बादलों से बातें और स्वर्ग की सैर
सरिता शर्मा
ऐतरेय ब्राह्मण का मन्त्र है
चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे
वहीँ रुक गयी. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत.
कश्मीर के बारे में बचपन से पढ़ा है- ‘अगर फिरदौस बर
रूये जमी अस्त. हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त’. कश्मीर घूमने की साध पूरी तब हुई जब बहन उमा ने
ठान लिया कि और देर नहीं करनी. आतंकवाद की घटनाओं से डर कर कब तक अपनी यात्रा
स्थगित करते रहेंगे. तीन दिन के पैकेज टूर पर कोशिश रही कि ज्यादा से ज्यादा जगहों
पर घूम सकें. हम घंटे भर के रास्ते में जहाज की खिड़की से नीचे तैरते बिखरे हुए
बादलों का दृश्य मनमोहक था.
लोगों का मानना है कि कश्मीर घाटी के स्थान पर
कभी मनोरम झील हुआ करती थी जिसके तट पर देवताओं का वास था. एक बार इस झील में एक
असुर कहीं से आकर बस गया और देवताओं को सताने लगा. त्रस्त देवताओं ने ऋषि कश्यप से
प्रार्थना की कि वह असुर का विनाश करें. देवताओं के आग्रह पर ऋषि ने उस झील को
अपने तप के बल से रिक्त कर दिया. इसके साथ ही उस असुर का अंत हो गया और उस स्थान
पर घाटी बन गई. कश्यप ऋषि द्वारा असुर को मारने के कारण ही घाटी को ‘कश्यप मार’ और फिर ‘कश्मीर’ कहा जाने
लगा.
श्रीनगर एयरपोर्ट पर ड्राईवर बिलाल हमारी प्रतीक्षा
में था- ‘मैंने आप लोगों
को देखते ही पहचान लिया था. हमें इसकी ट्रेनिंग मिली होती है.’ उसका स्वर
उत्साह और स्वागत भरा लग रहा था. वह रास्ते भर कश्मीर के हालात पर चर्चा करता रहा.
‘दिल्ली में
मीडिया उलटी सीधी ख़बरें फैला कर लोगों को डराता रहता है. यहां मुस्लिम हैं, मगर हम भारत के साथ हैं. औरतों को बहुत इज्जत दी जाती है. दिल्ली
जैसी घटनाएँ कभी नहीं होती.’ डल झील के साथ- साथ बनी सड़क पर होटल जाते हुए उमा ने उत्सुकता जाहिर
की. ‘भैया, कमल के फूल किस
जगह खिलते हैं. यहां तो हरी घास और काई नजर आ रही है.’ बिलाल
मुस्कुराया- ‘शाम को वहां
चलेंगे. और भी जो जगहें आप कहेंगी, दिखाऊंगा.’ कुछ
देर होटल में आराम करने के बाद हम बगीचों की सैर पर निकल पड़े. हजरत बल हजरत मोहम्मद का बाल संग्रहीत होने के
कारण मुसलिम समुदाय के लिए यह अत्यंत पवित्र स्थान है. संगमरमर की बनी इस जालीदार सफेद इमारत का गुंबद दूर से ही
पर्यटकों को आकर्षित करता है. पास में शाहजहां द्वारा बनवाया गया चश्मे शाही बाग है. इस उद्यान में एक चश्मे के
आसपास हरा-भरा बगीचा है. इस चश्मे का पानी भी चमत्कारिक और रोगनाशक माना जाता है.
लोग दूर-दूर से इसका पानी भरकर ले जाते हैं. वहां स्कूली बच्चों का हुडदंग मचा हुआ
था. कुछ बच्चे फव्वारे के नीचे स्नान कर रहे थे.
निशात बाग को नूरजहां के भाई ने बनवाया था. ऊंचाई की ओर बढते इस
उद्यान में 12 सोपान हैं.
यहां कश्मीरी ड्रेस किराये पर देकर फोटो खींचने वाले पीछे पड़ गए. सोचा जीवन के
नाटक में क्यों न थोड़ी नाटकीयता अपनी तरफ से डाल दी जाये. कश्मीरी परिधान पहन कभी
कलश थामकर और कभी डलिया ले कर फोटो खिंचवाए. ये फोटो हमेशा कश्मीर की याद ताजा
रखेंगे. शालीमार बाग जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां के लिए बनवाया था. इस बाग में कुछ कक्ष बने हैं. अंतिम कक्ष शाही
परिवार की स्त्रियों के लिए था. इसके सामने दोनों ओर सुंदर झरने बने हैं. बिलाल ने
बताया कि उसकी खूबसूरत बीवी को दिखाने के लिए यहीं बुलाया गया था. शादी के कई साल
बाद पता चला कि उसने बिलाल को इसलिए पसंद किया था क्योंकि उसने कहा था- ‘जल्दी से फैसला
लो. काम पे जाना है.’ यहां
घूमते हुए लगता है जनता के खून पसीने के पैसे को बादशाहों ने अपने ऐशो- आराम के
लिए खूब खर्च किया. स्वर्ग के निर्माण की नींव में अनेक गरीबों की कराह छुपी है.
