मेघ दूत : निज़ार क़ब्बानी : अपर्णा मनोज






































 निज़ार कब्बानी की दो लम्बी कविताएँ : 
अनुवाद अपर्णा मनोज            

बिलकिस निज़ार कब्बानी का शोक गीत है जो उन्होंने अपनी पत्नी की स्मृतियों में लिखा है.
यासेर अमन ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया है. अपने अनुवाद को लेकर यासेर स्पष्ट करते हैं कि ये एक तरह का फ्री कम्युनिकेटिव अनुवाद है और इसे अक्षरश:अनुवाद समझने की भूल न की जाए. काव्यात्मक बोध और अभिरुचि को ध्यान में रखते हुए कभी-कभी कविताओं के शाब्दिक अनुवाद से हटकर उसके कन्टेक्स्चूअल संबंधों पर अनुवादक अपना चित्त संकेंद्रित करता है. बिलकिस भी यासेर का ऐसा ही अनुवाद है.

बिलकिस कब्बानी की दूसरी पत्नी थीं जिन्हें कब्बानी ने टूटकर प्रेम किया. वह इराकी थीं और अधेमीय की रहने वाली थीं. पंद्रह दिसम्बर १९८२  को लेबनान के गृहयुद्ध में बेरुत में बम गिरने से उनकी मृत्यु हुई.

कविता केवल पत्नी की स्मृतियों में लिखा मर्सिया नहीं है, वह कवि का अपने भयवाह समय को देखना है. यह कवि का करुण क्रंदन नहीं बल्कि एक सोये हुए देश में गुम संस्कृतियों का उत्खनन है..कि वह बार बार दासत्व और हिंसा के बीच संघर्षरत है. कि वह बार-बार अपनी हड्डियों तक समाये दर्द से विचलित दिखाई देता है.
अपर्णा मनोज






 बिलकिस:               

शुक्रिया
शुक्रिया तुम सभी का
मेरी बिलकिस के क़त्ल  का शुक्रिया.

जाओ पियो जी भरकर
शहीदों की कब्र पर ...
मेरी कविता का कत्ल हुआ

ये कोई और मुल्क नहीं
मेरा अपना ही मुल्क है जिसने क़त्ल किया कविता का !

बिलकिस
बैबल की रानियों में सबसे हसीन थी वो
बिलकिस
इराकी खजूरों से भी ऊँची
उसकी चाल कैसी मोहक
जैसे चल देंगे पीछे - पीछे हिरण और मोर
बिलकिस ..तुम मेरा दर्द
तुम,अंगूठे के नीचे मसली कविता का दर्द
कैसे फूट सकतें हैं ज़मीन से किल्ले
जबकि तुम्हारे बाल गल रहे हों ?
ओ सुहावने हरे निनेवा
मेरे भूरे बालों वाले यायावर प्रदेश
वसंत में
टिगरिस की लहरों से
सबसे सुन्दर कंगना बंधवाने वाले  ..
ओह ! उन सबने  तुम्हारा  क़त्ल किया
कैसा है  देश
अरब का
कैसे मना सकता है कोई जश्न
बुलबुल की हत्या पर

कहाँ गुम  हुए वे - अल - सामावल
और अल-मुहालहिल
दरियादिल ज़हीन हमारे रहनुमा ?
खा रहे हैं कबीले कबीलों को
साँपों ने वध कर दिया है साँपों का
मकड़ियों की हत्या कर रही हैं मकड़ियाँ
तुम्हारी उन आँखों की कसम
जहाँ बसते हैं लाखों सितारे एक साथ
कि मेरी जान
सुनाऊंगा मैं दुनिया को
अरब की शर्मनाक कहानियां
क्या बहादुरी अरब का झूठ है अब?
या हमारी तरह ही झुठला देगा इतिहास
साहस की कथाएँ सब ?

बिलकिस
अब कभी न मिलेगा चैन
न ही सूरज दमकेगा सागर किनारों पर
तहकीकात के बाद
मैं कहूँगा कि
कि योद्धाओं की जगह ले चुके हैं चोर
मैं कहूँगा कि
प्रतिभावान रहनुमा अब ठेकेदार हैं
मैं कहूँगा कि
रौशनी की कहानियां हमारे समय का भयावह मजाक हैं
हम अब भी गुलाम जातियों का एक कुटुंब हैं
बिलकिस- यह इतिहास का दागदाग  चेहरा है
कैसे कोई जानेगा
बागीचे और कूड़ेदान में अंतर?

बिलकिस
तुम शहीद ,एक कविता  तुम
पाकीज़ और ईमानदार
तुम्हारी ही खोज में निकल पड़े हैं शेबा के लोग
लौट आओ और करो स्वागत उनका
ओ बेगमों की बेगम
औरत,सशरीर जिसके भीतर जिंदा रहा
सुमेरिया का हर युग
बिलकिस..
तुम्हारा स्वाद ..
उस जैसा ... उस जैसा  और कोई नहीं परिंदा
तस्वीरों में तुम बेशकीमती
मैगडेलिन के गालों पर ढुलकते आंसुओं सी प्यारी
क्या ज़ुल्म नहीं था मेरा तुम पर
ब्याह लाया जब मैं तुम्हें अधेमीयाह के किनारों से?
हममें से किसी एक को रोज़ मारता है बैरुत
रोज़ होती है एक मौत -
कॉफ़ी के कप में 
दरवाज़े की चाबी में
कोठे के  फूलों में
कागजों में
हर्फ़ -ए -तहज़ी में
बिलकिस
वहीँ लौट आये हैं हम
उसी जहिलिया को
उसी जाहिलपन में
वही पसमांदगीहैवानियत वही नीचता
लौट आये हैं हम उसी बर्बरता को
जहाँ लिखने के मायने थे -
टुकड़ों के बीच का सफ़र
जहाँ हर हाल में तितलियाँ खेतों में मारी जानी थीं

क्या जानती हो बिलकिसमेरी जान तुम इसे .
क्या तुम जानते हो मेरी प्यारी बिलकिस को ?
मुहब्बत की किताबों में उसका होना सबसे जरुरी है
सख्त और नरम का अनोखा जोड़ थी वो
हमेशा चमकता था उसकी आँखों में वह रंग
बनफशा .
बिलकिस
मेरी यादों में सबसे भाग्यवान तुम ही तो थीं
धुंध में कब्र का सफ़र थीं तुम
जबह कर दी गईं तुम जैसे आवाज़ करने से पहले
जबह किया जाता है हिरण बैरुत में .

