चिनुआ अचेबे (Chinua Achebe) अपने पहले उपन्यास ‘Things Fall Apart (1958)’ के कारण आधुनिक अफ्रीकी साहित्य में ख्यात हैं, इसके साथ ही अचेबे भाषा और साहित्य के अच्छे आलोचक भी हैं. उपनिवेश होने के कारण अफ्रीका की स्थानीय भाषाओँ पर भी अंग्रेजी का दबदबा है, अचेबे ने १९६४ में ‘अफ्रीकी लेखक और अंग्रेजी भाषा’ शीर्षक अपने व्याख्यान में एक याद रह जाने और कचोटने वाली बात कही थी- “क्या यह उचित है कि किसी दूसरी भाषा के लिए कोई अपनी मातृभाषा छोड़ दे? यह एक भयानक विश्वासघात जैसा लगता है और एक अपराधबोध को जन्म देता है. लेकिन मेरे लिए और कोई रास्ता नहीं है, मुझे एक भाषा प्रदान की गई और जाहिर है कि मैं उसका इस्तेमाल करूँगा.”
प्रस्तुत कहानी में भी दो संस्कृतियों के आपसी दबाव को देखा जा सकता है,
सुशांत सुप्रिय विश्व साहित्य को हिंदी में लाकर बहुत है महत्वपूर्ण कार्य कर रहे
हैं. उनके अनुवाद सहज और सटीक होते हैं.
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मृतकों का मार्ग : चिनुआ अचेबे
अनुवाद: सुशांत सुप्रिय
अपेक्षा से कहीं पहले माइकेल ओबी की इच्छा पूरी हो गई. जनवरी , 1949 में उसकी नियुक्ति नड्यूम केंद्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य के पद पर कर दी गई. यह विद्यालय हमेशा से पिछड़ा हुआ था, इसलिए स्कूल चलाने वाली संस्था के अधिकारियों ने एक युवा और ऊर्जावान व्यक्ति को वहाँ भेजने का निर्णय किया. ओबी ने इस दायित्व को पूरे उत्साह से स्वीकार किया. उसके ज़हन में कई अच्छे विचार थे और यह उन पर अमल करने का सुनहरा मौक़ा था. उसने माध्यमिक स्कूल की बेहतरीन शिक्षा पाई थी और आधिकारिक रेकार्ड में उसे ' महत्वपूर्ण शिक्षक ' का दर्ज़ा दिया गया था. इसी वजह से उसे संस्था के अन्य प्रधानाचार्यों पर बढ़त प्राप्त थी. पुराने, कम शिक्षित प्राध्यापकों के दक़ियानूसी विचारों की वह खुल कर भर्त्सना करता था.
" हम यह काम
बख़ूबी कर लेंगे, है न." अपनी पदोन्नति की ख़ुशख़बरी
आने पर उसने अपनी युवा पत्नी से पूछा.
" बेशक," पत्नी बोली, "हम विद्यालय परिसर में
ख़ूबसूरत बग़ीचे भी लगाएँगे और हर चीज़ आधुनिक और सुंदर होगी " अपने
विवाहित जीवन के दो वर्षों में वह ओबी के ' आधुनिक तौर-तरीक़ों' के विचार से
बेहद प्रभावित हो चुकी थी. उसके पति की राय थी कि 'ये बूढ़े
सेवानिवृत्त लोग शिक्षा के क्षेत्र की बजाय ओनित्शा के बाज़ार में बेहतर व्यापारी
साबित होंगे' और वह इससे सहमत थी. अभी से वह ख़ुद को एक
युवा प्रधानाचार्य की सराही जा रही पत्नी के रूप में देखने लगी थी जो स्कूल की
रानी होगी. अन्य शिक्षकों की पत्नियाँ उससे जलेंगी. वह हर
चीज़ में फ़ैशन का प्रतिमान स्थापित करेगी .... फिर, अचानक उसे लगा
कि शायद अन्य शिक्षकों की पत्नियाँ होंगी ही नहीं. चिंतातुर नज़रें लिए उम्मीद और
आशंका के बीच झूलते हुए उसने इसके बारे में अपने पति से पूछा.
