क्या आपको ‘राष्ट्रीय शीतल पेय’ ‘डबल सेवेन’ की कभी याद आती है, वही पेय जिसे जनता पार्टी की सरकार ने १९७७ में कोका-कोला
के विकल्प में विकसित और प्रचारित किया था. ‘नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं
पुस्तकालय’ के शोधार्थी सौरव कुमार राय ने इस पेय और बाद में इसके पराभव पर यह
दिलचस्प टिप्पणी लिखी है. देखें
डबल सेवेन: ‘अच्छे दिनों’ का कोल्ड ड्रिंक
सौरव कुमार राय
आधुनिक भारतीय इतिहास में कुछ वर्ष
सिर्फ कैलंडर वर्ष न रह कर किसी भव्य परिघटना की अभिव्यक्ति बन चुके हैं. उदाहरण स्वरूप
'सन सत्तावन' का उल्लेख आते ही 1857 का महान विद्रोह एवं उस से जुड़ी घटनाएं सहज ही जेहन
में आ जाते हैं. कुछ ऐसा ही 'सन बयालीस' के साथ है जो हमें 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का स्मरण कराता है. इसी क्रम
में आज़ाद भारत का कोई एक वर्ष जो हमारी जेहन में गहरा बैठा हुआ है वह है 'सन सतहत्तर'. यह वही वर्ष है जब भारत में प्रथम
ग़ैर-काँग्रेसी सरकार केंद्र की सत्ता में स्थापित हुई. आपात काल के गर्भ से जन्मी 'जनता सरकार' भारतीय लोकतंत्र में एक मील का पत्थर
है. परस्पर विरोधी विचारधारा के प्रवर्तक दलों की इस साझा सरकार से भारतीय जनमानस
को काफी उम्मीदें थीं. साथ ही इस सरकार को जयप्रकाश नारायण का वरदहस्त भी प्राप्त
था जिस से आम जन के प्रति इसकी नैतिक ज़िम्मेदारी और भी बढ़ गयी थी. ऐसे में रोटी
एवं रोजगार जनता सरकार के एजेंडे में सर्वोपरि थे.
यदि हम जनता सरकार के कैबिनेट की
संरचना देखें तो इसमें एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता शामिल थे. चाहे वो सर्वप्रिय अटल
बिहारी वाजपेयी हों या फिर किसान नेता चौधरी चरण सिंह या फिर एच. एम. पटेल, लाल कृष्ण आडवाणी और प्रकाश सिंह बादल सरीखे लोकप्रिय
नेता. जनता सरकार में उद्योग मंत्री का पदभार उस समय के कद्दावर ट्रेड यूनियन नेता
जॉर्ज फर्नांडिस ने संभाला जो आगे चलकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में
रक्षा मंत्री भी बने. जॉर्ज फर्नांडिस अपने समाजवादी विचारधारा के लिए सुप्रसिद्ध
थे. उद्योग मंत्री के तौर पर उन्होंने विदेशी मुद्रा विनियमन (फेरा) अधिनियम,
1973 को कठोरता से लागू करना चाहा. इस अधिनियम का मूल उद्देश्य
विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में व्यापार के संचालन को नियंत्रित करना था. यह बात
भारत में काम कर रही कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों
जैसे कि आई.बी.एम., कोका कोला, कोडेक
एवं मोबिल को काफी नागवार लगी.
यह कहा जाता है कि जॉर्ज फर्नांडिस ने कोका कोला पर अपने 'गुप्त नुस्ख़े' को सहायक भारतीय कंपनियों के साथ साझा करने के लिए भी दबाव बनाया. इस के प्रतिरोध में कोका कोला ने जून 1977 में भारतीय बाजार से अपने हाथ वापस खींच लिए. परिणामतः, इसमें कार्यरत हज़ारों कर्मचारियों पर बेरोजगारी का खतरा मंडराने लगा. ऐसे में जनता सरकार ने कोका कोला के स्थान पर एक वैकल्पिक पेय पदार्थ की तलाश शुरू कर दी.
यह कहा जाता है कि जॉर्ज फर्नांडिस ने कोका कोला पर अपने 'गुप्त नुस्ख़े' को सहायक भारतीय कंपनियों के साथ साझा करने के लिए भी दबाव बनाया. इस के प्रतिरोध में कोका कोला ने जून 1977 में भारतीय बाजार से अपने हाथ वापस खींच लिए. परिणामतः, इसमें कार्यरत हज़ारों कर्मचारियों पर बेरोजगारी का खतरा मंडराने लगा. ऐसे में जनता सरकार ने कोका कोला के स्थान पर एक वैकल्पिक पेय पदार्थ की तलाश शुरू कर दी.
