कथा-गाथा : बारिश के देवता : प्रत्यक्षा

























(आभार के साथ The Accountants Office by Mike Savad)


प्रत्यक्षा की कहानी ‘बारिश के देवता’ का चयन २०१८ के ‘राजेन्द्र यादव हंस कथा सम्मान’ के लिए वरिष्ठ कथाकार उदय प्रकाश द्वारा किया गया है. हंस में प्रकाशित कहानियों में से ही चयनित किसी कहानी को यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष दिया जाता है. प्रत्यक्षा को इसके लिए समालोचन की तरफ से बधाई.

कथा-आलोचक राकेश बिहारी समकालीन हिंदी कथा-साहित्य पर आधारित अपने स्तम्भ, ‘भूमंडलोत्तर कहानीके अंतर्गत आज इसी कहानी की विवेचना कर रहे हैं. यह इस श्रृंखला की बीसवीं कड़ी है.  यह कहानी एक अकाउंटटेंट के आस-पास घूमती है जो भूमंडलीकरण के बाद पैदा हुआ नव सर्वहारा लगता है. राकेश ने इस विवेचना में इस पेशे की बारीकियों को भी ध्यान में रखा है.




बारिश  के देवता                          
प्रत्यक्षा 




गातार बारिश हो रही थी. झमझम. फोन की घँटी बेतहाशा बजती है.

हलो हलो ?
हलो डॉक्यूमेंटस नहीं मिले.. कोई उधर से चीख रहा है
भेजा था तीन दिन पहले, रा स कुलकर्णी पियून के हाथ से बिल के गट्ठर लेता, कँधे से सरकते फोन को रोकता हकलाता है.

बाहर बारिश तेज़ है. ऐसबेस्टस की छत से पानी चूने लगा है. बिल का बंडल मेज़ पर पटकता, एक पाँव से डस्टबिन चूते पानी के ठीक नीचे ठेलता रा स नाक सुड़कता है. लालसा से दफ्तर के उस इलाके को देखता है जहाँ कुछ सूखा है. ये बारिश वाला इलाका है. हर जगह पानी ही पानी. बॉस पीले रेनकोट में सूखा घूमता है. सुना है किसी केस में उसने अपने बॉस को कभी फँसाना चाहा था, तभी से इस चेरापुँजी दफ्तर में उसका तबादला हुआ था. तब से यहीं है.

सिर्फ पीला रेनकोट ही नहीं, उसका पी ए एक पीली छतरी भी ताने उसके पीछे चलता है. यहाँ इस जगह में हर चीज़ बारिश के हिसाब से तय होती है. मसलन जो ऊपर हैं उन्हें दफ्तर में सूखा इलाका मिला हुआ है, कॉलोनी में सूखे घर मिले हुये हैं. उनके जूते खास बाहर से मँगाये जाते हैं जो उनके पैरों को कीचड़ और उबलते पानी में सूखा रखते हैं. इस जगह सूखा रहना बड़ी नियामत की चीज़ है.

रा स कुलकर्णी जूनियर अफसर है, जूनियरमोस्ट. उसकी सीट धमधम बरसते पानी वाली जगह है. उसका घर कीचड़ से घिरे सेक्टर में है. रा स कुलकर्णी यहाँ पनिशमेंट पोस्टिंग पर आया है.

वैसे दफ्तर के लोगों को हैरानी है कि इस पाँच फुट दो इंच सिंगल हड्डी काया ने ऐसा क्या किया था उसे ये तमगा मिला. कोई पूछता है तो रा स कुलकर्णी नाक सुड़क कर रुमाल में चेहरा छुपा लेता है. आजकल उसके साईनस का प्रॉब्लेम अक्यूट हो गया है.

बाहर अब भी घमासान बारिश हो रही है. बाहर भीतर पानी हरहर ज़मीन पर नाले पनाले सा बह रहा है. कुलकर्णी ने जूतों सहित अपने पाँव कुर्सी पर कर लिये हैं, फाईल पर काम चल रहा है.


(एक)

इधर कुछ दिनों से उसने नोटिस किया है. अपने शरीर का मुआयना करते देखा कि शरीर के सब बाल एकदम महीन हो गये हैं. त्वचा साफ पीली. पानी में डूबी पीली त्वचा वाली मछली. उसका मन भी बारिश में डूबा मेंढक हो गया है. बस बड़ी बड़ी आँख खोले लकड़ी के फट्टे पर चुपचाप बैठा मन.

पत्नी खाना बनाती है, परोसती है तो रा स कुलकर्णी चुपचाप खा लेता है. पत्नी लगातार शिकायत करती है. रा स कुलकर्णी चुपचाप सुन लेता है. पत्नी रात के खाने के बाद उसे ज़बरदस्ती घूमने ले जाती है. बकायदा बाँह पकड़ कर. वो किधर को भी टहलने निकलते हैं, रा स कुलकर्णी पाता है कि अंत में वो उसी ढूह पर पहुँचे हैं जहाँ से सूखे इलाके के क्वार्टर्स अपने सूखेपन में जगमगाते खड़े हैं. पत्नी लम्बी साँस भरकर कुलकर्णी की बाँह से टिक जाती है. पूछती ह, तुम्हें कब अलॉट होगा इनमें से एक क्वार्टर ?
र स कुलकर्णी की दुबली काया ज़रा झुक जाती है. कँधे सिकुड़ जाते हैं. उसे भय होता है कि जूते की छेद से कीचड़ उसके पैरों में रिस रहा है, बदबूदार, ठंडा, सड़ा हुआ कीचड़. उसके पैर की उँगलियाँ किसी भयानक जुगुप्सा में अंदर मुड़ने लगती हैं. पलट कर किसी बेचैन हबड़ तबड़ में घर भागता है. पत्नी भुनभुनाती पीछे छूट जाती है. जूते खोलकर रा स कुलकर्णी पैरों को दस बार पोंछता है, फिर जूते साफ करता है. रगड़ रगड़ कर कीचड़ धोता है. सब तरफ एक नमी का वास है. अपने दुर्गंध में भारी.



