मंगलाचार: प्रीति चौधरी की कविताएँ



























कविताएँ अपनी जमीन से अंकुरित हों तो उनमें जीवन रहता है, अपने परिवेश से जुड़ कर उनमें स्थानीयता का यथार्थ-बोध, भाषा-बोली भी आ जाती है.

प्रीति चौधरी की कविताओं में स्त्री का दुःख ग्लोबल होने से पहले लोकल है. वह स्थानीय है, उनमें एक सच्चाई है और वैश्विक से भी वे इसीलिये जुड़ जाती हैं.

उनकी कुछ कविताएँ आपके लिये.   




प्रीति चौधरी की कविताएँ       







(एक)

मां सिसक रही थी   
अपनी दिवगंत मां को उलाहना देती
ऐसा दब्बू बनाया तुम्हारी नानी ने मुझे कि
पूरी ज़िंदगी ससुर भसुर के सामने नहीं खुली ज़ुबान

माँ को मलाल है
समय रहते कुछ बातों का जवाब न दे पाने का
आख़िर क्या बोलना चाहती थीं माँ
किसे क्या बताना था
ज़रा कुरेदने पर खुली बात
मां आहत थीं अपने पिता के अपमान से
पचास साल बाद उस अपमान को याद कर रोती
माँ बोली
चचिया ससुर ने कहा था उनके पिता को
मऊग
पचास साल पहले बोला शब्द
अब भी बेधता है भीतर तक

मऊग ....?”
मैं पूछती हूँ मऊग मतलब
हमारे  बाबू जी
पत्नी की इज्जत करते
संग खिलाते
गाँव में नाच नौटंकी भजन कीर्तन
सबमें साथ बैठाते
यही बात
यही उत्साह
यही छूट
यही खुशी
नहीं थी बर्दास्त चचिया ससुर को

जो औरत की इच्छा को दे मान
भरोसा दे बिठाये बराबरी में वो मऊग
एक सांस  में इतना सबकुछ बोलने के बाद
मां पूछती हैं भोजपुरी में

अब बुझाईल मऊग मने का
मऊग मने .....
तोहरा भाषा में फेमिनिस्ट !






(दो)

सीआरपीएफ के जवान की नयी नवेली पत्नी
गाँव की शारदा सिन्हा थी
गाती तो पूरा गांव हो जाता नमक की डलिया
पटना से बैदा बोला द नजरा गइनीं गुइंया …………

कढ़ाते ही राग उसके खिल जातीं बहूयें
ननदें कभी चुहल तो कभी भरतीं ईर्य्या से
सासो के समूह को गुदगुदा देती गुजरते यौवन की यादें

बक्सर वाली के आते ही
गांव के कई देवर हुए भर्ती फौज में
कुछ ननदें भी कर आयीं नर्सिंग की ट्रेनिंग
गांव की शारदा सिंन्हा के अच्छे आंगछ की चर्चा थी पुरजोर

छत्तीसगढ़ में  तैनात पति के लिए
बक्सर वाली अक्सर बदल देती गीतों  के बोल
ले ले अईहहो पिया सेनुरा बंगाल से की बजाय
गाती ले ले अईहहो पिया सेनुरा छत्तीसगढ़ से
हंसी की फुहार से भींगती सीआरपीएफ़ वाले की दुलहिन
साथ में भींगता पूरा गांव.





(तीन)

बक्सर वाली बेहोश है
सुबह से पति का मोबाइल नहीं उठा
पूरी घंटी जाती है अनसुनी
पिछली  ही रात पूछे जाने पर हाल
सुना डाला था उसने सीआरपीएफ वाले को
बलम बिन सेजिया ना  सोभे राजा
बलम बिन... उधर से देता रहा कोई थपकी देर  तक
करता रहा घर जल्दी आने का वादा
गिनाता रहा ढेर सारे बाकी काम
कराना था फ़र्श पक्का इसबार
बदलवाना था चश्मा बाबू जी का

अधूरे कामों की फेहरिस्त  लिए
सीआरपीएफ कैंप में
जब जवानों का फोन नहीं उठता तो
नहीं जलता चूल्हा कई घरों में
मच जाता है कोहराम
बह जाता है गांव का नमक
रूक जाती हैं धड़कने
जुड़ जाते हैं हाथ प्रार्थना में
नहीं होना चाहता कोई शहीद का पिता

सीआरपीएफ़ कैंप पर होता है हमला छत्तीसगढ़ में
और खून से भर जाती है मेरे गांव की नदी
परखच्चे उड़ जाते हैं खेल खलिहानों के
सीआरपीएफ़ कैंप पर होता है हमला छत्तीसगढ़ में
और कई शारदा  सिन्हाएँ गूंगी हो जाती है हमेशा के लिए



(चार)

वैसे तो दुनिया कभी भी
नहीं रही अच्छी कवियों के लिए
नहीं माना जाता उन्हें काम का आदमी 
इस स्थापित सी हो चुकी मान्यता के बीच
कोई कवि सचमुच किसी के काम आ जाय
तो बढ़ जाती है कविता की उम्र

अब आज ही की बात करें तो
यह महीने का बीसवा दिन था साथ ही
टर्म पेपर जमा करने की आखिरी तारीख भी
और वो छात्र खड़ा था सिर झुकाये बिना टर्म पेपर के
समय पर काम करना नहीं आता
क्या इरादा है फेल होने का
पटना के हो जो फँसे थे बाढ़ में

