निज घर : इज़ाडोरा डंकन : विमलेश शर्मा






































निधन के तुरंत बाद प्रकाशित महान नृत्यांगना इज़ाडोरा डंकन की आत्मकथा ‘My Life’  ने उन्हें एक महान नारीवादी लेखिका में बदल दिया था, इस आत्मकथा को अब क्लासिक का दर्ज़ा हासिल है. कल ही उनका जन्म दिन था. विमलेश शर्मा ने इज़डोरा को पढ़ते हुए यह लिखा है. नृत्य, प्रेम और मानवीय गरिमा को समर्पित यह आलेख आपके लिए. 
काश सुजान (घनानंद जिसके प्रेमी थे) ने भी अपनी आत्मकथा लिखी होती.



Isadora Duncan 
Dancer, Choreographer (27 May, 1877– 14 September, 1927)

भोर की नर्तकी का त्रासद जीवन राग                  

विमलेश शर्मा
 


ज़ाडोरा को पढ़ते हुए, उस व्यक्तित्व को परिभाषित करते हुए जो शब्द पहले-पहल जेहन में उतरे उनमें से थे- प्रकृति और त्रासदी और फिर उतरते गए उनके अनेकानेक पर्याय. इस व्यक्तित्व को एक संज्ञा में बाँधना बहुत मुश्किल है, भला प्रकृति को कहीं कोई बाँध पाया है. उसकी आत्मकथा को पढ़ते हुए जाना कि जीवन जाने कितने घुमावदार रास्तों से गुज़रता हुआ व्यक्ति को विराट बनाता चलता है. उसकी आत्मकथा को पढ़ते हुए मन में कसक उठी कि काश वह इसे पूरा लिख पाती. काश उस स्त्री के संघर्ष और विचारों से कुछ ओर परिचित हुआ जाता जिसमें दुनिया में रहते हुए दुनिया को अलविदा कहने की ताकत थी. इज़ाडोरा का जीवन और कला जितने उचानों और निचानों से गुज़रता है वह आश्चर्यचकित करता है. उसके जीवन औऱ विचारों से गुज़रते हुए सहज ही समझ आता है कि कलाएँ पारदर्शी होती हैं, कोई भी कला व्यर्थ है अगर वो मानवता की पक्षधर नहीं है. ऐसी कट्टरता जो एक विचारधारा, आंदोलन, अवधारणा या शैली के नाम पर अन्य सभी विचारधाराओं, शैलियों को नष्ट कर देना चाहती हैं, कला व संस्कृति के लिए घातक है.

