रंग - राग : तलत महमूद : नवोदित सक्तावत












क्या किसी गायक को इस तरह भी सुना जा सकता है? युवा नवोदित सक्तावत ने अब लगभग बिसरा दिए गए तलत महमूद को कुछ इस तरह से सुना है कि उनकी आवाज़   समकालीन हो उठी है. नवोदित के पास गायन की गहरी समझ है और संवेदनशील शैली भी. 


तू आके मुझे पहचान ज़रा                         

तलत को सुनना आत्मघात करने जैसा है. उसका संगीत, उसके गीत श्रृंगार के नहीं हैं. वह विजय पताका फहराने वाला इंसान नहीं है, ना ही रोमांस में इतराना उसे आता है. तलत छद्म दर्द में डूबा भी नहीं है, ना ही वह अध्यात्मिक है, वह चुलुबला भी नहीं है, ना ही शरीर और ना शैतान! वह सुरीला भी नहीं, बेसुरा भी नहीं ना ही वाचाल. असल में, परंपराओं की कोई जमीन तलत से मेल नहीं खाती. हां, तलत का अर्थ आत्मघात है. एकदम अहंकारशून्य हो जाना, मैं को खो देना, मिट जाना, मर जाना, बिसर जाना, खो जाना, खप जाना, पिघल जाना, धसरित हो जाना.....आत्मघात कर जाना. यही है तलत का असर...उसका होना.

तलत को सुनने वाला स्मार्ट नहीं हो सकता. वह स्मार्ट लोगों के लिए नहीं है, वह हारे हुओं का कंठहार है. वह कोने में दुबकने और सिमटने के लिए सेज का काम करता है. समझदारी और सयानापन तलत के पास नहीं है. तलत को सुनकर आप सब्जी वाले से मोल भाव तक नहीं कर सकते, वह बिलकुल भी दुनियादार नहीं है. तलत का संगीत आपको भीतर से गला देता है, मिटा देता है, स्वयं का बोध विदा कर देता है. तलत को सुनने वाले का कोई शत्रु नहीं हो सकता, ना किसी पर गुस्सा आ सकता है, ना जलन, ना बैर. ना ही किसी को तमाचा मारने की इच्छा पैदा हो सकती है. हद तो ये है कि तलत को सुनने वाला उल्टा अपने शत्रु को खोजेगा, गले मिलने के लिए. तलत को सुनने वाला शत्रु के प्रति भी सदभाव से भर जाता है.

तलत को सुनने पर मन ही मन सबके प्रति अज्ञात, अनजाने अपनेपन का आर्विभाव होता है. सारी सृष्टि एक सीध में आ जाती है. उसमें कोई अपना—पराया नहीं होता, बुरा कोई नहीं होता अलबत्ता सभी अच्छे होते हैं. ताज्जुब नहीं कि तलत की भावदशा वाला व्यक्ति उस व्यक्ति को खोजे जिससे वह नफरत करता है और यकायक उसे सरप्राइज करते हुए उसके पैरों में गिर पड़े. तलत यानी सदभावना. तलत यानी आत्म—ग्लानि. यकीनन, तलत हारे हुए आदमी का जेहन है, वह विजेताओं की दुदंभी नहीं. चालाक, दुनियादार, दुकानदार, स्मार्ट, सयाने लोगों को एक बार जरूर तलत महमूद को सुनना चाहिए, इससे उनके भीतर बहुत कुछ संतुलित हो जाएगा. लेकिन जो व्यक्ति पहले से ही नैराश्य में है, उसके वापस लौटने की गुंजाइश कम हो जाती है. इसीलिए तलत को सुनना आत्मघात करने जैसा है.

तलत की लरजिश, जो उसका प्लस पाइंट था, वही उसे नया काम मिलने में बाधा बनी, यह संभावित हो सकता है, लेकिन इसका दोष तलत को कतई नहीं जाता, दोष जाता है दृष्टिहीनता को जो तलत को पहचाना न गया. केवल अनिल बिस्वास थे जिन्होंने इस लरजिश को पहचाना, सम्मान किया, महिमामंडित किया. सीने में सुलगते हैं अरमां, सुनकर किसका दिल मोम बनकर नहीं पिघल सकता आज भी? नामुमकिन है. बशर्ते वह संवेदनशील शख्स हो.

लेकिन सवाल उठना स्वाभाविक है कि तलत का नैराश्य यानी क्या? क्या यह अध्यात्मिक बैचेनी है या अथवा दुनिया के बीच दुनियादार न हो पाने की अवस्था? क्यों तलत के गीतों का भाव शून्यता का बोध कराता है, वह भी शिकायतरहित. इसलिए, नैराश्य को यदि हम थोड़ा बहुअर्थी बना लें तो सुविधाजनक होगा.

