मुंबई के लोकल ट्रेन की अपनी एक अजब महागाथा है. इस महानगर में वह जीवन वृत्त है. वह गन्तव्य तक ले जाने – लाने का माध्यम तो है ही अपने आप में कई बार मंजिल भी है- ख़ासकर अगर निलय उपाध्याय जैसा कवि हो तो. इन कविताओं में इस लोकल ट्रेन की अनेक छबियाँ हैं जो मोह लेती हैं.
निलय पिछले चार महीने से गंगा-नदी पैदल यात्रा पर थे-
गंगोत्री से गंगासागर तक. सकुशल उन्होंने यह यात्रा पूरी कर ली है. इस अनूठे कवि
की इस दुर्गम यात्रा की सफलता के लिए बधाई.
इतना ही वक्त
दोपहर का वक्त
था
खिडकी पर
बैठा देख रहा था बाहर
मन मे चल रहा
था जाने कौन सा विचार
कि झटके से रूक
गई
लोकल
लोकल झटका नही
देती
सिग्नल हरा हो
और रूक जाए ट्रेन
ऎसा तो कभी हुआ
ही नही
जरूर कुछ बात
है
बात कुछ खास है
कुछ लोग उतर कर
जाते दिखे
पीछे की ओर,पता
चला कोई कट गया है
कटी हुई लोथ
पास थी मेरे डब्बे के,
दरवाजे पर खडॆ
झांक कर देख
रहे थे लोग,
मै आया तो मेरे
लिए भी
किसी ने जगह
बना दी हटकर,
सामने दिख रही
थी पटरी के बाहर पैरो में
कसी हुई काले
रंग की चप्पल से झांक रही थी
एडियां और मारे
भय के
थर थर कांपती
उंगलिया
उपर नीले रंग
की ही जिन्स पैंट
बस घुटनों तक और
जिस्म का बाकी हिस्सा
पटरी के बीच जाने
किस हाल में होगा..
वापस आकर बैठ
गया मैं
अपनी सीट पर
सब के सब खामोश
थे
कहीं नहीं थी
मृतक के प्रति संवेदना
किसी ने नही की
कोशिश यह जानने की
कौन था वह युवक,
की थी आत्महत्या या गलती से
आ गया था चपेट
में
सबको याद आ रहा
था अपना काम
सब सोच रहे थे
आखिर कितनी देर रूकेगी
यहां लोकल
क्या है इसका
नियम
सामने बैठा
कहने लगा एक नियम है
कि जब तक पटरी
पर रहेगा शव
नही चलेगी लोकल
खबर हो गई है
स्टेशन मास्टर को
आ रहे है और
सचमुच आते दिखाई दे गए
स्ट्रेचर उठाए
दो लोग
और सोचने लगा
मै कि यही है नियम
सचमुच इतना ही वक्त रूकती है जिन्दगी
घरों मे भी
जब तक नहीं उठा लिया जाता शव
लोकल के डब्बे में शव
और इस बार
जब मिला
लोकल के डब्बे
मे शव
मच गया हाहाकार
तीन महीनों में
बारहवी घटना थी
यह शव मिलने
की,
अन्तर बस इतना
था कि इस बार
तोड दी थी लोगो
ने चुप्पी,फ़ुफ़कारने लगे थे
अखबार और लोकल
से होते विधान सभा तक
गूंज गई थी
लोगों की आवाज
सक्रिय हुई
पुलिस
हत्यारे और शव
रखने वाले की
तलाश में चला
अभियान
शव का फ़ोटो छाप
चिपकाया हर स्टेशन पर
और आखिर में
विहार जाकर पकड कर ले आई
पुलिस उसे