वह जीवन पर्यन्त एक साथ कई चीज़ों से जूझती रही. इनमें से कुछ थे- बुजुर्आ संस्कृति की पवित्रता, विक्टोरियन  संयम  और संतुलन के बेमाप आदर्श. यह प्रतिरोध स्वाभाविक था क्योंकि वह मुक्त जीवन में विश्वास रखती थी और साथ ही प्रेम में और प्रकृति के नियमों की महानता में.
इज़ाडोरा एक नर्तकी थीं, जिनका पूरा नाम ऐँगिला इज़ाडोरा डंकन था. कहा जाता है कि सेन फ्रासिंस्कों कैलिफॉर्निया में जन्मी इज़ाडोरा अपने समय से सौ बरस आगे थी. ये उसके विचार ही थे जो उसे सबसे अलग खड़ा करते थे. उसने कला, पुरूषवादी मानसिकता, सामाजिक गढ़ो पर जमकर प्रहार किए. इन विचारों को लेकर उसने अपने जीवन, नृत्य और प्रेम में अनेक प्रयोग किए. यह भी सत्य है कि अगर वह नृत्य और कला को समर्पित नहीं होती तो सदी की सबसे बड़ी लेखिका, दार्शनिक औऱ विदुषी होती. अपने जीवन को शब्दों में उतारते हुए वह लिखती है कि, बहुत कुछ छूट गया है, मैंने जो यातना भोगी है वह चंद शब्दों में समाप्त नहीं हो सकती. ना ही मेरे प्रेम और कलाओं की तीव्रता को ही शब्दों में ढाला जा सकता है पर फिर भी यह काम किया गया है.
इज़ाडोरा का व्यक्तित्व अद्भुत था. वह सृजनात्मकता और सह्रदयता का समन्दर थी, उसके जीवन में अनेक पुरूष आए वह हर एक से सम्पूर्ण समर्पण के साथ मिली पर उसे अपने स्तर तक, अपने ताप तक पहुँचने वाला कोई मिला नहीं. उसका मानना था कि महानतम प्रेम एक विशुद्ध आध्यात्मिक लौ होता है और उसका यौन पर निर्भर होना आवश्यक नहीं है. उसके जीवन में आए प्रेम शैतान, मनुष्य और फरिश्ते की शक्ल में थे जिन्हें लेकर उसे हर बार यही अनुभव हुआ कि यही वह प्रेम है जिसका मैं बरसों से इंतज़ार कर रही हूँ; पर होता इसके विपरीत. कोई उसे बाँध कर रखना चाहता, तो कोई तंग पगडंडियों और अँधेरें में उसे महसूस करना चाहता पर ये सब उसकी मानसिकता के विरूद्ध थे. बकौल इज़ाडोरा- मेरे जीवन का हरेक प्रेम-प्रसंग एक उपन्यास की शक्ल ले सकता  था, पर वे सभी-के-सभी एक ख़राब़ मोड़ पर ख़त्म हुए. मैं हमेशा उस प्रेम का इंतज़ार करती रही जिसका अंत अच्छा हो और जो हमेशा बरकरार रहे- आशावादी सिनेमा की तरह!”  
प्लूटो की रचना फेद्रस को वह दुनिया का सबसे शानदार प्रेमगीत मानती थी. प्रेम में वह सदैव वफ़ादार रही. मैं अपने प्रेमों के प्रति हमेशा वफ़ादार रही हूँ और शायद उनमें से किसी को भी मैं कभी न छोड़ती अगर वे भी मेरे प्रति उतने ही वफ़ादार रहते. जैसे मैंने उन्हें पहले प्यार किया था, वैसे आज भी करती हूँ और करती रहूँगी. अगर मुझे उनसे जुदा होना पड़ा तो इसका दोष मैं पुरूषों की चंचल प्रकृति और उनके भाग्य की विडंबना को देती हूँ. उसके हर प्रेम और आकर्षण में प्रेमी की बौद्धिकता का प्रदेय भी रहा है. उसके प्रेमी वर्नोन, एथलबर्ट नेबिन, यूज़ी केरी, हेनरिख़ थोड, हर्मन बोहर, अर्नेस्ट हेकल और एसेनिन बुद्धिमान, कलाकार और सफल लोगों की श्रेणी में आते हैं.

इज़ाडोरा का मानना था कि हर व्यक्ति दूसरे से अलग होता है. कई महज़ हाड़-मांस तक उलझे रह जाते और कुछ आत्मा की अतल गहराइयों से एकाकार हो पाते हैं. स्त्री संबंधी सामाजिक धारणाओं के प्रति रोष इज़ाडोरा में छुटपन से ही थी. उनका बचपन एक रहस्यमय पिता और तलाक के शब्द के साये में पला था. जार्ज इलिएट के एडम बीड उपन्यास ने उस बालमन पर गहरा प्रभाव डाला. इस उपन्यास में एक लड़की का ज़िक्र है जो विवाह नहीं करती और एक अनचाहे बच्चे को जन्म देती है इसके बाद उस माँ के पास रह जाती है अपमान और दुखों से भरी ज़िंदगी. स्त्रियों के प्रति इस अन्याय ने मेरे मन पर गहरा असर डाला. मेरे अपने माँ-बाप की ज़िंदगी मेरे सामने थी. बस! मैंने तभी से मन में ठान लिया कि मैं विवाह के खिलाफ़ और स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए संघर्ष करूँगीकि कोई स्त्री जब चाहे बच्चे पैदा कर सके और इन बातों को लेकर कोई उंगली ना उठा सके. एक बारह वर्ष की बच्ची का ऐसी बातों के बारे में सोचना अज़ीब लग सकता है, लेकिन मेरे हालात कुछ ऐसे थे कि मैं उम्र के आगे की बातें सोचने लगी थी.

