फरीद खान : 29 जनवरी 1975.पटना.
पटना विश्वविद्यालय से उर्दू में एम. ए., इप्टा से वर्षों तक जुडाव.
भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ से नाट्य कला में दो वर्षीय प्रशिक्षण.
फिलहाल मुम्बई में व्यवसायिक लेखन मे सक्रिय.
ई-पता : kfaridbaba@gmail.com
युवा फरीद की कविताओं ने इधर ध्यान खींचा है. संस्कृतिओं के रण की क्षत-विक्षत पुकार इन कविताओं को असुविधाजनक समझ लिए गए क्षेत्रों में ले जाती है. पार्श्व में कहीं बहुत गहरे पार्थक्य की उदासी है. धूप में दमकने – चमकने का साहस भी भरपूर.
बापू
बापू !
मूर्ख मुझे मुसलमान समझते हैं
उससे भी ज़्यादा मूर्ख ख़ुश होते हैं कि एक मुसलमान राम भजता है
सच बताता हूँ तो मेरा मुँह ताकते हैं
सीधी बात से वे चकरा जाते हैं
टेढ़ी बात पर तरस खाने लगते हैं मुझ पर
बापू !
मैं क्या करूँ अपने निर्दोष मित्रों का ?
मूर्ख मुझे मुसलमान समझते हैं
उससे भी ज़्यादा मूर्ख ख़ुश होते हैं कि एक मुसलमान राम भजता है
सच बताता हूँ तो मेरा मुँह ताकते हैं
सीधी बात से वे चकरा जाते हैं
टेढ़ी बात पर तरस खाने लगते हैं मुझ पर
बापू !
मैं क्या करूँ अपने निर्दोष मित्रों का ?
1975 का लोकगीत
बिदेसी की चिट्ठी नहीं आई बरस बीत गए
कुछ भेजा नहीं उसने, बरस बीत गए
स्वाद गया रंग गया जब वह गया,
खाना गले से उतरे बरस बीत गए
सुनते हैं ईनाम है,
ज़िन्दा या मुर्दा,
सिर पे उसके
बाग़ी हुआ, बीहड़ गया, बरस बीत गये
पोस्टर लगा, पुलिस आई,
चौखट उखाड़ के ले गई,
कुर्की हुई, बेटा हुआ, बरस बीत गये
भेज कोई सन्देस कि अब तो बरस बीत गए
छाती मेरी सूख गई, बरस बीत गये.
महादेव
जैसे जैसे सूरज निकलता है,
नीला होता जाता है आसमान
जैसे ध्यान से जग रहे हों महादेव
धीरे-धीरे राख झाड़, उठ खड़ा होता है एक नील पुरुष
और नीली देह धूप में चमकने-तपने लगती है भरपूर
शाम होते ही फिर से ध्यान में लीन हो जाते हैं महादेव
नीला और गहरा .... और गहरा हो जाता है
हो जाती है रात .
जैसे जैसे सूरज निकलता है,
नीला होता जाता है आसमान
जैसे ध्यान से जग रहे हों महादेव
धीरे-धीरे राख झाड़, उठ खड़ा होता है एक नील पुरुष
और नीली देह धूप में चमकने-तपने लगती है भरपूर
शाम होते ही फिर से ध्यान में लीन हो जाते हैं महादेव
नीला और गहरा .... और गहरा हो जाता है
हो जाती है रात .
डरे हुए लोग
सामुदायिक चीत्कार
दहशत और वहशत भरती हैं मन में
डरी और चौकन्ना आँखें लिये सहमे लोग,
बैठे होते हैं बारूद के ढेर पर
और हर जगह होता है उस समय अँधेरा, आशंका से भरा
यही वह पल होता है जब वहाँ ख़ुदा नहीं होता.
