अंग्रेजी साहित्य के समकालीन कवि, लेखक और पर्यावरणविद जॉन बर्नसाइड की कहानी "द बेल रिंगर" का अनुवाद यादवेन्द्र ने हिंदी में किया है और एक सुंदर टिप्पणी भी लिखी है. यह दोनों आपके लिए.
मार्च 2008 में "द न्यू यॉर्कर" में छपी इस कहानी का शीर्षक "द बेल रिंगर" है जिसका हू- ब-हू और शब्दशः हिंदी में अनुवाद करना मुश्किल है क्योंकि भारतीय समाज में ऊँचे टावर में टँगे धातुई घंटों को रस्सा खींच कर बजाने की कोई परम्परा नहीं है.
स्कॉटलैंड जैसे पारम्परिक ईसाई समाज में भी यह धार्मिक अनुष्ठान धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है- जैसे भारत की नई पीढ़ी शाम के समय मंदिरों में कीर्तन करने और सामूहिक रूप से आरती करने की परिपाटी से विलग हो गयी है- और धार्मिक पुनरुत्थानवादी इस लुप्तप्राय परिपाटी को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं. अनुवाद करते समय बहुत सोच विचार के बाद मैंने कहानी की भाव भूमि का ध्यान रखते हुए मूल शीर्षक बदल कर "गूँज अनुगूँज" रखने का निर्णय किया.
63 वर्षीय जॉन बर्नसाइड स्कॉटलैंड के बहु सम्मानित कवि लेखक
और पर्यावरणविद हैं जिन्हें अपनी किताबों के लिए यूरोप के लगभग सभी बड़े साहित्यिक
पुरस्कार मिल चुके हैं. वैसे इंजीनियरिंग की पढ़ाई
करने वाले बर्नसाइड ने अपने करियर की शुरुआत सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के साथ
की (दिलचस्प बात है कि वे लिखने के लिए न तो टाइपराइटर न ही कम्प्यूटर का प्रयोग
करते हैं, न फ़ेसबुक और ट्विटर जैसे माध्यमों से
जुड़े हैं और यहाँ तक कि उनकी कोई वेबसाइट
भी नहीं है. टेलीफोन भी वे बहुत कम इस्तेमाल करत हैं.) पर साहित्यप्रेम उन्हें
कविताओं की ओर खींच ले गया पर अनेक प्रशंसित पुरस्कृत कविता संकलनों के बाद वे
कहानी, उपन्यास और आत्मकथात्मक संस्मरणों के लिए
भी उतने ही ख्यात हुए. जहाँ तक जीविका का सवाल है वे एक युनिवर्सिटी में सृजनात्मक
लेखन के प्रोफ़ेसर हैं. वे रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लिटरेचर के फ़ेलो भी हैं.
विभिन्न विधाओं में लेखन को वे कोई मुश्किल या नियोजित काम
नहीं मानते. अपने लेखन में वे अपने अपारम्परिक विचारों को अभिव्यक्त करते हैं- आस
पास की परिस्थितियों या किसी की उम्मीदों पर खरा उतरने का दबाव उन्हें कतई
बर्दाश्त नहीं ... सम्पूर्णता का संधान उनके लेखन का केन्द्रीय तत्व है.
"न्यू स्टेट्समैन" में पर्यावरण पर नियमित कॉलम लिखने वाले जॉन बर्नसाइड अपनी रचनाओं में आने वाले
प्राकृतिक विवरणों को लेकर बड़े सजग हैं -
"मैं अपने किरदारों और परिवेश को लेकर हद दर्जे तक संवेदनशील और जिद्दी हूँ. मेरी रचनाओं में जो भी पेड़ आएँ वे बिलकुल सही प्रजाति के होने चाहिए ,यदि कहीं रेत का वर्णन है तो रेत की मात्रा बिलकुल उपयुक्त होनी चाहिए .... सुबह सुबह खुलने पर पब में ऊँची खिड़की से अंदर झाँकती रोशनी में जरा सा भी हेर फेर मुझे नहीं बर्दाश्त - सब कुछ एकदम यथार्थवादी होना चाहिए. ", एक इंटरव्यू में वे कहते हैं.
"मैं अपने किरदारों और परिवेश को लेकर हद दर्जे तक संवेदनशील और जिद्दी हूँ. मेरी रचनाओं में जो भी पेड़ आएँ वे बिलकुल सही प्रजाति के होने चाहिए ,यदि कहीं रेत का वर्णन है तो रेत की मात्रा बिलकुल उपयुक्त होनी चाहिए .... सुबह सुबह खुलने पर पब में ऊँची खिड़की से अंदर झाँकती रोशनी में जरा सा भी हेर फेर मुझे नहीं बर्दाश्त - सब कुछ एकदम यथार्थवादी होना चाहिए. ", एक इंटरव्यू में वे कहते हैं.
यहाँ प्रस्तुत
कहानी के सन्दर्भ में उनका यह कथन ध्यान देने योग्य है :
"मैं अनुमान लगाने में अच्छा हूँ और मुझे लगता है अपनी रचनाओं में इस काम को बेहतर ढंग से करने के अतिरिक्त मैं और कुछ ख़ास नहीं करता .... मेरा मानना है कि वह समय दूर नहीं जब लोगबाग अपने जीवन में गोपनीयता बनाये रखने के लिए बड़े जोखिम उठाने की ओर कदम बढ़ाएँगे, भले ही सामाजिक तौर पर इसे अच्छा न माना जाये - वे खुद को सार्वजनिक बनने से बचाने के लिए कानून का उल्लंघन कर अपराध तक करने को तत्पर हो सकते हैं."
"मैं अनुमान लगाने में अच्छा हूँ और मुझे लगता है अपनी रचनाओं में इस काम को बेहतर ढंग से करने के अतिरिक्त मैं और कुछ ख़ास नहीं करता .... मेरा मानना है कि वह समय दूर नहीं जब लोगबाग अपने जीवन में गोपनीयता बनाये रखने के लिए बड़े जोखिम उठाने की ओर कदम बढ़ाएँगे, भले ही सामाजिक तौर पर इसे अच्छा न माना जाये - वे खुद को सार्वजनिक बनने से बचाने के लिए कानून का उल्लंघन कर अपराध तक करने को तत्पर हो सकते हैं."
ख़ामोशी और संवाद तथा बोरियत और उत्तेजना की दो अतियों के
बीच मानव मन के अंदर कहीं गहरी छुपी भावनाओं ,अव्यक्त ख्वाहिशों और आशंकाओं तथा नितांत अंतरंग अकेलेपन को
बड़ी बारीकी से बुनने वाली यह कहानी पाठकों के मन को अपनी ध्वनियों से झंकृत करेगी,ऐसी आशा है.
गूँज अनुगूँज
जॉन बर्नसाइड
लाठोकर मिल के बोर्ड के आधा मील आगे चल कर ईवा लोवे मेन रोड से मुड़ी और किनेल्डी जंगल के अन्दर जा रहे रास्ते में दाखिल हो गयी. हाँलाकि गाँव में आने का यह सबसे सीधा रास्ता नहीं था पर उसके पिता को यह बहुत प्रिय था, हो सकता है इसको देख कर उनको पीछे छूट चुके स्लोवाकिया की याद आती हो, और माँ के जिन्दा रहते तक अक्सर इतवार को वे उधर घूमने आया करते थे.
अँधेरा हो चला था, अँधेरा भी खूब गहरा और चारों ओर सघन हरियाली -- बाउण्ड्री वॉल पर झाड़ियाँ उग आयी थीं और ऊँचे दरख्तों के नीचे नमी पसरी हुई थी. औरों के लिए यह रास्ता उदासी और हताशा का प्रतीक था पर ईवा को यह बिलकुल घर के आहाते जैसा लगता -- ख़ास तौर पर अब जब चीड़ के माथे और पहाड़ी ढ़लानों पर ताज़ा ताज़ा बर्फ़ गिरी हुई हो. उसको यह नज़ारा बिलकुल बच्चों की सचित्र किताबों जैसा लगता जिसमें किसी निष्ठुर परी के कोप से हँसता खेलता पूरा साम्राज्य कँटीली झाड़ियों और मकड़ी के घने जालों के बीच सौ साल तक दबे होने को अभिशप्त हो और उसके ऊपर बर्फ़ की चादर बिछ गयी हो. उसके पिता को यह परीकथा खूब प्रिय थी और उसने अपने पास अबतक वह किताब सँभाल कर रखी हुई है बचपन में जिस से पढ़ कर वे उसको कहानी सुनाया करते थे .... किताब हाथ में लेते ही वे अक्सर कहते कि उन चित्रों को देख कर उनको अपने बचपन और गाँव याद आने लगती है. किताब में बने वे चित्र उसको पिता के वास्तविक स्मृति चिह्न लगते .... बचपन से बार बार देखी हुई वह किताब हरी पत्तियों,नीले आसमान और गाढ़े बैंगनी रंग के फलों से भरी हुई दुनिया के चटक वाटर कलर चित्रों की थी पर अब दुर्भाग्य से उस लुभावनी दुनिया के पन्नों पर मवेशियों भरे ट्रक और बगैर नाम पते वाली हजारों कब्रें पसर गयी हैं.
मृत्यु बाद की सारी औपचारिकताएँ जब पूरी हो गयीं तब उसको महसूस हुआ कि इतने बड़े पर बूढ़े पुराने फ़ार्म हाउस में वह निपट अकेली रह गयी है … और उसके पास न करने को कुछ है और न ही बातचीत के लिए कोई संगी साथी है. हाँ , मैट की बहन मार्था जरूर शनिवार को सुबह सुबह केक और सेबों की टोकरी लेकर उसके पास आ कर बैठने बतियाने लगी. मार्था इसका ध्यान रखती कि जब मैट घर पर हो वहाँ नहीं जाना है. यह लगभग एक रूटीन जैसा बन गया -- हर शनिवार सुबह साढ़े दस बजे मार्था को आना है , गमलों के बाजू में बैठना है और घंटों बतियाना है.... कई कई बार यह सिलसिला और भी लम्बा खिंच जाता … और मार्था के कारण पहले से सोचे किसी काम में कभी कभी देर भी हो जाती, पर ईवा इन बातों को लेकर बहुत अफरा तफरी नहीं मचाती. कम से कम इतना तो हुआ ही कि मार्था ने नए नए आन पड़े दुःख के उन शुरूआती दिनों में उसका साथ निभाया था जब वह बिलकुल अकेली पड़ गयी थी. यह अलग बात कि मार्था को सेल्फ हेल्प वाली किताबों और महिलाओं की पत्रिकाओं की बातें धड़ल्ले से कहने में महारत हासिल थी पर उस समय वह जिस हाल में थी उसकी बातों ने ईवा पर कारगर असर किया -- ईवा मार्था के आने का बड़ी बेसब्री से इन्तजार करती और घंटों एक प्लेट बिस्किट के साथ उस से बतियाती रहती .... जीवन में अचानक आने वाली किसी बड़ी तब्दीली के पहले तक लोगबाग क्या कर रहे होते हैं और बाद में उन बातों को कैसे याद करते हैं, लब्बो लुबाब यही सब था.
ईवा जब ठहर कर अपने जीवन को देखती है तो उसको समझ आता है कि पिता की मृत्यु दर असल कोई अचानक आया हुआ बदलाव नहीं था .... उसको बहुत पहले से इसका एहसास था कि पिता अब ज्यादा दिन नहीं बचेंगे, और उसने इस क्षति के लिए खुद को भरसक तैयार कर रखा था --हाँलाकि मार्था का कहना था कि आप चाहे जितनी कोशिश कर लें, अपने किसी प्रिय की मृत्यु के लिए वास्तव में तैयार हो नहीं पाते … और वह भी तब जब वह इतनी कष्टपूर्ण और धीमी गति से कदम आगे बढ़ा रही हो. पर पिता की अंतिम क्रिया के बाद ईवा को एकदम से यह महसूस हुआ कि सारी दुनिया अचानक अपने आप में सिमट कर एकदम चुप हो गयी है .... और उस को सबसे ज्यादा आघात पिता की अनुपस्थिति से नहीं बल्कि अपनी शादी से लगा था.
मैट मृत्यु बाद के कामों में हाथ बँटाने दो चार दिनों के लिए आया था और न चाहते हुए भी ईवा की निगाहों से इस लम्बे खिंचते चले आ रहे प्रसंग के पटाक्षेप से मैट के राहत की साँस लेने के भाव छुपे नहीं रह सके …कि और अब वह निश्चिन्त होकर फिर से अपने काम पर लौट सकेगा. इस से पहले तक जब भी ईवा अकेली होती और रातों में खिड़की से बाहर खेतों और बाग़ को देखती तो उसको लगता कि पति का अभाव उसको अन्दर ही अन्दर खाये जा रहा है. ये खेत और बाग़ थे तो मैट के परिवार के, पर अब उनको किराये पर पड़ोसियों को दे दिया गया था. कभी कभी उसको वे शुरूआती दिन याद आते जब वह पहली दफ़ा मैट से मिली थी …
उसका बाँकपन, हँसी ठिठोली करते रहने का चुलबुल स्वभाव और ईवा को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह के खेल गढ़ते रहना. वह अक्सर ईवा के लिए बाग़ से ताज़े सुन्दर फूल या रसीले फल लेकर आता .... और जब यह स्पष्ट हो गया कि दोनों एक दूसरे के साथ जीवन बिताने को लेकर गम्भीर हैं, तो वह अक्सर यह कहता फिरता कि दोनों के शरीर पर बिलकुल एक जैसे टैटू हैं-- दिल, गुलाब, केल्टिक आकृतियाँ .... और दोनों के शरीरों के उन अंदरूनी अंगों पर टँकी हुई नन्हीं नीली चिड़िया जिन्हें सिर्फ वे ही देख सकते हैं, कोई और नहीं.
