तुम बाक़ी जानवरों के खिलौने क्यों नहीं बनाते : इवॉन्न वेरा : अनुवाद - नरेश गोस्वामी












इवॉन्‍न वेरा (Yvonne Vera) अफ्रीका के कुछ महत्वपूर्ण कथाकारों मे से एक मानी जाती हैं.  उनका पहला संग्रह ‘Why Don't You Carve Other Animals’, 1992 में प्रकाशित हुआ था. इस शीर्षक कहानी का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद कर रहें हैं कथाकार नरेश गोस्वामी. कहानी आकार मे छोटी है और सांकेतिक भी.   





इवॉन्‍न वेरा के बारे में लिखते हुए जी कड़ा रखना पड़ता है. जिम्‍बॉब्‍वे में जन्‍मी इवॉन्‍न वेरा (1964-2005) को इस क़ायनात में कुल उनतालीस साल की जि़ंदगी मिली. 1992 में जब उनका पहला कहानी-संग्रहवाय डोंट यू कार्व अदर एनीमल्‍स आया तो वे टोरंटो से अपनी मास्‍टर डिग्री पूरी कर रही थीं. उनका पहला उपन्‍यास नीहांडा 1995 में छप कर आया. इसके बाद वह अपने वतन लौट आई. उन्‍होंने अपनी बाद की रचनाएंअंडर द टंग (1996), बटरफ़्लाइ बर्निंग (1998) तथा द स्‍टोन वर्जिंस  (2002) वहीं रहते हुए पूरी की. ईवॉन ने 2004 में फिर टोरंटो का रुख़ किया और 2005 में कहीं भी न लौटने के लिए चली गई.

मितकथन और संक्षिप्ति उनकी कहानियों का विशिष्‍ट गुण है. वह लिखती अभिधा में है, लेकिन पाठक को पता ही नहीं चलता कि सतह पर चलती कहानी कब विकल सांकेतिकता में दाखिल हो जाती है.
नरेश गोस्वामी 





इवॉन्‍न वेरा 
तुम बाक़ी जानवरों के खिलौने क्‍यों नहीं बनाते              
अनुवाद नरेश गोस्वामी  







ह अस्‍पताल के गेट के बाहर बैठा लकड़ी के खिलौने बनाता है. इस अस्‍पताल में केवल अफ़्रीकी लोग ही आते हैं.  तैयार हो चुके‍ खिलौने उसके आसपास ज़मीन पर बिछे पुराने अख़बारों पर रखे रहते हैं. उसकी दाईं तरफ़ एक पेंटर बैठा होता है. वह अपनी तैयार कलाकृतियों को अस्‍पताल की बाड़ से सटा कर रखता जाता है. ठसाठस शहर में कहीं कारों व आती-जाती भीड़ की ऊंची आवाज़ें उमड़ती रहती हैं तो कहीं सड़क पर चलते ट्रैफिक को चेतावनी देती नारंगी रोशनी वाली एम्‍बुलेंस इमरजेंसी युनिट की ओर दौड़ती रहती हैं.  

लकड़ी तराश कर खिलौने बनाने वाले यह शिल्‍पी जब हाथी और ज़रा सी टेढ़ी गर्दन वाले जिराफ़ की आकृति गढ़ता है तो जंगल को शहर में ले आता है.  उसके जानवर अख़बार के रंगीन पन्‍नों पर चलते हैं, लेकिन उसे इसका दुख है कि वे निर्जीव होते हैं.  कभी-कभी जब वह गुस्‍से में होता है तो अपने इन जानवरों को बड़ी बेदर्दी से गत्‍ते के बक्‍से में डाल देता है.  तब उसे अस्‍पताल के गेट से गुज़रते अस्‍त-व्‍यस्‍त ट्रैफिक के बरअक्‍स जानवरों की इन निर्जीव आकृतियों को देखना ज़रा भी नहीं सुहाता.  

