केदारनाथ अग्रवाल - चुनी हुई कविताएं
चयन एवं संपादन - नरेन्द्र पुण्डरीक
अनामिका प्रकाशन इलाहाबाद (2011)
मूल्य-375
मैंने अपने टूटेपन को कविता की ममता से जोड़ा : केदारनाथ अग्रवाल
यह केदार जी का शताब्दी वर्ष है. केदार के चिंतन को आज के संदर्भ में कैसे समझा जाए, उसके भीतर ऐसे सूत्र कहां से तलाशे जाए कि केदार आज के लिए ज्यादा प्रासंगिक हो जाए या आज के समय के सरोकारों से केदार की कविता गहरे से संवाद कर सके. वह सामाजिक विषमता हो या समाज की अन्या अन्य समस्या हो केदार की कविता बच्चे द्वारा फेंका गया वह कंकड है जो अनंत काल को कंपा देता है. यह पुस्तक केदार के साथ लम्बे समय तक जुड़े रहे, वर्तमान में केदार शोध पीठ के सचिव और कवि नरेन्द्र पुण्डरीक द्वारा संपादित है.
इसमें केदार की वे कविताएं ली है जिनसे केदार की समग्र दृष्टि को समझने में आसानी रहे. तकरीबन पच्चीस वर्ष पहले रामविलास जी ने केदार जी पर एक लम्बी भूमिका के साथ पुस्तक का संपादन किया था. वह पुस्तक केदारजी को समझने के लिए बहुत ही उपयोगी है. लेकिन जैसा कि रामविलास जी की अपनी दृष्टि है उसके कारण उसमें केदार की राजनीतिक कविताएं ही केदार की दृष्टि का प्रतिनिधित्व करती है. इस पुस्तक में यह देखने का प्रयास किया है कि केदार की समग्रता कहां है. वे प्रकृति प्रेम जीवन संघर्ष ,जीवन के राग के रचनाकार है. वे निरंतरता में परिवर्तन के कवि है. वे संक्रमण के कवि है.वे अपने समय में रुपान्तरण के कवि है. बसंत के कवि है. चुनौती देनेवाले चुनौती लेने वाले कवि है. पुण्डरीक जी ने संपादन में किसी तरह की काल क्रमता नहीं बनायी, उन्होंने केदार की प्रतिनिधि कविताएं ली हैं.
केदार की कविता बंसती हवा जीवन के राग की कविता है, मनुष्य के स्वच्छंद विचरण की कविता है, मनुष्य और प्रकृति के संगीत की कविता है. केदार की इस कविता में मनुष्य की प्रकृति के साथ जो स्वच्छन्द कल्पना है वह जीवन का संगीत है. वहां थाप है जिसका राग प्रकृति का राग है मनुष्य का राग है. वहां कुंठा नहीं हैं. मांझी का संगीत है. केदार का काव्य राग जीवन की संघर्षधर्मिता से पैदा हुआ मानव मुक्ति का राग है.
केदार की कविता बंसती हवा जीवन के राग की कविता है, मनुष्य के स्वच्छंद विचरण की कविता है, मनुष्य और प्रकृति के संगीत की कविता है. केदार की इस कविता में मनुष्य की प्रकृति के साथ जो स्वच्छन्द कल्पना है वह जीवन का संगीत है. वहां थाप है जिसका राग प्रकृति का राग है मनुष्य का राग है. वहां कुंठा नहीं हैं. मांझी का संगीत है. केदार का काव्य राग जीवन की संघर्षधर्मिता से पैदा हुआ मानव मुक्ति का राग है.
कविता की यह पुस्तक केदार के कई पक्षों को एक साथ अभिव्यक्त करती है. यहां केदार अनास्था पर लिखे आस्था के शिलालेख है. वे मृत्यु पर जीवन की जय की घोषणा करते है. वे किसी भी तरह से अपने में सिमटते नहीं. अपने को बाहर के समाज के साथ खड़ा किये हुए हैं. कवि कहता है-
मार हथोड़ा
कर कर चोट
लाल हुए काले लोहे को
लाल हुए काले लोहे को
जैसा चाहे वैसा मोड़
मार हथोड़ा
कर कर चोट
दुनिया की जाती ताकत हो
जल्दी छवि से नाता जोड़!
अपनी कमजोर छवि से नाता तोड़कर ही यह वर्ग अपनी ताकत का अहसास करा सकता है दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ तुम्हारे पास पाने के लिए सारा जहान है और खोने के लिए कुछ नहीं है. आज अन्ना हजारे के सड़क पर उतरने पर जो जनता सड़को पर आयी है वह जनता की ही ताकत है. केदार उसी जनता को अपनी ताकत का अहसास करा रहे हैं जो अपने पर सबसे ज्यादा भरोसा करती है.केदार की कविता के कई स्वर हैं. वहां राजनीतिक चेतना की प्रखरता हो या फिर प्रकृति के झंझावात में मानव का झंझावात हो.
