अम्बर रंजना पांडे की कविताएँ







सदी (२१ वीं) की हिंदी कविता पर यह आरोप बार-बार दुहराया जाता रहा कि इनमें अधिकतर पिछली सदी के कवियों की नकल हैं और कि खुद इनमें दुहराव है और कि पता नहीं चलता - कौन किसकी कविता है.  मतलब - कवियों ने अपने अलहदा मुहावरे विकसित नहीं किए हैं आदि आदि.

यह सही है कि केदारनाथ सिंह और रघवीर सहाय से २१ वीं सदी के अधिकतर युवा कवि / कुकवि प्रभावित रहे हैं और केदार जी का या मुहावरा ‘हमारे समय की सबसे’ बहुत अधिक इस्तेमाल हुआ है. इतना कि अब तो उब सी होती है.

पर जिनसे सदी की युवा कविता का चेहरा बनता है उनमें से अधिकतर ने खुद अपना कवि व्यक्तित्व विकसित किया है. पूर्वज हैं उनमें शामिल पर एक सीमा तक.

अम्बर रंजना पांडे इसी तरह के कवि हैं. उनकी कविताएँ हिंदी कविता का नया पड़ाव हैं. भाषा, शिल्प, संवेदना सबमें वह नवोन्मेषी हैं.
उनकी कुछ नई कविताएँ 


अम्बर रंजना पांडे की कविताएँ                 




वेश्या से मिलना जुलना
(सच्ची घटना पर आधारित)

अर्धरात्रि से दूसरे दिवस दोपहर तक 
आगंतुकों की सेवा, फिर स्नान, पूजा,
भोजन, नींद
ऐसे कट गया जीवन पर वर्षा होते ही
उसे याद आता डिहरी, सोन के किनारे
उसकी जीर्ण कुटी और गृहदाह

एक दिन जब आगंतुक अधिक न थे
बहुत वर्षा हो रही थी और उसने खाट पर
बिछाई थी धुली हुई, कमलिनियों से भरी
चद्दर, निकट ही
स्टोव पर दूर दार्जिलिंग की चायपत्ती
गुड़गुमुड़ बोलती उबलती थी, उसने पूछा
'तुम क्या करते हो अमरन साहब?'

जैसे अम्माँ मुस्कुरातीं खिचड़ी स्वादिष्ट बनने पर
अम्माँ खिचड़ी अच्छी से अच्छी बनाने के
बहुत जतन करतीं
'रोगी का पथ्य उत्तम हो तब रोगी
फटाफट निरोग होता है' मूँग की दाल
दुबराज, नमक और जल
जैसे पंचतत्त्वों से भाँत भाँत के जीव हुए
वैसे ही इन पाँच पदार्थों से
खिचड़ी के भिन्न भिन्न स्वाद होते

'मैं कवि हूँ, कैथी.' पता नहीं क्यों
उस बज़ार की सब निर्धन वेश्याएँ साड़ी ही
क्यों पहनती थी, साड़ी की किनोर से चाय की
पतीली पकड़े, वह हँसती, ठठाकर

'कवियों को नमक लेने को धन नहीं होता
कवि लोग वेश्याओं के घर बस
उपन्यासों में आते है अमरनचंद्र.'

एक रात्रि बहुत नशे में उसके ब्लाउस में
अपनी कविता रखकर
आ गया मैं, उस रात्रि रुपया नहीं था मेरे निकट

बहुत दिनों बाद उसने फ़ोन किया
पैसे माँगती होगी किंतु वह शुरू हो गई
'संवाद पर संवाद ही तो लिखे है
कथा हो सकती है. कवि नहीं हो तुम
झूठे हो.'

फिर अगली बेर गया तो कहा
'मत आओ हर्पीज़ हो गया है.
बहुत पीड़ा है.
बहुत खेद है.'

मन बहुत विशाल पाकशाला है
उसमें अंधकार है मिट्टी का तेल है
मैं वहीं बैठ गया
और मन में ही चौके में
स्टोव में हवा भरने लगा
बहुत वर्षा होती थी
चौके की छत चूती थी

कालीमूँछ धान अल्प था
दाल मटर की थी मूँग की नहीं थी

इतने दुःख में भी वह हँसने लगी 'कवि हो
तब भी कल्पना में भी
ऐसा अभाव है तुम्हारे.'

किस कवि ने कहा कि अदहन में भी
चावल डालते नहीं अकेले
मन जो एक विशाल पाकशाला है
तो देह उसमें खदकता अदहन है
सब अकेले ही जलते है

'हमेशा हाथ से नमक डालना
चम्मच से कभी नहीं' अम्माँ की
शिक्षा

नमक लेकर मैं अंगुलियों से
उसे तौलता रहा; कमर के एक ओर
जहाँ हर्पीज़ अधिक थी, उसे ऊपर कर
करवट ली, 'अमरनचंद्र जी, अपने मन की
इस विशाल, आँधमयी
जिसकी छत चूती है
उस पाकशाला में चाय बनाकर ही मुझे
पिला दो
नमक आँकते तो लम्बा टेम खटेगा.'

