संगीता गुप्ता चित्रकार और कवयित्री हैं. उनके चित्रों की देश-विदेश
में ३० एकल और २०० से अधिक सामूहिक प्रदर्शनियाँ आयोजित हुईं हैं. कई कविता संग्रह
और हिंदी-अंग्रेजी में कुछ किताबें प्रकाशित हैं.
संगीता
गुप्ता की इधर की कविताओं में प्रेम का रंग और चढ़ा है और वह चटख, धूसर, मटमैला,
और फीके रंगों में तरह-तरह से सामने आता है. उनकी संवेदना कभी चित्र का रूप लेती
है और कभी शब्दों में ढल जाती है. चित्रों के साथ शब्दों का प्रयोग करने वाली वे
विरल चित्रकार हैं. कविता और पेंटिग का साहचर्य उनकी ‘मुसव्विर का ख्याल’ पुस्तक में बखूबी
देखा जा सकता है. उनकी कविताएँ उर्दू नज़्मों के नज़दीक बैठती हैं.
कुछ
पेंटिग और कविताएँ आपके लिये.
संगीता गुप्ता की कविताएँ
1)
हरसिंगार
इस उम्मीद में
रात भर
झरता है कि
किसी
सुबह जब तुम आओ तो
तुम्हारी
राहें महकती रहें
बेमौसम
भी बादल बरसते हैं कि
कभी तो
तुम्हें भिगा सकें
सूरज
उगता-डूबता है कि
आते-जाते तुम्हें देख लेगा
रात
तुम्हारे साथ सोने को
बहुत
तरसती है
चांद कब
से लोरियो का खज़ाना
समेटे
बैठा है कि
तुम आओ
तो तुम्हें थपक दे
मेरे
साथ पूरी कायनात को
तुम्हारा
इंतजार रहता है.
2)
ज़मीन
की तरह मैं भी
रोशनी
के सफर पर हूँ
ख्वाहिश
है
रोशनी
की रफ्तार से चलूं
और वक्त
थम जाये
ठहर जाए
जिस्म
से परे
रूह
निकल जाये
मुसलसल
जमीन की
तरह
मैं भी
रोशनी
के सफर पर हूँ.
3)
कल उम्मीदें
बोईं हैं
गमलों में
देखें कब
खिलती
हैं.
4)
मत दो वैभव
मत दो सफलता
मत दो यश
बस मेरे प्रभु
रहने दो मेरे साथ
मेरे प्रेम की
सामर्थ.
5)
तूफान
अक्सर
बिन बताये
ही आते हैं
उथल-पुथल मचा कर
लौट
जाते हैं
ज़िंदगी
ब-दस्तूर चलती है
फ़क़त
आप-आप नहीं रहते
वक़्त
बदला जाता है
कई दर्द
कई जख़्म
साथ हो
लेते हैं.
6)
फिर सावन आया
नीम, जामुन और नन्हे पौधे
सब भीग रहे
सावन सबके लिए आया
मीठी फुहारें सबको महका रहीं
तुम भी कहीं भीग रहे होगे
कुछ सावन में
कुछ यादों में
कुछ मेरे करीब होने के एहसास में
इन सब को भीगते देखना
अच्छा-सा लगता
मैं भी अरसे बाद
मुस्करा पड़ी हूं
देखो न
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मुख्य आयकर आयुक्त पद से सेवानिवृत्त
sangeetaguptaart@gmail.com
संगीता गुप्ता
25 मई, 1958,गोरखपुर
कवयित्री, चित्रकार एवं फिल्म निर्माता.
प्रकाशित कृतियाँ : वीव्ज़ ऑफ टाइम
(2013), विज़न एंड इल्यूमिनेशन (2009), लेखक का समय (2006), प्रतिनाद (2005), समुद्र से लौटती नदी (1999), इस पार उस पार (1996), नागफनी के जंगल (1991), अन्तस् से (1988). बेपरवाह रूह (2017), मुसव्विर का खयाल (2018 ) रोशनी
का सफ़र (2019) आदि
30 एकल एवं 200 से अधिक सामूहिक चित्रकला प्रदर्शनियाँ
आयोजित.
अनुवाद : 'इस पार उस पार’ बंगला में एवं 'प्रतिनाद’ अंग्रेजी, जर्मन और बंगला में अनूदित.
मुख्य आयकर आयुक्त पद से सेवानिवृत्त
sangeetaguptaart@gmail.com
शब्दों के साथ ये तमाम चित्र एक अलग ही वातावरण व अनुभूति रच रहें हैं..
जवाब देंहटाएंखुशनसीब है वह कूची व कलम भी,जो एक ही रचनाकार के सार्थक-सृजन होने का सौभाग्य पाते हैं..
पांचवीं कविता के इस चित्र केे धूसर-लाल रंगों ने शब्दों के संसार को अधिक स्पष्ट व सजीव कर दिया है।
संगीता जी को बहुत बधाई व शुभकामनाएं!��
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०६-१२-२०१९ ) को "पुलिस एनकाउंटर ?"(चर्चा अंक-३५४२) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
संगीता जी की कलाकृतियां और कवितायेँ प्रभाशाली हैं, शब्द संसार और रंगों का पॉलेट वृहत है ! ये जान कर बहुत ही अच्छा लगा कि जीवन पर्यन्त हाई परेशेरड पद पर रहने के बावजूद विभिन्न कला विधाओं में सदा एक्सपेरिमेंट करतीं रहीं। उनका एस्थेटिक सेंस बहुत सधा हुआ है, और ये उनकी अमूर्त कलाकृतियों और कविताओं में प्रगट होता है! समालोचन को और संगीता जी को बधाई !
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