बचपन किसी भी मन पर गहरा प्रभाव डालता है. इज़ाडोरा अपने माँ के संघर्ष की प्रत्यक्षदर्शी थी. विवाह संबंधी कानूनों का अध्ययन करते हुए उसे स्त्रियों की गुलाम दशा पर बहुत क्रोध आया. अपने इर्द-गिर्द जब वह किसी विवाहित स्त्री को देखती तो उसे उन सब चेहरों में किसी राक्षस का जुल्म और दासता के चिह्न नज़र आते. यह सब देखते हुए उसका मन वितृष्णा से भर गया. वह लिखती है, मैंने संकल्प लिया कि ऐसी अवमानना भरी स्थिति को कभी स्वीकार नहीं करूँगी और में अपने इस संकल्प पर कायम रही. भले ही इसके लिए मुझे खुद माँ की नाराज़गी और दुनिया भर के ताने झेलने पड़े. इन विचारों को वह अपने जीवन में लागू 1905 में कर रही थी और वही होना था, जिसके बारे में हम आप अनुमान लगा सकते हैं. जब उसने विवाह करने से इंकार किया औऱ बिना विवाह के बच्चे पैदा करने के अपने स्त्री अधिकारों का प्रयोग करके दिखाया तो अच्छा-खासा हंगामा हुआ. इज़ाडोरा की वैचारिकी को अपनाना आज भी किसी स्त्री के लिए आसान नहीं होगा. विचारों में भले ही क्रांति आयी है पर परिवेश की मानसिकता अभी भी वहीं हैं जहाँ सौ बरस पूर्व थी.

सदी की इस महान नायिका को समंदर बहुत प्रिय था और उसके जीवन में यह महत्त्वपूर्ण स्थान भी रखता था. उसकी कला और ज़िंदगी समंदर से ही उपजी थी.
मैं समंदर के पास पैदा हुई और मैंने नोट किया कि मेरे जीवन की सभी घटनाएं समंदर किनारे ही हुई है. नृत्य का अंगों के संचालन का पहला विचार समंदर की लहरों को देखकर ही जन्मा था. मेरे जन्म का सितारा एफ्रोदिती है और खुद एफ्रोदिती का जन्म समंदर किनारे हुआ था. जब एफ्रोदिती चढ़ान पर होता है तो घटनाएँ  हमेशा मेरे अनुकूल होती हैं. उन दिनों मुझे ज़िंदगी बेहद हल्की महसूस होती है और मैं सृजन करती हूँ.मैंने यह भी देखा है कि इस सितारे के लुप्त होने के साथ ही मेरी ज़िंदगी में कोई ना कोई हादसा होता है.

उसका मानना था कि ग्रहों का अध्ययन कर अनेक मानसिक परेशानियों से निज़ात पाई जा सकती है. संतान उत्पत्ति के और गर्भधारण के समय अगर माता-पिता  ग्रहों का अध्ययन करें तो बहुत खूबसूरत बच्चों का जन्म हो सकता है.

