निज घर : गीत चतुर्वेदी की डायरी

फोटो: भावना पन्त 













महत्वपूर्ण कविकथाकार गीत, बहुज्ञ  और बहुश्रुत हैं. उनकी डायरी के पन्ने उनकी सृजनात्मकता के तलघर हैं जहां कई जरूरी सामान बेतरतीब जमा हैं. कविता के लिए तमाम कच्चा माल है तो कविता को समझती और समझाती कुछ पुरानी पोथियाँ भी हैं

कुछ पुरा कथाएं हैं और उनकी समकालीन व्याख्याएं भी कुछ फिल्मो के रील हैं जो अलहदा ढंग से बहुत कुछ कहती हैं, तो कहीं सल्वाडोर डाली और पाब्लो के चित्र लटक रहे हैं.

कुल मिलाकर रचनाकार के मानस को बनाने वाली स्मृतियाँ यहाँ मिलेंगी और उस बनते हुए को समझने के लिए कुछ  सूत्र भी. एक वाजिब पाठ.



टेबल लैंप                                                                      
(डायरी के कुछ टुकड़े)

गीत चतुर्वेदी

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ज्ञान का अर्थ पर्वत का शिखर नहीं हैसमुद्र की तलहटी है.

ज्ञान की भाषा का मुक़ाबला अज्ञान की भाषा है. यदि ज्ञान का घमंड घातक हैतो अज्ञान का घमंड महाघातक है. ज्ञान जो सबसे अच्‍छी चीज़ सिखाता हैवह है घमंड से दूर रहना. अज्ञान जो चीज़ सबसे ज़्यादा सिखाता हैवह है ज्ञान का उपहास करना. उपहास करने वाला हमेशा एक सीढ़ी ऊपर खड़ा रहता है. इस तरह अज्ञानज्ञान से सुपीरियर बन जाता है.

मेरी भाषा में कई बुद्धिजीवी (?) अज्ञान के घमंड में चूर हैं. इसीलिए वे हमेशा उपहास करने की अवस्‍था में रहते हैं. 


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बेकार शार्पनर सिर्फ़ पेंसिल की नोंक तोड़ता है. यह पेंसिल के जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्‍य है कि उसकी नोंक लिखते समय टूटने के बजाय छीलते समय टूट जाए.


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शब्‍द - कविता के भीतर न हों
अर्थ- कविता की परिधि पर ही हों
मौन- कविता के केंद्र में हों
गति- कविता का स्‍वप्‍न हो
स्थिरता- कविता का महास्‍वप्‍न हो
रूप- यह कविता का भ्रम है.

दिखना गौणता है. होना प्रधानता है.
दिख रहे को खोजा नहीं जाता.
होने को खोजना पड़ता है.
खोजना कला का सुख है.


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वह चीज़ महत्‍वपूर्ण नहीं हैजो वे मुझे दिखाना चाहते हैंबल्कि वह हैजो वे मुझसे छिपा ले जाते हैं. और सबसे महत्‍वपूर्ण वह हैजिसके अपने भीतर होने पर उन्‍हें संदेह तक नहीं होता.
रॉबर्ट ब्रेसां


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रचना और मेरे बीच एक निर्वात है.


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कुछ कविताएं जीवन की पुनर्प्रस्‍तुति करती हैं
कुछ कविताएं जीवन की रचना करती हैं
दूसरी कविता श्रेष्‍ठतम कवि का अभीष्‍ट है.


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प्रकाश हर वस्‍तु पर पड़ता है. जिन पर नहीं पड़ताहम वहां तक पहुंचते हैंउन्‍हें देखते हैं. दृष्टिप्रकाश है. अंतर्दृष्टिअंतर- प्रकाश  है. विषय पर दृष्टि या अंतर्दृष्टि का प्रकाश पड़ता हैतो छाया उत्‍पन्‍न होती है. कविता छायांकन है. कविता में हम हमेशा उस छाया को पकड़ना चाहते हैं. विषयांकन अच्‍छी कविता की रुचि का नहीं. विषयांकन का कला में मोल नहीं. छायांकन को अभी मेरी भाषा में यथोचति स्‍वीकृति नहीं मिली है.


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पालि के ग्रंथ 'अभिधम्‍म पिटक' या 'धम्‍मसंगिनी' के 'रूप' अध्‍याय को मैं कविता की संरचना के बहुत क़रीब पाता हूंरूप बाह्य अवधारणा हैवह भीतर नहीं पाया जाताभीतर का रूप दृष्टि से बाहर हैअनुभूति के दायरे में हैगोकि भीतर पाया नहीं जाताफिर भी पाया जाता हैदिखता नहींफिर भी होता हैजो निरी आंखों से दिख जाएवह भौतिक हैजो न दिखेफिर भी अनुभूत होवह भी अभौतिक नहीं हैबल्कि भौतिक ही हैइसीलिए मैं ईश्‍वर की अवधारणा को एक भौतिक प्रश्‍न मानता हूंउसमें अभौतिक या अधिभौतिक जैसा कुछ नहींईश्‍वर एक तर्क हैतर्क कभी अभौतिक नहीं होता.

कविता में रूप बाह्य का उत्‍सर्जन हैलेकिन सच तो यह है कि वह भीतर का उत्‍सर्जन हैसुंदर कविताएं अपने भीतर के रूप से सुंदर बनती हैंबाहरी रूप सिर्फ़ एक वाहन हैभीतरी रूप तक पहुंचने काएक कोड हैअच्‍छे पाठकअच्‍छे कवि को कविता के कोड्स तोड़ना आना चाहिएऔर कोड्स बनाना भी.

ग्रंथ कहता है- 'चित्‍त और चेतसिका मिलकर रूप की रचना करते हैंरूप भौतिक विश्‍व हैयह शारीरिकसंरचनागत या भौतिक गुणों के लिए प्रयुक्‍त होने वाला शब्‍द हैइसके भी दो प्रकार हैंभूत रूप यानी बुनियादी भौतिक गुणदूसरेउप्‍पादा रूप यानी अर्जित भौतिक गुण.'

कविता भूत रूप से ज़्यादा उप्‍पादा रूप पर टिकी होती हैकविता किन भौतिक गुणों को अर्जित कर आस्‍वादक में प्रविष्‍ट होती हैउसके वे गुण उसके विभव की रचना करते हैं.