जहांआरा फिल्म की गजल हैमैं तेरी नज़र का सुरूर हूं.....  इसमें तलत पूछते हैं— मुझे आंख से तो गिरा दिया, कहो दिल से भी क्या भुला दिया? यह धक्क से रह जाने वाली स्थिति है. कुछ—कुछ अनिर्णय और कुछ—कुछ अनमनी, अनसमझी सी मन:स्थिति. वह दिल खोलकर रख रहा है और बोल रहा है कि बेशक, तेरी नज़र का सुरूर हूं. यह घोषणा है. दावा है. लेकिन अगली लाइन में बात नज़ाकत से मोड़ते हुए कहा कि—तुझे याद हो, के ना याद हो. तेरे पास रहके भी दूर हूं, तुझे याद हो, के ना याद हो. यानी, मुझे पता है तू मेरा मूल्य नहीं समझ रही है, ठीक है मत समझ लेकिन मेरी चेतना का स्तर क्या है, वह मेरी कशिश से जाहिर कर रहा हूं. यह दावों से परे प्रेम है. पाने की चाह से परे, महत्वाकांक्षा के ज्वर से मुक्त. नैराश्य को हम थोड़ा सापेक्ष बना लें तो श्रेयस्कर रहेगा. वैसे, यह भावना अपने आप में झकझोर देने वाली है कि मैं तेरी नजर का सुरूर हूं, यह बात अलग है कि तुझे इसका भान नहीं है. दीवानगी भी है और पाने की चाह भी नहीं. गजब की मनोस्थिति है. जलते हैं जिसके लिए, तेरी आंखों के दीये...प्रणय गीत होकर भी स्वर उदास सा बिखेरता है. श्रृंगारित इश्क की इबारतों से अलहदा है यह स्वर. ज़रा गौर फरमाइये!

तलत के गीतों का चरित्र अक्सर समान रहा है इसलिए तलत को एक व्यक्ति की बजाय विषय के रूप में देखना सुविधाजनक रहेगा, तलत को समझने के लिए. इसलिए मैं शाब्दिक अर्थ पर बात नहीं कर रहा. बेशक, गीत में संगीतकार, गीतकार होते हैं जो गायक के साथ मिलकर कुछ सृजन करते हैं. शाब्दिक रूप से नहीं ले रहा हूं परिदृश्य को.

तलत महमूद के गीतों का चरित्र भीड़, मंजिल और तथाकथित समृद्धि व सफलताओं से मेल नहीं खाता. इसीलिए वह कहता है कि—ये सच है तेरी महफिल में, मेरे अफसाने कुछ भी नहीं, पर दिल की दौलत के आगे, दुनिया के खजाने कुछ भी नहीं, तू मुझसे निगाहें तो न चुरा, तू आके मुझे पहचान ज़रा, मैं दिल हूं इक अरमान भरा!

हमारे यहां गायकों को अन्यथा ले लिया जाता है, उन्हें गलत समझ लिया जाता है. हाई पिच पर गाने के बाद रफी को लाउड मानने वालों का भी वर्ग पैदा हो गया. वे कहते हैं कि रफी गहरे नहीं थे, वह तो तलत थे. मैं मानता हूं कि तलत गहरे थे. बेशक. लेकिन रफी लाउड नहीं थे, स्वभावत:. जैसा मैंने कहा, वे वर्सेटाइल थे. हरफनमौला. बहुत लोचात्मक. जाने क्या ढूंढती रहती हैं...इस गीत को जिस उजाडपन और फुसफुसाहट से शुरू किया है, वह गौरतलब है. जाग दिले दीवाना, रुत जागी वस्ले यार की...इसे शुरू से अंत तक फुसफुसाते हुए ही गाया है. वे हाई पिच पर बिना विचलित हुए गा सकते थे, यह उनकी विशेषता थी. क्योंकि यहां आने पर भी वे कर्कश नहीं लगते थे, जैसा कि किशोर लगते थे. जिस माइकल जैक्सन ने मैन इन द मिरर जैसा लाउड गीत गाया है, उसी ने शी इज आउट आफ माई लाइफ जैसा मद्धम गीत भी गाया है. यह गायक की खूबी है, स्थायी भाव नहीं. फिर रफी तो आवाज से अदाकारी करने में माहिर भी थे.