मुझे न मारो
मान-पान से
माल्यार्पण से
यशोज्ञान से
मिट्टी के घर से
निकाल कर
धरती से ऊपर उछाल कर.
केदार पांव दुखानेवाले हैं न पांव पुजानेवाले. ऐसे में केदार को यह सब जिसका प्रचलन आजकल बहुत ज्यादा हो गया है. वह सम्मान के नाम पर हो या फिर किसी और तरह से,केदार को यह सब मंजूर नहीं है. वे अपनी धरती पर रहे हैं. वे कविता में ही नहीं जीवन में भी उतने ही प्रगतिशील है. यही वजह है कि केदार की कविता में तप की गहरी आंच है.
दुख ने मुझको
जब-जब तोड़ा,
मैंने
अपने टूटेपन को
अपने टूटेपन को
कविता की ममता से जोड़ा
जहां गिरा मैं
कविता ने मुझे उठाया
हम दोनों ने
वहां प्रात का सूर्य उगाया.
दुख का कवि को तोड़ना और कवि का गिरना और कविता का उसे उठाना, यह मनुष्य के नैतिक पतन की कथा है. जिसके बारे में आचार्य शुक्ल कह गये कि मनुष्य को किसी की जरुरत हो या न हो पर कविता की जरुरत हमेशा रहेगी. जिससे कि वह मनुष्य बना रहे. यहां कवि का निहितार्थ वही है. कवि वहीं से गिरने और कविता द्वारा उठाना और वह भी प्रात का सूर्य. मनुष्य का सौंदर्यबोध और उसके भीतर का आभाबोध!
लिपट गयी जो धूल पाँव से
वह गोरी है इसी गाँव की
जिसे उठाया नहीं किसी ने
इस कुंठा से.
इस संकलन में संपादक ने केदार की कविता को कई खण्डों में विभाजित किया है. प्रेम कविताएं नदी एक नौजवान ढीठ लड़की है शीर्षक के अंतर्गत है. यह तेज धार का कर्मठ पानी है, जिसमें प्रतिवाद है. अज्ञेय पानी की गति को कामुकता के साथ जोड़ते हैं, केदार के यहां पानी अपने गहरे निहितार्थ में प्रेम की गहराई को व्यक्त करता है. वहां उदासी है तो उसका सम्मान भी है. केदार की कविता में यह नैतिकताबोध बहुत गहरे पैठा है.
केदार की कविता में जनता के प्रति गहरा लगाव है. जनता के पुछने पर यह कवि हकलाता नहीं है यह साफ कहता कि मैं जन कवि हूं. आज के समय में जितनी समस्याएं सामने आ रही है वे इसी हकलाहट के कारण है. केदार इसको अस्वीकार करते हैं और इसी कारण केदार आपाताकाल का विरोध करते हैं. केदार अपने भीतर एक आलोचक को सदैव जीवित रखते हैं. यह कवि हथौड़े का गीत गाता है कटाई का गीत गाता है. बुंदेलखण्ड के आदमी का गीत गाता है जिसे आल्हा सुनकर सोने के अलावा कुछ नहीं दिखता जबकि वह हट्टा कट्टा है. वही ऐसी विषमता है कि पैतृक संपति के नाम पर बाप से सौगुनी भूख मिलती है. वह अपने पेट की आग के लिए संघर्ष करे या वह आजादी का जश्न मनाये जिसके बारे में उसको कुछ खबर ही नहीं है. उसे क्या मतलब है कि लंदन जाकर कौन आजादी ला रहा है या अमरिका से डालर आ रहा है. उसे अपने पेट की चिंता है. वह परती जमीन जिसका कल तक कोई दाम नहीं था पर वही जमीन आज करोड़ो की हो चली है, उससे उसको क्या मिलने वाला है. वह तो वहीं पर है. बाजार के लुटेरे उसे लूट रहे हैं और वह कुछ नहीं कर सकता. उसको अपनी जमीन से ही बेदखल कर रही है उसी की लोकतांत्रिक सरकार.
हे मेरी तुम में पार्वती का साहचर्य है जिसको पाकर कवि अपने को जरा मरण से परे कर लेता है. पार्वती की आत्मगंध केदार के बुढापे की बहुत बड़ी ताकत बन जाती है. केदार कहते हैं
हे मेरी तुम में पार्वती का साहचर्य है जिसको पाकर कवि अपने को जरा मरण से परे कर लेता है. पार्वती की आत्मगंध केदार के बुढापे की बहुत बड़ी ताकत बन जाती है. केदार कहते हैं
हे मेरी तुम!