रोगी का पथ्य उत्तम हो
तब रोगी फटाफट निरोग होता है

'अच्छा मैं अदरक लेकर आता हूँ तब.'
छाते कविताओं की ही भाँति
दुःख से पूरा नहीं बचा पाते थे- पतलून सोरबोर
बुशर्ट बरबाद, जनेऊ तक भीग गया
(पता नहीं क्यों मैं क्यों पहनता था उन दिनों
विष्णुपुर का जनेऊ!)

सब सृष्टि जलमयी थी, बुधवारपेठ में
कोई दिखता ही नहीं था, पनोरे, पड़ोह धलधल
बहते
सब दिशा गोड़डुबान जल था, एक चाय के ठेले पर
हम्माल मजूर चिमनी से बीड़ी सुलगाते थे

'पता था रीते हाथ लौटोगे, घटा कहती है कि
आज ही सब बरसूँगी' चाय छानते उसने कहा
'बाहर गमले में अदरक बो रखी है मैंने
आपको बताने आती तब तक आप फ़रार.'

'अदरक को छुआछूत बहुत होती है न! कोई ऐसा वैसा हाथ
लग जाये सड़ जाती है' मैंने कहा

उसने मुख उठाया 'ओह रे बाबा, तुम्हें तो
माता निकली है' जलते स्टोव के आलोक में
उसका कपाल देखकर मैंने कहा

'माता तो छोटी थी तब निकली थी
यह हाथभर केश थे मेरे
आधे माता ले गई आधे कालाजार लील गया

लम्बे केशोंवाली वेश्याएँ बहुत कमाती है.'

'बार बार वेश्या क्यों कहती हो?'
'कोई शब्द पुरातन होकर बुरा तो
नहीं हो जाता न.'

पत्नी से अलग होने के पश्चात्, प्रतिदिन का
आना-जाना था उसके निकट
बहुत पहले की बात नहीं है
हाँ, तब वर्षा बहुत होती थी

और चिमनी से ही हो जाता था इतना
प्रकाश
कि जीवन चल जाए, एक-दूसरे के
दुःख और सुखों से भरे कपाल दिख जाए

'मैंने जब भी कोई कविता लिखनी चाही
दुख की छाया ने उसपर पड़कर सब नाश
कर दिया.'

'दुःख की छाया सुख की भूमि पर पड़ती है
सुख की छाँह मेघों की छाँह जैसी है
अभी थी अब नहीं. भंगुर है.'

'तुम कवि हो क्या, कैथी?'

हँस हँसकर उसने कहा 'हाँ हूँ
काहे से कि संवाद करना ही तो
कविता है तुम्हारी दृष्टि में' हर्पीज़ में भी
उसने हँस हँसकर कहा.
___________
*बुधवारपेठ- पुणे का एक इलाक़ा जो वेश्यावृत्ति के लिए प्रसिद्ध है.
*अमरनचन्द्र- कवि का धोखे का नाम. कवि वेश्या से अपना असली नाम नहीं बताना चाहता.

मल्लबर्मन 


अद्वैत मल्लबर्मन का टीबी अस्पताल से
आधी रात को भाग जाना

(अद्वैत मल्लबर्मन ने तिताश एकटी नदीर नाम नामक उपन्यास लिखा था। उन्होंने अविभाजित बंगाल में एक दलित परिवार में जन्म लिया था।)

जधावपुर के कुमुदशंकर राय टीबी अस्पताल से
ख़ून की उलटी करते भाग गया अद्वैत मल्लबर्मन
'पद्मा पद्मा' पुकारते
'होगी कोई विस्मृत हतभागिनी' वार्डबॉय ने कहा

'पद्मा पाकिस्तान चली गई' कहते भाग गया
सन्निपात के सातों लक्षणों से क्लांत, यक्ष्मा का रोगी
वय: ३६/३८

एक रात कहने लगा रोगी, फाँसी लगाई तो
श्वेत कनइल के हार की लगाऊँगा
जधावपुर में कहाँ धरी है
नदियों में केवल सायंकाल फूलनेवाली कनइल की लताएँ

फिर एक दिवस भू पर पग धरने से
मना कर दिया, किसी मूल्य पर पलंग से
नहीं उतरता था, कहता, भारतवर्ष में
जौंक बहुत है

सरोजिनी के नवदल में पेड़ा माँगता था
देश आज़ाद हुआ है
किंतु वह तो दो वर्ष पूर्ण ही हो गया
उसे कहाँ पता था डाक्साब

तिताश में तैरते मेरी लंगोट बह गई
सिंघाड़े के आटे का हलवा बल भया
मेरी आठवर्ष की स्त्री को नाग डँस गया
दिनभर बकबक झिकझिकी वृथा विलाप
बीड़ी के लिए रुपए देता था
सौगंध खाता कि सिनेमा वाली स्त्री से मिलाएगा

एक बालक आता तो था मिलने, नाम कोई घटक वटक था
बोतल लाता था
दोनों ही पद्मा की रट लगाते 'पद्मा पद्मा पद्ममयी पद्मा
पद्मवर्णा दुर्गम तरणा पद्मा'

कोई कोई निशा टेबुल बजा बजाकर गाते थे
मुसलमानी गान

'देश नष्ट हो गया है अब कौन पढ़ेगा
मासिक पत्रिका मोहम्मदी में छपी मेरी कविताएँ
आनंद बाज़ार पत्रिका से कहो मुझे भूल जाए'

सबके नाम ऐसे ही नष्ट होंगे
किंतु उससे पहले देश नष्ट होगा
उससे पहले भाषा नष्ट होगी
जैसे हो गई नष्ट तुम्हारी हिंदी.

