ आकर औरतों वाले कपडे पहनकर नौसेना की टुकड़ी में शामिल होना पड़ता."

मैं नाराज़ थी और अपमानित महसूस कर रही थी.मैंने जो कुछ भी कहा था वह दिखावा नहीं था.सही में दिखावा नहीं था.मैं तो बस यह बताना चाहती थी कि यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य ने मुझे किस तरह अभिभूत कर दिया था.

साफ तौर से वह ऐसा आदमी लगा जो आपको किसी भी ढब से प्रश्न जाल में फांस सकता है.उसने कुछ माफीनुमा अंदाज़ से कहा,मैं सोच रहा था जंगल के इस काम के लिए बुज़ुर्ग सी शिक्षिका आएँगी. तुमने अद्यापिकी की शिक्षा शायद नहीं ली है?ली है क्या ?बी.ए के बाद तुमने क्या करने का इरादा किया था?"

मैंने रुखाई से कहा,"एम.ए. का इरादा था."

"तो फिर तुमने अपना मन कैसे बदल लिया?

"मैंने सोचा कि कुछ कमाना चाहिए."

"हम्म एकदम समझदारी भरा ख्याल..मुझे डर है कि यहाँ आप उस तरह कमा नहीं सकेंगी.माफ़ कीजियेगा,बस आपकी परीक्षा ले रहा था.केवल यह भांप लेना चाहता था कि कहीं हमें अधर झूल करके आप यहाँ से भाग तो नहीं खड़ी होंगी.शादी का कोई इरादा तो नहीं?"

"नहीं."

"ठीक है,ठीक है फिर.आप चंगुल से मुक्त हुईं.आपको हतोत्साहित नहीं कर रहा था,क्या मैंने ऐसा किया?"

मैंने मनाही में सिर हिलाया.

"नीचे हॉल में मैट्रन के ऑफिस चली जाइए.वह आपको अपेक्षित चीज़ें समझा देंगी .कोशिश कीजियेगा कि सर्दी न खा जाएँ.मुझे नहीं लगता कि आपको तपेदिक का कोई अनुभव है?"
"हाँ, मैंने सब पढ़ लिया है.

"जानता हूँ,जानता हूँ आपने "जादू के पर्वत"को पढ़ लिया है.फिर एक और जाल फेंककर वह सामान्य हो गया."भरोसा करता हूँ कि चीज़ें इसी तरह चिंदी -चिंदी आगे बढती हैं..यहाँ मेरे पास लिखित में कुछ चीज़ें हैं.मैंने बच्चों के लिए इन्हें लिखा है और मैं चाहता हूँ आप उन्हें करने की कोशिश करें.कभी-कभी मैं लिखकर खुद को अभिव्यक्त करता हूँ.मैट्रन आपको सही जानकारी दे देंगी."


3.
शिक्षण के बारे में साधारण राय यहाँ बेकार थी.कुछ बच्चे इसे ग्रहण कर सकते हैं और कुछ नहीं .बहुत अधिक दबाब ठीक नहीं..जांचना,रटना,वर्गीकृत करना..सब निरर्थक है.

ग्रेड -व्यापार की पूरी तरह अवहेलना करो.जिन्हें इसकी जरुरत रहती है वे भी इसके बिना काम करना सीख जायेंगे.संसार में चलने के लिए बहुत साधारण हुनर वाले तथ्यों के समुच्चय की जरुरत होती है...श्रेष्ठ बच्चों के लिए आप क्या कहेंगे?इस तरह परिभाषित करना ही बेहद बेहूदा है.यदि वे अकादमिक रूप से चुस्त हैं तो बहुत आसानी से वह चीज़ों को पकड़ेंगे.


दक्षिण अमेरिका की नदियों को भूल जाओ,इसी तरह भूल जाओ मैग्नाकार्टा को.
चित्र बनवाओ.संगीत,कहानियां..इन्हें चुनो.

खेल भी ठीक हैं,लेकिन बहुत अधिक होड़ा -होड़ी के प्रति चौकस रहो,इसके लिए अति उत्सुकता ठीक नहीं.

दबाब और ऊब के बीच की रेखा पर चलते हुए उसे चुनौती दो.अस्पताल में भर्ती होना अपने में ऊब का अभिशाप है.

अगर मैट्रन तुम्हें जरुरी चीज़ें उपलब्ध न करा सके तो ऐसे में चौकीदार गुप्त रूप से बड़ा कारीगर सिद्ध होता है."

"Bon voyage"  (आपकी यात्रा शुभ हो).

मुझे वहां सप्ताह भर से अधिक नहीं हुआ था,पहले दिन की घटनाएँ मुझे अनहोनी और विचित्र लग रही थीं.वह रसोई,रसोई का वह भंडारा जहाँ कारीगर अपने कपडे और चोरी के सामान को छिपाकर रखते थे..शायद फिर से सब मुझे देखने को नहीं मिलेगा,शायद कभी नहीं मिलेगा.डॉक्टर का ऑफिस भी मेरी सीमा के परे था,केवल मैट्रन का कमरा ही सही जगह था जहाँ से हर तरह की जांच -पड़ताल,शिकायतें सामान्य प्रबंध संभव थे.मैट्रन जो ठिगने कद की दिलेर,गुलाबी चेहरे वाली स्त्री थी -जो बिना नेमि का चश्मा पहनती थी और जिसकी साँसों में भारीपन घुला था.आप उससे कुछ भी पूछिये-वह उसे हमेशा चौंकाने वाला होता और वह परेशानी में घिर जाती. पर अंतत: आपको सब उपलब्ध हो जाता.कभी कभी वह नर्सों के भोजन कक्ष में भोजन कर रही होती थी,जहाँ उसे ख़ास दावत उड़ाने को मिलती और आस-पास सब बे मज़ा हो जाता.अधिकतर वह अपने निवास में ही कैद मिलती.

मैट्रन के अलावा यहाँ तीन और रजिस्ट्रीकृत नर्सें थीं.उनमें से एक भी मेरी उम्र तीस के पास नहीं थी.सेवानिवृति से फुर्सत पाकर वे युद्धकालीन फ़र्ज़ अदा कर रही थीं.फिर वहां कुछ और सहयोगी नर्सें थीं जो हमउम्र थीं या मुझसे छोटी,पर अधिकतर विवाहित थीं,मंगनी कर चुकी थीं या इसके लिए तैयार थीं..ज्यादातर का फौजियों के साथ गठजोड़ हुआ था.ये हमेशा चहचाहती रहतीं,ख़ास तब जब आस-पास मैट्रन या नर्सें न हों.उनकी मुझमें कोई रूचि न थी.उन्हें नहीं जानना था कि टोरोण्टो किसके जैसा हो सकता था..जबकि वे उन प्रेमी युगलों के बारे में जानती थीं जो वहां हनीमून के लिए गए थे..उन्हें इसकी भी परवाह नहीं थी कि मेरा पढ़ाने का काम कैसा चल रहा है या पहले मैं क्या करती थी.ऐसा भी नहीं था कि वे बहुत अक्खड़ किस्म की थीं -वे डाइनिंग रूम में मुझे बटर पास करती थीं और हमेशा उस शेपर्ड पाई से बचने की हिदायत देती थीं जिसके मक्खन में मिले होने की आशंका थी.उन्हें कहीं भी कुछ घट रहा हो के अज्ञान से पूरी छूट थी,यह अपनेआप उनके जीवन में रच बस गया था,उनकी चमड़ी के भीतर था.जब भी कभी रेडियो पर समाचार आते वे उसे बदलकर संगीत लगा देतीं.गुड़ियों के साथ नाच,जबकि उनकी जुराबों में छेद थे...

लेकिन,उनपर डॉक्टर फॉक्स का खासा दबदबा था,कुछ हद तक इसलिए कि डॉक्टर ने ढेरों किताबें पढ़ रखी थीं.वे यह भी कहतीं कि उनके जैसा बद मिजाज़ और कोई नहीं.वह कभी भी आपकी धज्जियाँ उड़ा सकते हैं.

मेरे लिए यह गणित जानना बड़ा मुश्किल था कि किताबें पढने का मिज़ाज से आखिर क्या सम्बन्ध हो सकता है!



4.
जो छात्र यहाँ उपस्थित रहते थे उनकी संख्या बदलती रहती थी.कभी वे पंद्रह होते तो कभी आधे दर्ज़न से भी कम. सुबह नौ बजे से बारह बजे तक आते रहते.उन बच्चों को अलहदा रखा जाता था जिन्हें तेज़ बुखार हो जाता या फिर जिनकी जांच चलती थी.यदि वे होते भी थे तो ज्यादातर कक्षा में चुप रहते,बस उनके होने का पता बना रहता,लेकिन उनकी भागीदारी नगण्य रहती.वे यह भलीभांति समझते थे कि यह एक तात्कालिक स्कूल है,जहाँ वे कुछ भी सीखने के लिए आज़ाद हैं,जैसे वे टाइम टेबल्स और स्मृति कार्यों से मुक्त हैं.वे मंद-मंद स्वर में मृदुलता से बारी-बारी गाते हैं.वे X’s (चुम्बन)और O’s (आलिंगन)बजाते हैं.पर इन तात्कालिक कक्षाओं में हार की छायाएं डोलती रहतीं.

मैंने तय किया कि मैं वही करुँगी जैसा डॉक्टर ने बताया था,कुछ तो वैसा कर ही सकती हूँ,जैसे उसने कहा था ऊब इनकी दुश्मन है.

