“Let our scars fall in love.”
Galway Kinnell
‘मैं और मेरी
कविताएँ’ स्तम्भ के अंतर्गत समकालीन महत्वपूर्ण कवियों की कविताएँ और वे ‘कविता क्यों लिखते हैं’ विषयक
उनका वक्तव्य आप पढ़ेंगे. आशुतोष दुबे को आपने पढ़ा, इस श्रृंखला में आज अनिरुद्ध
उमट प्रस्तुत हैं.
अनिरुद्ध उमट (28 अगस्त 1964 को बीकानेर) के दो कविता-संग्रह 'कह गया जो आता हूँ अभी', 'तस्वीरों से जा चुके चेहरे' प्रकाशित हैं. इसके साथ ही उपन्यास, कहानी, निबन्ध और अनुवाद के क्षेत्र में भी उनका कार्य है, उन्हें 'रांगेय राघव स्मृति सम्मान' तथा 'कृष्ण बलदेव वैद फेलोशिप' आदि प्राप्त हैं.
अनिरुद्ध उमट (28 अगस्त 1964 को बीकानेर) के दो कविता-संग्रह 'कह गया जो आता हूँ अभी', 'तस्वीरों से जा चुके चेहरे' प्रकाशित हैं. इसके साथ ही उपन्यास, कहानी, निबन्ध और अनुवाद के क्षेत्र में भी उनका कार्य है, उन्हें 'रांगेय राघव स्मृति सम्मान' तथा 'कृष्ण बलदेव वैद फेलोशिप' आदि प्राप्त हैं.
मैं और मेरी कविताएँ (२) : अनिरुद्ध उमट
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एक अनिश्चित प्रत्युत्तर
शायद
इसीलिए लिखता हूँ (लिख पाता हूँ) क्योंकि मुझे नहीं पता कि मैं क्यों कविता लिखता
हूँ. नहीं पता इसीलिए लिख भी पाता हूँ. पता होने पर पता नहीं क्या पता पड़ता मगर यह
तय है फिर कविता वहाँ नहीं रहती. जीवन का समस्त व्यापार हर पल,
हर
रूप में बेहद रहस्यमयी व अप्रत्याशित है. इसीलिए शायद समस्त जगत के क्रिया-कलाप
चलते हैं.
मैं क्यों लिखता हूँ इस पर एक तरफ यह मेरे जैसा अनिश्चित प्रत्युत्तर होगा वहीं दूसरी ओर ऐसा भी बहुतायत से सुनने-पढ़ने-देखने में लगभग निरन्तर ही आता रहता है जहाँ लेखक बाकायदा ठोस लहजे में, स्पष्टतः सव्याख्या प्रकट करता है कि कितने-कितने कारण व प्रयोजन हैं जिनसे नियंत्रित हो या जिन्हें नियंत्रित कर वह लिखता है. उसके जेहन में सब कुछ स्पष्ट होता है, कोई संशय नहीं, कुछ भी गोपन नहीं. बल्कि कविता को क्या कहना है या कविता से क्या हासिल कर लाना है यह उसे अपने मिशन में स्पष्ट होता है, वहाँ कविता उसके लिए अपने ध्येय की पूर्ती का एक माध्यम मात्र होती है.
हम सिर्फ उस गोपन, रहस्यमयी पल में स्वयं को समर्पित हुआ पाते हैं जहाँ कविता (या कहें कोई भी कला रूप) अपने स्वर में कुछ कहती है, दिखाती है. एक कलाकार होने के नाते मेरी दृष्टि में मेरा यह समर्पण ही मेरा सुख है क्योंकि इसमें रचनात्मक पल को स्वयं के स्वर में बोलने का स्पेस मिलता है क्योंकि यहाँ मेरा होना उसके होने में बाधा नहीं है. कविता यदि किसी पल मेरी प्रतीक्षा के आँगन में खुद को सहज पाते कुछ शब्दों की अनसुनी ध्वनियां-दृष्य अपनी नैसर्गिकता में प्रकट कर पाती है, और मैं अपने 'कहने' के आग्रह से खुद को मुक्त रख सकूं, एक रचनाकार के नाते यही मेरे लिए सबसे प्रिय है.
