मसीह अलीनेजाद से बातचीत : वर्षा सिंह







मसीह अलीनेजाद अब किसी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं. औरतों की आज़ादी और खुदमुख्तारी के लिए उनका संघर्ष ईरान से निकलकर पूरी दुनिया में फैल चुका है. मसीह अलीनेजाद से बात की है लेखिका और पत्रकार वर्षा सिंह ने.



एक ईरानी लड़की की जंग और हमारी बातचीत               
वर्षा सिंह


फेसबुक पर एक खूबसूरत और आज़ाद ख्याल पन्ना है जिसने दुनियाभर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है. इस पन्ने का नाम है "my stealthy freedom", यानी मेरी छुपी हुई आज़ादी. ये पन्ना एक ईरानी आज़ाद ख़्याल लड़की और पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने बनाया. मसीह ने इस पन्ने में अपनी तस्वीरें साझा कीं. हम ईरान की बात कर रहे हैं. जहां एक लड़की खुल कर दुनिया के सामने नहीं आ सकती. तस्वीरें साझा करना तो दूर की बात है. मसीह ने हिम्मत दिखाते हुए खुले बालों में अपनी तस्वीरें इस फेसबुक पन्ने पर डालीं. ईरान में लड़कियों के लिए ये अपराध समान माना जाता है.
मसीह के लिए ये करना आसान नहीं था. उसने एक कदम आगे बढ़ाया और उनके साथ कई और सहेलियां भी इस पन्ने पर आ जुड़ीं. उन्होंने भी अपनी आजाद ख्याल तस्वीरें इस फेसबुक पन्ने पर डालीं. हर तस्वीर के साथ पन्ने पर लाइक्स की गिनती बढ़ती रही. हम भी इसी तरह इस पेज पर पहुंचे. लगा कि ये बात जितने ज्यादा लोग जानें उतना ही अच्छा है. क्योंकि हमारे यहां भी लड़कियों के हाल, ईरान से बेहतर तो हैं, लेकिन बहुत अच्छे नहीं. हमारी आजादी अभी आधी अधूरी, नकली और दिखावटी ज्यादा है. खुद आत्मनिर्भर लड़कियां भी अपनी गुलाम सोच से मुक्त नहीं. तो चलिए मसीह से बात करते हैं. इंटरनेट ने उनसे बातचीत की सुविधा उपलब्ध कराई. ईमेल पर साक्षात्कार हुआ. मसीह की इस मुहिम से जुड़े वाहिद युसेसॉय (Vahid Yücesoy) ने उनकी ओर से ये जवाब दिए.


सवाल 1. मसीह ये पूरी मुहिम कैसे शुरू हुआ?  कब शुरू हुई? इस तरह की मुहिम शुरू करने का ख्याल कैसे आया?




इस मुहिम की शुरुआत करीब दो साल पहले हुई जब मसीह ने बिना किसी नकाब के अपनी एक तस्वीर फेसबुक पर साझा की. इस तस्वीर में वो अपने बालों में हवा को महसूस कर रही थीं और ये एक तस्वीर के रूप में बहुत खूबसूरत था.
पश्चिम की दुनिया में मसीह जिस आजादी को जी रही थीं, ईरान की उसकी महिला मित्रों को इस पर जलन महसूस हुई. मसीह ने उन्हें भी लोगों की नजरों से दूर, चोरी छिपे कमाए, अपने ऐसे ही आजाद लम्हों की तस्वीरें साझा करने का सुझाव दिया. उसने ईरान में ली हुई अपनी एक तस्वीर भी साझा की. इस तस्वीर में गाड़ी चलाने के दौरान उसने अपना नक़ाब हटा दिया था. बस इसके कुछ देर बाद ही, उसका निजी फेसबुक पन्ना ऐसी तस्वीरों से भर गया जिसमें तमाम ईरानी महिलाओं ने सार्वजनिक स्थलों पर बिना किसी नक़ाब के अपनी तस्वीरें ली थीं. इस तरह मसीह के इस जोरदार मुहिम ने जन्म लिया.


सवाल 2. क्या इस मुहिम का कोई ठोस उद्देश्य था ?
इस मुहिमा का मूलभूत उद्देश्य बहुत सीधा सा था- इसका मक़सद ईरानी महिलाओं को अपने 'चुनने का अधिकार' हासिल करना था कि वे नकाब पहनना चाहती हैं या नहीं. ईरानी महिलाएं पिछले तीन दशक से इस मूलभूत अधिकार से वंचित हैं. ईरान का मीडिया भी औरतों की इस आजादी के बारे में रिपोर्टिंग करने को इच्छुक नहीं है. यहां तक कि ईरान के सुरक्षा बलों ने खुद ये स्वीकार किया है कि उन्होंने वर्ष 2014 में 3.6 मिलियन से अधिक औरतों को खराब तरह से नक़ाब पहनने को लेकर चेतावनी दी है. इस मुहिम का मकसद यही था कि नक़ाब पहनना जरूरी करना महिलाओं पर जुल्म की सबसे उजागर तस्वीर थी. हालांकि, हम नक़ाब के खिलाफ नहीं हैं. हम अपने 'चुनने के अधिकार' को प्रोत्साहित कर रहे हैं.