बिलकिस
मर्सिया नहीं है ये

अरब के एक युग को
अलविदा कहना है पर.
बिलकिस
हम सब हमेशा लालायित रहेंगे तुम्हारे लिए
और ये नन्हा घर पूछता रहेगा
खुशबुओं वाली अपनी शहजादी का अता-पता .

हम खबरें सुनतें हैं .कितनी रहस्यपूर्ण हैं ये
हर वक्त का तजस्सुस जैसे.
बिलकिस हड्डियों के भीतर तक
दर्द बर्दाश्त करते हम .

बच्चे नहीं जानते कि क्या हो रहा है
मैं नहीं जानता क्या बताना है तब .
क्या थोड़ी देर में दरवाजे पर दस्तक दोगी  तुम?
क्या सर्दियों के कोट को उतार जाओगी ?
क्या मुस्कराती आओगी
जैसे दमकते हैं फूल खेतों में .

बिलकिस..

तुम्हारे रोपे वे पौधे हरे-भरे
अब भी मुंडेर पर हैंमर्सिया पढ़ते.
तुम्हारा चेहरा अब भी भटक रहा है
आइनों और पर्दों के बीच
तुम्हारी सुलगाई सिगरेट
अब भी दमक रही है
और झूल रहा है
धुआं उसका .


बिलकिस हमारे दिल दुखी हैं
सदमे से गूंगे हो चुके हैं हम .

बिलकिस
कैसे ले उड़ीं तुम मेरे दिन और मेरे ख्वाब.
और बगीचे ,तमाम मौसम लांघ चली गईं तुम कहाँ?
ओह!मेरी बीबी
मेरा प्यार,कविता मेरी,आँखों की रौशनी
तुम मेरी खूबसूरत चिड़िया .
बिना कुछ कहे कैसे छोड़ गईं तुम मुझे ?

बिलकिस
देखो खुशबूदार इराकी चाय के भंडार का मौसम है ये
मेरी जिराफ कौन परोसेगा इसे दिलकशी के साथ ?
कौन लाएगा फिरात को अपने घर तक?
कौन विचलित करेगा रेसाफा और दजला के फूलों को ?

बिलकिस
गहरा दुःख व्याप गया है मुझमें
बैरुत ने मार डाला तुम्हें

अपने इस जुर्म को कभी नहीं जानेगा वह
बैरुत ने तुम्हें किया प्यार,लेकिन
अपने ही चाहने वालों के क़त्ल को न कर सका नज़रंदाज़ .
और बुझा दी उसने हमेशा के लिए अपनी चांदनी

बिलकिस
ओह! बिलकिस
ओह! बिलकिस..
तुम्हारे लिए हर बादल में जैसे तुम्हारा ही विलाप है
मेरे लिए रोयेगा कौन भला ?

बिलकिस कोई इशारा तक नहीं
और छोड़ चलीं तुम हमें !
बिना मेरे हाथों में डाले अपना हाथ ?

बिलकिस ..
कांपते पत्तों के मानिंद
हवाओं में कांपने को क्यों छोड़ गईं हमें
हम तीनों को कहाँ छोड़ गईं तुम -हम गुम

ऐसे जैसे बरसात में पंख
क्या तुमने नहीं सोचा मेरे बारे में;तुम्हारा प्रेमी मैं ?

मुझे चाहिए तुमसे उतना ही प्यार
जितना चाहा था ज़िनाब या ओमार ने.


बिलकिस
तुम अलौकिक कोष
एक बरछी इराकी
एक बांस का जंगल 
सितारों को उनकी शान -ओ-शौकत में ललकारती हुई तुम
कहाँ से पायी तुमने इतनी ताकत ?

बिलकिस
मेरी दोस्त,साथी मेरी

शालीन गुलदाउदी के फूल सी तुम
न तो बैरुत और न समंदर के पास थी जगह तुम्हारे लिए
और न ही कोई मुनासिब जगह हो ही सकती थी
बिलकिस,तुम्हारे लिए
क्योंकि तुम ठहरीं यगां,जुदा दुनिया से।

बिलकिस
जब भी तफसील करता हूँ अपने रिश्ते की
खून से लिथड़ी यादें संतप्त करती हैं मुझे
और झूल जाता है समय भारी
सख्त जैसे कीलें .
हर छोटे से छोटा  बालों का पिन
जैसे कहता है तुम्हारी ही कथा।
तुम्हारे बालों का वह सुनहरी क्लिप
अकसर अभिभूत करता है मुझे
ऐसे जैसे कोई नाज़ुक सी लहर .

वह सुरीली इराकी आवाज़
आराम कर रही है यहाँ -
पर्दों पर
कुर्सियों पर
छुरी -काँटों पर।

तुम आती हुई दीखती हो -
घर के आइनों से
छल्लों से
कविताओं से
शमां से
प्यालों से
जामुनी शराब से

ओह बिलकिस.. ओह बिलकिस
तुम केवल तुम जान सकती हो
वह दुःख जो उन सब जगहों से  मुझ तक आता है
जहाँ -जहाँ तुम्हारा होना बसा है .
हर कोने में तुम्हारी रूह उडती है चिड़िया बनकर -
फ़ैल जाती हो तुम हर जगह जैसे बेलसान के जंगलों की खुशबू
तुम आती हो हर जगह 
वहां जहाँ तुम उड़ातीं थीं
धुंआ सिगरेट का
जहाँ तुम पढ़ती थीं किताबें
जहाँ तुम खड़ी हो ऐसे जैसे फक्र करते ताड़ के पेड़
तुम आती हो केश संवारतीं
मेहमानों के स्वागत में
उठती हो  जैसे फुर्तीली यमन की तलवार .
कहाँ है वह तुम्हारी गुरलैन की बोतल ?
वह नीली रौशनी
हमेशा होंठों में दबी वह केंट की सिगरेट
कहाँ है वह हाशमी चिड़िया जो गाया करती थी
तुम्हारे रुतबे के गीत

जब कभी याद करेंगे तुम्हें शहद से भरे छत्ते
ढुलक ही जायेंगे उनकी कोरों से आसूं
क्या उनका दुःख वैसा न होगा
जैसा महबूब का विसाल में ?