समंदर की लहरों पर खेलते-बढ़ते ही वह नृत्य को करीब से जान पाई. समंदर की थिरकन को उसने अपनी आत्मा में बसा लिया. बचपन की बेलगाम ज़िंदगी ही उसकी मुक्ति का दर्शन भी सिद्ध हुई. नृत्य को परिभाषित करती हुई वह कहती है कि नृत्य क्या है, एक आज़ाद अभिव्यक्ति. इसी अभिव्यक्ति में उसने यह भी जाना कि भावुकता एक बेमानी चीज है. पर फिर भी तमाम उम्र वह भावनात्मक चोटों से जूझती रही. विद्रोही तेवर रखने वाली इज़ाडोरा स्कूल में भी धर्म संबंधी अपने विचारों को लेकर आक्रोश का सामना करती रही. वह स्पष्ट शब्दों में घोषणा करती थी कि न कोई सांताक्लाज़ होता है, न कोई ईश्वर है सिर्फ़ हमारे मन की शक्ति हमारी मदद करती है. स्कूल में ज़बरन थोपे गए विचारों का वह प्रतिकार करती थी . स्कूली दिनों की स्मृतियों को वे इस प्रकार लिखती हैं-     मुझे याद है कि उस सख़्त बैंच पर खाली पेट और गीले मौजों में बैठे रहना कितना मुश्किल होता था; और अध्यापिका का व्यवहार कितना क्रूर और संवेदनाविहीन होता था. हमारे घर में बेहद गरीबी थी, फिर भी मुझे वह सब तकलीफदेह नहीं  लगता था. जबकि स्कूल में मुझे बेहद तकलीफ़ होती थी. एक गर्वीले और संवेदनशील बच्चे के लिए पब्लिक स्कूल का माहौल बहुत निरूत्साहित और अपमानित करने वाला था. इसलिए मेरे मन में स्कूल के प्रति हमेशा एक विद्रोह-सा रहा.  बाद के जीवन ने उसे सिखाया कि अगर कोई ईश्वर है तो निःसंदेह वह  कोई महान नाट्य निर्देशक है.

संगीत और काव्य की समझ इस नृत्यांगना को माँ से विरासत में मिली. उन्मुक्त बचपन ने उसके मन में जीवन की ठोस समझ पैदा की. डिंकेस, ठाकरे और शेक्सपीयर की तमाम कृतियाँ उसने बचपन में ही पढ़ डाली थी.  संघर्ष ने उसके जीवन में रोमांच पैदा किया. उसका जीवन विशुद्ध संगीतात्मक और रोमानी चीज़ थी. अनुशासन में बँधना उसे नहीं भाता था. यही कारण है कि उसे थियेटर से एक प्रकार की चिढ़ थी. रोज़-रोज़ का दोहराव , वही शब्द और मुद्राएँ, मुर्खतापूर्ण हरकतों से उसे उबकाई आने लगती थी.

उसने अनेक देशों की यात्राएँ की. और नृत्य प्रस्तुतियों के साथ ही उसके प्रेम-भूमि के अनेक युवा- अनुभव भी जन्म लेते गए. उसके पुरूष मित्रों के मनों पर धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं का प्रभाव इतना तीव्र था कि कई वर्षों तक वह उस भूमि में प्रवेश से वंचित रही. अमरीका की आबोहवा ने भी उसे एक सांचे में ढाल दिया- अति-नैतिकतावादी, रहस्यवादी और कुछ ऊँचा पाने की इच्छा करने वाला...शरीर की कामुक अभिव्यक्तियों से दूर. अधिकांश अमरीकी कलाकार, लेखक, शिल्पकार इसी सांचे में ढले रहे.

वह अपने नृत्य में सतत नवीन प्रयोगों की आग्रही थी.  अपनी बैचेनी को नृत्य में अभिव्यक्त करने वाली यह नर्तकी  दिन-रात नृत्य के उस आयाम को तलाशती रहती जो मनुष्य की सर्वोच्च आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति दे सके. घंटों ध्यान और साधना ने उसे उसकी तलाश तक पहुँचाया भी. इसी रियाज़ में उसने हर गति के केंद्रीय स्रोत को खोज़ लिया. उसे दृष्टि का वह दर्पण, वह पारस मिल गया था जिस पर बाद में उसने अपने नृत्य-स्कूल की नींव  भी रखी. हालांकि नृत्य स्कूल के उसके ख्वाब को अनेक संघर्षों का सामना भी करना पड़ा.


