युवा सामाज वैज्ञानिक संजय जोठे
कभी-कभी व्यंग्य भी लिखते हैं. स्मार्ट सिटी का जुमला खूब चला हुआ
है, जबकि शहर ढंग से शहर भी नहीं बन सके हैं.
भारतीय "जबर स्मार्ट"
सिटी और विराट एकात्म वाद
संजय जोठे
स्मार्ट सिटी की बहुत चर्चा हो
रही है. लेकिन लोग नहीं जानते कि स्मार्टनेस का भारतीय वर्जन
दुनिया में सबसे अच्छा है. चूँकि ये भारतीय संस्कृति का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व करता
है इसलिए यह बेजोड़ है. दर्शन, अध्यात्म, सामाजिक व्यवस्था और सबसे ऊपर - वसुधैव कुटुंब और एकात्म
मानववाद की "समानुभूति" भारतीय स्मार्ट सिटी का प्राण है. अन्य पश्चिमी
देश सिर्फ तकनीक और इंफ्रास्ट्रक्चर से स्मार्ट हो पाये हैं लेकिन भारत के शहर
संस्कारों और आत्मा से स्मार्ट हैं. ये बात जरा गहरी है सो धीरे धीरे समझते हैं.
दुनिया के अन्य स्मार्ट शहर
मानव मानव और पशु पक्षियों में भेद पर खड़े हैं. उनमे विश्वगुरु की सर्वं खल्विदं
ब्रह्मम और वसुधैव् कुटुंब की भावना नहीं है. अमेरिका या चीन जापान के स्मार्ट शहर
एकदम शहरी लोगों के लिए और सिर्फ इंसानों के लिए हैं, उनमे बसनेवालों को पता ही नहीं
होता कि गरीबी और गरीबों का और पशु पक्षियों का जीवन क्या है. सड़क के गड्ढे, खुले में टट्टी फरागत, आवारा गायों और कुत्तों की जीवन
शैली, भूखे कौवों
और सुवरो की समस्याएं क्या हैं वे नहीं जानते. एक अर्थ में वे अत्यंत स्वार्थी और
भेदभाव करने वाले बन जाते हैं. लेकिन भारत के सबसे स्मार्ट शहर में भी अध्यात्म और
मानववाद का झंडा बुलन्द रखा गया है. यहां के स्मार्ट शहर में गाय, सूअर कुत्तों इत्यादि प्राणियों
को भी शहरी जीवन का परिचय दिया जाता है ताक़ि जब ये प्राणी अपने ग्रामीण बंधुओं से
मिलें तो उन्हें समुचित शिक्षा दे सकें.
सबमे ब्रह्म है - इस सत्य का
बोध कराने का विशेष इंतेजाम भारत में किया गया है. मेट्रो स्टेशन या एयरपोर्ट से
निकलते ही आपको खुली नालियों और सड़कों पर परमहंसभाव से टट्टी फरागत करते और अन्य
पशु पक्षियों से ब्रह्म चर्चा करते हुए आध्यात्मिक मनुष्य मिल जायेंगे. मनुष्यों, गायों, कुत्तों, सुअरों, कौवों और चूहों के बीच इस दिव्य
एकात्म भाव की ये अमेरिकी, जापानी
इत्यादि लोग कल्पना भी नहीं कर सकते. इन्हें वसुधैव कुटुंब को समझने में अभी और दो
हजार साल लगेंगे.
शहर तो छोड़िये विश्वगुरु ने
गाँव भी स्मार्ट बना छोड़े हैं. ग्रामीण लोगों को शहरी मनुष्यों के दुःख दर्द का
एहसास बना रहे इसके लिए वहां भी इंतेजाम किये हैं. भले गाँव में पीने का पानी न
मिले लेकिन कोका कोला पीकर और पिज्जा बर्गर खाकर शहर के पेट में कैसी गुड़गुड़ होती
है ये हर गाँव को बताया जाता है. कोक, मैकडोनाल्ड और अंग्रेजी के
अहाते गाँव में खोल डाले हैं. टिशु और टॉयलेट रोल वाले शहरी लोगों का जीवन कैसा
होता है इसे बताने के लिए सदियों से सूखे पड़े गांवों में भी टॉयलेट बनाये गए हैं
ताकि ब्रह्ममुहूर्त में ग्रामीण लोग शहरी बंधुओं सा "जल विहीन जीवन"
जीकर "बॉटम ऑफ़ हार्ट" तक विराट एकात्मता का अनुभव कर सकें.
हमारी ट्रेनों में वातानुकूलित
डब्बे में बैठा आदमी अक्सर खुद को अमेरिकन समझने लगता है और जमीन से कट जाता है.
