श्याम बिहारी श्यामल पत्रकार हैं. उपन्यास प्रकाशित हुए हैं. महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन और उनके युग पर आधारित उनके उपन्यास की प्रतीक्षा है. ग़ज़लें भी लिखते हैं. पेश है पांच ग़ज़लें.
श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़लें
II एक II
कहीं और कली कोई खिलती नहीं मिली
दूरबीनें थक गईं दूसरी धरती नहीं
मिली
लाखों साल से दिलों को धड़का रहा
था
उस चांद की नाड़ी चलती नहीं मिली
जैसा सोचा वैसा ही सूर्ख़ निकला
मंगल
लेकिन हवा कोई वहां बहती नहीं
मिली
बेहिसाब बड़ा है बेशक ओर-छोर नहीं
उस आसमां की अपनी हस्ती नहीं
मिली
जाने कब होगी पूरी बेतहाशा यह
तलाश
अभी तक तो हवा में बस्ती नहीं
मिली
श्यामल आसपास यह नजारा है कैसा
किसी आंख में ज़मीं बलती नहीं
मिली
II दो II
बेमिसाल निशानी है दाम न कर
ताजमहल यह मेरे नाम न कर
ख़ाली हो जाए यह जरूरी नहीं
पैमाना-ए-सहबा तमाम न कर
मुद्दतों बाद सुब्ह नसीब हुई
है
जिद न कर इसे शाम न कर
दर्द ओढ़े सोया यहां कोई गज़ीदा
नींद टूट जाए, ऐसा काम न कर
गुमश्ता गुमनाम गुमराह है वह
आशिक न कह उसे बदनाम न कर
ख़्वाब ख़ुश्क नहीं ख़्वाहिशें
ख़ालिस
श्यामल अक़बर कहां सलाम न कर
II तीन II
रोशनी यह कैसी मुकाबिल यहाँ
पलकें उठाना भी मुश्किल यहाँ
ज़मीं पर कभी-कभी नमूदार होते
हलफ़नामे में उनके सारा जहाँ
ताके तो सुब्ह आंखें मूंदते ही शब
ज़माने में मसीहा ऐसा और कहाँ
देखते ही सिहर उठा ताज़महल
कैसा आया है नया शाहजहां
श्यामल चुप रहना मुमकिन अब कहां
खिंचती ही जा रही काली रात जवां
II चार II
हर सांस कैफियत है
मिट्टी ही हैसियत है
चुप्पी तो बयान है
जब शोर सियासत है
यह सुब्ह इन्कलाब है
वह रात रियासत है
जबानों की दुनिया में
लफ़्ज मिल्कियत है
आग को छू ले श्यामल
गज़ब मुलायमियत है
II पांच II
महुए की डाली यह पलामू
पलाश की लाली है पलामू
लाह की गज़ब ललौंही दुनिया
कोयल-जल की प्याली पलामू
कनहर राग दामोदर की टेर
अमृत जैसा पानी पलामू
भूमि नीलांबर पीतांबर की
प्यार की राजधानी पलामू
अदब से पेश आ ए वक्त यहाँ
मेदिनी की मथानी यह पलामू
महाप्रभु का जो वृंदावन कभी
फ़िर बने चैतन्य-बानी पलामू
खत्म हो चला धपेलों का खेल
जगा रहा नई जवानी पलामू
हवा हो अब पनसोखों का झुंड
श्यामल सजल कहानी पलामू
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श्याम बिहारी श्यामल
20 जनवरी 1965, पलामू के डाल्टनगंज (झारखंड)
करीब तीन दशक से लेखन और
पत्रकारिता. पहली किताब 'लघुकथाएं अंजुरी भर' ( कथाकार सत्यनारायण नाटे के साथ साझा संग्रह) 1984 में छपी. 1998 में प्रकाशित उपन्यास 'धपेल' (पलामू के अकाल की गाथा, राजकमल प्रकाशन) और 2001 में प्रकाशित 'अग्निपुरुष' (भ्रष्टाचार के विरुद्ध
संघर्ष का आख्यान, राजकमल पेपरबैक्स) चर्चित. 1998 में ही कविता-पुस्तिका 'प्रेम
के अकाल में' छपी. लंबे अंतराल के बाद 2013 में कहानी संग्रह 'चना चबेना गंग जल' (ज्योतिपर्व प्रकाशन) से प्रकाशित. दशक भर के श्रम से तैयार
नया उपन्यास 'कंथा' ('नवनीत' में धारावाहिक प्रकाशित, महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन और उनके युग पर आधारित)
प्रकाश्य.
संप्रति : मुख्य उप
संपादक, दैनिक जागरण, वाराणसी (उप्र)
संपर्क नंबर : 09450955978, ई मेल आईडी : shyambiharishyamal1965@gmail.com
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-08-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2713 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
कहीं और कली कोई खिलती नहीं मिली
जवाब देंहटाएंदूरबीनें थक गईं दूसरी धरती नहीं मिली
लाखों साल से दिलों को धड़का रहा था
उस चांद की नाड़ी चलती नहीं मिली ...वाह...क्या बात है. गजब...
वर्तमान से छटपटाहट की ख़ामोश आहट सुन रहा हूँ मैं,
जवाब देंहटाएंतेरी हुकूमत,रियासत तोड़ने की साज़िश बुन रहा हूँ मैं।।
मित्र श्यामल की ये पंक्तिया-
जाने कब होगी पूरी बेतहाशा यह तलाश....
या
दर्द ओढ़े सोया यहाँ कोई गजीदाँ
नींद टूट जाए ऐसा काम न कर
ये पंक्तिया हुकूमत को सचेत कर रहीं हैं ।
मजबूरी का आलम यह कि पलकें उठाना भी मुश्किल ..
यह सुबह इंक़लाब वह रात रियासत है में थोड़ी उम्मीद के साथ
चेतावनी भी..
बाक़ी तो पलामू के प्रति रचनाकार का अपना प्यार है,वहाँ के दर्द और बेबसी का साफ़ सुथरा गम्भीर चित्रण है !
शुभकामना कि ऐसे ही लिखते रहें !!!
Wow ! Each and every line is simple to understand and it does convey it's actual meaning to us!
जवाब देंहटाएंशानदार ग़ज़लें श्यायमल भाई । मुबारक । साबित हो गया कि तुम ग़ज़ल कहने की काबिलियत रखते हो । ज़ोर-ए-क़लम और भी ज़ियादा ।
जवाब देंहटाएंकहीं और कोई कली खिलती नहीं मिली,
जवाब देंहटाएंदूरबीन थक गई, दूसरी धरती नहीं मिली.....बहुत ही सुंदर
बेहिसाब बडा है बेशक ओर छोड़ नही,
उस आसमां की अपनीं हस्ती नहीं मिली....बहुत खूब...
बेमिसाल निशानी है दाम न कर,
ताजमहल यह मेरे नाम न कर......अद्भुत ,लाजवाब,कमाल की अभिव्यक्ति
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