नृत्य की कृत्रिम अभिव्यक्तियों से इज़ाडोरा को चिढ थी. इसीलिए वह बेले नृत्य को पसंद नहीं करती थी. उसे लगता था रीढ़ की हड्डी के नीचे के मध्य भाग से संचालित यह नृत्य कृत्रिम और मशीनी संचालनों को जन्म देता है, जो आत्मा को छू नहीं पाते. उसके आदर्शों में बैले के लिए कोई जगह नहीं थी. उसकी हर मुद्रा उसके सौंदर्य-बोध को अख़रती थी. उसकी अभिव्यक्ति और प्रस्तुतीकरण उसे बहुत तकनीकी और अश्लील लगते थे. बैले नृतकियाँ कद-काठी में छोटी होती हैं उसका मानना था कि एक लंबी, भरी-पूरी स्त्री बेले नृत्य कभी नहीं कर पाएगी. इसलिए जो शैली अमरीका को अभिव्यक्त करेगी, वह बैले नहीं हो सकती. किसी भी कीमत पर यह कल्पना नहीं की जा सकती कि स्वतंत्रता की देवी बैले नृत्य कर रही है.

उसके द्वारा ईजाद किए गए  नृत्य सिद्धांतों के अनुसार लय और संगीत का आत्मा से तादात्म्य होना चाहिए. इस स्रोत को पूरे शरीर में उसी तरह बहना चाहिए जैसे कोई झरना निर्बाध तभी अंतस में जागृति का प्रकाश अभिव्यक्त होगा और तब ना तो मुद्राओं की कोई सीमा रहेगी और ना ही अभिव्यक्तियों की ही. वह अपनी कक्षाओं में कहती थीं, संगीत को अपनी आत्मा के माध्यम से सुनने की कोशिश करो. क्या अब यह संगीत सुनते हुए तुम्हें ऐसा नहीं लग रहा है कि तुम्हारे अंदर कुछ जाग रहा है- कि इसी से शक्ति पाकर तुम अपना सर उठाते रहे हो, अपनी बाँहें ऊपर फैलाते रहे हो और जैसे एक रोशनी की तरफ़ बढ़ते रहे हो?  तो वे समझ जाते  थे. यह जागृति ही नृत्य का पहला कदम है.

और जब वह स्वयं इन सिद्धांतों को अपने नृत्य में उतारती थी तो प्रकृति उसके नृत्य में जीवंत हो उठती थी, दुनिया के हरे मैदान उसके लिए खुल जाते थे, समंदर की लहरें उसका आलिंगन करती और पहाड़ कहीं दूर छिटक कर सहम जाते थे. वह मंच पर परिन्दों सी चहका करती और खरगोश सी कुंलाचें भरती. समंदर से उसका गहरा लगाव उसकी हर मंचीय अभिव्यक्ति में नीले परदों में साफ झलकता है और नैसर्गिकता उसके पारदर्शी पहनावों में. वह मंच पर किसी असंभव कल्पना सी थिरकती थी. यह आत्मा की जागृति ही थी जो उसकी देह में एक लय औऱ अप्रत्याशित लोच पैदा करती थी. प्रेम, आनंद और भय सरीखे अनेक विषयों को उसने नृत्य में अभिव्यक्त किया. अपने नृत्य को लेकर वह स्वाभिमानिनी थी. 

अनेक प्रसिद्धियों और वैभव को उसने सिर्फ यह कहकर ठुकरा दिया था कि मेरी कला म्यूजिक हॉल के लिए नहीं है. नृत्य के समय वह एक जंगली उच्छृंखलता और गतिशीलता वाली नृत्यांगना बन जाती.  उसके नृत्य में एकाएक मानों इतिहास और मिथकों की तमाम  पुरानी परंपराएं, कला और सौंदर्य की तमाम कालजयी और सनातन परंपराएं एकाएक साकार हो उठती. कई लोगों को उसका नृत्य अश्लील लगता और कई दृष्टियों को वह मासूम बच्ची सा जो सुबह की धूप में नृत्य करते हुए अपनी कल्पनाओं से अनेक रंगों के फूल चुन रही हो. संभवतः इसी अनुभूति के कारण  उसे  भोर की नर्तकी भी कहा जाता है.

