अंतरजातीय विवाह भारतीय समाज का वह
लिटमस पेपर है जिससे आप जातिवाद के ज़हर का पता लगा सकते हैं. यह अकारण नहीं है कि
ऐसे विवाह बमुश्किल पांच प्रतिशत भी नहीं हैं, जबकि विश्व के अधिकांश हिस्सों में
शादियाँ इसी तरह होती हैं.
अंतरजातीय विवाहों के जो खतरें है उसका सबल चित्रण ‘सैराट’ करती है और यह कोई
ऐसी चीज नहीं है जिससे हम हिंदी भाषी अपरिचित हों. जो संस्कृति सुबह शाम राधे-राधे करती है वही प्रेमी जोड़ों को कभी भरी पंचायत में हत्या का
फरमान सुनाती है तो कभी उन्हें पेड़ों से लटका देती है.
Custodian
killing (पता नहीं क्यों इसे ऑनर
किलिंग कहा जाता है)
को लेकर हिंदी में प्रभावशाली फिल्में बनती रही हैं,अभी मेरे जेहन में जो सबसे नई
फ़िल्म है वह नवदीप सिंह द्वारा निर्देशित एन.एच-10 है. एक बनैले समाज में प्रेम जैसे नाज़ुक फूल का
क्या हश्र हो सकता है\ होता है यह फ़िल्म दिखाती है.
पर ‘सैराट’ ने तो एक
और कमाल कर दिया है. फ़िल्म के रिलीज होने के १० दिन के अंदर 'सैराट मैरज ग्रुप’ बना जिसमें पुलिस, वकील
और प्रबुद्ध लोग शामिल हैं, इस समूह ने अब तक 15 अंतरजातीय विवाह सम्पन्न कराये
हैं. क्या किसी फ़िल्म का ऐसा सकारात्मक प्रभाव भी समाज पर पड़ता है.
और तमाम बातें, फ़िल्म
की और खूबियाँ आदि. सारंग उपाध्याय के इस
सधे लेख में
सैराट की जमीन
सारंग उपाध्याय
फिल्म 'फैंड्री' निर्देशक नागराज मंजुले के जीवन का भोगा हुआ
यथार्थ है, जबकि 'सैराट' भोगे हुए से दूर तक देखा गया. पर्दे पर प्रयोग की कूची से कुछ नया रचने की
बैचेनी इस फिल्म को अविस्मरणीय फिल्मों की कतार में खड़ा कर देती है. फिल्म का
अंत हर एक दर्शक के दिलो-दिमाग को झंझोड़ देने के लिए काफी है. हम खून से सने नन्हे
आकाश के पैरों के पीछे-पीछे चलते हुए उस अमानवीय, संवेदनहीन, विचारशून्य,
क्रूर, हिंसक और जघन्य मानसिकता से जूझते हैं, जो मनहूस आशंकाओं के रूप में हमारे आसपास घूम रही हैं. यह
फिल्म उन हत्यारी आशंकाओं को टटोलने, समझने, उसके घातों का अंदेशा लगाने की छटपटाहट है,
जिसने हमारे समाज की मनुष्यता को हैवानियत से
भर दिया है. यह फिल्म घुप्प अंधेरे में एक दियासलाई की तरह है.
मराठी सिनेमा समाज के यथार्थ का जेरॉक्स होता है. 'सैराट' जातिवाद, अस्पृश्यता, नस्लभेद और सांप्रदायिकता के बीच दम तोड़ रही मनुष्यता और
लहुलूहान हो रहे प्रेम की छायाप्रति है. समाज का यह सच हमारी परछाई बन गया है.