(दो)

रा स कुलकर्णी का बायोडेटा भी उसकी तरह संक्षिप्त है. उसकी उम्र उनतीस साल है. कद पाँच फूट दो इंच. शरीर दुबला, बाल महीन, मुलायम. महीन करीने से कतरी हुई मूँछ की बारीक रेखा. गोल बड़ी आँख चश्मे के पीछे तेज़. दायें घुटने पर बचपन की चोट का निशान. नौंवी कक्षा में एकबार स्मॉल पॉक्स का शिकार. कुछ छोटे चकत्ते प्रसाद स्वरूप नाक के गिर्द. मैट्रिक करते वक्त पिता का देहावसन. आई सी डब्लू ए इंटर करके नौकरी में उन्नीस साल में घुसा. पाँच साल लगातार फाईनल में स्ट्रैटेजिक मनेजमेंट एंड मार्केटिंग और टैक्सेशन का पेपर उसे रुलाता रहा. फिर छठवें साल आई सी डब्लू ए की डिग्री और अफसर की नौकरी. तुरत उसके बाद सुकन्या से विवाह. नौकरी और विवाह के साथ ही साईनस से भी नाता जुड़ा. साईनस इज़ अ सैक ऑर अ कैविटी इन एनी ऑरगन ऑर टिशू, ये जान लेने के बावज़ूद उसकी तकलीफ बढ़ती रही. एक महज कैविटी कैसे इतनी तकलीफ पैदा कर सकती है का तार्किक आधार उसकी तकलीफ को कम करने में सक्षम नहीं हुआ.

तब से वो लगातार सुड़कता है. हाथ में रुमाल हमेशा. डॉक्टर ने बताया था नाक में पॉलिप है. सेकंड ओपिनियन लिया फिर थर्ड. आखिर ऑपरेशन कराया. पन्द्रह दिन मेडिकल लीव. उसके बाद दफ्तर में हर किसी के पूछने पर, ठीक हो अब कुलकर्णी, वह सर डुलाता. हाथ में दबा मसला रुमाल पास्ट टेंस हो गया. 


(तीन)

तीन महीने बाद सुबह उठते ही पहली छींक आई. एक दिन पहले दफतर में शर्मा जी ने बुलाया था. फाईल पकड़ाते हुये कहा थादेख लो रायलसन की बिड भी है..

रा स कुलकर्णी फाईल लेकर चुपचाप अपने केबिन में आ गया. दस बिड थे. रायलसन का चौथा था, इन ऑर्डर ऑफ प्राईस. उसे समझ नहीं आया, शर्माजी ने सिर्फ रायलसन का नाम क्यों लिया.

रा स कुलकर्णी इस विभाग में नया नया आया है. इसके पहले सैलरी डिपार्टमेंट में था. दस लोगों की भीड़ में एक. बड़ी सुरक्षा थी भीड़ में. इंक्रीमेंट लगाना, महंगाई भत्ता फीड करना, कैंटीन सब्सिडी किसी का उड़ा देना; सब सामूहिक निर्णय होते. जिसका उड़ता उसको फिर बहाल भी कर दिया जाता. किसी की जान नहीं जाती. बस एक सबक सिखाना था साले गुप्ता को..बहुत हल्ला कर रहा था..ऐसा कुछ महाजन उसका बॉस बोलता. रा स कुलकर्णी ये सुनकर पीला पड़ जाता. किसी को क्या बेवज़ह तंग करना ? फिर सर झुका कर गुप्ता के डॆटाबेस में होम लोन रिकवरी पाँच हज़ार पाँच सौ छप्पन रुपये चढ़ा देता. उस दिन उसे छींक के दौरे पड़ते. नाक लाल हो जाती. रूमाल भीग जाता. रात पत्नी हमदर्द का लाल तेल छाती पर मलती, दोनों नथुनों में बनफ्शा का तेल दो बून्द एहतियात से गिराती. तब जाकर रा स कुलकर्णी को चैन आता. नींद आती. नींद में गुप्ता कटारी लेकर पीछे दौड़ता.


दिन में सैलरी स्लिप बँटते ही गुप्ता हाज़िर हो जाता, दहाडता, आग उगलता..
मेरी होमलोन रिकवरी कैसे की ?
क्यों सर ? रा स कुलकर्णी अपने जूतों में थर्राता पूछता.
 इसलिये कि मैंने आजतक कोई लोन नहीं लिया. होमलोन तो दूर की बात है

महाजन मुलायमियत से कुलकर्णी को रेस्क्यू करता गुप्ता को बाँहों से घेर कर अपने केबिन तक ले जाता

आईये बॉस चाय पीजिये. फिर रा स कुलकर्णी को आवाज़ लगाता

यार कुलकर्णी ज़रा चन्दर को बोल दे दो कप चाय के लिये.

फिर मुड़ कर कुलकर्णी को आँख मारता और गुप्ता की तरफ मुखातिब होता कहता,

लड़कों से गलती हो जाती है कभी कभी. चिंता न करें अगले महीने सही हो जायेगा. अभी आपके सामने कह देता हूँ. फिर ज़ोर की कड़क आवाज़ में कुलकर्णी को हिदायत देता

देखो अगले महीने ये गलती न हो. और हाँ इस महीने जो रिकवरी हुई उसे ज़रूर पे कर देना नेक्सट मंथ.

नेक्सट मंथ ? अरे महाजन बॉस ये तो अभी दिलाओ यार. पूरे महीने का टाईट बजट रहता. कुछ करो.

कुलकर्णी की पहली छींक शुरु होती. छींकते छींकते कहता, सर पेमेंट वाउचर बना दूँ ?

महाजन गुप्ता को इस आश्वासन से विदा करता कि अगले महीने पे हो जायेगी. फिर कुलकर्णी का बुलाहटा होता.

यार तुम ट्रेन नहीं हो रहे. इसी तरह तुरत पे करना था तो काटना क्यों था ? ज़रा समझा करो न.