इसके बाद हम ‘जब जब फूल खिले’ फिल्म की शूटिंग
की जगह पहुँच गए. पुल पर खड़े होकर वह जलमार्ग देखा जिस पर शशि कपूर शिकार चलाता
था. अब भी चारों तरफ कमल के फूल खिले हुए थे. छोटे- छोटे शिकारे चलाते हुए स्त्री-
पुरुष एक जगह से दूसरी जगह आ जा रहे थे.
बाजार से गुजरते हुए मेरे मुंह से ‘लाल चौक’ निकल गया. बिलाल
हंसा- ‘हर दिल्ली वाला
लाल चौक जरूर जाना चाहता है. अभी ले चलता हूँ.’ उमा ने रोका- ‘भैया रहने दो.’ बिलाल नहीं माना- ‘अब खतरे की कोई बात नहीं. दो साल पहले यहां बहुत गड़बड़ थी. दिल्ली से कुछ दोस्त मिलकर घूमने
आए थे. उन्होंने लाल चौक जाने की जिद पकड़ ली. मैंने उन्हें लाल चौक से थोड़ी दूर
छोड़ दिया कि घूमने के बाद लौटकर वहीँ आ जायें. थोड़ी देर में वहां धमाके हो गए.
मैंने चार घंटे तक उनका इंतजार किया. होटल
से फ़ोन आया कि वे वहां पहुँच गए मगर भगदड़ में घायल हो गए थे. उनकी हालत देखकर बहुत
अफ़सोस हुआ.’ हमें लाल चौक
व्यस्त आधुनिक बाजार लगा.
अगले दिन पहलगाम जाने का कार्यक्रम बना. अब
हमारे साथ ड्राईवर इम्तियाज था जो बीच-बीच में जानकारियां देता जाता था. चिनार के
पेड़ों के बारे में उसने बताया- ‘ये पेड़ कई सालों में उगते हैं. इन्हें काटने के लिए परमिशन लेनी पड़ती
है.’ ऐसे लगा जैसे वह
किसी सम्बन्ध की बात कर रहा हो कि बरसों से बनाये रिश्ते को ऐसे ही अचानक कैसे
तोडा जा सकता है. वह हमें सेव के बगीचे में ले गया जहां ताजा तोड़े गये सेवों की
छंटाई चल रही थी. लिद्दर नदी के दोनों ओर बसे पहलगाम की सुंदरता अनुपम है. किसी
जमाने में यह चरवाहों का छोटा सा गांव मात्र था. पथरीले पहाड़ी मार्ग के लिए घोड़े
पर सवार होकर जाना पड़ा. सीजन न होने से हमसे एक घोड़े के डेढ़ हजार रूपये मांग लिए
जो कई गुना ज्यादा था. साथ चलने वाले लड़कों को हर चढ़ाई के सिर्फ सौ रुपये मिलते
हैं. एक ग्यारह साल का बच्चा मेरे घोड़े को संभाले हुए था. बहुत डरते- डरते यात्रा
आगे बढ़ी. हम सबसे पहले पत्थरों का शमशान पहुंचे. कहा जाता है कि कभी पहलगाम वहां
स्थित था. मगर बाढ़ आ जाने से यह स्थान खिसक कर नीचे चला गया. विशालकाय पत्थर
डरावने लग रहे थे. ऊपर से बरसात शुरू हो गयी थी. एक शाल से काम चलाना पड़ा. गर्म
कपडे और रेनकोट होटल में रह गए थे क्योंकि जब भी किसी से मौसम की बात करते जवाब मिलता था- ‘मुम्बई के फैशन और कश्मीर के मौसम का कोई भरोसा नहीं.’ एक मिटटी पुती
दुकान में बैठकर गर्मागर्म चाय पी और कुछ देर आराम किया.
हम घोड़े पर पहलगांव जाने के लिए चढ़ाई कर रहे थे
तो एक मचान नजर आया. नीचे घाटी में कुछ भैंसे और बकरियां चरती हुई नजर आ रही थी.
घोडेवाले लड़के ने बताया – ‘इस जगह से राजा हरीसिंह ने एक तीर से दो शिकार किये थे. शेर और हिरन
को एक तीर से मार गिराया.' मुझे उत्सुकता
हुई- 'पहले शेर को
मारा या हिरन को?'