'सैराट' कलात्मक सामाजिक
प्रतिबद्धता का स्तरीय, श्रेष्ठ और
गंभीर उदाहरण है, वह सफलता के
मानदंडों से परे अनूठी प्रयोगधर्मिता है. यह फिल्म तीन घंटे के अंतराल में
दिलों-दिमाग से होती हुई समाज भीतर उथल-पुथल मचा रही है. रिलीजिंग के 10 दिनों के अंदर फिल्म के नाम पर महाराष्ट्र
के जलगांव में बना 'सैराट मैरिज
ग्रुप' ऐसी ही उथल-पुथल है, जिसका परिणाम एक थियेटर में फिल्म के शो के दौरान एक
अंतरजातीय विवाह के रूप में सामने आया है. इस समूह ने प्रेमी जोड़ों का अंतरजातीय
विवाह करवाने, उन्हें सुरक्षा
और नौकरी दिलवाने का बीड़ा उठाया है.
अलग-अलग मजहबों, जातियों के घर से भागे, समाज से बेदखल और
धमकियों के बीच जी रहे तकरीबन 15 प्रेमी जोड़ों के
मामलों का निपटारा इस फिल्म का समाज को तोहफा है. बीड, नांदेड, पुणे, नासिक, कोल्हापुर के रहने वाले भिन्न जाति और धर्म के प्रेमियों
के तकरीबन 6 विवाह हो जाना हमारे समय
में कला और कलाकार की ताकत है. सैराट जैसी फिल्मों की ताकत है.
कला उम्मीदों का सवेरा है. हम कविताओं में उम्मीद रचते
हैं और कहानियों में उसे साकार करते हैं. कला के औजार ही मनुष्यता को निखारते हैं
और उसकी आत्मा संवारते हैं. कला इतिहासकार आर्नल्ड हाउजर ने ठीक कहा है ''कला उन्हीं की मदद करती है जो उससे मदद मांगते हैं, जो अपने विवेक के संशय, अपने संदेहों और अपने पूर्वग्रहों के साथ उसके
पास आते हैं। वह गूंगे के लिए गूंगी है, उसी से बोलती है, जो उससे सवाल करते हैं."
निर्देशक नागराज मंजुले ने फैंड्री और सैराट के जरिये कला से ही सवाल किया है,
और कला ने उसका पूरा जवाब दिया है. मराठी
सिनेमा कला के जरिये ही अपने समाज से सवाल पूछता रहा है और वह उसके जवाब देती रही
है. डोंबीवली फास्ट, डॉ. प्रकाश बाबा
आमटे, जोगवा, काक स्पर्श,सिटी ऑफ गोल्ड, हरिश्चंद्रा ची फैक्ट्री, फैंड्री, कोर्ट, मराठी सिने कला के आंगन के क्रांतिकारी फूल हैं. क्रांति के इन्हीं फूलों की
महक से समाज जागते हैं और राजनीति उठ खड़ी होती है, परिवर्तन धीमी गति से होते हैं जबकि बदलाव ही समाज की नियति
होते हैं.
प्रबुद्ध लोग जानते हैं कि जिस जंगल-बुक फिल्म का थ्रीडी
वर्जन देखकर सिनेमा घरों में हमने ताली बजाई है, उसके प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक रुडयार्ड किपलिंग, भारत को किसी जंगल-बुक से कम नहीं मानते थे,
ना ही भारत की आजादी के ही पक्ष में थे. विंस्टन
चर्चिल भारतीयों को असभ्य, जंगली, बर्बर, धूर्त, बदमाश और लुटेरा कहते रहे
और लोकतंत्र को भारत के लिए सपना मानते रहे. रॉबर्ट डल जैसे राजनीतिक चिंतक और
तमाम तत्कालीन ब्रिटिश, अमेरिकी
बुद्धिजीवी, पत्रकार भारत की
एक राष्ट्र के रूप में फिर से बिखर जाने की आशंकाएं ही नहीं, घोषणाएं और भविष्यवाणियां करते रहे, बावजूद सतत् परिवर्तन और संघर्षगामी प्रवृत्तियों
के बीच हमारा अस्तित्व संपूर्ण अखंडता, वैज्ञानिक प्रगतिशीलता के साथ उत्तरोत्तर प्रगति करता रहा है.