सवाल 3. ईरान की सरकार इस मुहिम को कैसे देखती है?
जब यह मुहिम शुरु हुई, ईरान के अधिकारी पहले तो मसीह लीनेजाद को बदनाम करने की कोशिश में जुट गए. उन्होंने आरोप लगाया कि लंदन के एक ट्यूब स्टेशन में मसीह का उसके बच्चे के सामने बलात्कार हुआ, जिसकी वजह से उसने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है. उसकी वेबसाइट पर ही लगातार ईरान की साइबर आर्मी के हमले होते रहे. उसका फेसबुक अकाउंट चोरी किया गया. उसके पास सैंकड़ों की तादाद में अवांछनीय ईमेल आए. सत्तासीन लोग साफतौर पर इस मुहिम की बढ़ती लोकप्रियता से नाराज दिख रहे थे.


सवाल 4.  क्या इस मुहिम के प्रतिभागियों ने अब तक किसी तरह का खतरा झेला हैं? अगर हां, तो क्या आप कुछ उदाहरण दे सकती हैं.
हमारी जानकारी के मुताबिक, हमारे साथ अपनी तस्वीर साझा करने वाली किसी भी प्रतिभागी ने किसी तरह खतरे का कोई सामना नहीं किया है. यह कहा जाता है, ईरान में एक औरत होना और लैंगिक समानता के लिए लड़ना अपने आप में खतरे वाली बात है. तो अपनी तस्वीरें हमें भेजकर उन्होंने कुछ ऐसा अलग नहीं किया जो वो अपनी रोज़ की ज़िंदगी में किया करती थीं.


सवाल 5. ईरानी महिलाएं ड्रेस कोड के खिलाफ अभी क्यों हैं? ईरान में ड्रेस कोड संबंधित नियम 1979 की क्रांति के समय से ही लागू हैं. तो अभी क्यों? ईरानी समाज में क्या बदलाव आ रहे हैं?


वास्तव में, ड्रेसकोड का पक्षपाती नियम ईरान में तीन दशक से अधिक समय से लागू है. इस मुहिम को शुरू करने के समय को लेकर हम कम से कम दो वजहें बता सकते हैं. सबसे पहले, इन वर्षों में, धर्म के नाम पर सामाजिक दबाव बनाकर ईरान की बर्बादी के बाद जैसे जैसे लोगों ने शिक्षा हासिल की, ईरान के समाज में बेहतर बदलाव देखे गए. आम लोगों में सामाजिक रीति-रिवाज ज्यादा उदार होते गए और इससे शासन और लोगों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. दूसरा, पहली वजह के उप-सिद्धांत के रूप में, बेहतर शिक्षा के साथ बड़ी होती नई पीढ़ी में नकाब के प्रति असंतुष्टि बढ़ने लगी. इस असंतुष्टि को एक उत्प्रेरक की जरूरत है जो इसे सार्वजनिक तौर पर अभिव्यक्त कर सके. माई स्टेल्दी फ्रीडम यानी मेरी छुपी हुई आज़ादी कैंपेन ने इस मौजूद असंतुष्टि को पकड़ लिया और इसलिए यह मुहिम फौरन सफल हो गई. ये गौर करने वाली बात है कि धार्मिक परिवारों से जुड़े बहुत से लोग (जैसे मसीह अलीनेजाद) अनिवार्य नकाब से परेशान हो गए हैं और आवाज़ उठा रहे हैं.


सवाल 6. क्या आपके इस विरोध आंदोलन और 2009 के ग्रीन मूवमेंट में कोई संबंध है?
ग्रीन मूवमेंट समाज के बहुत सारे वर्गों में व्यापक पैमाने पर सामाजिक-राजनीतिक लक्ष्य को लेकर शुरू किया गया था जबकि माई स्टेल्दी फ्रीडम औरतों और उनके ड्रेस कोड को लेकर शुरु किया गया है. ग्रीन मूवमेंट अनिवार्य नकाब को लेकर कुछ भी खुलकर नहीं कहता. इस बात को कम नहीं आंकना चाहिए कि ज्यादातर लोग जो ग्रीन मूवमेंट के साथ खड़े थे, वे ईरानी महिलाओं के चुनने के अधिकार को लेकर भी साथ रहेंगे. ईरान में साफ तौर पर सामाजिक बदलाव दिखता है.