दरअसल, हर कलाकार की शैली होती है, जो बाद में छबि बन जाती है. तलत के गीतों का चरित्र अवसादग्रस्त है, रफी स्वयं वर्सेटाइल थे इसलिए वे चरित्र बदलते रहते थे, मुकेश निहायत टाइप्ड थे, कुछ—कुछ हेमंत दा और मन्ना भी, किशोर वैविध्यपूर्ण थे. इधर, पश्चिम में, माइकल जैक्सन 87 के बाद टाइप्ड हो गए. बैड एलबम के बाद. वर्ना इससे पहले उनकी शैली डिस्को फंक और पॉप की थी. इससे भी पहले जब वे जैक्सन फाइव में थे, तब के संगीत का स्वाद ही अलग था. आफ द वॉल के बाद उनका संगीत बदला.  बीटल्स तो शुरू से अंत तक एक जैसे रहे. एकदम खालिस गुणवत्ता. तो, छबि अक्सर कलाकार भर भारी पड़ जाती है. जैक्सन को जब किंग कहा जाने लगा तो उनके गीत भी किंग नुमा ही हो गए. बीटल्स के क्रांतिकारी विचार उनके संगीत में महसूस किए जा सकते हैं. इसी प्रकार तलत के गीतों का नायक अवसादग्रस्त लगता है, इसलिए वह सफलता का तलबगार मालूम नहीं होता. इसीलिए उसे भीड़ से फर्क नहीं पड़ता. वह एकांत का यशोगान है.

___________


 नवोदित सक्तावत,(4 अप्रैल १९८३,उज्जैन)
दैनिक भास्कर भोपाल के संपादकीय प्रभाग में सीनियर सबएडीटर के पद पर कार्यरत हैं.
सिनेमा, संगीत और समाज पर स्वतंत्र लेखन करते हैं
navodit_db@yahoo.com

10/Post a Comment/Comments

आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.

  1. तलत महमूद के गायन पर शायद पहला गंभीर लेख पढ़ने को मिला है। फिर भी एक भ्रान्ति दूर करना चाहूंगा कि तलत महमूद ऊंची पिच के गीत नहीं गाते थे। दरअसल तलत महमूद अपनी सिल्की आवाज़ में गीत और ग़ज़ल की अदायगी कुछ इस तरह करते थे कि पता ही नहीं चलता था कि आवाज़ किस सुर तक पहुंच गई।

    उदाहरण के लिये तलत महमूद के दो नग़में सुने जाएं... प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी... और दूसरा... ज़िन्दगी देने वाले सुन.. नवोदित सक्तावत को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. तलत कोलेज के दिनों से मेरे पसंदीदा गायक रहे हैं.उन्हें अनेक बार घंटों सुना है.उनकी आवाज में ऐसा जादू है कि काव्यात्मक भावों की अभिव्यक्ति उनसे बेहतर किसी और गायक में नहीं मिलती.'शामे गम की कसम' हो या 'जिन्दगी देने वाले सुन' उनके ज्यादातर गाने हमें सोचने के लिए मजबूर करते हैं.नवोदित ने बहुत डूबकर लिखा है.उम्मीद है उनसे और गायकों के बारे में दिलचस्प जानकारी मिलेगी.नवोदित को बधाई और समालोचन टीम का शुक्रिया.

    जवाब देंहटाएं
  3. नवोदित को समकालीन सुर में पढना अच्छा लगा और पोस्ट में तलत की मीठी आवाज़ भी उतनी ही समकालीन,ये संपादक की कलाकारी है. समालोचन का अंदाज़े बयां कुछ और है ..सलेटी रंग में नज़र आने वाली गीत की पंक्तियाँ क्लिक करते ही तलत तक ले जाती हैं ..
    मैंने नवोदित को पढ़ते हुए सुना तलत को " मैं तेरी नज़र का सुरूर हूँ ..." कुछ अहमदाबाद के मौसम ने भी इस लेख को कॉफ़ी के साथ पढने के लिए प्रेरित किया ..जलते हैं जिसके लिए ...
    फिलहाल ये गहरी आवाज़ अनाम सी उदासियों के साथ कमरे में गूँज रही है .
    तलत का अर्थ आत्मघात है ! नवोदित इसे मैं बार-बार दोहरा रही हूँ ..

    मुझे ख़ुशी है कि मैं स्मार्ट नहीं हूँ और हारने की बाज़ी मैंने हर बार जीती है ,इसलिए मेरे एकांत की साथी रही ये आवाज़। इस समय भी मैं उसी घने एकांत में इस आवाज़ को पढ़ सुन रही हूँ .