इज़ाडोरा का जीवन एक त्रासदी था. उसने एक ओर जहाँ ऐश्वर्यपूर्ण जीवन को भोगा तो दूसरी ओर वह पूरी तरह एक मलंग और फ़कीर के अंदाज में भी जीती रही. उसकी आदतें तमाम परिस्थितियों में रईसी ही रहीं. यह जीवन कहीं ना कहीं भारतीय ट्रैजेड़ी क्वीन मीना कुमारी की भी याद दिलाता है. पहले प्रेम के सुलगते आगोश से लेकर, अनेक प्रेम-प्रसंगों, विवाह की त्रासदी और जीवन के त्रासद अंत की पराकाष्ठा तक वह प्रेम और अध्यात्म को करीब से जीती रही. यही वो कारण थे जो 19 वीं सदीं की इस महानायिका को 21 वीं सदीं की प्रेमिका और महानायिका सिद्ध करते हैं.

त्रासदियों की क्रमिक श्रृंखला के बाद भी उसने एकाध स्थितियों के अतिरिक्त कहीं अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया. इसका कारण भी उसकी योगिनियों सी साधना थी, नृत्य के प्रति उसका जुनुन था और कला के प्रति समर्पण जिसने उसको जिलाए रखा. गहरे जज़्बातों और तूफ़ानी  अनुभवों के क्षणों में भी मेरे मस्तिष्क ने बड़े विवेक से काम लिया है. मैंने कभी भी अपना संतुलन नहीं खोया. इंद्रियों का आनंद जितना ज्यादा गहरा और नशीला रहा, मेरे मस्तिष्क ने उतनी ही स्पष्टता से चीज़ों को देखा-समझा.

कभी उसने ग्रीस की सभ्यता को अपने भीतर उतारा तो कभी जिप्सियों के उग्र और तूफ़ानी विचारों को. अद्भुत करने के इन्हीं प्रयासों में उसने ग्रीक के कोरस गीतों और नृत्य को फिर से ज़िंदा करने का प्रयास भी किया. उसके जीवन की धुरी सिर्फ और सिर्फ कला थी.

अनेक प्रशंसक होने के बावजूद उसने जीवन में एकाकीपन स्थायीभाव की तरह रहा. इसी एकाकीपन ने उसनें अध्यात्म की समझ और सात्विकता पैदा की. उसके जीवन और प्रेम-प्रसंगों को लेकर तथाकथित नैतिकतावादी और आदर्शवादी आज भी नाक- भौंह सिकोड़ सकते हैं पर उसने अपने प्रेम को सदैव उच्च पर जिया.

कला को लेकर उसके विचार मानवीय थे. उसने अपनी तमाम कला और उसके प्रदेय को दलितों-दमितों की सेवा में समर्पित कर दिया था. यह करते हुए वह एक रेचन का अनुभव करती. इस प्रक्रिया में उसकी स्वयं की पीड़ाएँ तुच्छ और गौण हो जाती. उसका मानना था कि कोई भी कला हो उनके प्राकृतिक सिद्धांतों में साम्यता होती है. कला का अपना सौंदर्य होता है, उसे बाहरी बुनावटों की आवश्यकता नहीं होती. उसी के शब्दों में, कला मानवीयता की आध्यात्मिक मदिरा है, जो आत्मा के विकास के लिए बहुत ज़रूरी है. उसका विश्वास था कि अपने भीतर सौंदर्य-बोध को जगाने के बाद ही इंसान सौंदर्य को पाने में सफल हो सकता है. आत्मा, देह, कला,ऐश्वर्य और मातृत्व के चरम को भोगने वाली इज़ाडोरा क्रांतिकारी विचारों की जीवंत प्रतिमूर्ति थी.

