मंगलाचार : अमृत रंजन



हिंदी कविता की दुनिया में बिलकुल नयी पीढ़ी दस्तक दे रही है. कुछ दिनों पहले आपने समालोचन पर ही अस्मिता पाठक की कविताएँ उत्साह से पढ़ी थीं. आज १५ वर्षीय अमृत रंजन की कविताएँ आपके लिए.
यह देखना कि इन कविताओं में भय की एक लगातार बढ़ती हुई परिधि है, जो दरअसल वयस्कों द्वारा निर्मित इस संसार पर प्रश्न भी है. विचलित करता है.  

   

अमृत  रंजन  की  कविताएँ                             







बेचैन

कितना और बाक़ी है?
कितनी और देर तक इन
कीड़ों को मेरे जिस्म पर
खुला छोड़ दोगे?
चुभता है.

बदन को नोचने का मन करने लगा है,
लेकिन हाथ बँधे हुए हैं.

पूरे जंगल की आग
केवल मुट्ठी भर पानी से कैसे बुझाऊँ.

गिड़गिड़ा रहा हूँ,
रोक दो.
(2018)





अपवर्तन

रेगिस्तान में सूरज कैसे डूबता है?
क्या बालू में,

रौशनी नहीं घुटती?
(2018)





टूटे सात रंग

क्या आपने रंगीला आसमान देखा है?

मैंने देखा है
सात रंगों में बदल कर
आसमान में पानी की तरह फैलते हुए उसे

बहुत खुश नज़र आता है आसमान
लेकिन,
जैसा सब जानते हैं,

हर दुःख खुशी की चादर ओढ़े रहता है.
क्या ये रंग आसमान के आँसू हैं?
या केवल पानी है?
मैं नहीं जानता.

लेकिन यह जानता हूँ
कि आसमान दुःखी है.
ये सात रंग ख़ुशी के तो नहीं हो सकते.

ख़ुशी खुद में बँटती नहीं.
अगर ये ख़ुशी के रंग होते
तो आसमान इन्हें बाँटता नहीं.
(2016)





काग़ज़ का टुकड़ा

एक काग़ज़ के टुकड़े का,
इस ज़माने में,
माँ से ज़्यादा मोल हो गया है.
एक काग़ज़ के टुकड़े से
दुनिया मुट्ठी में आ सकती है.


एक काग़ज़ के टुकड़े से
लड़कियाँ ख़ुद को बेच देती हैं.
लड़के ख़रीद लेते हैं.
एक काग़ज़ के टुकड़े से
छत की छाँव मिलती है.


लेकिन जिसके पास काग़ज़
का टुकड़ा नहीं है
उसका क्या होता है?
रात बिन पेट गुजारनी पड़ती है.
आँसुओं को पानी की तरह
पीना पड़ता है.


छत के लिए तड़पना पड़ता है.
बिन एक काग़ज़ के टुकड़े के,
हम दुनिया में गूँगे होते हैं.

मगर आवाज़ दिल से आती है,
और याद रखो दिल को
ख़रीदा नहीं जा सकता.
(2014)






रात

कुछ समझ न आया
लड़खड़ाते हुए,
कदम रखा उस अँधेरी रात में.

डर लगना  
शुरू हो जाता है अँधेरे में

सितारों की हल्की सी रौशनी
हज़ारों ख़याल मन में.

लगता है मैंने
ग़ुस्ताख़ी कर दी
रात की इस चंचलता में फंस कर

अलग- अलग आवाज़ें 
हमें सावधान कर जातीं
कि
बेटा, आगे ख़तरा पल रहा है,
जाना मत.

पर यह हमें उधर जाने के लिए
और भी उत्साह से भर देता है.
क़दम से क़दम मिलाते हुए
आगे बढ़ते हैं हम

एक रौशनी हमारी आँखों
को अपनी रौशनी दे
हमें उठा देती हैं.