फिर मुखर्जी को बुलाता. चतुर शातिर मुखर्जी को हिदायत दी जाती, कुलकर्णी को सिस्टम समझाओ.

अगले महीने कुलकर्णी कहता, सर वो गुप्ताजी की रिकवरी तो बन्द करनी है न ?
महाजन बिना फाईल से सर ऊपर उठाये उवाचता,  नहीं इस महीने नहीं.

उस रात रा स कुलकर्णी को छींक का ज़बरदस्त दौरा पड़ता. पत्नी तुलसी का काढ़ा बनाती, गोल केतली से भाप लिवाती, अमृतांजन बाम मलती, लगातार बोलती.

इस पानी से तुम्हारा साईनस ठीक होने से रहा. पता नहीं कब सूखे क्वार्टर हमें मिलेंगे. रशीद और सफिया अगले हफ्ते शिफ्ट हो रहे हैं. ढूह के पार जो पहला क्वार्टर है न वही अलॉट हुआ है. ठीक है, एकदम सूखा नहीं फिर भी इतना भी पानी नहीं. मुझे कह रही थी कि दो जोड़ी अच्छी जूते हैं तुम चाहो तो ले लो, हमें अब इतनी ज़रूरत नहीं. जूते सचमुच अच्छे हैं. उनसे तलवे सूखे रहते हैं. मेरे पैरों में नमी की वजह से बिवाई फट गई है. लगातार दर्द रहता है. तुमसे कहा था, पुराने जूते सचमुच खराब हो गये. घर में भी चलते वक्त पानी भीतर रिसता है, पर तुम कुछ कहाँ करोगे ? घर का तो कुछ किया नहीं जूते क्या करोगे ?

उसकी आवाज़ का सुर ऊपर उतरोत्तर जा रहा है. रा स कुलकर्णी कोशिश करके अपनी आँखें मूँद लेता है. रशीद, महाजन की लिस्ट के हिसाब से लोगों के टूर और मेडिकल बिल्स में खूब कटौती करता है. जहाँ बॉस कहता है वहाँ नियम के विरुद्ध भी पेमेंट करता है. कुलकर्णी के टोकने पर ढिठाई से हँसता है, अरे कुछ गड़बड़ भी हुआ तो क्या ? अपने एम्प्लॉयी हैं, भागेंगे कहाँ. जब महाजन यहाँ से जायेगा तब सब एक्सेस पेमेंट रिकवर कर लेंगे, बस. दो और दो चार ही तो होते हैं बॉस.

रा स कुलकर्णी सोचता है, हाँ चार ही तो होते हैं. फिर उसका हिसाब गड़बड़ क्यों हो जाता है.

तीसरे महीने महाजन के मना करने के बावज़ूद सारी रिकवरी पेमेंट में डाल देता है. महाजन को कोई खबर नहीं. सैलरी स्लिप बँटने के बाद गुप्ता आता है.

थैंकयू बॉस..

अगले दिन रा स कुलकर्णी का तबादला दूसरे विभाग में हो जाता है. रात साईनस का अक्यूट अटैक पड़ता है. माथे, चेहरे पर सब चीज़ जाम. सोच, बुद्धि पर भी जाम. बाहर पानी धमधम बरस रहा है. इतना पानी जैसे सब बह जायेगा. धरती, आकाश, ये घर, ज़मीन, आदमी औरत जानवर सब. बस रा स कुलकर्णी के चेहरे की भीतर जितनी साईनस कविटिज़ हैं वहाँ कुछ भी नहीं बहता. बाहर के बहने का छोटा सा विरोध दर्ज़ होता है यहाँ, कुलकर्णी की काया के भीतर. कुलकर्णी चाहे कितना भी विरोध कर ले इस उपद्रव का, उसकी दुबली काया इस विध्वंस के लिये तैयार नहीं. शरीर तकलीफ में दोहरा होता है, सर फटता है, कोई मोटी सुरंग माथे के भीतर खुदती है, कोई चौकन्नी बिल्ली पूँछ उठाये फिरती है. भीतर भीतर बाहर के प्राकृतिक आपदा के रोक में शरीर के सब द्रव अपनी गति धीमी करते हैं. अंतत: रा स कुलकर्णी इस शारिरिक आपदा को मोड़ न पाने की स्थिति में अस्पताल पहुँचता है. हफ्ते दिन की सिक लीव के बाद नये विभाग में उसका पदार्पण होता है.

ये नया विभाग, पिछले विभाग के बनिस्पत ज़रा और गीले इलाके में है. यहाँ बॉस की मेज़ के ऊपर छतरी लगी हुई है जिसके कोनों से पानी गिरता, एक गोलाई में छोटे छोटे चहबच्चे बनाता है. कुलकर्णी को बॉस के पास पहुँचने के लिये हमेशा उन चहबच्चों को फलांगना पड़ता है. उसके जूते घिस गये हैं और भीगने पर बास मारते हैं. और इन दिनों वो लगातार बास मारते हैं. कुलकर्णी को सबसे ज़्यादा तकलीफ इस बात की है कि उसके पैर अब हमेशा नम रहते हैं. उसे सूखे पैरों की याद इस शिद्दत से आती है कि उसकी पैरों की उँगलियाँ मुड़ जाती हैं भीतर की ओर, सूखे पन की तलाश में. उसके सपनों में इतना सूखापन होता है जैसे रेगिस्तानों में. नींद में पत्नी के शरीर को टटोलने की बजाय आजकल वह अपने पैरों को टटोलता है सूखेपन की उम्मीदभरी यातना में.