उनके साझा जीवन का पहला साल बीतते बीतते रोमांटिक भाव पूरी तरह से तिरोहित हो चुके थे, पर ईवा को वह सब गुदगुदाने वाला घटनाक्रम अब भी पूरी तरह याद था. शुरू-शुरू में मैट जब बाहर जाया करता, बड़ी निष्ठा और जिम्मेदारी से ईवा उन बातों को सायास याद किया करती … मन ही मन यह बात बार बार दुहराया करती कि जब एक समय उन दोनों ने इतना सघन प्यार किया है तो भले ही बीच में कुछ ख़ला आ गया हो पर प्यार भरे दिन दुबारा जरूर लौट आयेंगे. हाँलाकि ईवा मन ही मन यह बखूबी जानती थी कि मैट के साथ प्यार के पलों को इस तरह बार-बार याद करने के लिए उसको काफी मशक्कत करनी पड़ती, पर अपने मन के अंदरूनी कोनों में जागृत एहसास भी था कि अकेले रहते हुए वह किसी चीज़ का अभाव महसूस तो करती है पर वह कुछ और था, मैट नहीं…यकीनन.
वास्तविकता यह थी कि अपने में सिमट कर रहने में ईवा को कोई परेशानी नहीं महसूस होती,बस बड़े से घर में अकेला रहना उसको अच्छा नहीं लगता था. यदि वह इस घर की बज़ाय किसी और घर में रहती होती -- यदि मैट ने यह घर बेच दिया होता और किसी दूसरे गाँव में जमीन खरीद ली होती, जैसा उसने करने का मन लगभग बना भी लिया था, पर आखिरी पलों में उससे किनारा कर लिया --- तब उसको कोई परेशानी नहीं थी. मैट जब महीने भर के लिए भी घर से बाहर गया होता, बगैर उसके हस्तक्षेप के अपना जीवन अलग ढंग से जी रहा होता, ईवा को कई कई दिनों तक फोन नहीं करता –
जब करता भी तो यह जताना नहीं भूलता कि अभी उसके सिर पर दुनिया जहान के काम का जिम्मा है -- और अभी जो फोन वह कर भी रहा है वह एक घरेलू दायित्व से ज्यादा कुछ और नहीं. कभी कभी वह फोन बीच में रख देती, फिर किसी खूब प्रकाशित कमरे में लोगों से घिरे उसके बैठे होने की कल्पना करती --- सोचती वह कॉन्फ्रेंस रूम हो सकता है, कोई होटल भी हो सकता है--- मैट अपने सहकर्मियों के साथ किसी भारी भरकम विषय पर विचार विमर्श में मशगूल है, विषय कुछ भी हो सकता है.... इंजीनियरिंग से लेकर राजनीति तक.... और बातचीत इतनी ऊँची आवाज़ में भी हो सकती है कि आस पास से गुजरती हुई वेटरेस को भी सब कुछ स्पष्ट सुनायी दे. सम्भव है वह उन सजी धजी युवतियों के साथ कुछ फ्लर्ट भी करता हो, या बात इस से आगे भी चली जाती हो. आँखें बंद करके वह मैट को उन युवतियों के साथ मज़ाक करते देखती, उनके बीच घुलमिल कर बैठा मैट कितना बाँका और सुन्दर दिख रहा है.
ऐसे लुभावने जवान के आस पास मँडराने और उसको खुश करने का मौका कोई भी युवती भला कैसे छोड़ देगी. जब जब वह ऐसी बातें सोचती लगता जैसे पूरा घर-- अँधेरा, सीलन भरा, सालों साल से एक जैसी दशा में पड़ा हुआ, पीढ़ी दर पीढ़ी वहाँ जीवन गुजार चुके वासिंदों की स्मृतियों की प्रतिध्वनियों से भरा भरा--- सिमटता हुआ पास आकर उसको अपने पाश में बाँधता जा रहा है.
उसको महसूस होता जैसे लोवे खानदान के छोटी कद काठी और गठीले बदन वाले तमाम लोग अपनी चमकीली काली आँखों से खूब फैले हुए घर के कोने अँतरे से चुप्पी साधे हुए झाँक-झाँक कर उसके सारे क्रिया कलाप पर नजर गड़ाए हुए है -- वे सब बातें सुनते रहते हैं जो वह फोन पर करती है, सुनते ही नहीं वे सब उसको घूरते भी रहते हैं.... और उनपर अपने फैसले भी थोपते रहते हैं. कई बार उसको लगता जैसे सचमुच उसने अपनी नंगी आँखों से उनको देखा भी है … हाँलाकि इस बात पर वह पक्के तौर पर टिक नहीं पाती थी कि सचमुच किसी फैंटम को देखा या सिर्फ़ देखने का भरम भर हुआ.
मैट प्यार के शुरूआती दिनों में उसको घर में विचरण करने वाले फैंटम की कहानियाँ खूब सुनाया करता -- जैसे, उधर देखो बूढ़ा जॉन लोवे अपने हाथ में लालटेन थामे हुए बाग़ से निकल कर इधर आ रहा है … या जुड़वाँ बहनें मेबेथ और कैथी झंडे वाले ठण्डे चबूतरे पर बिलौटों (बिल्ली के बच्चों) से घिरी बैठी मस्ती कर रही हैं .... बला की सुन्दर एलिनॉर भरी जवानी में गेस्ट रूम में बिस्तर पर पड़ी पड़ी दम तोड़ रही है.
ईवा जब भी घर में अकेली होती, इनमें से सब के सब जरूर कोई न कोई ऐसी हरकत जाहिरा तौर पर करते जिनसे उनका वज़ूद साबित हो सके … साफ़-साफ़ उनको देखना मुमकिन नहीं था पर वे निरंतर यहाँ वहाँ जिस ढंग से मँडराया करते उस से ईवा को लगने लगता जैसे वे सब मिलकर कुछ घटने का इन्तज़ार कर रहे हैं. थोड़ी देर इस माहौल में रहने के बाद जब ईवा थोड़ी सहज होती तो खुद को बोलती बतियाती पाती....खुद से नहीं बल्कि उन सब के साथ, जैसे छुटकारा पाने के लिए उनको भरोसे में लेने और बहलाने की कोशिश कर रही हो.
उसको समझ नहीं आ रहा था कि आज कौन सा काम पहले पूरा करे, सो बाज़ार का काम निबटा कर वह घर न जा कर गाँव में ही किसी सैलानी की तरह यहाँ वहाँ टहलती रही-- चर्च,पब और वे भी दो-दो, स्कूल.
स्कूल खूब खुला-खुला और हराभरा था, दक्षिण दिशा में ऊँचे दरख्तों की सीधी कतार. वहीँ गाँव में उसका घर भी था, पर उसको कभी यह महसूस ही नहीं हुआ कि वह यहीं की रहने वाली है. उसके पिता अपनी जवानी के दिनों में वहाँ आ बसे थे …वह वहीँ के स्कूल में पढ़ी लिखी है .... उसकी माँ कसाई की दूकान में औरतों की लाइन में खड़ी रह कर गोश्त खरीदा करतीं, उन दिनों गोश्त थमाने वाला कसाई खून लगे हाथों से पैसे नहीं लेता था बल्कि दूकान में पैसे लेने का काउन्टर अलग से हुआ करता था-- माँ को कसाई का यह इंतजाम अच्छा लगता. कसाई भला आदमी था और माँ के साथ उसका रिश्ता दोस्ताना था -- वह हमेशा माँ के साथ अच्छी तरह से बात करता और गोश्त के सबसे उम्दा टुकड़े उनके पैकेट में डालना न भूलता.
कसाई की बीवी कुटिल और घुन्ना औरत थी--- कई बार माँ के हाथ से नोट ले कर अपने हाथ में पकडे हुए उसको देर तक निहारती रहती जैसे वह पहली बार नजरों के सामने आया हुआ कोई विदेशी नोट हो…… पर वे लोग ऐसे ही थे, उनको अपने बीच में आकर बस गया कोई बाहरी शख्स बिलकुल नहीं सुहाता था -- तब तो और भी नहीं जब उनकी बिरादरी की ही कोई युवती उसको दिल दे बैठी हो और शादी की ठान ले. अब तो वे सब लोग ख़ुदा को प्यारे हो गए.
ठीक चार बजे चर्च की घंटी बजी, वह उठ कर अपनी कार तक जाने को हुई कि लगा कम्युनिटी सेंटर तक घूम आये. वहाँ एक कैफ़े था और उसके अंदर कुछ न कुछ गतिविधियाँ चलती रहतीं… कभी फ्लावर अरेंजमेंट तो कभी इटैलियन क्लासेज़. कभी- कभी वे वुमेन इंस्टीच्यूट भी चलाते. खुद के बारे में उसको लगता था कि वह वुमेन इंस्टीच्यूट टाइप स्त्री नहीं है--- खुद को लेकर दूसरी गतिविधियों के बारे में उसकी राय बहुत स्पष्ट नहीं थी, फिर भी वह कैफ़े के अंदर चली गयी. नोटिस बोर्ड में चस्पाँ पन्नों को एक एक कर पढ़ने लगी … विभिन्न कार्यक्रमों के टाइम टेबुल, कराटे की सफ़ेद ड्रेस में बच्चों की फ़ोटो इत्यादि. उसका ध्यान योग सिखाने की सूचना पर भी गया और उसको लगा कि उस से तनाव कम करने में मदद मिलेगी … पर फ़ौरन ही उसको समझ आ गया कि योग के लिए जिस सादे लम्बे लिबास को पहनना पड़ेगा उसमें ईवा अच्छी चुस्त दुरुस्त नहीं दिखेगी, सो यह विचार सिरे से खारिज. बुधवार की रातों में फ्रेंच सिखाने की शुरूआती क्लासें लगती हैं ---
स्कूल में उसने भी फ्रेंच पढ़ी थी पर अब दिमाग से सब साफ़ --- उसने लगभग तय कर लिया था कि वह दुबारा से फ्रेंच सीखना शुरू करेगी कि तभी उसकी नजर सभी पन्नों से अलग रखे एक सफ़ेद पोस्टकार्ड पर पड़ गयी जिसमें लिखा था कि चर्च में घंटी बजाने का काम करने वाले बेल रिंगिंग क्लब को नए सदस्यों की दरकार है. इसके लिए बगैर किसी ख़ास शर्त के सभी आमंत्रित हैं, और किसी पूर्व अनुभव की बाध्यता भी नहीं है.
यदि कभी किसी ने ईवा लोवे को बेल रिंगर्स की कल्पना करने को कहा होता तो उसके मन में अपना अधिकाँश समय घर की बजाय चर्च में गुजारने वाली, हाथ से बुने हुए पुरानी शैली के कार्डिगन पहनी हुई अनब्याही अधेड़ औरतें आतीं … या ट्वीड के हैट सिर पर रखे, फौजी स्वेटर पहने मर्द आते. पर यह नोटिस पढ़ते ही ईवा के मन में अचानक बेल टावर के अन्दर खड़ी खुद का ख्याल जाने कैसे कौंध गया … एक समान काम में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का एक गोल बना कर खड़े रहने, सबके चेहरों पर लैम्प से निकलती हुई गुनगुनी और ताम्बई रंग की रोशनी पड़ने और चर्च के पूरे विस्तृत आहाते में बजती हुई घंटी की ध्वनि के पसर जाने का मंजर एकदम से जीवंत हो गया. वह कभी भी धार्मिक इंसान नहीं रही पर चर्च उसको अलग कारणों से लुभाते रहे, ख़ास तौर पर तब जब क्रिसमस से पहले वाली रात इनमें रोशनी की जाती.... या फसल काटने के समय जौ और पके हुए फलों के चढ़ावे का भण्डार इनके आहातों में इकठ्ठा किया जाता. जब वह बच्ची थी तो एकाध बार लंच टाइम में टहलते हुए स्कूल से लगी हुई कब्रगाह में चली गयी थी… अन्य बच्चे तो खेल कूद में मशगूल रहे पर वह एक एक कब्र के पास जा कर उसपर लिखे नाम पढ़ती रही. उसके पिता ने ऐसा करने से मना किया हुआ था, उनका कहना था कि ईश्वर निरा ढकोसला और झूठ है और स्वर्ग नाम की कोई जगह वास्तव में नहीं होती बस कपोल कल्पना में होती है. इन सबके बावज़ूद ईवा को लगता था कि कब्रगाह से ईश्वर या उसके फरिश्तों का कुछ लेना देना नहीं....बल्कि यह तो सिर्फ उन कामनाओं का प्रतीक है जिसमें पहले से चली आ रही परम्पराओं को बगैर किसी छेड़ छाड़ के यथावत चलने देने की निर्दोष कोशिश है. ईस्टर, फसल कटाई, क्रिसमस --- सदियों से चले आ रहे हैं, और इनमें कभी कहीं कुछ नहीं बदला.
उसको लगा यह प्रतिमा पूजन जैसी कामना है और वह स्थान भी प्रतिमा पूजन का स्थान है -- सदाबहार की घनी झाड़ियों और खूब छितरी गुलाब की डालियों के बीचों बीच खड़ा पत्थर का वह चर्च, उसकी वेदी (ऑल्टर) और पवित्र जल रखने वाला पात्र (फॉन्ट) …… सबसे बढ़ कर उसकी भारी भरकम घंटियाँ. क्लब के सब के सब सदस्य टॉवर के ऊपर लगी घण्टी के इर्द गिर्द विराजमान ठण्डी और ठहरी हुई हवा के केंद्र में सिमटे हुए, जैसे किसी ऐसे पल का बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं जब कोई आएगा और उनमें दुबारा प्राण फूँक कर पुनर्जीवित कर देगा. उसको खुद पर भी ताज्जुब हो रहा था कि वहाँ खड़े खड़े उसके मन में एकसाथ इतनी सारी बातें आ कैसे गयीं....... सिर्फ एक अदना सा पोस्ट कार्ड पढ़ते-पढ़ते. उसने अपने पर्स में से खरीदने वाले सामानों की लिस्ट वाला कागज़ निकाला और उसपर बेल रिंगिंग क्लब का फोन नंबर लिख लिया.