" हमारे सभी
सहकर्मी युवा और अविवाहित हैं," उसके पति ने जोश से भर कर कहा , पर इस बार वह इस जोश की सहभागी नहीं बन
सकी .
" यह एक अच्छी बात
है." ओबी ने अपनी बात जारी रखी .
" क्यों ? "
" क्यों क्या ? वे सभी युवा शिक्षक अपना पूरा समय और अपनी
पूरी ऊर्जा विद्यालय के उत्थान के लिए लगाएँगे. "
नैन्सी दुखी हो गई. कुछ मिनटों के लिए उसके
दिमाग़ में विद्यालय को ले कर कई सवालिया निशान लग गए लेकिन यह केवल
कुछ मिनटों की ही बात थी. उसके छोटे-से व्यक्तिगत दुर्भाग्य ने उसके पति की बेहतर
संभावनाओं के प्रति उसे कुंठित नहीं किया. उसने अपने पति की ओर देखा जो एक कुर्सी
पर अपने पैर मोड़ कर बैठा हुआ था. वह थोड़ा कुबड़ा-सा था और कमज़ोर लगता था. लेकिन
कभी-कभी वह अचानक उभरी अपनी शारीरिक ऊर्जा के वेग से लोगों को हैरान कर देता था.
किंतु अभी जिस अवस्था में वह बैठा था उससे ऐसा लगता था जैसे उसकी सारी शारीरिक
ऊर्जा उसकी गहरी आँखों में समाहित हो चुकी थी जिससे उन आँखों में एक असामान्य भेदक
शक्ति आ गई थी. हालाँकि उसकी उम्र केवल छब्बीस वर्ष की थी, वह देखने में
तीस साल या उससे अधिक का लगता था. पर मोटे तौर पर उसे बदसूरत नहीं कहा जा सकता था.
" क्या सोच रहे हो , माइक ?
" नैन्सी ने पूछा.
" मैं सोच रहा था
कि हमारे पास यह दिखाने का एक बढ़िया अवसर है कि एक विद्यालय को किस तरह चलाना
चाहिए."
नड्यूम स्कूल एक बेहद पिछड़ा हुआ विद्यालय था.
श्री ओबी ने अपनी पूरी ऊर्जा स्कूल के कल्याण के लिए लगा दी. उनकी पत्नी ने भी ऐसा
ही किया. श्री ओबी के दो उद्देश्य थे. वे शिक्षण का उच्च मानदंड स्थापित करना
चाहते थे. साथ ही वे विद्यालय-परिसर को एक ख़ूबसूरत जगह के रूप में विकसित करना
चाहते थे. वर्षा रितु के आते ही श्रीमती ओबी के सपनों का बग़ीचा अस्तित्व में आ
गया जहाँ तरह-तरह के रंग-बिरंगे, सुंदर फूल खिल
गए. क़रीने से कटी हुई विदेशी झाड़ियाँ स्कूल-परिसर को आस-पास के इलाक़े में उगी
जंगली , देसी झाड़ियों
से अलग करती थीं.
एक शाम जब ओबी विद्यालय के सौंदर्य को सराह रहा
था, गाँव की एक वृद्धा लंगड़ाती हुई
स्कूल-परिसर से हो कर गुज़री. उसने फूलों भरी एक क्यारी को धाँगा और स्कूल की बाड़
पार करके वह दूसरी ओर की झाड़ियों की ओर ग़ायब हो गई. उस जगह जाने पर ओबी को गाँव
की ओर से आ रही एक धूमिल पगडंडी के चिह्न मिले जो स्कूल-परिसर से गुज़र कर दूसरी
ओर की झाड़ियों में गुम हो जाती थी.