(चार)

कम्पैरिटिव स्टेटमेंट बनाते कुलकर्णी दो बार चेक करता है. रायलसन का बिड चौथा ही है. चाहे जितनी बार जोड़ लो. सारे टैक्सेज़ तीसरी बार कैलकुलेट करता है. एक्साईज़ ड्यूटी, सेल्सटैक्स, वैट, एंट्री टैक्स, सर्विस टैक्स. सारे रेट्स एक बार फिर. फर्गुसन लोवेस्ट है फिर विमकॉन और तीसरे नम्बर पर जॉयस लिमिटेड. बॉस के पास स्टेटमेंट लेकर दिखाता है. शर्मा पूछता है,

इधर रॉयलसन किधर ?
सर रायलसन तो चौथे नम्बर पर है. हम तो पहले तीन बिड ही लेते हैं इवैल्यूयेशन के लिये.
शर्मा चश्मे के फ्रेम के बाहर से उसे घूरता है. फिर साथ की टेबल से अधिकारी को बुलाता है

अधिकारी इसे रूल समझाओ..
सर मैंने रूल के हिसाब से ही किया है. प्रोक्योरमेंट पॉलिसी पढ़ने के बाद. कुलकर्णी की आवाज़ डगमगाती है.

अधिकारी उसे बाँहों से घेर कर चाय पीने ले जाता है.  आज बारिश टिपाटापी ही है. आसमान कुछ हद तक साफ. कैफेटेरिया में एक सूखा कोना तलाश कर दोनों चाय पीते हैं चुपचाप. चाय खत्म होने के बाद अधिकारी पूछता है..
तुम्हें इस नौकरी में कितने दिन हुये ?
कुलकर्णी कुछ अदबदा कर उँगलियों पर जोड़ता, फिर पूछता है,
क्यों ?
इसलिये कि तुम अगर सही तौर तरीके नौकरी के नहीं सीखे तो सुनते हैं एक कोई और जगह है जहाँ ज़मीन तक नहीं दिखती, इतना पानी है. यहाँ तो कम से कम ज़मीन दिखती है.
कुलकर्णी खिड़की के बाहर देखता है, सचमुच पानी के बीच बीच ज़मीन का टुकड़ा.

फिर ? मुझे क्या करना चाहिये ?
रायलसन को लोवेस्ट बनाओ.
कैसे बना दूँ, वो चौथा है, चौथा ही रहेगा
कैसे बनाना है वही तो तुम्हें बुद्धि इस्तेमाल करनी है. हर चीज़ कोई तुम्हें क्यों बतायेगा ? तुम अफसर किस लिये हो ?

रात कुलकर्णी सोचता है, सच मैं अफसर किसलिये हूँ ? पत्नी से पूछता है
सुनो, मैं अफसर हूँ ?
पत्नी खाना बनाना रोक कर कमरे में साड़ी खोंसे आती है
क्या ?
मैं अफसर हूँ ?
तुम्हारा दिमाग बिगड़ गया है ? तुम्हें पता है रसोई में टखने भर पानी है ? मैं मोढ़े पर खड़े होकर रोटी बना रही हूँ, मेरे पाँव की बिवाईयाँ फट रही हैं. जो ग्रीज़ लगाती हूँ वो तुरत पानी से बह जाता है. इन दीवारों में इतनी नमी है कि सूखे कपड़े भी नम हो जाते हैं. मेरी हड्डियों तक में नमी घुस आई है. इस पचीस साल की उम्र में पचास साल जैसी हो गई हूँ और तुम पूछते हो, मैं अफसर हूँ ? पागल हो गये हो तुम, पागल पागल.

कुलकर्णी हताश सोचता है, मेरी परेशानियों का इस घर में कोई हल नहीं. ये औरत सिरफ अपनी बिवाई सोचती है, अपनी फटी हड्डी सोचती है मेरा कुछ भी नहीं सोचती. पत्नी की आवाज़ लगातर रसोई से आती है. उनमें सफिया के जूते, उनका सूखा घर, ढूह के पार की श्रीमती क और श्रीमान च की अकड़, उनके घर को जाते सूखे रास्ते, माँ बाप ने ऐसा ब्याह करके किस्मत फोड़ दी जैसी बात, ब्याह के बाद नये गहने तो दूर एक जोड़ी बढ़िया जूतों पर बात आकर थम जाती है. पत्नी बोलते बोलते थक गई है. नमी सचमुच उसे बीमार बना रही है, जल्दी थका दे रही है.

नींद में डूबने के पहले कुलकर्णी खूब सोचता है. रायलसन को कैसे लोवेस्ट बना दें इसकी जुगत सोचता है, फर्गुसन को सीन से आउट कैसे करें ये सोचता है, कौन सी लोडिंग करूँ कि फर्गुसन की प्राईस रायलसन से बढ़ जाये, सोचता है, रायलसन को इन करने से कौन फायदे में आयेगा, ये सोचता है, मेरे कँधे पर बंदूक चलेगी ये सोचता है, कल मामला विजिलेंस में गया तो मेरी नौकरी गई ये सोचता है और आज अगर शर्मा की बात न मानूं तो आज के आज किसी बदतर जगह पर ताबादला, ये सोचता है, फिर ये सोचता है इतना क्यों सोचता हूँ, फिर ये कि इतना सोचना मेरे साईनस को बढ़ायेगा. पत्नी ग्रीज़ अपने तलुये पर मल रही है. उसका काम खत्म हुआ. अब बस बिस्तर पर लेट जाना है. बायीं तरफ वाली दीवार से नमी पसीज रही है. कुलकर्णी को लगता है कि नमी की कतार धीरे धीरे उसकी ओर रेंगती बढ़ रही है. रात नींद में कुलकर्णी किसी पनियाले नाले में बहता बदबूदार पानी के हौज़ में डूबता, साँस लेते छटपटाता, हदस में डूबता उठता है. बगल में पत्नी बेलौस हल्के खर्राटे लेती, ग्रीज़ से महमहाती निश्चिंत सोई पड़ी है.

सुबह टेबल पर इंटर ऑफिस मेमो पड़ा है. बिड के आकलन के लिये कमिटी गठित की गई है. वित्त से कुलकर्णी है, संविदा से नायर है और इंडेंटिंग विभाग से के मुरली. मुरली का फोन दस बजे आता है

एक मीटिंग कर लें ?
आधे घँटे बाद तीनों बैठते हैं. क्वालिफाईंग रिक्वायरमेंट पर माथा पच्ची की जाती है. फर्गुसन, रायलसन और विमकॉन तीनों क्वालिफाई कर रहे हैं. जॉयस क्वालिफाई नहीं हो रहा है. विमकॉन पर टेकनिकल लोडिंग हो गई है रायलसन अब दूसरे नम्बर पर है.