जो सगा भाई था
मृतक का
और शुरू हुई
पूछताछ
कूंथ कर कांथ
कर
पीट कर, पाट कर
प्यार से
पुचकार कर पूछे गए,
जाने कितने
सवाल, धन के प्यार के
और हो सकते थे
जितने भी कारण
आपसी तकरार के
पूछे गए बार
बार
मगर हर बार आया
एक ही जबाब
यही कहते थे
घटना के सारे गवाह
दोनो भाई करते
थे नौकरी
सिक्यूरिटी
कम्पनी में
ड्यूटी थी बारह
घंटे की, कम था वेतन करना पडता था
दोनो पालियो मे
काम..अचानक छोटे को हुआ बुखार,
पहले लगा ठीक
हो जाएगा यूं ही
जब नहीं हुआ तो
बडे ने दवा के दुकान से लाकर दी
टिकिया
बेअसर हुई,अगले
दिन दिखाया वडे डाक्टर से
कराया खून की
जांच,
खर्च हो गई
दोनो की तनख्वाह
और जाने क्या
हुआ कि मर गया उसी रात
शव को
गांव ले जाने
की बात दूर थी
नही मिले पैसे
कि कर सके शवदाह और लाकर
छोडगया
सुना था कि
जरूर करती है लोकल
पूरे विधान के
साथ
अपने मृतको का अंतिम संस्कार
पांच सेकेन्ड
पांच सेकेन्ड का वह समय
पांच जन्मों से अधिक सुखद था
मेरे लिए
खडा था नाय गांव स्टेशन पर
लोकल आई
महिला स्पेशल थी
अगली का करना होगा इंतजार
सोचकर खडा था कि पुकारा किसी ने
मुड के देखा-अरे गार्ड साहब आप
और सवार हो गया गार्ड के डब्बे
में
अगला स्टेशन भायन्दर
दस सेकेन्ड रूकी ,
चली तो पांच सेकेन्ड लगा
प्लेटफ़ार्म पार करने में
क्या बताउं ,
कैसे बयान करुं भाई
उस पांच सेकेन्ड के बारे में
लगा जैसे दुनिया के
सबसे खूबसूरत और सुगन्धित
अभी अभी खिले, ओस कण भरे
तरह तरह के फ़ूलों से खचाखच भरे
चन्दन वन की मेड पर निकला हूं
टहलने
हर पांच मिनट बाद नया स्टेशन
और हर स्टेशन पर वहीं
पांच सेकेन्ड
आह जैसे
आसमान में सितारो के बगीचे की
मेड पर
ठूस ठूस भरी
फ़ेफ़डो में सांस, आखों में चित्र,
नाक मॆ सुबास, नौकरी हो तो गार्ड की
ट्रेन हो तो महिला स्पेशल
और समय हो तो सुवह का
क्यों गार्ड साहब ?
मुस्कराए गार्ड साहब
व्यंग्य था निगाहो मे, आज पूरे दिन
मेरी ड्यूटी है महिला स्पेशल पर
कवि जी, छ बजे शाम को भी आ जाईएगा
जरा
चलेंगे साथ, देखिएगा टहनी से
टूटकर देवो के सिर
चढने के बाद इन फ़ूलो का हाल
और ले जाईएगा कुछ अलगसुवास
कुछ अलग चित्र
असल जिन्दगी के भी
थैला
डब्बे में
सामान रखने
वाले रैक पर
थैले के उपर
पडा था एक बडा सा थैला
लगा टूट न गया
हो थैले में कुछ,
थोडी नाराजगी
के साथ पूछा
ये किसका थैला
है भाई
जब नहीं मिला जवाब
तो जोर से पूछा
और फ़िर नहीं
मिला कोई जवाब
तो जरा और जोर
