वैसे तो मनुष्य सामाजिक प्राणी है, पर कभी-कभी उसे एकांत का प्राणी भी
बनना पड़ता है. इसमें वह चाहे तो ख़ुद से मिल सकता है. राकेश श्रीमाल की कविताएँ इसी
एकांत से उपजी हैं और एकांत को ही अपना विषय बनाती हैं. वैसे भी राकेश मद्धिम स्वर के कवि हैं, धीरे-धीरे राग में घुलते हुए
चाहे वह विरह का जल ही क्यों न हो. उनकी कविताओं में उद्दात्त विस्तृत है, और कला
का महीन संतुलन उसे साधता है.
उनकी कुछ नई कविताएँ पढ़ें.
राकेश
श्रीमाल की कविताएँ
एक
____
कोई
तारीख
कोई
महीना
कोई
मौसम
तय
नहीं किया जा सकता
हमारे
मिलने के लिए
हम
आने वाले इतिहास में मिलेंगे
एकांत
में रहते हुए
दो
______
मैं
तुम्हें
उतना
ही जानूंगा
जितना
मेरा प्रेम जान पाएगा
हो
सकता है
उससे
अन्य भी कुछ हो
वह
मेरे जीवन का एकांत नहीं
तीन
____
कौन
कौन से होंगे शब्द
जो
मुझमें शामिल हो जाएंगे
मुझ
की तरह
तुम्हारी
तरह
कैसे
फर्क कर पाओगी तुम
यह
मैं हूं
या
मेरा एकांत
चार
______
सब
कुछ इतना ही सरल हो
जैसे
कल रहा
जीवन
से युद्ध भी
लोगों
की साज़िश भी
एक
ही टिफिन में सुकून भी
हम
यूं ही रहे
इस
जीवन में साथ
परछाइयों
में दृश्य देखते हुए
उम्र
का जोड़ घटाव करते हुए
सब
कुछ इतना ही सरल हो
जैसा
यह एकांत चाह रहा है
पॉच
_____
फिर
भी
इतनी
दूर नहीं रहूंगा मैं
कि
तुम्हारा हाथ नहीं पकड़ सकूं
तुम्हें
थोड़ा परेशान न कर पाऊं
तुम्हारे
पास बैठ
बेमतलब
बातें ना कर पाऊं
जितना
कि
यह
एकांत सोच रहा है
छह
_____
कोई
एक मकान है अदृश्य
जिसमें
हम दोनों रहते हैं
एक
दूसरे के साथ
एक
दूसरे से छिपे हुए
मैं
सुबह कुछ बोलता हूं
तुम
लंबी प्रतीक्षा के बाद
जवाब
देती हो मुझे
अर्द्धरात्रि
के स्वप्न में
यह
हमारा ही एकांत है
जिसके
भीतर फैले हुए हैं
घने
जंगल, पर्वतों की श्रृंखला
समंदर
की तेज लहरों में
उबड
खाबड़ बहता पूरा चांद
यह
हमारा ही एकांत है
हमारी
दूरी जितना बड़ा
हम
मिल नहीं पा रहे हैं
सिवाए
इस सुख के
हम
रह रहे हैं
अपने
अपने एकांत में
सात
____
मन
में बिसरी है
छोटी
सी इच्छा
कितना
मिलेगा साथ
इस
जीवन में
मुझे
तुम्हारा
आओ
जी
लें
थोड़ा
सा समय
कोई
एक मौसम
लम्हों
की लंबी लता
इसी
एकांत में
शायद
आज
शायद
कल
आठ
____
मैं
अपने
शब्दों से
बहुत
छोटा हूं
अपने
मौन से
बहुत
बड़ा
कोई
है
जो
देखता है मुझे
बिना
मुझे देखे
कोई
है
जो
सोचता है मुझे
बिना
मुझे बताए
मैं
अपना
नहीं
जी
रहा हूं केवल अपना एकांत
तुम
जैसा बन जाने के लिए
नौ
_____
इस
बार तुम आना
तो
मिलने देना
मुझे
मुझ से ही
कितना
अजनबी हो गया हूं मैं
खुद
से ही
धीरे
धीरे ही बताना मुझे
धीरे
धीरे ही पहचानूंगा मैं
अपने
आप को
इस
तरह मिलाना
मुझे
मुझसे ही
कि
भूल ना जाऊं फिर
रहना
तुम साथ ही
हमेशा
मेरे
ही एकांत से
मुझे
मिलाते हुए
दस
______
गुमसुम
हुए शब्द हो जाते हैं उत्साहित
समय
में भी भर जाता है स्फुरण
चुपके
से खुलती रहती है एकांत की पलक
विदा
की आँख बन्द होने तक
बहुत
कुछ कहा जाता है
अपने
ही मन में
मिला
जाता है अपने से भी
इन्हीं
कुछ पलो में
कोई
नहीं देख पाता
एकांत
का जन्म
_______________________________
राकेश श्रीमाल
(१९६३, मध्य-प्रदेश)
tanabana2015@gmail.com
tanabana2015@gmail.com
हर एक कविता एकांत का एक एक युग है जिसमें प्रेम की तीव्र अनुभूतियों को सहज महसूस किया जा सकता है। गहन भावों को लिए सुंदर कविताओं के लिए राकेश जी को साधुवाद 🙏
जवाब देंहटाएंसामाजिक कोलाहल से विरत एकांत के तल की विस्मित व विह्वल कर देने वाली सरल कविताएं।
जवाब देंहटाएंयह एक ही कविता है, एकांत की विभिन्न दिशाओं से आती रोशनियों से बनी कई परछाइयों में बिखरती हुई। क्रम तीन और नौ अधिक सघन हैं। इनमें राकेश अपनी परिचित व्यग्रता को और अधिक सांद्र करते हैं।
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