टाकाचोर


टाकाचोर
 
भृंगराजों के झुण्ड में शिकार करता
आ बैठा है टाकाचोरों का कुटुंब
देखना अशुभ है निमीलित आँखों से
कहता है शैलेंद्र

'कौआ है रे' अज्ञानी जन कहते हैं
'टाकाचोर टाकाचोर'
कहकर दौड़ता जाता है शैलेंद्र
आँखों को करतलों से ढँके

प्रातः निपटा चुका है बसंतों की पंगत में
निम्बोरियों के ढेर
उड़ती दीमकें खा चुका सकल

कितने पक्षियों के अण्डे खाकर
अब भृंगराजों के दल में यह
भुखमरा क्या खाने आया है

लग्गा लेकर टाकाचोर का  नीड़ उजाड़ने को
टॉर्च से खोज रहे है शैलेंद्र के पापा
सब ओर साँय साँय है
'टाकाचोर के रहते कोई और गृहस्थी नहीं कर सकता'

'भरी रात्रि क्यों किसी का नीड़ नष्ट करते हो
भीतर गरम कम्बल में जो
नष्ट नीड़ पढ़ते थे, वही जाकर पढ़ो न '

साँय साँय है टाकाचोर का ज़रा अंदेसा नहीं

प्रातः ही फिर स्वर किया, शर्करा
तो जल में ही घुलती है
तब वायु में कैसे घुलकर स्वर हो गई

'को कि ला को कि ला को कि ला '
श्रीमद्अमरसिंह ने शब्दकोश बनाने में
शताब्दियों पूर्व
कर दी थी बड़ी भारी मिस्टेक

टाकाचोर 'को कि ला को कि ला ' टेरता है
अज्ञानी जन हतप्रभ, कागला नहीं है
कोकिला है'

नीड़ नहीं किया पताकाओं के संग निकल गया
श्यामाओं की फ़िराक़ में.



फ्रांसीसी भाषा का प्रेमी

अग्नि हैं भाषा, पंख सा जलकर
भस्म हो जाऊँगा. नित्य सात बजे
सायंकाल फ्रांसीसी भाषा का प्रेमी
अपनी प्रेयसी की प्रतीक्षा
करता हैं, दिनभर की थकी, जिसका
मन बासे दूध सा फट फट
पड़ने को हैं, धीरज से क्रोशिया
बुनती हैं.

नित्य दिन के जाते जाते
फ्रांसीसी भाषा कहाँ खो जाती
हैं? शब्द गिनता हैं अँगुलियों पर वह,
मात्राएँ और उच्चारण में भेद भ्रमित
कर देता हैं अर्थ. यह भाषा जिसे सीख
रहा हैं प्रेयसी से, गद्य में, अपने अनर्थ में
भी कैसी कविता लगती हैं. वह कहती हैं
हैं  ''cava bien merci.'' चन्द्रमा निकल
आता हैं सुदी प्रथमा को ही. कहो तो

फ्रांसीसी में क्या कहते हैं चन्द्रमा को.

________

अम्बर रंजना पाण्डेय 
दर्शन शास्त्र में स्नातक अम्बर रंजना पाण्डेय ने सिनेमा से सम्बंधित अध्ययन पुणे, मुंबई और न्यूयॉर्क में किया है. संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी और गुजराती भाषा के जानकार अम्बर ने इन सभी भाषाओं में कवितायें और कहानियाँ लिखी हैं. इसके अलावा इन्होने फिल्मों के सभी पक्षों में गंभीर काम किया है. इकतीस दिसंबर 1983 को जन्म. अतिथि शिक्षक के रूप में देश के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में अध्यापन कर चुके अम्बर इंदौर में रहते हैं.

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  1. शिव किशोर तिवारी26 जुल॰ 2017, 11:14:00 am

    अम्बर रंजना पाठक विलक्षण कवि हैं। मैंने उनकी एक कविता पर टिप्पणी भी लिखी थी।
    यहां प्रकाशित कविताएं उनकी उदग्रता पर मुहर लगाती हैं। बिहारी सेक्स वर्कर का "काहे से कि" दिल चुरा ले गया। अद्वैत मल्लवर्मन के बारे में थोड़ा पढ़ लेने से दूसरी कविता का सौंदर्य पूरी तरह उद्घाटित होगा - "पद्मा पाकिस्तान चली गई " एक संस्कृति का आर्तनाद है। तीसरी कविता टाकाचोर सबसे अधिक पसंद आई। यह भुक्खड़,स्वार्थी चिड़िया आदमी के सबसे नज़दीक है। आख़िरी कविता उतनी नहीं भाई।

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  2. अद्भुत कविताएँ!
    'वेश्या से मिलना-जुलना कविता नहीं पूरा उपन्यास है! प्रांजल भाषा और शब्द-संयोजन अम्बर की विशेषताएं हैं। इस कविता में कई छोटी-छोटी कविताएँ अलग-अलग दृश्यों में उभरकर आती हैं।
    मल्लवर्मन पर लिखी कविता में विभाजन की पीड़ा है।
    कवि को बधाई पहुँचे।