वह शिक्षक खिसियाने-से स्वर में
बोला--"दरअसल यह रास्ता गाँववालों के लिए बेहद महत्वपूर्ण लगता है. हालाँकि
वे इसका इस्तेमाल कम ही करते हैं, लेकिन यह गाँव को उनके धार्मिक-स्थल से
जोड़ता है. "
" लेकिन स्कूल का
इससे क्या लेना-देना है ? " ओबी ने पूछा.
" यह तो पता नहीं
लेकिन कुछ समय पहले जब हमने गाँववालों को इस रास्ते से आने-जाने से रोका था तो
बहुत हंगामा हुआ था,"
शिक्षक ने कंधे उचकाते हुए जवाब दिया.
" वह कुछ समय पहले
की बात थी. पर अब यह सब नहीं चलेगा," वहाँ से जाते
हुए ओबी ने अपना फ़ैसला सुनाया." सरकार के शिक्षा अधिकारी अगले हफ़्ते ही
स्कूल का निरीक्षण करने यहाँ आने वाले हैं. वे इस के बारे में कैसा महसूस करेंगे?
गाँव वालों का क्या है, हो सकता है
निरीक्षण वाले दिन वे इस बात के लिए ज़िद करने लगें कि वे स्कूल के एक कमरे का
इस्तेमाल अपने क़बीलाई रीति-रिवाज़ों के लिए करना चाहते हैं. फिर? "
पगडंडी के स्कूल-परिसर में प्रवेश करने तथा बाहर
निकलने वाली दोनों जगहों पर मोटी और भारी लकड़ियों की बाड़ लगा दी गई. इस बाड़ को
सुदृढ़ करने के लिए कँटीली तारों से इसकी क़िलेबंदी कर दी गई.
तीन दिनों के बाद उस क़बीलाई गाँव का पुजारी ऐनी
प्रधानाचार्य ओबी से मिलने आया. वह एक बूढ़ा और थोड़ा कुबड़ा आदमी था. उसके पास एक
मोटा-सा डण्डा था. वह जब भी अपनी दलील के पक्ष में कोई नया बिंदु रखता था तो अपनी
बात पर बल देने के लिए आदतन उस डण्डे से ज़मीन को थपथपाता था.
शुरुआती शिष्टाचार के बाद पुजारी बोला--"
मैंने सुना है कि हमारे पूर्वजों की पगडंडी को हाल ही में बंद कर दिया गया है.... "
" हाँ, हम स्कूल-परिसर
को सार्वजनिक रास्ता बनाने की इजाज़त नहीं दे सकते, " ओबी ने कहा.
" देखो बेटा, यह रास्ता
तुम्हारे या तुम्हारे पिता के जन्म के भी पहले से यहाँ मौजूद था. हमारे इस गाँव का
पूरा जीवन इस पर निर्भर करता है. हमारे मृत सम्बन्धी इसी रास्ते से जाते हैं और
हमारे पूर्वज इसी मार्ग से हो कर हमसे मिलने आते हैं. लेकिन इससे भी ज़्यादा
ज़रूरी बात यह है कि जन्म लेने वाले बच्चों के आने का भी यही रास्ता है .... "
श्री ओबी ने एक संतुष्ट मुस्कान के साथ पुजारी की
बात सुनी.
" हमारे स्कूल का
असल उद्देश्य ही इस तरह के अंधविश्वासों को जड़ से उखाड़ फेंकना है. मृतकों को
पगडंडियों की ज़रूरत नहीं होती. यह पूरा विचार ही बकवास है. यह हमारा फ़र्ज है कि
हम बच्चों को ऐसे हास्यास्पद विचारों से बचाएँ."
ओबी ने अंत में कहा.
" जो आप कह रहे
हैं, हो सकता है वह सही हो. लेकिन हम अपने
पूर्वजों के रीति-रिवाज़ों का पालन करते हैं. यदि आप यह रास्ता खोल देंगे तो हमें
झगड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.मैं हमेशा से कहता आया हूँ : हम मिल-जुल कर रह सकते
हैं ." पुजारी जाने के लिए उठा.
" मुझे माफ़ करें.