ड्राफ्ट रिपोर्ट बना ली जाये ? नायर पूछता है. कुलकर्णी चुप है. इस सारे अनालिसिस में रायलसन को कंट्रैक्ट जायेगा ऐसा कुछ नहीं लग रहा. सिर्फ उसके बॉस ने रायलसन की बात की है. नायर और मुरली को इस साजिश की कोई खबर नहीं. मतलब रायलसन से शर्मा ने अकेले पैसा खाया है. कुलकर्णी की छाती धड़धड़ कर रही है. इस डिस्कशन में रायलसन के पक्ष में ऐसा क्या बोल दे कि बाकी दोनों उसको कंसिडरेशन ज़ोन में ले आयें. उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा. दोनों उठ खड़े होते हैं. नायर कहता है, मैं ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार कर के दिखाता हूँ. फिर उसको रिफाईन किया जायेगा.

तीन चार दिन निकल जाते हैं. कुलकर्णी नायर को फोन कर पूछता है, क्या हुआ रिपोर्ट का ?
बॉस किसी दूसरे काम में फँस गया था. आज करता हूँ. शाम को शर्मा कुलकर्णी से पूछता है, कमिटी रिपोर्ट कब देगी ? बिड खुले महीने से ऊपर हुआ.

पर सर कमिटी नॉमिनेट हुये तो सिर्फ पाँच दिन हुये हैं, कुलकर्णी हकलाता है पर तब तक शर्मा फोन पर किसी पार्टी को डाँट रहा है. उसकी सफाई नहीं सुनता है. पर रायलसन की बात भी नहीं करता. कुलकर्णी को एक तरीके की राहत होती है.

रात बारिश अचानक थमी है. कुलकर्णी पत्नी के साथ टहलने निकलता है. गमबूट्स पहने वो पश्चिमी कोने की तरफ निकलते हैं. तालाब में ढेरों कमल के फूल हैं. कुछ देर वहाँ रुकते हैं फिर धीरे-धीरे अचाहे ढूह की तरफ निकलते हैं. आज बहुत परिवार टहलने निकले हैं. सब एक एक करके ढूह पर इकट्ठा होते हैं, कुछ देर वहाँ रुक कर बतियाते हैं, साफ आसमान में तारों की बात करते हैं, पिछले साल की बारिश की बात करते हैं, भीगे पैरों की बात करते हैं, नमी की बात करते हैं, सूखी ज़मीन की बात करते हैं, फिर आसमान के तारों को देखते घर लौट जाते हैं.

सवेरे ठीक साढ़े नौ बजे नायर का फोन आता है. अपने केबिन में बुला रहा है. मुरली पहले से बैठा है. नायर धीमी आवाज़ में राज़ खोलता फुसफुसाता है

एक अनॉनिमस कम्प्लेंट आई है
एक सफेद टाईप्ड कागज़ बढ़ाता है. कुलकर्णी पढ़ता है जिसमें कहा गया है कि फर्गुसन ने फोर्ज्ड डाक्यूमेंटस जमा किये हैं.

किसने कम्प्लेन किया ?
मुरली कहता है, और कौन ? शायद रायलसन ?
कुलकर्णी की हथेलियाँ अचानक पसीज जाती हैं. उसकी छाती में कुछ फँस जाता है.

फिर ? पूछता है.
अनॉनिमस कम्प्लेन पर हम क्यों ध्यान दें ? रूलबुक क्या कहती है.
वही कि ऐसे अनोनिमस कम्प्लेन को डस्टबिन में डालो
फिर डालो डस्टबिन में

नायर चुप है. कागज़ वापस ड्रावर में डाल देता है.
कमिटी को बताना था सो बताया, अब आगे इसका क्या करना है वो सोचना होगा
क्यों सोचना होगा ? रूलबुक कहती है ड्स्टबिन में डालो, तो डालो, सोचो क्यों ?
इतनी हड़बड़ी में कुछ तय करना सही नहीं. सोच लें हम सब फिर बैठते हैं.


दो दिन तीनों सोचते हैं. कुलकर्णी को खेल की पहली चाल साफ दिखाई देती है. शर्मा अब रायलसन की बात नहीं करता. सिर्फ कमिटी कितना देर कर रही है रिपोर्ट सबमिट करने में, की बात करता है.

चौथे दिन तीनों बैठते हैं. नायर कहता है उसने अपने बॉस से डिसकस किया है. उनका कहना है कि फर्गुसन को इस कम्प्लेन के बल पर डिसक्वालिफाई किया जाय.

पर ? अनॉनिमस कम्प्लेन के आधार पर उसके बिड को हम कैसे हटा सकते हैं ?

इसके लिये प्रोसिजरली जो करना है वो कमिटी करे ऐसा इंसट्रक्शन है, नायर सूचित करता है.

अगले दिन नायर एक ड्राफ्ट बनाता है, दोनों को दिखाता है. मुरली चुप है. कुलकर्णी कहता है हम फँस जायेंगे. रूल के खिलाफ कुछ भी किया तो नौकरी जायेगी.

कुलकर्णी इस मसले को अपने बॉस से डिस्कस नहीं कर सकता. उसे बॉस की ऑपिनियन पता है. आजकल शर्मा उसे देख चश्मे के फ्रेम के बाहर से मुस्कुराता है.



(पांच)

कुलकर्णी रात को भयानक सपने देखता है. जेल की सलाखों के, रेगिस्तान में प्यासे भटकने के, बंजर धरती के. इन्हीं दिनों में से किसी एक दिन पत्नी ने कुछ इठलाते और कुछ घबड़ाते एलान किया था कि शायद वो गर्भवती है.