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-7-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2679 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  4. कविताएँ बहुत अच्छी हैं बेशक, वाक्य विन्यास हिंदी का नहीं बांग्ला का है। यही बात उन्हें अन्य हिंदी कवियों से भिन्न बनाती है। लय और प्रवाह भी ऐसा है जो एक अधीर उखड़ा हुआ पाठक भी इतनी लंबी लंबी कविताएँ पूरी पढ़ ले। लेकिन वही बात कि इनकी आत्मा ऐसी आँचलिक है जैसे सुंदर कविताओं का अनुवाद हो न कि मौलिक कविताएँ।

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  5. उम्मीद से कम प्रतिक्रियायें आईं। Anuradha Singh जी की टिप्पणी पर कुछ आना चाहिए था। मालवा में यह काव्य भाषा trending हो रही है।कम से कम अन्य दो कवि मेरी नज़र में आये हैं।

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  6. तोताबाला ठाकुर के बाद कुछ लोगों ने इधर ऐसी ही कविताएँ बनानी आरम्भ कर दी। वह कवि भूल गया कि तोता बाला ठाकुर जानबूझ कर ग़लत भाषा लिखती थी। ओडिया, असमी और पूरब की बांग्ला, मैथिली का उसने असर ले रखा था।

    इन कविताओं में मैंने बांग्ला का नहीं बल्कि महाराष्ट्र और बंगाल के बिहारी लोगों की बोलीठोली लेने का प्रयास किया है।

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  7. अच्छी कविताओं पर बेशक कम प्रतिक्रियाएँ आती हैं लेकिन पढ़ते बहुत लोग हैं, Tewari Shiv Kishore Sir. वाक्य विन्यास जो आंचलिक, लगभग अहिंदीक है, शैली और भाषा को आकर्षक बना रहा है, और किंचित जगहों पर प्रश्न भी खड़े कर रहा है।

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  8. अहिंदीक नहीं है। 50-60 साल से हम जिस (अंग्रेज़ी से अनूदित) भाषा का व्यवहार कर रहे हैं उससे भिन्न है। इन 4 कविताओं में कौन सी पंक्तियां बंगला से अनूदित लगती हैं यह स्पष्ट करें तो चर्चा रोचक हो सकती है। मैं थोड़ी बहुत बंगला जानता हूं।

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  9. कवि की काव्य भाषा उसके अपने अनुभव और अपनी स्थानीयता से तय होती है। मैं भी बांग्ला जानती हूँ इसलिए मुझे भाषा में बांग्ला वाक्य विन्यास लगा, और अम्बर की इस बात से कि उन्होंने कविताओं में जानते बूझते अप्रवासी बंगालियों की बोली ठोली की शैली डाली है, उनकी इस काव्य शैली की रचना प्रक्रिया और प्रयोजन पर प्रकाश पड़ता है।

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  10. कविताएँ बहुत अच्छी हैं, और भाषा के ऐसे तयशुदा मानक नहीं हैं, कवि प्रयोग करता है। मुझे याद है आपने ऐसी ही स्वस्थ जिज्ञासा मेरी भाषा पर भी रखी थी एक बार, और ऐसी जिज्ञासा का बहुत स्वागत है Tewari Shiv Kishore sir

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  11. हिंदी साहित्य के बहुत से लोग मुझसे एक प्रकार की चिढ़ रखते है क्योंकि मैं उनके साथ किसी प्रकार का परस्पर-प्रशंसा-क्लब नहीं चलाता। मैं दिल्ली में नहीं रहता, किसी सभा समारोह में न जाता हूँ न बुलाया जाता न बुलाए जाने की आशा करता हूँ। तो वहाँ सबमें एक प्रकार का गुप्त समझौता है कि इसकी उपेक्षा करो।

    सबसे आश्चर्य का विषय है कि मैं साहित्य के वरिष्ठों और आम युवाओं ने प्रेम दिया। हिंदी साहित्य के युवाओं ने एक चिढ़ ही दिखाई।

    हिंदी साहित्य के वर्तमान युवा सम्भवत: हिंदी साहित्य की अब तक की और भारतीय साहित्य की सबसे बूढ़ी पीढ़ी है, वह दक़ियानूसी है और विचारों में बाबा आदम के ज़माने की है।

    मुझे इससे अधिक फ़र्क़ नहीं पड़ता। अधिक उपेक्षित अनुभव करने पर या तो मैं विधा ही बदल लेता या दूसरी भाषा में लिखने लगता हूँ।

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    उत्तर
    1. साहित्य और इतिहास हमेशा लोक में जीवित रहते हैं लोक में से मतलब सामान्य जन जीवन जो मठों और मठाधीशों के फतवो से दूर रहता है युवा आपके साथ है जो एकेडमिक है उसे बदलने में अभी बहुत समय लगेगा वह सच मे बूढ़ा है पर आपको पसंद करने वाले हर उम्र के हैं जिनमे जादातर युवा हैं ।
      आपके छद्मि या कहें अवतार लेखनी के तो जबरे फैन हैं।