अनिरुद्ध उमट की कविताएँ
(एक)
निरीह के घुटने
तोड़ते
वे किस के हाथ
गर्दन पर छुरी की छाया गिराते
सिहरती कमर को सहलाते
नाक में नकेल
जीभ पर अंगार
किसके हाथों
मरुस्थल की तपती दोपहर में
सांय-सांय भटकती लाय में
रूदन
भाषा असमर्थ आसमान धज्जी धज्जी
करुणा धज्जी
वेदना धज्जी
सिर्फ उसे मरना है जिसे जीना
सिर्फ वह जी रहा
अन्य को जो जीने न दे
ऊंट धरती पर प्यास का रूपक
सलांख उतारी दहकती
कण्ठ में
मनुज ने
ईश्वर नहीं आता नहीं आता ईश्वर
निरीह की प्रस्तर आँख
अनझिप.
वे किस के हाथ
गर्दन पर छुरी की छाया गिराते
सिहरती कमर को सहलाते
नाक में नकेल
जीभ पर अंगार
किसके हाथों
मरुस्थल की तपती दोपहर में
सांय-सांय भटकती लाय में
रूदन
भाषा असमर्थ आसमान धज्जी धज्जी
करुणा धज्जी
वेदना धज्जी
सिर्फ उसे मरना है जिसे जीना
सिर्फ वह जी रहा
अन्य को जो जीने न दे
ऊंट धरती पर प्यास का रूपक
सलांख उतारी दहकती
कण्ठ में
मनुज ने
ईश्वर नहीं आता नहीं आता ईश्वर
निरीह की प्रस्तर आँख
अनझिप.
(दो)महावर की तरह
पैरों में
अंजन सा आँखों में
बालों में तारों-सा
हथेलियों पर चाँद-सा
पगथली पर मेहदी-सा
मन मे खुलते पत्र की इबारत-सा
जिसे तुम
पढ़ोगी
जिसे लगा तुम पढ़ नहीं पाई.
(तीन)पलकों को पता हो कोई इंतजार में है तो वे झपकती नही
यह सुन सीढियाँ उतरता सन्नाटा
रहने देता
देता रहने
भीगे कागज भीगे वस्त्रों से.
ज्वर ग्रस्त देह की तपती कालीन के नीचे
(चार)
छिपा
बटुआ
कंघा
अंजन
गुल्लक
सपना टूटे कांच-सा
बगल के घर में खिड़की से झांकता वृद्ध
पीछे हमेशा भरी रहने वाली
चारपाई खाली
कुछ नमक चमकता
दूध फटता
हींग दौड़ जाती
सब एक दूजे से बरसों कहते
सुनते जीवन बिताते
हाथ पकड़े रहना
खंखारते रहना.
(पांच)खिड़की से अपलक झाँकता वह
अपलक खिड़की में झाँक रहा
आकाश
किसी छत पर अभी
काँसे की थाली
अपलक खिड़की में झाँक रहा
खिड़की से अपलक झाँकता वह
हामी भरी तारों ने
तारों ने हामी भरी
सड़क पर चलती परछाई ने देखा सिर्फ
देखा सिर्फ सड़क पर चलती परछाई ने.
(छहझुक जाता है
फिर तुम्हे लिए
उड़ जाता है
मन
उड़ जाता है फिर
लिए मुझे
जाने कौन.
(सात)हटड़ी में सब था हर घर में
नमक
मिर्च
हल्दी
धनिया
लकड़ी के दरवाजे खुलने की तरह उसका दरवाजा था
रसोई जो बहुत बड़ी थी
जिसमे बर्तन और सामान बहुत कम
तेल की तिलोड़ी
घी की घिलोड़ी (अगर हुआ तो)
चूल्हा
तवा चिमटा
चकला बेलन
कठौती
जाने के दिन चुप गाँव में
नानी बनाती थी
उधार लाए चावल नमकीन
रास्ते भर से घर पहुंचने के कई दिनों तक के लिए
बाजरी-रोटी गुड़ के दो लड्डू
सड़क किनारे हम माँ बेटा खड़े है सूने में
लोहे के सन्दूक के साथ
बस के इन्तजार में
बस आएगी
पता नहीं कहाँ से बस आएगी कहाँ को जाएगी.