इस महीने दस दिन की देरी हुई है

पत्नी का मासिक हमेशा अनियमित है. ऐसे एलान कई बार कर चुकी थी पहले भी. लेकिन दस दिन पहली दफा हुआ है. रात को सपने से भीगे उठते कुलकर्णी सोई पत्नी के पेट का मुआयना करता है. कोई जीव पनप रहा है जैसा कुछ दिखता नहीं. उसे तो ये भी याद नहीं कि पत्नी के साथ सोया कब था. लेकिन पत्नी कह रही है तो ज़रूर सोया होगा.

अँधेरे में पानी बहने की आवाज़ शिराओं में गूँजती है. ये गलत समय है बच्चे के पैदा होने का. हम उसे सूखी धरती, सूखी हवा नहीं दे पायेंगे. शायद बच्चा ऐसा हो जो गीलेपन के गुणसूत्र लेकर हँसता खिलखिलाता पैदा हो? कुलकर्णी के भयानक सपनों में ये भी जुड़ गया है अब. पत्नी आजकल कमर को हाथों से सहारा दिये चलती है. ऐसा शायद उसने हिन्दी फिल्मों से सीखा है. जैसे प्यार करते वक्त होंठों को दाबकर मुस्कुराना और अश्लील सिसकारी भरना उसने फूहड़ ब्लू फिल्म्स से सीखा है.

कुलकर्णी आईने में जब खुद को देखता है लगता है किसी और को देख रहा है. आईने के पार की जो दूसरी दुनिया है, काश वहाँ सर छुपाया जा सकता.



(छह)
सुबह सुबह दफ्तर पहुँचते ही उसका बुलावा बड़े साहब के कमरे में होता है. बड़े साहब मतलब इस प्रोजेक्ट के हेड. उनका कमरा भव्य है. कमरे के एक कोने में मछलियों का बड़ा टैंक है. साहब कमरे से लगे वाशरूम में है. कुलकर्णी कुर्सी के कोने पर सहमता बैठा है. हाथ में दबा रूमाल पसीज गया है. मछलियाँ एक एक करके टैंक की दीवार के पास आकर उसे देख गई हैं. टैंक की बगल में रखे हैंगर पर साहब का सफेद उम्दा रेनकोट और पतली नफीस छतरी टंगी है. दीवार पर टाउनशिप और दफ्तर की इमारत और पीछे फैक्टरी की रात में ली जगमग पोस्टर है. पोस्टर में इमारत के सामने पानी में बिजली के लट्टुओं की झिलमिल रौशनी किसी सपनीले दुनिया का चित्र है. कुलकर्णी मंत्रमुग्ध देखता है सच और भ्रम के बीच कैसा मायावी फासला है.

साहब मुस्कुराते आते हैं और कुलकर्णी के उठने के उपक्रम को खारिज करते कहते हैं

बैठो बैठो
कुलकर्णी कुर्सी के एज पर टिका है.
तुम ग प्रोजेक्ट के मूल्याँकन समीति में हो ? एक कम्प्लेंट आई है
साहब अपने पाईप को सुलगाते, मेज़ पर रखे कागज़ों के पुलिन्दे को ठेलते फोन उठाते कहते हैं.
मैं चाहता हूँ कि उस निविदा का आकलन नियमों के अनुसार हो. मैं कोई इर्रेगुलारिटी बरदाश्त नहीं करूँगा


कुलकर्णी को लगता है उसकी साँप छुछूँदर की हालत है. साहब वही चाहते हैं जो शर्मा चाहता है ? या फिर फर्गूसन के पक्ष में हैं. चश्मे के भीतर साहब की आँखें साँप की आँखें हैं.

रात नींद में पसीने से तरबतर उसकी साँस फूलती है.

अगले दिन कमिटी मीटींग में नायर कहता है,
हमें कम्प्लेंट डस्ट्बिन में डाल देनी चाहिये. फर्गुसन लोवेस्ट है, उसी को निविदा जानी चाहिये.
क्यों कुलकर्णी बॉस ?
कुलकर्णी को साहब की  पाईप याद आती है, शर्मा की शातिर मुस्कान याद आती है, गीले घर की याद आती है.
कॉरिडॉर से कोई गुज़रा है, ज़रा सा झाँक कर, मुस्कुरा कर,
नमस्ते साहब
नायर मुस्कुराता है, नमस्ते
फिर धीमे कहता है, फर्गुसन का बैजल है
और रायलसन ?

तुम्हें वो पुल की कहानी याद है न. जो सिर्फ कागज़ पर बनती थी.
नायर हँसता है फिर आँख मारता है. खेल के नियम बदल गये बॉस.



(सात)

कम्प्लेंट में लिखा है, फर्गुसन के फर्ज़ी दस्तावेज़ जमा किया है. जिस काम की वजह से वो क्वालिफाई होते हैं वो काम उन्होंने नहीं किया है. किसी पुल का पाईल फाउंडेशन. पुल किसी नदी पर बना है. नदी में पानी है. पाईल फाउनडेशन पानी के भीतर है. फाउंडेशन के काम को साबित करता सर्टीफिकेट फर्ज़ी है.

स ग च जगह में पुल है. यहाँ से बहुत दूर नहीं है. मुरली रात को कुलकर्णी के घर आया है.

सुनो अगर हम चुपचाप देख आयें तो ? इस रविवार ?

मुरली की आवाज़ में डर है.
यार मैं फँसना नहीं चाहता. मेरी ज़िम्मेदारियाँ बहुत हैं.
मुरली की बहन जो मानसिक रूप से अस्वस्थ है, उसके साथ रहती है, बूढी माँ हैं, पत्नी है, तीन बच्चे हैं.

ठीक से छह महीने और निकाल दूँ तो अ स्थान पर तबादला हो  जायेगा. वहाँ सूखा है. बच्चे ठीक से पल बढ़ जायेंगे. सब इतना अच्छा सही चल रहा था कि इस निविदा का झमेला सर पर आ पड़ा. मैं मज़े से क्वालिटी सर्टीफिकेट ठेकेदारों को इशू कर रहा था. बॉस जैसा कहता वैसा. अब इस कहानी में किसकी बात मानूँ कुछ समझ नहीं आता.