मैंने दरबान के आरामघर में एक ग्लोब देखा था.मैंने उससे ग्लोब मंगवा लिया .मैंने सामान्य भूगोल से पाठ शुरू किया.महासागर,महाद्वीप,जलवायु..हवाएं और धाराएं क्यों नहीं?देश और शहर क्यों नहीं?कर्क रेखा और मकर रेखा क्यों नहीं?और फिर क्यों नहीं दक्षिण अमेरिका की तमाम नदियाँ?

कुछ बच्चों को यह सब पहले याद था,पर अब लगभग भूल चुके थे.झील और जंगल के पार का जीवन जैसे स्थगित हो गया था.पाठ उन्हें इस तरह खुश करने के लिए थे जिससे वह भूली हुई चीज़ों से फिर नाता जोड़ सकें.मैंने एक साथ सब उनके कन्धों पर नहीं पटका.मुझे बहुत सरलता के साथ उन सबके साथ चलना था जिन्होंने यह सब कभी सीखा ही नहीं था क्योंकि वे बहुत जल्दी बीमार हो जाते थे.

इसके बाद भी सब संतोषजनक था.यह कोई खेल भी हो सकता था.मैंने उन्हें टीम्स में बाँट दिया,एक संकेतक को मैं इधर-उधर चलती जाती और उनसे उत्तरों की मांग करती.मैंने इस बात का ख़ास ख्याल रखा कि बच्चों का जोश बहुत देर तक न बना रहे.किन्तु एक दिन डॉक्टर अनायास वहां पहुंच गए.वह सुबह-सुबह एक सर्जरी से लौटे थे और मैं पकड़ी गई.मेरी कोशिश थी कि बच्चों का उत्साह कुछ कम हो जाए,पर ठंडा न पड़े.डॉक्टर वहां आकर बैठ गए.वह थके हुए लग रहे थे और अन्यमनस्क भी.उन्होंने किसी तरह का प्रतिवाद नहीं किया.कुछ ही देर में वह भी इस खेल में शामिल हो गए.उनके उत्तर बेतुके थे.गलती से वह नामों को नहीं ले रहे थे,वे काल्पनिक थे.धीरे-धीरे उनकी आवाज़ कम होती गई..कम..कमतर..जैसे बुदबुदा रहे हों..जैसे फुसफुसा रहे हों...फिर इतनी हलकी कि अश्राव्य भर रह जाए .अपने इस बेतुकेपन से उन्होंने पूरी कक्षा को अपने बस में कर लिया.उनकी नक़ल करते हुए पूरी कक्षा अपने होंठ हिला रही थी.बच्चों की आँखें उनके ओठों पर स्थिर हो टिक गई थीं.

अचानक वे थोडा गुर्राए और पूरी क्लास हंसने लगी.

"अरे शैतानों तुम सब मुझे क्यों घूर रहे हो?क्या मिस हाइड ने आपको यही सिखाया है?कि उन लोगों को घूरो जो किसी को हैरान नहीं कर रहे?

ज्यादातर हंस रहे थे,पर कुछ अब भी उन्हें घूरने से बाज़ नहीं आ रहे थे.वे भूखे थे आगे की विलक्षण बातों के लिए.

"बनो मत.कहीं और जाकर मिसबिहेव करो."
क्लास में बाधा डालने के लिए उन्होंने मुझसे माफ़ी मांगी.मैं उन्हें समझाने लगी कि क्लास जीवंत लगे इसलिए यह सब करना पड़ा.

"यद्यपि मैं आपकी दबाब वाली बात से पूरी तरह सहमत हूँ,मैंने नम्रतापूर्वक अपनी बात रखी."आपने जो निर्देश दिए थे,मैं उनसे सहमत हूँ,मैंने बस यूँ ही सोचा-"

"कैसे निर्देश?अरे वे तो बस कुछ टुकड़े थे,मेरे मन में कौंधे..पर पत्थर की लकीर की तरह इन्हें मानो,ऐसा भी नहीं."

"मेरा तात्पर्य है,जब तक वे बहुत बीमार नहीं हैं-"मुझे भरोसा है कि तुम ठीक हो,इस सबसे कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.तब तक जब तक वे बेपरवाह न हो जाएँ .इस पर अधिक नाचने -गाने की जरुरत नहीं,"कहकर वह चले गए.फिर लौटकर आधे मन से क्षमा मांगते हुए कहा -"इस पर हम फिर कभी बात करेंगे."

तब मैंने सोचा कि अब वह कभी नहीं आयेंगे.उन्होंने स्पष्ट रूप से मुझे एक झंझट और मूर्ख मान लिया था.




5.
दोपहर के भोजन के समय सहयोगी नर्सों से मुझे पता चला कि जिसका सुबह ऑपरेशन हुआ था उसे बचा नहीं पाए.बहुत अधिक क्रोध तर्कसंगत नहीं,और मुझे लगा कि मैं बहुत बड़ी मूर्ख हूँ.

हर दोपहर आज़ाद दोपहर थी.मेरे विद्यार्थी लम्बी नींद लेने नीचे चले आते थे.मेरा भी मन करता था यही सब करने का.पर मेरा कमरा बहुत ठंडा था और दोहर बहुत पतली थी-तपेदिक के मरीजों को आस-पास सब आरामदेह तो चाहिए.

किन्तु ,मुझे तपेदिक नहीं था शायद इसलिए मेरे साथ यह कंजूसी की गई थी .मुझे नींद आ रही थी,पर सो न सकी.ऊपर से गड़गडाहट की आवाजें आ रही थी .इस ठिठुराने वाली सर्दी में दोपहर की धूप खाने के लिए बेड -कार्ट्स को नीचे गलियारे में लाया जा रहा था.

यह इमारत,ये पेड़,झील अब मेरे लिए उस दिन जैसे न रहे थे जैसे पहले दिन थे .जब मैं उनके रहस्य और ऐश्वर्य की गिरफ्त में थी.उस दिन मुझे लगा था कि मैं इनमें खो जाऊँगी.अब लगता है जैसे वह कभी सच नहीं था.

अब वहां एक अध्यापिका है.आखिर वह क्या चाहती है?
वह झील की तरफ देखती है.
किसलिए?
कुछ और बेहतर करने के लिए नहीं.
कुछ लोग भाग्यशाली होते हैं.




6.
कभी -कबार मैं दोपहर का भोजन नहीं करती थी,जबकि वह मेरे वेतन का हिस्सा था. यह अंश अमंडसैन को चला जाता था जो एक कॉफ़ी घर था.यहाँ पोस्टम कॉफ़ी मिलती और सैंडविच को दांव पर लगाते हुए बदले में टिन्ड सामन (सैलमन )मिलती थी.

चिकन सलाद को देखभाल के साथ खाना पड़ता था क्योंकि इसमें मुर्गे की चमड़ी और हड्डी आने का अंदेशा रहता.फिर भी यह जगह मेरे लिए अधिक सुविधापूर्ण थी,यहाँ कोई नहीं जानता था कि मैं कौन हूँ.

यह कदाचित मेरी भूल हो.

कॉफ़ीघर में स्त्रियों के लिए अलग से कैबिन नहीं था.इसलिए बगल के होटल से आपको जाना पड़ता था,फिर बीअर पार्लर से गुज़रना पड़ता जो अँधेरे,शोर और बीअर -व्हिस्की से गंधाता.सिगरेट और सिगार के कश आपको बेहोश कर देते .लेकिन लकडहारे,आराघर के आदमी आप पर कभी उस तरह नहीं लपकेंगे जैसे टोरोण्टो के फौजी या विमानचालक.वे ठेठ आदमियों की दुनिया में डूबे लोग थे -अपनी कहानियां सुनाते,औरतों के लिए भटके हुए नहीं.




7.
डॉक्टर का ऑफिस मुख्य गली में था.एकदम छोटा,एक मंजिला.रहता वह कहीं और था.मुझे सहयोगी नर्सों से पता चला था कि वहां कोई श्रीमती फॉक्स नहीं थीं.गली के एक सिरे पर मैंने एक घर देखा -गचप्लस्तर का घर,मुख्य द्वार के ठीक ऊपर तिकोनी खिड़की,खिड़की की दहलीज़ पर क्रमबद्ध ढेर किताबें -यह शायद उसी का घर था.बहुत उदास पर व्यवस्थित..एक न्यून सा संकेत किन्तु बहुत साफ़ -एकान्तिक आदमी के सुख-चैन का संकेत -एक नियंत्रित अकेला व्यक्ति -शायद कल्पनाओं में डूबा हुआ.

शहर का स्कूल आवासिक गली के आखिरी छोर पर था.एक दिन मैंने मैरी को स्कूल के प्रांगण में बर्फ के गोलों से खेलते देखा.शायद लड़कियां-लड़के पालों में खेल रहे थे.मुझे देखते ही वह चिल्लाई -"ओह !टीचर और हाथ के गोलों को उसने ऊपर उछाल दिया.और मंथर गति से गली के उस पार चली गई."कल मिलूंगी",तनिक कन्धा मोड़कर उसने इस तरह कहा जैसे हिदायत दे रही हो कि मेरे पीछे मत आना.

"क्या तुम अपने घर जा रही हो?वह बोली."मैं भी जा रही हूँ.मैं रेड्डी की कार से चली जाती किन्तु उसे बहुत शाम हो जायेगी.तुम क्या करोगी?ट्राम से जाओगी?"

