मेघ - दूत : फ्रेंच कविताएँ : मदन पाल सिंह

फ्रेंच पेंटर :Jean-Léon Gérômesnak : carpet-merchants-1887-minneapolis

अनुवाद दो संस्कृतियों के बीच सेतु है. एक ऐसा सेतु जिससे साहित्य का अवागमन होता है. अनुवाद मूल से ही अपनी भाषा में होने चाहिए. कविता के अनुवाद का मसला बहुत ही नाज़ुक है खासकर विदेशी क्लासिक का आज की हिंदी में अनुवाद तो बहुत ही चुनौतीपूर्ण है. मदन पाल सिंह फ्रेंच कविता का सीधे फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद के एक बड़े काम में जुटे हुए हैं. उनकी कुछ अनूदित कविताएँ आप सबके लिए. इन कविताओं में शास्त्रीय कविताओं के अनुसार लयात्मकता की रक्षा करते हुए फ्रांसीसी आस्वाद बरकरार रखा गया है.   


फ्रॉस्वा वियॉ (
1431-1464?)*                                                                                     
उन औरतों की गाथा जो अब रही नहीं ...



मुझे बताओ किस देश में अब
एक सुन्दर रोमन फ्लोरा1 रहती,
कहाँ है आर्चिपियाद2 और ताइस3
उसकी चचेरी बहन कौन थी,
कहाँ है इको4, बात करती भ्रम की दीवारों से
तालाब, नदी के ऊपर उसके किनारों से,
किसका रूप महान् बनिस्बत इंसानों से?
कहाँ रही वह बर्फ गिरी जो पिछले वर्षों से ?

कहाँ है बुद्धिमान एलोइस5 बहुत सुन्‍दर
कौन था जिसने सजा सही और संत बना उसकी खातिर?
वह था पियर एसबाइयार6 सेंत डेनिस में
और प्यार के लिए उसने दर्द लिया अपने दिल में,
कुछ इसी तरह, कहाँ है वह रानी7
जिसकी आज्ञा से बुरीदॉ8 को सजा मिली,
भरा थैले में और फेंका उसको सैन नदी में?
कहाँ रही वह बर्फ गिरी जो पिछले वर्षों में?

एक रानी गोरी, कुमुदिनी की तरह खिली9
गाती थी मधुर जैसे जलपरी.
बड़े पैर वाली बेर्थ10, बेत्रिक्स11 और आलीज़12
मेन काउंटेस की शान लिए आरामबुर्गी13,
ज़ॉन दार्क14 एक महान् लोरेन का पता चला?
जिसे अंग्रेजों ने रूऑ में जिंदा जला दिया,
गयीं कहाँ वे, पवित्र मिरियम, कहाँ हैं वे?
कहाँ रही वह बर्फ गिरी जो पिछले वर्षों में?

राजकुमार, नहीं पूछो मुझसे हर हफ्ते
हर वर्ष, एक सवाल— `कहाँ हैं वे?'
सिर्फ एक उत्तर दे सकता, अपने अन्तर से :
कहाँ रही वह बर्फ गिरी जो पिछले वर्षों से ?