सैराट के भीतर से एक जमीनी आंदोलन की महक आ रही है. इधर, प्रयोगधर्मिता के स्तर पर भी यह फिल्म काबिले गौर है. फिल्म में कोई
प्रोफेशल कलाकार नहीं है, जिन पर 3 घंटे की पूरी फिल्म में, फिल्म के शानदार कैमरामैन सुधाकर रेड्डी
यकांती का कैमरा करतब दिखा रहा है. फिल्म की मुख्य किरदार अर्चना पाटिल ऊर्फ
आर्ची यानी की रिंकू राजगुरु सोल्हापुर जिले के अकलुज तहसील के जीजा माता कन्या
प्रशाला स्कूल की 10वीं में पढ़ने
वाली छात्रा हैं. रिंकू जब 7वी में पढ़ रहीं
थीं तभी, 'फैंड्री' फिल्म बनाकर आत्मविश्वास से भरे मंजुले ने 'सैराट' के कट कैमरा एक्शन का केंद्र 'आर्ची' को बना लिया. अपने दोस्त की इस बेटी से
निर्देशक नागराज मंजुले की मुलाकात 2013 में हुई थी. नागराज मंजुले सोल्हापुर जिले के ही जेऊर गांव से है, जो रिंकू के गांव अकलुज से 1 घंटे की दूरी पर है.
8वीं और 9वीं कक्षा में
पढ़ते हुए रिंकू ने फिल्म की शूटिंग पूरी की और नागराज ने बाकायदा एक साल उन्हें
घर पर अभिनय की ट्रेनिंग दी. पार्श्या ऊर्फ प्रशांत काले, यानी की आकाश तोशर, पुणे में पहलवानी कर रहे थे और कुछ नाटक खेल चुके थे. 13 किलो वजन घटाकर वे महज एक वॉट्सएप्प इमेज से मंजुले के
ट्रेनिंग कैंप में शामिल हो गए.
यह नागराज मंजुले का जिगरा है कि उन्होंने नेशनल अवॉर्ड
जीत चुकी फिल्म फैंड्री के बाद दूसरी फिल्म के लिए इस तरह का रिस्क लिया. स्कूली
बच्चों ने कमाल किया है और नागराज ने इस कमाल को करवाया है. बधाई बनती है.
कैमरामैन सुधाकर यकांती ने अद्भुत काम किया है. आंध्र
प्रदेश के गुंटुर के रहने वाले और जवाहर लाल नेहरू टेक्निकल यूनिवर्सिटी हैदराबाद
से बैचलर और फिल्म इंस्ट्रीट्यूट ऑफ पुणे से पीजी कर चुके सुधाकर यकांती उन चंद
लोगों में से एक है, जिन्हें बतौर
निर्देशक अपनी पहली फिल्म 'एक आकाश' के लिए 2004 का स्पेशल ज्यूरी का राष्ट्रीय पुरस्कार और तीन
अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं.
वे एफटीआईआई में गजेंद्र चौहान की नियुक्ति पर पुरस्कार
लौटाने वालों में से एक हैं. हिंदी, मराठी और तेलगु की कई फिल्मों में अपने कैमरे का हुनर दिखा चुके सुधाकर को इन
नये कलाकारों के साथ काम करने और फिल्मी पर्दे पर सबकुछ रीयल बताने के लिए बहुत
मेहनत करनी पड़ी है, जो फिल्म में
दिखाई देता है. कैमरे की दुनिया और उसके तकनीकी पहलू को समझने वाले इसे बेहतर
तरीके से जान पाएंगे.
फिल्म के फर्स्ट हाफ में कलाकारों से ज्यादा कैमरे का
कमाल है. यकीनन जब कैमरा दृश्यों से कहानी बुनना शुरू करता है, उसे दृश्यों के भीतर कहानी की जरूरत नहीं होती.
इस लिहाज से कैमरामैन सुधाकर और निर्देशक नागराज मंजुले फिल्म में दृश्यों के
चितेरे साबित हुए हैं और हां उनके सहयोगी अविनाश घाघडे भी, जिन्होंने कुछ बेहतरीन दृश्य और संवाद भी लिखे हैं. यानी
की मंजुले, सुधाकर और घाघडे एंड टीम
ने स्थितियों, घटनाओं और
प्रसंगों के बीच गुजरते जीवन से 'सैराट' को बुना है. लिहाजा ये फिल्म नये फिल्म
निर्देशकों और कैमरा चलाने वालों के लिए एक बढ़िया क्लास है.