और तो और वह क्या सोचेगा जब उसको आगे यह पता चलेगा कि ईवा को मार्था के अफ़ेयर के बारे में पहले से सब कुछ पता था. ईवा ने अपना ग्लास उठाया और किचेन के सिंक में रखते हुए बोल पड़ी :"हाय राम, जरा घड़ी की ओर तो ताको .... कितना समय हो गया. " यह कहते हुए भी ईवा को अपने इस अजीबोगरीब और अशिष्ट बर्ताव का पता था. उसने पलट कर मार्था को देखा .... मन में कहीं उसको ऐसा करते अफ़सोस हो रहा था, पर वह वास्तव में बुरी तरह खीझ गयी थी … हो सकता है इसकी वजह यह रही हो कि वह इस दुराव छुपाव के खेल की भागीदारी से बचना चाहती हो … या यह कि वह अपने मन को संग साथ नजदीकी जैसे भावों और अफेयर की परत दर परत बारीकियों के झमेलों से दूर रखना चाहती हो … या इन दुर्बल करने वाले भावों से पूर्णतया मुक्ति चाहती हो.
देखने पर बेहद विनम्र और घनिष्ठ,पर उतने ही निर्विकार भी .... जैसे सामने वाले की बला से, उसके निजी जीवन में जो होना हो होता रहे.
जहाँ तक ईवा का सवाल था वह हर्ले के साथ कोमलता के साथ पेश आती पर बेहद सजगता भी बरतती …सायास एक दूरी भी बनाये रखती. पर अक्सर वह मन ही मन उसके साथ साझा पलों के ख्वाब भी बुनती .... सेक्स नहीं, पर किस ढंग का साथ इसका बहुत स्पष्ट खाका या तस्वीर उसके मन में भी साफ़ नहीं थी .... हाँ ,साथ की ख्वाहिश स्पष्ट जरूर थी. वह पिकनिक हो सकती थी … या लाठोकर के घने जंगलों में साथ साथ लम्बी दूरी तक सैर करना हो सकता था. जब जब भी ईवा ऐसे पलों के बारे में कल्पना करती, ईवा और हर्ले के शरीर कभी एक दूसरे के साथ छूते नहीं --- ऐसा नहीं था कि हर्ले को देख कर उसके बदन में सुरसुरी नहीं उठती पर उसको इधर यह महसूस होने लगा था कि वह खुद ऊपर से चाहे जैसी दिखाई दे मन के अन्दर से वह हद दर्जे की दकियानूस और अंधविश्वासी प्रकृति की है …
इतना ही नहीं वह इस बात की कल्पना करने से डरती बचती भी थी जो उसके मन में हर्ले को लेकर अक्सर ताज़ा हवा के एक झोंके की मानिन्द आया करती थी. उसको अंदेशा था कि जैसे ही वह उनके बारे में तस्वीर बनाना शुरू करेगी , वे असम्भव के बियावान में जाकर कहीं गुम हो जायेंगे
हाँलाकि वह मार्था की कही हुई बातों को अपने ध्यान में आने से रोक नहीं पायी और जब घण्टी तक ले जाने वाले सँकरे और अंधेरे गलियारे में ईवा हर्ले के साथ साथ चल रही थी तब बार बार उसकी निगाहें हर्ले के हाथों पर जाकर टिक जातीं -- और मर्दों से कितने अलग बला के सुन्दर, नाज़ुक और कोमल हाथ हैं.... पर दुर्बल नहीं, किसी पियानो बजाने वाले या डांसर की तरह भरपूर शक्तिशाली. हाथ देख कर जैसे ही उसके मन में जन्म लेती कल्पना अपने साजो सामान का पिटारा खोलने लगी, ईवा ने डर कर निर्ममता के साथ उनपर ठण्डे पानी की तेज़ बौछार कर दी --- उसको लगा हर्ले के बारे में उसका ऐसा सोचना उचित नहीं. हाँ, चंचल उड़नशील मन था कि बार बार हर्ले के उसी ठिकाने पर लौट आता था -- उसकी काली आँखें, चलने का उसका अनूठा ढ़ंग ,उसके हाथों का सलोनापन … ध्यान बँटाने की उसकी भरसक कोशिशें नाकाम हुई जा रही थीं. उन हाथों को ईवा अपने बदन पर महसूस करना चाहती थी … हौले से , भरपूर कोमलता के साथ , शालीनता के साथ
ईवा चर्च से जब बाहर निकली तब भी बर्फ़ गिर रही थी …हरे भरे पेड़ों को अपने आगोश में लिए हुए .... क्रिसमस के लिए सजी धजी दूकानों में रंग बिरंगी रोशनी जली हुई थी. कसाई और ग्रोसर की दूकान के खिड़की दरवाज़े पर नीले रंग की पट्टियाँ चमक रही थीं. अब ईवा को क्रिसमस से भी घबराहट होने लगी थी ,त्यौहार के नाम पर हर बार की तरह जेम्स और मार्था मिलने घर ज़रूर आयेंगे .... और उसको उनके साथ यह जतलाते हुए बैठना भी पड़ेगा कि उसके और मैट के बीच सब कुछ एकदम सहज सामान्य चल रहा है … गप्पें मारते हुए शराब के दौर में साथ बैठना भी पड़ेगा
खाते पीते हुए मैट जब आदतन उसकी बनायीं मिन्स पाई का मज़ाक उड़ायेगा तब भी उसको किसी हाल में अपना आपा नहीं खोना होगा .... ईवा ने तय कर लिया है कि इस बार वह मिन्स पाई ख़ुद नहीं बनायेगी बल्कि नयी खुली दूकान से खरीद कर ले आयेगी …और खामोशी से इंतज़ार करेगी कि देखें, कोई घर की बनी और बाज़ार से खरीद कर लायी हुई मिन्स पाई में अन्तर कर पाता है या नहीं
बल्कि बेहतर तो यह होगा कि उस दिन वह चुपचाप बिना बताये घर से बाहर निकल पड़े और जंगल में लम्बी सैर कर आए. .... ताज़ा पड़ी बर्फ़ पर अपने कदमों के निशान छोड़ती हुई काफ़ी आगे निकल कर ठहरे ,पीछे मुड़े और वहाँ से उनकी लम्बी रेखा को निहारे -- बचपन में उसके पिता अक्सर ऐसा किया करते थे. यह सोचते सोचते एकबारगी उसको एहसास हुआ कि पिता की मृत्यु के बाद से शायद ही वह कभी जंगल में सैर को आयी हो… या घास के उन प्रशस्त मैदानों में निकली हो गर्मी की शामों में जहाँ पिता उसको फतिंगों के झुण्ड दिखाने लाया करते थे .... उन फतिंगों के अलग अलग नाम पहले तो वे उस स्थानीय भाषा में बताते जिसे ईवा बोलती समझती है ,फिर अपनी मातृभाषा में …… हाँलाकि कई फतिंगे ऐसे भी होते जो सिर्फ़ इस इलाके में होते हैं पिता के छूट चुके देश में नहीं.
"मुझे लग रहा है जैसे इस बार क्रिसमस पर चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ दिखेगी ",वह बोली …… "पर ऐसे मौसम के तुम शायद अभ्यस्त हो .... वैसे तुम रहते कहाँ हो ?"
ईवा सोचने लगी, अभी अभी तो यहीं पास में खड़ा था, यहाँ से निकल के सड़क पर चलता हुआ भी दिखायी दे रहा था .... इस तरह अचानक गुम कहाँ हो गया. उसको तो यह भी नहीं मालूम कि वह रहता कहाँ है, इतना ही पता है कि गाँव के बाहर किसी ऐसे मकान में रहता हैं जहाँ कुछ और भी लोग रहते हैं .... शायद जंगल पार कर के पश्चिम दिशा में पड़ता है उसका कमरा, यहाँ से आधा मील दूर होगा … हो सकता है ज्यादा ही दूर हो .... एकदम से उसका मन ग्लानि से भर गया कि इस क्रूर मौसम में आखिर उसने अपनी कार में बिठा कर हर्ले को उसके कमरे तक क्यों नहीं छोड़ दिया. पर उसने ही तो बताया था कि ठण्डे मौसम का उसको भरपूर अनुभव है .... और बर्फ़ की मोटी चादर ओढ़ी सड़क पर उसको अपनी कार में बिठा कर छोड़ने जाना ख़तरनाक भी तो हो सकता था … बिलकुल सुनसान रास्ते में सिर्फ़ उसके साथ कार के अंदर, वह भी अंधेरे में बर्फ़बारी के बीच … शायद उसके मुँह से कुछ ऐसा वैसा निकल जाता जिसके लिए जीवन भर उसको पश्चात्ताप करना पड़ता .... कुछ भी तो हो सकता था.
यादवेन्द्र
लाठोकर मिल के बोर्ड के आधा मील आगे चल कर ईवा लोवे मेन रोड से मुड़ी और किनेल्डी जंगल के अन्दर जा रहे रास्ते में दाखिल हो गयी. हाँलाकि गाँव में आने का यह सबसे सीधा रास्ता नहीं था पर उसके पिता को यह बहुत प्रिय था, हो सकता है इसको देख कर उनको पीछे छूट चुके स्लोवाकिया की याद आती हो, और माँ के जिन्दा रहते तक अक्सर इतवार को वे उधर घूमने आया करते थे.
अँधेरा हो चला था, अँधेरा भी खूब गहरा और चारों ओर सघन हरियाली -- बाउण्ड्री वॉल पर झाड़ियाँ उग आयी थीं और ऊँचे दरख्तों के नीचे नमी पसरी हुई थी. औरों के लिए यह रास्ता उदासी और हताशा का प्रतीक था पर ईवा को यह बिलकुल घर के आहाते जैसा लगता -- ख़ास तौर पर अब जब चीड़ के माथे और पहाड़ी ढ़लानों पर ताज़ा ताज़ा बर्फ़ गिरी हुई हो. उसको यह नज़ारा बिलकुल बच्चों की सचित्र किताबों जैसा लगता जिसमें किसी निष्ठुर परी के कोप से हँसता खेलता पूरा साम्राज्य कँटीली झाड़ियों और मकड़ी के घने जालों के बीच सौ साल तक दबे होने को अभिशप्त हो और उसके ऊपर बर्फ़ की चादर बिछ गयी हो. उसके पिता को यह परीकथा खूब प्रिय थी और उसने अपने पास अबतक वह किताब सँभाल कर रखी हुई है बचपन में जिस से पढ़ कर वे उसको कहानी सुनाया करते थे .... किताब हाथ में लेते ही वे अक्सर कहते कि उन चित्रों को देख कर उनको अपने बचपन और गाँव याद आने लगती है. किताब में बने वे चित्र उसको पिता के वास्तविक स्मृति चिह्न लगते .... बचपन से बार बार देखी हुई वह किताब हरी पत्तियों,नीले आसमान और गाढ़े बैंगनी रंग के फलों से भरी हुई दुनिया के चटक वाटर कलर चित्रों की थी पर अब दुर्भाग्य से उस लुभावनी दुनिया के पन्नों पर मवेशियों भरे ट्रक और बगैर नाम पते वाली हजारों कब्रें पसर गयी हैं.
उसके पिता लम्बे
समय तक बीमार रहे और ऐसे मौके बार बार आते रहे जिनमें लगता था जैसे अब उनका आखिरी पल आ पहुँचा है .... मैट उनको लेकर अपना
धीरज खो बैठा था. मुँह से उसने कभी कहा
नहीं कि उसके मन में क्या चल रहा है पर हाव
भाव देख कर अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि ईवा का पिता के साथ अस्पताल में इतना
समय बिताना उसे बिलकुल पसंद नहीं .... ईवा को भी वैसे मौकों का इन्तजार रहने लगा था जब मैट नॉर्थ सी में
किसी रिग का इंस्पेक्शन या मिस्र या नाइजीरिया में कोई निर्माण कार्य करते हुए
हफ़्तों बिताने वाला हो. पिता की मृत्यु के
आखिरी महीने में तो वह लगभग पूरा पूरा अनुपस्थित रहा, पर ईवा के लिए
मैट का न रहना ज्यादा सुकून देने वाला था. उसके सामने न रहने से ईवा को पिता के हमेशा के लिए प्रस्थान कर जाने
के कारण पैदा हो गए खालीपन के साथ सामंजस्य बिठाने में मदद मिली … ख़ामोशी में उनकी
बातों और आवाज़ का स्मरण करने का मौका भी मिला, जब उसकी स्मृति में एक एक कर के उनकी अपनी
मातृभाषा में बचपन में सुनाये हुए गीत और लोक कथाएँ तरो ताज़ा हो गयीं.
मृत्यु बाद की सारी औपचारिकताएँ जब पूरी हो गयीं तब उसको महसूस हुआ कि इतने बड़े पर बूढ़े पुराने फ़ार्म हाउस में वह निपट अकेली रह गयी है … और उसके पास न करने को कुछ है और न ही बातचीत के लिए कोई संगी साथी है. हाँ , मैट की बहन मार्था जरूर शनिवार को सुबह सुबह केक और सेबों की टोकरी लेकर उसके पास आ कर बैठने बतियाने लगी. मार्था इसका ध्यान रखती कि जब मैट घर पर हो वहाँ नहीं जाना है. यह लगभग एक रूटीन जैसा बन गया -- हर शनिवार सुबह साढ़े दस बजे मार्था को आना है , गमलों के बाजू में बैठना है और घंटों बतियाना है.... कई कई बार यह सिलसिला और भी लम्बा खिंच जाता … और मार्था के कारण पहले से सोचे किसी काम में कभी कभी देर भी हो जाती, पर ईवा इन बातों को लेकर बहुत अफरा तफरी नहीं मचाती. कम से कम इतना तो हुआ ही कि मार्था ने नए नए आन पड़े दुःख के उन शुरूआती दिनों में उसका साथ निभाया था जब वह बिलकुल अकेली पड़ गयी थी. यह अलग बात कि मार्था को सेल्फ हेल्प वाली किताबों और महिलाओं की पत्रिकाओं की बातें धड़ल्ले से कहने में महारत हासिल थी पर उस समय वह जिस हाल में थी उसकी बातों ने ईवा पर कारगर असर किया -- ईवा मार्था के आने का बड़ी बेसब्री से इन्तजार करती और घंटों एक प्लेट बिस्किट के साथ उस से बतियाती रहती .... जीवन में अचानक आने वाली किसी बड़ी तब्दीली के पहले तक लोगबाग क्या कर रहे होते हैं और बाद में उन बातों को कैसे याद करते हैं, लब्बो लुबाब यही सब था.
