सहजि सहजि गुन रमैं : प्रत्यूष पुष्कर

Pablo Picasso, Guitar (1913).











संगीत से कविता का पुराना नाता है. संगीत ने कविता को स्थायित्व प्रदान किया है. जिन कविताओं को संगीत ने अपना सुर दिया वे अमर हो गयीं, जिन्हें हम ‘पारम्परिक’ कहते हैं दरअसल वे अनाम कवियों की जिंदा रचनाएँ हैं.
कविता ने भी संगीत का साथ दिया है. सुर को ध्यान में  रखकर  तमाम कविताएँ लिखी गयीं हैं. संगीत को विषय बनाकर भी कविताएँ लिखी जा रही हैं. बहुआयामी प्रतिभा के धनी प्रत्यूष पुष्कर तो अपना पहला कविता संग्रह ही ऐसी कविताओं से तैयार कर रहे हैं.
इन कविताओं में संगीत की समझ और उसका विस्तार तो है ही शिल्प और भाषा में भी ताज़गी है.

कुछ कविताएँ.

प्रत्यूष पुष्कर  की कविताएँ                                     







गन्धर्व  (एक)
 
सम्पूर्ण मनुष्य नहीं है.
अर्ध-मानवीय है 
अर्ध-कलहंसी है
एक
जो पहले आलाप में दौड़ता है 

सभी हंसों के संग 
दूसरे आलाप  में 
स्वयं को  
सूर्य के  घोड़ों के समक्ष पाता  है 


उसका चेहरा ताप से निस्तेज हुआ जाता है 
उसकी छाती जलने लग जाती है



गन्धर्व (दो)
 
(सा)प्रमाण है, ईश का होना, 
होने के ईश के कोप का 
को-प-पश्चात 
ईश के पश्चाताप की 
विचित्र वेदना-पा

सर्प बंधन में जकड़ी 
मुक्ति की कोख से वो जो निर्गुण(सा)
'उड़ जाएगा हंस अकेला

 

पिकासो का गिटार


“मैं वह नहीं पेंट नहीं करता जो मुझे दीखता है,
मैं वह पेंट करता हूँ जो मुझे पता है कि वहां है”*


मुझे पता है कि वहां एक स्त्री है कम से कम
कम से कम एक पुरुष
कम से कम एक गिटार
कम से कम तीन लोग हैं

इन तीनों के बीच का सम्बन्ध
किसी अनसुलझे रुबिक क्यूब सा है
कम से कम एक बार एक गिटार बीच में है
कम से कम एक बार एक पुरुष बीच में है
कम से कम एक बार एक स्त्री को फैलाने पड़े हैं अपने पाँव

जब गिटार बीच में है तब
पुरुष का कूल्हा
गिटार की कमर सा लगता है
गिटार की कमर का वलय घटा
स्त्री कम से कम एक बार
अपनें नितम्ब भीतर धकेल देती है फ्रेम में
कम से कम एक बार पुरुष की ओर
कम से कम एक बार गिटार की ओर

स्त्री गिटार बजाना जानती है
पुरुष कम से कम एक बार नहीं जानता
पुरुष की कल्पनाओं में स्त्री ने देवीय रूप धारण किया है कम से कम एक बार
स्त्री ने देखा है पुरुष का प्रागैतिहास


कुछ तारें हैं
कुछ नहीं ये
गिटार 'अव्क्वार्ड' है पिकासो का
पता तो है कि है
छुआ भी नहीं है.
__
 *पिकासो



भैरवी

संगीत के अभाव में
गलत समझी गयी
जब संगीत से समझी गयी
इसकी प्रकृति चंचल,
पता चला अमावास नहीं है
सुबह का पहला प्रहर चपल


भैरवी का ‘धा’
संगीत में कोमल लगा
भैरवी को सुनते औंघाये
बच्चे सो गए.