बिलकिस कैसे हो सकता हूँ मैं निठुर ?
जबकि घिरा हूँ मैं आग और धुंए से घिरी ज़ुबानों में

बिलकिस मेरी शहजादी
तुम जल रही हो कबीलाई-कबीलाई जंगों में 

अपनी रानी की हत्या के लिए मैं और क्या लिखूं?
मेरी कविता और कुछ नहीं बल्कि मेरा ही मन है
मजलूम के ढेर में देखना एक टूटते तारे को
एक देह का आईने की तरह टूट जाना

मुझे डर है कि ये कब्र तुम्हारी है या अरब की ....
ओह बिलकिस शाहबलूत के पेड़ों जैसी हसीना
तुम्हारी जुल्फें  मेरे कन्धों पर सोयी  पड़ी हैं
और तुम चल रही हो शान से
ऐसे जैसे जिराफ

बिलकिस ये अरब के लोगों की किस्मत है
कि उन्हें अपनों से ही मारे जाना है
अपनों से ही निगले जाना है
खोदे जाना है अपनों से
कैसे बच सकते हैं भला हम अपनी तकदीर से?

अरब की छुरी वही
सबके लिए एक सी
चाहे शरीफ आदमी हो या औरत खुदमुख्तार
और बिलकिस अगर तुम इसका होती हो शिकार

तो याद रहे कि
सभी मातम कर्बला से शुरू होते हैं
और खत्म भी वहीँ पर .


इसने आगाह किया है -
कि अब और इतिहास जानने की जरुरत नहीं रही
मेरी उँगलियाँ जल चुकी हैं
और मेरे कपडे खून से लथपथ
हम अब भी पाषाण युग में हैं
हर दिन ले जाता है हमें कई युग पीछे .

तुम्हारे जाने के बाद
बैरुत में नहीं बचेगा समंदर
अधूरे हर्फों में
कविता कविता से पूछेगी प्रश्न
और कोई उत्तर न होगा .

दुःख और संताप में मेरा दिल बह चला है
जैसे निचोड़ दी गई है नारंगी की फांक

मैं जानने लगा हूँ अब
शब्दों का दुःख
एक असम्भव भाषा का हाल

भूल चुका हूँ कि कहाँ से शुरू करूँ इसे ?
जबकि मैं खुद ...अक्षरों को ढालने वाला

मेरी छाती के आर-पार है एक कटार
और वहीँ कहीं छूट गए हैं मेरे वाक्य मुझसे.

बिलकिस तुम ही तहजीब हो
स्त्री के रूप में उतरी तहजीब .

ओ मेरी शगुनों की  शगुन
किसने की तुम्हारी हत्या?

तुम ही तो आदिम रूप हो भाषा का .
तुम्हीं वह द्वीप ,वह रौशनी की मीनार ..

बिलकिस...
बिलकिस तुम्हीं हो वह चकवी पत्थरों के नीचे दबाई गईं
तोडूंगा मैं इसे
तोडूंगा मैं इसे ....

तफ्तीश के वक्त मैं कहूँगा -
मैं जानता हूँ नाम ...वे चीज़ें ...
वे कैदी ...वे शहीद ..वे गरीब
और वे मजबूर

मैं बता दूंगा हत्यारे का नाम जिसने मेरी पत्नी के सीने में
उतारी थी कटार
मैं पहचानता हूँ उन सबके चेहरे ..


मैं कहूँगा कि हमारा सच अब विलासिता के सिवा कुछ नहीं
और हमारी शुचिता एक दुष्कर्म
मैं कहूँगा कि हमारे संघर्ष मिथ्या हैं
और राजनीति अस्मत फरोशी का पर्याय

तहकीकात होगी और मैं बता दूंगा ...
मैं जानता था हत्यारों को
मैं कहूँगा
कि हमारे समय को महारत हासिल है चमेली की हत्या में

खुदा के रसूलों
तमाम पैगम्बरों को
यहाँ तक कि हरी आँखों को निगल सकता है अरब
निगल सकता है जुल्फें ,अंगूठियाँ ,कंगन ,दर्पण,खिलौने ...सब


अब सितारे भी डरने लगे हैं मेरे वतन से
कारण क्या कहूँ ?नहीं जानता ?
चिड़ियाँ उड़ चुकी हैं
और मैं नहीं जानता ?
यहाँ तक कि सितारे ,कश्तियाँ और बादल
यहाँ तक कि कोपियाँ ,किताबें
और हर वह चीज़ जो सुन्दर है
अरब के खिलाफ है ...

बिलकिस...
जब फरिश्तों जैसी तुम्हारी देह
जिसमें दमकते थे मोती
बिखर गई थी
तब मैं हैरान था ...क्या औरत को मारना अरब का शौक है ?
या किसी अपराध के चौपार का हम आदिम हिस्सा हैं ? बिलकिस ..

मेरी सुन्दर घोड़ी ..
शर्मसार हूँ अपने इतिहास पर ,एक लम्बा दुस्वप्न
यह वह देश है जहाँ मारे जाते हैं घोड़े
यह वह देश है जहाँ मारे जाते हैं घोड़े
यह वह देश है जहाँ मारे जाते हैं घोड़े ....

तब तक जब तक तुम्हारा क़त्ल न हो जाए .. बिलकिस.

ओ मेरे प्रियतम देश
कोई कैसे खड़ा हो तेरे सामने !
कैसे कोई रहे यहाँ इस देश में ?
कोई कैसे मरे इस देश में ?

मेरे पसीने से खून टपक रहा है
और इसने चुकाई है आखिरी कीमत -
दुनिया को खुश करने की .