ईवा जब ठहर कर अपने जीवन को देखती है तो उसको समझ आता है कि पिता की मृत्यु दर असल कोई अचानक आया हुआ बदलाव नहीं था .... उसको बहुत पहले से इसका एहसास था कि पिता अब ज्यादा दिन नहीं बचेंगे, और उसने इस क्षति के लिए खुद को भरसक तैयार कर रखा था --हाँलाकि मार्था का कहना था कि आप चाहे जितनी कोशिश कर लें, अपने किसी प्रिय की मृत्यु के लिए वास्तव में तैयार हो नहीं पाते … और वह भी तब जब वह इतनी कष्टपूर्ण और धीमी गति से कदम आगे बढ़ा रही हो. पर पिता की अंतिम क्रिया के बाद ईवा को एकदम से यह महसूस हुआ कि सारी दुनिया अचानक अपने आप में सिमट कर एकदम चुप हो गयी है .... और उस को सबसे ज्यादा आघात पिता की अनुपस्थिति से नहीं बल्कि अपनी शादी से लगा था.
मैट मृत्यु बाद के कामों में हाथ बँटाने दो चार दिनों के लिए आया था और न चाहते हुए भी ईवा की निगाहों से इस लम्बे खिंचते चले आ रहे प्रसंग के पटाक्षेप से मैट के राहत की साँस लेने के भाव छुपे नहीं रह सके …कि और अब वह निश्चिन्त होकर फिर से अपने काम पर लौट सकेगा. इस से पहले तक जब भी ईवा अकेली होती और रातों में खिड़की से बाहर खेतों और बाग़ को देखती तो उसको लगता कि पति का अभाव उसको अन्दर ही अन्दर खाये जा रहा है. ये खेत और बाग़ थे तो मैट के परिवार के, पर अब उनको किराये पर पड़ोसियों को दे दिया गया था. कभी कभी उसको वे शुरूआती दिन याद आते जब वह पहली दफ़ा मैट से मिली थी …
उसका बाँकपन, हँसी ठिठोली करते रहने का चुलबुल स्वभाव और ईवा को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह के खेल गढ़ते रहना. वह अक्सर ईवा के लिए बाग़ से ताज़े सुन्दर फूल या रसीले फल लेकर आता .... और जब यह स्पष्ट हो गया कि दोनों एक दूसरे के साथ जीवन बिताने को लेकर गम्भीर हैं, तो वह अक्सर यह कहता फिरता कि दोनों के शरीर पर बिलकुल एक जैसे टैटू हैं-- दिल, गुलाब, केल्टिक आकृतियाँ .... और दोनों के शरीरों के उन अंदरूनी अंगों पर टँकी हुई नन्हीं नीली चिड़िया जिन्हें सिर्फ वे ही देख सकते हैं, कोई और नहीं.
उनके साझा जीवन का पहला साल बीतते बीतते रोमांटिक भाव पूरी तरह से तिरोहित हो चुके थे, पर ईवा को वह सब गुदगुदाने वाला घटनाक्रम अब भी पूरी तरह याद था. शुरू-शुरू में मैट जब बाहर जाया करता, बड़ी निष्ठा और जिम्मेदारी से ईवा उन बातों को सायास याद किया करती … मन ही मन यह बात बार बार दुहराया करती कि जब एक समय उन दोनों ने इतना सघन प्यार किया है तो भले ही बीच में कुछ ख़ला आ गया हो पर प्यार भरे दिन दुबारा जरूर लौट आयेंगे. हाँलाकि ईवा मन ही मन यह बखूबी जानती थी कि मैट के साथ प्यार के पलों को इस तरह बार-बार याद करने के लिए उसको काफी मशक्कत करनी पड़ती, पर अपने मन के अंदरूनी कोनों में जागृत एहसास भी था कि अकेले रहते हुए वह किसी चीज़ का अभाव महसूस तो करती है पर वह कुछ और था, मैट नहीं…यकीनन.
वास्तविकता यह थी कि अपने में सिमट कर रहने में ईवा को कोई परेशानी नहीं महसूस होती,बस बड़े से घर में अकेला रहना उसको अच्छा नहीं लगता था. यदि वह इस घर की बज़ाय किसी और घर में रहती होती -- यदि मैट ने यह घर बेच दिया होता और किसी दूसरे गाँव में जमीन खरीद ली होती, जैसा उसने करने का मन लगभग बना भी लिया था, पर आखिरी पलों में उससे किनारा कर लिया --- तब उसको कोई परेशानी नहीं थी. मैट जब महीने भर के लिए भी घर से बाहर गया होता, बगैर उसके हस्तक्षेप के अपना जीवन अलग ढंग से जी रहा होता, ईवा को कई कई दिनों तक फोन नहीं करता –
जब करता भी तो यह जताना नहीं भूलता कि अभी उसके सिर पर दुनिया जहान के काम का जिम्मा है -- और अभी जो फोन वह कर भी रहा है वह एक घरेलू दायित्व से ज्यादा कुछ और नहीं. कभी कभी वह फोन बीच में रख देती, फिर किसी खूब प्रकाशित कमरे में लोगों से घिरे उसके बैठे होने की कल्पना करती --- सोचती वह कॉन्फ्रेंस रूम हो सकता है, कोई होटल भी हो सकता है--- मैट अपने सहकर्मियों के साथ किसी भारी भरकम विषय पर विचार विमर्श में मशगूल है, विषय कुछ भी हो सकता है.... इंजीनियरिंग से लेकर राजनीति तक.... और बातचीत इतनी ऊँची आवाज़ में भी हो सकती है कि आस पास से गुजरती हुई वेटरेस को भी सब कुछ स्पष्ट सुनायी दे. सम्भव है वह उन सजी धजी युवतियों के साथ कुछ फ्लर्ट भी करता हो, या बात इस से आगे भी चली जाती हो. आँखें बंद करके वह मैट को उन युवतियों के साथ मज़ाक करते देखती, उनके बीच घुलमिल कर बैठा मैट कितना बाँका और सुन्दर दिख रहा है.
ऐसे लुभावने जवान के आस पास मँडराने और उसको खुश करने का मौका कोई भी युवती भला कैसे छोड़ देगी. जब जब वह ऐसी बातें सोचती लगता जैसे पूरा घर-- अँधेरा, सीलन भरा, सालों साल से एक जैसी दशा में पड़ा हुआ, पीढ़ी दर पीढ़ी वहाँ जीवन गुजार चुके वासिंदों की स्मृतियों की प्रतिध्वनियों से भरा भरा--- सिमटता हुआ पास आकर उसको अपने पाश में बाँधता जा रहा है.
उसको महसूस होता जैसे लोवे खानदान के छोटी कद काठी और गठीले बदन वाले तमाम लोग अपनी चमकीली काली आँखों से खूब फैले हुए घर के कोने अँतरे से चुप्पी साधे हुए झाँक-झाँक कर उसके सारे क्रिया कलाप पर नजर गड़ाए हुए है -- वे सब बातें सुनते रहते हैं जो वह फोन पर करती है, सुनते ही नहीं वे सब उसको घूरते भी रहते हैं.... और उनपर अपने फैसले भी थोपते रहते हैं. कई बार उसको लगता जैसे सचमुच उसने अपनी नंगी आँखों से उनको देखा भी है … हाँलाकि इस बात पर वह पक्के तौर पर टिक नहीं पाती थी कि सचमुच किसी फैंटम को देखा या सिर्फ़ देखने का भरम भर हुआ.
मैट प्यार के शुरूआती दिनों में उसको घर में विचरण करने वाले फैंटम की कहानियाँ खूब सुनाया करता -- जैसे, उधर देखो बूढ़ा जॉन लोवे अपने हाथ में लालटेन थामे हुए बाग़ से निकल कर इधर आ रहा है … या जुड़वाँ बहनें मेबेथ और कैथी झंडे वाले ठण्डे चबूतरे पर बिलौटों (बिल्ली के बच्चों) से घिरी बैठी मस्ती कर रही हैं .... बला की सुन्दर एलिनॉर भरी जवानी में गेस्ट रूम में बिस्तर पर पड़ी पड़ी दम तोड़ रही है.
ईवा जब भी घर में अकेली होती, इनमें से सब के सब जरूर कोई न कोई ऐसी हरकत जाहिरा तौर पर करते जिनसे उनका वज़ूद साबित हो सके … साफ़-साफ़ उनको देखना मुमकिन नहीं था पर वे निरंतर यहाँ वहाँ जिस ढंग से मँडराया करते उस से ईवा को लगने लगता जैसे वे सब मिलकर कुछ घटने का इन्तज़ार कर रहे हैं. थोड़ी देर इस माहौल में रहने के बाद जब ईवा थोड़ी सहज होती तो खुद को बोलती बतियाती पाती....खुद से नहीं बल्कि उन सब के साथ, जैसे छुटकारा पाने के लिए उनको भरोसे में लेने और बहलाने की कोशिश कर रही हो.
उसको समझ नहीं आ रहा था कि आज कौन सा काम पहले पूरा करे, सो बाज़ार का काम निबटा कर वह घर न जा कर गाँव में ही किसी सैलानी की तरह यहाँ वहाँ टहलती रही-- चर्च,पब और वे भी दो-दो, स्कूल.
स्कूल खूब खुला-खुला और हराभरा था, दक्षिण दिशा में ऊँचे दरख्तों की सीधी कतार. वहीँ गाँव में उसका घर भी था, पर उसको कभी यह महसूस ही नहीं हुआ कि वह यहीं की रहने वाली है. उसके पिता अपनी जवानी के दिनों में वहाँ आ बसे थे …वह वहीँ के स्कूल में पढ़ी लिखी है .... उसकी माँ कसाई की दूकान में औरतों की लाइन में खड़ी रह कर गोश्त खरीदा करतीं, उन दिनों गोश्त थमाने वाला कसाई खून लगे हाथों से पैसे नहीं लेता था बल्कि दूकान में पैसे लेने का काउन्टर अलग से हुआ करता था-- माँ को कसाई का यह इंतजाम अच्छा लगता. कसाई भला आदमी था और माँ के साथ उसका रिश्ता दोस्ताना था -- वह हमेशा माँ के साथ अच्छी तरह से बात करता और गोश्त के सबसे उम्दा टुकड़े उनके पैकेट में डालना न भूलता.
कसाई की बीवी कुटिल और घुन्ना औरत थी--- कई बार माँ के हाथ से नोट ले कर अपने हाथ में पकडे हुए उसको देर तक निहारती रहती जैसे वह पहली बार नजरों के सामने आया हुआ कोई विदेशी नोट हो…… पर वे लोग ऐसे ही थे, उनको अपने बीच में आकर बस गया कोई बाहरी शख्स बिलकुल नहीं सुहाता था -- तब तो और भी नहीं जब उनकी बिरादरी की ही कोई युवती उसको दिल दे बैठी हो और शादी की ठान ले. अब तो वे सब लोग ख़ुदा को प्यारे हो गए.
ठीक चार बजे चर्च की घंटी बजी, वह उठ कर अपनी कार तक जाने को हुई कि लगा कम्युनिटी सेंटर तक घूम आये. वहाँ एक कैफ़े था और उसके अंदर कुछ न कुछ गतिविधियाँ चलती रहतीं… कभी फ्लावर अरेंजमेंट तो कभी इटैलियन क्लासेज़. कभी- कभी वे वुमेन इंस्टीच्यूट भी चलाते. खुद के बारे में उसको लगता था कि वह वुमेन इंस्टीच्यूट टाइप स्त्री नहीं है--- खुद को लेकर दूसरी गतिविधियों के बारे में उसकी राय बहुत स्पष्ट नहीं थी, फिर भी वह कैफ़े के अंदर चली गयी. नोटिस बोर्ड में चस्पाँ पन्नों को एक एक कर पढ़ने लगी … विभिन्न कार्यक्रमों के टाइम टेबुल, कराटे की सफ़ेद ड्रेस में बच्चों की फ़ोटो इत्यादि. उसका ध्यान योग सिखाने की सूचना पर भी गया और उसको लगा कि उस से तनाव कम करने में मदद मिलेगी … पर फ़ौरन ही उसको समझ आ गया कि योग के लिए जिस सादे लम्बे लिबास को पहनना पड़ेगा उसमें ईवा अच्छी चुस्त दुरुस्त नहीं दिखेगी, सो यह विचार सिरे से खारिज. बुधवार की रातों में फ्रेंच सिखाने की शुरूआती क्लासें लगती हैं ---
स्कूल में उसने भी फ्रेंच पढ़ी थी पर अब दिमाग से सब साफ़ --- उसने लगभग तय कर लिया था कि वह दुबारा से फ्रेंच सीखना शुरू करेगी कि तभी उसकी नजर सभी पन्नों से अलग रखे एक सफ़ेद पोस्टकार्ड पर पड़ गयी जिसमें लिखा था कि चर्च में घंटी बजाने का काम करने वाले बेल रिंगिंग क्लब को नए सदस्यों की दरकार है. इसके लिए बगैर किसी ख़ास शर्त के सभी आमंत्रित हैं, और किसी पूर्व अनुभव की बाध्यता भी नहीं है.