सुख का मुख तो
यही तुम्हारा मुख है
जिसको मैने
इस दुनिया के दुख-दर्पण में
अपने सिर पर मौन बांध कर देखा
और यह देख कर मुग्ध हुआ;
यह क्यों आज उदास है?
हाथ मनुष्य के श्रम को अभिव्यक्त करते हैं. केदार कहते हैं कि वे हाथ जो कुछ न कर पाये वे हाथ टूट जाये.
हाथ जो
चटृान को
तोड़े नहीं
वह टूट जाये
लौह को
मोडे़ नहीं
सौ तार को
जोड़े नहीं
वह टूट जाये!
जो हाथ कुछ नहीं कर सकते उनका टूटना ही श्रेयकर है. सवेरा होते ही जो हाथ कमल की तरह खिल उठते हैं यदि उनमें श्रम का ताप नहीं तो वे किस काम के हैं? जिंदगी को वही गढ़ते हैं जो शिलाएं तोड़ते हैं. केदार के यहां मनुष्य के श्रम का सौंदर्य है. वही समाज की जिंदगी को मोड़ता है.
कालुलाल कुलमी
१५ जुलाई,१९८३,उदयपुर
१५ जुलाई,१९८३,उदयपुर
अनेक पत्र – पत्रिकाओं में लेख आदि प्रकाशित
शोध छात्र
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा.
ई पता : paati.kalu@gmail.com
समालोचन में breathing space है .. students और सभी पाठकों के लिए ..
जवाब देंहटाएंlekhak aur arun ko badhai !
केदारनाथ अग्रवाल की कवितायेँ बेजोड हैं और कालुलाल कुलमी का सार्थक आलेख...आभार अरुण जी...
जवाब देंहटाएंजिंदगी को वही गढ़ते हैं जो शिलाएं तोड़ते हैं...........सुन्दर सर ...दोनों """"K""" (केदार नाथ जी कि कवितायें और कालूलाल जी के सार्थक )लेख ने सुन्दर आलेख बना दिया और आप ने इस को शेयर किया उस से हम भी उन के शब्दों की सुन्दर अभिव्यक्ति तक पहुंचे उसका धन्यवाद अरुण जी NIRMAL pANERI
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा पढकर,
जवाब देंहटाएंकेदार ज़मीन की ऊंचाइयां नापने वालों में से हैं.
"मुझे न मारो
मान-पान से
माल्यार्पण से
यशोज्ञान से
मिट्टी के घर से
निकाल कर
धरती से ऊपर उछाल कर."
इन पंक्तियों को पढकर, बिनायक व छत्तीसगढ़ हरे हो उठते हैं.
इस समीक्षात्मक रचना को पढवाने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं---------
देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।
कालूलाल जी की केदार जी के ऊपर अलख बहुत सार्थक और बेहतर है,प्रगतिशील कवियों के त्रयी में सबसे कम चर्चा केदार जी की हुई,हालाँकि उनकी कविताएं प्रगतिशीलता के साथ ही व्यक्तिक प्रेमको जिस तरह से संजोती हैं वो अप्रतिम हैं,मुझे केदार की कविताएं ,खास कर प्रेम की ,वह भी पत्नी-प्रेम की बहुत आकर्षित करती हैं.हिन्दी में प्रेम कविताएं आम तौर पर पत्नियों को लेकर काम लिखी जाती हैं,मानो पत्नी से प्रेम की संभावना ही नहीं होती,या अगर होती भी हो तो इस लायक नहीं होती की वह कविता का विषय बन पाए,इस भ्रम को केदार की कविता गहरे से तोडती है ,मेरे लिए वह प्रेम के बहुत बड़े कवि हैं,वैसे ही जैसे नागार्जुन राजनीतिक कवि से ज्यादा बड़े और असरदार कवि प्रकृति के हैं ,बहुत अच्छा कालूलाल जी आपका आलेख.
जवाब देंहटाएं''दुख ने मुझको
जवाब देंहटाएंजब-जब तोड़ा,
मैंने
अपने टूटेपन को
कविता की ममता से जोड़ा
जहां गिरा मैं
कविता ने मुझे उठाया''
..................... आभार आपका!
kedarji ko padna jiwan ke anuvwo se gujrna hai. itni sundar kavitayo ke liye arun aapko shukriya aur nardndra ji ko vi
जवाब देंहटाएंकेदार जी पर लिखा हुआ एक सुन्दर लेख और कवितायेँ ..आभार.
जवाब देंहटाएंकेदार जी का स्वाभाव उनकी कवितओं में सहज आवाजाही करता है ...उनका कवि उनसे अद्वैत है
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