लड़के
ने बताया -'असल में शेर
हिरन को खा रहा होगा और उसे मार दिया होगा. फिर तीर से शेर मर गया. राजा ने झूठमूठ
कह दिया होगा कि उसने एक तीर से दोनों को मार दिया. पुराने लोग विश्वास कर लिया
करते थे. हम इन सुनी-सुनाई बातों को नहीं मानते.' उसके बाद हम मिनी स्विट्जरलैंड कहलाई जाने वाली जगह पर गए. अनेक
फिल्मों में इसे दिखाया गया है. वहां विशाल मैदान है जहां यात्री एक बड़े से
गुब्बारे में बैठकर लुढ़कने का आनंद उठा रहे थे. एक आदमी भेड़ उठा लाया कि उसके साथ
तस्वीर फोटो लें. उसके बाद उसकी बेटी खरगोश ले आयी. स्थानीय लोगों ने पर्यटन से
स्थानीय कमाई के अनेक तरीके खोजे हुए हैं. वहां से दूर- दूर तक घाटी और जंगलों का
नजारा दिखाई दे रहा था.पहाड़ों के बीच में अटके बादल कभी बरस जाते और कभी ठहर जाते
थे.
पहलगांव से श्रीनगर लौटते हुए हमने नौंवीं
शताब्दी के शहर अवंतिपुर के कुछ भग्नावशेष और भगवान सूर्य का मंदिर देखा जो अब
खंडहर है. खंडहरों में भटकते हुए मन विरक्ति से भर जाता है और जीवन की
क्षणभंगुरता स्थायी सत्य प्रतीत होती है. इसी जगह पर ‘आंधी’ फिल्म के गाने
'तेरे बिना
जिन्दगी से शिकवा तो नहीं' और ‘गाईड’ फिल्म के अंतिम दृश्य की शूटिंग हुई थी. अब न संजीव
कुमार हैं और न ही देव आनंद. कितने तामझाम से यहां कभी फिल्मांकन किया गया होगा.
ऐतिहासिक स्थलों पर जाकर लगता है कि हममें इतिहास है या इतिहास में हम चल रहे हैं.
आज हम यहां घूम रहे हैं, कल
हम इतिहास बन जायेंगे. वहां केयरटेकर सरदारजी मंदिर के बारे में विस्तार से बता
रहे थे कि कश्मीर कभी हिन्दू राज्य हुआ करता था. अनेक मूर्तियों की भग्न आकृतियां
देखकर बहुत दुःख हुआ.
अगली सुबह हम गुलमर्ग गए. फूलों के प्रदेश के
नाम से मशहूर यह स्थान बारामूला जिले में स्थित है . यहां विश्व का सबसे बड़ा
गोल्फ कोर्स और देश का प्रमुख स्कीइंग केंद्र है. गंडोला यानी केबल कार द्वारा
बहुत ज्यादा ऊंचाइयों को छूना एक अविस्मरणीय अनुभव है हम कार से उतरकर मील भर पैदल
चलकर गंडोला के शुरू होने की जगह पहुंचे क्योंकि पहलगाम में घोड़ों पर बैठने से
बहुत थक गए थे. खिलनमर्ग गुलमर्ग के आंचल में बसी एक खूबसूरत घाटी है. यहां के हरे
मैदानों में जंगली फूलों का सौंदर्य देखते ही बनता है. सबसे ऊंचे प्वाइंट पर पहुँच
कर नीचे खूब दूर तक मनोरम दृश्य नजर आ रहा था. बर्फ लगभग पिघल चुकी थी. मगर यात्री
फिर भी किराये के बूट और कोट पहनकर स्कीइंग का लुत्फ़ उठा रहे थे. जिस तरफ नजर डालो
बादल और पर्वत दिखाई दे रहे थे. ऐसे लगता रहा था मानो हम बादलों के देश में भटक
रहे हों. वहां सिर्फ प्रकृति का आवास है और हम सैलानी अतिथि हैं.
श्रीनगर लौटते हुए हम रास्ते में खरीददारी करने
के लिए कश्मीर इम्पोरियम रुके. वहां कालीनों की बुनाई की जा रही थी. कारीगर ने
बताया कि इस काम में बहुत मेहनत लगती है. नयी पीढ़ी इसमें दिलचस्पी नहीं लेती है.
उसने संगीत के नोट्स की तरह कॉपी में बना चार्ट दिखाया जिसके अनुसार अलग-अलग रंग
के धागों का इस्तेमाल करके कालीन बुना जाता है. सरकार इन परम्परागत कलाओं को
प्रोत्साहन देने के लिए मुफ्त सामग्री प्रदान कर रही है. हमने शाम को डल लेक घूमने
का कार्यक्रम बनाया. श्रीनगर को डल झील, नगीन झील और शहर के बाहर वूलर झील जैसी झीलों के कारण ‘लेक सिटी’ भी कहा जाता है.
