कथाकार, नाटककार अन्तोन चेख़फ़ (29/जनवरी/1860-15/जुलाई/1904) पेशे से चिकित्सक थे. उन्हें विश्व के महानतम कथाकारों में गिना
जाता है.
ए ड्रीरी स्टोरी, द वाइफ (उपन्यास). अन्ना ऑन नेक, ए बैड बिजनेस, ए बलंडर, स्लीपि,
स्माल फ्राय, द बेट, द बर्ड मार्केट, ओल्ड ऐज, टेरर,
टेलेंट, माइर, पैनिक फ़िअरे, स्ट्रोंग, इम्प्रेशंस, अ डे इन द कन्ट्री, (कहानी). इवानोव, द चैरी ऑर्चर्ड, द सी गल, अंकल वन्या (नाटक) आदि उनकी मशहूर रचनाएँ हैं.
गोर्की ने उनके बारे में एक जगह
लिखा है – “मानो चेख़फ़ , उदास और दुःखी ईसा की तरह मुरझाए, निर्जीव और हताश लोगों की भीड़ के सामने गुज़र रहा हो और मन-ही-मन पीड़ा
से कराह उठता हो -'भाई, सचमुच
तुम बहुत बुरी दशा में हो'."
उनकी
मशहूर कहानी ‘Enemies’ का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद सुशांत सुप्रिय ने किया है. सुशांत के अनुवाद की पुस्तक -'विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ' शीघ्र प्रकाशित होने वाली है.
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शत्रु : अन्तोन चेख़फ़
अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
सितम्बर की एक अँधेरी रात थी. डॉक्टर किरीलोव के इकलौते छह वर्षीय पुत्र आंद्रेई की नौ बजे के थोड़ी देर बाद डिप्थीरिया से मृत्यु हो गई. डॉक्टर की पत्नी बच्चे के पलंग के पास गहरे शोक व निराशा में घुटनों के बल बैठी हुई थी. तभी दरवाज़े की घंटी कर्कश आवाज़ में बज उठी.
घर के नौकर सुबह ही घर से बाहर भेज दिए गए थे, क्योंकि डिप्थीरिया
छूत से फैलने वाला रोग था. किरीलोव ने क़मीज़ पहनी हुई थी. उसके कोट के बटन खुले
थे. उसका चेहरा गीला था, और उसके बिन-पुँछे हाथ कारबोलिक से झुलसे हुए थे. वह वैसे ही दरवाज़ा खोलने चल
दिया. ड्योढ़ी के अँधेरे में डॉक्टर को आगंतुक का जो रूप दिखा, वह था -- औसत क़द, सफ़ेद गुलूबंद और बड़ा और इतना पीला पड़ा हुआ
चेहरा कि लगता था जैसे कमरे में उससे रोशनी आ गई हो.
"क्या डॉक्टर साहब घर पर हैं? "आगंतुक के स्वर में जल्दी थी.
"हाँ ! आप क्या चाहते हैं ?" किरीलोव ने उत्तर दिया.
"ओह ! आपसे मिल कर ख़ुशी हुई. "आगंतुक ने
प्रसन्न हो कर अँधेरे में डॉक्टर का हाथ टटोला और उसे पा लेने पर अपने दोनो हाथों
से ज़ोर से दबाकर कहा, "बेहद ख़ुशी हुई. हम लोग पहले मिल चुके हैं. मेरा नाम अबोगिन
है ... गरमियों में ग्चुनेव परिवार में आपसे मिलने का सौभाग्य हुआ था. आपको घर पर
पा कर मुझे ख़ुशी हुई ... भगवान के लिए मुझ पर कृपा करें और फ़ौरन मेरे साथ चलें.
मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ ... मेरी पत्नी बेहद बीमार है ... मैं गाड़ी लाया हूँ."
आगंतुक की आवाज़ और उसके हाव-भाव से लग रहा था
कि वह बेहद घबराया हुआ है. उसकी साँस बहुत तेज़ चल रही थी और वह काँपती हुई आवाज़
में तेज़ी से बोल रहा था मानो वह किसी अग्निकांड या पागल कुत्ते से बचकर भागता हुआ
आ रहा हो. उसकी बात में साफ़दिली झलक रही थी और वह किसी सहमे हुए बच्चे जैसा लग
रहा था. वह छोटे-छोटे अधूरे वाक्य बोल रहा था और बहुत-सी ऐसी फ़ालतू बातें कर रहा
था जिनका मामले से कोई लेना-देना नहीं था.
" मुझे डर था कि आप घर पर नहीं मिलेंगे. "
आगंतुक ने कहना जारी रखा , " भगवान के लिए, आप अपना कोट पहनें और चलें ... दरअसल हुआ यह कि पापचिंस्की ... आप उसे जानते
हैं, अलेक्ज़ेंडर
सेम्योनोविच पापचिंस्की मुझसे मिलने आया. थोड़ी देर हम लोग बैठे बातें करते रहे.