एक फॉर्म हैवह मनुष्‍य की चेतना से जुड़ा हुआ हैउसे 'सब्‍बम् रूपम्' कहते हैंयानी वह रूपजिसमें सारे तत्‍व मौजूद होंपालि ग्रंथ संरचना की पंचतत्‍व विधि की जगह चार-तत्‍व विधि पर यक़ीन करता हैबुद्ध के समकालीन विचारक अजितकेश कम्‍बली तथा अन्‍य ने चार तत्‍व की परिकल्‍पना की थीपथवी धातु यानी पृथ्‍वीआपोधातु यानी जल या तरलतेजोधातु यानी अग्नि  और वायोधातु यानी हवा या निराधार प्रसार. (कविता के संदर्भ में मैं हवा को निराधार प्रसार का गुण मानता हूंउस पर अगली पंक्तिओं में.) और जो इन चारों को धारण करता हैवह स्‍वयं पांचवां है. 'सब्‍बम रूपममें ही भूत रूप भी शामिल हैउप्‍पादा रूप भी और महाभूतम भी.

चारों तत्‍व और दो मिश्रि‍त तत्‍वों को देखते हैं.

पथवी धातु ठोसखुरदुरीकठोरदृढ़ भौतिकतायह बाहरी होती हैपकड़ में आ सके या न आ सके.
आपोधातु - तरलताचिपकने का गुणआपस में जुड़े रहने का भावबाहरी या भीतरीपकड़ में आ सके या न आ सके.
तेजोधातु - ज्‍वलनशीलगर्मज्‍वाला से जुड़ी हुईताप की रिश्‍तेदारबाहरी या भीतरीपकड़ में आ सके या न आ सके.
वायोधातु - हवाहवा से जुड़ा या रिश्‍ते में हवाकंपन-दृढ़तास्‍फीतिस्‍खलन
महाभूतम - स्‍पर्शयोग्‍यठोसभौतिक या ऐंद्रिक तत्‍व और तरल तत्‍व के समावेश से बना क्षेत्र या आकाशयहां हमारा पांचवां पारंपरिक तत्‍व आकाशदो तत्‍वों के मेल से बनता हैऔर दरअसल वह आकाश ही महाभूतम की तरह प्रतिष्ठित होता है
उप्‍पादा रूपम दृष्टिश्रव्‍यतागंधस्‍वादऐंद्रिकतादैहिकता के समाहन से निर्मित क्षेत्र या आकाशदृश्‍यध्‍वनिगंधस्‍वाद के समाहन से बना क्षेत्र या आकाशयह सारे तत्‍वों के मिश्रण से अर्जित होता हैयह प्रदत्‍त तत्‍व नहीं हैयह अर्जित तत्‍व है.

कविता भी प्रदत्‍त तत्‍वों के मेल से की गई अर्जना हैसुंदर कविता महाभूतम हैपथवी और आपोधातु के संयोग से बनने वालीएक ठोस बाहरी गुण हैदूसरा तरलता का गुण हैतरलता को यहां भाववादी गुण न समझा जाएयह एक किस्‍म की गोंद हैचि‍पचिपापनजो दो वस्‍तुओं को जोड़ती हैदो स्थितियों या अनुभूतियों कोकविता का पथवी तत्‍व कोई ज़रूरी नहीं कि सुंदरतम शब्‍दों से ही बनेवहां सुंदरता से ज़्यादा ज़ोर ठोसखुरदुरेपन और दृढ़ भौतिकता पर हैशब्‍दों का दृढ़ प्रयोगयानी सिर्फ़ शब्‍दों के प्रयोग में तरलता या चिपकाने वाली गोंद के मिश्रण से भी सुंदर रचना हो सकती हैवहां अर्जना अपने आप हो जाती हैवह आस्‍वादक की अर्जना होती हैहमारी भाषा में कई शब्‍द युग्‍मकई मुहावरे या शब्‍द समूह ऐसे होते हैंजिनका कोई अर्थ नहीं होताकिंतु जिनके अर्थ की अर्जना स्‍वयं श्रोता कर लेता हैजैसे धिन-चकयह दो पथवी धातु और आपोधातु हैदोनों को साथ रख देनाइस युग्‍म का जल हैइसका अर्थ हर श्रोता अपनी स्‍मृति व अनुभव के आधार पर पा लेगाजिसके पास ऐसी स्‍मृति या अनुभव नहीं होगावह इसका अर्थ पूछ लेगा.

कई कवि महाभूतम के कवि होते हैंहालांकि ये कवि बहुत विरले होते हैंजल्‍दी स्‍वीकृत नहीं होतेकिंतु बहुधा चमत्‍कारिक भी होते हैंसंक्रामक भीमेरी पढ़त में बेई दाओ ऐसे कवि हैंउन्‍हीं के ज़रिए मैं पाउल त्‍सेलान  तक पहुंचा थावह भी ऐसे ही हैंहिंदी में निराला की कई कविताएं महाभूतम की प्रमाण हैंवहां सिर्फ़ गोंद का काम लिया गया हैऔर वे अद्भ़त कविताएं हैं.

लेकिन एक श्रेष्‍ठमेहनती और महत्‍वाकांक्षी कवि हमेशा उप्‍पादा रूपम की ओर जाना चाहेगावह सारे तत्‍वों की सृष्टि करना चाहेगावह पहले अपनी अर्जना को धारण करेगाकाव्‍य के भीतर उस अर्जना का गुप्‍त प्रस्‍ताव करेगा और फिर देखेगाकि उसका प्रस्‍ताव कितने पाठकों से अनुमोदित हुआकितने उस प्रस्‍ताव के पास पहुंचेचूंकि उप्‍पादा में ही महाभूतम भी शामिल हैइसलिए यहां अर्थ की एक विशेष अर्जना आस्‍वादक भी अपने लिए करेगा.  यह कविता सभी इंद्रियों से महसूस की जाने वाली कविता होगीयानी दृष्टि जब कविता पढ़ेगीतो वह आपकी त्‍वचा पर लिखी जा रही होगीजब त्‍वचा पर लिखी जा रही होगीतब वह सांस से भीतर जा रही होगीजब सांस से भीतर जा रही होगीउसी समय भीतर की ध्‍वनि बनकर वह कानों से फूट रही होगीऔर जीभ पर उसका स्‍वाद तैर रहा होगाएक अच्‍छी कविता आपकी इंद्रियों को पकड़ लेती हैऔर इंद्रियों के पार चले जाना उसका महती गुण है.

जबकि ज्यादातर कविजो कि औसत या बुरे होते हैंवे हमेशा भूत रूपम की कविता करते हैंवे भूत रूपम को तेजोधातु से मिला देते हैं और ज्‍वलनशील बन जाते हैंजबकि उन्‍हें वायोधातु पर ज़्यादा यक़ीन करना चाहिएमैंने कहावायोधातु को मैं कविता में निराधार प्रसार की तरह देखता हूंहर धातु पथवी धातु पर अवलंबित हैतेजोधातु पथवी पर संभव हैआपोधातु पथवी के आधार पर बहती हैलेकिन वायोधातु को कोई आधार नहीं चाहिएकविता के भाव निराधार बहने चाहिएउन्‍हें शब्‍दों का ग़ुलाम नहीं होना चाहिए.