कवि की प्रामाणिक मृत्यु-तिथि उपलब्ध नहीं है.
1 एक प्रसिद्ध रोमन गणिका और पॉप्पी की प्रेमिका.
2 सोफोक्लीज की रखैल.
3 सिकंदर महान् की प्रेमिका. वह चौहदवीं शताब्दी के मध्य में एथेंस आई थी.
4 ग्रीक मिथक के अनुसार एक अति-सुन्दर वनदेवी. इको को अपनी स्वयम् की आवाज़ से प्रेम था.
5 एक विद्वान् और सुन्दर लड़की, जिसे अपने शिक्षक पियर एसबाइयार से प्रेम हो गया था. बाद में दोनों को सामाजिक और धार्मिक कारणों से अलग होना पड़ा, परन्तु दोनों के मध्य पत्र-व्यवहार चलता रहा. इसी के साथ धार्मिक-सामाजिक दबाव से एलोइस को जबरन नन बना दिया गया.
6 बारहवीं शताब्दी का महान् दार्शनिक और धर्मवेत्ता. अपनी प्रेमिका एलोइस से पृथक किये जाने के बाद चर्च में पादरी हो गया था.
7 बुरगोन की रानी, जो युवाओं को फुसलाकर अपनी कामवासना की पूर्ति करती थी और ऊबने पर उन्हें सैन नदी में फिंकवा देती थी. कहा जाता है कि बुरीदॉ को राजा ने शक आधार पर सैन नदी में फिंकवा दिया था, जिसे उसके शिष्यों ने बचा लिया था.
8 एक प्रसिद्ध फ्रेंच दार्शनिक, तार्किक और शिक्षाविद्. खगोल और भौतिक विज्ञान में भी उसका कार्य अविस्मरणीय है. उसने पेरिस विश्वविद्यालय में अध्यापन किया था. सैन नदी की घटना के बाद वह विएना चला गया था, जहाँ उसने विएना विश्वविद्यालय की स्थापना की।
9 शायद बुरबोन की रानी के लिए प्रयुक्त. उसका विवाह पीटर प्रथम से हुआ था. कहा जाता है कि वह अत्यन्त सुन्दर और बुद्धिमान् थी. बाद में पीटर प्रथम ने उसे त्याग दिया था.
10 लाओन के काउंट कारीबेर की पुत्री. फ्रांस के सम्राट् पेपै ल ब्रेफ की पत्नी और राजा शार्लमन की माता.
11 बेत्रिक्स, प्रोविन्स की काउंटेस, जिसका विवाह शार्ल द फ्रांस से हुआ था. अपने सौंदर्य के लिए विख्यात.
12 आलीज़, जिसे अदेल के नाम से भी जाना जाता है, फ्रांस के सम्राट् लुई VII की पत्नी थी.
13 आरामबुर्गी, मेन की काउंटेस और ऑजू के काउंट की पत्नी.
14 ज़ॉन दार्क (1412-1431) फ्रांस की वीरांगना. उसने अपनी मातृभूमि के लिए अंग्रेजों से युद्ध किया. अपनी वीरता और दिव्यता के लिए विख्यात. बाद में अंग्रेजों ने उसे उन्नीस वर्ष की आयु में जिंदा जला दिया था.


मर्सलीन देबोरद - वालमोर (1786-1859)                                                                          
सादी के गुलाब



सुबह, मैं चाहती थी गुलाब तुम्हें अर्पित करना
मैंने गुलाब चुने, शुरु किया कमरबंद में रखना,
गाँठें बहुत तंग थीं, कमरबंद सह नहीं पाया.

गाँठें चटक गयीं, गुलाब बिखर गये
हवा में बहकर वे सागर की ओर चले,
वे सागर में मिले, नहीं एक वापस आया.

लहरें दिखती लाल, जैसे लपटें दहकें
इस रात मेरे वस्त्र भी खुशबू से महकें,
मुझ पर लो श्वास, खुशबू का नशा छाया.
________

ईरान के महाकवि शेख सादी के लिये प्रयुक्त. मर्सलीन का शेख सादी की तरह रूहानी प्रेम के प्रति विशेष झुकाव था.




विक्तर ह्यूगो (1802-1885)                                                                         
कल भोर में1
     


कल भोर में रोशनी जब गाँव को नहलाती
मैं निकल पड़ूँगा, देखना तुम, मेरा इन्तजार बरसों से करतीं,
जंगल से मैं गुजरूँगा, पर्वत को पार कर जाऊँगा
तुमसे दूर नहीं रह सकता, मैं पास तुम्हारे आऊँगा.

मैं आगे बढ़ता जाऊँगा अपनी सोच में डूबा-सा
इधर-उधर नहीं देखूँगा, न आवाजों में खोया-सा.
एक अकेला, अंजाना, कमर झुकी हुई हाथ बंधे हुए
दु:ख में मैं डूबा, जब दिन गमों में रात लगे.

मैं नहीं देखूँगा सूर्यास्त, सांझ जब घिर जायेगी
नहीं देखूँगा नौका-पाल जो आरफ्लर2 को वापस आयेगी.
जब पहुँचूँगा उसकी कब्र पर सिज़दा मैं कर पाऊँगा
हरे उक्स3, खिले ब्रुऐर4 का गुच्छा मैं रख आऊँगा.

___________

1 विक्तर ह्यूगो की बड़ी बेटी लिओपॉल्दीन (1824-1843) के नाम.
लिओपॉल्दीन की उन्नीस वर्ष की आयु में अपने पति शार्ल वॉकेरी (1817-1843) के साथ एक नौका दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी.
2 उत्तरी फ्रांस में आव्र के पास एक छोटा कस्बा जो पहले एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक बन्दरगाह था.
3, 4 क्रमश: सदाबहार पवित्र कंटीली झाड़ी और विभिन्न रंगों के नाजुक पुष्प वाला एक पौधा.