      आप कुछ लोग मिलकर कुछ नया करने जा रहे थे ऐसा क्या हुआ वह कुनबा टूट गया जिसमें सूरवीर अम्बर तेजस्वी सुशोभित अद्भुत दर्पण आदि शामिल होकर हिंदी साहित्य की दशा बदलने जा रहे थे। वह काम हिंदी साहित्य में अवश्य होना चाहिए वरना ये बूढ़ा एक दिन बीमार होकर चल बसेगा।

      नाम में क्या रखा है

      तोताबाला ठाकुर की जगह मुझे
      कौवा बोला पंडित समझ लिया जाए।

      अभिनंदन आपका

      हटाएं
  12. आपकी कविताएँ बहुत सुंदर और आने वाले समय की कविताएँ हैं। उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। अब भी बहुत पढ़ी जा रही होंगी। चर्चा आलोचना ज़रूर होगी। मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  13. हिन्‍दी कविता का यह नया व स्‍वागतेय चेहरा है। पहली रचना तो कई बार रोमांच से भर गई। इनमें आज की कविताओं जैसा एकजैसापन नहीं होना सुखद अनुभव देकर ढेरों संभावनाएं जगा गया। कवि को बधाई और 'समालोचन' का आभार..

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  14. हिंदी को एक विशेष प्रकार का क्षद्म खोखला कर रहा है. यह क्षद्म महत्वकांक्षाओं का क्षद्म है. इसके सोर्स पर बैठे किरदार एक बहुत खतरनाक खेल खेल रहें है. सूचनाएँ कम है. 'साइंस ऑफ़ लैंग्वेज' जो एक अंतहीन यात्रा है, कम है, 'आर्ट ऑफ़ लैंग्वेज'पटा पड़ा है. एक छोटे से कथानक को, जो हो सकता है, बिना किसी शोध के सामने आई हो, या पूर्णतया मनगढ़ंत हो, आर्ट ऑफ़ टॉकिंग से क्लिष्टता के नए मानकों तक पहुंचा देना कविधर्म लगने लगा है.

    यह दास मानसिकता भी दिखाता है. सूचनाएँ जो देना चाहते है, लेना चाहते है, सजग अपनी यात्रा में लगे हुए है. जिन्हें 'डिलीवरी' की चिंता है, वो पाठकों को कंफ्यूज कर रहें है. पाठक को कम मिले. वर्थ मिले.

    मुझे नहीं समझ में आ रहा मैं इन कविताओं से क्या लेकर जाऊं. बंगला, मैथिली और महाराष्ट्र सबसे जुड़ा हुआ रहा हो. दोनों भाषओं पर सरल पकड़ है. ये कवितायेँ मेरे भीतर के बंगाली और मैथिल दोनों को केवल कंफ्यूज करती है. कवि कहता है वो अपनी विधा बदल लेगा उपहास हुआ तो. फिर मेरा क्या होगा?

    अम्बर एक युवा हैं. और यह बर्ताव 'टीनेजीश'. जब कवि के भीतर का शोधकर्ता, कवि के दम्भी 'पंडित' के सामने समर्पण कर दें तो कविताओं का डाउन द लाइन निर्जीव हो जाना प्राकृतिक घटना होगी.

    हिंदी के पाठक बहुत आसानी से मोहित किये जा सकते है. बहुत सुन्दर लोग हैं. नया पसंद है.
    नए के नाम पर यह 'Cava Bien Merci' का अधकीचड़ा हास्यास्पद है. कवि पांडित्य और कविता ढूंढ लाने की हड़बड़ी में सतह से टकराकर लौट गया है.

    एक टाइटल जिसपर कुछ बहुत अनुभवपूर्ण, सूचनाप्रद और इमोशनल पाठक को मिल सकता था, केवल छिछलापन और हिंदी के चाँद वाला कन्फ्यूज़न मिला है.

    अम्बर बहुत कुछ करने का दावा करते हैं, और एक फील्ड के लोगो को दूसरे फील्ड की बातों से छलते है.
    जिस दिन सब साथ बैठ गए, उदास होगा.

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  15. तुम कवि हो अम्बर और तुम्हारी जो भी कवितायें मैनें पढ़ी हैं ( पेड़ों पर लिखी जो शायद ठीक इन्हीं दिनों पिछले साल समालोचन पर आई थी और कुछ इंटरनेट पर )उन्हें पढ़ते हुए निरंतर यह बात सुदृढ़ हुई कि तुम कवि हो, तुम्हारा कवि होना सबसे महत्वपूर्ण बात है और बाकी सभी बातें इतर है बाकी सब होता और तुम कवि न होते तो मेरे हिसाब से वह अधिक दुखद और अभावग्रस्त होने वाली बात होती क्यूंकि किसी के हाथ में दुनिया थमा दी जाए, दिल्ली हथेली पर भी रख दी जाए तो भी किसी को कवि नहीं बनाया जा सकता. मुझे तो दिल्ली को अनावश्यक रूप से विक्टिम बनाना भी अच्छा नहीं लगता. दिल्ली के दुःख भी तो होंगे, दिल्ली की हानियाँ भी तो होंगी. जो दिल्ली में नहीं है क्या पता वह किसी दुलर्भ सुख में हो.