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मक्‍कारी आंखों से झांक-झांक जाती हैआंखें अभिनय का हुनर बारहा भूलती हैंपकड़ ली जाती हैंजबकि मक्‍कारी अपने आप में नेत्रहीन गुण हैयानी आप मक्‍कार की आंखों में झांककर देख सकते हैंमक्‍कारी की आंखों में झांकने का सुख आपको नहीं मिलेगा.



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एक पुरानी यूरोपियन लोककथा हैबचपन में पढ़ी थीलेकिन जब 'सिनेमा पारादीसो' देखीतो याद आ गईउसमें इस कहानी को नैरेट किया गया है -

''एक समय की बात हैएक राजा ने दावत दीउसमें आसपास की कई राजकुमारियां भी आईंएक सैनिकजिसका नाम बास्‍ता थाउसने राजा की बेटी को देखावह सबसे ज़्यादा सुंदर थीऔर वह तुरंत उसके प्रेम में पड़ गयालेकिन राजकुमारी के सामने ग़रीब सिपाही की क्‍या बिसातएक दिन बास्‍ता ने राजकुमारी से मिलने का मौक़ा ताड़ ही लिया और उससे कहा कि वह उसे इतना चाहता है कि उसके बिना जि़ंदा नहीं रह सकताराजकुमारी उसकी भावनाओं की गहराई को देख भीतर तक पसीज गई और उससे कहाअगर तुम सौ रातें मेरे महल की बालकनी के नीचे गुज़ारोतो मैं तुम्‍हारी हो जाऊंगीसिपाही ख़ुशी-ख़ुशी राज़ी हो गयाएक रातदो रातदसबीस... हर रात राजकुमारी अपनी बालकनी से झांकतीऔर उस सिपाही को वहां बग़ीचे में बैठा हुआ पातीबारिश होहवा चलेबर्फ़ गिरेलेकिन सिपाही नहीं डिगाचिडि़यों ने उस पर शिट कर दिया और मक्खियां उसे क़रीब चबा गईं. 90 रातों के बाद वह एकदम मरियल और पीला हो चुका थाउसकी आंख से आंसुओं की धारा बह रही थीलेकिन वह उसे रोक नहीं पा रहा थाउसमें अब इतनी भी शक्ति नहीं थी कि निढाल होकर सो जाएराजकुमारी लगातार उसे देख रही थी... और 99वीं रात वह सिपाही खड़ा हुआअपनी कुर्सी उठाई और वहां से चला गया.''

फिल्‍म के अंत में वह किरदार इस कहानी को फिर याद करता है :

''अब मेरी समझ में आ रहा है कि वह सिपाही मियाद पूरी होने से ठीक पहले चला क्‍यों गयासिर्फ़ एक रात और राजकुमारी उसकी हो जातीलेकिन यह भी संभव है कि राजकुमारी अपना वादा निभाती ही नहींऔर अगर ऐसा होतातो सिपाही उसी समय मर जाता. 99 रातों के बाद कम से कम वह इस भ्रम में तो जिएगा ही कि कहीं न कहीं राजकुमारी उसकी प्रतीक्षा कर रही है...''

इस छोटी-सी कहानी में एक साथ कई संकेत हैंपहला संकेत प्रेम में शर्तइम्तिहान और खेल का हैसिपाही को पहली नज़र में प्रेम हुआ हैलेकिन राजकुमारी को नहींनिवेदन सिपाही कर रहा हैयानी प्रेम की स्‍वीकृति की सत्‍ता राजकुमारी के पास हैप्रेम को हमेशा स्‍वीकृति की दरकार होती है और यह प्रेम की सबसे बड़ी विडंबना है कि उसे स्‍वीकृति वही देता हैजो या तो प्रेम नहीं कर रहा होता या बहुत कम प्रेम कर रहा होता हैसत्‍ता का स्‍वभाव है चुनौती देना और परीक्षा लेनास्‍वीकृत की सत्‍ताधीश राजकुमारी उसके सामने शर्त रखती हैउसका इम्तिहान लेना चाहती है और साथ ही उससे अपना मनोरंजन करना चाहती है.

यह शर्त हैजैसे ही राजकुमारी ने सौ रातों की शर्त रखीयह दिख जाता है कि राजकुमारी उससे प्रेम नहीं कर पाएगीराजकुमारी सहानुभूति से भरी हुई हैसुंदरता की सत्‍ता आपको बाज़ दफ़ा क्रूर सहानुभूति से भरती हैसहानुभूति हमेशा कोमल नहीं होतीयदि वह कोमल होतीतो राजकुमारी सविनय इंकार कर देतीसिर्फ़ क्रूर होतीतो वह सौ कोड़े मरवातीलेकिन उसके भीतर यह सहानुभूति है कि वह उस सिपाही का सीधे-सीधे दिल नहीं दुखाना चाहतीप्रणय-निवेदन के बदले उसका अपमान नहीं करना चाहती,  और यह सैडिज़्म भी है कि उसके सामने एक असंभव लक्ष्‍य रखती हैलक्ष्‍य का असंभाव्‍य ही उसकी क्रूरता हैराजकुमारी को पूरा विश्‍वास है कि वह सौ रात पूरी नहीं कर पाएगाख़ुद ही हार मान जाएगा और ताउम्र इसके दुख में रहेगाअगर उसे ज़रा भी अंदाज़ा होताकि यह सौ रात इंतज़ार कर सकता हैबिना सोएबिना हिले-डुलेतो यक़ीनन वह एक हज़ार रातों की शर्त रखतीऐसी शर्त रखना पहले निवेदन में ही सिपाही के प्रेम को अविश्‍वास की दृष्टि से देखना हैउसे बहुत चतुराई के साथ ख़ारिज कर देना है.