हाँ,मैंने कहा.और वह बोली,"ओह मैं तुम्हें छोटा रास्ता बता सकती हूँ.तुम्हारा पैसा बचेगा.बुश रोड."
वह मुझे संकरी किन्तु काम चलाऊ गली में ले गई जो शहर से गुज़रती थी,जंगल से निकलती थी और आराघर होकर जाती थी.

"यह वही रास्ता है जहाँ से रेड्डी जाता है,"उसने बताया.

आराघर के बाद जंगल में कुछ उबड़-खाबड़ टुकड़े और झोंपड़ियाँ दिखाई दीं,ऊपरी  तौर से बसी हुई.बाहर लकड़ियों के ढेर लगे थे,अलगनी पर कपडे फैले हुए थे और चिमनियों से धुआं उठ रहा था. उन्ही घरों में से किसी एक से एक भेड़िये नुमा कुत्ता बाहर निकला-भौंकता और गुर्राता हुआ.

"अपना मुंह बंद करो!"मैरी चिल्लाई.और देखते ही देखते उसने बर्फ के गोले उस जानवर की आँखों के बीच दे मारे.उसने एक और बर्फ का गोला उसके पुट्ठे पर निशाना बनाकर फेंका.तभी एक औरत जिसने एप्रन पहन रखा था,बाहर आई और चिल्लाकर बोली -"तुम इसे जान से मार देतीं.."
"एक बुरे से निजात पाने का अच्छा तरीका."

"मैं अपने बुढऊ को तुम्हारे पीछे भेजती हूँ."

"तुम्हारा बुढऊ आउट हाउस को टक्कर नहीं दे सकता."

कुत्ता दूरी बनाकर पीछे चलता रहा,जैसे कुटिलतापूर्ण धमकी दे रहा हो.
"चिंता मत करो ,मैं किसी भी कुत्ते को संभाल सकती हूँ,"मैरी बोली.शर्त लगा लो मैं पीछे पड़े भालू को भी संभाल सकती हूँ."

"भालू क्या इस मौसम में हाइबरनेट नहीं कर जाते?"

"मुझे कुत्तों से डर लगता है पर असावधानियों से और ज्यादा."

"पर तुम जान नहीं पाओगी.एक बार एक भालू सुबह-सुबह कहीं से आ गया और सैन के कचरे के ढेर में छिप गया.मेरी माँ ने पलटकर देखा तो वो वहां था.रेड्डी अपनी बन्दूक ले आया और उसे मार गिराया.रेड्डी मुझे और अनाबेल को स्लेज पर घुमाने ले जाता था.कभी -कभी दूसरे बच्चों को भी.भालुओं को डराने के लिए उसके पास एक ख़ास किस्म की सीटी थी.आदमियों के लिए तो वो कान-फोडू ही थी."

"सच में !कैसी दीखती थी वो?"

"और सीटियों जैसी नहीं थी..मेरा मतलब है जिसे वह मुंह से निकालता था."

मैंने सोचा कि इसका प्रदर्शन तो कक्षा में जरूर होना चाहिए.

"मुझे नहीं पता..पर शायद अनाबेल को डर से बचाने के लिए.वो स्लेज नहीं चला सकती थी.उसे ही (डॉक्टर को  ) टुबागन (स्लेज ) को खींचना होता था.कभी -कभी मैं भी उस पर लद जाती थी.तब वह कहता था,"कि इसे क्या हुआ?यह कितने टन भारी हो गई ?"तब मुझे पकड़ने के लिए वह तेज़ी से पलटकर देखता,लेकिन पकड़ता नहीं था.अनाबेल से पूछता,"यह इतनी भारी कैसे हो गई?तुमने  नाश्ते में क्या खाया?"और वह कभी उत्तर नहीं देती.वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी.

"स्कूल की दूसरी लड़कियां?क्या वे दोस्त नहीं?"

"क्योंकि कोई और नहीं इसलिए मैं बेकार ही उनके साथ घूमती हूँ.वे कुछ नहीं. अनाबेल और मेरा जन्मदिन एक साथ एक महीने में पड़ता.जून. हमारे ग्यारहवें जन्मदिन पर रेड्डी झील में हमें शिकारे पर घुमाने ले गया था.उसने हमें तैरना सिखाया था.अच्छा, हाँ,मुझे. अनाबेल को उसे पकड़कर रखना पड़ता था.वह कभी  तैरना नहीं सीख पाई पायी.

एक बार वह खुद तैरने पानी में उतरा और हमने उसके जूते रेत से भर दिए.और फिर हमारा बारहवां जन्मदिन!हम पहले की तरह कहीं नहीं जा सके,लेकिन उसके घर जाकर हमने केक खाया.वह एक टुकड़ा भी न खा सकी,इसलिए वह हमें कार में ले गया और कार की खिड़की से हमने एक-एक कर सारे टुकड़े सी गल्स को खिला दिए.वे लड़ रहे थे..क्रेंग -क्रेंग कर रहे थे .हम हंस रहे थे..पागलों की तरह.लेकिन अनाबेल को रोकना ज़रूरी था वर्ना उसे किसी भी पल हैमरेज होने का खतरा था.
"उसके बाद..उसके बाद,"वह बोली -मुझे यक्ष्मा के मरीजों से  मिलने की कभी अनुमति नहीं मिली.मेरी माँ नहीं चाहती थीं कि मैं उनसे हिलूं -मिलूं.पर रेड्डी उससे बात करता रहा.उसने कहा कि वह तभी बंद करेगा जब उसे बंद करना पड़ेगा .तो वह उससे बात करता रहा और मैं पागल होती गई. उसके जीवन में कोई रस नहीं रह गया था -वह बहुत बीमार थी.मैं तुम्हें उसकी कब्र दिखाउंगी पर अब उसकी निशानदेही के लिए भी कुछ बचा नहीं.रेड्डी और मैं वहां कुछ अर्पण करने जाते हैं,तभी जब रेड्डी को समय मिलता है.यदि हम इस सड़क की सीध में चलते और मुड़ते नहीं तो यह रास्ता हमें उसकी कब्र तक ले जाता."

अब हम समतल भूमि पर आ गए थे और सैन पहुँचने वाले थे.
वह बोली,"अरे !मैं तो भूल ही गई,"और उसने मुट्ठीभर टिकट निकाले.
"ये वैलेंटाइन्स डे के लिए हैं.हम "पिनाफोर "नाटक स्कूल में करने वाले हैं.मुझे इन्हें बेचना है और तुम मेरी पहली खरीददार हो."


8.
मेरा एमंडसैन के उस घर के लिए अनुमान सही निकला. डॉक्टर का घर था.वह मुझे रात्रि भोजन के लिए ले गया.

यह आमंत्रण अचानक ही मिला,उस दिन जब वह मुझसे हॉल में  टकरा गया था .शायद वह मेरे साथ शिक्षण सम्बन्धी विचार साझा करने में बेचैनी महसूस करता था.

जिस दिन उसने मुझे आमंत्रण दिया उसी दिन मैं "पिनाफोर" के टिकट लायी थी .मैंने उसे इस बारे में बताया,और उसने कहा -हाँ,मैंने भी खरीदा है.पर इसका यह अर्थ नहीं कि हम जाएँ."
"मुझे लगता है कि मैंने उससे वायदा किया है."

"तो ठीक है ,तुम उससे वादाखिलाफी कर सकती हो.यह अरुचिकर होगा.पर भरोसा करो."

मैंने वही किया जैसा उसने करने को कहा.मैरी मुझे कहीं मिली नहीं कि उसे बता पाती.मैं उसका सैन के मुख्य द्वार के बाहर पोर्च पर इंतजार करती रही.उसने मुझे वहीँ बुलाया था.मैंने अपनी सबसे सुंदर ड्रेस पहनी थी,गहरे हरे रंग की क्रेप,जिस पर मोती जैसे बटन लगे थे और जिसके कॉलर पर सुन्दर लेस लगी थी.मैंने अपने पैरों में स्नो बूट्स के अन्दर स्वेद लैदर के ऊंची एड़ी के जूते पहन रखे थे.मैं उसके बताये समय से भी ज्यादा समय तक उसका इंतजार करती रही -चिंतित.. मुझे दो बातों की चिंता हुई -पहली कि अभी मैट्रन अपने ऑफिस से उसे तलाशते हुए आएँगी और दूसरे सूचित करेंगी कि वह तो इस बारे में एकदम भूल गया.


किन्तु  थोड़ी देर बाद ही वह आता हुआ दिखा.अपने ओवर कोट के बटन लगाते हुए और माफ़ी मांगते  हुए.

"हमेशा कुछ छोटे-बड़े काम निबटाने पड़ते हैं,"उसने कहा और मुझे ईमारत में जहाँ उसकी कार खड़ी थी,ले गया.

"तुम ठीक हो."
"हाँ,"अपने स्वेद जूतों के बावजूद भी मैंने कहा -उसने मेरी तरफ हाथ नहीं बढ़ाया.

उसकी कार पुरानी और जीर्ण -शीर्ण थी,जैसी कि उन दिनों अधिकांश कारें हुआ करती थीं.उसमें हीटर नहीं था.उसने बताया कि हम उसके घर जा रहे हैं तो मेरी सांस में सांस आई.मैं कह नहीं सकती कि होटल की भीड़ को हम कैसे संभालते और मैंने सोच रखा था कि कैफे के सैंडविच मैं नहीं खाऊँगी.