    अच्छी कविता के प्रति जब प्रेम सच्चा होता है तो आम तौर पर उसके प्रति प्यार प्रकट नहीं करना मुश्किल होता है लेकिन इसका एक और पक्ष यह भी है हम सब अंततः एक सामाजिक संदर्भ में जीते हैं और कई बार ऐसा होता है कि अपने प्रति आने वाले उस प्यार और स्नेह को हम खुद ही बाधित करते हैं. जो रुक रहा है, उसे हमने भी रोका हो सकता है. कविता की प्रशंसा तो कोई अकेले में भी कर लेगा, मन ही मन भी कर लेगा लेकिन अगर साहित्य संसार आम सामाजिक संसार है तो वहां गणना भी होती है, हिसाब भी होता है, और यह हमें मान्य होना चाहिए.

    परस्पर प्रशंसा क्लब की सदस्यता अगर नहीं ली तो उसके कुछ परिणाम होंगे, हमें उन्हें दिल से ओन करना होता है. एक समय के बाद हमें क्या चाहिए उसका निर्णय हो जाना होता है.

    उपेक्षा सृजनात्मकता को नकारात्मक तरीके से प्रभावित करती है कई बार पर फिर यही तो चैलिंज है. ऐसे अवसर पर विनम्रता से अपने आप को स्मरण कराने की ज़रूरत है कि हमारी आसक्ति आखिर किस चीज़ में है.

    ये कवितायें भी बहुत अच्छी हैं,subtle कथानक. सुरीली. बहुत हौले से बातों बातों में आलोक की रेखा बनाने वाली. मुझे तुम्हारी हिंदी बहुत अच्छी लगती है. क्लिष्ट स्वर में सहज शैली.

    मोनिका कुमार






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  16. मैं आपका बहुत आभारी हूँ मोनिका जी। वृक्षों वाली कविता पर लिखी आपकी टिप्पणी मेरे लिए एक अमूल्य रत्न है। Ammber Pandey

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  17. इन्हें पढ़ने के बाद व्यक्ति अतीत से वर्तमान तक के अनेक दृश्यों में ऐसा गुंथ जाता है कि कवि को सलाम करने के अतिरिक्त कुछ सूझता नहीं। लोहे के चाकू से प्याज काटने के बाद लोहे और प्याज की फूस की झोपड़ी में फैलती महक सी कविताएं कंक्रीट के सुविधपूर्ण घरों से बाहर खींच लातीं हैं।

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  18. भारती गौड़27 जुल॰ 2017, 4:54:00 pm

    किसी का भी लेखन वर्तमान में इनके आस पास तक का भी नहीं। अम्बर की कविताएँ औपन्यासिक हैं। इन्हें पढ़ने के लिए पाठकों का एक स्तर होना भी आवश्यक हैं। बाकी अम्बर की ऊपर की हुई टिप्पणी से मैं पूर्ण रूप से सहमत हूँ। हिंदी साहित्य "अब" खेमों में बँट चुका।

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  19. Ambar tum likhte raho hum jaise lakhon log tumhe padhte hai. Padhte rahenge.sahitiya ki duniya me qabil logon ki nahi chatukaron ki jai Hoti hai.

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  20. अभी किसी ने फोन पर ध्यान दिलाया तो जल्दबाजी में दो बातें कह देता हूँ वरना भूल जाऊँगा. पहली बात कि अम्बर पांडे अपनी जीनियसता से थोड़ा नीचे उतरते यह खुलासा कर ही दें कि तोताबाला की कविताओं का क्षेमेन्द्र कथा प्रसंग उड़ाया कहाँ से? बाकी तोताबाला के ही अन्य कविताओं का प्रसंग रामकृष्ण परमहंस और उसी कुनबे से संबंधित सरस्वती फरस्वती खेपा वेपा समझ में तो आता ही है. पहले भी अम्बर लिखते रहे तब तो किसी ने पूछा नहीं. योनि फोनी शिश्न से हिंदी पाठकों को उत्तेजित कर लाए हैं बस. इस कवि की सबसे बड़ी दोयमता यह है कि हमेशा दूसरों के कथानक के हवाले से अपनी बात रीक्रियेट करता है, मौलिक कल्पना ही नहीं है, न कविता के कथ्य के प्रसंग के संदर्भ में, न शिल्प फिल्प में. यह अंतिम कविता ही जो है वह साफ़ शायक आलोक को पढ़ते हुए लिखी गई नजर आती है. फूल चांद स्वेटर भाषा ब्लाह ब्लाह. टेढ़ा मेढ़ा. अर्मेनियन में गुलाब को क्या कहते हैं अना अनाहित. रोष के साथ कहना पड़ेगा कि हिंदी के कविता पाठकों को बस एक मानक पता है किसी कवि को 'अद्भुत' मान लेने के लिए कि 'बाबू हो, मेरा बाप ऐसा नहीं लिख सकता.'

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    उत्तर
    1. यह कविता मैंने २०१० में लिखी है। गिरिराज किराडू (ग़लती से गीत जी का नाम लिखा, उन्होंने दूसरी कविता पढ़कर और लिखने को कहा था) ने पढ़कर उस समय मेरा हौसला बढ़ाया था।
      उस समय जहाँ तक मुझे याद है आप मेरी फ़्रेंड लिस्ट में थे तो आपने ही चुराई हो सम्भव है। उस समय भी न मैं आपको पढ़ता था न अब।
      यहाँ चित्र (screenshot) लगाने की व्यवस्था नहीं वरना आपको बताता।

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  21. उपेक्षित कपाड़. इस बार का भाभू मिलना तय ही हो गया है, अब शायक आलोक का खून पिओगे तब मानोगे भाई कि उपेक्षा दूर हुई. ये बेनामी फेनामी साले कौन हैं. अपनी बात अपने नाम से क्यों नहीं कहते !