यह इम्तिहान हैअगर मुझसे सच में प्रेम करते होतो सौ रातें वहां बैठोप्रेम इम्तिहान लेता हैयह तो सच हैलेकिन अमूमन इम्तिहान व्‍यक्ति लेते हैं और उसे प्रेम के सिर मढ़ देते हैंजब राजकुमारी में पहली नज़र का प्रेम ही नहीं थातो उसके द्वारा लिया गया इम्तिहान पूरी तरह एक व्‍यक्ति और एक सत्‍ता द्वारा लिया गया इम्तिहान हैयदि सौ रातों के बाद राजकुमारी उस सिपाही की हो जातीतो वह उससे क्‍या कहतीचूंकि तुमने मेरे लिए सौ रातों की प्रतीक्षा की हैइसलिए मैं तुमसे प्रेम करने लग गई हूंतो वह प्रेम किससे करतीसिपाही की प्रतीक्षा-शक्ति सेउसकी जिद सेया उसके परीक्षा में पास हो जाने सेया इस बात से कि तुम मेरे लिए इतना कुछ कर सकते होयह सब सिपाही के फ्रेगमेंट्स होतेपूरा सिपाही नहीं होतायानी राजकुमारी अगर सिपाही के प्रेम में पड़ती भीतो सिपाही के फ्रेगमेंट्स से प्रेम करतीसिपाही से क़तई नहीं कर पातीऔर प्रेम हो जाने के बाद सिपाही उसकी परीक्षा लेतातबवह किस तरह की परीक्षा होतीसौ रातों बाद वह कहतामुझे यक़ीन नहीं होता कि तुम मुझसे प्रेम करती होतुम मुझे मेरी सौ रातें लौटा दोतो मैं मान लूंगा कि तुम मुझसे प्रेम करती होसिपाही को उस समय जो प्रेम मिलतावह प्रेम के बदले मिला प्रेम नहीं होताबल्कि शौर्य के बदले मिला प्रेम होताइनाम में मिला प्रेम होताजैसे खु़श होने पर राज-परिवार अपने गले से एक हार निकालकर इनाम में दे देता हैवह प्रेम नहीं होताप्रेम की वस्‍तु होती या वस्‍तुरूप में प्रेम होताआत्‍मा से बाहर कोई भी करतब करके पाया गया प्रेम इनाम की तरह होता है.

यह खेल हैयह अनुभूति कि कोई आपसे इतना प्रेम करता है कि वह आपके लिए कुछ भी कर सकता हैवह हत्‍या कर सकता हैवह चार लोगों को पीट सकता हैवह सौ रातें मेरा इंतज़ार भी कर सकता हैबिना किसी शिकन के... यह अनुभूति प्रेम से कहीं ज़्यादा तोष देती हैप्रेम आपके ईगो को नष्‍ट करता हैयह अनुभूति आपके ईगो को पैम्‍पर करती हैजिसके पास प्रेम को स्‍वीकृति देने की सत्‍ता होती हैवह हमेशा उस प्रेम-संबंध में एक सूक्ष्‍म अहंकार से भरा होता हैकई बार स्‍थूल अहंकार से भीसत्‍ता स्‍वभाव से मनोरंजन-प्रिय होती हैराजकुमारी को अपने ईगो की तुष्टि के लिएमनोरंजन के लिए बस खिड़की से बाहर देखना होता. 'देखोबेचारा अब भी बैठा हैपगला हैमर जाएगा ऐसे.... मैं कहती हूंशर्त लगा लोसात रातों के बाद भूत उतर जाएगा... थोड़ा जि़द्दी लगता है... पंद्रहवीं में भाग जाएगा... देखोसूरज ढलने को हैऔर ये अभी तक अपनी कुर्सी लेकर नहीं आया... मान लो मेरी.. गया अब तो ये... नहीं आएगा... अरेदेखो फिर आ गया... जान प्‍यारी नहीं है बंदे को... मरे बिना चैन नहीं मिलेगा इसे....' राजकुमारी अपने कमरे में बैठी सहेलियों से इसी भाषा में बात करती होगीयह एक व्‍यक्ति को तिल-तिल कर मरते देखने का सुख हैग्‍लैडिएटर्स की मृत्‍यु खेल में बदल जाती हैप्रेम किसी न किसी क्षण आपको मृत्‍यु के खेल में अपमानित होते एक ग्‍लैडिएटर में तब्‍दील कर देता है.

सिपाही के उठ कर जाने के बाद इस कहानी में कुछ नहीं बचतासिर्फ़ एक चीज़ बचती हैउस एक चीज़ तक अभी पहुंचेंगेपर उससे पहले सिनेमा पारीदीसो की वह आखि़री उक्तिजो कि अत्‍यंत यथार्थवादी हैचूंकि राजकुमारी ने वह परीक्षा प्रेम के वशीभूत होकर नहीं लीबल्कि स्‍वीकृति की सत्‍ता के मद में ली हैसंभव है कि वह अपनी हार बर्दाश्‍त नहीं कर पातीऔर नई शर्त रख देतीऔर यह बड़ी संभावना है कि वह मुकर जातीआखि़र राजकुमारियों को मुकरना ही होता हैयह उनकी नियति भी हैतो ऐसे में वह सिपाही तो टूटकर ख़त्‍म ही हो जाता.


बहुत दिनों बाद कल एक फि़ल्‍म देखीबुख़ार और भड़कदार माइग्रेन के बाद. 'लोपे' 2010 में आई थीयह स्‍पेन के कवि लोपे दे वेगा के जीवन पर हैबनता हुआ माद्रिद और एक आत्‍महंता कवि....

तस्‍वीर उसी का एक दृश्‍य हैअलबर्तो अमान और पिलार लोपेस दे अयाला चार सौ साल पुराने माद्रिद की किसी छत पर बैठे हैंवह अकेला थाऔर सिर्फ़ उसी चीज़ को अस्‍वीकार करता रहा.

कवियों का जीवन प्रायएक जैसा होता हैजिसे वह अपनी विजय समझता हैवह उसकी पराजय होती है.

हर कवि ताउम्र एक स्‍त्री का अपराधी होता हैउसके मरने के बरसों बाद भी जब उसकी रचनाएं पढ़ी जाती हैंतो उनमें एक स्‍त्री की सुबक बेआवाज़ भटकती है.

उसकी रचना का हर पाठ उस अनामअनजान स्‍त्री के प्रति अर्घ्‍य होता हैअकेलापन कवि के दाहिने हाथ पर बंधा रक्षा-सूत्र है.

काफ़्का की एक पंक्ति याद आती है - 'जिस तरह फ़र्श पर सोते व्‍यक्ति को गिरने का ख़तरा नहीं होताउसी तरह मुझे लगता हैजब तक मैं अकेला हूंमुझे कुछ नहीं हो सकता.'




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वोंग कार-वाई की दो फि़ल्‍मों के दो अलग-अलग सीक्‍वेंस याद आ रहे हैं.

'इन द मूड फॉर लवका एक संवाद है:

''पुराने दिनों में जब कोई शख़्स अपना राज़ किसी से बांटना नहीं चाहता था... तो जानते होक्‍या करता थावह पहाड़ पर चढ़ताकोई अकेला पेड़ खोजताउसके तने में एक छेद बनाताफिर उस छेद पर मुंहकर सारा राज़ वहां फुसफुसाताफिर उसे गीली मिट्टी से ढंक देताइसलिए उसका राज़ हमेशा के लिए वहां सुरक्षित रह जाता.''