ज़ेरार द नरवाल (1808-1855)                                                                           
दादी


तीन साल पहले गुजरीं मेरी बूढ़ी दादी
बड़ी सज्जन थीं, हाय जब उनको दफनाया,
माता-पिता, इष्ट-मित्र सब रोये थे
बहते थे आँसू दर्द में सब खोये थे.

केवल मैं था अजब, अकेला चकराया-सा
दर्द से जैसे दूर, चकित कुछ भरमाया-सा,
कहा किसी ने देखो कैसा बेदर्द है
नहीं आँखों में आँसू न कोई इसे दर्द है.

फिर भारी भरकम दर्द लोगों का खत्म हो गया
तीन साल में दर्द दिलों का कहाँ खो गया,
अच्छे-बुरे, ऊँच-नीच, क्रान्तियों का चक्कर
धुल गयी बड़ी इबादत जैसे दीवार पर.

अब अपने में खोया अकेला मेरा दिल रोता
तीन साल से जैसे समय से ताकत लेता,
जैसे वृक्ष छाल पर नाम उकेरा बढ़ता जाता
अब यादों का गुब्बार दर्द को और बढ़ाता.



शार्ल बादलेयर (1821-1867)                                                                                  
आदमी और समुद्र


आदमी है आजाद, हमेशा सागर को प्रेम करेगा
सागर उसका दर्पण, आत्मा की छवि तलाश करेगा,
सागर की लहरें अमित चंचल, एक दुधारी
आदमी की भावना एक कूप, जो नपे नहीं.

तुम्हें भाता गोता खाना और झपटना
अपनी छवि को अपने आलिंगन में भरना.
कभी भूलना अस्तित्व आवाज पकड़ने खातिर
उन लहरों में जो भड़कें, चीखें, रुकें न फिर.

तुम दोनों गुप्त गहन काली छाया से भरते
कभी आदमी की गहराई किसी को नहीं दिखे,
सागर के गर्भ में क्या? नहीं कोई जान सकेगा,
तुम दोनों प्रतिद्वंद्वी, कौन अधिक रहस्य छिपा सकेगा.

और इन सबमें सदियाँ गुजर गयीं
इस द्वंद्व युद्ध में पछतावा, दया दिखे नहीं,
मौत और हत्या के तांडव से तुम प्रेम करो
तुम लड़ाके जन्म-जन्म से, दयाहीन तुम भाई दो.


रेने फ्रॉस्वा सुली प्रुदोम (1839-1907)                                                                       
दिल एक टूटा गमला


गमला, जिसमें एक वरवेन1 पौधा मरता
गमला पंखे से टकराया था,
हलके से टकराया जैसे अचानक छूता
नहीं कोई आवाज, कोई सुन पाया था.

एक मामूली छिलन-दरार उसमें आती
हर दिन गमले को दुख दे, पीड़ा पहुँचाती,
अदृश्य-सी दरार जैसे दुख हरजाई
नहीं दरार रुके आगे बढ़ती जाती.

और गमले का पानी बूँद-बूँद रिस जाता
पौधे का जीवन-रस भी जैसे चुक जाता,
कोई नहीं जाने, यह क्या हुआ?
नहीं गमले को छुओ, यह गमला चटक गया.

इस तरह कोई हाथ, जिसे दिल चाहता
हलकी-सी दे चोट, पर मार्मिक दुख पहुँचाता,
दिल में पड़ी दरार, घाव फिर बढ़ता जाता
फिर पौधे की तरह प्यार का फूल मुरझाता.

अमर दर्द ओझल दुनिया की आँखों से
गमला दर्द महसूस करे, सिसके और कराहे,
उसके छिपे घाव गहरी पीड़ा देते
गमला चटक गया, न छुओ उसे.
_______________-

1 यूरोप और पेरू में उगने वाला औषधीय गुणों से युक्त एक छोटा पौधा.

पॉल वरलेन (1844-1896)                                                                                   
वीरानापन

एक अजनबी दर्द की बारिश
मेरे दिल में अलख जगाती,
जैसे वर्षा की बौछारें
शान्त शहर को नहलातीं.

जब मधुर राग इस बारिश का
बजता है छत और धरती पर,
फिर दर्द की बारिश होती है
मेरे इस कातर हृदय पर.

समझ नहीं पाता पीड़ा को
जो उमड़ रही है आँधी सी,
पता नहीं ऐसा क्यों होता?
जब छाती है वीरानी सी.

बहुत दु:खद है दर्द वीराना
जो दिल में भर जाता है,
प्यार नहीं, न नफरत दिल में
पर कैसी पीर जगाता है!