फिर हमने चाय पी. एकाएक मेरी पत्नी चीख़ी और सीने पर हाथ रख कर कुर्सी पर निढाल हो
गयी. उसे उठा कर हमलोग पलंग पर ले गए. मैंने अमोनिया लेकर उसकी कनपटियों पर मला और
उसके मुँह पर पानी छिड़का, किंतु वह बिल्कुल मरी-सी पड़ी रही. मुझे डर है, उसे कहीं दिल का
दौरा न पड़ा हो ... आप चलिए ... उसके पिता की मौत भी दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई
थी ... . "
किरीलोव चुपचाप ऐसे सुनता रहा जैसे वह रूसी भाषा
समझता ही न हो.
जब आगंतुक अबोगिन ने फिर पापचिंस्की और अपनी
पत्नी के पिता का ज़िक्र किया और अँधेरे में दोबारा उसका हाथ ढूँढ़ना शुरू किया तब
उसने सिर उठाया और उदासीन भाव से हर शब्द पर बल देते कहा , "
मुझे खेद है कि मैं आपके घर
नहीं जा सकूँगा ... पाँच मिनट पहले मेरे बेटे की ... मौत हो गई है. "
"अरे नहीं ! " पीछे हटते हुए अबोगिन
फुसफुसाया , " हे भगवान ! मैं कैसे ग़लत मौक़े पर आया हूँ. कैसा अभागा दिन है यह ... वाकई यह
कितनी अजीब बात है. कैसा संयोग है यह ... कौन सोच सकता था ! "
उसने दरवाज़े का हत्था पकड़ लिया . वह समझ नहीं
पा रहा था कि वह डॉक्टर की मिन्नत करता रहे या लौट जाए. फिर वह किरीलोव की बाँह
पकड़ कर बोला, " मैं आपकी हालत बख़ूबी समझता हूँ. भगवान जानता है कि ऐसे बुरे वक़्त में आपका
ध्यान खींचने की कोशिश करने के लिए मैं शर्मिंदा हूँ. लेकिन मैं क्या करूँ ? आप ही बताइए, मैं कहाँ जाऊँ? इस जगह आपके अलावा
कोई डॉक्टर नहीं है. भगवान के लिए आप मेरे साथ चलिए ! "
(दो)
वहाँ चुप्पी छा गई. किरीलोव अबोगिन की ओर पीठ
फेरकर एक मिनट तक चुपचाप खड़ा रहा. फिर वह धीरे-धीरे ड्योढ़ी से बैठक में चला गया.
उसकी चाल यंत्रवत और अनिश्चित थी. बैठक में अनजले लैंपशेड की झालर सीधी करने और
मेज़ पर पड़ी एक मोटी किताब के पन्ने उलटने के उसके खोए-खोए अंदाज़ से लग रहा था
कि उस समय उसका न कोई इरादा था, न उसकी कोई इच्छा थी और न ही वह कुछ सोच पा रहा था. वह शायद यह भी भूल गया था
कि बाहर ड्योढ़ी में कोई अजनबी भी खड़ा है. कमरे के सन्नाटे और धुँधलके में उसकी
विमूढ़ता और मुखर हो उठी थी. बैठक से कमरे की ओर बढ़ते हुए उसने अपना दाहिना पैर
ज़रूरत से ज़्यादा ऊँचा उठा लिया और फिर दरवाज़े की चौखट ढूँढ़ने लगा. उसकी पूरी
आकृति से एक तरह का भौंचक्कापन झलक रहा था, जैसे वह किसी अनजाने मकान में भटक आया हो. रोशनी की एक चौड़ी पट्टी कमरे की एक
दीवार और किताबों की अलमारियों पर पड़ रही थी. वह रोशनी ईथर और कार्बोलिक की तीखी
और भारी गंध के साथ सोनेवाले उस कमरे से आ रही थी जिसका दरवाज़ा थोड़ा-सा खुला हुआ
था ... डॉक्टर मेज़ के पास वाली कुर्सी में जा धँसा. थोड़ी देर तक वह रोशनी में
पड़ी किताबों को उनींदा-सा घूरता रहा, फिर उठकर सोनेवाले कमरे में चला गया.
सोनेवाले कमरे में मौत का-सा सन्नाटा था. यहाँ
की हर छोटी चीज़ उस तूफ़ान का सबूत दे रही थी जो हाल में ही यहाँ से गुज़रा था.
यहाँ पूर्ण निस्तब्धता थी. बक्सों, बोतलों और मर्तबानों से भरी तिपाई पर एक मोमबत्ती जल रही थी , और अलमारी पर एक बड़ा लैंप जल रहा था. ये दोनो
पूरे कमरे को रोशन कर रहे थे. खिड़की के पास पड़े पलंग पर एक बच्चा लेटा था जिसकी
आँखें खुली थीं और चेहरे पर अचरज का भाव था . वह बिल्कुल हिल-डुल नहीं रहा था, किंतु उसकी खुली आँखें हर पल काली पड़कर उसके
माथे में ही गहरी धँसती जा रही लगती थीं . उसकी माँ उसकी देह पर हाथ रखे , बिस्तर में मुँह छिपाए , पलंग के पास झुकी बैठी थी. वह पलंग से पूरी तरह
चिपटी हुई थी.