फिल्‍म के आखिरी दृश्‍य में टोनी लिऊंगआंगकोर वाट मंदिर जाता हैवहां एक खंडहर की दीवार पर उसे छेद दिखता हैचेहरा वहां कर वह कुछ फुसफुसाता हैहमें पता नहींवह क्‍या कहता हैफिर भी हम जानते हैं कि वह वहां मैगी के प्रति अपना प्रेम फुसफुसा रहा हैअपना प्रायश्चितअपना अपराधबोधअपना अकेलापनअपनी पीड़ाअपनी उद्विग्‍नताकोई आपको समझ नहीं पायायह जीवन का सबसे बड़ा राज़ होता हैयह राज़ आप उसे भी नहीं बतातेजो आपको समझ नहीं पाया.

राज़ हमेशा छेदों में रहते हैंराज़ हमेशा गीली मिट्टी से ढंके होते हैं.

उन्‍हीं की फिल्‍म 'हैप्‍पी टुगेदरके दृश्‍य हैं :

फिल्‍म की शुरुआत में ही टोनी लिऊंग की मुलाक़ात चांग चेन से होती हैदोनों मित्र बन जाते हैंचांग चेन आवाज़ों के प्रति संवेदनशील हैवह आवाज़ों के पार आवाज़ें भी सुन लेता है और उससे परेशान भी रहता हैएक दिन वह टोनी को एक टेप देता हैफिर बताता है कि आर्हेंतीना में एक जगह हैतिएर्रा देल फेगोयानी अग्निभूमिवह पृथ्‍वी के आखि़री छोर पर हैवहां समंदर के बीच एक लाइटहाउस हैवहां लोग अपनी भावनात्‍मक पीड़ाओं को डुबो आते हैंफिल्‍म के अंत में चांग पीड़ा के शिखर पर हैवह उसी लाइटहाउस पर पहुंचता हैपाता है कि उसके झोले में वही टेप पड़ा हैजब वह उसे बजाता हैतो उसमें देर तक सुबकने की आवाज़ें हैंटेप के भीतर कोई रो रहा है.

उसकी पीड़ाउसका अवसादउसका अकेलापनउसकी चुप्‍पीकिसी से न कह सकने की खुरचनये सब हवा के साथ बह जाते हैंटेप से निकलते हैंसमंदर में डूब जाते हैंगले के भीतर कांटों की फ़सल उगती है.

हृदय हमारी देह का सबसे भारी अंग है.

वह कोशिकाओं से नहींअनुभूतियों से बनता है.

पहाड़ भी अनूभूतियों से बनते हैंइसीलिए अपनी जगह से खिसकते नहीं.

तोते दूसरों के शब्‍द दोहराते हैंअपनी मृत्‍यु में वे चुप्‍पी की उंगली पकड़ प्रवेश करते हैं.

एक दिन हवा सब कुछ बहा ले जाती है.
एक दिन समंदर सब कुछ लील जाता है.
एक दिन मिट्टी सबकुछ ढंक लेती है.

वह अनिवार्यतहृदय से भी भारी गीली मिट्टी होती है.






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भाषा हमें लिखती है और इस तरह हमारी एकल विशिष्‍टता को नष्‍ट कर देती है.
बाबा बोर्हेस

उन्‍होंने ऐसा क्‍यों कहा थाभाषा हमें लिखती हैयह तो बीते बरसों में लोगों ने दोहरा-दोहराकर क्‍लीशे बना दियाजैसे कविता हमें लिखती हैहम चित्र नहीं बनातेचित्र हमें बनाता है आदि-अनादिपर इस वाक्‍य का यह दूसरा हिस्‍सा क्‍या है?

उनकी सबसे क़रीबी दोस्‍त कहती थी कि इस आदमी में कोई प्रतिभा नहींक्‍योंकि यह एक आदमी है ही नहीं. 1933 में एक लेखक पेरिस से बेनस आयर्स जाता हैसिर्फ़ बोर्हेस से घंटों बतियाने के लिएलौटकर एक फ्रेंच अख़बार में लिखता है, 34 साल का वह लड़का उन कहानियों के लिए प्रसिद्ध हैजो वह आने वाले बरसों में लिखेगाजिसके भीतर के कवि ने सबसे उर्वर वर्षों में 31 साल लंबा राइटर्स ब्‍लॉक झेला.

चालीस के दशक में मेक्सिको के लेखक कार्लोस फेन्‍तेस अपनी तरुणाई में इस लेखक को पढ़ना शुरू करते हैं और क़सम खा लेते हैं कि इनसे रूबरू कभी नहीं मिलेंगेजिस आदमी को सिर्फ़ पढ़-भर लेने से आपका जीवन बदल जाता हैउससे मिल लिएतो जाने क्‍या होगा.

बहुत कम लोग जानते थे कि 16-18 घंटे लगातार पढ़ने वाला यह आदमी बहुत मज़ाकि़या भी हैउनके शहर से बाहर बहुत कम लोग उसे पहचानते थेउनकी भाषा के बाहर जब लोगों ने उन्‍हें ढंग से पहचानना शुरू कियातब तक वह साठ के हो चुके थे.

आनुवंशिक रोग और बेतहाशा पढ़ाई के कारण युवावस्‍था में ही नेत्रज्‍योति गंवा बैठे बोर्हेस जब अपने शहर की गली से गुज़रते थेतो कई लोग उनके पास आकर पूछते थे- 'क्‍या आप ही बोर्हेस हैं?' उनका जवाब होता था- 'हांपर कभी-कभी ही.'

वह कभी एक रहे ही नहींवह हमेशा अनेक रहेयह किसी में दस-बीस आदमी होने जैसा निदा फ़ाज़ली वाला शेर नहीं हैवह हमेशा अनेक रहे और अपने भीतर के हर एक को जानते-पहचानते रहेलोग आत्‍म की तलाश में जीवन गुज़ार देते हैंबोर्हेस ने सबसे पहले आत्‍म को ही त्‍याग दिया थावह हमेशा 'द अदरया दूसरा व्‍यक्ति बन जाना चाहते थेवह हमेशा वैलरी को कोट करते थे'दुनिया का सारा साहित्‍य अलग-अलग लोग नहीं लिखतेबल्कि असंख्‍य अलग-अलग नामों वाला एक ही आदमी लिखता है.'

यानी दुनिया के सारे लेखक देह से अलग हैंलेकिन हैं एक ही अस्तित्‍वकोई बहुनामी आत्‍मा?

जब उन्‍होंने ऊपर शुरू में दी वह पंक्ति लिखी थीतो साथ ही कहा था- 'जब आप शेक्‍सपियर को पढ़ते हैंतो आप ख़ुद शेक्‍सपियर हो जाते हैंऔर जब आप दोस्‍तोएवस्‍की को पढ़ते हैंतब रस्‍कोलनिकोव हो जाते हैं.'