घर पहुंचकर उसने मुझसे कहा कि जब तक घर गरम नहीं हो जाता मैं अपना कोट न उतारूँ.और वह अंगीठी में लकड़ियाँ जलाने में व्यस्त हो गया.

"मैं ही तुम्हारा दरबान हूँ ,तुम्हारा रसोइया और तुम्हारा बैरा भी.यहाँ तुम्हें ठीक लगेगा.खाना बनाने में मुझे देर नहीं लगेगी.अब कहीं तुम मदद करने न उठ पड़ना .मैं अकेले काम करना पसंद करता हूँ.यहाँ तुम कहाँ मेरा इंतजार करना चाहोगी ?तुम चाहो तो सामने के कमरे में किताबें देख सकती हो.वहां ठण्ड इतनी असह्य नहीं लगेगी.लाइट -स्विच कमरे में ही है.क्या मैं खबरें सुन सकता हूँ?मेरी आदत में शामिल है."

रसोई का दरवाज़ा खुला छोड़कर मैं सामने वाले कक्ष में चली आई.न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि मुझे आदेश दिया गया था.

वह आया और उसने दरवाज़ा बंद कर दिया,कहते हुए कि -"थोड़ी देर के लिए जब तक रसोई गरम न हो जाए."और फिर सी.बी.सी.पर नाटकीय,गंभीर और ईमानदार आवाज़ को सुनने लगा जो हमें युद्ध की खबरें बता रही थी.

वहां कमरे में ढेरों किताबें थीं.केवल बुक शेलव्स में ही नहीं,मेज़ पर भी और कुर्सी  पर भी,खिड़की की चौखट पर भी और फर्श पर भी- अंबार की तरह.बहुत ध्यान से देखने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची कि वह किताबें थोक में खरीदना पसंद करता है और कई बुक क्लब्स का सदस्य भी है .द हारवर्ड क्लासिक्स .द हिस्ट्री ऑफ़ विल दुरंत..कहानी और कविता की किताबों का अकाल था पर आश्चर्यजनक रूप से वहां बच्चों के क्लासिक्स रखे हुए थे.

अमेरिका की गृह क्रांति,दक्षिण अफ्रीका का युद्ध ,नेपोलियन के युद्ध,पैलोपेनिशियाँ लड़ाइयाँ और जूलीयस सीज़र के महाभियान ..अमेज़न और आर्कटिक की खोज.शैकलटन का बर्फ में फंसना.जॉन फ्रान्कलिन की अभिशप्त चढ़ाई,द डोनर पार्टी और द लॉस्ट ट्राइब्स,न्यूटन,एल्केमी ,हिन्दुकुश के रहस्य.किताबें हमें जतलाती हैं कि कौन कितना जानने के लिए उत्सुक है,और यहाँ -वहां फैले ज्ञान के भंडार पर कब्जा करने को लालायित.उन लोगों के लिए नहीं जिनकी रुचियाँ अटल हैं और सख्त.

अब मुझे समझ आया कि जब उसने पूछा था,"कौनसा रूसी उपन्यास?"तब इसके पीछे कोई अड़ियलपन नहीं था.

जब उसने कहा," भोजन तैयार है", तो मैंने उठकर दरवाज़ा खोला..मैं उसके सशस्त्र नए संशयवाद के घेरे में कैद थी.

मैंने पूछा,"तुम किससे सहमत हो,नेप्था से या सेतेम्ब्रिनी से?"
"दुबारा कहो?"

"द मैजिक माउंटेन" में.तुम्हें नैप्था पसंद है या सेतेम्ब्रिनी?"
"ईमानदारी से कहूँ तो वे बातूनी थे.तुम?"

"सेतेम्ब्रिनी सह्रदय हैं और नैप्था रोचक."
"क्या उन्होंने तुम्हें स्कूल में बताया था?"

मैंने उदासीन भाव से कहा,"स्कूल में कभी नहीं पढ़ा उन्हें."

उसने मुझे चौकन्नी दृष्टि से देखा,उसकी भौहें ऊपर को खिंच गईं.

"क्षमा करो.अपने को निर्बाध समझो और यहाँ तुम्हें जिस चीज़ में रूचि है वही करो.यहाँ नीचे आओ और जो पढना है उसे रोज़गार से अलहदा करके पढो.मैं तुम्हारे लिए बिजली का हीटर चला देता हूँ,क्योंकि अंगीठी का तुम्हें कोई अनुभव नहीं.क्या हम उसके बारे में सोच सकते हैं ?मैं तुम्हें इसकी कुंजी  देने को तैयार हूँ ."

"धन्यवाद".

पोर्क चोप्स, कुचले आलू ,डिब्बे वाले लोबिया.खाने के बाद डेज़र्ट में एप्पल पाई ..वह और स्वादिष्ट होती यदि वह उसे गरम कर लेता.

उसने मुझसे मेरे टोरोण्टो के जीवन के बारे में पूछा,मेरी यूनिवर्सिटी के कोर्स के बारे में,परिवार के बारे में.उसने कहा कि मेरी परवरिश संकीर्णता के बीच हुई है.

"मेरे दादा जी उदार पादरी थे,पॉल टिलीच के सांचे में ढले."
और तुम?उदार छोटी ईसाई दोहिती ?"

"नहीं ".
" तुम्हें लगता है कि मैं बहुत अक्खड़ हूँ?"

"यह निर्भर करता है इस पर कि तुम मेरा इंटरव्यू मालिक के रूप में ले रही हो, नहीं."
"क्या तुम्हारा कोई बॉय फ्रेंड है?"
"हाँ ."

"मेरा अंदाज़ा है..फ़ौज में."
"नेवी में.मुझे बतौर चुनाव ठीक लगा.पर मुझे अब उसका कुछ पता नहीं कि वह कहाँ है और न ही हमारा नियमित पत्र व्यवहार रहा.
डॉक्टर उठकर चाय ले आया था.

"वह किस तरह की नाव पर काम करता है?"
"कोर्वेट."
"एक और बेहतर चुनाव.थोड़ी ही देर में मैं उसे दाग सकता हूँ,जैसा कि कोर्वेट्स के साथ होता रहा है."

"वाह !मेरे बहादुर !चाय में दूध लोगे या चीनी?"
"शुक्रिया..कुछ भी नहीं."
"यही ठीक है क्योंकि मेरे पास इसमें से कुछ भी नहीं.तुम्हें पता है कि जब तुम झूठ बोलते हो तो तुम्हारा चेहरा लाल हो जाता है."

"अगर लाल नहीं होगा तो लाल कर लूँगा.मेरा सुर्ख रंग पैरों से उठता है,और पसीना बनकर मेरे बाहुओं में रिसता है .मुझे डर है कि कपडे गंदे न हो जाएँ."

"मैं चाय पीते में उबल जाता हूँ."
"ओह!ऐसा क्या?"
चीज़ें हद से  बाहर न चली जाएँ,मैंने बात को संभाला.विषयांतर करते हुए कहा कि "कैसे वह लोगों
की शल्य चिकित्सा करता है?क्या वह लोगों के फेफड़े निकाल देता है ,जैसा मैंने सुना है ?"
वह मुझे और चिढ़कर,अधिक गुरुता  के साथ जवाब दे सकता था शायद इश्कबाजी के लिए उसकी ऐसी ही उसकी धारणा थी.और मैं सोच रही थी कि यदि उसने ऐसा किया तो मैं अपना कोट पहनकर ठण्ड में बाहर निकल जाऊँगी.

उसे इस बात का अंदेशा था.वह थोर्कोप्लास्टी के बारे में बताने लगा."क्यों नहीं ,आजकल लोब्स को निकालना प्रचलन में है."

"पर इसमें क्या कुछ रोगी जान नहीं गँवा बैठते?"

वह सोच रहा था कि यह परिहास का वक्त है."हाँ,क्यों नहीं.दौड़कर झाड़ियों में छिप जाना चाहिए -क्या पता कहाँ से वे प्रकट हो जाएँ?झील में छलांग लाग लेनी चाहिए.तुम्हें क्या लगता है कि रोगी कभी नहीं मरते?ऐसे मामले भी होते हैं जब सर्जरी काम नहीं करती.पर बड़ी -बड़ी चीज़ें अभी आ रही हैं.जिस तरह वह सर्जरी करता है,आने वाले समय में लुप्त हो जायेगी.

नयी दवाइयां होंगी.स्ट्रेपटोमाइसिन.प्रयोग की तरह काम में लायी जा रही है.पहले भी कुछ दिक्कतें थीं -स्वाभाविक है आगे भी कुछ रहेंगी. तंत्रिका तन्त्र का ज़हरीला हो जाना.लेकिन उन्हें बरतने के रास्ते भी निकल आयेंगे.मेरे जैसे सर्जन्स को व्यापार से मुक्त रखो."

उसने बर्तन धोये,सुखाये और बर्तन पोंछने वाले तौलिये को मेरी कमर पर लपेट दिया ताकि मेरे कपडे गंदे न हों .

पीछे बांधते समय उसका हाथ मेरी कमर पर था.ठोस दबाब,उँगलियाँफ़ैल गई थीं-मेरे शरीर के ढेर को वह अपने व्यावसायिक ढंग से छीन लेना चाहता था. रातभर मैं वही दबाब महसूस करती रही.छोटी ऊँगली से सख्त अंगूठे तक उसकी तेज़ी बढ़ रही थी.मुझे वह स्पर्श सुखद लगा. कार से बाहर निकलते हुए उसने मेरा माथा चूमा.पर वह स्पर्श इस चुम्बन से भी कहीं अधिक विशिष्ट था.सूखें ओठों का चुम्बन ,बहुत छोटा और औपचारिक ..अधिकारिक तौर पर स्थापित किया गया.