सवाल 7. आप आधुनिक ईरान में महिलाओं की स्थिति किस तरह देखती हैं? क्या यह बदल रहा है? क्या महिलाएं ये कोशिश कर रही हैं कि उनकी आवाज़ सुनी जाए?
निश्चित तौर पर बदलाव आ रहा है और ईरान की कैद में महिलाओं की संख्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है. बहुत सारी महिलाएं कैद में हैं क्योंकि उन्होंने लैंगिक असमानता के खिलाफ आवाज़ उठाई. फेमेनिज्म शब्द को ईरान के प्रशासनिक वर्ग में बेहद तिरस्कार के भाव के साथ देखा जाता है. यहां तक कि सर्वोच्च अध्यक्ष भी फेमेनिस्ट शब्द को इस्लामिक रिपब्लिक के विरोध से जोड़कर देखते हैं.


सवाल 8. ईरान के पुरुष यहां की महिलाओं के आंदोलन को किस तरह लेते हैं? क्या वे इसे प्रोत्साहित करते हैं? आपकी मुहिम से लगता है कि वे ऐसा करते हैं, क्या ये सही है?
जिस तरह का सामाजिक बदलाव ईरान में जगह ले रहा है, यहां के पुरुष भी महिलाओं के अपनी मर्जी से कपड़े पहनने के अधिकार को प्रोत्साहित करते हैं. ईरान के शासन का कहना है कि बिना नकाब की महिलाएं, आदमियों को उकसाने का काम करेंगी, यहां तक कि जब भी वे बिना नकाब या गलत तरह से पहनी गई नकाब में महिलाओं को देखेंगे तो वे सड़कों पर औरतों के साथ बुरा सुलूक करेंगे. हालांकि, हमारे कुछ सहयोगियों ने तेहरान में ऐसे सामाजिक प्रयोगों के वीडियो भेजे हैं. इन वीडियो में, महिलाएं बिना सिर ढंके तेहरान की सड़कों पर जा रही हैं और एक भी आदमी उन पर हमला नहीं करता, न ही अपनी नापसंदगी जताता है. ये बताता है कि ईरान के पुरुष यहां की महिलाओं के चुनने के अधिकार के खिलाफ नहीं हैं, हमें पूरा विश्वास है कि हमारी इस मुहिम को समर्थन देने वाले पुरुषों की संख्या में इजाफा होगा, जैसा कि यह अब भी हो रहा है, हमें पुरुषों से लगातार समर्थन मिल रहा है.

तो ये थी मसीह से फेसबुक और फिर जीमेल पर हुई मेरी बातचीत. ईरान में नकाब पहनना अनिवार्य है. नकाब न पहनने पर या खराब तरह से पहनने पर जुर्माने से लेकर सजा तक का प्रावधान है. मसीह जैसी हमारी आजाद ख्याल सहेलियां मूलभूत अधिकार के इस जंग को लड़ रही हैं. हमारे यहां भी फेमेनिज्म की लड़ाई अभी लंबी है. जो कपड़ों से शुरू होकर, खुल सोच, सामाजिक-राजनीतिक हस्तक्षेप तक जाती है. 
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वर्षा सिंह
स्वतंत्र पत्रकार15 वर्षों तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (सहारा समयआउटलुक वेब) में  कार्यरत. 
फिलहाल देहरादून के DD News में बतौर असिस्टेंट न्यूज़ एडिटर.
ईमेल- bareesh@gmail.com

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  1. वर्षा सिंह का ब्लॉग पोस्ट पहले पढ़ी हैं .. यहाँ उनका साक्षात्कार पढ़ा .. मसीह अलिनेजाद का संघर्ष एक जरूरी संघर्ष है इसे होना ही चाहिए था और काफी पहले... शुक्रिया समालोचन

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  2. 2013 में जब स्टीलथी फ्रीडम फेसबुक पेज शुरू हुआ था, मैं उसके शायद शुरूवाती 10 फोलोवर में से था, लेकिन एक बात दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि दुनिया भर से मिले जबरदस्त समर्थन के बाद भी इसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली. हिजाब की मुखालफत से शुरू हुआ, ईरानी महिलाओं का यह अभियान किसी अंजाम तक अभी भी नहीं पहुँचा. अमीहनेजाद के साथ शुरू से जुडी काफी महिलाये इससे अलग हो गयीं. यहां तक की 'स्टीलथी फ्रीडम ऑफ ईरानीयन वुमैन' से प्रभावित होकर शुरू हुआ ' स्टीलथी फ्रीडम ऑफ पाकिस्तानी वूमेन' भी आगे नहीं बढ़ पाया.

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  3. ये पुरुषवादी मानसिकता की समस्या है जो महिलाओं को दोयम समझता है। इस सोच को बदलने में वक्त लगेगा।मसीह अलीनेजाद की पहल काबिले तारीफ़ है। आशा है और लोग इस अभियान से जुड़ेंगे और बदलाव आएगा।

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