बोलो, तुम्‍हें मगरमच्‍छ चाहिए? यह बहुत अच्‍छा मगरमच्‍छ है.  इसे लेना चाहते हो ? मां अपने बच्‍चे को चुमकारते हुए पूछ रही है.  वह बच्‍चे को अस्‍पताल दिखाने लाई होगी.  वह रो रहा है.  उसके दायें हाथ पर सफ़ेद पट्टी बंधी है.  बच्‍चे ने इस हाथ को दूसरे हाथ से पकड़ रखा है.  उसे एहसास है कि मां का ध्‍यान उसी पर लगा है.  वह अपनी इस अस्‍थायी विकृति पर और ज्‍़यादा ध्‍यान खींचना चाहता है.  मां नीचे झुक कर उसकी आंखों में जैसे याचना के साथ देखती है.  

उसे सुईं लगाई गयी थी.  तुम तो जानते ही हो कि बच्‍चों को सुईं से कितना डर लगता है
मां आदमी से कहती है.  उसने मगरमच्‍छ खरीद कर बच्‍चे के हाथ में दे दिया है.  आदमी अपने एक जानवर को बच्‍चे की नन्‍हीं उंगलियों के बीच जाते देखता है.  उसके जानवर निष्‍प्राण हैं, उसके मन में आता है कि वह उन्‍हें दुबारा बक्‍से में रख दे.  वह सोचता है क्‍या इस बंजर शहर में, जहां डामर की सड़कें ही नदियों की तरह बहती हैं, यह बच्‍चा कभी सचमुच के मगरमच्‍छ को चलते देख पाएगा.  


सफ़ेद कोट पहने एक आदमी हाथियों को देख रहा है.  वह लकड़ी से खिलौने बनाते हुए इस आदमी को भी देख रहा है.  वह एक लाल रंग के हाथी को उठाता है.  कलाकार ने हाथी के दांत उसके शरीर के साथ ही गढ़ दिए हैं.  इसलिए वह अपने दांत ऊपर नहीं उठा सकता. लाल हाथी ? अजनबी पशोपेश में पड़ गया है.  वह विस्मित है.  हालांकि यह हाथी सही ढंग से नहीं तराशा गया है, वह अपने दांत भी ऊपर नहीं उठा सकता, लेकिन अजनबी इसी हाथी को ख़रीदने का फ़ैसला करता है.  वह इस हाथी को अपने दफ़्तर की खिड़की के बाजू में रखेगा जहां से वह लाइन में खड़े मरीज़ों को देखता रहेगा.  हाथी के चेहरे पर आंख क्‍यों नहीं हैं ? शायद उसकी आंखें रोगन से ढक गयी हैं.  

खिलौने बनाने वाले के मुंह से अचानक अपशब्‍द निकला है.  
क्‍या दिक्‍क़त हुई?, पेंटर पूछता है.  
इस जिराफ़ की गर्दन तो देखो.  

पेंटर जिराफ़ पर नज़र डालता है.  दोनों दबे-दबे स्‍वर में हंसने लगते हैं.  अगर कोई मरीज़ के इतने नज़दीक बैठा हो तो हंसना आसान नहीं होता.  खिलौने बनाने वाले को ख़याल आता है कि कहीं वह अपने जानवरों में ख़ुद अपनी या उस मरीज़ की छवि तो नहीं उकेर देता जो ठिठक कर  उसके इन निर्जीव जानवरों को देखने लगता है.  वह अपने बाजू में रखे गत्‍ते के बक्‍से पर नज़र फेंकता है और उसे लोगों की आंखों से दूर छाया में रख देता है.  

तुम दूसरे जानवर... मतलब जैसे शेर या चिम्‍पैंजी क्‍यों नहीं बनाते ?’ पेंटर पूछता है.  

तुम हमेशा जिराफ़ बनाते रहते हो... तुम्‍हारा इकलौता मगरमच्‍छ ख़रीद लिया गया है.  शायद खिलौने बनाने वाला आदमी थोड़ा-बहुत पेंटर के असर में रहता है.  उसके जानवरों पर रंग लगाने का काम वही करता है.  लाल हाथी का विचार भी उसी का था.  