(आठ)सारे रास्ते रात में एक हो जाते
काजल घुल जाता
चूल्हे का धुंआ
बाँसुरी के छिद्र
प्रभु के पाट
बाहर रह जाता आगन्तुक
बाहर रह रहा
जन्मों से आगन्तुक
एक नदी वेणी सी
एक वेणी नदी सी
होना चाहती
सारी रात सारे रास्तों के अवगुंठन में समा एकल हो जाती
देखा क्या?
न दिखे तो तो खुद को काजल होने देना
अनकहे में
एक फाहा रखना
इत्ररहित.
(नौ)
यक़ीनन अभी रात गहरा रही
रँग शाला के द्वार पर भी ताला
सिर्फ सीढ़ियों पर
सुबह बेआवाज़
बरसी फुहारों की
नमी है
जब यवनिका पतन हो चुका
रोशनी
ध्वनि
पोशाकें
कुछ भी नहीं
आलेख किसी कोने में
फिर पार्श्व में ये कैसा
ये कुछ
ये क्या
अभिनय से परे रह गया जो
अभिनय में गहरे उतर गया जो.
(दस)उसने कहा
मैं भूल जाऊँ तो याद दिला देना
मैंने कहा
मूमल
पेड़ पर बंधी
मन्नत की डोर
तने से कुछ और कस गई
कांचली की
गाँठ कुछ
जिस धोरे पर वह खड़ी थी
पसरने लगा वह
उस पर वह
छितराई सी पसर गई.
(ग्यारह)
तुम्हारे लिए महावर
तुम्हारे लिए मेहदी
तुम्हारे लिए चाँदनी
तुम्हारे लिए
चुप सा कुछ
साँवला
अभी पगथली पर
रख गया
रात सिहर गई.
तुम्हारे लिए मेहदी
तुम्हारे लिए चाँदनी
तुम्हारे लिए
चुप सा कुछ
साँवला
अभी पगथली पर
रख गया
रात सिहर गई.
(बारह)भीगे आसमान में दीप है
दीप में
बाती नही
जलती
जल जल हो रहा
सपन
सपन
हो पाए.
(तेरह)अनुवादक मूल का अनुवाद करता ईश्वर हो जाता
ईश्वर अपने अनुवाद की कल्पना भी नहीं कर पाता
दोनों
के
बीच
पाठक
इस संयोग को देख
कृतज्ञ
किताब सूँघता जीवन जी लेता
उसकी बगल में दो कंचे मिलते हैं गहरे सपने की नदी में
सात समन्दरों में
उन कंचों की टन्न लहराती
अनुवाद में रहना प्रेम में रहना है
कहा था किसी ने
जिसने कहा वह
ईश्वर
न
था.
उन कंचों की टन्न लहराती
अनुवाद में रहना प्रेम में रहना है
कहा था किसी ने
जिसने कहा वह
ईश्वर
न
था.
(चौदह)
घोड़े की आंखों पर चमड़े की पट्टीयां
पैरों में लोहा ठुका
नाक में नकेल
ऊंट
गधे
भेड़
बकरी
सूअर
मुर्गी
कुत्ता
तोता
हाथी
सब का मन कहीं न कहीं से दग्ध
ईश्वर के चाक से भाग खड़ा हुआ रूप
मनुष्य
मनुष्य
मनुष्य
मनुष्य
जितनी बार यह शब्द उच्चरित होगा
पृथ्वी का गला कुछ और दबाया जा रहा होगा
अभी चाबुक घोड़े की पीठ पर
अभी घोड़े पर सवार
कोई हुँकार
अब और कविता नहीं बता सकती
हत्यारा कौन
आततायी कौन
यह उसका काम भी नहीं
जिस तरह शेष जीवों का भी नहीं.
पैरों में लोहा ठुका
नाक में नकेल
ऊंट
गधे
भेड़
बकरी
सूअर
मुर्गी
कुत्ता
तोता
हाथी
सब का मन कहीं न कहीं से दग्ध
ईश्वर के चाक से भाग खड़ा हुआ रूप
मनुष्य
मनुष्य
मनुष्य
मनुष्य
जितनी बार यह शब्द उच्चरित होगा
पृथ्वी का गला कुछ और दबाया जा रहा होगा
अभी चाबुक घोड़े की पीठ पर
अभी घोड़े पर सवार
कोई हुँकार
अब और कविता नहीं बता सकती
हत्यारा कौन
आततायी कौन
यह उसका काम भी नहीं
जिस तरह शेष जीवों का भी नहीं.