यानी लिखने के बाद शेक्‍सपियर अपना आप खो देते हैंउनकी एकल विशिष्‍टतासार्वजनिक साधारणता में बदल जाती है कि जो भी उन्‍हें पढ़ेशेक्‍सपियर बन जाएयहां लेखक ख़त्‍म हो गयावह ख़ुद पाठक में बदल गया हैऔर पाठक की एकल विशिष्‍टता ठीक शेक्‍सपियर को पढ़ते समय ही ख़त्‍म हो गईउसने अपना आत्‍म त्‍याग दिया और लेखक में विलीन हो गयायानी एक पृष्‍ठ पर लिखी हुई भाषा ने एक साथ दो लोगों की एकल विशिष्‍टता को समाहित कर लियाअपने भीतर सोख लियाउस समय वे दोनों व्‍यक्ति नहीं रहेबल्कि एक पाठ बन गए हैंदोनों ही शब्‍दों के भीतर खो जाते हैंइस तरह दोनों की ही निजता का क्षरण हो जाता है और हम एक विशेष कि़स्‍म की नाम-विहीनता में उपस्थित हो जाते हैंशायद बोर्हेस का यह दर्शन साहित्यिक अहंकारों के खि़लाफ़ उनका एक सूक्ष्‍म दांव भी रहा हो.

बाबा की वह पंक्ति कहीं अड़ी बैठी थीसुबह के इस क्षण उनका आशय थोड़ा-थोड़ा समझ आ रहा हैमैं बहुत धीमा हूं.



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होमर के एखिलिस और वेद व्‍यास के कृष्‍ण में मुझे कई समानताएं दिखती हैं.

दोनों युद्ध में माहिर थेदोनों महान कूटनीतिज्ञ थेदोनों ने संगीत साधा थादोनों एक बार जिन स्‍थानों को छोड़ गएवहां कभी लौटे नहींदोनों एक साथ कई प्रेम में शामिल रहते थेदोनों ने पराये युद्ध लड़ेदोनों प्रदत्‍त देवत्‍व को हीन करते थेदोनों व्‍यक्तिगत द्वंद्व को तरज़ीह देते थेदोनों मौक़ा पड़ने पर छल को महती औज़ार की तरह इस्‍तेमाल करते थेदोनों की मौत एड़ी में चोट लगने से हुई थीपैर में छल से लगे तीर के कारण छलिया कृष्‍ण की मृत्‍यु हुई थीएखिलिस का पूरा शरीर फ़ौलाद का थावह सिर्फ़ एड़ी में चोट लगने से मर सकता थावह उसी तरह मराइसीलिए अंग्रेज़ी में किसी के कमज़ोर हिस्‍से को 'एखिलिस हीलमुहावरे से संबोधित किया जाता है.

जब मैंने गुरचरन दास की एक किताब में एखिलिस और अर्जुन के बीच ऐसी ही समानताएं खोजने की कोशिश पाईतो और दिलचस्‍प लगीउनके पास एक और मुद्दा थाएखिलिस और अर्जुनदोनों ने ही अपने जवान बेटे की युद्ध में छल से मौत देखी थीएखिलिस ने बदला लेने के लिए हेक्‍टर को मारकर उसकी लाश रथ में बांधकर घसीटा थातो अर्जुन ने भी बहुत क्रोध में बदला लिया था.

होमर और व्‍यास दोनों ही युद्धों के महान व कारुणिक रचयिता हैं­






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'वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सॉलीट्यूड' लिखने में मारकेस को बहुत समय लगा था. अठारह महीनों तक लगातार लिखने-काटने में उलझे रहने के कारण उन्‍होंने कोई और काम नहीं किया था. इस दौरान घर चलाने के लिए उनकी पत्‍नी मर्सेदीस ने एक-एक कर लगभग सारा सामान बेच दिया. जब उपन्‍यास पूरा हुआतो मारकेस दंपति के पास इ‍तने पैसे भी नहीं थे कि वे पांडुलिपि को प्रकाशक के पास बार्सेलोना भेज सकें.
उपन्‍यास कितना बिकासब जानते हैं. मारकेस पर कनकधारा बरसी. यश की. धन की. कुछ बरसों बाद ही उन्‍होंने मेक्सिको सिटी में एक बड़ा-सा मकान लियाजो पूरी तरह सेंट्रलाइज़्ड एयर कंडीशंड था. उस ज़माने में ऐसे मकान गिनती के थे. अब तो उनके पास पूरी दुनिया में पांच से ज़्यादा आलीशान मकान हैं.

एक रात मारकेस ने मर्सेदीस से कहा'जिस दिन मैं पैदा हुआ थाउसी दिन मुझे पता चल गया था कि मैं दुनिया का सर्वश्रेष्‍ठ लेखक हूं....'

वाक्‍य पूरा होने के इंतज़ार में मर्सेदीस उनका चेहरा देखती रहींतब उन्‍होंने कहा, '.... बसदुनिया को यह बात पता चलने में 42 साल लग गए.'

यह टिपिकल मारकेसियन बयान है. :-)

इसके बाद मुझे मारकेस के कई संवाद याद आ रहे हैं. वह संवादों का प्रयोग वैसे भी कम करते हैंलेकिन जो भी करते हैंवे संक्षिप्‍तअर्थगर्भी और हमेशा एक दार्शनिक-मख़ौल के साथ होते हैं. वह अख़बारों के लिए लिखते रहे और वहां संवादों की कम जगह होती हैइसे उन्‍होंने अपने गल्‍प में शामिल कर लिया. इसीलिए उनके यहां वर्णन की केंद्रीयता है. 

वह फिल्‍मों के लिए लिखते रहे. शायद उनका यह अनुभव भी उनके गल्‍प में काम आया. फिल्‍मों में संवाद का बड़ा महत्‍व है. इसीलिए जब भी उन्‍हें अपने गल्‍प में संवाद का प्रयोग करना पड़ा,  उन्‍होंने नाटकीय संवादों की शैली अपनाई. यानी एक ही संवाद से कई अर्थ-भावबोध का विकास. 'लव इन द टाइम ऑफ़ कॉलराके कई संवाद ज़बानी याद हैं. उनमें वैसा ही असर हैजैसा अपने यहां 'मुग़ल-ए-आज़मऔर 'शोलेके संवादों का.

इसी प्रकृति का संवाद उनके '...कर्नलके आखि़री पन्‍ने पर आता है. अंत का दृ श्‍य है. बदहाली की मंझधार में खड़ी पत्‍नी कर्नल से पूछती है- अब हम खाएंगे क्‍या?

कर्नल एक शब्‍द में जवाब देता है- शिट.

