गणेश पाइन : सुशोभित सक्तावत





















चित्रकारों के चित्रकार के नाम से विख्यात ७६ वर्षीय गणेश पाइन का कल निधन हो गया. पांच दशकों की अपनी सृजनात्मक यात्रा में गणेश पाइन की कलाकृतियों विश्वभर में प्रदर्शित और समादृत हुई हैं. बंगाल की समृद्ध कला विरासत, मिथकों और कथा – कहानिओं के अनेक रंग और भाव उनके चित्रों में बिखरे पड़े हैं. युवा रचनाकार सुशोभित सक्तावत ने गणेश पाइन के होने- न- होने  को लगाव से देखा है.

मृत्‍यु और स्‍वप्‍न के पड़ोस में                                

सुशोभित सक्तावत


मृत्‍यु गणेश पाइन के लिए सुदूर का कोई दु:स्‍वप्‍न न था. वह बार-बार उनकी कृतियों में लौट आती थी : किसी कूट की तरह. किसी ऐसे कोड की तरह, जिसे हम अपने लिए बुकमार्क कर लेते हैं, और फिर उससे कभी मुक्‍त नहीं हो पाते. ऐसा नहीं है कि इससे हमारे भीतर प्रतिष्ठित प्राण का मृत्‍यु से द्वैत मिट जाता है, इससे केवल इतना ही होता है कि हमारे लिए उसकी दूरस्‍थता का मिथक समाप्‍त हो जाता है. वह हमारे पड़ोस में बस जाती है, जैसे एदम ज़गायेव्‍स्‍की की कविताओं के पड़ोस में संगीत है, थियो एंजेलोपोलस के सिनेमा के पड़ोस में समय.

मृत्‍यु से गणेश पाइन की यह राग-मैत्री बहुत पहले ही शुरू हो चुकी थी.


सन सैंतालीस में भारत-विभाजन के समय बंगाल में हुए सांप्रदायिक दंगों की वीभत्‍स छवियां गणेश पाइन के मन में हमेशा अमिट रहीं. तब वे महज नौ साल के थे और मृत्‍यु ने अपनी संपूर्ण दारुण क्रूरता के साथ अपने को उनके समक्ष उद्धाटित कर दिया था. नौ बरस की उम्र में मृत्‍यु ने पाइन के अबोध बचपन का अंत कर दिया था. इसका प्रतिकार उन्‍होंने मृत्‍यु को अपनी कृतियों में आबद्ध करके लिया. मृत्‍यु का इससे कड़ा प्रतिकार भला और क्‍या हो सकता है कि उसे एक अनवरत जीवन की कारा में आबद्ध कर दिया जाए : तूलिकाघातों की सींखचों के भीतर.



गणेश पाइन का एक जलरंग चित्र है. शायद सन सत्‍तावन का. एक स्‍वप्‍न की मृत्‍यु. एक घोड़ा, एक स्‍त्री, एक स्‍वप्‍न और फिर उस स्‍वप्‍न की मृत्‍यु. यह चित्र उनकी धुरी है. उनकी कला की ही नहीं, उनकी विश्‍व–दृष्टि की भी. वे जानते थे कि मृत्‍यु सबसे पहले स्‍वप्‍नों की हत्‍या करती है और इसीलिए उन्‍होंने अपनी कला में स्‍वप्‍न-भाषा की रक्षा का संकल्‍प लिया. इसी के साथ उनकी कला ने यथा और इतिकी देहरी लांघी और परे के सीमांतों में टहलने लगी. गाढ़े रंग, आविष्‍ट परिवेश, धूप-छांही मौसम, अंधेरों के चक्रव्‍यूह और उजालों के रेगिस्‍तान उनकी कला-रूढि़यां हैं. उन्‍होंने इनका सचेत चयन किया था और अपनी एक-एक कृति के साथ वे अपनी स्‍वप्‍न-भाषा के लिए अपनी कला का अभेद्य दुर्ग रचते गए : ज्‍यूं बैबेल की मीनार.
(बैबेल की मीनार आखिर क्‍या होती है? एक मीनारक़द निर्वात ही ना! मीनार जितनी ऊंची होती जाती है, उसके भीतर का निर्वात भी उतना ही ऊंचा होता जाता है, और एक दिन वह उसे निगल जाता है. बैबेल की मीनारें हमेशा अधूरी छूट जाती हैं. पूरी केवल वे इमारतें होती हैं, जिनके भीतर असबाब भरा होता है.)

साथ ही गणेश पाइन अपनी कला में पर्सनल ब्रूडिंग के सम्‍मत-रूपक को व्‍याप्ति प्रदान करते हैं. उनके चित्र देखें तो हम पाएंगे कि बूढ़ा मोची ध्‍यान में डूबा दार्शनिक लग रहा है, सफ़ाई मजदूर कहीं खोया हुआ-सा है, दीपशिखाएं कंपती फिर थिर हो जाती हैं, तीर खिंचे हैं, नावों के पाल खुले हैं, अस्थियां बिखरी हैं और परछाइयों की स्‍याही फैलती चली जाती है. गणेश पाइन के कला-लोक में सब कुछ ध्‍यानस्‍थ है. तंद्रिल है. सृष्टि के आद्य-दिवस की तरह, जब मृत्‍यु किसी सुदूर सांझ में सुस्‍ता रही थी.
कह सकते हैं : ताउम्र अपने चित्रों की ओट रचने वाले गणेश पाइन अब मृत्‍यु की ओट हो गए हैं. वे घर से निकलकर अपने पड़ोस में चले गए हैं. और उनके कैनवास पर जो पीला आलोक पिछली अधसदी से ठहरा हुआ था, अब धीरे-धीरे पिघलने लगा है.
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आज नई दुनिया में भी प्रकाशित     




युवा रचनाकार सुशोभित नई दुनिया के संपादकीय प्रभाग  से जुड़े है. 
सत्‍यजित राय के सिनेमा पर उनकी एक पुस्‍तक शीघ्र प्रकाश्‍य है.

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  1. धन्यवाद बहुत सारगभित् लेख। जलरंग वाला चित्र भी देते तो अच्छा रहता। बंगाल के बहाने आम आदमी के जीवन की त्रासदी, सपनों को बहुत मार्मिक ढग से सामने रखते हैं उनके चित्र।

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  2. गणेश पाइन के ये सुनहरे -जामुनी चित्र ...आँखें नम हैं .मृत्यु के रंग इस समय मेरे इर्द-गिर्द हैं ..शायद कई दिन लगें इससे बाहर आने में . कितने प्यार और जतन से सुशोभित ने लिखा है ..

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  3. गणेश पाईन के चित्रों में मौत की थीम पर बहुत सारगर्भित लेख.मृत्यु के बाद शेष स्मृतियों में उनके बनाये चित्र अमर रहेंगे.

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  4. बहुत अच्छा लेख ..संक्षिप्त और सारगर्भित..

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  5. His colours have a luminescence in them , a light bursting forth , which is so strangely three dimensional in a two dimension medium , and so much warmth , even death is not something scary but as if a warm embrace , a quiet solitude , a warm dark place , crumbling and intact all at the same time. (Plz forgive my english. Haven't still mastered the art of typing in hindi from my iPad.) sushobhit ne bahut taral. Likha hai

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  6. बहुत अच्छा लिखा सुशोभित ने. आखिरी पैसेज सबसे अच्छा लगा.

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  7. Achcha Aalekh Hai. Hriday Se Badhai.
    SuShobhit Aur Arun Dev Ji, Aap Dono Ka Aabhaar.
    saadar
    Kumar Anupam

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