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28 अगस्त 1964 को बीकानेर (राजस्थान) में जन्मे अनिरुद्ध उमट के अब तक दो उपन्यास 'अँधेरी खिड़कियाँ', 'पीठ पीछे का आँगन' दो कविता-संग्रह 'कह गया जो आता हूँ अभी', 'तस्वीरों से जा चुके चेहरे', कहानी संग्रह 'आहटों के सपने', एवं निबन्ध-संग्रह 'अन्य का अभिज्ञान' प्रकाशित. राजस्थानी कवि वासु आचार्य के साहित्य अकादमी से सम्मानित कविता संग्रह 'सीर रो घर' का हिंदी में अनुवाद. 'अँधेरी खिड़कियाँ' पर राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर का 'रांगेय राघव स्मृति सम्मान'. संस्कृति विभाग (भारत सरकार) की 'जूनियर फेलोशिप', तथा 'कृष्ण बलदेव वैद फेलोशिप' प्रदत्त.
अनिरुद्ध उमट
28 अगस्त 1964 को बीकानेर (राजस्थान) में जन्मे अनिरुद्ध उमट के अब तक दो उपन्यास 'अँधेरी खिड़कियाँ', 'पीठ पीछे का आँगन' दो कविता-संग्रह 'कह गया जो आता हूँ अभी', 'तस्वीरों से जा चुके चेहरे', कहानी संग्रह 'आहटों के सपने', एवं निबन्ध-संग्रह 'अन्य का अभिज्ञान' प्रकाशित. राजस्थानी कवि वासु आचार्य के साहित्य अकादमी से सम्मानित कविता संग्रह 'सीर रो घर' का हिंदी में अनुवाद. 'अँधेरी खिड़कियाँ' पर राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर का 'रांगेय राघव स्मृति सम्मान'. संस्कृति विभाग (भारत सरकार) की 'जूनियर फेलोशिप', तथा 'कृष्ण बलदेव वैद फेलोशिप' प्रदत्त.
अनिरुद्ध उमट
माजीसा की बाड़ी,
राजकीय मुद्रणालय के समीप,
बीकानेर – 334001
मोबाइल 9251413060
संवेदना के धड़कते उच्चारण की कविताएँ। बेहतरीन वक्तव्य। मौन को ध्वनि में घटित करती कविताएँ, भाषा के आँगन में उजाला बुनती कविताएँ। संकल्प सुन्दरम्। कवि ,अरुण जी और समालोचन को बधाइयाँ। शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर. अनिरुद्ध जी की कविता और गद्य हमेशा सीखने के लिए बहुत कुछ देते हैं.
जवाब देंहटाएंसच में सभी बहुत अलग और बेहतरीन गहन कविताएं ।
जवाब देंहटाएंमानवीय चेतना को झकझोरते हुए ।आखिरी कविता सभी का हासिल।
आभार।
वाह! बढ़िया कविताएँ ! अनिरुद्ध जी को, अरुण जी को बधाई , शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबार बार हटाने से भी कमेंट स्वयं को दोहराए जा रहा है. ज़रूर कोई तिलिस्म होगा. जैसे कि कुछ कविताएँ होती ही हैं एक ऐसा तिलिस्म जो आपके साथ रहने सा लग जाता है, और तिलिस्म भी नहीं रहता, या ऐसा तिलिस्म जो न रहकर भी तिलिस्म बना रहता है. तिलिस्म शब्द ही ऐसा है. जैसे इनमे से कुछ कविताएँ अनिरुद्ध की कि चुप्पी साध लेना ही बेहतर. सबसे बड़ा नगीना तो वक्तव्य में यही था "क्योंकि यहाँ मेरा होना उसके होने में बाधा नहीं है ". पता नहीं क्यों अचानक एक साथ कई प्रसंग याद आ गए. यह खुद को हटा देना कविता के रास्ते से. क्या वाक़ई हो पाता है ऐसे? और हट कर प्रतीक्षा में बैठ जाना कि वह आये...
जवाब देंहटाएंबहूत सुंदर
जवाब देंहटाएंरुक रुक के पड़ रहा हूँ लगता है कहीं मेरा पड़ना ही कविता के होने में बाधा न डाल दे
Behtareen .. behad shant .... gahre kaheen.... shorte. Huea
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