(तीन)
डॉक्टर मातम में झुकी बैठी अपनी पत्नी की बगल
में आ खड़ा हुआ. पतलून की जेबों में हाथ डालकर और अपना सिर एक ओर झुकाकर वह अपने
बेटे की ओर ताकने लगा. उसका चेहरा भावहीन था. केवल उसकी दाढ़ी पर चमक रही बूँदें
ही इस बात की गवाही दे रही थीं कि वह अभी रोया है.
कमरे की उदास निस्तब्धता में भी एक अजीब सौंदर्य
था जो केवल संगीत द्वारा ही अभिव्यक्त किया जा सकता है. किरीलोव और उनकी पत्नी चुप
थे. वे रोये नहीं. इस बच्चे के गुज़र जाने के साथ उनका संतान पाने का हक़ भी वैसे
ही विदा हो चुका था जैसे अपने समय से उनका यौवन विदा हो गया था. डॉक्टर की उम्र
चौवालीस साल की थी. उस के बाल अभी से पक गए थे और वह बूढ़ा लगता था. उसकी मुरझाई
हुई पत्नी पैंतीस वर्ष की थी. आंद्रेई उनकी एकमात्र संतान थी.
अपनी पत्नी के विपरीत, डॉक्टर एक ऐसा व्यक्ति था जो मानसिक कष्ट के समय
कुछ कर डालने की ज़रूरत महसूस करता था . कुछ मिनट अपनी पत्नी के पास खड़े रहने के
बाद वह सोने वाले कमरे से बाहर आ गया. अपना दाहिना पैर उसी तरह ज़रूरत से ज़्यादा
उठाते हुए वह एक छोटे कमरे में गया, जहाँ एक बड़ा सोफ़ा पड़ा था. वहाँ से होता हुआ वह रसोई में गया. रसोई और
अलावघर के पास टहलते हुए वह झुककर एक छोटे-से दरवाज़े में घुसा और ड्योढ़ी में
निकल आया.
यहाँ उसकी मुठभेड़ गुलूबंद पहने और फीके पड़े
चेहरे वाले व्यक्ति से दोबारा हो गई.
"आख़िर आप आ गए ! "दरवाज़े के हत्थे पर हाथ
रखते हुए अबोगिन ने लम्बी साँस ले कर कहा, "भगवान के लिए, चलिए."
डॉक्टर चौंक गया. उसने अबोगिन की ओर देखा और उसे
याद आ गया ... फिर जैसे इस दुनिया में लौटते हुए उसने कहा, "अजीब बात है!"
अपने गुलूबंद पर हाथ रख कर मिन्नत भरी आवाज़ में
अबोगिन बोला, "डॉक्टर साहब! मैं आपकी हालत अच्छी तरह समझ रहा हूँ. मैं पत्थर-दिल आदमी नहीं
हूँ. मुझे आपसे पूरी हमदर्दी है. पर मैं आपसे अपने लिए अपील नहीं कर रहा हूँ. वहाँ
मेरी पत्नी मर रही है. यदि आपने उसकी वह हृदय-विदारक चीख़ सुनी होती, उसका वह ज़र्द चेहरा देखा होता, तो आप मेरे इस अनुनय-विनय को समझ सकते. हे ईश्वर
! ... मुझे लगा कि आप कपड़े पहनने गए हैं. डॉक्टर साहब, समय बहुत क़ीमती है. मैं हाथ जोड़ता हूँ, आप मेरे साथ चलि."
किंतु बैठक की ओर बढ़ते हुए डॉक्टर ने एक-एक
शब्द पर बल देते हुए दोबारा कहा, "मैं आपके साथ नहीं जा सकता."
अबोगिन उसके पीछे-पीछे गया और उसने डॉक्टर की
बाँह पकड़ ली, "मैं समझ रहा हूँ कि आप सचमुच बहुत दुखी हैं. लेकिन मैं मामूली दाँत-दर्द के
इलाज या किसी रोग के लक्षण पूछने मात्र के लिए तो आपसे चलने की ज़िद नहीं कर रहा !
"वह याचना भरी आवाज़ में बोला, "मैं आपसे एक इंसान का जीवन बचाने के लिए कह रहा हूँ. यह जीवन व्यक्तिगत शोक के
ऊपर है, डॉक्टर साहब. अब आप
मेरे साथ चलिए. मानवता के नाम पर मैं आपसे बहादुरी दिखाने और धीरज रखने की अपील कर
रहा हूँ."