हाथी सदियों से जंगल का राजा रहा है, उसका वूजूद जंगल से भी पुराना है, लेकिन जिराफ़ अपनी गर्दन पेड़ों के ऊपर इस तरह उचका कर चलता है जैसे जंगल उसकी बपौती हो.  वह सबसे ऊंचाई वाली पत्तियां खाता है, जबकि हाथी पूरा दिन कीचड़ में लोट लगाता है.  क्‍या तुम्‍हें यह बात दिलचस्‍प नहीं लगती ? मतलब हाथी और जिराफ़ का यह द्वंद, उसका जंगल की सबसे ऊंचाई वाली पत्तियों को खाना ?’

केवल अफ़्रीकी लोगों के लिए आरक्षित अस्‍पताल की इमरजेंसी युनिट में एम्‍बुलेंस सर्राटे से दौड़ जाती हैं.  

विक्‍टोरिया फाल्‍स की तस्‍वीर पर आखि़री बार कूची चलाते हुए पेंटर एक क्षण के लिए सोचता है.  उसने यह तस्‍वीर अख़बारों और पत्रिकाओं से उठाई स्‍मृति के आधार पर बनाई है.  उसने विक्‍टोरिया फाल्‍स को अपनी आंखों से कभी नहीं देखा.  वह सोचता है कि तस्‍वीर में भाव पैदा करने के लिए पानी का रंग नीला होना चाहिए.  उसे बताया गया है कि जब नक़्शे पर पानी दिखाना हो तो उसका रंग नीला होना चाहिए और जब पानी की मात्रा बहुत ज्‍यादा हो- जैसा कि समुद्र में होता है तो पानी आसमान की तरह दिखने लगता है.  इसलिए नीले रंग का वह कुछ इस इफ़रात से इस्‍तेमाल कर रहा है कि चट्टान के नुकीले शीर्ष पर नीली लहरों का फैलाव अस्‍वाभाविक लगने लगा है.
                         

जिराफ़ शान और अकड़ के साथ इसलिए चलता है क्‍योंकि उसकी पीठ पर वह सुंदर झालर सी होती है.  सारे झगड़े की जड़ वही है वर्ना तो दोनों की हैसियत बराबर की है, हाथी भी अपने लंबे दांतों से पत्तियों तक पहुंच सकता है और जिराफ़ के पास तो ख़ैर लंबी गर्दन पहले से ही होती है.  

वह तस्‍वीर के कोने में एक प्रेमी-जोड़े को बैठा देता है.  नीले पानी में एक दूसरे के प्‍यार में डूबे इन प्रेमियों ने एक दूसरे को बाहों में भर रखा है.  वह चाहता है कि पानी इन प्रेमियों को कोई गीत सुनाए.  इसलिए वह तस्‍वीर के ऊपरी हिस्‍से में झरने के ऊपर मंडराती एक चिडि़या की तस्‍वीर भी बना देता है.  चूंकि चिडि़या गाना गा रही है, इसलिए उसकी चोंच खुली हुई है. उसे यकायक़ अफ़सोस होता है कि उसने कौवे की तरह दिखती इस काली चिडि़या की जगह फ़ाख्‍़ता क्‍यों नहीं बनाई!


खिलौने वाला थोड़ा रोगन उठाकर छोटी गर्दन वाले जिराफ़ की पीठ पर पीली और काली बिंदियां  बनाने लगा है.  वह यह बात बहुत पहले स्‍वीकार कर चुका है कि उससे जानवर ठीक तरह से नहीं बन पाते, लेकिन वह उन्‍हें फेंकेगा नहीं.  मुमकिन है कि अफ़्रीकी लोगों के लिए आरक्षित इस अस्‍पताल से बाहर आने वाले किसी आदमी को उसकी यह कला-कृति भा जाए. लेकिन जैसे ही वह पीले-काले चकत्‍ते लगाकर हटा है तो क्‍या देखता है कि उसका लगाया रंग जानवर के दोनों ओर फैल गया है और वह ज़ेबरा की तरह दिखने लगा है.
                      