जिस तरह का उपन्‍यास हैजैसी स्थितियां हैंमैं कई बार सोचता हूंकि क्‍या गाबो इस जवाब से बच सकते थेहर बार लगता हैनहीं. यह विवशताझल्‍लाहट और अनिश्चितता का शिखर है. 'शिट खाएंगेअप्रतिम-अपरिहार्य विवशता है.

लेकिन ऊपर के इस अनुच्‍छेद से एक यह बात भी दिखती है कि आत्‍मविश्‍वास और मनोबल बहुत ज़रूरी तत्‍व हैं. आत्‍मविश्‍वास से च्‍युत प्रतिभा बड़े जोखिम नहीं उठाती. बिना प्रतिभा के आत्‍मविश्‍वास बौड़म की अड़ है.

डाली अपनी किशोरावस्‍था से ख़ुद को जीनियस मानते थे. बाद में पूरी दुनिया ने माना.




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दाली से कहनाउससे प्रेम है

मैं उनकी ओर देखता भी नहीं
उनकी बातें भी नहीं करता
लेकिन जो मैं देखता हूंसोचता हूंरचता हूं
उस पर उन्‍हीं का नियंत्रण होता है.
                                      -- सल्‍वादोर दाली




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मूर्स अरब लोग थेजो बर्बर थे. जिन्‍होंने मध्‍य युग में कई यूरोपीय देशों पर हमला किया था. उनकी क्रूरता और विलासिता के इतिहास में कई कि़स्‍से मिलते हैं. एक समय उन्‍होंने स्‍पेन को लगभग बर्बाद कर दिया था. अचरज है कि सल्‍वादोर दाली ख़ुद को मूर्स का वंशज मानता था. विलासिता और आरामदेह चीज़ों के प्रति अपनी दीवानगी को वह अपनी कलाकारोचित रसिकता से नहींबल्कि मूर्स का वंशज होने की अपनी कल्‍पना से जोड़ता था.

क्‍या एक कलाकार अपने जीवन या कला की प्रेरणा क्रूरताओं से भी पा सकता हैदाली ने अपने अतियथार्थवादी चित्रों में कई बार सूक्ष्‍म क्रूरताओं का चित्रण व प्रदर्शन किया है. एक स्‍त्री की पीठ में एक बड़ा-सा गड्ढा दिखाना भी कई बार मुझे क्रूरता ही लगता है. आरपार दिखने वाला गड्ढा. ऐसे चित्रों का सर्रियलिस्टिक विश्‍लेषण अलग तरीक़े से किया जा सकता हैलेकिन क्‍या ऐसी क्रूरताओं के मूल में दाली की मूर्स से जुड़ाव की कल्‍पना होगीया उसके ख़ानदानी पैरानोइया को इसका मूल माना जाएया सर्रियलिस्टिक आंदोलन का अगुआ होने के कारणलेकिन अगर उसकी क्रूरता की यह कल्‍पना न होतो वह सर्रियलिज़्म में भी धंस नहीं पाएगा.

मैं अपना अवचेतन नहीं जान पाता. दाली का अवचेतन क्‍या ख़ाक जानूंगा?

हमारा अजाना असीमित हैजाना सीमित. हम बहुत सीमित कृतित्‍व हैं. हम यानी मनुष्‍य और उनमें भी कलाकार ऐसा विरोधाभासी जीव होता है कि वह एक ही पल में सीमित और असीमित दोनों होता है. जब वह उत्‍सर्जन करता हैतो वह तमाम ब्रह्मांड के असीमित में जाकर मिल जाता है. जब वह ग्रहण करता हैतब वह तमाम ब्रह्मांड का तिल-बराबर ग्रहण होता है. इससे ज़्यादा ग्रहण की उसकी सीमा नहीं होता. 

यह कला का स्‍वभाव है. इसे ऐसे देखो-

देना असीमित हो. लेना सदैव सीमित हो.

इसीलिए जब किसी को कोई चीज़ समझ में न आएतो उसे प्‍यार से देखना चाहिए. वह अपनी सीमा का सम्‍मान कर रहा है.

पर उनका क्‍या किया जाएजिन्‍हें अपनी सीमा का भान नहीं होताउल्‍टे वह इस गर्व में होते हैं कि उनकी सीमा असीमित है. वे घातक लोग हैं. वे कुटिल हैं. वे अनर्थवादी हैं.




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धर्म और रहस्‍य में हमेशा गठजोड़ होता है.



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दाली और पिकासो के बीच अजीब संबंध था. पिकासो की एक प्रेमिका के परिवार में दाली का बचपन से ही आना जाना था. वहां पिकासो भी कई बार आते थे. उस स्‍त्री के पति और बच्‍चों के मुंह से अक्‍सर दाली पिकासो के कि़स्‍से सुना करते थे. बड़े होने पर दोनों में कोई ख़ास संबंध नहीं बन पाया. लेकिन दाली जब पहली बार पेरिस गएतो उन्‍होंने सबसे पहले पिकासो से ही मुलाक़ात की. दाली के ही सुंदर शब्‍दों में- Picasso was the first 'monument' I visited in Paris, even before the Lovre.





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स्‍कूल में पेंटिंग की क्‍लास में दाली को जो सिखाया जाता थावह ठीक उसका उल्‍टा करता था. मसलन उसे सॉफ़्ट पेंसिल और सॉफ़्ट ब्रश इस्‍तेमाल करने का सुझाव दिया गयालेकिन वह गाढ़़ी पेंसिल और चटख़ रंगों का प्रयोग करता था. और वह भी ऐसे पैशन के साथ कि सारे नियम मानने वाले बच्‍चे अपना काम छोड़कर उसका चित्र देखने लग जाते थे.

उसके बाद वह अपने चित्र को रगड़कर रेशे निकाल देता था. फिर उसे फाड़ भी देता. फिर उसे पत्‍थरों पर चिपका देता. फिर पत्‍थरों पर रंगने लगता. ऐसे छोटे-छोटे कई पत्‍थर उसने रंगे थे. इसे उसने डायरी ऑफ़ अ जीनियस में उसने अपना स्‍टोन पीरियड कहा है. यानी पाषाण-काल.

चित्र बनाना सीखता था या आनंद पानाकला में आनंद से बड़ी कोई उपलब्धि नहीं. अगर कविता लिखने के बाद तुम्‍हें उस काग़ज़ को जलाकर राख करने देने में आनंद आएतो वही करो. बशर्ते आनंद मिले. बशर्ते दो साल बाद उस क्षण पर प्रायश्चित न हो.

कुछ प्रायश्चित गौरव देते हैं. कुछ प्रायश्चित सिवा आनंद के कुछ नहीं होते.  




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Dali was always fascinated by optical illusions. Being an artist is in fact being an illusionist. An Optical Illusionist.