से पूछा
कई लोगों के
कई कई बार
पूछने के बाद भी
नही मिला जवाब तो
डब्बे में जितने थे
सबकी नजरे जाकर
टिक गई
थैले पर
थैला हो और
किसी का न हो
ये कैसे हो
सकता है
एक पल में
पत्ते की तरह कांप गए
सब के सब, सबकी
आंखो में तैर गई
धमाकों की
तस्वीर, लगा होने को है कोई
अनहोनी
खत्म होने को
हो यह सफ़र
जिन्दगी का
अजीब से खौफ़ के
साये मे
की गई चेन
पुलिंग
और नहीं रुकी
कमब्ख्त लोकल
तो वहां जहां
खडा होना कठिन था
खाली हो गई आस
पास पांच फ़ुट की जगह
गोहराए जाने
लगे देव, मानी जाने लगी मन्नते
घरघराने लगे फ़ोन
अब अगले स्टेशन
पर आएगी पुलिस,
आएंगे खोजी
कुते, बम निरोधी दस्ते
और कहीं
उसके पहले कुछ हो
गया तो
घटनाए होकर
गुजर जाती हैं
साथ नहीं छोडती
उसकी
परछाईया
अच्छा हुआ कि
सुनाई पड गया
यह सन्नाटा
गेट पर हवा खा
रहे, कान में इयर फ़ोन लगा
इतमिनान से गानासुन
रहे युवक को
अजीब सी
जवांमर्दी के साथ बैग उठाया
और जब कहा-
मेरा है
बदल गया मंजर,
होड लग गई
सीट लूटने की,
शुरू हो गए झगडे
वो सीट मेरी
है.
मै तो वहां
बैठा था
तो पता चला
६.३० पर हुआ था
बमविस्फ़ोट
६.४५ तक पहुंचे पत्रकार ,
६.५० तक पहुंच
गई पुलिस,
और ७ बजे आला अधिकारी
यात्रियों की
भीड थी
इस कदर भरे थे
तनाव से जैसे चुल्हे पर
डभक रहा हो
अदहन,पक रहा हो
गुस्सा
झुलसकर
घायल पडा कराह रहा था
लोहे का एक
डब्बा,रेल की पटरियो
गिट्टियो पर गिरा
ताजा था खून,
जगह जगह लोथडे
पडे थे मांस के
एक हाथ था
कट कर गिरा हुआ
माटूंगा स्टेशन
पर खबर थी
२५ लोगो के
मरने की
और उससे कुछ
अधिक लोगो के घायल होने की
मगर न तो एक भी
घायल था वहां, न मृतक,
पत्रकारो को
जरूरी था भेजना
समाचार
पुलिस को करनी
थी तहकीकात
मगर हिम्मत
नहीं हुई किसी की
किसी से पूछने
की
अस्पताल का नाम
कौन नहीं जानता
लोकल के पसेन्जरो
के गुस्से को
बुरी लग गई
कहीं कोई बात
तो टेढी कर
देते है नाक
तभी कहीं से
दौडता हुआ आया
एक और कहा
घायलो को जरूरत
है खून की
और जब चल पडा
कारवा तो पता चला
पत्रकारों को,
पुलिस के अधिकारियों को
अस्पताल का नाम
जाते जाते उठा लिया था किसी ने
वह कटा हाथ भी
क्या पता उसे भी जोड दे कोई डाक्टर
यही तो जज्बा
है
लोकल के
पसेन्जरों का
जिससे बुरे लोग
डरते है, भले कहते है सलाम
गैंग मैन
चेनपुलिंग करने
पर
नहीं रूकती लोकल
कभी लाल नहीं
होता
लोकल का सिग्नल
पहले होती थी
दो स्टेशन के
बीच, अब होती है
दो सिग्नल के
बीच.