मेरे खुद ये तेरा ही निपटारा है
कि किया है तूने मुझे सर्दियों के पत्तों की तरह तनहा.

क्या कवि शोक गीत के लिए हुए हैं पैदा ?
या कविता एक हूल  दिल में
कभी न मिटनेवाली.

या मैं अकेला ही चीख रहा हूँ ?
बिना आंसुओं के बह रही है ..तवारीख

तहकीकात के समय
मैं कहूँगा
कि कितनी हिरणियों को मारा था अबी  लहाब के खंजर ने
खाड़ी से समंदर तक सभी चोर :
मिटाते गए और जलाते गए
लूटते गए,खरीदते  गए
और करते रहे बलात्कार औरतों का

जैसा अबू लहाब ने चाहा
कुत्तों को दी गई मुलाज़िमत
मौज करते ..खाते -पीते
वे शामिल रहे अबू की दावत में .

अबू के इंकार पर कोई पैदा नहीं कर सकता था गेहूं
कोई संतान जन्म नहीं ले सकती थी
जब तक कोई औरत अबी की हमबिस्तर न हो जाए

कोई कैद न खुली थी
अबी के हुक्म बिना
अबी के हुक्म के बिना कौन काट सकता था सिर ?
तहकीकात के समय मैं बताऊंगा
कितनी शहजादियों के संग हुआ बलात्कार

कैसे उन्हें करनी पड़ीं साझा
अपनी पिरोजा हरी आँखें
और अपनी ब्याह की अंगूठी ...भी


मैं बताऊंगा कैसे साझा किये उन्होंने
अपने लम्बे सुनहरी बाल
तश्तीफ के समय मैं बताऊंगा सब
कि कैसे वे झपटे थे उनकी पाक कुरआन पर
और लगा दी थी उसमें आग

मैं बताऊंगा कि
कैसे हुई  लहूलुहान वे

कैसे बंद किये गए उनके मुख
न गुलाब बचे ,न अंगूर ...

बिलकिस का क़त्ल क्या अकेली जीत थी
अरब के इतिहास में?

बिलकिस ,
मेरे जीवन का प्यार
झूठ बोलने वाले पैगम्बर
बैठे हैं लोगों के सिर पर
उनके पास देने को कोई संदेस नहीं ..

काश वे जी उठते एक बार
दुखी फिलिस्तीन में
लौटा सकते वह सितारा
नारंगी ..
लौटा सकते गाज़ा के किनारों की
बिल्लौरी सीपियाँ
कि लौटा सकते शताब्दी के चौथाई हिस्से से
गुलाम जैतूनों की आज़ादी

या इतिहास के दाग मिटाने के लिए
वे  बचा पाते नीबू

मेरी जिन्दगी ,मेरी जान बिलकिस
शुक्रिया अदा करता हूँ उनका
कि फिलिस्तीन के बदले उन्होंने हत्या की तुम्हारी
हत्या मेरी जान की ...

इस समय में कविता कहे भी तो क्या कहे?
क्या कहे कविता
घोर अनैतिक युग में
डरे हुए समय में ?

अरब की दुनिया कुचल दी गई है
कुचल दी गई है
और मुंह पर जड़ दी गई है उसके सील

जुर्म की बेहतरीन मिसाल हैं हम
तो क्या फर्क पड़ता है अल इक्द अल फरीद या अल अघानी लिखे होने से ?

उन्होंने तुम्हें छीन ही लिया मुझसे
जबकि हम थामे थे एक दूसरे का हाथ
मुझे अवाक छोड़कर बदले में पायी उन्होंने मेरी कविता
पाया उन्होंने लिखना-पढना
बचपन ,इच्छाएँ

बिलकिस बिलकिस
मेरे वायलिन के तारों पर छलक आये हैं तुम्हारे आंसू

तुम्हारी मुहब्बत के राज़ मैं उन्हें सिखाता
पर रास्ता खत्म होने से पहले ही
मार दिया उन्होंने मेरा घोडा

बिलकिस माफ़ी मांगता हूँ मैं
कि मेरी जिन्दगी का होना तुम्हारी क़ुरबानी मांगता था
जबकि मैं जानता हूँ
तुम्हारे हत्यारे मेरी कविता का कत्ल चाहते थे

मेरी सुन्दर महबूबा
तुम सो रही हो
सो रही हो आराम से
जबकि तुम्हारे बाद
रुक जायेगी कविता
स्त्रीत्व का सही ठिकाना न होगा

जानवरों के झुण्ड की तरह बची रहेगी
बच्चों की नस्ल
और पूछती रहेगी तुम्हारे लम्बे बालों के बारे में

प्रेमियों की पीढियां
तुम्हारे बारे में पढ़ेंगी :तुम ठहरीं उनकी उस्ताद
एक दिन अरब जान जायेगा
कि उसने क़त्ल किया अपनी पैगम्बर का
कि क़त्ल किया  पैगम्बर का
पैगम्बर का क़त्ल .





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सवाल खुदा से         :

खुदा मेरे !
मुहब्बत करते हुए कौन कर लेता है हमें अपने वश में ?
क्या घटता है कहीं गहरे भीतर तक ?
क्या टूट जाता है कहीं अन्दर तक?
कैसे होता है ये कि लौट आते हैं हम बचपन को, प्यार में डूबे हुए ?
कि हो जाती है एक बूँद समंदर-समंदर
कि और ऊंचे निकल जाते हैं पेड़ खजूरों के 
मीठा हो जाता है दरिया का पानी
और शम्स जैसे हाथों  की  कीमती पौहुँची, नगीनों से जड़ी !

कैसे होता है ये
जब मुहब्बत करते हैं हम ?

या खुदा!
जब मुहब्बत घट जाती है अचानक यूँ ही 
तब न जाने क्या जुदा होने देते हैं हम अपने वजूद से ?
वह क्या है जो होता है पैदा हमारे ही भीतर ?
क्यों हो जाते हैं हम  उस अवयस्क -से थोड़े भोले,थोड़े मासूम भला ?
और जब हंस देती है महबूब
 क्यों बरस जाती है चमेली टूट बिखर के बारिश जैसे ?
और क्यों होता है ये कि लगने लगती है दुनिया  उदास परिंदे सी  -
जब हमारे घुटने पर टिका के सिर अपना
सुबक उठती है वह ?