"मानवता ! ... यह एक दुधारी तलवार है ! "किरीलोव
ने झुंझलाकर कहा." इसी मानवता के नाम पर मैं आपसे कहता हूँ कि आप मुझे मत ले
जाइए. यह सचमुच अजीब बात है ... यहाँ मेरे लिए खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा है और
आप हैं कि मुझे 'मानवता' शब्द से धमका रहे हैं. इस समय मैं कोई भी काम
करने के क़ाबिल नहीं हूँ. मैं किसी भी तरह आपके साथ चलने के लिए राज़ी नहीं हो
सकता. दूसरी बात, यहाँ और कोई नहीं है
जिसे मैं अपनी पत्नी के साथ छोड़कर जा सकूँ. नहीं, नहीं. "किरीलोव एक क़दम पीछे हट गया और और
हाथ हिलाते हुए इनकार करने लगा, "आप मुझे जाने को न कहें! "फिर एकाएक वह घबरा कर बोला, "मुझे क्षमा करें, आचरण-संहिता के तेरहवें खंड के मुताबिक़ मैं आपके साथ जाने को बाध्य हूँ. आपको
हक़ है कि आप मेरे कोट का कॉलर पकड़कर मुझे घसीटकर ले जाएँ. अच्छी बात है. आप बेशक
यही करें. लेकिन अभी मैं कोई भी काम करने के क़ाबिल नहीं हूँ. मैं अभी बोल भी नहीं
पा रहा ... मुझे क्षमा करें."
"डॉक्टर साहब , आप ऐसा न कहें. "उसकी बाँह न छोड़ते हुए
अबोगिन ने कहा, "मुझे आपके तेरहवें खंड से क्या लेना-देना ? आपकी इच्छा के ख़िलाफ़ अपने साथ चलने के लिए
आपको मज़बूर करने का मुझे कोई अधिकार नहीं. अगर आप चलने को राज़ी हैं तो ठीक, अगर नहीं तो मजबूरी में मैं आपके दिल से अपील
करता हूँ. एक युवती मर रही है. आप कहते हैं कि आप के बेटे की अभी-अभी मौत हुई है.
ऐसी स्थिति में तो आपको मेरी तकलीफ़ औरों से ज़्यादा समझनी चाहिए."
किरीलोव चुपचाप खड़ा रहा. उधर अबोगिन डॉक्टरी के
महान पेशे और उससे जुड़े त्याग और तपस्या आदि के बारे में बोलता रहा. आख़िर डॉक्टर
ने रुखाई से पूछा , "क्या ज़्यादा दूर जाना होगा?"
"बस, तेरह-चौदह मील. मेरे घोड़े बहुत बढ़िया हैं. डॉक्टर साहब, क़सम से, वे केवल एक घंटे में आपको वापस पहुँचा देंगे, बस घंटे भर में."
डॉक्टर पर डॉक्टरी के पेशे और मानवता के संबंध
में कही गई बातों से ज़्यादा असर इन आख़िरी शब्दों का पड़ा. एक पल सोचने के बाद
उसने उसाँस भर कर कहा, "ठीक है, चलो ... चलें."
फिर वह तेज़ी से कमरे घुसा. अब उसकी चाल स्थिर
थी . पल भर बाद वह अपना डॉक्टरी पेशे वाला कोट पहन कर वापस लौट आया . अबोगिन
छोटे-छोटे डग भरता हुआ उसके साथ चलने लगा और कोट ठीक से पहनने में उसकी मदद करने
लगा . फिर दोनों साथ-साथ घर से बाहर निकल गए.
(चार)
बाहर अँधेरा था लेकिन उतना गहरा नहीं जितना
ड्योढ़ी में था.
"आप यक़ीन मानिए, आपकी उदारता की क़द्र करना मैं जानता हूँ.
शुक्रिया. " गाड़ी में डॉक्टर को बैठाते हुए वह बोला, "लुका भाई, तुम जितनी तेज़ी से हाँक सकते हो, हाँको. भगवान के लिए जल्दी करो !"
कोचवान ने घोड़े सरपट दौड़ा दिए.
पूरे रास्ते किरीलोव और अबोगिन चुप रहे. अबोगिन
केवल एक बार गहरी साँस लेकर बुदबुदाया, "कैसी विकट और दारुण परिस्थिति है. जो अपने क़रीबी हैं, उन पर इतना प्रेम कभी नहीं उमड़ता, जितना तब , जब उन्हें खो देने का डर पैदा हो जाता है !"
जब नदी पार करने के लिए गाड़ी धीमी हुई, किरीलोव एकाएक चौंक पड़ा. लगा जैसे पानी के
छप-छप की आवाज़ सुनकर वह दूर कहीं से वापस आ गया हो. वह अपनी जगह हिलने-डुलने लगा.
फिर वह उदास स्वर में बोला,
"देखो, मुझे जाने दो. मैं बाद में आ जाऊँगा. मैं केवल अपने सहायक को अपनी पत्नी के
पास भेजना चाहता हूँ. वह इस समय बिलकुल अकेली रह गई है."
दूसरी ओर, गाड़ी जैसे-जैसे अपने मुक़ाम पर पहुँच रही थी, अबोगिन और अधिक धैर्यहीन होता जा रहा था. कभी वह
उठ जाता, कभी बैठता, कभी चौंककर उछल पड़ता तो कभी कोचवान के कंधे के
ऊपर से आगे ताकता. अंत में गाड़ी जब धारीदार किरमिच के परदे से रुचिपूर्ण ढंग से
सजे ओसारे में जा कर रुकी, उसने जल्दी और ज़ोर से साँस लेते हुए दूसरी मंज़िल की खिड़कियों की ओर देखा, जिनसे रोशनी आ रही थी.