अगले रविवार कुलकर्णी और मुरली सुबह निकल पड़ते हैं. देर दोपहर स ग च पहुँचते हैं. धूल खाया कस्बा. मरा मरा सा. लावारिस कुत्ते और गाय. पानी के बदबूदार रेले.

ढाबे पर चाय सुड़कते पूछते हैं,
भैया ये ज नदी किधर है यहाँ
क्या ?
ज नदी
ढाबे वाला हँसता है, ज़ नदी ? ज़ नदी यहाँ कहाँ यहाँ कोई नदी नहीं. बस पनाले हैं. फैक्टरियों से निकलते पनाले.

मुरली पता निकालता है.ये स ग च, ये ज नदी, उसपर ये दो किलोमीटर लम्बा पुल..ये पता ?
भांग खा के आये हो ? दो किलोमीटर पुल ? हुँह पुल ? न नदी न पुल न दो किलो मीटर

ईंटो पर पाँव जमाते पनालों को पार करते चार घँटे में स ग च घूम लेते हैं, गुजरते विचरते बूढों, नंग लावारिस बच्चों, बेजार मरगिल्ली औरतों, पान दुकान और हार्ड्वेयर के दुकानदारों, पंकचर बनाने वाले साईकिल दुकानों, अमाम तमाम जगहों से खोज पड़ताल करने और पैरों को गन्दा करने के बाद ये बात साफ होती है कि स ग च में कोई नदी नहीं है

रात को कुलकर्णी थका लेकिन चैन की नींद में पड़ता है. अब खतरा नहीं. सुबह शर्मा को बता देगा कि फर्गूसन के खिलाफ कम्प्लेंट सही है. रायलसन को काम मिलना तय है. बॉस खुश. उसकी अंतरात्मा खुश. मुरली खुश. सब खुश
निकल गये जंजाल से

रात बहुत दिनों बाद वो सुकन्या को पास खींचता है. सुकन्या अनमना कर उसका हाथ झिड़क देती है.
क्या बात है बौरा गये हो क्या ? इतनी रात में ?
इतनी ही रात में तो
सुकन्या बैठ जाती है भकुआई सी
तबियत ठीक है न ? ठीक है तो सो जाओ ?
फिर धम्म से लेटती है. कुछ देर तक उसका भुनभुनाना जारी रहता है,

ऐसे बास मारते कमरे में प्यार हुँह, एक सूखा पलंग तक नहीं और अरमान ऐसे, जीवन नरक है नरक. अब तो बाबा आई के पास हम चले जायेंगे. अब और नहीं सहा जाता बप्पा अब और नहीं



(आठ)

दफ्तर में पहली चाय सुड़कता रा स कुलकर्णी मुस्कुराता है. मुस्तैदी से शर्मा के पास जाता है

हाँ कहो
सर वो ग प्रोजेक्ट की निविदा...
हाँ निविदा.. क्या हुआ ? बडे साहब का फोन था. सब पॉलिसी के अनुसार होना चाहिये. रिपोर्ट आज ही सबमिट होना चाहिये

जी सर वो दरसल फर्गूसन के खिलाफ जो कम्प्लेंट थी..., कुलकर्णी हकलाता है
कम्प्लेंट अनॉनिमस थी ? बॉस हुँकारता है
जी जी
फिर ? पॉलिसी क्या कहती है ? कॉगनिज़ेंस नहीं लेना है ? क्यों
लेकिन सर, कुलकर्णी पर छींक के दौरे की शुरुआत है
हम हम देख.. सर वहाँ नदी ही नहीं
बाकी का वाक्य छींक के भूचाल में दब जाता है

बॉस बेदिली से इशारा करता है जाने को. रूमाल से अपना चेहरा बचाता है.
मुरली का फुसफुसाता फोन आता है कुछ देर में,

वो कह रहे हैं कम्प्लेंट को फाड़ो और फर्गूसन के पक्ष में तुरत रिपोर्ट बनाओ
लेकिन कल तक तो रायलसन के पक्ष में कह रहे थे ?
फर्गूसन ने नाव छतरी गेन्दा मलाई की होगी, समझो यार
ये गलत होगा
कुलकर्णी हकलाता है. हम फँस जायेंगे. हमको मालूम है अब कि फर्गूसन फर्ज़ी है. हम फँस जायेंगे

सोच लो कि हम इतवार स ग च नहीं गये थे. बस इतना करना है
बस इतना ही ? माने बन्दर की पूँछ उगा लें ?

कॉरिडॉर से कोई झाँकता है.
शुक्रिया सर
फर्गूसन का बैजल है.


(अंतिम)

बहुत पानी है. गाढ़ा, जमा हुआ. पानी ही पानी. काला पानी. दुनिया में सब ऐसा ही है. दो भाग में बँटा हुआ. सूखा और गीला. सूखे की किस्मत किन्हीं और की है. गीले की किस्मत कुलकर्णी जैसे की. दुनिया ही कुलकर्णी है. गलत और सही के बीच लटका हुआ त्रिशंकु.

बहुत सोचना अपने को धीमे धीमे ज़मीन के भीतर धँसाना हुआ. कुलकर्णी को ये तक नहीं पता कि उससे गड़बड़ कहाँ हुई. विजिलेंस ने उसे क्यों पकड़ा. जिन्होंने खेल रचाया वही मासूम हुये. लेकिन पता नहीं किसने खेल रचाया ? या शायद कोई खेल नहीं. शायद यही फैक्ट है कि एक दुनिया है चमकीली भव्य शानदार. दूसरी है ज़मीन के भीतर, अँधेरी, गुम्म हवाओं और बदबू वाली. सबटेरानियन. जिसमें उम्मीद के सूखे की एक किरण नहीं.