संगीत फिल्म के पार्श्व में बहती वह नदी है, जिसके भीतर से दृश्यों की संवेदनाएं, दर्शकों के मन से तादात्मय स्थापित करती हैं.
संगीत से ही हमारा मन, पात्रों की
संवेदनाओं से स्पर्श करता है. सैराट के संगीत पर ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा,
सिवाय इसके की भारतीय सिनेमा के इतिहास की यह
पहली ऐसी फिल्म है, जिसका संगीत पहली
बार विदेश में रिकॉर्ड किया गया. अमेरिका के लॉस ऐंजिलिस के 'सोनी स्कोरिंग स्टूडियो' में जाने-माने ऑर्केस्ट्रा कंडक्टर 'मार्के ग्राहम' के नेतृत्व में 45 हॉलीवुड कलाकारों द्वारा 'सिम्फैनी
ऑर्केस्ट्रा' रिकॉर्ड की गई.
वाकई ये प्रयोग अद्भुत है, बॉलीवुड को अपने
संगीत के बारे में सोचना होगा.
इधर, जो लोग मराठी
सिनेमा से थोड़ा भी परिचत हैं, वे अजय-अतुल के
संगीत के बारे में जानते हैं, उनसे
झिंग..झिंग..झिंगाट, याडं लागलं ग
याडं लागलं गं और सैराट..झाला.. जैसे गानों की ही उम्मीद थी. अजय-अतुल को जोगवा
के शानदार संगीत के लिए 2008 का राष्ट्रीय
पुरस्कार भी मिला है. बता दूं कि तीनों ही गाने भी अजय-अतुल ने ही लिखे हैं.
फिल्म का संपादन कुतुब ईनामदार ने किया है, जहां तक जानकारी है ये उनकी पहली फिल्म है,
सो उन्हें बधाई. कुल 4 करोड़ की लागत में बनी यह फिल्म ने बॉक्स ऑफिस मराठी
सिनेमा के कई कीर्तिमान तोड़े हैं और नये रचे हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि ये 100 करोड़ के क्लब में यह जल्द शामिल हो जाएगी.
इसके अलावा फिल्म के लिए पैसा लगाने वाले एस्सल विजन को बधाई कि वे किल्ला (2015),
टाइम पास-2
(2015), लोकमान्य एक युगपुरुष (2015),
डॉ. प्रकाश बाबा आम्टे (2014),एलिजाबेथ एकादशी (2014) नटराज (2016), कटयार कलैजात घुसली (2015) और लय भारी (2014) जैसी पटकथाओं पर भरोसा जता चुके हैं.
और अंत में बधाई समालोचन को, जिसने कनाडा, से लेकर अमेरिका तक में देखी जा रही इस गैर हिंदी भाषी, गंभीर, स्तरीय और
सामाजिक सरोकार की फिल्म पर चर्चा शुरू की. आभार और शुक्रिया वरिष्ठ लेखक श्री
विष्णु खरे का, जिन्होंने इतनी
गंभीर फिल्म पर लिखकर इसे चर्चा के केंद्र में ले आए. आभार व धन्यवाद श्री मयंक
सक्सेना, श्री कैलाश वानखेड़े, जयंत पवार, आरबी तायडे और टीकम शेखावत का जिन्होंने बहुत
असाधारण समीक्षात्मक लेख इस फिल्म पर पेश किए.