पॉल ऐलुआर (1895-1952)                                                                         
यहाँ जीने के लिए


मैंने आग जलायी, आकाश ने मुझको त्यागा,
एक आग बनूँ उसका मित्र जरा-सा,
एक आग शीत की रातों से बचने को,
एक आग जीवन बेहतर जीने को.

उसको दूँगा सब, जो दिन से मुझे मिला
जंगल, झाड़, खलिहान, अंगूर का बाग बड़ा
घोंसले, पक्षी, महल-चौबारे उनकी चाबी
कीड़े-मकोड़े, फर, त्योहार और फूलों की वादी.

मैं जीता हूँ निपट अकेला, साथ लपटों का क्रंदन,
और भोगता खुशबू को, लपटों का तन-मन.
मेरा जीवन आवारा नौका, स्थिर बड़ी झील में,
जैसे मृत न रखे विकल्प बेहतर इस जग में.


जॉक प्रीवेर (1900-1977)                                                                                
बारबरा 


याद करो बारबरा
उस दिन, ब्रेस्त पर लगातार बारिश होती थी
और तुम हँसती, घूमती-फिरती थीं
पूरी गुलाबी, खुशी के रंग में रंगी
तुम बारिश के नीचे भीगती थीं.

याद करो बारबरा
लगातार ब्रेस्त पर बारिश होती थी,
मैं तुमसे श्याम नाम की गली में टकराया
तुम मुस्कायीं
और मैं भी अपनी मुस्कान नहीं रोक पाया.

याद करो बारबरा
तुम मेरे लिये अजनबी
और मैं भी तुम्हारे लिये एक नयी कहानी,
उस दिन को याद करो कम से कम
उस दिन को नहीं भूल जाना तुम.

एक आदमी ओसारे के नीचे खड़ा
वह तुम्हारा नाम लेता
तुम उसकी ओर दौड़ीं, बारिश में
गुलाबी खुशी के रंग में भर के
और तुम उसकी बाँहों में समा गयीं
याद करो बारबरा, वे बातें सभी.

यदि मैं तुम्हें `तू' कहकर पुकारूँ, तुम नहीं घबराना
मैं जिन्हें प्रेम करता, `तू' उनके लिये, शब्द दोस्ताना
चाहे जिन्हें सिर्फ एक बार देख पाया
जो प्रेम करते हैं उन्हें दोस्तों की तरह बुलाया
चाहे मैं उन्हें नहीं जानता
याद करो बारबरा नहीं भूल जाना.

नहीं भूलना
यह शान्त बारिश सुखदायी
तुम्हारे सुखी चेहरे पर छायी
यह सुखद शहर भी बारिश से भीगा
सागर भी इस बारिश से नहीं अछूता
शस्त्रागार भी इस बारिश से भीग जाता
ओएसॉ1 द्वीप की नौका पर बारिश का छाता.

ओ बारबरा
यह युद्ध है कैसी मूर्खता
तुम्हें क्या यही बनना था
लोहे की बारिश में
आग, बेरहम फ़ौलाद, खून में लथपथ
और जिसने तुम्हें अपनी बाँहों में भरा
जिसका प्रेम से हृदय धड़का
वह जिंदा है, मृत या गायब हुआ?

ओ बारबरा
ब्रेस्त पर लगातार बारिश होती
जैसे पहले बारिश का मौसम था
पर कोई समानता नहीं, अब सबकुछ लथपथ होता
यहाँ विध्वंस, आह, आतंक का पानी बरसा
पर अब फौलादी, बेरहम खूनी वर्षा का मौसम भी नहीं रहा.

अब केवल कुछ बादल रह जाते
जो कुकुर की मौत मर जाते
और कुकुर जो ब्रेस्त के ऊपर जलधारा में
गायब हो जाते
दूर बहुत दूर
ब्रेस्त से बहुत दूर वे चले जाते
और यहाँ ब्रेस्त में शेष कुछ नहीं पाते.
____________
कवि ने यह कविता फ्रांस के शहर ब्रेस्त (Brest) पर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 19 जून, 1940 और 18 सितम्बर, 1944 के मध्य बमबारी के कारण हुए पतन को इंगित करके लिखी थी. विध्वंस के दौरान प्रेम और जीवन की ताजगी, जिजीविषा को कवि ने महत्त्वपूर्ण स्थान दिया. कविता में बारिश विध्वंस और बमबारी का प्रतीक है. बारबरा एक आम लड़की की व्यथा का दस्तावेज है.