अल्लाह मेरे!
क्या कह कर पुकारूँ इसे?
कि सदियों-सदियों
इसी मुहब्बत ने किया है क़त्ल इंसानों का
जीते हैं किले.
या कि जिसके दम से पिघले दिल ताकतवालों के
और हुए वे फैयाज़ रहमवाले ?
कैसे होता है ये कि बन जाती हैं जुल्फें महबूबा की
तख़्त सोने का ?
 उसके ओंठ मदिरा और अंगूर ?
कौन चलवाता है हमें शोलों पर ?
लुत्फ़ लेते हैं आग-ओ-दरिया में ?
कैद हो जाते हैं मुहब्बत करते
चाहें क्यों न रहें हों हम
सलातीन फतह करने वाले .

क्या नाम दूँ इस मुहब्बत को
उतर जाती है दिलों में बरछी बनकर ?
क्या ये सिर दर्द है ?
या पागलपन कोई ?
कैसे होता है ये
कि पलक झपकते ही बदल जाती है दुनिया -
हरे नखलिस्तानों में ....प्यार में होता है क्यों?
दुनिया हो जाती है मुलायम सा कोना ?

मेरे अल्लाह
क्या हो जाता है  समझ को अपनी?
क्यों बदल जाते हैं ख्वाहिशों के पल सालों में ?
और फरेबे नज़र बदल जाती है यकीनों में ?
टूट क्यों जाते हैं सिलसिले साल के हफ़्तों के ?
क्यों मंसूख हुए जाते हैं मौसम भी मुहब्बत में ?
सर्दियों में क्यों चली आती है गर्मी
और खिलते हैं गुलाब आकाश के बगीचों में

ऐसा होता है क्यों प्यार करने में ?

या खुदा
क्यों मग्लूब हुए जाते हैं प्यार के हाथों में
सौंप देते हैं चाबियाँ अपनी
मुकद्दस पनाहगाहों को
कि ले जाते हैं शमां ज़ाफरानों की उस तक कैसे?
क्यों होते हैं इलाके में इसकी दाखिल ?
क्यों गिरते हैं इसके क़दमों में
याचना करते हुए प्यार में हम ?
क्यों सौंप देते हैं इसे अपना वह सबकुछ  
जो ये मांगता रहा हमसे?

खुदा मेरे !
गर तुम सच में हो खुदा
तो रहने दो हमें हमेशा के लिए
एक दूजे को यूँ चाहनेवाला.
__________
सामावल और अलमुहालहिल ऐतिहासिक चरित्र हैं जो अपनी बहादुरी और दरियादिली के लिए जाने जाते थे.
जहिलिया अरब का वह आदिम युग है जब मूर्तिपूजा प्रचलित थी.

जैनब और ओमार निजार और बिलकिस की संतानें हैं .
अल हाशमी को यासेर अमन ने बुलबुल की तरह गाने वाली चिड़िया माना है.
अबू लहाब का अंग्रेजी में शाब्दिक अर्थ नरक के पिता के रूप में मिलता है. अबू  लहाब ऐतिहासिक चरित्र है जो इस्लाम से नफरत करता था कविता में मेटाफर की तरह कवि ने इस चरित्र को खड़ा किया है.
दूसरी कविता "सवाल खुदा से" के अनुवादक डब्ल्यू एस मर्विन हैं








अपर्णा मनोज : कवयित्री, कथाकार अनुवादक


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Balqis                         


Thank you.
Thank you.
For killing my Balqis(1).
Go, have a drink,
On the martyr’s grave’s brink.
My poem is assassinated.
For no nation but ours
Has such powers!

Balqis …

Was the most beautiful of Babel queens.

Balqis …

Was the tallest of all Iraqi palm trees.
She gracefully walks
As if followed by oryx and peacocks.
Balqis … You’re my pain…
The poem’s pain when thumbed.
How can plants sprout
After your hair’s rot?
Oh, green Nīnawā,
My blonde gypsy,
Tigris’ waves,
Wearing, in spring,
The best bracelets.
They killed you…
What an Arabs nation
That enjoys
The nightingales’ assassination?!
Where’re a-Samaw’al,
And al-Muhalhil(2),
And early generous masters?
Tribes have eaten tribes.
Snakes have slaughtered snakes.
Spiders have killed spiders.
I swear by your eyes,
Where a million planet lies.
My love, I will tell shocking tales about Arabs
Is heroism an Arabs’ lie?
Or, like us, does history heroism falsify?

Balqis,

Never finally rest,
Or the sun
Won’t shine over the coast.
When investigated,
I will say:
The thief takes the role of fighter.
I will say:
The talented leader becomes a contractor.
I will say:
The radiation’s tale is the nastiest joke.
We’re a tribe, like others, under the yoke.
Balqis..
This is history’s ugly face.
How can men differentiate between
A garden and a dustbin?

Balqis,

You’re a martyr, a poem;
Chaste and righteous.
Queen of Sheba people search to welcome
In return, go and hail them.
You, the greatest of all queens,
A woman who incarnates, all Sumerian Ages.

Balqis..

Of all birds, you’re the delicious.
Of all icons, the most precious.
Dear as tears, over Magdalene’s face.
Have I done you injustice,
When, once, I moved you from Adhamiyah(3) banks?
Everyday, Beirut kills one of us.
Everywhere, there is death,

In the cup of coffee,
In the door key,
In the terrace flowers,
In the papers,
In the alphabet.
Here we are, Balqis
Back again in Jahiliyyah(4).
Back to savagery.
To backwardness, hideousness and meanness.
Back again to barbarism.
Where writing is a journey
Between fragments.
Where killing a butterfly in its field
Is the case.
Do you know my beloved Balqis?
She is the most important in love books
A wonderful mix
Between softness and hardness
The color of violet in her eyes
Twinkles all times.

Balqis …

In my memory, you’re the most blest
A grave travelling through the mist.
Like any deer in Beirut, you’re slaughtered
After speech had been muzzled.
Balqis..
It is not a dirge

But…
It is a farewell to the Arab age.