सारंग उपाध्याय
उप समाचार संपादक
Network18
khabar.ibnlive.in.com
New Delhi
sonu.upadhyay@gmail.com
('सैराट- संवाद' पढने के लिए यहाँ क्लिक करें. एक ‘सफल’ ख़ूनी पलायन से छिटकते प्रश्न : विष्णु खरे )
सैराट : सिनेमा, सामाजिक चिंताएं और बुद्धिजीवी संदीप सिंह
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सैराट : सिनेमा, सामाजिक चिंताएं और बुद्धिजीवी संदीप सिंह
मुझे अपनी हक़ीर टिप्पणी से यह उम्मीद क़तई नहीं थी.''बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी'' का ऐसा उदाहरण मैंने ज़िन्दगी में नहीं देखा.किस क़दर गहराई,वैविध्य,उत्कृष्टता और सिने-प्रतिबद्धता के लेख सामने आ रहे हैं.चिन्गारियाँ छिटक रही हैं.यह भारतीय फ़िल्म-समीक्षा का अपने तरह का पहला माउंट एवरेस्ट अभियान है जिसमें कई दिशाओं से शिखर तक पहुँचने की कोशिश की जा रही है.And,as they say in English,the last word is yet to be heard !अभी आख़िरी कैंप और तम्बू लगना बाक़ी है.
जवाब देंहटाएंये सिलसिला ऐसा चला कि फेसबुक वासियों के किसी हाक़िम ने अरुण जी का नाम ही बदल दिया। आप हो गए- सैराटारुण.
जवाब देंहटाएंखरे जी आपकी टिप्पणी हक़ीर कहाँ, वह तो ख़तकशीद रही।
सारंग जी बढ़िया है समीक्षा। कैमरे पर भी यहाँ बात हो गई। कथा में कैमरा भी एक विज़न है।
विष्णु, सर, यह सब आपने ही शुरू किया है। यदि सैराट पर आप ना लिखते तो, तो मैं मराठी संस्कृति में रचा बसा व्यक्ति भी इन दिनों उत्तर भारत में ऐसा रम गया हूं ये फिल्म देखने का खयाल ही नहीं आता। :)
जवाब देंहटाएंविष्णु जी सहित मंयक जी, सारंग जी ,नारंग जी,कैलाश जी सभी की समिक्षाएँ दुरूस्त।समाज को आईना दिखाती सैराट फिल्म और सह्रदयी कवि के किए का आईना बने 'सैराट मैरेज ग्रुप'को अनेक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंये देखिए ये है सैराट का जादू। The Indian Express और http://www.huffingtonpost.in
जवाब देंहटाएंकी रिपोर्ट देखिए।
http://www.huffingtonpost.in/2016/06/06/sairat-marriage-group_n_10316548.html?ncid=fcbklnkinhpmg00000001
http://indianexpress.com/article/lifestyle/art-and-culture/the-truth-about-forever-2834583/
जवाब देंहटाएंसैराट के हल्ले में एक और हल्ला मचना शुरू हुआ है अब ये कहाँ तक सही है इसकी कोई पुष्टी नहीं हुई है परन्तु यदि यह सही है तब क्या कवियों फिल्मकारों कलाकारों के व्यक्तिगत जीवन और रचे गए खोखले विचारों में अन्तर की भी बात करेगा कोई??? या ये सब एक दिखावा मात्र रह जायेगा वैसे प्रसिद्धि मिलने के बाद ऐसा अक्सर होना देखा गया है...लिंक पर देख ले.....
जवाब देंहटाएंhttp://hindi.thequint.com/entertainment/2016/06/07/sairat-director-nagraj-manjules-wife-sunita-accuses-domestic-abuse
हमारे बड़े नाटक कार मोहन राकेश,फिल्मकार अनुराग कश्यप,आदि आदि नाम है जो करनी और कथनी में बहुत ही उचित दूरी रखते देखे गए हैं
विष्णु जी शायद इससे वाकिफ भी होंगे और नाराज़ व प्रसन्न दोनों होंगे, दोनों इसलिए क्योंकि परंपरा को गलत तरीके से तोड़ने व् अमानवीय होते जाने पर गुस्सा व प्रसन्नता दोनों जायज हो शायद यह अनुमान मात्र है....!!!!!!!!
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-6-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2368 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बढ़िया है समीक्षा।
जवाब देंहटाएंbadiya sameeksha ..bahut tareef suni hai is film ki agar ye sub titles ke sath uplabdh hoto gair marathi bhi ise dekh paye ..
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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