09.

उसके घर की चाभी मेरे कमरे के फर्श पर पड़ी हुई थी,फिसल कर दरवाज़े से  भीतर आ गई थी.पर वह मेरे किसी काम की न थी.
यदि कोई और मुझे यह लालच देता तो मैं वहां से भाग गई होती.जबकि साथ में हीटर भी रहता.लेकिन उसकी बात और थी.उसके अतीत और भविष्य की इस घर में उपस्थिति सारे छिछले सुख निकालकर बाहर फेंक रही थी.बदले में ऐसा सुख भर रही थी जो दबाब देने वाला था पर कीमती नहीं.मुझे संदेह है कि क्या मैं एक भी शब्द ठीक से पढ़ सकूँगी!


मैं मैरी के लिए सोच रही थी कि "पिनोफर"न आने के लिए वह क्रोधित होगी.मैं बहाना बनाकर कह दूंगी कि मेरी तबीयत  बिगड़ गई थी.मुझे सर्दी लग गई थी .पर फिर मुझे ध्यान आया कि जुखाम होना यहाँ बहुत गंभीर विषय है -मास्क पहनो,कीटाणु नाशक का प्रयोग करो तिस पर वनवास भुगतो.और मैंने जान लिया कि डॉक्टर के घर जाने की बात छिपानी मुश्किल है.यह ऐसा रहस्य था जिसे सब जानते थे,नर्सें..वे कुछ कहती नहीं थीं;या तो इसलिए कि वे बहुत ऊंचाई पर थीं और समझदार थीं या फिर ऐसी बातों में उनकी रूचि नहीं थी.लेकिन सहयोगी मुझे छेड़ती रहतीं.
"अगली रात्रि का भोजन आनंदमय हो."

उनके  छेड़ने का  अंदाज़ दोस्ताना था और वे इसे स्वीकृति दे चुकी थीं.मेरे शरीर पर मांस बढ़ने लगा था.मैं जो कुछ भी थी -एक पुरुष का साथ पाकर स्त्री में  बदलने लगी थी.

10.

मैरी पूरे सप्ताह दिखाई नहीं दी.

चुम्बन देने के बाद उसने कहा था-"अगले शनिवार.."इसलिए मैं बरामदे के सामने फिर इंतजार करने लगी थी और इस बार वह विलम्ब से नहीं आया.हम घर गए .मैं सीधे सामने के कमरे में चली गई और वह आग जलाने लगा.वहीँ धूल से सना बिजली का हीटर पड़ा था.

उसने कहा कि मेरे प्रस्ताव के अनुरूप मुझे स्वीकार मत करना.तुम्हें क्या लगता है कि मेरा ऐसा अभिप्राय नहीं था?मैं जो कहता हूँ वही अर्थ भी रखता हूँ."
मैंने कहा कि, "मैं मैरी के कारण शहर आने से डर रही थी."

"क्योंकि तुमने वह कंसर्ट मिस किया.क्या तुम अपना जीवन मैरी के अनुरूप बनाओगी?
मेन्यू उस दिन वाला ही था. पोर्क चोप्स,कुचले आलू. मटर की जगह मक्का के दाने.इस बार उसने रसोई में मुझे मदद करने दी.यहाँ तक कि मेज़ लगाने का आग्रह भी किया.

"तुम्हें पता चल जाएगा कि चीज़ें कहाँ रखी हैं.यह तर्क संगत है ,ऐसा मैं सोचता हूँ.

इसका साफ़ अर्थ था कि स्टोव पर काम करते हुए मैं उसे देखूं.उसका सहज ध्यान ,उसके किफायती तौर तरीके..चिंगारी और भावशून्यता के किसी जुलूस को मेरे भीतर निकालने की तैयारी.
अभी हमने भोजन ही किया था कि किसी ने दस्तक दी.वह उठा और चिटखनी खोलने लगा -वहां मैरी खड़ी थी.

उसके हाथ में कार्ड बोर्ड बॉक्स था,जिसे उसने मेज़ पर रख दिया.फिर उसने अपना कोट फेंक दिया और लाल और पीले वस्त्र दिखाने लगी.

"वेलेंटाइन का दिन मुबारक.."उसने कहा.तुम कंसर्ट में क्यों नहीं आयीं,इसलिए मैं कंसर्ट के साथ यहाँ हाज़िर हूँ."

वह अपने एक पैर पर खड़ी हो गई और उसने अपने बूट को ठोकर मारी,फिर दूसरे बूट को.अपने जूतों को धकेलते हुए वह मेज़ पर चढ़ गई,बहुत ऊंची किन्तु शोक भरी आवाज़ में वह गा रही थी.

I’m called Little Buttercup,
Dear little Buttercup,
Though I could never tell why.
But still I’m called Buttercup,
Poor little Buttercup
Sweet little Buttercup I—

डॉक्टर उसके गाने से पहले ही उठकर चल दिया था.वह स्टोव के पास खड़ा था .वह फ्रायिंग पैन को साफ़ कर रहा था,जिसमें पोर्क चोप्स बनाये थे.
मैंने ताली बजाते हुए कहा,"क्या शानदार ड्रैस है!"

यह लाल स्कर्ट थी जिसका घेर पीले रंग का था और ऊपर सफ़ेद लहराता  एप्रन,कशीदा की हुई चोली.

"मेरी माँ ने इसे सिला है."
"और कढ़ाई ?"

"हाँ, उस रात से पहले सुबह चार बजे तक वह इसी में लगी रहीं." गोल-गोल घूमकर वह देर तक नाचती रही.बर्तनों के बजने की आवाज़ शेल्वेस से आ रही थी .मैंने उसके लिए थोड़ी और देर तक ताली बजाई.हम दोनों एक ही बात चाहते थे.हम दोनों चाहते थे कि डॉक्टर यहाँ आ जाए और हमारी उपेक्षा न करे.हालांकि उसके लिए अनिच्छा से एक भी विनम्र शब्द बोलना कठिन था.

"और देखो ..वेलेंटाइन के लिए और क्या है",उसने कार्डबोर्ड के डिब्बे को खोला.उसमें वेलेंटाइन कुकीज़ थे,दिल की शक्ल के, लाल आइसिंग किये हुए.
"वाह ,शानदार और मैरी फिर से नाचने लगी.

I am the Captain of the Pinafore.
And a right good captain, too.
You’re very very good, and be it understood,
I command a right good crew.

डॉक्टर आखिरकार लौट आया.मैरी ने उसे सलाम किया.
"ठीक है ,इतना काफी है."
उसने अनसुना करते हुए कहा-

Then give three cheers and one cheer more
For the hardy captain of the Pinafore.

मैंने कहा,"बस ..काफी है बस.पिनफ़ोर के कैप्टिन के लिए इतना काफी है."

"मैरी ,हम रात्रि भोजन कर रहे हैं और तुम आमंत्रित नहीं हो .तुम्हें समझ आ रही है बात? तुम आमंत्रित नहीं हो." डॉक्टर ने कहा.
कुछ क्षणों के लिए वह चुप हो गई .

"थू तुम पर.तुम अच्छे नहीं हो."

"और तुम्हें बिना कूकीज के काम चलाना पड़ेगा. तुम वैसे भी दिन -ब -दिन जवान सूअर की तरफ फूलते जा रहे हो.
मैरी का चेहरा सूज गया था और वह रो देने को थी,लेकिन उसने कहा - "देखो कौन बोल रहा है.तुम्हारी दोनों आँखों में कैसी चालाकी भरी है."
"बस,बहुत हुआ ."
डॉक्टर ने उसके जूते उठाये और उसके सामने पटक दिए.

"चलो,इन्हें पहनो."
उसने वही किया,उसकी आँखें आंसुओं से भरी थीं और नाक बह रही थी.वह सुड़क -सुड़क कर रही थी.उसने उसे कोट पकड़ा दिया और कोई मदद नहीं की.मैरी ने जोर से कोट घुमाया और पहनते हुए बटन लगा लिए.

"चलो ठीक है ,पर तुम यहाँ कैसे आयीं ?"
उसने कोई उत्तर नहीं दिया.

"पैदल ,चलो मैं तुम्हें कार से घर छोड़ देता हूँ,ताकि तुम आत्म दया करते हुए खुद को बर्फ के ढेर में न मार लो.
मैं कुछ नहीं बोली. मैरी ने मेरी तरफ नहीं देखा. अलविदा की घड़ी में इससे ज्यादा धक्का लगने के लिए क्या बचा था.

उनके जाने के बाद मैंने मेज़ ठीक की. हमने डेजर्ट (एप्पल पाई )नहीं लिया था. शायद डेजर्ट में उसे इसके सिवा और कुछ बनाना नहीं आता था या वह इसे बेकरी से लाया था.
मैंने दिल नुमा कूकीज खाई. आइसिंग जरुरत से ज्यादा मीठी थी.न उसमें चेरी का स्वाद था और न बेरीज का. केवल शक्कर झोंकी हुई थी और खानेवाला लाल रंग .मैंने कुछ और खायीं.
मुझे उसे अलविदा तो कहना चाहिए था और इन कूकीज के लिए शुक्रिया.