उसे वापस जमीन पर लाने के महान उद्देश्य से पटरियों के बीचोबीच देशज संस्कारों के
फूल बिछाए जाते हैं स्टेशन पर उतरते ही जिनकी खुशबु से पुनः विराट एकात्म भाव जाग
उठता है. ऐसा सूक्ष्म संस्कार बोध और मानवता बोध दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा आपको.
यकीन न आये तो किसी भी विश्व प्रसिद्द "वैरागी योगी" या सन्यासी से पूछ
लीजिये.
इसी विराट एकात्म मानव वाद की
प्रेरणा से अभी अभी गुरुग्राम के लोगों को वैश्विक भाईचारे का परिचय दिया गया.
गुड़गांव का नाम गुरुग्राम रखते ही संस्कारी भारतीय नर नारी और बाल गुपाल एकदम से
महाभारत काल में पहुँच गए और उन्होंने कलियुग में आने से इनकार कर दिया. देश के
चिंतकों को चिंता हुई उन्होंने तय किया कि इन्हें वापस लाने के लिए पेरिस या वेनिस
जैसा दृश्य गुरुग्राम में उपस्थित करना होगा, तब बड़ी योजना से गुरुग्राम की
वीथिकाओं में पानी छोड़कर नावें चलाईं गयीं और कलिकाल की स्मृति को पुनर्जीवित किया
गया. अमेरिकी या रशियन इस तरह के माइंड कंट्रोल और टाइम ट्रैवल की कल्पना तक नहीं
कर सकते.
भारतीय स्मार्ट शहर सर्वांगीण
अर्थ में स्मार्ट हैं. हम गहन आध्यात्मिक लोग हैं. इसलिए हमारा अध्यात्म भी अब
सुपर स्मार्ट हो गया है. वैरागी बाबा और जीवन्मुक्त योगी लोग गरीब और भूखी जनता को
प्रवचन करते हुए एयर कंडीशन मंच पर बैठते हैं और उन्हें अमेरिकी भौतिकवादियों के
जीवन का प्रत्यक्ष अनुभव कराकर वैश्विक भाईचारा जगाते हैं.
जमीन तो छोड़िये हमारे स्मार्ट
संस्कार अब आकाश में भी सुगन्ध फैला रहे हैं, हमारे हवाई जहाजों में सफर करते
हुए भी आपको गरीबों और वंचितों के जीवन से कटने नहीं दिया जाता है, फ्लाइट में मच्छर और चूहे
जानबूझकर छोड़े जाते हैं ताकि आप हवा में उड़ते हुए जमीन के लोगों को न भूल जाएँ, एयर इण्डिया आजकल फ्लाइट में
दरवाजे पर गाय बांधने पर भी विचार कर रही है. शहर के लोग गौ माता के दर्शन नहीं कर
पा रहे हैं और गौ माता गलियों में नहीं जाती हैं इसलिये ठीक हाइवे पर "गौ
पंचायतों" की व्यवस्था की गयी है ताकि आपकी या अंतिम यात्रा संस्कारों से भरी
गुजरे.
दुखी और दीन मनुष्यों का दुःख
अनुभव करना सबसे बड़ा स्मार्ट और विराट संस्कार है. इस विराट और एकात्म भाव का झंडा
विश्वगुरु ने अभी ओलम्पिक में भी गाड़ दिया. हमारे संस्कारी अधिकारीयों ने देखा कि
भारतीय खिलाडी पतित और गौमांस भक्षी यूरोपियों और अमेरिकन्स की संगत में ज्यादा ही
फिरंगी बनते जा रहे हैं उन्हें भारतीय संस्कारों का होश नहीं है. ये देखकर
उन्होंने मेडल इत्यादि की मोह माया छोड़कर वहीँ संस्कार जागरण का काम शुरू कर दिया.
गाँव में एक गरीब मजदूर बिन खाये पिए कैसे गुजारा करता है इस बात का बोध देने के
लिए एक एथलीट को 42 डिग्री की गर्मी में भूखे प्यासे मेराथन दुड़वा दिया. लेकिन ये
मुर्ख मीडिया और कुसंस्कारी भारतीय इसके पीछे मानवता कल्याण का विराट भाव नहीं समझ
पा रहे हैं. घोर कलजुग आ गया है बाउजी.
अब आप सब संस्कारी बन्धुओं से
नरम निवेदन है कि भारत के स्मार्ट शहरों और स्मार्ट एकात्मवादि संस्कारों को एकसाथ
रखकर देखना सीखें. पश्चिमी भौतिकवादियों और कुसंस्कारी लोगों का चश्मा उतार दें और
विश्वगुरु की बताई विधि से भारत की स्मार्ट सिटी को देखें.
आपका कल्याण हो!
जे जंबुदीप.... जे बिसगुरु !!!
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sanjayjothe@gmail.com
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