नहीं गोंडा का हूँ
नीचे पिता जी लगे रहे चारपाई से
ऊपर बारिश चली लंबी
मवेशियों को देखना पड़ा मुझे
तो देखो मवेशियों को ही
अब करने क्या आये हो
इतना सुनते ही
लड़का इस कदर हुआ रूंआसा कि
सवाल करने वाले को होने लगी शर्मिंदगीं

बात संभालने के लिए पूछा
अच्छा तो तुम बस्ती के हो
बस्ती में जानते हो दीक्षापार गांव

लड़का थोड़ा चौंका फिर सहज हो बताया
जी उसी के पास का हूं
अच्छा  सुनो ! जो तुम हो दीक्षापार के पास के तो
तुमने देखी होगी साईकिल चलाती ग्यारहवीं में पढ़ती लड़की

वहां रहता है एक कवि
जो अंतरिक्ष में मशरूम उगा दूज के चांद से काटता है
लड़के ने ऐसी बातें शायद सुनी थीं पहली बार
वो ख़ुश था कि इन बातों का भले कोई सिर पैर न हो
उसे मतलब वतलब ना समझ आये पर इतना जरूर था
उसके शहर के एक कवि ने उसे बचा लिया था फेल होने से

लड़के ने सोचा
उसके शहर में कवियों की संख्या थोड़ी और होनी चाहिेए.
__________________________
preetychoudhari2009@gmail.com

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  1. नरेश गोस्वामी27 नव॰ 2019, 9:16:00 am

    प्रीति चौधरी की इन कविताओं में एक मुकम्मल लैंडस्केप खुलता है; उनका इलाक़ा उभरता है और इस इलाक़े की सामाजिकता मूर्त होती है। शायद इनकी एक ख़ूबी यह भी है कि ये कविताएँ कन्वेयर बेल्ट पर चलकर नहीं आती: यहाँ जो भी है, उसमें हाथों से गढ़े जाने का स्पर्श मौजूद है।

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  2. अच्छी कविताएँ हैं। मन को छूती हैं।
    जो लोकल होता है, वही ग्लोबल होता है।

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  3. बहुत अच्छी कविताएँ हैं, लोकल होते हुए भी ये कहीं से भी अनजानी नहीं लगतीं, मन सहज ही साथ चलने लगता है इन कविताओं के । बधाई प्रीति जी को ।

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी कविताओं में गांव की मानसकिता का यथार्थ है। यह सच है कि गाँव में कोई मर्द अपनी बिवी को प्रेम करता है उसको घूमता फिराता है तो गांव की औरतें या मां ही उसको मउगा बोलती है। उसके भीतर के मर्द यानी सामंती मानसिकता को परिवार ही तैयार करता है। और इसमें स्त्रियों का भी हाथ है।

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  5. डॉ सुमिता27 नव॰ 2019, 3:17:00 pm

    बधाई Preeti Chaudhary. काफी दिनों बाद तुम्हारी कविताएँ पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। बेहद आत्मीय-सी कविताएँ हैं।

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  6. सुंदर कविताएं, दिल तक पहुँचती हुईं !

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  7. बहुत अच्छी कवितायें। प्रीति जी का गद्य पढ़ा है मगर कविताओं ने सच में चकित किया। बधाई

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  8. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.11.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3533 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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  9. उसके शहर में कवियों की संख्या थोड़ी और अधिक होनी चाहिए।
    अच्छी कविताएं हैं सब। प्रीति जी को बधाई। आगे भी ऐसी ही और सहज कविताएं पढ़ने को मिलती रहें।

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  10. सबसे अच्छी बात कि यह कविताएं आसपास के जीवन को समेट लाती हैं, जिससे उसे पूरा पढ़े बिना छोड़ा नहीं जा सकता।
    और वो मऊग वाली कविता एकदम मर्मस्पर्शी है, यही सबसे प्यारी सबसे शानदार कविता लगी। इसे आप भेजिए कहीं कविता के लिए भी कोई पुरस्कार हो🙏

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  11. Bahut hi Sanjeedgi, Umda AUR Hridayvidarak Aatm-manthan SE samaj me stree-vimarsh ko Aapne Sahi maayne me Kavita ke madhyam SE prastut Kiya Hai..aap you hi Hamesha samaj ke pahlu KO, logo ke saamne Lekhni aur bolchal ke madhyam se layen AUR samaj me sakaratmak Soch KO badhawa dete Rahen,aage badhte rahen...

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  12. आपकी लिखी हर कविता मनुष्य को उससे बांध लेती है। आप चाह कर भी उसे अधूरा पढ़ कर छोड़ नहीं सकते। गुड विशेस✌👏

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  13. अंकिता यादव28 नव॰ 2019, 8:26:00 pm

    आपकी लिखी हर कविता मनुष्य को उससे बांध लेती है। आप चाह कर भी उसे अधूरा पढ़ कर छोड़ नहीं सकते। गुड विशेस✌��

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  14. Mazaa aayega padhne par aapki mool rachnaaon ko... Fursat ke lamhe hon ya vyasttam jeevan shaily, aapki rachnaayen har ghadi ke liye upyukt hain...

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  15. ताज़ादम,सुघड़, रसदार कविताएँ.
    जिस कविता पंक्ति का आख़िरी में ज़िक्र है वो अष्टभुजा शुक्ल की कविता है न? ' बहुत डाटूँगा ' शायद?

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