खैर इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता.उसका नाच-गाना मेरे लिए नहीं था.शायद उसका कुछ ही टुकड़ा मेरे लिए रहा हो.

वह उसके प्रति कितना निर्दयी था.मुझे धक्का लगा कि वह इतना कठोर भी हो सकता है.उसके लिए जिसे तुम्हारी बहुत जरुरत है.पर उसने जो किया मेरे लिए किया,ताकि मेरा समय कोई न चुरा सके.यह सोचकर ही मैं आत्म मुग्ध हो गई और खुद पर शर्मसार भी.मैं नहीं जानती थी कि जब वह लौटेगा तो मैं उससे क्या कहूँगी?

वह चाहता भी नहीं था कि मैं उससे कुछ कहूँ. वह मुझे बिस्तर पर ले गया. क्या यह मेरी पत्री में लिखा था या यह मेरे लिए भी चौंका देने वाला तथ्य था, जितना उसके लिए. मेरी कौमार्य की अवस्था ऐसी आकस्मिक नहीं थी -उसने मुझे तौलिया दिया और कंडोम. सहृदयता के साथ उसने इसे पूरा किया. मेरा आवेग चकित करने वाला था.

"मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ."
जब हम घर लौट रहे थे ,उसने सारे  कूकीज ,सारे दिल बर्फीले रास्ते में उछाल दिए -शीत परिंदों को खिलाने के लिए.


11.
.
इस तरह हमारी मंगनी  हो गई -वह : इन बातों को लेकर थोडा सावधान रहता था- इसलिए हमारी मंगनी एक निजी सहमति थी. हमारी शादी होने वाली थी -बस इंतजार था कि उसे एकसाथ छुट्टियाँ मिल सकें. उसने कहा कि वह शादी को अनौपचारिक मानता है. अ बेअर- बोन्स. वह अपने दादा-दादी को भी सूचित नहीं करेगा. उन लोगों के सामने किसी भी तरह  की रस्म का क्या फायदा जिनके विचारों से आप सहमत ही नहीं जबकि बदले में वे आपका मजाक बनायेंगे,यह सब बर्दाश्त करने के बाहर है.न ही वह हीरे की अंगूठी के पक्ष में था. मैंने उसे बताया कि मैंने कभी इस तरह की इच्छा नहीं की. वह जानता था कि मैं उन मूर्ख, कूपमंडूक लड़कियों की तरह नहीं हूँ.


12.

उसने कहा कि अब हमें एक साथ रात्रि भोजन बंद कर देना चाहिए.इसलिए नहीं कि लोग बातें बना रहे हैं.एक राशन कार्ड पर दो लोगों के लिए पर्याप्त मांस नहीं मिल पाता.मेरे पास कार्ड नहीं है.मुझे अपना कार्ड रसोई अधिकारियों को सौंपना पड़ा -मैरी की माँ को.अब जल्द ही मुझे सैन में खाने का इंतजाम करना पड़ेगा.

इन सब बातों को अधिक तवज्जु मत दो.

हाँ, सबके अपने-अपने संदेह हैं. अधेड़ नर्सें दोस्ताना हो गई हैं, यहाँ तक कि मैट्रन मुझे दर्द भरी मुस्कान देती है.मुझे भी विनम्रता से फिक्रमंद होने का दिखावा करना पड़ता है, जबकि यह निरर्थक है.मैंने अपने ऊपर मखमली निःशब्दता को ओढ़ लिया है और मेरी निगाहें झुकी रहती हैं. मुझे नहीं सूझता पर इन बूढ़ी औरतों को सब पता है कि हमारी यह अंतरंगता किस दिशा में जा रही है और वे उस दिन के लिए नेकी के साथ खड़ी होंगी जिस दिन डॉक्टर मुझे छोड़ देने का निर्णय लेगा.केवल सहयोगी नर्सें पूरी तरह मेरी तरफ थीं और अक्सर मुझे छेड़ती थीं कि उन्होंने शादी की घंटियाँ मेरी चाय-पत्ती में देखी थीं.


13.

मार्च का महीना मनहूसियत और व्यस्तता अस्पताल के दरवाज़े पर लाया था. यह हमेशा सबसे खराब महीना होता है, सहकर्मियों ने बताया था. इन दिनों सर्दी का घातक हमला होता है और इन सब वजहों से लोग मान बैठे थे कि यह मौत का महीना है. अगर बच्चा कक्षा में उपस्थित नहीं है -तो कुछ बहुत बड़ा घटने वाला है या वह रहस्यमयी सर्दी की गिरफ्त में बिस्तर से लगा है.



14.
समय आ गया था जब डॉक्टर को सारे प्रबंध देखने थे. वह मेरे दरवाज़े में स्लिप डाल गया था कि अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक मैं तैयार रहूँ. इन दिनों वह कुछ समय निकाल सकेगा, बशर्ते कोई संकट अचानक न आन पड़े.

हम हंट्सविल जा रहे थे. शादी करने.

मैंने अपनी हरी क्रेप ड्राइक्लीन करवाकर बैग में रख ली थी.मैं  सड़क के किनारे कुछ जंगली फूलों की तलाश में थी जिनसे गुलदस्ता बना सकूं.क्या वह मेरे गुलदस्ते से सहमत होगा?पर इन दिनों तो गेंदा भी खिलना शुरू नहीं होता.इन दिनों कुछ नहीं दिखाई देता सिवा पतले काले स्प्रूस के पेड़ों के..और जुनिपर के फैलते टापू या दलदल के सिवा.सड़क के मोड़ों पर बिखरी चट्टानें -खून से लथपथ लोह चट्टानें और ग्रेनाईट की आड़ी पड़ी परतें..बस यही सब.

कार में रेडियो बज रहा था.यह विजयोल्लास का संगीत था क्योंकि मित्र देश बर्लिन के करीब आ गए थे.डॉक्टर का कहना था कि व्यर्थ का विलम्ब हो रहा है.रूसियों को वहां सबसे पहले होना चाहिए.उसने कहा कि कहीं निराशा हाथ न लगे.

अब हम एमंडसैन से दूर थे.मैं उसे अल्स्तायर कह कर पुकार सकती थी. यह हम दोनों की एकसाथ सबसे लम्बी ड्राइव थी और मैं एक पुरुष के मन में अपनी उपस्थिति के अहसास  से उत्तेजित थी -यही अहसास उसके मन तक कभी भी पहुँच सकता था क्योंकि वह एक लापरवाह चालक था. मुझे उसका सर्जन होना इन पलों में रोमांचक लगा जबकि मैं कभी प्रत्यक्ष रूप में इसे स्वीकार नहीं करती. लेकिन अभी मुझे लग रहा था कि मैं उसके लिए किसी दलदल में लेट सकती हूँ और अपनी रीढ़ को सड़क किनारे की किसी चट्टान पर कुचल सकती हूँ. क्या उसे ऐसे आकस्मिक मिलन की चाह है? मैं जानती थी कि मुझे इसे अपने मन में ही रखना है.

मैंने अपने मन को भावी जीवन की तरफ मोड़ दिया. जैसे ही हम हंट्सविल पहुंचेगे, वहां हमें कोई न कोई पादरी मिल जाएगा जो हमारी बैठक में बराबर पास खड़ा रहेगा,जो हमारी बैठकों की कुलीनता का अंग है.

लेकिन जब हम वहां पहुंचे तो मैंने जाना कि शादी करवाने के कई और भी तरीके हैं, और मेरे दूल्हे के दूसरे अवर्श़न हैं, जिनका मुझे पता नहीं था. उसे पादरी से कोई लेना देना नहीं था. हंट्सविल के टाउन हॉल में हमें फॉर्म भरने थे जो हमारे अकेले होने के शपथ पत्र थे और हमें मैजिस्ट्रेट से मिलने का समय लेना था जो "जस्टिस ऑफ़ द पीस" रीत से हमारा विवाह सम्पन्न करवाए.

दोपहर के भोजन का समय था. एल्सतेयर एक रेस्तरां के बाहर खड़ा था जो एमंडसैन के कॉफ़ी शॉप की तरह था.

"यह ठीक रहेगा."
पर मेरा चेहरा देखने के बाद उसने विचार बदल दिया.
"नहीं ?,चलो ठीक है ,"उसने कहा .

एक कुलीन घर,जिस पर चिकन डिनर्स का विज्ञापन लगा था-के सामने वाले ठिठुरन भरे कमरे में हमने भोजन किया.प्लेटें बर्फ जैसी ठंडी थीं.न वहां कोई भोजनार्थी था और न रेडियो संगीत -केवल हमारे छुरी -काँटों की खनखनाहट जो रेशेदार मुर्गे को तोड़ने के प्रयास से पैदा हो रही थी.मैं जानती थी कि खाते हुए वह सोच रहा था कि पहले वाला रेस्तरां इससे बेहतर था.

खैर ,मैंने हिम्मत जुटा कर लेडीज रूम के लिए पूछा.यह सामने वाले कमरे से भी कहीं ठंडा था और अधिक निराश करने वाला भी.मैंने हरी ड्रेस पहन ली,मुंह को फिर से रंगा और बाल ठीक किये.जब मैं बाहर आई एलस्तेयर अभिवादन करता हुआ उठ गया.वह मुस्कराया.उसने मेरे हाथ दबाते हुए कहा कि मैं सुंदर लग रही हूँ.