Balqis..

We’re ever pining for you.
And the little house asks
About his perfumed princess’s whereabouts
We listen to the news, but it is mysterious
It leaves us ever curious.

Balqis..

We’re suffering to the bone.
The kids don’t know what’s going on.
I don’t know what to say, then?
Would you shortly knock at the door?
Would you take off your winter coat?
Would you come smiling,
And like field flowers shining?

Balqis …

The green plants you grow
Are still on the wall, making a crying show.
Your face is still moving
Between the mirrors and curtains
Even the cigarette you’re smoking
Keeps its lights
And its smoke is hanging.
Balqis …
We’re very sad at heart,
Struck dumb and shocked

Balqis …

How did you take away my days, and dreams.
And crossed off gardens and seasons?
Oh, my wife;
My love; my poem and my eyesight.
You were my beautiful bird.
How did you leave me without a word?
Balqis..
It’s time for perfumed, well stored Iraqi tea.
My giraffe, who will serve it gracefully?
Who moved Euphrates to our house?
Who moved Resafa and flowers of Tigris?

Balqis..

Grief penetrates me.
Beirut killed you,
About its crime, it never knew.
Beirut loved you; however,
It ignored killing its lover.
And put out moonlight forever.
Balqis …
Oh, Balqis …
Oh, Balqis …
Over you, every cloud weeps buckets.
Who will cry for me?
Balqis; how did you depart with no sign,
Without putting your hand in mine?

Balqis..

How could you leave us twisting in the wind,
Trembling as leaves?
You left-the three of us-lost,
As a feather under the rain.
Didn’t you think of me; your lover?
I need your love as much as Zeinab or Omar(5).

Balqis …

You’re a supernatural treasure,
An Iraqi Spear,
A bamboo wood.
You defied stars in their loftiness,
From where did you get such strength?
Balqis …
My friend; my companion,
Decent as a chrysanthemum.
For us, neither Beirut nor the sea has a space,
Nor can we find any suitable place.

Balqis..

You’re unmatchable,
A unique piece!
Balqis..
I’m tortured by our relation’s gory details.
And time hangs heavy, as tough as nails.
Every little hairpin has a story to tell.
Even your golden hairgrips,
Usually overwhelm me by waves of tenderness.
The sweet Iraqi voice,
On curtains,
On chairs,
On cutlery,
Rests.
You show up
From the mirrors,
From the rings,
From the poem,
From the candles,
From the cups,
From the purple wine.

Balqis …

Oh, Balqis…Oh, Balqis …
If only you recognized,
The pain caused by places you once occupied.
In every corner your spirit hovers as a bird,
Fully scented as a Balm wood.
There you used to smoke.
There you used to read.
There, as graceful as a palm tree,
You got your hair combed.
To welcome the guests you entered,
As brisk as a Yemeni sword.

Balqis..

Where is the Guerlain bottle?
And the blue light?
Where is your Kent cigarette,
Which is ever in your lips?
Where is Al Hashmey8 singing
Over such a good stature?
When combs remember you,
Their tears flow.
Do they suffer
As if they missed a lover?
Balqis: it is difficult to stay cold-blooded,
While with tongues of flame
And smoke I am surrounded.
Balqis: My princess you are
Burning in a tribe-against- tribe war.
What shall I write about my queen’s assassination?
My poem is but frank self-expression.
Among piles of victims, we look for
A falling star,
A body shattered as a mirror.
We wonder, my love:
Is it yours or Arabism’s grave?
Oh, Balqis:
You’re as graceful as a willow tree,
Resting your hair locks on me.
You walk, as a giraffe, in dignity.
Balqis:
It’s the fate of Arabs
To be assassinated by Arabs,
To be gobbled by Arabs,
To be slain by Arabs,
To be exhumed by Arabs.
How can we evade such a fate?
For an Arab dagger it is all the same,
Killing a gentleman or a madam.

Balqis:

If they blew you up,
It’s because all funerals start in Karbala
And end in Karbala.
No more history to read, I’m warned.
My fingers got burned
And my clothes are blood-covered.
Here we are in the Stone Age
Everyday gets us back a thousand years.
In Beirut the sea
Ceases to be, after you did go.
Poetry asks about its poem,
With incomplete words,
And none gives answers.
Sadness, Balqis, makes my heart bleed
As if it were an orange squeezed.
Now; I know the distress of words,
The plight of impossible language.
I, who have coined letters,
Don’t know how to start this one.
The sword penetrates into my waist
And into that of the sentence.
Balqis, culture in you is rated,
For a female is culture incarnated.
Who has slain
Balqis, my greatest good omen?
You prefigure the art of writing.
You are the island and the lighthouse.

Balqis …

My lark they buried among stones.
Now I break the cover,
Now I break the cover.
When under investigation, I will say:
I know the name…the things…
The prisoners…
The martyrs…the poor…and the helpless…
I’ll say I know the killer who put my wife to the sword…
I know all the informers’ faces…
I’ll say: our chastity is debauchery…
And our piety is immorality…
I’ll say: our struggle is a lie
And there’s no difference
Between politics and prostitution!!
When under investigation, I will say:
I had known the killers.
I’ll say:
Our Arab time is specialized in killing
Jasmine,
All prophets…
And all messengers…
Even green eyes
Are devoured by Arabs
Even hair locks; and rings;
Bracelets; mirrors; and toys.
Even the stars are afraid of my homeland
For a reason I can’t understand.
Even the birds fly away
And I don’t know why.
Even planets; boats; and clouds,
Even notebooks; and books,
And all things of beauty
Are against Arabs.
When your seraphic body was shattered,

Balqis,

Into a pearl glittered .
I wondered: Is killing women an Arabic hobby
Or are we originally a crime lobby?