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कलाकार हमेशा सेल्‍फ़ और अदर सेल्‍फ़ के संघर्ष में रहता है. श्रेष्‍ठ कला बिना अदर सेल्‍फ़ में के नहीं घटित होती. कला इन्‍हीं दोनों पड़ावों के बीच रहती हैऔर कला ही वह ज़रिया है जिससे दोनों का एक होना संभव होता है. सेल्‍फ़ और अदर सेल्‍फ़ के बीच कला का पुल है. बोर्हेस के बारे में यह बात मैं कह ही चुका हूं. यहां दाली के बारे में है. उसका अपने मृत भाई के साथ जो संबंध हैवह सेल्‍फ़ और अदर सेल्‍फ़ का संघर्ष है. बहुत मोटे तौर पर इस संबंध को डॉक्‍टर जैकिल-मिस्‍टर हाइड में देखा जा सकता हैलेकिन जिस संघर्ष की ओर मेरा ध्‍यान हैवह इससे कहीं ज़्यादा सूक्ष्‍म है. वह मल्‍टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर नहीं हैबल्कि ऑर्डर ऑफ़ आर्ट है.

पमुक के उपन्‍यासों में जैसा द्वंद्वपूर्ण संबंध उनके नायकों को अपने भाई के साथ होता हैवह भी इसी के प्रतीक की तरह दिखता है. ऐसा लगभग हर कलाकार के साथ होना चाहिए.

मुश्किल यह है कि हर कलाकार ख़ुद को इस नज़रिए से देखकर अपने अनुभवों का वर्णन नहीं कर सकतालेकिन यह एक अनिवार्य प्रक्रिया है. क्‍या मैं इसे भावजगत व वस्‍तुजगत के जड़ व चेतन के परस्‍पर अस्तित्‍वगत संघर्ष से जोड़कर देख सकता हूं?

यक़ीननदेख सकता हूं!
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गीत चतुर्वेदी की कविताएँ यहाँ पढ़ी जा सकती हैं.
geetchaturvedi@gmail.com

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  1. इस लेख को पढकर लगता है मानो कई लेखकों की महफ़िल जमी हो और हम उनके बारे में एक एक करके जान रहे हों.इसमें कविता के गुणों जैसे उसका अर्थ सतह पर होने और केन्द्र में मौन की उपस्थिति और दिखने की बजाय होने पर जोर दिया गया है. तरलता और वायवीयता वाली कविताओं को ग्राह्य करने के लिए पाठकों को सही शार्पनर जैसा होना चाहिए वर्ना खराब शार्पनर से पेंसिल की नोक टूट जाने की तरह कविता का अर्थ कहीं खो जायेगा.सिनेमा पारादीसो की कहानी से राजकुमारियों को पाने के लिए प्रेमियों के बीच द्वंद्वयुद्ध कराने की याद आती है.जीतने वाले से राजकुमारी विवाह कर लिया करती थी.इस डायरी में लिखने के आनंद, लेखकों के अकेलेपन और उनके सेल्फ और अदर सेल्फ के बीच संघर्ष को भी दिखाया गया है.

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  2. आप तो एक क्लब हैं आप एक बहता हुआ झरना भी हैं,आप एक पुराना किला भी है, कि जिसमें पुरानी यादें दर्ज हैं, आपसे सीखना बाकी है।

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  3. यह तो खज़ाना है ! जहाँ-तहाँ दुर्लभ रत्न बिखरे पड़े हैं ! इन रत्नो का खोजी निश्चित ही आँख वाला व्यक्ति है !
    गीत जी और अरुण जी ,आप दोनों का आभार !

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  4. पांचो इन्द्रियों से पढ़ा और छठी इन्द्री मानो जागृत हो गई.. मौन तलछट पर पसर गया और शिखर का अभिमान टूट गया.. गीत जी को नही खुद को बधाई देती हूँ कि थोडा प्रसाद ग्रहण कर पाई . धन्यवाद अरुण जी.

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  5. bahut akele me likhte hain aap aur use padhne ke liye usase bhi adhik akele me jane ki zaroorat hoti hai, shukriya
    Vimal C Pandey

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  6. चाहे किसी रचनाकार की निजी डायरी का ही कोई अंश हो, (खास तौर से वह अंश, जो संक्षिप्‍त और सूत्र रूप में प्रस्‍तुत हुआ हो) उसे सार्वजनिक करते समय अगर उसका स्रोत-संदर्भ (यानी उसके आस-पास का जरूरी ब्‍यौरा) स्‍पष्‍ट न किया जाय तो वह बहुत से भ्रम और अंदेशे छोड़ जाता है, गीत की डायरी के कुछ अंशों के साथ मुझे यही कठिनाई लगती है।भारतीय आख्‍यान-दर्शन (विशेषत बौद्ध दर्शन) के पौराणिक संदर्भों और विश्‍व-प्रसिद्ध रचनाकारों के किस्‍सों को बयान करते हुए उन्‍होंने बहुत सी दिलचस्‍प बातें कही हैं, उनके निष्‍कर्षों से असहमत हुआ जा सकता है, लेकिन उन्‍हें पढ़ना रोचक लगता है।

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  7. एक लेम्प की रौशनी में ग्लोब घूमता रहा . ग्लोब तरह-तरह के शेड्स के साथ घूमता . शेड्स रौशनी में गिरते और रौशनी कवि के अन्तः चेतस में ..फिर ये सब एक पाठक की अनुभूतियों का हिस्सा बनते जाते . डायरी के पन्ने घिर्र-घिर्र कर रील की तरह चलते ..श्वेत-श्याम के बीच जीवन का छायांकन अजब-अजब रीत से नाद करता ..महाभूतम का प्रमाण हैं ये पन्ने .. समालोचन का विशेष आभार .

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  8. जिस दिन मैं पैदा हुआ था , उसी दिन मुझे पता चल गया था कि मैं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ लेखक हूँ ..................बस दुनिया को इसे पता चलने में 42 साल लग गए (मार्केस) ...क्या बात है ..? बेहतरीन है इससे गुजरना

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  9. डायरी के पन्नों से गुज़रना सुन्दर अनुभव रहा!
    आभार!

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  10. kya main isi lok men tha...?geeeeeeeet.......it's really gr8 to go thru yr dry....kp it up...

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  11. ’मेरी भाषा में कई बुध्दिजीवी(?) अज्ञान के घमण्ड में चूर है। इसीलिए हमेशा वे उपहास करने की अवस्था में रहते हैं।’ मार्मिक और संवेदनशील! बहुत ही कटु और भोगा हुआ यथार्थ बयान किया लगता है गीत जी ने।

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  12. बार बार पढ़ती हूँ ,हर बार लगता है मन को अमृत मिल गया ...,,,,,,

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  13. हमेशा की तरह शानदार

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