यदि कभी किसी ने ईवा लोवे को बेल रिंगर्स की कल्पना करने को कहा होता तो उसके मन में अपना अधिकाँश समय घर की बजाय चर्च में गुजारने वाली, हाथ से बुने हुए पुरानी शैली के कार्डिगन पहनी हुई अनब्याही अधेड़ औरतें आतीं … या ट्वीड के हैट सिर पर रखे, फौजी स्वेटर पहने मर्द आते. पर यह नोटिस पढ़ते ही ईवा के मन में अचानक बेल टावर के अन्दर खड़ी खुद का ख्याल जाने कैसे कौंध गया … एक समान काम में दिलचस्पी रखने वाले लोगों का एक गोल बना कर खड़े रहने, सबके चेहरों पर लैम्प से निकलती हुई गुनगुनी और ताम्बई रंग की रोशनी पड़ने और चर्च के पूरे विस्तृत आहाते में बजती हुई घंटी की ध्वनि के पसर जाने का मंजर एकदम से जीवंत हो गया. वह कभी भी धार्मिक इंसान नहीं रही पर चर्च उसको अलग कारणों से लुभाते रहे, ख़ास तौर पर तब जब क्रिसमस से पहले वाली रात इनमें रोशनी की जाती.... या फसल काटने के समय जौ और पके हुए फलों के चढ़ावे का भण्डार इनके आहातों में इकठ्ठा किया जाता. जब वह बच्ची थी तो एकाध बार लंच टाइम में टहलते हुए स्कूल से लगी हुई कब्रगाह में चली गयी थी… अन्य बच्चे तो खेल कूद में मशगूल रहे पर वह एक एक कब्र के पास जा कर उसपर लिखे नाम पढ़ती रही. उसके पिता ने ऐसा करने से मना किया हुआ था, उनका कहना था कि ईश्वर निरा ढकोसला और झूठ है और स्वर्ग नाम की कोई जगह वास्तव में नहीं होती बस कपोल कल्पना में होती है. इन सबके बावज़ूद ईवा को लगता था कि कब्रगाह से ईश्वर या उसके फरिश्तों का कुछ लेना देना नहीं....बल्कि यह तो सिर्फ उन कामनाओं का प्रतीक है जिसमें पहले से चली आ रही परम्पराओं को बगैर किसी छेड़ छाड़ के यथावत चलने देने की निर्दोष कोशिश है. ईस्टर, फसल कटाई, क्रिसमस --- सदियों से चले आ रहे हैं, और इनमें कभी कहीं कुछ नहीं बदला.
उसको लगा यह प्रतिमा पूजन जैसी कामना है और वह स्थान भी प्रतिमा पूजन का स्थान है -- सदाबहार की घनी झाड़ियों और खूब छितरी गुलाब की डालियों के बीचों बीच खड़ा पत्थर का वह चर्च, उसकी वेदी (ऑल्टर) और पवित्र जल रखने वाला पात्र (फॉन्ट) …… सबसे बढ़ कर उसकी भारी भरकम घंटियाँ. क्लब के सब के सब सदस्य टॉवर के ऊपर लगी घण्टी के इर्द गिर्द विराजमान ठण्डी और ठहरी हुई हवा के केंद्र में सिमटे हुए, जैसे किसी ऐसे पल का बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं जब कोई आएगा और उनमें दुबारा प्राण फूँक कर पुनर्जीवित कर देगा. उसको खुद पर भी ताज्जुब हो रहा था कि वहाँ खड़े खड़े उसके मन में एकसाथ इतनी सारी बातें आ कैसे गयीं....... सिर्फ एक अदना सा पोस्ट कार्ड पढ़ते-पढ़ते. उसने अपने पर्स में से खरीदने वाले सामानों की लिस्ट वाला कागज़ निकाला और उसपर बेल रिंगिंग क्लब का फोन नंबर लिख लिया.
संपर्क करने पर
मालूम हुआ कि वह फोन नंबर जिस महिला का था वह उसके साथ स्कूल में पढ़ी हुई थी ....
हाँलाकि फ़ोन पर वह ठीक तरह से ईवा को पहचान नहीं पायी, पर उसका बर्ताव
उसके साथ बेहद अनौपचारिक और प्रेमपूर्ण था. क्लब के अन्य सदस्य भी भले और समझदार
लोग थे, ईवा का खूब ख़याल रखते और कभी घंटी बजाने में उस से कोई गलती हो जाती तो
विनम्रता से उसे समझाते. मैट जब घर लौट कर आया और ईवा ने चर्च में घण्टी बजाने
वाली बात उसको बतायी तो वह जोर से हँस पड़ा. उसके यह काम शुरू करने के तीन हफ्ते
बाद वह घर लौटा था और जब ईवा ने बड़े उत्साह से अपने अनुभव सुनाने शुरू किये तो मैट
कुछ मिनटों बाद ही उखड़ गया और अपना सिर झटक कर वहाँ से उठ कर चल दिया.
"चलो, मुझे यह जानकार
अच्छा लगा कि तुम्हें कोई ऐसा काम मिल गया जिसमें तुम्हारा मन लग रहा है"
मैट ने कहा, "पर ईमानदारी से कहूँ तो मुझे लगता है तुम्हारा दिमाग फिर गया है … तुम बावली हो गयी हो … पर तुम्हारा मन जब इसी में लगता है तो ……".
मैट को दिखाई दे गया कि ईवा उसकी बातें सुनकर अनमनी हो गयी थी, और उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दे रही थी पर सबकुछ देख सुन कर भी उसने मामले को समझदारी के साथ सम्भाल लेने का कोई यत्न नहीं किया … जैसे इस से उसकी सेहत पर कोई फ़र्क न पड़ता हो. मैट जब घर पर होता है, घंटों फोन पर लगा रहता है … या फिर अपने पुराने दोस्तों के साथ ज्यादा समय पब में बिताता है ....
और यूँ ही देखते देखते उसके वापस जाने का समय आ जाता. ईवा को इसकी उम्मीद कतई नहीं थी कि मैट को अपने किये की कभी समझ आएगी , फिर भी उसके इतने बेफिक्र और उपेक्षापूर्ण ढंग से बर्ताव करने से उसको गहरा धक्का लगा था. मार्था से इस घटना के बारे में बात करने के बाद उसको मैट पर क्रोध भी आया था , हाँलाकि पहले उसके मन में अपमान का भाव था …… जब अपने भाई के ऐसे बर्ताव पर मार्था क्रोध से तिलमिला गयी तो ईवा के मन का गुस्सा नाक तक जा पहुँचा. जब ईवा ने अपने नए काम के बारे में मार्था को बताया तो उसने उसकी हौसला अफ़जाई की… सिर्फ यह सोच कर नहीं कि ईवा को दिल बहलाये रखने के लिए किसी हॉबी की दरकार है बल्कि इसलिए भी कि ईवा को चर्च और उसका सारा माहौल आकर्षित करता था-- ख़ास तौर पर उसकी रोशनी, उसकी भारी भरकम घण्टी और उनसे निकलती हुई सम्मोहित कर देने वाली झंकार जो धीरे धीरे गाँव की विस्तृत हरियाली को अपने आगोश में ले लेती है. मार्था दर असल पहले से ऐसी ही थी.
मैट ने कहा, "पर ईमानदारी से कहूँ तो मुझे लगता है तुम्हारा दिमाग फिर गया है … तुम बावली हो गयी हो … पर तुम्हारा मन जब इसी में लगता है तो ……".
मैट को दिखाई दे गया कि ईवा उसकी बातें सुनकर अनमनी हो गयी थी, और उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दे रही थी पर सबकुछ देख सुन कर भी उसने मामले को समझदारी के साथ सम्भाल लेने का कोई यत्न नहीं किया … जैसे इस से उसकी सेहत पर कोई फ़र्क न पड़ता हो. मैट जब घर पर होता है, घंटों फोन पर लगा रहता है … या फिर अपने पुराने दोस्तों के साथ ज्यादा समय पब में बिताता है ....
और यूँ ही देखते देखते उसके वापस जाने का समय आ जाता. ईवा को इसकी उम्मीद कतई नहीं थी कि मैट को अपने किये की कभी समझ आएगी , फिर भी उसके इतने बेफिक्र और उपेक्षापूर्ण ढंग से बर्ताव करने से उसको गहरा धक्का लगा था. मार्था से इस घटना के बारे में बात करने के बाद उसको मैट पर क्रोध भी आया था , हाँलाकि पहले उसके मन में अपमान का भाव था …… जब अपने भाई के ऐसे बर्ताव पर मार्था क्रोध से तिलमिला गयी तो ईवा के मन का गुस्सा नाक तक जा पहुँचा. जब ईवा ने अपने नए काम के बारे में मार्था को बताया तो उसने उसकी हौसला अफ़जाई की… सिर्फ यह सोच कर नहीं कि ईवा को दिल बहलाये रखने के लिए किसी हॉबी की दरकार है बल्कि इसलिए भी कि ईवा को चर्च और उसका सारा माहौल आकर्षित करता था-- ख़ास तौर पर उसकी रोशनी, उसकी भारी भरकम घण्टी और उनसे निकलती हुई सम्मोहित कर देने वाली झंकार जो धीरे धीरे गाँव की विस्तृत हरियाली को अपने आगोश में ले लेती है. मार्था दर असल पहले से ऐसी ही थी.
उसको शुरू से
मालूम था कि भले ही उसके--- और मैट
के भी-- मन में लोवे खानदान और उसके
इतिहास को लेकर गहरे फ़ख्र का भाव था, पर खानदान के बाहर से आयी हुई ईवा उनसब को लेकर
असहज हो जाती थी.... और लोवे खानदान की
स्मृतियाँ संजोये इस घर के साथ भी ईवा का यही भाव बरकरार रहा. सच्चाई तो यह
है कि ईवा उस बड़े से घर में रहते हुए अपना सामाजिक कद बढ़ा हुआ महसूस करती थी, और मार्था के
साथ निकटता बढ़ते जाने के साथ उसके मन में एक निश्चिन्तता घर करने लगी कि उस खानदान
का कम से कम एक व्यक्ति ऐसा है -- मार्था --- जो उसके पक्ष में खड़ा हुआ रहता है.
उस सुबह ईवा और
मार्था के बीच जो बातचीत हुई वह एकदम चौंकाने वाली थी … बिजली के किसी
झटके जैसी… मार्था ने बात करते करते घुमा फिरा कर यह स्वीकार किया कि उसका कोई अफेयर चल
रहा है, हाँलाकि उसने अपनी तरफ़ से यह ज़ाहिर न
होने देने की भरसक कोशिश की कि इसमें चौंकने जैसी कोई बात है. बात की गम्भीरता
को कम करने करने की नीयत से ही वो उसदिन किचेन में आकर बैठी थी और साथ में शराब भी
मँगा कर रख ली थी. जहाँ तक ईवा का सवाल है उसको दिन में ड्रिंक करने की आदत नहीं
है, पर क्रिसमस सिर पर होने की वजह से
उसने भी कोई ना नुकुर नहीं की और मार्था के कहने पर फ्रिज से व्हाइट वाइन की एक
बोतल निकाल कर ले आयी .... आम तौर पर वह मार्था के साथ बातचीत करते हुए बिस्किट और
कॉफ़ी साथ रखती है.
मार्था दूसरा
पैग लेने के बाद से खुलती चली गयी .... कि जेम्स के साथ वह कितना यातनापूर्ण जीवन बिता रही है .... और अब यह बात उस के बर्दाश्त
से बाहर हो गयी है कि कोई उसके मन की कोई
बात न सुने और बस एक के बाद एक अपनी मर्ज़ी उसके ऊपर थोपता चला जाए.
"मैं औरों
के साथ छल या दिखावा तो कर सकती हूँ ईवा .... पर खुद को कैसे भरम में रखूँ ?" मार्था बोली … और यह बोलते हुए
वह ऐसी कोई ख़ास विचलित या भावुक नहीं दिखाई दे रही थी. ईवा का स्वभाव ऐसा था कि जब
सामने बैठे लोगबाग अपनी परेशानियों की दास्तान
सुनाते रहते हैं तब वह मन ही मन सोचती है कि ऐसा कर के वे उन परेशानियों से
पार पाने के अपने अपनाये हुए उपायों पर उसकी सहमति की मुहर लगवाना चाहते होते हैं....... पर वह इस मसले में उन्हें गलत या सही होने का सर्टिफिकेट देने वाली आख़िर
होती कौन है ? ईवा मार्था की बातें सुन कर उसकी बाबत
अनवरत सोचती रही, और उसको लगा कि मार्था जो कह रही है उसपर उसकी सहमति है … पर मुँह से बोली
सिर्फ इतना कि "कोई इन्सान घुट घुट
कर मर जाएगा यदि उसके जीवन से …मनफ़ी हो जाये. "
ईवा के हाव भाव
से लग रहा था कि उसको मार्था से यह सुनकर ख़ासा अफ़सोस हुआ है .... और वह मार्था के
कुछ और खुलासा करने की उम्मीद कर रही है
.... आगे न वह कुछ बोली, न उसकी उम्मीद पूरी हो पायी.
"संग … साथ … नजदीकी "
मार्था ने अधूरा वाक्य पूरा किया और ऐसा करते हुए उसके चेहरे पर संतुष्टि का भाव
साफ़ उभर आया. उसने ईवा की ओर इस तरह देखा जैसे अभी आगे उस से कुछ और पूछने जा रही
हो … पर लगता है एकदम से उसका मन बदल गया
और उसने सिर्फ यह कहा : "ईवा, मैं इस वक्त सेक्स की बात नहीं कर रही हूँ … या यह कह लो कि
सिर्फ और सिर्फ सेक्स की बात नहीं कर रही हूँ … मैं दर असल संग, साथ, नजदीकी की बात कर रही हूँ ……
एक आलिंगन … एक छुअन … बस इतना काफ़ी है."
यह कहने के बाद
वह कुछ पल को ठहरी, और हलकी सी मोहक हँसी के साथ मार्था ने अपनी बात पूरी की : "ठीक है … चलो मान लो कि इस समय मैं सेक्स की ही बात कर रही हूँ."
ईवा को मार्था
की बातें सुनकर अचानक हँसी छूट गयी, हांलाकि अपने इस बर्ताव पर उसको अचरज नहीं हुआ
.... पूछा : "इस मसले पर जेम्स की क्या राय है ?"
मार्था यह सवाल
सुनकर भड़क गयी,तमक कर बोली :"भाड़ में गया उल्लू का पट्ठा …जेम्स."
