परम्परा और संस्कृति में बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं जो समय को देखते हुए अपना
स्वरूप बदलती है. इसे ही परम्परा की आधुनिकता कहते हैं. स्मृतिविहीन किसी भी
संस्कृति की कल्पना भयावह है. होली में खुल कर और खिल कर कहने की परम्परा है. यह एक तरह से सामूहिक
विरेचन का पर्व है. आज इस परम्परा को स्वस्थ रूप देते हुए इसे फिर से सामाजिक और
संस्थागत विडम्बनाओं और विद्रूपताओं पर कबीर की तरह तंज़ करने और हमले करने के अवसर
में बदलना होगा. इसे सामाजिकता, सहभागिता और समानता की स्थापना के पर्व के रूप में
देखना चाहिए. आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
इस अवसर पर प्रस्तुत हैं आचार्य रामपलट दास के जोगीरे. आचार्य दास अद्भुत
प्रतिभा के धनी हैं. लोक से उनके जुडाव और प्रगतिशील बोध का प्रमाण है ये दोहें.
वास्तव में वह कबीर की परम्परा के जन कवि हैं.
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भइंस बिआइल पाड़ी पड़रू ,गाय बिआइल बाछा
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आचार्य
रामपलट दास के जोगीरे ..
चैनल
चैनल साहेब बोलें अपने मन की बात
मुंह
में राम बगल में छुरी रोज़ लगावें घात
संसद
सीढ़ी शीश झुकावें लोकतन्त्र सम्मान
अध्यादेसी
रुट पकड़लस परिधानी परधान
जन्तर
मरलस मन्तर मरलस मरलस जादू टोना
अच्छे
दिन में आँख मुनाइल पलटू भए बिछौना
चाल
चरित्तर चेहरा बदलल मचल बा कउआरोर
आम
आदमी भकुआइल ई का कइला सरकार
भात
बने तो दाल न जूरे दाल बने तरकारी
कुल्ही
सब्सिडी पलटू खाएं कागज़ में सरकारी
मजदूरी
मजदूर न पावे खेत न पावे खाद
यू
एन ओ में सीट मिले बस विश्व गुरू क स्वाद
जहाँ
चदरिया कबिरा बीना बिस्मिल्ला शहनाई
ओही
घाट पर नंग खड़ा बा बोलाला गंगा माई
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आधी
टांग क धोती पहिरे ,
आधी पीठ उघार
पलटू
कारन बजट क घाटा ,
बोल रहल सरकार ... जोगीरा सा रा रा रा
आध
पाव क भुअरी छेरी ,
सेर भरे क गाय
आठ
मूंह क घर-गिरस्थी,
रामभरोसे जाय ... जोगीरा सा रा रा रा
बतरा
जी क पतरा पढ़ि के,
फइल रहल ह ग्यान
कन्द
मूल फल खाइके,
ऊड़त रहल विमान .... जोगीरा सा रा रा रा
द्वापर
युग में साथे खेललस,
निर्धन विप्र सुदामा
मित्र
कृपा से कलीकाल में,
नाम पड़ल ओबामा .... जोगीरा सा रा रा रा
संगम
तट पर रेत उड़ेले,
बरफ़ पड़े कौसानी
आपन
सूट चकाचक चाहे,
मरे देस कै नानी ....जोगीरा सा रा रा रा
मूस
मोटाई लोढ़ा होई ,
काटी सबकर कान
घाटी
वाली गद्दी ख़ातिर ,
घुसुर गइल सब ग्यान ... जोगीरा सा रा रा रा
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कवन
डाल से उड़ल चिरइया,
कवन डाल पर जाय
कवन
डाल से दाना चुन के , कवन राग में गाय ... जोगीरा
सा रा रा रा
संघ
भवन से उड़ल चिरइया ,
मठ-महन्थ पर जाय
अम्बनियन
से चन्दा ले के ,
राष्ट्र राष्ट्र चिल्लाय ... जोगीरा सा रा रा रा
कैनटीन
में साहेब खइलन ,
खबर बनल झक्कास
पाथर
पानी गेहूं सरसों ,
पलटू के सलफास ...जोगीरा सा रा रा रा
फाइल
फाइल सड़क बनल बा ,
फ़ाइल में टिउबेल
फ़ाइल
पल्टू पट्टा जोतें ,
फ़ाइल के सब खेल ...जोगीरा सा रा रा रा
जुमला
बोलि के संसद जीतल ,
जुमले से कशमीर
जुमला
घोरि के भगत पीएं ,
फूटि गइल तकदीर ... जोगीरा सा रा रा रा
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दूध
जे मांगी खीर दिआई ,
बहुत रहल परचार
मुफ़्ती
बोलें महँग बोली ,
साहेब दाँत चियार ... जोगीरा सा रा रा रा
बाईं
आँख संन्यासी हो गई , दाईं आँख गिरहस्थ
बाबा