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  22. कविताएं पढ़ कर आपसे बात करने की इच्छा रोक नहीं पाया तो आपको नंबर तलाशा। नंबर नहीं होने पर मैंने जी कर अरुण देव जी का नंबर मिलाया और बात की। शुभकामनाएं...

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  23. जो लोग विदेश में लिखी जा रही समकालीन कविता और नजदीकी दृष्टि रखेंगे, वे स्पष्टतः ये कह सकते हैं कि इन कविताओं का स्रोत बिंदु क्या है। विदेशी कवि हर तरह के प्रयोग करते हैं। वे बिंदुओं में, रेखाचित्र में, भाषा में, शिल्प में, बिम्ब में हर तरह के प्रयोग करते हैं। लेकिन मजेदार बात है कि वे प्रयोग जीवनानुभवों से ही निकलकर आता है। इन कविताओं के लक्षण क्या हैं? क्या यह लोक के निकट हैं? क्या ये कल्पना हैं? क्या ये गल्प हैं? क्या हैं ये? हिंदी कविता में उत्तेजित करने वाला एक शब्द लिख दीजिए, लोग लहालोट हो जाएंगे। अम्बर की जीवन दृष्टि व्यापक है इसके पीछे उनके पृष्ठभूमि का वैभिन्य है। इसी चीज का इस्तेमाल करके वे हिंदी पाठकों को छलते हैं। उन्होंने दावा किया है कि हिंदी ने उन्हें उपेक्षित किया है। हिंदी के पास देने के लिए है ही क्या? और फेसबुक की सारी सनसनी तो वे लूट ही चुके हैं। कितनों का अपमान कर चुके हैं और क्या चाहिए कवि बनने के लिए हिंदी में। उनकी कविताएं कुल जमा प्रभाव में शून्य हैं। सिर्फ एक ताजी सनसनी है, एक झूठा भाषाई आश्वासन है। और दिल्ली में न रहने वाले लोग तो इस तरह दिल्ली का रोना रोते हैं जैसे दिल्ली के कवियों को रोज मलाई मिल रही है। दिल्ली की किसी कविता पाठ में जाकर देखिए, एक कायदे का पाठक नहीं दीखता, सिर्फ कवि बनने के लालसी कुछ स्त्रियां और युवा इधर उधर भटकते रहते हैं। जो कवि के रूप में प्रसंशित भी हैं, वे रोजगार और जीवनयापन समस्याओं में उलझे हुए हैं। अम्बर तो फिर भी समृद्ध हैं। उनके मुंह से उपेक्षा शब्द सुनना उनका ही अपना अपमान है।

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  26. उन्होंने अपना वह कमेंट हटा दिया जिसमें गीत चतुर्वेदी जी द्वारा की गयी तारीफ की बात की थी। अच्छी बात है उसे सुरक्षित रखिए लेकिन वह दिन भी याद कीजिए जब आपने स्वयं गीत चतुर्वेदी जी का प्रकारान्तर से अपमान किया। खैर।

    जहाँ तक आपने उनकी टिप्पणी को साक्ष्य के तौर पर दिखाने का वादा किया तो आपको यहां बता दिया जाए कि कविता पाठक के रूप में हमारी व्यक्तिगत चेतना शून्य नहीं जो किसी की कही बात को अंतिम मान लें। और आपने यह भी लिखा कि आप मुझे न तो जानते हैं और न ही पढ़ते हैं- क्या पता मैं लिखता ही न होऊं! क्या पता मुझमें जाने जाने की आकांक्षा ही न हो!

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    1. मैं शायक आलोक जी की टिप्पणी का उत्तर लिख रहा था। पुनः ऊपर जाकर देखे।
      पता नहीं क्यों आप मुझपर बयान देना अपना धर्म समझते है। बहुत समय से आप मेरे विषय में अनुचित और आधारहीन बातें लिखते रहे। मैंने उसकी सदैव उपेक्षा की और आगे भी करूँगा।
      मुझे याद है एक दफ़ा उत्तेजना में आप लोगों से मेरे टेलेफ़ोन नम्बर की भीख तक माँग रहे थे। कृपया ऐसा न करे। आपको मेरा साहित्य पसंद न हो तो बोलानो आदि पढ़े। स्पहानी सीख ले। मेरा पीछा छोड़े।

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    2. आपके विषय में मैंने कोई आधारहीन बात नहीं की। आपने तो दोस्तोवस्की, काफ्का, कामू और सार्त्र तक का उपहास किया मानो आपसे बेहतर कोई लेखक इस ब्रह्मांड में नहीं। मैं नाचीज क्या हूँ। आ जाइए दिल्ली, यहां की मिठाई खा जाइए। आपके चाहने वाले बहुत हैं। जब आपको लगता है कि सामने वाले ने मेरी नस पकड़ ली तो चीख की भाषा क्यों बोलने लगते हैं।