मुंबई की लोकल के
बहुत अनकहे दुख है
जो गैग मैन ही जानता
है
हो सकता है कि
आप नहीं जानते हो
गैंग मैन को
गैंग मैन
अरे वही जो रोज
बीस किलो वजन उठा
बीस किलोमीटर
चलता है पटरी के संग
एक एक नट बोल्ट
को देखता
शंकित भयभीत
और चौकस
पसीने से लथपथ
कन्धों पर
सावधान की
मुद्रा में होते है उसके
सब्बल पाटी
पंजा शैवाली और बीट
जैसे नजर भी
डाल दे तो उड कर
आ जाऎंगे हाथ
पल भर में
तीन सौ साठ
किलो भारी स्लैब हटा
छनाई कर उसकी
तलो में डालता है खरी
पैकिंग करता
है,यह तो सिर्फ़
गैंग मैन ही
जानता है
कि लोकल
यहीं से लेती
है सांस
एक मजेदार बात
बताऊं
चेनपुलिंग करने
प रनहीं रूकती जो लोकल
लाल नहीं होता
कभी जिसका सिग्नल
रूक जाती है
गैंग मैन को पटरी पर देख
और निहारती
रहती है
एक ट्क
अपलक
अब पता नहीं
इसमे कितना है सच
कितना अफ़वाह
पर सब तो यहीं
कहते है-
लोकल गैंग मैन
से प्यार करती है
कुंभ स्नान
बोले पटेल जी
विरार से खुलने
वाली
पहली लोकल से
कभी मत जाना आप
भले बिगड जाय
बना हुआ काम
शाम को ही खा
पीकर आते है
दूर दराज के
गांव के किसान
और आखिरी लोकल के
अपने तयशुदा डब्बे में
बन्द कर दरवाजा
सो जाते है
रात भर खांसते
है, थूकते है जहां तहां
चिल्लाते रहे
आप
नहीं खोलेंगे दरवाजा
और कुछ नहीं
कर सकते उनका आप
पुलिस का भी जोर
नहीं चलता उन पर
और कहीं खोल
दिया तो
डब्बे में खडा
नहीं हो सकते आप,
दूध ,मछली
,केला, सब्जी
और..और...
आदमी के पसीने
और जाने कैसी
कैसी
उबकाई आने वाली
गंध,
इस तरह लेटे
होगे
पसरकर, जैसे
उगे हो डब्बों में
और फ़ेंक दिया
हो कंछा
कुछ उतरेगे
बोरीवली
कुछ अंधेरी
कुछ बांद्रा
और दादर आते
आते
जब उतर जाऎंगे
सब के सब
तब होगी मुंबई
मे सुवह
कह रहे थे
मुझसे पटेल जी
भले बिगड जाय
बना हुआ काम
पर विरार से
खुलने वाली
पहली दूसरी और
तीसरी लोकल से
मत जाना आप
और सोच रहा था
मै
कि मुंबई आने
के बाद छूट गई गंगा
छूट गया जो
कार्तिक का स्नान
आज की लोकल मे
ही होगा
कहां मिलेंगी
इतनी सारी नदियां
एक साथ
अभी अभी फेसबुक पर अरुण जी द्वारा लगाई गयी पोस्ट में 'पाँच सेकंड' पढ़ते ही पाँच सेकंड भी नहीं लगे मुझे यहाँ तक पहुँचने मे...मुंबई लोकल की पूरी सवारी की निलय जी की इन कविताओं के साथ...हृदय द्रवित भी हुआ और लोकल के साथ मुझे भी गेंग मैन से प्यार हुआ....बहुत सरल पर बहुत गहरी कवितायें........अब चलूँ निलय जी की और कवितायें पढ़ने ...
जवाब देंहटाएंखूब बधाई निलय जी को और खूब शुक्रिया अरुण जी आपका इन्हे पढ़वाने के लिए....:)
अरुण जी, आपके माध्यम से आज सुबह सुबह १० बजे की लोकल पकड़ ली...और जब यह चल पडी तो मुंबई में बिताए सारे पल जीवंत हो उठे. इतनी प्रामाणिकता के साथ और इतने गहरे डूबकर लिखा है निलय जी ने इन कविताओं को कि लगता है कविता नहीं यहाँ आस पास ही कुछ घटित हो रहा है..मुंबई की लाइफलाइन को परिभाषित करती कविताएँ..आपका शुक्रिया और निलय जी को सार्थक सृजन की बधाई...
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