त्रासदियों के बीच उसने अनुभव किया कि एक लम्हें का सुख हमेशा के दुख से कहीं बेहतर है और जीवन में संपूर्ण आनंद जैसा कुछ नहीं होता. आशाएं ही व्यक्ति को जीने का दिलासा देती रहती हैं और यही बड़ी कठिनाई से मुर्झाने वाला पौधा भी है. वह अपने प्रेम में सदैव वफ़ादार रही. हिंसा के बरक्स वह अमरिका को नाचते गाते हुए देखना चाहती थी. फ्रांस में बहती रक्त की नदियाँ उसे त्रास देती थीं यही कारण है कि उसने अपने नृत्य स्कूल को भी एक अस्पताल में तब्दील कर दिया.  

प्रेम, विवाह, संबंध-विच्छेद की पीड़ाओं, अपनी पुत्री द्रेद्रे और पैट्रिक की असामयिक मृत्यु की पीड़ा को भोगते हुए इस महान कलाकृति ने 14 सितंबर 1927 को इस निष्ठुर दुनिया को अलविदा कहा. उसकी आत्मकथा का सच मार्मिक, ह्रदयस्पर्शी और आत्ममुग्धता से परे है. 


पीड़ा, प्रेम की रिक्तताओं, नारकीय तृष्णाओं  और साहसिक सौंदर्य के बीच जीती यह नृत्यांगना तथा स्त्री मुद्दों की पैरोकार औऱ उन्मुक्तता की पर्याय इज़ाडोरा  सदैव इंसानी जीवन के सत्य को खोजने में रत रही.
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विमलेश शर्मा
अजमेर, राजस्थान

9414777259/ vimlesh27@gmail.com

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  1. नरेंद्र सिंह28 मई 2017, 9:40:00 am

    लेख बहुत पसंद आया. इजाडोरा ने एक संघर्षमय जीवन जीया है. वह कभी कुंठित नहीं हैं. विमलेश जी बहुत बधाई आपको दिल से लिखा है आपने. ऐसी चीजें ही समालोचन को श्रेष्ठ बनाती हैं.
    भूमिका में एक वाक्य पर मैं ठिठक कर सोचने लगा- ;काश सुजान (घनानंद जिसके प्रेमी थे) ने भी अपनी आत्मकथा लिखी होती.' अरुण देव चाहते तो घनानन्द की प्रेमिका सुजान भी लिख सकते थे. पर इसे उलट कर लिखते हुए उन्होंने प्रेम और सुजान के प्रति जिस तरह से अपना सम्मान दिया है. उससे मन भर आया. आपको भाई सलाम.

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  2. Swapnil Srivastava28 मई 2017, 3:33:00 pm

    डंकन पर अच्छी सामग्री । मशहूर लोगो का जीवन कम यातनापूर्ण नही होता। वे यंत्रणा से शक्ति अर्जित करते है.

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  3. सबसे पहले राजेंद्र यादव ने 'तेरी मेरी उसकी बात' में इस आत्मकथा का ज़िक्र किया था. 93 94 में यह किताब हाथ लगी. अपने समय कि क्रन्तिकारी किताब रही थी यह.

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  4. बेनामी28 मई 2017, 5:41:00 pm

    बढ़िया आलेख

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  5. नूतन गैरोला28 मई 2017, 6:19:00 pm

    इजाडोरा डंकन के नृत्य से मैं पहले मैं इस तरह मुखातिब नहीं हुई .. किन्तु विमलेश शर्मा जी के इस लेख के प्रभाव में आज उनको पढने और जानने के साथ मैंने उनके नृत्य भी देखे .. जैसा लिखा गया है उनके नृत्य के अंदाज चलना दौड़ना फुदकना इस तरह लयबद्ध निर्बाध होता है कि वो प्रकृति के बहुत नजदीक जाती हुई आत्मा में उतरती है उनमें कृत्रिमता नहीं पर गजब की लयबद्धता है| यंत्रणाओं ने और वर्जनाओं ने उनमे प्रतिरोध की जो ज्वाला जलाई उनके नृत्य और उनके लेखन में मारक रहे .. समालोचन को इस लेख को प्रकाशित करने के लिए आभार, शुक्रिया

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  6. This is my first time that I read about Duncan. Very informative article with flawless craft. Congrats and well wishes to Vimlesh as well as Arun Dev
    Thanx and regards

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