Balqis,

My beautiful mare…
I’m ashamed of my history, a long nightmare.
It’s a country where they kill horses.
It’s a country where they kill horses.
Since you’re slaughtered,
Balqis,
The sweetest homeland,
One can’t stand,
Living in such a homeland.
One can’t stand,
Dying in such a homeland.
I’ve been sweating blood
And paying the ultimate price.
To please the world; but God decides,
To make me alone,
Like winter’s leaves.
Are poets born to wail,
Or is the poem a stab in the heart
That can’t heal.
Or I’m the only who cries,
Shedding the history of tears from his eyes.
When under investigation, I will say:
How my deer was slain by Abi Lahab(7)’s sword..
All thieves from the Gulf to the Ocean:
Destroy and burn,
Ransack and get bribed,
And rape women
As Abu Lahab likes…
All dogs are employed,
Eating,
And getting drunk
At Abi Lahab’s treat.
No wheat grows
If Abu Lahab disapproves.
No child is born
Until his mother goes to bed
With Abi Lahab.
No prison is open
Without Abi Lahab’s opinion.
None is beheaded
Without Abi Lahab’s command.
When under investigation, I will say:
How my princess was raped.
How they shared her turquoise -like greenish eyes
And her wedding ring.
I’ll say how they did share
Her golden running hair.
When under investigation, I will say:
How they pounced on her copy
Of the Holy Qu’ran
And set it on fire.
I’ll say how they made her bleed
How they got her mouth occupied.
Neither roses nor grapes were left.
Is Balqis slaughter
The only victory
Throughout Arabs’ history?

Balqis,

The love of my life.
The prophets who lie,
Squat on peoples’ head
With no message to convey.
If they could regain
From sad Palestine
A star;
Or an orange.
If they could fetch
From Gaza’s beach
In this self-centred,
Amoral,
Coward age.
The Arab World
Is Crushed; oppressed;
And muzzled.
We represent crime at its best,
So what’s (al-Iqd al Fareed) or (al-Aghani)?
My love they grabbed you though we held hands
They got the poem and left me speechless.
They got writing; reading;
Childhood; and wishes.
Balqis, oh, Balqis.
You’re tears dripping over violin’s strings.
I taught your killers the secrets of love,
But before the end of the course
They killed my horse.

Balqis:

I ask forgiveness.
Maybe your life was for mine, a sacrifice.
I know well that
your killers’ aims
were to kill my words.
My beautiful, rest in peace
After you, poetry will cease
And womanhood is out of place.
Generations of children’s flocks
Will keep asking about your long hair locks.
Generations of lovers
will read about you, the true instructor.
One day the Arabs will get it
That they killed the prophetess.
Killed the prophetess.
K…i…l…l…e…d
T…h…e p…r…o…ph…e…t…e…s…s

Notes:

1 Bilqais is Nizar’s wife for whose tragic death, since she was bombed, he wrote this lament. Bilqais is also the name of the Queen of Sheba as mentioned in the Holy Quran and Islamic traditions.
2 Samaw’al and Al-Muhalhil were two Arab histori- cal figures known for their bravery and generosity.
3 Adhamiyah is a place in Iraq where Bilqais used to live before her marriage to the poet.
4 Jahiliyyah is the pagan age when Arabs wor- shipped statues. The poet debunks Arabs’ complete uncivilized manners and how they behaved as if they were pagan savages.
5 Zeinab and Omar are the children of Nizar and Bilqais.
6 Al Hashmey is a kind of bird which sings at home (a nightingale).
7 Abu Lahab is a historical figure, the prophet’s uncle. His full name was Abd-al-Uzza ibn ‘Abdul Mut- talib. He got that nickname, which literally meant in English “Father of Hell”, because he hated the Muslims and tortured any convert heartlessly. In the poem, it refers to those merciless, unscrupulous people.
8 These are two of the most important books about the history of Arabic culture and literature (Al‘Aqqad Al-Fareed and Al-Aganī).

Written by Nizar Qabani on 15th December, 1981.
Translated from Arabic by Yasser Aman King Saud University, Saudi Arabia   

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  1. Thanks Samalochan for this post!

    Congratulations Aparna di, for your apt translation work!!

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  2. अपर्णा इस अनुवाद के लिए तुम्हारी जितनी तारीफ की जाये कम है.इसे पढ़कर लगता है ये हालात कमोबेश सब देशों में मौजूद हैं . मगर लेखकों में खतरा उठाकर अपनी बात उठाने के साहस की कमी है. हमारे चारों और विसंगतियां चल रही हैं. देश के क्रूर स्वरूप का प्रभावशाली चित्रण करने वाली कवितायेँ.

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  3. दारुण !! पहली कविता के अनुभव से गुजरना बहुत कठिन है | दोनों कवितायेँ अप्रतिम हैं ! सहज और सुन्दर अनुवाद किया है अपर्णा जी ने ,उन्हें बधाई |

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  4. excellent piece of work.........
    superb translation....

    thanks!!
    anu

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  5. निज़ार क़ब्बानी की इन दोनों कविताओं में कहीं रूपकों और कहीं सीधे अमिधा में जो भयावह यथार्थ अभिव्यक्त हुआ है उसे अपर्णा जी ने जिस संवेदना के साथ 'पकड़ा' है वह उनकी सजगता और व्यापक दृष्टि का प्रमाण भी है । सचमुच प्रभावी !

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  6. कलेजे में आहों के बवंडर और अमिट स्मृतियों की अनंत लहरे उठाता-मिटाता रुदन में कलपते हुए इस शोक-गीत बिलकिस का यह अनुवाद कमाल की उदासी और विलाप के साथ हम तक पहुँचता है ... जीवन और उसके अदृष्ट में अनाहूत उपस्थित होने वाली हिंसक विषमताओं के हाथों में जैसे अपरिहार्य तौर पर बर्बादियों के हाथों की कठपुतली ही होने को अभिशप्त सभ्यताओं के इतना कहे जाने पर भी हमेशा अकथ ही रह जाने वाले कथ्य को पंक्ति दर पंक्ति पढ़ना एक गहन डूब में उतार देता है और जैसे सर पर पूरी शक्ति भर हाथ धरे लंबे वक्त तक अपने में डुबाए ही रखता है ...बहुत आभार अपर्णा दी इस तक ले जाने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  7. निजार कब्‍बानी की ये दो लंबी कविताएं एक ओर जहां युद्ध की विभीषिका में अकारण अपनी जीवन-संगिनी और हजारों बेकसूर लोगों के मारे जाने पर विकल कर देनेवाली पीड़ा को शब्‍द-बद्ध करती हैं, वहीं दूसरी ओर मानवता की हत्‍यारी उन युद्धोन्‍मादी शक्तियों के विरुद्ध अपनी आसन्‍न घृणा और महाभियोग भी दर्ज करती है, जिसने मानवीय सभ्‍यता को सर्वनाश के कगार पर ला खड़ा किया है - और इन्‍सानियत के सामने इतना बडा संकट कि आज खुदा कि पास भी सवालों का कोई उत्‍तर नहीं। अपर्णा ने इन कविताओं का इतना खूबसूरत अनुवाद किया है कि ये अनूदित भाषा की प्रकृति में ढल गई हैं।