"यदि कुछ हो गया तो ... मैं सह नहीं पाऊँगा.
"अबोगिन ने डॉक्टर के साथ ड्योढी की ओर बढ़ते हुए घबराहट में हाथ मलते हुए
कहा. "लेकिन परेशानी वाली कोई आवाज़ नहीं आ रही, इसलिए अब तक सब ठीक ही होगा. "सन्नाटे में
कुछ सुन पाने के लिए कान लगाए हुए वह बोला.
ड्योढ़ी में भी बोलने की कोई आवाज़ सुनाई नहीं
पड़ रही थी और समूचा घर तेज रोशनी के बावजूद सोया हुआ-सा लग रहा था.
सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उसने कहा, "न तो कोई आवाज़ आ रही है, न ही कोई दिखाई पड़ रहा है. कहीं कोई खलबली या
हलचल भी नहीं है. भगवान करे ... !"
वे दोनो ड्योढ़ी से होते हुए हाल पहुँचे, जहाँ एक काला पियानो रखा हुआ था और छत से फ़ानूस
लटक रहा था. यहाँ से अबोगिन डॉक्टर को एक छोटे दीवानखाने में ले गया, जो आरामदेह और आकर्षक ढंग से सजा हुआ था और
जिसमें गुलाबी कांति-सी झिलमिला रही थी.
"डॉक्टर साहब, आप यहाँ बैठें और इंतज़ार करें. "अबोगिन ने
कहा, "मैं अभी आता हूँ. ज़रा जा कर देख लूँ और बता दूँ
कि आप आ गए हैं. "
चारो ओर शांति थी. दूर , किसी कमरे की बैठक में किसी ने आह भरी, किसी अलमारी का शीशे का दरवाज़ा झनझनाया और फिर
सन्नाटा छा गया. लगभग पाँच मिनट के बाद किरीलोव ने हाथों की ओर निहारना छोड़कर उस
द्वार की ओर देखा जिससे अबोगिन भीतर गया था.
अबोगिन दरवाज़े के पास खड़ा था , पर वह अब वही अबोगिन नहीं लग रहा था जो कमरे के
भीतर गया था . उसके चेहरे पर स्याह परछाइयाँ तैर रही थीं. अब उसकी छवि पहले जैसी
परिष्कृत नहीं लग रही थी उसके चेहरे पर विरक्ति के भाव-सा कुछ आ गया था. पता नहीं, वह डर था या शारीरिक कष्ट . उसकी नाक , मूँछें और उसका सारा चेहरा फड़क रहा था, जैसे ये सारी चीज़ें उसके चेहरे से फूटकर अलग
निकल पड़ना चाहती हों. उसकी आँखों में पीड़ा भरी हुई थी और वह मानसिक रूप से
उद्वेलित लग रहा था.
लम्बे और भारी डग भरता हुआ वह दीवानखाने के बीच
आ खड़ा हुआ. फिर वह आगे बढ़कर मुट्ठियाँ बाँधते हुए कराहने लगा.
"वह मुझे दगा दे गई, डॉक्टर. "फिर 'दगा' पर बल देते हुए वह चीख़ा," मुझे छोड़ गई वह. दगा दे गई. यह सब झूठ क्यों ? हे ईश्वर. यह घटिया फ़रेब भरी चालबाज़ी क्यों? यह शैतानियत भरा धोखे का जाल क्यों? मैंने उसका क्या बिगाड़ा था? आख़िर वह मुझे क्यों छोड़ गई?"
डॉक्टर के उदासीन चेहरे पर जिज्ञासा की झलक उभर
आई. वह उठ खड़ा हुआ. और उसने अबोगिन से पूछा," पर मरीज़ कहाँ है?"
"मरीज़ ! मरीज़ ! "हँसता, रोता और मुट्ठियाँ हिलाता हुआ अबोगिन चिल्लाया, "वह मरीज़ नहीं, पापिन है ! इतना कमीनापन ! इतना ओछापन ! शैतान
भी ऐसी घिनौनी हरकत नहीं करता. उसने मुझे यहाँ से भेज दिया. क्यों ? ताकि वह उस दलाल, उस भौंडे भांड के साथ भाग जाए ! हे ईश्वर ! इससे
तो अच्छा था, वह मर जाती. यह
बेवफ़ाई मैं नहीं सह सकूँगा, बिल्कुल नहीं."
यह सुनते ही डॉक्टर तन कर खड़ा हो गया. उसने
आँसुओं से भरी अपनी आँखें झपकाईं. उसकी नुकीली दाढ़ी भी जबड़ों के साथ-साथ
दाएँ-बाएँ हिल रही थी. वह भौंचक्का हो कर बोला, "क्षमा करें, इसका क्या मतलब है ? मेरा बच्चा कुछ देर पहले मर गया है. मेरी पत्नी
मातम में है और शोक से मरी जा रही है. इस समय वह घर में अकेली है. मैं खुद भी बड़ी
मुश्किल से खड़ा हो पा रहा हूँ. तीन रातों से मैं सोया नहीं हूँ और मुझे क्या पता
लगता है ? क्या मैं एक भद्दी
नौटंकी में शामिल होने के लिए यहाँ बुलाया गया हूँ ? मैं ... मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा."