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  27. 2010 में तो मेरे पूर्वज भी नहीं थे फेसबुक पर कवि जी और मेरी कविता तो सचमुच की अर्मेनियाई लड़की को प्रपोज करते हुए प्रस्तुत हुई. दूसरे के माल (कथा, दृष्टांत) से अपन अपनी कविता नहीं बनाते. अभी भी अवसर है कि औसत अधेड़ों से पा रहे जीनियसता की मुग्धता से बाहर निकलिए और मेरी प्रतीक्षा का अंत कीजिए. शुभम को पुरस्कार के परिदृश्य में एक पुरुष से अवतरित हुई दोनों स्रियों ने हिंदी पाठकों ( औसत अधेड़ कवि कथाकारनुमाओं सहित) को कैसे देह बिम्ब से आजमाया, उसकी मूल कथा वक्तव्य में प्रस्तुत कीजिए. सारे संदर्भ (पुस्तक नाम सहित) प्रस्तुत कीजिए कि क्या पढ़ते हुए आपने इन्हें यूँ बंगाली हिज्जे बिगाड़ बिगाड़ उतार दिया. इधर दूसरी ओर आप सर्वश्री अरुणदेव से माफ़ी मांगिये कि आपने इन्हें नई कविता कह उन्हें ठेल दिया और अरुणदेव इधर माफ़ी मांगें कि उन्होंने नया कह हिंदी की ओर.

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    1. आप थे और आप चोर है। भड़किए मत। चोरी के ऊपर सीनाजोरी आपको शोभा नहीं देती।

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    2. नए की केवल कालगत परिभाषा नहीं होती, यह आपकी समझ से बाहर है।
      आप judiciary की परीक्षा दीजिए, अभी आप न्यायाधीश बने नहीं जो मैं aapke प्रश्नों का उत्तर दूँ। चाहे तो कुछ दिनों के लिए किसी न्यायमूर्ति के दरबान हो जाइए ताकि आप सीख सके कि प्रश्न पूछे कैसे जाते है।

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  28. Shukla, don't bore me. You speak/write rubbish all the time. Bye.

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    1. I don't need your certificate sweetheart. Have fun with your cheap sensational poetry and win accolades. All the best.

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  29. मैं चोर ! हा हा. सही है. मैं डाकू लुटेरा भी. लेकिन आप सच में खुलासा कीजिए. सिंथेटिक गढ़ने में आप ठीक हैं. कमरे में बैठे ही आप निर्मला पुतुल की नानी हो गए थे आदिवासी संवेदना में. आप बता दें कि कैसे उड़ाते हैं माल. एक माल से दूसरे माल की निर्मिती कैसे होती है. मैंने एक बार 'कविता सीखो' लिखकर डी-कोड किया था. आप खुलासा करें तो आप अधिक काम आ सकेंगे. वरना उत्तेजना का क्या है !.. उतर जाती है. पाठकों की भी. औसत अधेड़ों की भी. कवि की भी.

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  31. मेरे पास आपकी कुंठा का इलाज़ नहीं है सहायकजी क्यों नहीं आप अपने चेले आदित्य शुक्ल से पूछते कि जहाँ उनकी मानसिक भ्रांतियों का इलाज चल रहा है वहां वह आपको भी ले जाकर दिखा दें. Bye bye

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    1. यही व्यवहार तो आपकी सिग्नेचर शैली है प्रिय। साहित्यिक संवेदना की पराकाष्ठा।

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  32. हा हा.. अंतिम टिप्पणी में तो आपने बस कमाल कर दिया कवि जी. शुक्रिया भी, शुभकामनाएं भी. इनमें से थोड़ा ब्लॉग मोडरेटर (संपादक) को भी दीजिएगा. बाँट कूच खाए - राजा घर जाए.

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  34. अधिकांश विपरीत टिप्पणियां पूर्वाग्रही हैं। इन चार कविताओं से कोई संबंध नहीं है।बहुत सी प्रतिक्रियाएं तो इस कोटि की हैं जिन्हें भोजपुरी में 'रंड़हो-पुतहो" कहते हैं।
    जब प्रकाशित कविताओं पर कोई बात ही न करो तो वार्ता किस बात पर हो। आप ' टाकाचोर' (किसी को भ्रम हो कि यह बांग्ला नाम है तो स्पष्ट कर दें कि चिड़िया को टकाचोर मराठी में कहते हैं संभवतः , बांग्ला में कतई नहीं) कविता को लें। इस कविता में इतने थीम हैं कि अकेले इसी पर 2-3 हज़ार शब्दों का विनिमय हो सकता था।
    जिन्हें लगे कि मैं कवि को प्रोमोट कर रहा हूं उनकी सूचना के लिए बता दूं कि अंबर पांडे ने शायद मुझे ब्लाक कर रखा है। तोताबाला कविताओं की मैंने तीखी आलोचना की थी।
    हिंदी में ऐसे आलसी साहित्यकार पाठक हैं तो बाक़ी से क्या उम्मीद करें।
    धिक्कार है!

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  35. संवाद की भी अपनी मर्यादा होती है कृपया व्यक्तिगत टिप्पणियाँ न करें.

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  36. सर कैसे भी हो आपसे मिलना चाहता हूँ। आपको एक बार दर्शन करना चाहता हूँ।
    नवोदय 9756301298

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