तुम कभी कुत्‍ता या बिल्‍ली क्‍यों नहीं बनाते ?’ मतलब एक ऐसी चीज़ जिससे शहर के लोग परिचित हों.  तुम अगर चूहा ही बना दो तो वह भी चलेगा क्‍योंकि शहर चूहों से भरा पड़ा है

वहां जैसे हंसी का फव्‍वारा फूट पड़ा है.  पेंटर को एहसास होता है कि झरने से छिटकती बूंदें प्रेमी-जोड़े पर पड़ रही होंगी.  इसलिए वह उनके सर पर एक लाल रंग की छतरी बिठा देता है. तभी उसे अचानक याद आता है कि तस्‍वीर में कोई चीज़ ग़ायब है.  और वह प्रेमी-जोड़े के खुले हाथों को थोड़ा और लंबा कर देता है और उनके हाथों में पीले रंग की आइसक्रीम रख देता है.  अब वह तस्‍वीर जीवंत हो उठी है.       

भला, कुत्‍ता बनाने के पीछे क्‍या तुक है तुम कुत्‍ते, बिल्लियों या चूहों की तस्‍वीरें क्‍यों नहीं बनाते ?' इस आदमी ने, जो इतनी तन्‍मयता से हाथी और जिराफ़ गढ़ता रहता है, आज तक न कभी हाथी देखा है, न ही कोई जिराफ़.  वह लकड़ी का एक बेड़ौल टुकड़ा उठाता है.  

यह जिराफ़ होगा या हाथी?’ वह लकड़ी तराश रहा है और इसी तराश में उसका स्‍वप्‍न चल रहा है.   
____________________ 
naresh.goswami@gmail.com 

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  1. मनोज मोहन1 नव॰ 2019, 10:28:00 am

    आज जब हम अपने देश के हालात को देखते हैं तो इस कहानी की सांकेतिता बेचैन करती है. और लगता है बाजार के लिए लिखते हिंदी कथाकारों से भारतीय जन-जीवन का नब्ज़ छूट गया है। नरेश की कहानियाँ लिखती अंगुलियों की पकड़ उस नब्ज़ पर है. इस कहानी के अनुवाद के पीछे वही बेचैनी है.

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  2. शिव किशोर तिवारी1 नव॰ 2019, 1:55:00 pm

    Tewari Shiv Kishore तीसरी लाइन में ही उल्टा-पुल्टा। पेंटर अपनी पेंटिंगें बनाता है, कार्वर की बनाई काष्ठकृतियों को पेंट नहीं करता ।
    यह अल्पसंख्य गोरों के रोडेशिया में अधिसंख्य कालों के निर्वासन की कथा है।
    यह कहानी दुनिया की कुछ श्रेष्ठ कहानियों में गिनी जानी चाहिए ।अमोघ शिल्प!
    लेकिन अनुवाद भोथरा है।

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  3. आभार। अनुवादक की मदद से ठीक कर दिया गया है.

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  4. अच्छी कहानी है। "विक्टोरिया फाल्स" की बजाय "विक्टोरिया जलप्रपात" लिखा जा सकता था।

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  5. बहुत सुंदर अनुवाद और कहानी। नरेश जी को इस कार्य के लिए शुभकामनाएं।

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  6. तेजी ग्रोवर1 नव॰ 2019, 7:56:00 pm

    अच्छी कहानी और एक नए लेखक से परिचय करवाने के लिए आभार। ऐसा आगे भी करते रहिएगा।

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  7. जानवरों के माध्यम से मानवीय कहानी. जानवरों की बनावट का अधूरापन हमें समझ आता है पर अधूरे आदमी समझ नहीं आते हैं. यह खुद आदमी का अपना अधूरापन है.

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  8. कहानी वही जो भीतर से बेचैन करे । जो हमारे निकट है उससे दूरी और जो नहीं है उसके पास हो जाने के सपने ....यही आज का यथार्थ है । हर आदमी इस चक्रब्युह में फंसकर अपनी तकलीफें बुन रहा है ।
    एक अच्छी कहानी ।

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