हाथों में हाथ लिए हम ठिठुरते हुए अपनी कार तक लौट आये.उसने मेरे लिए दरवाज़ा खोला चक्कर काटकर भीतर गया और अपनी सीट पर बैठकर गाड़ी की चाभी घुमाई,इग्निशन देकर बंद कर दी.

हमारी कार एक हार्डवेयर स्टोर के सामने पार्क की हुई थी.बर्फ हटाने के फावड़े सेल में आधी कीमत पर बिक रहे थे.केवल एक खिड़की पर लिखा दिख रहा था कि यहाँ स्केट्स को सान दी जा सकती है.

गली के उस पार एक लकड़ी का घर था जो तिलहे पीले रंग से पुता हुआ था .उसकी सामने की सीढियाँ खतरनाक थीं और वहां एक बोर्ड पर खतरे का चिह्न बना हुआ था.

एल्स्तेयर की कार के पास एक ट्रक खड़ा था जो युद्ध से पहले का मॉडल लगता था.इसके आगे एक रनिंग बोर्ड और छाज लगी थी जिसके किनारे जंग खा चुके थे. डांगरी पहने एक आदमी हार्डवेयर स्टोर से बाहर निकला और ट्रक में चढ़ गया. उसके इंजन में दिक्कत थी. ट्रक थोड़ी देर भकभक करता रहा और फिर चला गया. फिर एक ड्राइवर स्टोर के नाम का एक डिलीवरी ट्रक लेकर वहां आया और  खाली जगह पर लगाने की कोशिश करता रहा .पर वहां कम जगह थी .ड्राइवर एल्स्तेयर की गाडी तक आया और खिड़की पर थाप देने लगा .एल्स्तेयर विस्मय में था .यह तो अच्छा हुआ कि ड्राइवर अदब से बात कर रहा था वर्ना उसके लिए मुश्किल पैदा हो जाती.एल्स्तेयर ने खिड़की खोली.आदमी ने उससे प्रार्थना की -अगर हमें स्टोर से कुछ नहीं खरीदना है तो हम अपनी कार थोडा हटा लें.

15.

"हम तुरंत अलग हो रहे हैं, "एल्स्तेयर बोला.  वह व्यक्ति जो मेरी बगल में बैठा थाजो मुझसे शादी करने वाला था..लेकिन अब नहीं कर रहा था.."हम बस अलग हो रहे हैं."

हम. उसने कहा था "हम". उन लम्हों में मैं उस शब्द से चिपक गई थी. फिर मैंने सोचा यह अंतिम बार है. अंतिम बार मैं उसके जीवन में "हम" की तरह थी.

यह "हम " होना इतना समग्र नहींइससे सच साफ़ होकर सामने नहीं आता. यह उसका ड्राइवर के साथ पुरुष-पुरुष कंठ स्वर था, स्थिर और यथोचित स्पष्टीकरण. मैं वापिस उन शब्दों की तरफ लौट आना चाहती थी जो वह मुझसे कह रहा था, मुझसे बात करते हुए उसने देखा तक नहीं था कि एक वैन वाला वहां गाड़ी पार्क करने की कोशिश कर रहा है.

उसकी बातें कठोर थीं किन्तु फिर भी स्टेयरिंग पर उसकी पकड़ मज़बूत थीउसकी पकड़, उसके  ख्याल और उसकी आवाज़  में दर्द  था. उसकी बातें उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं थीं जितना अर्थपूर्ण था इस बात का इल्म कि उसी गंभीर जगह से यह स्वर बाहर आ रहा था, जिसे बिस्तर साझा करते वक्त मैं सुनती थी.

पुरुष से बात करने के बाद उसका लहजा फिर बदल गया. उसने कार के शीशे चढ़ाये और पूरा ध्यान कार पर केन्द्रित किया.बहुत ध्यानपूर्वक उसने संकरी जगह में बैक लिया और इस तरह  कार चलाई कि वह वैन से न टकराए....जैसे अब सारी बातें खत्म हो गईं थीं और न ही कुछ सँभालने को रह गया था.

"मेरे बस का नहीं," 
उसने कहा.वह इसे पूरा नहीं कर सकता.वह इसे समझा नहीं सकता. वह केवल यह महसूस करता है कि यह एक भूल थी.

मुझे लगा कि अब मै कभी स्केट्स के घुमावदार 'एस' या बोर्ड्स में कील ठोक कर बनाये 'एक्स' को नहीं देख पाऊँगी, और न ही उस पीले घर को उस आवाज़ के साथ देख सकूंगी.


16.

"मैं तुम्हें स्टेशन छोड़ आऊंगा. तुम्हारा टोरोण्टो का टिकट खरीद दूंगा. मुझे विश्वास है कि टोरोण्टो के लिए दोपहर बाद कोई न कोई ट्रेन जरूर  चाहिए. मैं कोई सच लगने वाली कहानी लोगों के लिए सोच लूँगा और तुम्हारा सामान पैक करके भिजवा दूंगा. तुम्हें अपना पता देना पड़ेगा. मेरे पास तुम्हारा पता न हो. और हाँ , मैं तुम्हें अनुमोदन पत्र भी लिखकर दे दूंगा. तुमने शानदार काम किया. तुम्हारा टर्म खत्म नहीं हुआ था -मैंने तुम्हें अभी तक यह भी नहीं बताया कि बच्चे दूसरे आरोग्य -निवास में शिफ्ट हो रहे हैं. बहुत बड़े बदलाव हो रहे हैं."

उसका स्वर बदला हुआ था हुआ, एकदम चटकीला. छुटकारे का स्वर. मेरे जाने से पहले वह उसे दबाकर रखने की कोशिश कर रहा था.

मैंने रास्तों पर निगाह डाली. इस तरह जैसे मुझे फांसी के लिए ले जाया जा रहा हो. अभी नहीं. अभी थोड़ी देर बाद.  अभी भी मैं उसकी आवाज़ आखिरी बार नहीं सुन रही. अभी समय नहीं आया.
स्टेशन का रास्ता उसे नहीं पूछना पड़ा. विस्मय से मेरे मुख से निकल गया, क्या इसके पहले भी तुम लड़कियों को ट्रेन में बैठाते रहे हो."

"ऐसे मत करो."उसने कहा .

"मेरे जीवन का हर मोड़ बचे हुए हिस्से को काटकर मुझसे अलग कर देता है."

टोरोण्टो के लिए ट्रेन पांच बजे है .मैं कार में बैठी रही और वो जानकारी के लिए अन्दर चला गया.टिकट लेकर वह लौटा.उसकी चाल बताती थी कि वह हल्का महसूस कर रहा था.कार तक आते-आते उसके कदम संयत हो गए थे.

"स्टेशन गरम और आरामदेह है.औरतों के लिए वहां ख़ास प्रतीक्षालय है."
उसने मेरे लिए कार का दरवाज़ा खोल दिया.

"तुम कहो तो मैं तुम्हें विदा करने के बाद चला जाऊँगा ? खाना बहुत खराब था .यहाँ पास में पाई मिल जाए तो चलो जाकर खा आयें.

इसने मुझे विचलित कर दिया. मैं उतरकर स्टेशन की तरफ चल दी. उसने इशारे से प्रतीक्षालय दिखा दिया. अपनी भौंह ऊंची उठाकर उसने आखिरी मज़ाक किया.

 "शायद कभी तुम इन दिनों को सर्वाधिक भाग्यशाली कहो."

मैं वेटिंग रूम की एक बैंच पर बैठ गई.यहाँ से स्टेशन का मुख्य द्वार दीखता था. मैं उसे देख सकती थी, बशर्ते वह लौट आये. शायद वह लौटकर कहे कि यह सब मज़ाक था. मध्ययुगीन नाटक की आजमाइश थी. या फिर उसका दिल बदल जाए. हाईवे से गुज़रते हुए वसंत के सूरज की पीली रौशनी चट्टानों पर झरते देख उसे याद आये कि इन्ही दिनों में हमने एक साथ इसे देखा था.उसे अपनी मूर्खता का बोध हो और वह उलटे पैर दौड़ा आये.

टोरोण्टो की ट्रेन आने में अभी एक घंटा शेष था, पर लगा, जैसे थोडा ही समय बीता हो. अब भी मैं ख्वाबों में डूबी थी. मैं ट्रेन में चढ़ गई , मेरे पैरों में बेड़ियाँ थीं. मैंने अपना मुंह रेल की खिड़की से सटा दिया -प्लेटफार्म को देखने के लिए ..जहाँ सीटी हमारे प्रस्थान के लिए बज रही थी. अभी देर नहीं हुई थी, मैं बाहर कूद सकती थी .मुक्त होकर कूदना..स्टेशन से गली को दौड़ जाना, वहीँ जहाँ उसने कार पार्क की थी और मेरे पैर विवश हो जाएँ..सोचते हुए कि अभी देर नहीं हुई है, मिन्नत करते हुए -अभी बहुत देर नहीं हुई है.

मैं उसकी तरफ दौड़ती हुई. नौट टू लेट.

अब यहाँ हौ -हुल्लड़ था.देर से आने वाले यात्री ट्रेन में चढ़ रहे थे,सीटों पर झपट रहे थे.एथेलेटिक्स वस्त्रों में हाई स्कूल की लड़कियां हूटिंग कर रही थीं.कंडक्टर नाखुश था और उन्हें जल्दी-जल्दी सीटों पर दौड़ा रहा था.