डल झील अपने आपमें एक तैरते नगर के समान है. तैरते आवास यानी हाउसबोट, तैरते बाजार और
तैरते वेजीटेबल गार्डन इसकी खासियत हैं. झील के बीच एक छोटे से टापू पर नेहरू
पार्क है. झील में कई बाजार सजे हैं. वहां रहने की कल्पना रोमंचक लगती है. एक
विदेशी युवती शिकारा चलाती हुई नजर आयी, जो हमारे शिकारेवाले से कश्मीरी में बात कर रही थी.
दिल्ली लौटने के दिन हम सुबह- सुबह शंकराचार्य
मंदिर गए. डल झील के सामने तख्त-ए-सुलेमान पहाडी शिखर पर बना यह प्रसिद्ध मंदिर भगवान शंकर को समर्पित है.
दसवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य यहां आए थे. समुद्र तल से 1100 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर का निर्माण
राजा गोपादात्य ने करवाया था. डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने मंदिर तक पंहुचने
के लिए सीढ़िया बनवाई थी. मंदिर की वास्तुकला भी काफी खूबसूरत है. पहाडी से एक ओर डल झील का विस्तार तो
दूसरी ओर श्रीनगर का विहंगम दृश्य देखते बनता है. पृष्ठभूमि में हिमशिखरों की भव्य
कतार नजर आती है. इसकी देखरेख मिलिट्री बहुत अच्छी तरह कर रही है. मंदिर के आसपास
प्लास्टिक फेंकना मना है. मधुर भजन
वातावरण में गूंज रहे थे.
कश्मीर घूमते वक्त हमें वहां का माहौल बेहद
शांत लगा. आतंक और हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बावजूद लोगों के मन में उत्साह है और
सैलानियों का मुस्कुरा कर स्वागत करते हैं. हम जहां घूमने जाते हैं उसका कुछ अंश हमारे साथ आ जाता
है और वह हमारी स्मृति के खजाने में स्थायी रूप से शामिल हो जाता है. कश्मीर के
बारे में सोचने पर अब अपने सुखद अनुभव याद आएंगे और मन से सब आशंकाएं और भय मिट गए
हैं. बचपन में एक कहानी पढ़ी थी- ‘दे वेंट टू हेवन.’ उस कहानी में
किरदार स्वर्ग की बजाय मौत के मुंह में चले गए थे. कश्मीर से लौटने पर विश्वास हो
गया कि हम धरती के स्वर्ग की सैर करके लौट आये हैं.
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कविता संग्रह - सूनेपन से संघर्ष., आत्मकथात्मक उपन्यास: जीने के लिये,
अनूदित पुस्तकें : रस्किन बोंड की पुस्तक ‘स्ट्रेंज पीपल,स्ट्रेंज प्लेसिज’ और
रस्किन बोंड द्वारा संपादित ‘क्राइम स्टोरीज’ का हिंदी अनुवाद.
पत्र पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ, समीक्षाएं आदि प्रकाशित
नेशनल बुक ट्रस्ट में 2 अक्तूबर 1989 से 4 अगस्त 1994 तक संपादकीय सहायक.
सम्प्रति : राज्य सभा सचिवालय में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत.
मोबाइल: 9871948430
अब तक तीन बार कश्मीर जा चुका हूँ , और अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ ,..कश्मीर को घूमने और समझने के हिसाब से मुझे आपकी यह यात्रा थोड़ी संक्षिप्त लगी | निश्चित रूप से आपने उन कुछ जगहों और चीजों का जिक्र किया है , जिसके सहारे हम इस जगह को समझ सकते हैं , फिर भी धरती के स्वर्ग के बारे में इतने से मन नहीं भरता |
जवाब देंहटाएंफिर भी आपको बधाई तो बनती ही है |
मानव की विघटनकारी शक्तियाँ स्वर्ग को नरक बनाये पड़ी हैं।
जवाब देंहटाएंतीन-चार दिन में कश्मीर का कुछ हिस्सा ही देखा समझा जा सकता है. वहां कम से कम सप्ताह दो सप्ताह ठहरना चाहिए.डल झील के किनारे स्वर्ग की सुन्दरता है. कश्मीर जाकर महसूस होता है असलियत कल्पना से आगे निकल जाती है. अगली बार उन जगहों पर जाऊँगी जो अबकी बार रह गयी.
जवाब देंहटाएंकुछ फोटो और देते तो पढने का मज़ा .. कुछ अलग ही होता... उम्दा प्रस्तुति.. मेरे भी ब्लॉग पर आये सादर
जवाब देंहटाएंबहुत जीवंत यात्रा वृतांत है सरिता़़ . आजकल मैं राहुल सांस्कृतयायन जी की हिमाचल पढ़ रही हूँ . पर्वतीय प्रदेशों का जीवन हम सैलानियों के लिए जादुई होता है, पर वास्तविकता कुछ और होती है. तुमने बढ़िया लिखा है. बधाई मित्र .
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