बिस्तर पर बैठे हुए
सोचते हैं.
इतना उजाला क्यों है भाई!
(2014)




 
नामुमकिन

जब समय का काँच टूटेगा,
तब सारा समय अलग हो जाएगा.

वक़्त का बँटवारा,
न जाने कैसे होगा
मुमकिन.
(2018)





अगर हम उसके बच्चे हैं

अगर हम उसके बच्चे हैं
तो वह हमें अमर क्यों नहीं बनाता
क्या वह अमर होने का फायदा
केवल ख़ुद लेना चाहता है?

अगर हम उसके बच्चे हैं
तो वह इस दुनिया में आकर
अनाथों के लिए माँ की ममता,
क्यों नहीं जता जाता है?

अगर हम उसके बच्चे हैं,
तो जिसे न किसी ने देखा
न किसी ने सुना है वह
अपने बच्चे को भूखा मरते हुए
कैसे देख पाता है ?

अगर हम उसके बच्चे हैं,
तो वह हम भाई-बहनों को,
एक-दूसरे का गला काट देने से
क्यों नहीं रोक पाता है?

अगर हम उसके बच्चे हैं
तो वह हमारे अपनों को
मौत से पहले क्यों मार देता है?

मै पूछता हूँ क्यों ?
ऐसे कोई अपने बच्चों को पालता है भला?
________________



अमृत रंजन की उम्र 15 साल है. लगभग पिछले चार साल से वह कवितायें एवं गद्य लिख रहे हैं. आजकल अमेरिका में अपने माता-पिता के साथ रहते हुए ग्यारहवीं कक्षा में अध्ययन कर रहे हैं और अपने पहले कविता संग्रह को तैयार कर रहे हैं. साथ ही, कहानी तथा अन्य गद्य विधाओं में लेखन कर रहे हैं. वे 'जानकी पुल'  के संपादक भी हैं. 

7/Post a Comment/Comments

आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.

  1. पुष्पा तिवारी19 सित॰ 2018, 1:34:00 pm

    एक किशोर ने कितनी दुनिया समझ ली है । उसकी कविताएँ बेचैन तो करती ही हैं पर आज के सारे मुख्य सरोकारों को समेटे हुए हैं । बहुत शानदार । अगर यह पता न हो कि कवि की क्या उम्र है तो कोई नहीं समझ पाएगा । परिपक्व कविताएँ हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह,इस पर याद आया कि हमारे यहाँ,साप्ताहिक गोष्ठी में एक बंगाली लड़का आया,जिसकी उम्र उस समय पंद्रह साल की ही थी,लेकिन उसने जो कविताएँ सुनाई वे उससे कफी आगे थीं,बाद में मैं तो अलग हो गया था,सालों बाद किसी से पूछा तो पता चला वह कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में आ गया था और पियक्कड़ हो गया था ॥
    इनकी कविताएँ पढ़ कर याद आया ॥

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्र के हिसाब से देखें तो ज़्यादातर कविताएँ अच्छी हैं। आगे और भी अच्छी कविताएँ लिखेंगे ऐसा लगता है।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्र के हिसाब से शब्द बरतने की समझ और विषय की सूझ चकित करती है. कविता का अनुभव फिर भी वक़्त माँगता है. ‘समालोचन’ को साधुवाद अमृत रंजन से मिलवाने के लिए. बहुत ख़ुशी हुई इन्हें पढ़कर ����

    जवाब देंहटाएं
  5. Wonderful, Amrut. Always heartening to see young fresh minds become poetic.

    जवाब देंहटाएं
  6. शानदार कविताएं। इस युवतर कवि से बड़ी उम्‍मीदें

    जवाब देंहटाएं
  7. Sudeep Sohni अमृत के मामले में एक चीज़ पिछले दो तीन साल से नोटिस की है मैंने कि उसे अपना पैरामीटर पता है। हर शब्द कहाँ से कैसी ध्वनि देगा ये आईडिया उसे बहुत कमाल बनाता है। और बाकी तो समय सब को अपना क्राफ्ट चमकाने के मौके देता ही है इसे भी देगा।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.