अबोगिन ने एक मुट्ठी खोली और एक मुड़ा-तुड़ा-सा
पुर्ज़ा फ़र्श पर डालकरउसे कुचल दिया, मानो वह कोई कीड़ा रहा हो, जिसे वह नष्ट कर डालना चाहता था. अपने चेहरे के सामने मुट्ठी हिलाते हुए दाँत
भींचकर वह बोला, "और मैंने कुछ समझा ही नहीं, कुछ ध्यान ही नहीं दिया. वह रोज़ मेरे
यहाँ आता है, इस बात पर ग़ौर नहीं
किया. यह भी नहीं सोचा कि आज वह मेरे घर बग्घी में आया था. बग्घी में क्यों ? मैं अंधा और मूर्ख था जिसने इसके बारे में सोचा
ही नहीं, अंधा और मूर्ख.
"उसके चेहरे से लग रहा था जैसे किसी ने उसके पैरों को कुचल दिया हो.
डॉक्टर फिर बड़बड़ाया , "मैं ... मेरी समझ में नहीं आता कि इस सब का मतलब
क्या है? यह तो किसी इंसान की
बेइज़्ज़ती करना हुआ , इंसान के दुख और वेदना का उपहास करना हुआ. यह बिलकुल नामुमकिन बात है, यह भद्दा मज़ाक है. मैंने अपनी ज़िंदगी में ऐसी
बात कभी नहीं सुनी."
उस व्यक्ति की तरह जो अब समझ गया है कि उसका घोर
अपमान किया गया है, डॉक्टर ने अपने कंधे
उचकाए और बेबसी में हाथ फैला दिए. बोलने या कुछ भी कर सकने में असमर्थ वह फिर
आरामकुर्सी में धँस गया.
"तो तुम अब मुझ से प्रेम नहीं करती, किसी दूसरे से प्यार करती हो ... ठीक है, पर यह धोखा क्यों, यह ओछी दग़ाबाज़ी क्यों ? "अबोगिन रुआँसे स्वर में बोला , "इससे किसका भला होगा ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? तुमने यह घटिया हरकत क्यों की ? डॉक्टर !" वह आवेग में चिल्लाता हुआ
किरीलोव के पास पहुँच गया , "आप अनजाने में मेरे दुर्भाग्य के गवाह बन गए हैं ... और मैं
आप से सच्ची बात नहीं छिपाऊँगा . मैं क़सम खा कर कहता हूँ कि मैं उस औरत से
मोहब्बत करता था. मैं उसका ग़ुलाम था. मैं उसकी पूजा करता था. मैंने उसके लिए हर
चीज़ क़ुर्बान कर दी. अपने सम्बन्धियों से झगड़ा किया. नौकरी छोड़ दी. संगीत का
अपना शौक़ छोड़ दिया. उन बातों के लिए उसे माफ़ कर दिया जिनके लिए मैं अपनी बहन या
माँ को कभी माफ़ नहीं करता ... मैंने उसे कभी कड़ी निगाह से नहीं देखा. मैंने उसे
कभी बुरा मानने का ज़रा-सा भी मौक़ा नहीं दिया. यह सब झूठ और फ़रेब है ... क्यों ? अगर तुम मुझे प्यार नहीं करती थी तो ऐसा
साफ़-साफ़ कह क्यों नहीं दिया ... इन सब मामलों में तुम मेरी राय जानती थी !"
काँपते हुए , आँखों में आँसू भरे, अबोगिन ने ईमानदारी से अपना दिल डॉक्टर के सामने
खोलकर रख दिया. वह भावोद्रेक में बोल रहा था. सीने से हाथ लगाए हुए, बिना किसी झिझक के वह गोपनीय घरेलू बातें बता
रहा था. असल में,एक तरह से
आश्वस्त-सा होता हुआ कि आख़िरकार ये गोपनीय बातें अब खुल गयीं. यदि इसी तरह वह
घंटे भर और बोल लेता, अपने दिल की बात कह
लेता, ग़ुबार निकाल लेता
तो यक़ीनन वह बेहतर महसूस करने लगता. कौन जाने, यदि डॉक्टर दोस्ताना हमदर्दी से उसकी बात सुन
लेता, शायद जैसा
कि अक्सर होता है, वह ना-नुकुर किए बिना और अनावश्यक ग़लतियाँ किए बिना ही अपनी किस्मत से
संतुष्ट हो जाता ... लेकिन हुआ कुछ और ही.