वेस्टर्न-ईस्टर्न


एक परिवार तार-
सबसे ऊंची आवाज़ वायलिन की
संग खड़ी उसकी बहन विओला
मझला भाई चेलो(!)
और एक हार्प-
सामानांतर-
माता-पिता 


एक परिवार ब्रास
-
पिता ट्युबा
माँ त्रम्बोन
सबसे बड़ा बेटा हॉर्न
उससे छोटी
लड़की ‘ट्रम्पेट’

एक परिवार- वुडविंड
माँ बस्सुन
पिता कॉण्ट्रा बस्सून

बड़ी बेटी क्लेरीनेट
तीन और छोटे
सबसे सुखदायी बच्चे
ओबो, फ्लूट और पिकोलो

एक परिवार परकशन
दादाजी टिम्पानी
दादी जैलोफोन
बहनें ट्रायंगल और चाइम्स
भाई स्नेयर, बास और सिम्बल
पहली कजिन तम्बौरिन


सब मिलाकर-
एक वेस्टर्न ऑर्केस्ट्रा, जैसे
एक ईस्टर्न परिवार





 कॉम-रे’


कॉमरेड! मार्क्स के नेपथ्य में हौले हौले बजता है बीथोवन
कॉमरेड! चे ने सुना थ बीटल्स को, एक बार से कहीं ज्यादा
कॉमरेड! माया और नीना बहनें है
कॉमरेड! बधाई हो! हम रो सकते है अब भी संगीत को सुनकर
कॉमरेड! सच यह है कि हम धर्म को मार गिरा नहीं सकते
कॉमरेड! सच ये भी है कि हमें सभी अंदाज़े नहीं
कॉमरेड! संगीत को बक्श देना हमारी बेवकूफी होगी
कॉमरेड! लोग ये तो ना कहें कि हमने कोई बेवकूफी तक नहीं की

कॉमरेड! ‘रे’ का रंग लाल है/ हम ‘नि’षाद में सभी के संग है
कॉमरेड! हमने बाहों पर अभी काला ‘प’ बाँध रखा है
कॉमरेड! हमनें फूलों की बाट नहीं जोही, हम पत्तियों के हरे-सा के लिए लड़ते है

कामरेड! हमारे बजाये गानों में कम से कम हर पांचवा ब्लू है 
कॉमरेड! हमारा भविष्य एक सुनहला ‘गा’ है


कॉमरेड! प्लीज! गाओ ना कुछ!

(कॉमरेड! लिक्विड इन्टेक ज्यादा रखो, प्लीज़)




यमन कल्याण

अमोघ और आत्रेयी हैं जैसे
यमन और कल्याण
हु-ब-हू
लेकिन मिलकर बन जाते है
अमोघात्रेयी
जैसे यमन-कल्याणअमोघात्रेयी एक नया राग है
इसके अमोघ से जुड़ते है हिंदी पट्टी के अधेड़ मर्द
अनामिका के नाखून को तर्जनी से कुरेदते
गलती से कभी बना बारहसिंघा
पटक देते तेराई सापर
किलसते जब जब
धापर दोनों को संग पाते
बार बार किलसते
जब बार बार धापर दोनों को संग पाते
नि-रे प-ड़े  ले लेते गहरी सांस
आत्रेयी आरोह उठाती
सातों सुरों से सम्पूर्ण
हिंदी पट्टी की लड़कियां गाल पर हाथ ले
दांत से गाल को चिकोटी काटे
देखती आत्रेयी को
हिंदी पट्टी के लड़कियों के सुर ज्यादातर पक्के थे
सा रे ग, , , ध नि सा
नि पर आते आत्रेयी से जुड़ जाती वहां बैठी सभी लडकियाँ
गूँज से खिड़की से भीतर घुसी चली आती मधुमक्खियाँ
शहद है बहनों का संग गाना
अमोघ प्रतीक्षा करता आत्रेयी के आरोह  के चरम तक पहुँचने की
फिर वहां बिठा उसे स्वयं लेता अवरोह
ध-प से जुड़  जाते  मर्द सभी
तलहथियों से बना अपने चेहरे को घूरता एक सांप का फन
उसपर उतार लेते अमोघ को हौले हौले
नि रे ग रे, प रे, नि रे सा, पकड़
होता सभी का मिलन
पीछे  की पंक्ति से उठकर
एक हिजड़ा मर्द
बीच में आकर बैठ जाता