मार्था जब गुस्से में होती है तो जाने क्यों वह अपनी उम्र से ज्यादा की दिखने लगती
… और जैसी है उस से कम सुन्दर भी … उसको शायद इसका एहसास है क्योंकि गुस्सा आने पर
वह अपना माथा जान बूझ कर नीचे झुका लेती है. वैसे ही सिर झुकाये हुए … थोडा ठहर कर … मार्था बोली :
"मुझे अच्छी तरह मालूम है ईवा कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है .... यह
मुझे कहीं नहीं ले जायेगा"
यह बोलते हुए मार्था ने अपना माथा ऊपर उठाया, उसके चेहते पर निश्चय और सन्तुष्टि के मिश्रित भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे: " बस ये सब कुछ यार ही हो गया .... अचानक … बगैर किसी सोची समझी योजना के....हमारे बगैर कुछ किये, बस यूँ ही. "
यह बोलते हुए मार्था ने अपना माथा ऊपर उठाया, उसके चेहते पर निश्चय और सन्तुष्टि के मिश्रित भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे: " बस ये सब कुछ यार ही हो गया .... अचानक … बगैर किसी सोची समझी योजना के....हमारे बगैर कुछ किये, बस यूँ ही. "
मार्था की बातें
सुनकर ईवा को समझ नहीं आया कि जवाब में कहे तो क्या कहे .... हाँ, कभी पहले उसकी
कही हुई यह बात जरूर उसको इस मौके पर याद
आ गयी कि जेम्स वैसे है तो बहुत घुन्ना और शातिर , पर उसको को इस बात की कोई खबर हो ऐसा लगता नहीं.
वह बड़े रसूख वाला आदमी है और उसके हाथ बहुत दूर तक पहुँच सकते हैं … कहीं तक भी वह
जा कर अपना लक्ष्य हासिल कर सकता है ,कीमत चाहे जो भी
अदा करनी पड़े. मार्था की जेम्स के बारे
में कही बात इस वक्त ईवा को मैट पर भी एकदम सटीक बैठती हुई दिखाई दी … अक्षर शः सत्य.
ऊपर से देखने पर सीधे सादे और चिकने चुपड़े, पर साथ वाले के
प्रति पूर्णतया संवेदन शून्य और निर्मम. … किसी को कानों कान खबर न हो और दूर तक का हिसाब
किताब देख कर षड्यंत्र के जाल बुन कर पल
भर में इकतरफ़ा और क्रूर फैसले ले लेने
वाले लोग, जिनके जीवन में कभी न बदलने वाले दकियानूसी मूल्यों से साधा गया सिर्फ और
सिर्फ उनका इकलौता हित होता है … बाकी दुनिया गयी भाड़ में.
जेम्स को जैसे
ही इस अफ़ेयर का पता चलेगा वह बड़ा सा कसाई वाला छुरा लेकर मार्था और उसके प्रेमी को
सड़क पर दौड़ाने से तो रहा …और भी बेहतर तरीके उसको मालूम हैं --- कानूनी
तरीका, हो सकता है --- जिस से वह उन दोनों का इस भरी दुनिया में जीना पल भर में दूभर कर सकता है.
मार्था मुस्कुरायी
.... वह अपने ख्यालों में गहरे कहीं खोयी हुई थी. .... "मुझे अच्छी तरह मालूम
है ईवा कि इस से मेरे जीवन में कोई बदलाव आ जाएगा ऐसा बिलकुल नहीं है" यह
प्रकट रूप में तो वह ईवा को सम्बोधित कर के कह रही थी, पर जाहिर है खुद
से ज्यादा मुखातिब थी. यह कहने के बाद कोई
एक मिनट वह चुप रही, फिर कहा : "जानती हो ईवा, जीवन जीने को सिर्फ एक बार ही मिलता
है....दुबारा नहीं …… बोलो ,क्या यह सच नहीं ?"
ईवा ने अपना माथा हिलाया और उठ खड़ी हुई ....
जैसे अचानक उसको कोई काम याद आ गया हो. उसको भली प्रकार मालूम था कि मार्था को
उसका बीच में से ऐसे उठ जाना नागवार गुजरेगा, पर उसके लिए अब वहाँ और बैठना मुमकिन नहीं था
.... उसको घर से बाहर निकलना ही होगा … उस घर से जो मार्था के पूर्वजों का था और वे
उसकी सारी बातें सुन रहे थे …… वह उस क्षण मैट की स्मृतियों से भी मुक्त होने
को व्याकुल हो गयी थी… कल्पना करने लगी कि जैसे ही मैट को मार्था के
अफ़ेयर का पता चलेगा, उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी ?
और तो और वह क्या सोचेगा जब उसको आगे यह पता चलेगा कि ईवा को मार्था के अफ़ेयर के बारे में पहले से सब कुछ पता था. ईवा ने अपना ग्लास उठाया और किचेन के सिंक में रखते हुए बोल पड़ी :"हाय राम, जरा घड़ी की ओर तो ताको .... कितना समय हो गया. " यह कहते हुए भी ईवा को अपने इस अजीबोगरीब और अशिष्ट बर्ताव का पता था. उसने पलट कर मार्था को देखा .... मन में कहीं उसको ऐसा करते अफ़सोस हो रहा था, पर वह वास्तव में बुरी तरह खीझ गयी थी … हो सकता है इसकी वजह यह रही हो कि वह इस दुराव छुपाव के खेल की भागीदारी से बचना चाहती हो … या यह कि वह अपने मन को संग साथ नजदीकी जैसे भावों और अफेयर की परत दर परत बारीकियों के झमेलों से दूर रखना चाहती हो … या इन दुर्बल करने वाले भावों से पूर्णतया मुक्ति चाहती हो.
उसकी बातों का
मार्था ने बुरा नहीं माना, पर वह चौंक जरूर गयी …… "तुम्हें कहीं
जाना है क्या ईवा ?" उसने पूछ ही लिया.
"सॉरी, मुझे बस.... मैं
चर्च में बेल रिंगिंग के लिए लेट हो जाऊँगी मार्था." ईवा ने कहा और अपनी
नजरें दूसरी ओर फेर लीं … पर उसको यह समझ नहीं आया कि इसमें ऐसी क्या बात
थी कि अचानक उसकी आँखों में आँसू छलक आये --- इतना ही नहीं, अंदर से बाहर
निकलने को जोर लगाती जबर्दस्त रुलाई को रोकने के लिए उसको भरसक जोर लगाना पड़ा …… यदि वह रुलाई
उसके रोके न रूकती और फूट पड़ती तो कितने
शर्म की बात हो जाती.
पर मार्था थी कि
उसके चेहरे के भाव बिलकुल नहीं बदले .... जैसे भाड़ में गयीं उसकी अपनी परेशानियाँ, अभी इस पल तो
ईवा के प्रति उसकी जवाबदेही सबसे पहले थी. वह बोली : "सॉरी ईवा…मुझे अपने इस
मसल का पिटारा इस तरह तुम्हारे सामने फैलाना नहीं चाहिए था .... मुझसे शायद गलती
हो गयी. " फिर उसने अपने गिलास की ओर देखा, लगभग खाली हो चुका था. वह दुबारा अपनी जगह बैठ
गयी …उदास सी मुस्कुराहट मार्था के चेहरे पर छा गयी.
"कुछ राज
ऐसे होते हैं ईवा जिन्हें राज ही रहने दिया जाये तो अच्छा होता है . "मार्था लगभग फुसफुसाते
हुए बोली.
ईवा ने असहमति
में सिर हिलाया ,कहा : " ऐसा नहीं है मार्था .... मुझे लगता है तुम्हें इससे ख़ुशी बेशक मिलेगी .... तुम्हें अच्छा लगेगा.
"
यह बात सुनकर
मार्था की बेसाख्ता हँसी छूट गयी ,"पर मुझे इसका
भरोसा नहीं हो रहा ईवा "…य़ह कहते कहते
उसकी आवाज़ में रुखाई का भाव आ गया. वह एकटक ईवा की और निहारती रही ,फिर अपना सिर
मोड़ते हुए दुबारा हँस पड़ी :"मुझे शक है ईवा कि इस से हममें से किसी को भी कोई
ख़ुशी मिल पायेगी .... सब के सब दुःख ही पायेंगे."
मार्था ने यह सब
निष्कर्ष इतने धड़ल्ले से निकाल लिया कि ईवा को उनका विश्लेषण करने का मौका ही नहीं
मिला .... मार्था भी यह सब कहते हुए अफ़सोसज़दा नहीं लग रही थी , "चलो ईवा, अब तुम यहाँ से
निकलो. "
पल भर को मार्था
ठिठकी और वहाँ से बाहर निकलने के लिए मुड़ती ईवा को निहारती रही. उसको फिर से हँसी
आ गयी … उसने गिलास थामे हुए अपनी बाँह ऊपर उठा ली.
"अब चलो …जाओ ईवा .... एकदम अभी इसी पल. " यह कहते हुए
मार्था के स्वर में न तो मजाकियापन था और न ही हताशा का भाव. उठ कर उसने अपने गिलास में दुबारा वाइन उड़ेल
ली.
"और ईश्वर
हमारे ऊपर मेहरबान बना रहे … हम सब के ऊपर. " बाहर निकलने के लिए कोट
पहनते पहनते ईवा बोली.
आनन फानन में
चर्च पहुँच कर ईवा ने देखा कि क्लब के बाकी सारे लोग पहले ही आ चुके थे …पर वह इतनी लेट
भी नहीं हुई थी जितने का उसको अंदेशा था, और सब उसकी प्रतीक्षा में ठहरे हुए थे …उन्होने घण्टी
बजाना चालू नहीं किया था, सब उसकी
राह देख रहे थे. किसी ने ईवा को
कुछ कहा नहीं ....वैसे भी कभी वे उसकी टोका टाकी
नहीं करते थे. उसकी पहचान उन लोगों
के साथ वहाँ आ कर ही हुई,पहले से कोई वाकफ़ियत नहीं थी .... बस ये था कि
वे सभी समान विचारों वाले लोग थे जो अपनी अपनी इच्छा से इस काम में जुट गए थे … हाँ , उनको एक समानता
समूह में बाँधे हुए थी.
चर्च से बाहर की
दुनिया में वे कहाँ कैसे रहते हैं और क्या करते हैं,वह एकदम से अलहदा मुद्दा था. रिचर्ड ,कैथरीन,ग्रेस, सिमॉन , जॉन : जैसे ही
वे अपने अपने कोट पहनते हैं और स्कार्फ़ गले में डालते है -- वे भिन्न भिन्न लोग
हैं पर ईवा को बिलकुल वैसे ही दिखाई देते
हैं घण्टी बजाने वाले लोगों के क्लब में
जिनके हावभाव और पहनावे की यहाँ आते हुए
उसने कल्पना की थी....ट्वीड के कैप और साइकिल की क्लिप , दीन हीन से
दिखाई देते ,चेहरे की रंगत उड़ी उड़ी, ऊपरी हावभाव से
मन के अन्दर के रहस्यों को दबाते हुए. शुरूआती कुछ हफ़्तों में वह कुछ हैरान परेशान
भी रही --- उसने यह सोच कर क्लब ज्वाइन किया था कि वहाँ जाकर कुछ नए नवेले चेहरे
वाले दोस्त बना पायेगी, पर यहाँ आकर
मालूम हुआ कि क्लब के सदस्यों को नियत समय पर वहाँ एकत्र होने, घण्टी बजाने और
अपने अपने घर लौट जाने के सिवा किसी और बात से मतलब नहीं था.
क्लब के सदस्यों
में सिर्फ़ एक अपवाद हर्ले था -- वह क्लब का
सबसे नया सदस्य था, और व्यवहार में अन्य सदस्यों से अलहदा भी था.
उसके आने पर ईवा को अच्छा लगा था … जवान, अनौपचारिक से कपड़े पहनने वाला, बेहद खूबसूरत और लुभावना … अमेरिका के
इलिनॉय या आयोवा से आया हुआ ,पर ईवा को ठीक ठीक उसके शहर का पता नहीं था.
शुरू शुरू में वह जिज्ञासा वश चर्च में आया .... इस ढंग से चर्च में घण्टी बजाना
उसको विस्मृत हो चुकी पुरातन दुनिया की अनोखी परम्परा जैसा लगा,जैसे गुनगुनी
बीयर हो या पीढ़ियों पहले क्रिसमस के समय
बनाया जाने वाला कोई पारम्परिक स्कॉटिश पकवान …… और यहाँ स्कॉटलैंड में रहते
हुए ऐसे मौकों को देखने महसूस करने के
अवसर हाथ से जाने देना शर्म की बात होती.
उसने क्लब के बारे में सुना तो उसमें शामिल होने की इच्छा जाहिर की, और क्लब के सदस्यों ने भी उसको शामिल करने में कोई कोताही नहीं बरती हाँलाकि उसकी उम्र , बोलने का भिन्न लहजा और अजीबो गरीब जुमले लिखे हुए खूब चटक रंग के स्वेटशर्ट पहनने का शौक क्लब के अन्य सदस्यों से बिलकुल मेल नहीं खाता था. ख़ास तौर पर कैथरीन उसको खूब पसंद करती और अक्सर उसके लिए अपने बाग़ से ताज़े सेब और खाने पीने का ढ़ेर सारा सामान लेकर आती. उम्र की देखें तो वह उसकी माँ जैसी होगी, पर कई बार ईवा को महसूस होता कि कैथरीन की नजरों में सिर्फ मातृत्व भाव नहीं और कुछ भी था. आम तौर पर जैसे अमेरिकी होते हैं, हर्ले भी उसके साथ बड़ी अदब के साथ पेश आता ....
उसने क्लब के बारे में सुना तो उसमें शामिल होने की इच्छा जाहिर की, और क्लब के सदस्यों ने भी उसको शामिल करने में कोई कोताही नहीं बरती हाँलाकि उसकी उम्र , बोलने का भिन्न लहजा और अजीबो गरीब जुमले लिखे हुए खूब चटक रंग के स्वेटशर्ट पहनने का शौक क्लब के अन्य सदस्यों से बिलकुल मेल नहीं खाता था. ख़ास तौर पर कैथरीन उसको खूब पसंद करती और अक्सर उसके लिए अपने बाग़ से ताज़े सेब और खाने पीने का ढ़ेर सारा सामान लेकर आती. उम्र की देखें तो वह उसकी माँ जैसी होगी, पर कई बार ईवा को महसूस होता कि कैथरीन की नजरों में सिर्फ मातृत्व भाव नहीं और कुछ भी था. आम तौर पर जैसे अमेरिकी होते हैं, हर्ले भी उसके साथ बड़ी अदब के साथ पेश आता ....