1 फ्रांस का एक द्वीप
_______


मदन पाल सिंह 
(01/01/1975, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश के एक गाँव में)
कवि और अनुवादक
बी. एस-सी. (जीवविज्ञान) मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ.
जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली के रशियन भाषा संस्थान में 2 वर्ष अध्ययन.
फ्रेंच सरकार की छात्रवृत्ति के अन्तर्गत बोर्दो बिज़नेस स्कूल, बोर्दो से अन्तर्राष्ट्रीय बिज़नेस और कल्चरल मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री.
पिछले 4 वर्षों से एक फ्रेंच कम्पनी में कार्यरत.
फ्रेंच कविता के अनुवाद की श्रृंखला   पर कार्यरत
फ्रेंच कविताओं के दो संकलन  वाग्देवी प्रकाशन बीकानेर से प्रकाशित 
शार्ल बादलेयर और ला फान्तेन की चुनी हुई कविताओं का संकलन भी वाणी से  आने वाला है.


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  1. बहुत अच्छा लगा इन कविताओं से गुजरना...!
    अनुवाद के इन श्रम साध्य कार्य के लिए मदन पाल सिंह जी को ढ़ेरों बधाई एवं शुभकामनाएं!

    इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए समालोचन का आभार!

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  2. बढ़िया चयन और प्रवाहपूर्ण अनुवाद. विक्तर ह्यूगो की कविता बहुत मार्मिक है.

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  3. अनुवाद संदेह के बीच सम्भावनाओं और पहचान का पुल है। अधिकतर हम अनुवाद के भी अनुवादों से किसी स्थान विशेष के साहित्य को जानने की कोशिश करते हैं; ऐसे में बहुत कुछ छूट जाता है, पर यहाँ मूल से ही अनुवाद किया गया है, निश्चित रूप से अनुवादक की दो भाषाओँ पर अच्छी पकड़ है।
    अनुवाद तो सहज ही लग रहा है। पॉल एलआर की कविता 'यहाँ जीने के लिए' का अनुवाद अच्छा बन पड़ा है।
    समालोचन को नव वर्ष की शुभकामनाएं।

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  4. कविताओं का चयन बहुत अच्छा है, कविताओं में विविधता है. साथ ही इनके समय का केनवास बहुत विस्तृत है जो फ्रेंच कविताओं के उत्तरोत्तर विकास को रेखांकित करता है. अनुवाद में कविता के मूल भावों को अक्षुण रखने के प्रयास को सहज ही देखा जा सकता है..परन्तु अनुवाद की अपनी सीमाएं हैं. बारबरा और कल भोर में बहुत प्रभावित करती हैं कंटेंट में भी और अनुवाद में भी. मदन पाल जी को बधाई. समालोचन और अरुण जी का शुक्रिया

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  5. मुझे मदन पल सिंह का अनुवाद बहुत पसंद आया क्योंकि उन्हें मूल भाषा के सन्दर्भों की सही जानकारी है. उन्होंने लगभग सब महान फ्रेंच कवियों का अनुवाद किया है. 'उन औरतों की गाथा जो नहीं रही ' और अन्य सभी कवितायेँ कालजयी है.

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  6. बहुत शानदार कविताओ के अनुवाद पढ्ने को मिले .मदनपाल सिंह ने बहुत डूब कर अनुवाद किये .सारी कविताये अच्छी है .उन औरतो की गाथा जो अब नही रही,कल भोर मे ,बाराबारा ,खास रूप से पसंद आई .दुनिया भर मे लिखी जा रही कविताओ मे हमारी आवाजाही बनी रहनी चाहिये.इससे हम समृध्द होते है .आप यह काम बखूबी कर रहे है.मेरी शुभकामनाये और साधुबाद ..

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  7. आपका सबका बहुत बहुत धन्यवाद. अनुवाद की इस श्रंखला के अंतर्गत फ्रेंच कविता मध्य काल से लेकर अब तक 15 पुस्तको मे समाहित होगी। आपके स्नेह और समय के लिये आभारी रहूँगा।

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  8. congratulation dear , i feel proud and happy, though poems are not my interest area ,but slowly i am getting towards this also, the poem ek bhor and barbra are more close to my heart, and veeranapan is best of all, my wish you to will surely get more fam in the field of literature with great luv and regard
    your wife mithlesh Rajput

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  9. Dear THanks for comments..bad mey hi sahi.

    Ant bhala to sab bhala.

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  10. बहुत ही भावपूर्ण कविताएं हैं। आपका अनुवाद बधाई का पात्र है।

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