इस्पेखो
 
यह एक मरीचिकाओं का  शहर है,
यहाँ हम सब एक दूसरे के आयने हैं, ‘इस्पेखो'”
अल्हड़पन और मारकेज़!
मैं किताब ख़त्म कर भागकर सारा के पास पहुँचता
सुनो! मुझे पता चल गया है कि हमारा रिश्ता क्या है?”
इस्पेखो?”
हाँ! इस्पेखो! भूल ही जाता हूँ कि यह किताब तुम्ही ने दी.
मार्केज़ का घर तुम्हारे  घर के रास्ते में आता है.
(प्रेमी का नाम गुदवाना शरीर पर है जैसे
किसी गिटार के फ्रेट पर उसका नंबर मात्र उत्कीर्ण कर देना
सब कहते गिटार स्त्री-वत है
मैं समझता
गिटार बजाना)
ठीक उसी रात जब डिनर के बाद इस्पेखो से सटे
छोटे हाथ वाली कुर्सी के पाँव के पास बैठ
मैं गिटार बजा रहा होता
वो ठीक मेरे पीछे आकर खड़ी हो जाती
मेरी कलाई पर गुदे इस्पेखोको छूती
साराढूंढती
एस्पेखो आयाम में
एक छोटे से तालाब में
पानी के ऊपर
एक कमल के पत्ते पर
स्केल में भिनभिनाते
गोबरीले जमा होने लग जाते
पानी से ही एक मेढकी
लपलपाती अपनी जीभ.



ब्लूज़
 
अफ़्रीकी अमरीकी दास किसान कपास से खेतों में गाते
अपनी भाषा में गाते गाते कह देते अपनी सारी बात
बाँट लेते दुःख, खुशखबरियां छुपा लेते
गोरे हाकिमों को तब पता भी नहीं चलता जब
बन जाते थे ब्लूज़
जब इन्ही किसानों को जेल में डाला गया
वहां उन्होंने प्रिजन ब्लूजबनाये
जिसे गाते गाते कई दास कैदी
फरार हो गए
जिनकी लाश जेल के बाहर बहते छोटी नदी में आजतक
डबल बास के नोट्स को
तलाशती है
आज भी वेरा गाती है
डेथ हैव मर्सी
नीना कहती है
ब्रेक डाउन, लेट इट आल आउट
ब्लूज़! गला भर आता है!
बरनी सैंडर्ज़ ब्लूज़ सुनकर रो देता है
हिलेरी क्लिंटन बंद कर देती होगी टेप.




जलन! जलन!
 
बिन्तांग मनीरा इंडोनेशिया का सबसे गुस्सैल संगीतकार है
भारत आने पर उसने सभी भारतीयों से प्रेम से बात की?!
औरतें बिन्तांग के पास ऐसे जमा होती थी
जैसे डिजरेडू के आस पास थ्रोट चैन्टर्स
औरतें मेरे आस पास भी जमा होती थी
जहाँ भी संगीत बजता औरतें जमा हो जाती
पहले तीन साल मैंने औरतों को जमा करने के लिए संगीत बजाया
एक दिन मैं  चला गया
मुझे दूर से औरतों के गाने की आवाज़ आई
मैंने तुरंत हवा में एक गिटार बनाया और उनका कॉर्ड उठाने की कोशिश की
बार! बार! बार!
सामने से बिन्तांग टहलता हुआ आया
और सभी छ: स्ट्रिंग्स पर बार बनी लगी मेरी तर्जनी को हौले से हटाते हुए
मेरी तर्जनी प्यार से मोड़ दी
दा! फ्री कॉर्ड्स!
उस दिन मेरी समझ में आया कि इन औरतों और मेरे बीच संवाद का अभाव था
उस दिन के बाद से कुछ दिनों तक संवाद पक्का करने के लिए मैंने बिन्तांग के लिए संगीत बजाया
औरतें चली गयी
मैं और बिन्तांग छत की लोहे की रैली पर
इकताल सुलाते रहे
हौले हौले,
बिन्तांग फुसफुसाया,
अग्रेशन इज़ अस, दादा!
सामने आकाश में सूर्ख लाल दो तारे
जल्दबाजी में
चांदनी रंग की पैंटी पहनने लगे.



 ठुमरी
 
तिलक-कामोद, पीलू, जोगिया, काफी है
तू कब इसको छोडती है
उसमें चली जाती है
इतना सारा मेक अप लगाती है
तू कितना ड्रामा करती है
तुझपे बंदिश कितनी छोटी है
तू ठुमरी है
कि लड़की है?!


भैरवी

इसकी संभावनाएं अपार है
गाँव में खेत से गुजरे
किसी लड़की को गाता सुने

चेक करें,
कहीं वह भैरवी तो नहीं है
.

__________________
प्रत्यूष पुष्कर
लेखक/कवि/ कलाकार/ संगीतज्ञ.


शिक्षा : जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय
reachingpushkar@gmail.com

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  1. कविता में संगीत की इतनी अंतरंग जानकारी पिरो देना बहुत नायाब प्रयोग है। सफल भी रहा।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-09-2017) को
    "एक संदेश बच्चों के लिए" (चर्चा अंक 2737)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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