शत्रु-सुख
विश्व-विजय की कहानियाँ सुनते हुए कभी महसूस नहीं होता
कि हम कभी मरने भी वाले हैं
धमनियों के रक्त का तेज़ प्रवाह जो आनन्द देता है वह अन्यत्र दुर्लभ है
उससे भी ज़्यादा सुखदायी होती हैं नफ़रत की कहानियाँ,
शत्रु को सामने खड़ा देखना,
और देखना अपने प्रतीकों का कुचला जाना
नथुनों में सांस का तेज़ आवेग मज़ा देता है, नशा देता है
फिर अतीत के नायकों की तलवार दीखती है खच्च-खच्च गर्दन उड़ाती दुश्मनों की
फिर इस छोर से उस छोर तक एक झंडे के तले
जीत हासिल करने का सपना
बड़ा सुखदायी होता है
फिर प्रेरित हो कर चल पड़ना शत्रुओं का विनाश करने,
अपनी बेरोज़गार ज़िन्दगी को मक़सद दे देने का सुख ही कुछ और होता है
ईश्वर के नाम पर लड़ने वालों को ईश्वर नहीं दीखता कहीं भी
फरीद की कविताएँ अद्भुत हैं। वे अपनी समकालीनता में भी उतनी ही भाष्य हैं जितना अपने इतिहास-बोध में मुखर। उनमें गाँधी का प्रतीक अपनी मिली-जुली सभ्यता और समन्वय की संस्कृति के पक्ष में कविता का एक शांत और स्निग्ध स्वर है। यह एक बेहद संतुलित वक्तव्य है जो कविता की मानवीय सरोकारों के प्रति चिरंतन पक्षधरता को पुनर्लेखित करता है। "... जब वहाँ ख़ुदा नहीं होता" से उपजे आस्थाहीन और दुर्निवार परिस्थितियों के समाजशास्त्र और सत्ता के सर्वव्यापी आतंक के विरुद्ध एक आशाजनक प्रार्थना की पंक्तियों से कम नहीं लगती उनकी यह कविता। एक नए उजास से भरी फरीद की कविताएँ भाषा में अभिव्यक्तियों की नई मिसालें हैं। एक ही कविता में एक छोर से सूफियाना लय शामिल होता है और दूसरी छोर पर युग का तेज स्पंदन महसूसा जा सकता है। विमर्शों के निहित पाठ फरीद की कविताओं को प्रासंगिक भी बनाते हैं और अपने समय के सापेक्ष भी। आक्रोश और विडंबनाओं का आत्मसातीकरण फरीद की कविताओं में इस करीने से हुआ है कि वे न तो वाचाल दिखती हैं और न ही किसी वैचारिकी की प्रतिनिधि।
जवाब देंहटाएंउन्हें लाख दुआएँ...
ईश्वर के नाम पर लड़ने वालों को ईश्वर नहीं दीखता कहीं भी
जवाब देंहटाएंउन्हें शत्रु ही दीखते हैं जगह-जगह .
..........
bahut badi baat !
badhai kavi ko !
सभी कवितायेँ बहुत अच्छी ,लेकिन ''डरे हुए लोग''और बापू ...लाज़वाब...!फरीद जी को बधाई और शुभकामनायें...अरुण जी को शुक्रिया अच्छी कविता पढवाने के लिए !
जवाब देंहटाएंफरीद भाई आप उम्दा लिखते हैं, मुझे आपके मुंह से आपकी रचनाएं सुनने का सौभाग्य भी प्राप्त है.यूं तो सभी अच्छी रचनाएं हैं,महादेव और बापू बहुत अच्छी लगीं
जवाब देंहटाएंडरे हुए लोग और शत्रु-सुख ये दो कविताए बढिया है। इसका मतलब ये नही के बाकी रचनाए अच्छी नही।
जवाब देंहटाएंये एक महत्वपूर्ण कवी है। इसका संपूर्ण काम किताब के रूप में आनाही चाहिए। तब जाकर हम इसकी आलोचना कर सकते है। मुझे अचरज हो रह है के इतना ठोस काम करने वाला कवि अप्रकाशित
(अबतक एक भी किताब नही?) कैसे रह सकता है? ये मूलगामी विचार करनेवाला कवि है। और प्रतिभा इसे अभि प्र्सन्न है। तभी उसे बढावा मिलना चाहिये। जब "अंगं गलितं पलितं तुंडंम" अवस्था हो तब जाके बढावा मिलनेसे क्या होगा?
फरीद जी को उनके ब्लॉग पर बराबर पढ़ते रहे हैं . उनकी कविता ने , उनके बिम्बों ने आकर्षित किया है. एक अजब सा आकर्षण होता है , जो टीस पैदा करता है और आपको सीधे कवि के ह्रदय से बातचीत का मौका देता है. सभी कवितायेँ सुन्दर हैं. फरीद जी , समालोचन पर आपकी कवितायेँ देख बहुत अच्छा लगा. बधाई!
जवाब देंहटाएंवाह ! अद्बुत और उम्दा लेखनी ...सब रचनाएँ एक से बढ़कर एक ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं .....
ईश्वर के नाम पर लड़ने वालों को ईश्वर नहीं दीखता कहीं भी
जवाब देंहटाएंउन्हें शत्रु ही दीखते हैं जगह-जगह .
फरीद भाई को बार-बार बधाई....
Wah Fareed Bhai. Mujhe to sari hi achchi lagi. 1975 ka lok geet aur shartu-sukh khass taur se.
जवाब देंहटाएंफरीद जी,
जवाब देंहटाएंवीभिन्न websites, blogs, forums में बीख्री हुई आपकी रचनाओ के संकलन एवं अनुवाद की नीतांत आवश्यकता है .
उम्दा लेखन के लीये एक बार फीर बधाई .