देखने पर बेहद विनम्र और घनिष्ठ,पर उतने ही निर्विकार भी .... जैसे सामने वाले की बला से, उसके निजी जीवन में जो होना हो होता रहे.
जहाँ तक ईवा का सवाल था वह हर्ले के साथ कोमलता के साथ पेश आती पर बेहद सजगता भी बरतती …सायास एक दूरी भी बनाये रखती. पर अक्सर वह मन ही मन उसके साथ साझा पलों के ख्वाब भी बुनती .... सेक्स नहीं, पर किस ढंग का साथ इसका बहुत स्पष्ट खाका या तस्वीर उसके मन में भी साफ़ नहीं थी .... हाँ ,साथ की ख्वाहिश स्पष्ट जरूर थी. वह पिकनिक हो सकती थी … या लाठोकर के घने जंगलों में साथ साथ लम्बी दूरी तक सैर करना हो सकता था. जब जब भी ईवा ऐसे पलों के बारे में कल्पना करती, ईवा और हर्ले के शरीर कभी एक दूसरे के साथ छूते नहीं --- ऐसा नहीं था कि हर्ले को देख कर उसके बदन में सुरसुरी नहीं उठती पर उसको इधर यह महसूस होने लगा था कि वह खुद ऊपर से चाहे जैसी दिखाई दे मन के अन्दर से वह हद दर्जे की दकियानूस और अंधविश्वासी प्रकृति की है …
इतना ही नहीं वह इस बात की कल्पना करने से डरती बचती भी थी जो उसके मन में हर्ले को लेकर अक्सर ताज़ा हवा के एक झोंके की मानिन्द आया करती थी. उसको अंदेशा था कि जैसे ही वह उनके बारे में तस्वीर बनाना शुरू करेगी , वे असम्भव के बियावान में जाकर कहीं गुम हो जायेंगे
हाँलाकि वह मार्था की कही हुई बातों को अपने ध्यान में आने से रोक नहीं पायी और जब घण्टी तक ले जाने वाले सँकरे और अंधेरे गलियारे में ईवा हर्ले के साथ साथ चल रही थी तब बार बार उसकी निगाहें हर्ले के हाथों पर जाकर टिक जातीं -- और मर्दों से कितने अलग बला के सुन्दर, नाज़ुक और कोमल हाथ हैं.... पर दुर्बल नहीं, किसी पियानो बजाने वाले या डांसर की तरह भरपूर शक्तिशाली. हाथ देख कर जैसे ही उसके मन में जन्म लेती कल्पना अपने साजो सामान का पिटारा खोलने लगी, ईवा ने डर कर निर्ममता के साथ उनपर ठण्डे पानी की तेज़ बौछार कर दी --- उसको लगा हर्ले के बारे में उसका ऐसा सोचना उचित नहीं. हाँ, चंचल उड़नशील मन था कि बार बार हर्ले के उसी ठिकाने पर लौट आता था -- उसकी काली आँखें, चलने का उसका अनूठा ढ़ंग ,उसके हाथों का सलोनापन … ध्यान बँटाने की उसकी भरसक कोशिशें नाकाम हुई जा रही थीं. उन हाथों को ईवा अपने बदन पर महसूस करना चाहती थी … हौले से , भरपूर कोमलता के साथ , शालीनता के साथ
उनमें भारीपन और
कब्ज़े का कोई भाव कतई न हो .... इतने
हल्केपन के साथ जैसे कोई परिन्दा नीचे आ
कर दरख़्त की किसी शाखा पर या शिला पर उतरता है--- पक्का ठिकाना बनाने के विचार से बिलकुल
निरपेक्ष , सिर्फ़ कुछ समय के लिए कन्धा टिकाने को ---- इतने
हौले से कि अगले ही पल उड़ने की नौबत आन पड़े तो मुश्किल न हो.
इन तमाम दिनों
में -- जब चर्च के पूरे आसपास बर्फ की परत दर परत मोटी चादर बिछती रही , ईवा का ध्यान
निरन्तर हर्ले की ओर ही लगा रहा. बेल रिंगर्स इस समाज के जीवन के केंद्र में रची
बसी प्राचीन परिपाटी को पुनर्जीवित करने का यत्न करते रहे, और ईवा यह सोच
सोच कर रोमांचित हुआ करती रही कि अभी एक पीढ़ी ही तो गुजरी है जब गाँव समाज की
सड़कों और मैदानों में जब जब चर्च की घण्टियों की ध्वनि सुनायी देती लोगबाग सुनते
ही यह समझ जाते ये कह क्या रही हैं --- कि
ये पूजा के लिए कह रही हैं, या किसी राजसी विवाह की सूचना दे रही हैं … या युद्ध विराम
की …या कि दुश्मन के हमला करने की बात.
तत्कालीन समाज
में कोई ऐसा नहीं था जिसको घण्टियों की
ध्वनि के अंदर समाहित यह सन्देश समझ न आये --- उस समय का चलन यही था, जीवन शैली यही
थी. पर कहीं इस से ज्यादा भी कुछ था .... कुछ धुनें ज़रूर ऐसी थीं जो सार्वजनिक तौर
पर ऊपर से सुनायी नहीं देती थीं पर कहीं कुछ ऐसे कुदरती प्रतिभा सम्पन्न लोग ज़रूर
बसते होंगे जिनमें उन स्वर लहरियों के अन्दर की धड़कनें सुन सकने की क्षमता होगी ,वे उसको पकड़
सकते होंगे, स्पर्श कर सकते होंगे … एक ध्वनि
के उत्पन्न होने पर दूसरी ध्वनि कैसे प्रतिक्रिया करती है,
या घण्टी बजाते बजाते कोई रिंगर अचानक कैसे ठहर जाता है ---
अनिर्णय के शिकार होकर .... या कि किसी आशंका से सहम कर –
या फिर आसन्न
मृत्यु की कल्पना करते हुए. अभी ,इस पल, घण्टियों की ध्वनियाँ महज़ पृष्ठ भूमि के तौर पर
काम करती लगती हों पर इस मरण शील संसार में कुछ गिनी चुनी रूहें ज़रूर विचरण करती
होंगी जो घण्टी बजाने वाले इन्सानों के मन के अन्दर चल रहे ख़ामोश व्यापार की आहट
एकदम से पढ़ लेती होंगी. यदि ऐसा सोचना सही है तो ईवा भी उनसे कहाँ बच पायेगी …उसके मन के अन्दर कैसी हिलोरें उठ रही हैं इसकी ख़बर
भी उन्हें आसानी से पलक झपकते ही मिल जायेगी .... चाहे उसकी शादी का दिखावटी
झूठापन हो ,हर्ले के बारे में उसके मन के अन्दर चल रही उथल पुथल हो, इन जंजालों से
मुक्त होकर कहीं भाग जाने के कई बार सिर
उठाने वाले उसके अधकचरे ख़याल हों.
घण्टी बजाने के
लिए एक एक कर खींचा गया रस्सा गाँव के आख़िरी छोर पर बैठे किसी बूढ़े बुज़ुर्ग को
ज़रूर यह ज़ाहिर कर देता होगा कि ईवा के मन के अन्दर उस पल क्या भाव पालथी मार कर
बैठे हुए हैं .... या जंगल के अन्दर बनी हुई झोपड़ी में आख़िरी साँस लेती हुई किसी
बुढ़िया की नजरों से कुछ भी छुपा नहीं रह
पाता होगा.... या घण्टियों की ध्वनियाँ समझने में महारत हासिल कोई इन्सान
असहज होकर हाथ में थामी किताब परे रख देता होगा और बदली हुई आवाज़ों की परतें खोलने
लगता होगा … कहीं इनमें से किसी को पता न चल जाये कि उस बेल रिंगर की असलियत क्या है
जिसका अन्तर्मन घण्टियों की इन ध्वनियों
के साथ साथ बह कर बाहर चला आ रहा है. उसको इस स्थिति से खौफ़ होता --- मन का एक छोर
खौफ़ का भाव पैदा करता तो दूसरा सिरा पुलकित आनन्दित भी करता .... बात यह थी कि
कहीं गहरे रूप में उसका मन इस बात की ज़िद भी करता कि एक बारगी वह खुल कर सब कुछ
ज़ाहिरा तौर पर स्पष्ट क्यों नहीं कर देती … कि बेशक वह ऊपर से एक भली और वफ़ादार पत्नी दिखाई देती
हो पर वास्तव में यह निरा ढ़कोसला है ....
सच्चाई उस से एकदम विपरीत है … और प्रकट रूप में वह जैसी दिखाई देती है वैसी है
बिलकुल नहीं .... उसका दिल बार बार ईवा को मजबूर करता कि वह अपनी वास्तविकता उजागर
कर दे … और वह भी अकेले में कन्फेशन बॉक्स के अन्दर फुसफुसाते हुए नहीं बल्कि सबको जोर
जोर से सुनाते हुए अपने मन की बात साहस जुटा कर कह ही डाले.
ईवा चर्च से जब बाहर निकली तब भी बर्फ़ गिर रही थी …हरे भरे पेड़ों को अपने आगोश में लिए हुए .... क्रिसमस के लिए सजी धजी दूकानों में रंग बिरंगी रोशनी जली हुई थी. कसाई और ग्रोसर की दूकान के खिड़की दरवाज़े पर नीले रंग की पट्टियाँ चमक रही थीं. अब ईवा को क्रिसमस से भी घबराहट होने लगी थी ,त्यौहार के नाम पर हर बार की तरह जेम्स और मार्था मिलने घर ज़रूर आयेंगे .... और उसको उनके साथ यह जतलाते हुए बैठना भी पड़ेगा कि उसके और मैट के बीच सब कुछ एकदम सहज सामान्य चल रहा है … गप्पें मारते हुए शराब के दौर में साथ बैठना भी पड़ेगा
खाते पीते हुए मैट जब आदतन उसकी बनायीं मिन्स पाई का मज़ाक उड़ायेगा तब भी उसको किसी हाल में अपना आपा नहीं खोना होगा .... ईवा ने तय कर लिया है कि इस बार वह मिन्स पाई ख़ुद नहीं बनायेगी बल्कि नयी खुली दूकान से खरीद कर ले आयेगी …और खामोशी से इंतज़ार करेगी कि देखें, कोई घर की बनी और बाज़ार से खरीद कर लायी हुई मिन्स पाई में अन्तर कर पाता है या नहीं
बल्कि बेहतर तो यह होगा कि उस दिन वह चुपचाप बिना बताये घर से बाहर निकल पड़े और जंगल में लम्बी सैर कर आए. .... ताज़ा पड़ी बर्फ़ पर अपने कदमों के निशान छोड़ती हुई काफ़ी आगे निकल कर ठहरे ,पीछे मुड़े और वहाँ से उनकी लम्बी रेखा को निहारे -- बचपन में उसके पिता अक्सर ऐसा किया करते थे. यह सोचते सोचते एकबारगी उसको एहसास हुआ कि पिता की मृत्यु के बाद से शायद ही वह कभी जंगल में सैर को आयी हो… या घास के उन प्रशस्त मैदानों में निकली हो गर्मी की शामों में जहाँ पिता उसको फतिंगों के झुण्ड दिखाने लाया करते थे .... उन फतिंगों के अलग अलग नाम पहले तो वे उस स्थानीय भाषा में बताते जिसे ईवा बोलती समझती है ,फिर अपनी मातृभाषा में …… हाँलाकि कई फतिंगे ऐसे भी होते जो सिर्फ़ इस इलाके में होते हैं पिता के छूट चुके देश में नहीं.
"हाय …… कैसी हो ?"
आवाज़ सुन कर ईवा मुड़ी तो पीछे के पोर्च में उसको
हर्ले दिखाई पड़ा …… कोट के बटन ऊपर तक बंद किये, अपनी ऊनी कैप से कान ढँके. ईवा को ध्यान आया कभी
किसी बात में उसने बताया था कि ठण्डे मौसम और बर्फ़बारी का उसको अभ्यास है ,वह ऐसे ही ठण्डे
इलाके का रहने वाला है. उसे लगा हर्ले के अपने शहर के बारे में उसको पता होना
चाहिए था … कि वह हरियाली रहित मैदानी इलाके का रहने वाला है ,या घने जंगली
इलाके का ?
"मुझे लग रहा है जैसे इस बार क्रिसमस पर चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ दिखेगी ",वह बोली …… "पर ऐसे मौसम के तुम शायद अभ्यस्त हो .... वैसे तुम रहते कहाँ हो ?"
"हाँ ,हमारी तरफ़ भी
खूब बर्फ़ पड़ती है .... ऐसी ही, झड़ी की झड़ी "मुस्कुराते हुए उसने जवाब दिया… फिर थोड़ी देर को
चुप खड़ा रहा तो ईवा को लगा जैसे उसके चेहरे पर उसने अचानक कुछ देख लिया हो … स्मृति ,या हो सकता है
घर के प्रति थोड़ा सा क्षणिक खिंचाव. उसको देख कर ऐसा लग रहा था कि उसका मन कुछ कुछ
उलझा हुआ सा है, जैसे कोई गुत्थी बार बार कौंध रही हो पर साफ़ साफ़ दिखायी न दे रही हो समझ न आ
रही हो. हो सकता है हर्ले किसी लड़की के बारे में सोचने लग गया हो. वैसे इस उम्र
में वह किसी लड़की के बारे में क्यों न सोचे भला … सुन्दर कमसिन सी लड़की, इलिनॉय में …या आयोवा में …घने काले केश वाली लड़की जिसकी आँखों पर पढ़ाई के
समय चश्मा चढ़ा हुआ रहे और उसको पहनते ही वह खासी सीरियस दिखने लगे … खूबसूरत, तेज तर्रार … और मज़ाकिया भी …… हर्ले की तुलना
में खूब ज्यादा बोलने वाली लड़की, तभी तो वह उस से प्यार करने लगा होगा …क्या मालूम, इस कारण उस लड़की का ही मन हर्ले पर आ गया
हो.
"क्रिसमस
में तुम अपने घर जा रहे हो ?" ईवा ने जानना चाहा.