    जवाब देंहटाएं
  8. अपर्णा जी, अद्भुत्त कविताओं का अद्भुत्त अनुवाद किया है आपने। मन प्रसन्न हुआ। मैं तो यही कहूँगा कि एक हथोड़े वाला घर में और हुआ। हमारे इस हिन्दी के घर में कविताओं के अनुवादकों की बहुत कमी है। अब आपके अनुवादों की पुस्तकों का बेचैनी से इन्तज़ार रहेगा। मेरी शुभकामनाएँ।

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  9. युद्ध की विभीषिका एक आम आदमी के सीने पर कैसे कटार बन कर गढ़ती है किस तरह उसका जीवन प्रभावित होता है कैसे वह एक कभी न ख़त्म होने वाले विलाप में बदल जाता है। शक्ति का प्रदर्शन कर रहे राष्ट्र जो मानवीय संवेदनाओ से विहीन हो चुके हैं उनके चेहरे पर तमाचा है ये कविता। . आपने बहुत सुन्दर अनुवाद किया है बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर कवितायें और उतना ही सुंदर अनुवाद बल्कि अंग्रेज़ी में पढ़ने से ज्यादा हृदय स्पर्शी था हिन्दी में लिखा। अपर्णा बधाई की पात्र हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  11. लाजवाब कविताएं और उतना ही उत्‍कृष्‍ट अनुवाद... अंग्रेजी से किए जाने के बावजूद इसमें उर्दू शब्‍दों का जिस तरह इस्‍तेमाल किया गया है, वह कविताओं के कथ्‍य को और प्रामाणिक बनाता हुआ मूल के बेहद नज़दीक ले जाता है... हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं अपर्णा जी के लिए।

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  12. अरुण जी और सभी मित्रों का आभार . मैं अनुवादक नहीं हूँ . हाँ,कभी-कभी किसी कवि की कविता में आप इस तरह उलझ चुके होते हैं कि इसी तरह उसे लिखकर आप मुक्ति पाते हैं ..बिलकिस से मैं आज़ाद नहीं हो पा रही थी .ये एक कवि का हमला था अपने पाठक पर ..स्वानुभूति और संवेदना का तंतु जो मुझसे आकर जुड़ा ..मैं उन क्षणों के लिए शुक्रिया करती हूँ जो इस तरह मुझे एकान्तिक शून्य में धकेलते हैं . आभार अरुण देव जी का ,समालोचन पर जगह देने के लिए .

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  13. लाजवाब !अपर्णा जी शुक्रिया !

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  14. नेति नेति..साधुवाद अपर्णा जी..आरी की तरह उतरती चली गयी कविता..पैगम्बर का क़त्ल!!!!

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  15. बिलकिस एक बेहतरीन कविता है .. बहुत शुक्रिया अपर्णा जी का .. कितने सालों बाद इतने सुन्दर अनुवाद में पढ़ रहा हूँ इसे ..

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  16. वाह !!शब्दों को चुन मानो अर्क निकाला है ...बधाई अपर्णा दी को ...शुक्रिया अरुण जी !!निर्मल पानेरी

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  17. Many thanks Aparnaji and Arunji. This is extraordinarily simple, deep and moving poem. Loved it so much.

    Mukul

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  18. बेहतरीन रचनााएं..!
    बिना अनुवादक के पढ पाना मुमकिन नहीं हो पाता ..
    समालोचना और अपर्णा जी दोनो का शुक्रिया ..
    कवि के लिए अभी कुछ कहते नहीं बन रहा...

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  19. बहुत दिनो बाद बिलकिस जैसी पढ्ने को मिली.इस कविता में कवि ने अपना हृदय उडेल दिया है,यह
    प्रेम की इंतहा है.लेकिन युद्ध हमसे हमारी कीमती चीज छीन लेता है.अपर्णा ने बहुत अच्छा अनुवाद
    किया है .बधाई और शुभकामनाये

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत सुंदर कविता है...मैंने पूरी पढ़ी। मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि एक अरब इस कद्र अंदर तक छू लेने वाली कविता भी लिख सकता है। वह जो, हमेशा धर्म की जंज़ीरों में बंधे हैं और उन्हें कत्ल कर देने वाली तकलीफों में भी ऊफ तक करने की इजाज़त नहीं है... वहां ऐसी कविता भी लिखी जा सकती है... ऐसी कविता जो तुम्हें अंदर तक छू ले और कहें... अरब उससे बहुत अलग मेरे बच्चे... जैसे तुम्हें बताया और दिखाया जाता है... खुदा का घर, मौहम्मद का शहर... नबियों का इलाका। नहीं... नहीं... नहीं... ये सब सच नहीं है... इससे अलग भी अरब है। एक अरब... दुखो और एहसासों का... इंसानियत और जज़्बातों का। यह कविता उसी अरब की कविता है। बहुत शुक्रिया अरुण सर। इतनी बेहतरीन कविता पढ़वाने के लिए। बहुत शुक्रिया अर्पणा मनोज जी का भी जिन्होंने इसका अनुवाद किया।

    जवाब देंहटाएं
  21. कितनी मेहनत से और कैसा सुंदर अनुवाद किया है! कविता थर्ड हैंड पहुंचकर इतनी evocative है तो मूल में क्या होगी!
    अपर्णा जी को साधुवाद और आपको धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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