    तलत की आवाज़ एक सम पर उठती है और इसी सम पर नॉस्टेलजिक इफ़ेक्ट देते हुए गुम हो जाती है। इस आवाज़ को किसी होराइजन पर मैं तलाश नहीं कर पाती।ये ऐसी आवाज़ है जो बहुत करीब आकर दूर जाती हुई सुनाई देती है.जैसे जीवन के किसी ऐन कंट्रास्ट पर खड़ी हो ..और सुनने वाला साधक ठीक बीच में पेंडुलम की तरह दोलित होता हुआ .
    अच्छे लेख के लिए नवोदित का स्वागत .
    फिलहाल तलत को सुनते हुए ..

    जवाब देंहटाएं
  4. आलेख पढ़ा... अब गीत सुन रहे हैं...
    ***
    'गीत नाज़ुक है मेरा शीशे से भी, टूटे नहीं...' अभी गीत की इस पंक्ति को गा रही आवाज़ को जैसा आलेख में महसूस किया गया है... सच वैसी ही आवाज़ है!
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. निसंदेह संगीत के मामले मे नवोदित सक्तावत की समझ बहुत गहरी है,उनकी उम्र से कहीं बडा उनका लेखन है तलत जी की संगीत शैली को नवोदित ने बहतर प्रस्तुत किया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. हममें से अधिकांश लोग तलत को सुन .... बिना कुछ कहे .... बस उसके कुछ 'अंडर डॉग' वाले प्रभाव की दुनिया में अजाने ही चले जाते रहे हैं .... लेकिन नवोदित ने इस लेख में आजतक हम सभी की अव्यक्त .... अवर्णित .... भावनाओं को शब्दों में परिणित कर दिया है. धन्यवाद .... नवोदित ... यूँ ही लिखते रहें. मोहम्मद रफ़ी के साथ तलत महमूद का गाये गीत ....'गम की अँधेरी रात में ....दिल को न बेकरार कर .... ' के अल्फाज और गायन अपने आप में इस लेख के बहुत करीब सा लगता है.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुन्दर ,सार्थक लेख संगीत प्रेमियों के हृदय को छूता हुआ ...
    बहुत ही गहराई से महसूस कर के लिखी गई एक पंक्ति एहसास कराती है तलत की आवाज की गहराई का ... सुनती तो हमेशा आई हूँ उनको किन्तु आज नवोदित के लेख के साथ तलत को सुनना वाकई अभूतपूर्व रहा ... बधाई नवोदित को और हम तक पहुँचाने के लिए आपको ....

    जवाब देंहटाएं
  8. जो मैं ये कहूँ कि इस बच्चे के पास अपनी बात कहने का एक अलहदा ढंग है, तो ये ग़लत होगा. ऐसा मालूम पड़ता है कि इसके पास जीने का अलहदा ढंग है.

    अलग ढंग से बात कह देना कोई चुनौती नहीं है. जीना चुनौती है. अपने ढंग से जीना बड़ी चुनौती है.

    प्रिय नवोदित, जब चलना तो पीछे पलट कर अपने पैरों के निशान देखने में वक़्त मत गँवाना कि तुम्हें बहुत दूर तक चलना है.

    बहुत स्नेह इस बच्चे के लिए.

    [ "तलत को सुनना आत्मघात करने जैसा है." कुछ बाक़ी नहीं रखा कहने को.]

    जवाब देंहटाएं
  9. गजल गायकी की गहरी बातें बतायी..आभार..

    जवाब देंहटाएं
  10. नवोदित सक्तावत22 अग॰ 2013, 9:14:00 pm

    तलत महमूद पर वैसे भी बहुत कम लिखा जाता है। उसे सुना भी अपेक्षाकृत कम ही गया होगा। मैंने भी पहली बार लिखा। इसे बहुत पसंद किया गया, यह जानकर दिल की गहराइयों तक प्रसन्नता हुई, क्योंकि अगर तलत महमूद को नहीं समझा जाएगा तो किसे समझा जाएगा? यही सोचकर, उन तमाम लोगों के प्रति सदभावना से भर गया हूं जिन्होंने इसे ईमानदारी से पढा और समझा। जैसा मैंने पहले भी बताया था कि तलत को मैंने केवल तीन महीने ही सुना। जनवरी 2002 से मार्च 2002 तक। उस वक्त 19 साल की उम्र थी। उसके बाद से आज 11 साल हो गए, बिलकुल भी नहीं सुना है। सो, जो भी लिखा, सब याददाश्त के आधार पर ही लिखा। मैंने जीवन में जितना भी विविध संगीत सुना है, उनमें सर्वाधिक गहरा असर तलत का रहा, ऐसा मान सकता हूं। उसी का एक गीत है— शुक्रिया ऐ प्यार तेरा शुक्रिया। दिल को इतना खूबसूरत गम दिया, शुक्रिया। सभी पाठकों को भी मेरा अनौपचारिक शुक्रिया!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.