उधर अबोगिन बोलता जा रहा था , इधर अपमानित डॉक्टर के चेहरे पर एक बदलाव-सा
होता दिखाई दे रहा था. उसके चेहरे पर जो स्तब्धता और उदासीनता का भाव था वह मिट
गया और उसकी जगह क्रोध और अपमान ने ले ली. उसका चेहरा और भी हठपूर्ण, अप्रिय और कठोर हो गया. ऐसी हालत में अबोगिन ने
उसे धार्मिक पादरियों जैसे भावशून्य और रूखे चेहरेवाली एक सुंदर नवयुवती की फ़ोटो
दिखाते हुए पूछा कि क्या कोई यक़ीन कर सकता है कि ऐसे चेहरे वाली स्त्री झूठ बोल
सकती है, छल सकती है.
(पांच)
डॉक्टर अबोगिन के पास से पीछे हट गया और
भौंचक्का हो कर उसे देखने लगा.
"आप मुझे यहाँ लाए ही क्यों ? "डॉक्टर कहता गया. उसकी दाढ़ी हिल रही थी , "आपने शादी की, क्योंकि आपके पास इससे अच्छा और कोई काम नहीं था
... और इसलिए आप अपना यह घटिया नाटक मनमाने ढंग से खेलते रहे, पर मुझे इससे क्या लेना-देना ? मेरा आपके इस प्यार-मोहब्बत से क्या सरोकार ? मुझे तो चैन से जीने दीजिए. आप अपनी मुक्केबाज़ी
कीजिए, अपने मानवतावादी
विचार बघारिए, वायलिन बजाइए, मुर्ग़े की तरह मोटे होते जाइए, पर किसी
को ज़लील करने की हिम्मत मत कीजिए. यदि आप उनका सम्मान नहीं कर सकते तो तो
कृपा करके उनसे अलग ही रहिए."
अबोगिन का चेहरा लाल हो गया. उसने पूछा , "इसका मतलब क्या है ?"
"इसका मतलब यह है कि लोगों के साथ यह कमीना और
कुत्सित खिलवाड़ है. मैं डॉक्टर हूँ. आप डॉक्टरों को, बल्कि हर ऐसा काम करने वाले को , जिसमें से इत्र और वेश्यावृत्ति की गंध नहीं आती, नौकर और अर्दली क़िस्म का आदमी समझते हैं. आप
ज़रूर समझिए. लेकिन दुखी व्यक्ति की भावनाओं से खिलवाड़ करने का, उसे नाटक की सामग्री समझने का आपको कोई हक़ नहीं
."
अबोगिन का चेहरा ग़ुस्से से फड़क रहा था. उसने
ललकार कर पूछा," मुझसे ऐसी बात करने की आपकी हिम्मत कैसे हुई ?"
मेज़ पर घूँसा मारते हुए डॉक्टर चिल्लाया," मेरा दुख जानते हुए भी अपनी अनाप-शनाप बातें
सुनाने के लिए मुझे यहाँ लाने की हिम्मत आपको कैसे हुई ? दूसरे के दुख का मख़ौल करने का हक़ आपको किसने
दिया ?"
अबोगिन चिल्लाया , "आप ज़रूर पागल हैं. कितने बेरहम हैं आप. मैं खुद
कितना दुखी हूँ ... और ... और ... !"
घृणा से मुस्करा कर डॉक्टर ने कहा, "
दुखी ! आप इस शब्द का
इस्तेमाल मत कीजिए. इसका आपसे कोई वास्ता नहीं. जो आवारा -निकम्मे क़र्ज़ नहीं ले
पाते, वे भी अपने को दुखी
कहते हैं. मोटापे से परेशान मुर्ग़ा भी दुखी होता है. घटिया आदमी !"
ग़ुस्से से पिनपिनाते हुए अबोगिन ने कहा , "जनाब, आप अपनी औक़ात भूल रहे हैं! ऐसी बातों का जवाब लातों से दिया जाता है! "
अबोगिन ने जल्दी से अंदर की जेब टटोलकर उसमें से
नोटों की एक गड्डी निकाली और उसमें से दो नोट निकालकर मेज़ पर पटक दिए. नथुने
फड़काते हुए उसने हिक़ारत से कहा, " यह रही आपकी फ़ीस. आपके दाम अदा हो गए. "
नोटों को ज़मीन पर फेंकते हुए डॉक्टर चिल्लाया , "रुपए देने की गुस्ताखी मत कीजिए. यह अपमान इससे
नहीं धुल सकता."
अबोगिन और डॉक्टर एक-दूसरे को अपमानजनक और
भद्दी-भद्दी बातें कहने लगे. उन दोनों ने जीवन भर शायद सन्निपात में भी कभी इतनी
अनुचित, बेरहम और बेहूदी
बातें नहीं कही थीं. दोनों में जैसे वेदनाजन्य अहं जाग गया था. जो दुखी होते हैं
उनका अहं बहुत बढ़ जाता है. वे क्रोधी, नृशंस और अन्यायी हो जाते हैं. वे एक-दूसरे को समझने में मूर्खों से भी
ज़्यादा असमर्थ होते हैं. दुर्भाग्य लोगों को मिलाने की जगह अलग करता है . प्रायः:
यह समझा जाता है कि एक ही तरह का दुख पड़ने पर लोग एक-दूसरे के नज़दीक आ जाते
होंगे, लेकिन हक़ीक़त यह है
कि ऐसे लोग अपेक्षाकृत संतुष्ट लोगों से बहुत ज़्यादा नृशंस और अन्यायी साबित होते
हैं.