इस वैकल्पिक पेय पदार्थ का फॉर्मूला
विकसित करने की ज़िम्मेदारी केंद्रीय खाद्य तकनीक अनुसन्धान संस्थान (मैसूर) को दी
गयी. संस्थान के समक्ष सरकार द्वारा दो शर्तें राखी गयीं: पहली यह कि संभावित
कोल्ड ड्रिंक का स्वाद कोका कोला से मिलता-जुलता होना चाहिए; और दूसरी यह कि इस का स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
कम-से-कम होना चाहिए. तदोपरान्त, संस्थान द्वारा विकसित
फॉर्मूला के आधार पर इस वैकल्पिक पेय पदार्थ के वृहत् उत्पादन का उत्तरदायित्व
सरकारी कंपनी मॉडर्न फूड इंडस्ट्री को सौंपा गया. इस तरह 1977 में कोका कोला के
स्थान पर एक सरकारी कोला का उत्पादन शुरू हुआ जिसका नाम 'डबल
सेवेन' अथवा 'सतहत्तर' रखा गया. इसका यह नाम तत्कालीन सांसद एच.एम. कामथ ने 'सन सतहत्तर' के स्मारिका स्वरुप सुझाया था जो सभी को
काफी पसंद आया. यदि हम समाचार पत्रों में इस शीतल पेय का विज्ञापन देखें तो यह
स्पष्ट तौर पर सन सतहत्तर के 'अच्छे दिनों' का कीर्तिगान जैसा प्रतीत होता है. जनता सरकार का यह मानना था कि सन
सतहत्तर की परिघटनाएं जिसमें आपात काल का पराभव एवं जनता दल की विजय महत्वपूर्ण थी
भारतीय इतिहास के अच्छे दिनों में से एक है. वस्तुतः, सन
सतहत्तर एवं आपात काल की गूँज किसी-न-किसी रूप में जनता सरकार के संपूर्ण कार्यकाल
में देखी जा सकती है.

इन सब के बावजूद, डबल सेवेन आमजन को लुभाने में असफल रहा. लोगों का यह
मानना था कि डबल सेवेन में कोका कोला वाली बात नहीं है. इसी बीच कोका कोला ने
भारतीय बाजार के अपने नुकसान की क्षतिपूर्ति हेतु पाकिस्तानी बाजार को साधना शुरू
कर दिया. ऐसे में तत्कालीन समाचार पत्रों में पाकिस्तान से कोका कोला के सीमा पार
तस्करी की भी रिपोर्ट मिलती है. 1980 में जनता सरकार के गिरने के साथ ही डबल सेवेन
के समक्ष गंभीर संकट उत्पन्न होने लगा. नव निर्वाचित प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के
लिए यह शीतल पेय सन सतहत्तर में उनकी हार का संस्मरणात्मक प्रतीक था. अतः उन्होंने
इसके उत्पादन को ज़ारी रखने के लिए किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता देने से साफ़
इंकार कर दिया. अंततः, मॉडर्न फूड इंडस्ट्री को 'सन सतहत्तर' के इस विचित्र प्रतीक का उत्पादन बंद
करना पड़ा.
दूसरी तरफ, कोका कोला द्वारा भारतीय बाजार में खाली किये गए
स्थान को भरने हेतु डबल सेवेन के तर्ज़ पर ही अनेक निजी कंपनियों ने भी इस से मिलते
जुलते स्वाद वाले कोल्ड ड्रिंक का उत्पादन शुरू किया. इन में से कुछ प्रमुख थे
कैम्पा कोला, थम्स अप, डबल कोला,
ड्यूक, मैकडॉवेल क्रश और थ्रिल. 1980 का दशक
इन शीतल पेयों के नाम रहा. हालांकि 1989 में भारतीय बाजार में पेप्सी के आगमन एवं
1993 में कोका कोला की वापसी के साथ ही आगामी कुछ वर्षों में भारतीय कोल्ड ड्रिंक
बाज़ार का संपूर्ण गणित इन दो कंपनियों तक सिमट कर रह गया.
___________
वरिष्ठ
शोध सहायक
नेहरू
स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय
नयी दिल्ली
नयी दिल्ली
skrai.india@gmail.com/
मोबाइल: 9717659097
मोबाइल: 9717659097
बहुत ही मज़ेदार लेख । पड़ कर बहुत मज़ा आया। लेखक को बधाई ।
जवाब देंहटाएंशानदार,दिलचस्प ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा लिखा है बधाई
जवाब देंहटाएंमजेदार जानकारी ��
जवाब देंहटाएंदिलचस्प लेख
जवाब देंहटाएंबहुत दिलचस्प! लेकिन, ऐसा लगता है कि एक लंबे लेख को जल्दबाज़ी में कतर दिया गया है। इसे सार-संक्षेपण या संक्षिप्तीकरण भी नहीं कहा जा सकता। मसलन, डबल सेवेन के संदर्भ में राष्ट्रवाद और व्यावसायिक शक्तियों (राष्ट्रीय आंदोलन सहित) के जिस अनन्य संबंध की ओर इशारा किया गया है, उस पर थोड़ा और लिखा जाना चाहिए था।
जवाब देंहटाएंअपने मौजूदा रूप में अभी यह एक टीज़र है। लेखक से कौल लीजिये कि जल्दी फ़िल्म भी दिखाएंगे !!
एक टिप्पणी भेजें
आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.