आपने अपनी रचनाओं में जो विविधता प्रकट की है, वो इस बात का घोतक है की आपमें अपने अंतर्मन में रचे बसे जीवन की तमाम छुए अनछुए पहलुओं एवं समसामयिक विश्वव्यापी समस्यओं की अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से शब्दों में उकेरने की विशेष योग्यता है ...
जवाब देंहटाएंअपेक्षा है की निकट भविष्य में भी आप अपनी नयी रचनाएं हमें प्रेषित करते रहेंगे..
असीमित बधाइयाँ एवं अनगिनत शुभकामनाएं फरीद भाई.
फरीद भाई.. तुम्हारी कविताएँ कभी स्तब्ध कर देती हैं... कभी लगता है कि शिकायत कर रहे हो मुझसे... कभी डरे हुए मन को और डरा देती हैं.. कभी डरे हुए मन को सांत्वना देती हैं...
जवाब देंहटाएंये भी सच है कि हमे लगता है कि हम कभी नहीं मरने वाले हैं और दूसरों को मारने के लिए ही हमारा जन्म हुआ है और अपने गंदे शरीर और आत्मा को मज़हब के लबादे से लपेट कर आत्म मुग्ध होते हैं...
किसी ने सच कहा है :
अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी...
अपनी नज़रों में हर इंसान सिकंदर क्यूँ है ?
पाँच किस्म की कविताओं का ये " कॉकटेल " संग्रह करने योग्य है...
>>> दिनेश चौबे
फरीद कि कविताओं को पढ़कर पाश याद आते हैं . अपने समय से बहुत आगे देखने को क्षमता है फरीद में उसकी कवितायेँ आपके मन के भीतर जा बसती है ग़ालिब के शेर कि तरह कि वोह खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएँ फरीद भाई!
जवाब देंहटाएंनया साल मुबारक हो. .
Farid ki kavitao mein samvednao ki prachurta hai.....aarth ke niche bhawarth tal ko chu lene wali hai....
जवाब देंहटाएंFarid apki kavitayen bhowo se aot prot hai....
जवाब देंहटाएंManoj singh
gandhi to gandhi the pr farid ke dil se shabdo me peroge vishwa vijeyta tak ki bat ko sunder tareke se is manch me dal hai. kavita me jandar hai. kavi to is warsh ke kavi se aage hai. sundar sandrbh or histrionic ko v farid ne jagha diya hai. farid gjab ka lekhan hai.
जवाब देंहटाएंgreat simply great farid i like the baras beet gaye keep it up
जवाब देंहटाएं"उससे भी ज़्यादा मूर्ख ख़ुश होते हैं कि एक मुसलमान राम भजता है"(बापू)
जवाब देंहटाएं---अरे ऐसा समझनेवाले ही तो भरे पड़े हैं जिन्हें ये समझ है कि धर्म-मजहब से बड़ा कुछ भी नहीं.....संस्कृति तो ....!!!! छोड़ ही दो आप -----
"छाती मेरी सूख गई, बरस बीत गये"(1975 का लोकगीत)
------कितनी मार्मिक स्थिति है -अदभुत-----
------अच्छी पेंटिंग है, वाकई सुन्दर ---
"शाम होते ही फिर से ध्यान में लीन हो जाते हैं"(महादेव)
और
डरे हुए लोगों के तो वाकई भगवान होते तो... बात ही कुछ और थी ----
"डरे हुए लोग"
----और शत्रु सुख पर व्यंग्य...मजेदार
"शत्रु-सुख "
अच्छा और बढ़िया ....
बापू !
जवाब देंहटाएंमैं क्या करूँ अपने निर्दोष मित्रों का ?
यही वह पल होता है जब वहाँ ख़ुदा नहीं होता......
ईश्वर के नाम पर लड़ने वालों को ईश्वर नहीं दीखता कहीं भी
उन्हें शत्रु ही दीखते हैं जगह-जगह....
सभी कविताओं में एक सवाल....जो अक्सर हमें भी कटघरे में खड़े करता है....
बेहतरीन रचनायें....
अरूण जी और फरीद खां का आभार....
फरीद बहुत आसानी से बहुत बड़ी बातें कह जाते हैं ,,अच्छी कविता वो है जो बिना शोर -शराबे के बड़ी से बड़ी बात कह जाये जो पाठक के मन को भेद दे ,फरीद की कविताएं ऐसी ही हैं,वो स्तब्ध भी कर देती हैं और मन को सहला भी देती हैं कि अभी भी ऐसे कवि है जो ऐसे संघर्ष मे जुटे हैं जो मानवीयता के संवंध को हर कीमत पर बचाना चाहती है
जवाब देंहटाएंयही वह पल होता है जब खुदा नहीं होता ....जबकि यही वह पल है जब खुदा की सबसे बड़ी जरूरत होती है |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कवितायेँ | फरीद को बधाई |
एक टिप्पणी भेजें
आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.