डॉक्टर चिल्लाया, "मेहरबानी करके मुझे मेरे घर पहुँचा दीजिए.
"ग़ुस्से से उसका दम फूल रहा था.
अबोगिन ने ज़ोर से घंटी बजाई. जब उसकी पुकार पर
भी कोई नहीं आया तो ग़ुस्से में उसने घंटी फ़र्श पर फेंक दी. क़ालीन पर एक हल्की, खोखली आह-सी भरती हुई घंटी ख़ामोश हो गयी.
तब एक नौकर आया.
घूँसा ताने अबोगिन ज़ोर से चीख़ा, "कहाँ मर गया था तू? बेड़ा गर्क हो तेरा! तू अभी था कहाँ? जा इस आदमी के लिए गाड़ी लाने को कह और मेरे लिए
बग्घी निकलवा! "जैसे ही नौकर जाने के लिए मुड़ा, अबोगिन फिर चिल्लाया - "ठहर ! कल से इस घर में एक भी ग़द्दार, दग़ाबाज़ नहीं रहेगा. सब निकल जाएँ ... दफ़ा हो
जाएँ यहाँ से ... मैं नए नौकर रख लूँगा. बेईमान कहीं के!"
गाड़ियों के लिए प्रतीक्षा करते समय डॉक्टर और
अबोगिन ख़ामोश रहे. नाज़ुक सुरुचि का भाव अबोगिन के चेहरे पर फिर लौट आया था. बड़े
सभ्य तरीके से वह अपना सिर हिलाता हुआ, कुछ योजना-सी बनाता हुआ कमरे में टहलता रहा. उसका ग़ुस्सा अभी शांत नहीं हुआ
था, पर वह ऐसा ज़ाहिर
करने का प्रयास कर रहा था जैसे कमरे में शत्रु की मौजूदगी की ओर उसका ध्यान भी न
गया हो. उधर डॉक्टर एक हाथ से मेज़ पकड़े हुए स्थिर खड़ा अबोगिन की ओर बदनुमा , गहरी हिक़ारत की निगाह से ताक रहा था, गोया वह उसका शत्रु हो.
(छह )
कुछ देर बाद जब डॉक्टर गाड़ी में बैठा अपने घर
जा रहा था, उसकी आँखों में तब
भी घृणा की वही भावना क़ायम थी. घंटे भर पहले जितना अँधेरा था, अब वह उससे ज़्यादा बढ़ गया था. दूज का लाल चाँद
पहाड़ी के पीछे छिप गया था और उसकी रखवाली करने वाले बादल सितारों के आस-पास काले
धब्बों की तरह पड़े थे. पीछे से सड़क पर पहियों की आवाज़ सुनाई दी और बग्घी की लाल
रंग की लालटेनों की चमक डॉक्टर की गाड़ी के आगे आ गई. वह अबोगिन था जो प्रतिवाद
करने, झगड़ा करने या
ग़लतियाँ करने पर उतारू था.
पूरे रास्ते डॉक्टर अपनी शोकाकुल पत्नी या अपने
मृत पुत्र आंद्रेई के बारे में नहीं बल्कि अबोगिन और उस घर में रहने वालों के बारे
में सोचता रहा, जिसे वह अभी छोड़ कर
आया था. उसके विचार नृशंस और अन्यायपूर्ण थे. उसने मन-ही-मन अबोगिन, उसकी बीवी, पापचिंस्की और सुगंधित गुलाबी उषा में रहने वाले सभी लोगों के ख़िलाफ़ क्षोभ
प्रकट किया और रास्ते भर बराबर वह इन लोगों के लिए नफ़रत और हिक़ारत की बातें
सोचता रहा. यहाँ तक कि उसके दिल में दर्द होने लगा और ऐसे लोगों के प्रति एक ऐसा
ही दृष्टिकोण उसके ज़हन में स्थिर हो गया.
वक़्त गुज़रेगा और किरीलोव का दुख भी गुज़र
जाएगा. किंतु यह अन्यायपूर्ण दृष्टिकोण डॉक्टर के साथ हमेशा रहेगा -- जीवन भर, उसकी मृत्यु के दिन तक.
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सुशांत सुप्रिय
A-5001, गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड, इंदिरापुरम,
ग़ाज़ियाबाद - 201010
8512070086/ई-मेल : sushant1968@gmail.com
उम्दा अनुवाद है, सुशांत जी। शानदार।
जवाब देंहटाएंकहानी पहले भी पढ़ी है इसका पुनर्पाठ गहरे तक असर कर गया। बहुत रवानगी के साथ अनुवाद किया है। बढ़िया।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा और सहज अनुवाद ... बधाई सुशांत जी...
जवाब देंहटाएंयह कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी. इसमें एक सहजता है.
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