किंतु मैं विद्यालय-परिसर को सार्वजनिक रास्ता नहीं बनने दे सकता. यह हमारे नियमों
के विरुद्ध है. मैं आप को सलाह दूँगा कि आप अपने पूर्वजों के लिए स्कूल के बगल से
हो कर एक दूसरा रास्ता बना लीजिए. हमारे स्कूल के छात्र उस रास्ते को बनाने में आप
की मदद भी कर सकते हैं. मुझे नहीं लगता कि आपके मृतक पूर्वजों को इस नए रास्ते से
आने-जाने में ज़्यादा असुविधा होगी ! " युवा प्रधानाचार्य ने कहा.
" मुझे आपसे और
कुछ नहीं कहना, " बाहर जाते हुए पुजारी बोला.
दो दिन बाद प्रसव-पीड़ा के दौरान गाँव की एक
युवती की मृत्यु हो गई.
फ़ौरन गाँव के ओझा को बुला कर उससे सलाह ली गई.
उसने स्कूल-परिसर के इर्द-गिर्द कँटीली तारों वाली बाड़ लगाने की वजह से अपमानित
हुए पूर्वजों को मनाने के लिए भारी बलि चढ़ाए जाने का मार्ग सुझाया.
अगली सुबह जब ओबी की नींद खुली तो उसने ख़ुद को
स्कूल के खंडहर के बीच पाया. कँटीली तारों वाली बाड़ को पूरी तरह तोड़ दिया गया
था. क़रीने से कटी विदेशी झाड़ियों और रंग-बिरंगे फूलों वाले बग़ीचे को तहस-नहस कर
दिया गया था. यहाँ तक कि स्कूल के भवन के एक हिस्से को भी मलबे में तब्दील कर दिया
गया था.... उसी दिन गोरा सरकारी निरीक्षक वहाँ आया और यह सब देखकर उसने
प्रधानाचार्य के विरुद्ध एक गंदी टिप्पणी लिखी. बाड़ और फूलों के बग़ीचे के ध्वंस
से ज़्यादा गम्भीर बात उसे यह लगी कि ' नए प्रधानाचार्य
की ग़लत नीतियों की वजह से विद्यालय और गाँव वालों के बीच क़बीलाई-युद्ध जैसी विकट
स्थिति पैदा हो गई है '.
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(चिनुआ अचेबे की कहानी "dead men's path” का अंग्रेज़ी
से हिन्दी में अनुवाद
सुशांत सुप्रिय
मार्फ़त श्री एच. बी. सिन्हा ,
5174, श्यामलाल बिल्डिंग ,
बसंत रोड ,
( निकट पहाड़गंज ) ,
नई दिल्ली -110055
मो: 9868511282
/ 8512070086
ई-मेल: sushant1968@gmail.com
परम्परा और विकासोन्मुख विचारधारा के बीच टकराव की अद्भुत कहानी. प्रधानाचार्य की अंधविश्वास को ख़त्म करने की जिद के चलते स्कूल ही तबाह हो गया.
जवाब देंहटाएंदेखेंगे तो खिलेगा, पर यह देखना ही सबसे कठिन क्रिया है, कि आप इसे कैसे देखेंगे, कैसे एक समय को दूसरे समय से जोड़ेंगे- और स्वीकृतियां, सहमतियां इससे भी कठिन। दो संस्कृतियों का दबाब है या रूढ़ियों के बरक्स नए को खड़े करने की चेष्टा और जल्दबाज़ी। इस कहानी का सामाजिक मनोवैज्ञनिक पक्ष पाठक को सोचने के लिए मजबूर करता है। ये रास्ता निकालना क्या लम्बे समय से हुए अनुकूलन को ओवरनाईट बदल सकता है ? कहानी इंसान के मिजाज़ का रूपक रचती है।
जवाब देंहटाएंअनुवाद के लिए बहुत -बहुत बधाई !
कहानी बेहद रोचक थी किसी नवीन कार्य को करने के लिए उस स्थान विशेष में मोजूद परिस्तिथति से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाने के कारण परिणाम आशाजनक नहीं आया .
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