जी के चवनपरास में ,
आसाराम बा मस्त ... जोगीरा सा रा रा रा
कारपोरेट
क काली दाढ़ी ,
बाबा लोग क स्वेत
पल्टू
इनकर पेट पोसावें ,
बेच के आपन खेत ... जोगीरा सा रा रा रा
एक
रुपया में तीन अठन्नी , तीनों मांगें मोल
जुमला
बोलि के साहब बचिगे , भक्त भए बकलोल ... जोगीरा सा
रा रा रा
एक
कुआँ में चार कबुत्तर , चारों देखें खेल
तड़ीपार
अध्यक्ष बनल बा ,
रोज दिआवे बेल ... जोगीरा सारा रा रा
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जनगणना
में जन गिनवावें ,
पशुगणना में बैल
बेसिक
शिक्षा दक्खिन गइल ,
निकल गइल बा तेल.... जोगीरा सा रा रा रा
बाढ़
चढ़े पर खेती बिक गई , सूखा पड़े मकान
बाकी
बची सो साहेब ले लें , फांसी चढ़े किसान ... जोगीरा
सा रा रा रा
केकरे
खातिर पान बनल बा ,
केकरे खातिर बांस
केकरे
खातिर पूड़ी पूआ ,
केकर सत्यानास...... जोगीरा सा रा रा रा
नेतवन
खातिर पान बनल बा ,
पब्लिक खातिर बांस
अफ़सर
काटें पूड़ी पूआ ,
सिस्टम सत्यानास .... जोगीरा सा रा रा रा
कौन
देस के लोहा जाई ,
कौन देस अलमुनिया
आ
कौन देस में डंडा बाजी , कौन देस हरमुनिया .....
जोगीरा सा रा रा रा
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चीन
देस के लोहा जाई ,
अमरीका अलमुनिया
आ
नियामतगिरि में डंडा बाजी , संसद में हरमुनिया
....जोगीरा सा रा रा रा
चिन्नी
चाउर महंग भइल ,
महंग भइल पिसान
मनरेगा
क कारड ले के ,
चाटा साँझ बिहान .....जोगीरा सा रा रा रा
का
करबा अमरीका जाके ,
का करबा जापान
एम
डी एम क खिचड़ी खाके , हो जा पहलवान .....जोगीरा सा
रा रा रा
कौन
दुल्हनिया डोली जाए,
कौन दुल्हनिया कार
कौन
दुल्हनिया झोंटा नोचे, नाम केकर सरकार .... जोगीरा
सा रा रा रा
संघ
दुल्हनिया डोली जाए , कारपोरेट भरि कार
धरम
दुल्हनिया झोंटा नोचे , बउरहिया सरकार ....जोगीरा सा
रा रा रा
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भइंस बिआइल पाड़ी पड़रू ,गाय बिआइल बाछा
भयल
विकसवा पैदा पल्टू ,
खोल पछोटा नाचा ........जोगीरा सा रा रा रा
इक
रुपया में चार चवन्नी , चारो काटें कान
बुलेट
ट्रेन में देश चढ़ल बा , परिधानी परधान ....जोगीरा सा
रा रा रा
अड़ही
देखलीं गड़ही देखलीं , देखलीं सब रंगरूट
बड़
नसीब साहेब के देखलीं , बेचत आपन सूट ..... जोगीरा सा
रा रा रा
जल
जमीन जंगल के खातिर , अध्यादेशी रूट
संसद
बइठि बात पगुरावे ,
साहब बेचें सूट ......जोगीरा सा रा रा रा
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सटीक व सार्थक सामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरंगों के महापर्व होली की
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (07-03-2015) को "भेद-भाव को मेटता होली का त्यौहार" { चर्चा अंक-1910 } पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
इक रुपया में चार चवन्नी , चारो काटें कान
जवाब देंहटाएंबुलेट ट्रेन में देश चढ़ल बा , परिधानी परधान ....जोगीरा सा रा रा रा
अड़ही देखलीं गड़ही देखलीं , देखलीं सब रंगरूट
बड़ नसीब साहेब के देखलीं , बेचत आपन सूट ..... जोगीरा सा रा रा रा
बहुत मजेदार और प्रासंगिक जोगीरा है. मुझे बरसों पहले राजनन्दन सिंह राजन रचित एक जोगीरा याद आ रहा है. एक यहाँ पेश है - गंगा जी के घाट पर मिला एक इंसान/ मैंने पूछा नाम तो बोला/ मैं हूँ हिन्दुस्तान/ कटोरा लिए खड़ा हूँ. जोगीरा सा रा रा रा रा रा
जवाब देंहटाएंआचार्य राम पलट दास की रचना अद्भुत है. उनके बारे में थोड़ा और बताएँ.
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