बाहर कितनी बारिश है. कीचड़ से लथपथ सब. अस्पताल की इमारत ढह गई. सड़क हर साल बनती है हर साल टूटती है, कागज़ों पर फैक्टरियाँ बनती हैं, गाँवों में बिजली आती है, अस्पताल में डॉक्टर जबकि असलियत में वीरान रेगिस्तान, बिन तारों के पोल और भगोडे डॉक्टर हैं. काला बाज़ार है, टैक्स की चोरी है, सरकार अँधी है. न्याय की देवी आँख पर पट्टी बाँधे है. डॉक्टर ने नकली दवा की इंजेक्शन लगाई, मरीज की हालत नाज़ुक है. स्कूल में मिड डे मील में मिलावट से सौ स्कूली बच्चे अस्पताल में भरती हैं, ग्यारह साल की बच्ची का बलात्कार फिर हत्या है, बड़े दफ्तर के छोटे मुलाजिम स्कैम में गिरफ्तार हैं, साहब सौ करोड़ की सम्पत्ति बिन बोले डकारे हैं, हज़ार करोड, एक हज़ार, यहाँ तक सौ पचास कुछ भी चलेगा.. चलेगा ही हाजरीन, हत्या जेनोसाईड, युद्ध, मौत, बलात्कार,विनाश.यही सब चलेगा.

कुलकर्णी हमेशा पानी की दुनिया में रहेगा. सिर से पैर तक पानी ही पानी. पानी के साले कीड़े सब. कोई औकात नहीं कोई शऊर नहीं. मरते भी नहीं. सर उठाये चले आते हैं. आँखों को तकलीफ होती है, इन्हें देख कर तकलीफ होती है. मरते क्यों नहीं. न अच्छा है मरते नहीं. फिर मैला कौन ढोयेगा? नीचे से ऊपर की दुनिया को अपने कँधे पर लिये कौन खड़ा रहेगा ? कुछ अच्छे सजे रहें उसके लिये बहुतों को गर्दन भर पानी में धँसे रहना ही होगा. यही नियम है.
नफासत से भरे, शक्ति के दर्प में चूर, अक्खड़, क्रूर, अमानवीय सूखे का तबका जो बाकियों को खदेड़ रहा है पानी की तरफ ताकि उनका सूखा टुकड़ा महफूज़ रहे.
बारिश के देवता की अराधना सूखे वाले ही करते हैं. हे देवता इतनी बारिश करो कि सब डूब जायें, बस हम कुछ लोग बचे रहें सूखे महफूज़. हे देवता.
(हंस - दिसंबर 2017)

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  लेफ्टिनेंट मिलो माईंडर बाईंडर जोसेफ हेलर की किताब कैच 22 का एक काल्पनिक चरित्र है. योसारियन के स्क्वाड्रन के मेस अधिकारी के रूप में वह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक युद्ध मुनाफाखोर है शायद अमेरिकी साहित्य का  सबसे अच्छा काल्पनिक मुनाफाखोर.
फौज़ की नौकरी करते हुये वह एक उद्यम शुरु करता है एम एंड एम एनटरप्राईज़. ब्लैक मार्केट के ज़रिये से वह् चीज़ें खरीदता बेचता है और अंतत: जर्मनी के लिये भी काम करना शुरु करते हुये पियानोसा में अपने ही स्क्वाड्रन पर बमबारी करवाता है.

खैर, शुरुआत में वह ये काम अपने मेस के लिये ताज़े अंडों की खरीद से करता है जिन्हें वह सिसिली में एक सेंट पर खरीदता है, माल्टा में उन्हीं अंडों को साढ़े चार सेंट पर बेचता है, वापस उन्हें सात सेंट पर खरीदता और आखिर में उन्हीं अंडों को स्क्वाड्रन मेस को पाँच सेंट पर बेच देता है. ऐसा करते उसका सिंडीकेट एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह् बन जाता है और मिलो पालेर्मो का मेयर, माल्टा का असिस्टेंट गवर्नर, ओरान का शाह, बगदाद का खलीफा, काहिरा का मेयर और कई बुतपरस्त अफ्रीकी देशों में मकई, चावल और बारिश का देवता बन जाता है.

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  1. बेहद मार्मिक कहानी, पानी और सूखे का बिम्ब लाजवाब!कथावस्तु में ऐसे पिरोया गया है , जैसे पुरानी मान्यताएँ पनाह माँगे। अलंकारवादी इसे विशेषण विपर्यय कहते थे । यानी पानी और गीला तथा सूखा वही सन्दर्भ नहीं पेश करते जो करते आए थे ।
    व्यवस्था की पेंचीदगियों , प्रतिरोध के तर्क और प्रेम की चाहत को बेहद खूबसूरत अंदाज़ में कहानी बयां करती है , हार्दिक बधाई !

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  2. सृंजय की 'कामरेड का कोट' कहानी में ईमानदार और प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट कार्यकर्ता की दुर्दशा, उदयप्रकाश की 'और अंत में प्रार्थना' में दक्षिणपंथी विचारधारा को माननेवाला बेहद संवेदनशील और मानवीय डॉक्टर की बुरी हालत के बरक्स इस कहानी के मुख्य पात्र कुलकर्णी के जीवन को रखकर देखा जा सकता है.
    कहानीकार ने सरकारी कार्यालयों में कार्यरत ईमानदार अधिकारी की मनोदशा और जद्दोजहद को बड़ी बारीकी से रेखांकित किया है.कहानी में कलात्मकता के साथ चित्रित किया गया है कि कार्यालय में तनाव का असर कैसे पारिवारिक जीवन को नारकीय बना देता है.कुल मिलाकर रचनात्मक अभिप्राय और प्रभाव की दृष्टि से यह कहानी बेजोड़ है.
    बावजूद इसके निवेदन है कि हिन्दी एक समृद्ध भाषा है और इसका शब्द भण्डार बहुत बड़ा है.इसलिए कम से कम हमारे रचनाकारों को अपनी भाषा को क्रियोल बनने से यथासंभव बचाना चाहिए.कहने की ज़रूरत नहीं कि कहानी में कम से कम बीस ऐसे अंग्रेज़ी के शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जिनके सरल हिन्दी पर्याय मौजूद हैं.

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