उनमें से एक बहुत लाउड थी, यह मैरी थी.
मैंने मुंह फेर लिया.

पर वह मेरा नाम पुकारती आई कि मैं इतने दिनों से कहाँ थी.
मैंने कहा,"दोस्त से मिलने चली आई थी."

वह मेरे पास बैठ गई और बताने लगी कि वे लोग हट्सविल से बास्केटबॉल खेलने आये थे.भव्य प्रदर्शन था और वे हार गए.

"हम हार नहीं गए? उसने खुश होकर चिल्लाते हुए कहा और दूसरी लड़कियां हाय हाय करती खिलखिला पड़ीं.उसने स्कोर बताया जो वाकई ठेस पहुँचाने वाला था.

उसे मेरी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उसने शायद ही सुना हो जब मैंने बताया कि मैं अपने दादा -दादी के पास टोरोण्टो जा रही हूँ. एल्स्तेयर के लिए उसने एक शब्द भी नहीं पूछा. बुराई का एक शब्द भी नहीं. वह भूली नहीं थी. दृश्यों की साफ- सफाई कर, स्मृति की अलमारी के निज कोने में संजो लिया था. या फिर अपमान को वह लापरवाही से बरतना जानती थी.

उस समय चीज़ों को मैंने इस तरह न सोचा था ,लेकिन आज मैं उस लड़की की शुक्रगुजार हूँ. अगर इसे मैं अपने लिए सोचूं -तो मैं एमंडसैन पहुंचकर क्या करती? ट्रेन छोड़कर उसके पास भाग जाती और तकाज़ा करती कि उसने मुझे शर्मिंदगी में हमेशा के लिए क्यों धकेल दिया.

कंडक्टर ने चेताया कि ट्रेन अगले स्टेशन पर थोड़ी देर के लिए ही रुकेगी इसलिए टीम वाले सब एक जगह एकत्रित हो जाएँ वर्ना उन्हें टोरोण्टो तक जाना पड़ेगा.


17.

कई सालों से मैं सोच रही हूँ कि मैं उसमें लौट जाउंगी. मैं रह रही हूँ. अभी तक रह रही हूँ, टोरोण्टो में. मुझे लगता है कि टोरोण्टो में सब समा जाता है, इसी तरह ..थोड़ी देर के लिए.

तब दस साल बाद यह हुआ.भीड़ वाली उस गली में,जहाँ आप रुकने की सोच नहीं  -वहां हुआ.हम उलटी दिशाओं में जा रहे थे.एक ही समय पर हम निकले थे,समय -विकृत हमारे चेहरों पर नग्न चोटों के चिह्न थे.

उसने पुकारा, "कैसी हो?"  और मैंने कहा, "अच्छी". इस अच्छे पर जोर देने  के लिए जोड़ा, "खुश" इन दिनों यह सच भी था. मैं अपने पति के झमेलों से आज़ाद हुई थी. उनके एक बेटे के क़र्ज़ से मैं उऋण हुई थी. अपने दिमाग को राहत देने के लिए उस दोपहर मैं कला -गलियारे के लिए निकली.
उसने दुबारा मुझसे कहा ,"तुम्हारे लिए अच्छा है यह."

हमें लग रहा था कि इस भीड़ में हम अपना रास्ता खोज लेंगे, जैसे अगले ही पल हम साथ होंगे. लेकिन यह तय था कि हमें अपनी-अपनी दिशाओं में बह जाना था और वही हमने किया.

कोई हांफती पुकार नहीं थी, कोई हाथ मेरे कंधे पर नहीं था जब मैं पगडण्डी पर पहुंची. बस एक कौंध थी जिसे मैंने पकड़ लिया था -जब उसकी एक आँख दूसरी आँख के मुकाबले अधिक  फ़ैल गई थी. यह बायीं आँख थी- हमेशा की तरह बायीं, जितना मेरी स्मृति में था. और यह सदा बहुत अजब, चौकन्नी और भटकती हुई न जाने क्या तलाशती रहती थी - जैसे कोई बावली असम्भावना उसके जीवन में  पैठ गई हो - जो उसे हंसाने जा रही हो.

बस इतना था यह  सब. मैं घर लौट गई.


वही अहसास जब मैंने एमंडसैन छोड़ा था. ट्रेन मुझे घसीट रही थीअविश्वास करो. मुहब्बत में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बदलता.
(२७ अगस्त २०१२ – द न्यू यार्कर) से साभार 
_________________________________ 


 अपर्णा मनोज 
सभी प्रतिष्ठा प्राप्त पत्रिकाओं में कविताएँ और कहानियां प्रकाशित
साथ में अनुवाद कार्य
सम्प्रति :  हिंदी साहित्य में  शोध कार्य 
aparnashrey@gmail.com

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  1. शुक्रिया अपर्णा.शानदार कहानी का बढ़िया अनुवाद. मुझे इसके संवाद बहुत जानदार लगे जो कथा को प्रवाहमय और पठनीय बनाते हैं. पढ़ी लिखी मध्यमवर्गीय औरत की यह कहानी दुनियाभर की औरतों की नियति का आईना लगती है. अंत यादगार है -'मुहब्बत में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बदलता.'

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  2. It's great that not Munro alone but the short story as a genre got recognized...simple experiences in life weaved into great pieces...she listened to others' experiences, she said...she may not be another Chekhov, but her art shows so luminously how life is so enmeshed in breath of a story...congrats on sharing the piece...thanks my good friend Aparna for translating it so ably..

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  3. वाकई एलिस मुनरो की इस कहानी 'एमंडसैन' को पढ़ना एक नयी दुनिया और नयी तरह के मानवीय रिश्‍तों के बीच से गुजरना है - चाहे भारतीय समाज हो या कैनेडियाई समाज, स्‍त्री के पास आत्‍मनिर्णय के अवसर वाकई सभी जगह सीमित हैं, डॉक्‍टर फॉक्‍स उस नायिका (अध्‍यापिका) से अंतरंग रिश्‍ता बनाने और शादी के लिए गंतव्‍य स्‍थल तक ले जाने के बाद भी अगर इरादा बदल दे, तो नायिका के पास वहीं से अपने मूल स्‍थान की ओर लौट जाने के अतिरिक्‍त कोई विकल्‍प नही बचता। अर्थात् पुरुष चाहे हमारे जैसे अर्ध-विकसित समाज से ताल्‍लुक रखता हो या अमरीकी-कैनेडियन जैसे विकसित माने जाने वाले समाज से, उसका स्‍त्री के प्रति बरताव एक-सा ही दिखाई देता है। मुनरो की यह कहानी मन पर गहरे अवसाद का असर छोड़ जाती है। अपर्णा मनोज ने कथा की विषय-वस्‍तु, मिजाज और वहां के परिवेश के अनुरूप बेहद खूबसूरत शैली में इसका अनुवाद प्रस्‍तुत किया है। बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।

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  4. एलिस मुनरो को नोबल पुरस्कार - यह उन के अपने लिए नहीं वरन पुरे कनाडा के लिए गौरव की बात है । रही बात उनके उम्रदराज होने की तो यह तो उनकी कर्मठता और लग्न का परिचायक है । उन्होंने २० वर्ष की आयु में अपनी रसोई में काम करते करते लिखना शुरू किया और गत ६० वर्षों से यह क्रम चलता ही रहा । जीवन के झंझावातों से जूझते हुए जब उन्होंने कलम उठा कर रखने का निर्णय लिया तो यह पुरस्कार आ गया । अब तो और आगे लिखने और जीने का उत्साह जाग्रत हो गया । ईश्वर उन्हें दीर्घायु करे और वे इसी तरह साहित्य साधना करती रहें ।

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  5. कहानी का अनुवाद काफ़ी communicative और भाववाही रहा।
    पुरुष द्वारा अवहेलित स्त्री उजडती सी ही क्यों दिखे ? फिर
    चाहे वह भारतीय हो या कैनेडियन …विषाद नायिका के
    मन में ही नहीं कहानी पढने वालों के मन तक पहुंचे…फैले।
    कंट्रीसाइड का शांत सौंदर्य और स्थलीय वर्णन जीवंत है …
    जो स्थानीयता का एहसास कराए… जितने ठहराव से
    कहानी लिखी गयी है उतने ही ठहराव से वह पठनीय भी है…
    हिंदी अनुवाद के परिश्रम का भी एहसास कहानी पठन के
    दौरान होता रहे। ज़्यादातर कहानी के भाव, वर्णन इत्यादि
    अनुवाद में सिमट आए हैं । कहानी के मध्य से कुछ आगे
    अनुवाद की लय कुछ प्रलंबित सी लगी पर अंत में फिर उसे
    संभाल लिया गया…कहानी के शुरू-शुरू का अनुवाद तो उत्तम
    है। मैंने और मेरे मित्रों ने इस कहानी के साथ-साथ अनुवाद
    की भी सराहना की है । एलिस मुनरो की कहानी हमें पढ़ाने
    और हम तक पहुँचाने का तहे दिल से शुक्रिया अपर्णा मनोज
    जी का। वैसे इस शुक्रिया से बढ़कर ही है उनका काम !

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  6. Arpna ji apko bahut bahut dhanyavad anuvad ke liye aur Arun ji apko bhi dhanyavad acha translation ko prastut karne ke liye.
    Very nice and natural translation.



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  7. Bahut bahut sukriya.....Arpna ji.....itni mehnat ke liye. heart touching translation.

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