यह अप्रत्याशित
सवाल सुनकर पहले तो वह थोडा सकपका सा गया जैसे ऐसा पूछना किसी की निजी ज़िन्दगी में
बिला वजह ताक झाँक करने जैसा और शालीनता के विपरीत हो. .... फिर कुछ सोच कर बोला
:"ओह, नहीं …मैं घर नहीं कहीं बाहर जाने की सोच हूँ .... हो सकता है पेरिस चला जाऊँ. '
"पेरिस ?" ईवा को यह जवाब
बड़ा अटपटा लगा .... उसको लग रहा था कि जाना हो तो त्योहार के इस मौके पर उसको घर
जाना चाहिये … अपने परिवार में, या फिर उस लड़की के पास … नितांत अजनबी लोगों के बीच किसी विदेशी शहर में
क्रिसमस मनाने का आखिर क्या तुक ?वह बोल पड़ी : "सचमुच ?"
हर्ले फिर हँस
पड़ा ,बोला : " मैं भी पक्के तौर पर नहीं जानता … हो सकता है पेरिस, या कहीं और अभी कह नहीं सकता. " यह
कहते हुए उसने पोर्च से बाहर सिर निकाल कर आस पास देखा … बर्फ़ अब भी
गिरती जा रही थी ,बोला : " यह भी सम्भव है कि मैं कहीं न जाऊँ .... यहीं रह जाऊँ. "
ईवा को उसका यह
जवाब बिलकुल नहीं भाया , बोली : " भूल कर भी ऐसा नहीं करना ....
जाना हो तो चले जाओ पेरिस …… वहाँ स्कीइंग करो .... या और भी जो जी में आये
करो .... पर यहाँ बिलकुल मत रहना, त्योहार का समय जो है. "
हर्ले को ईवा की
बेसब्री देख कर हँसी आ गयी पर जैसे ही उसकी नजर ईवा के धीर गम्भीर चेहरे पर पड़ी वह
हामी भरने की मुद्रा में आ गया. ईवा ने मुस्कुराने की भरसक कोशिश की, पर जैसे ही उसको
आभास हुआ कि कुछ बेहद प्रिय वस्तु उस से दूर चली जायेगी उसका मन फिर से भारी हो
गया …
उसको हर्ले पर
तरस आया, आयोवा की उस खूबसूरत और तेज तर्रार लड़की पर भी तरस आया जो अपनी किताबे और
चश्मा थामे ना उम्मीदी में यूँ ही खड़ी खड़ी हर्ले का रास्ता ताकती रह जायेगी. सोच
की इस श्रृंखला के बीच ईवा को अपनी
बेवकूफ़ाना हरकत पर अफ़सोस भी हुआ पर उसने
इस विचार को फ़ौरन झटक कर खुद से परे फेंक दिया .... हर्ले उसके मन के अन्दर के इस
उथल पुथल को शायद भाँप गया था, तभी तो पास आकर हौले से उसने ईवा के कोट की बाँह पर अपना हाथ रख दिया … पर अगले ही पल
एक झटके के साथ हाथ हटा भी लिया, जैसे ऐसा कर के
वह एकाएक खुद ही चौंक भी गया हो ,बोला : " सॉरी, मुझे अभी कहीं
जाना है … अच्छी रहना , ओ के. "
ईवा ने जवाब में
सिर हिलाया, थोड़ी मुस्कराहट उसके चेहरे पर लौटी भी पर हर्ले तो उलटी दिशा में अपने कदम
बढ़ाने लगा था … उस से दूर, बाहर निकलने वाले गेट की ओर, लम्बे लम्बे डग
भरता हुआ … बाहर निकल कर सड़क पर चलते हुए आसमान से गिरती हुई बर्फ़ उसके कोट और ऊनी कैप को
ढँकने लगी थी. इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से ईवा हतप्रभ थी और उसको लगने लगा कि अब इस पल घर लौट जाने के सिवा कोई और उपाय
नहीं था … पर उसका मन था कि किसी भी सूरत में पति के घर लौटने को राजी नहीं था .... सो
काफी देर तक अन्यमनस्क भाव से वह वहीँ पोर्च में खड़ी रही, बर्फ़ भी बिना
रुके जहाँ तक निगाह जाती दूर दूर तक गिरती ही दिखाई दे रही थी. हर्ले चला गया ....
और अंततः निगाहों से ओझल भी हो गया.
ईवा सोचने लगी, अभी अभी तो यहीं पास में खड़ा था, यहाँ से निकल के सड़क पर चलता हुआ भी दिखायी दे रहा था .... इस तरह अचानक गुम कहाँ हो गया. उसको तो यह भी नहीं मालूम कि वह रहता कहाँ है, इतना ही पता है कि गाँव के बाहर किसी ऐसे मकान में रहता हैं जहाँ कुछ और भी लोग रहते हैं .... शायद जंगल पार कर के पश्चिम दिशा में पड़ता है उसका कमरा, यहाँ से आधा मील दूर होगा … हो सकता है ज्यादा ही दूर हो .... एकदम से उसका मन ग्लानि से भर गया कि इस क्रूर मौसम में आखिर उसने अपनी कार में बिठा कर हर्ले को उसके कमरे तक क्यों नहीं छोड़ दिया. पर उसने ही तो बताया था कि ठण्डे मौसम का उसको भरपूर अनुभव है .... और बर्फ़ की मोटी चादर ओढ़ी सड़क पर उसको अपनी कार में बिठा कर छोड़ने जाना ख़तरनाक भी तो हो सकता था … बिलकुल सुनसान रास्ते में सिर्फ़ उसके साथ कार के अंदर, वह भी अंधेरे में बर्फ़बारी के बीच … शायद उसके मुँह से कुछ ऐसा वैसा निकल जाता जिसके लिए जीवन भर उसको पश्चात्ताप करना पड़ता .... कुछ भी तो हो सकता था.
पर यहाँ से निकल
जाने के बाद भी पेड़ों की कतार के उस पार
दूर दूर तक हर्ले का कोई नामो निशान नहीं
.... आखिर कहाँ गुम हो गया .... ईवा के मन
में यह जिज्ञासा इसलिए नहीं पैदा हुई कि दौड़ कर वह हर्ले के पीछे हो लेगी .... या
अपनी कार ले जाकर उसके बगल में रोक देगी और लिफ्ट देकर उसको कमरे तक छोड़ आएगी ....
उसके मन के अंदर लोभ का कोई भाव नहीं था, बल्कि सामान्य जिज्ञासा उत्सुकता मात्र थी. इसी
उत्सुकता ने उसे बाहर बर्फ़ में निकलने पर मजबूर किया और खीच कर बाहर निकलने वाले
गेट तक ले आयी … जैसे कोई बाजीगर उसके ऊपर अपने हाथ की सफ़ाई आजमा रहा हो .... ऐसे दुर्लभ मौकों पर आप वशीभूत
होकर चुपचाप सब कुछ अकल्पनीय होता हुआ
देखते रहते हैं, घटना क्रम की बखिया उधेड़ने नहीं बैठ जाते.ईवा को भी ऐसे ही जादुई सम्मोहन की
अनुभूति हो रही थी, हाँलाकि हर्ले की शक्ल दूर दूर तक नहीं
दिखायी पड़ रही थी ....
जाहिर था
वहाँ उसकी मौज़ूदगी नहीं थी, वह पहले ही वहाँ
से निकल चूका था. क्लब के नया सदस्य भी जा चुके थे, सिवा कैथरीन के जो थोड़ी दूरी पर अपनी कार में
कुछ सामान रखते दिखायी दे रही थी. दुकानों के अंदर भी कोई खरीदार नहीं सिर्फ वहाँ
काम करने वाले लोग ही बचे थे …. ग्रोसर के यहाँ
काम करने वाली लड़की अपने काउंटर से उठ कर आयी थी और खिड़की पर माथा टिकाये हुए बाहर
की बर्फ़बारी निहार रही थी. दिन भर की गहमा
गहमी के बाद कसाई सफ़ेद कोट डाले अब दूकान की सफ़ाई में जुटा हुआ था.
ईवा को लगा जैसे
हर्ले ने सोच समझ कर उसके साथ कोई चालाकी की हो, मन में यह बात आते ही वह एकदम से चौंक गयी --
थोडा घबरा भी गयी --- हर्ले ने आखिर ऐसा क्यों किया होगा ?.... क्या उसको पता
चल गया कि वह उसके बारे में मन ही मन क्या क्या बातें सोचती रहती है ?…… क्या हर्ले ने
उसकी कोमल भावनाओं का मज़ाक उड़ाने के लिए ऐसा किया ?.... या उसको ईवा का यह सब करते
रहना अन्दर ही अन्दर अच्छा लगता है? .... क्या वह भी चाहता था कि ईवा उसको अपनी कार से
कमरे तक छोड़ आये ?
तो फिर उसने ऐसा
खुल कर कहा क्यों नहीं ?हो सकता हो, उनको लगा हो ईवा एक शादीशुदा औरत है और वह खुद ठहरा एक परदेसी .... पर बात चाहे जो भी हो उन गुज़र चुके पलों में जो
कुछ भी हुआ वह बड़ा बेतुका था .... एकदम से बेवकूफ़ाना. पर कड़वी सच्चाई थी कि हर्ले
ईवा के वज़ूद को भूल कर वहाँ से निकल कर आगे बढ़ चुका था ,बर्फ़ की दूर दूर तक फैली चादर को धता बताता हुआ---
बर्फ़बारी का अभ्यस्त एक अदद नौजवान अपने कमरे की ओर जा रहा था जहाँ से उसकी सूरत
दिखाई नहीं देगी, चाहे ईवा कितनी भी कोशिशें क्यों न कर ले.
यह बात सोलह आना
सही है, ईवा ने अपने मन को तसल्ली देने की कोशिश की …… फिर भी उसकी आँखें थीं कि
सड़क पर उधर ही लगी रहीं , इस बावली उम्मीद में कि शायद हर्ले आगे जाकर कुछ सोचे और
वापस लौट आये … और यह भी हो सकता है कि उनके बीच चल रही अधूरी छूट गयी बातचीत दुबारा शुरू हो
जाए … हर्ले ने उसके चेहरे पर जरूर कुछ कुछ ख़ास देखा है, पढ़ा है ....
सिर्फ़ एक बार नहीं ,शुरू से ही … और निरन्तर.
ईवा गेट पर
यथावत खड़ी रही … उसके कोट ,चेहरे और हाथ पर बर्फ़ की परतें गिरती ठहरती रहीं, हाँलाकि ठण्ड
इतनी ज्यादा थी कि शरीर के अंग प्रत्यंग यूँ भी संज्ञा शून्य हो रहे थे … सभी
प्रतिकूलताओं को परे धकेल कर वह वहाँ खड़ी टुकुर टुकुर ताकती रही, इस आशा में कि
कहीं कुछ असोचे समझे बदलेगा ज़रूर …उसका मन
था कि बार बार कहता धीरज रखो ईवा ,कुछ भला घटना अवश्यम्भावी है. सोच का यह अबाध सिलसिला चल ही रहा था कि अचानक एक जानी पहचानी कार वहाँ
से गुजरी .... ईवा की नजरों से बहुत धीमी
रफ़्तार से रेंगती हुई चल रही कार की ड्राइवर सीट वाली खिड़की बच नहीं सकी ,ऐसी बर्फ़बारी
में भी उसका शीशा नीचे गिरा हुआ था. खिड़की
खुली होने की वजह से ईवा मार्था को फ़ौरन
पहचान गयी ,उसके माथे पर बर्फ़ के फाहे गिरे हुए थे …
मार्था बड़ी
बेकली के साथ चर्च की ओर टकटकी लगा कर देखे जा रही थी. पल भर को ईवा खीझ गयी, उसको लगा मार्था
उसको ढूँढने चर्च तक आयी है. … फिर भी बगैर कुछ सोचे समझे ,इस सम्भावना को
भी दर किनार करते हुए कि अपने अफेयर वाली बात में मार्था फिर से उसको घसीट सकती है --- ईवा ने मार्था की ओर अपनी
बाँहें लहराईं, उसे बुलाया .... एक बार , दो बार … बार बार… पर मार्था का
ध्यान उस ओर नहीं गया. बिलकुल उसी क्षण ---- जहाँ
वह खड़ी थी उस से बाँयी ओर, मामूली
दूरी पर --- एक विशालकाय वृक्ष की काली छतरी से निकल का एक परछाँई बाहर
निकली और तेज क़दमों से सड़क पार कर गयी.
ईवा को उसके
चलने के ढंग से एकदम से लगा जैसे वह
परछाँई को जानती हो … शुरू में तो उसको ध्यान नहीं आया कि कैसे --- और ऐसा होना बहुत स्वाभाविक भी
था--- पर पलक झपकते कार का पीछा करती हुई
वह काली परछाँई हर्ले में तब्दील हो गयी, … दूसरी ओर का गेट खोल कर परछाँई कार के अन्दर
सामने वाली सीट पर बैठ गयी, … ईवा को उसके हाव भाव देख कर समझ आ गया कि परछांई
पहली बार वहाँ नहीं बैठ रही थी बल्कि उसकी कार से पुरानी वाकफ़ियत है. उसके
बैठते ही कार आगे चल पड़ी, गाँव से बाहर
पश्चिम दिशा की ओर …उधर तो बर्फ़ की परतें और भी गहरी होंगी .... समय
भी रात का ,घने अंधेरे का .... सफेदी की मोटी
चादर पर सड़क दिखाने वाला कोई निशान भी तो
नहीं है उधर.… हाँ ,कुछ दूर तक टायर के छोड़े हुए निशान
मिलेंगे,बस … उसको पार करते ही सब कुछ सफेदी के समुन्दर में
समा जाएगा.
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यादवेन्द्र
पूर्व मुख्य वैज्ञानिक
सीएसआईआर - सीबीआरआई , रूड़की
पता : 72, आदित्य नगर कॉलोनी,
जगदेव पथ, बेली रोड,
पटना - 800014
मोबाइल - +91 9411100294
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-10-2018) को "दिन का आगाज़" (चर्चा अंक-3140) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर अनुवाद।
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