सहजि सहजि गुन रमैं : राहुल राजेश



















राहुल राजेश

9 दिसंबर, 1976 दुमका, झारखंड (अगोइयाबांध)

युवा कवि और अंग्रेजी-हिंदी के परस्पर अनुवादक
यात्रा-वृतांत, संस्मरण, कथा-रिपोतार्ज, समीक्षा एवं आलोचनात्मक निबंध लेखन
सामाजिक सरोकारों और शिक्षा संबंधी विषयों से भी सक्रिय जुड़ाव
सभी  प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रमुखता से प्रकाशित
कुछ रचनाएँ अंग्रेजी, उर्दू, मराठी आदि भाषाओं में भी अनूदित

'सिर्फ़ घास नहींजनवरी, 2013 में साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से प्रकाशित
कन्नड़ और अंग्रेजी के युवा कवि श्री अंकुर बेटगेरि की अंग्रेजी कविताओं का हिंदी अनुवाद 'बसंत बदल देता है मुहावरे'  अगस्त, 2011 में यश पब्लिकेशंस, दिल्ली से प्रकाशित


सहायक प्रबंधक (राजभाषा), भारतीय रिज़र्व बैंक,
तीसरी मंज़िल, ला गज्जर चैंबर्स, आश्रम रोड, अहमदाबाद-380 009 (गुजरात)
संपर्क: 09429608159  

ई-मेल:  rahulrajesh2006@gmail.com
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चर्चित युवा कवि राहुल राजेश अपनी कविताओं में सत्ता प्रतिष्ठान का प्रतिपक्ष सृजित करते हैं, प्रतिपक्ष की अपनी भूमिका के निर्वाह में ये कविताएँ सचेत हैं और मुखर होकर चोट करती हैं. त्वरा और व्यंग्यात्मकता ने इन कविताओं को संप्रेषणीय और असरदार बनाया है. दैनिक विडम्बनाओं से जूझती इन कविताओं में मनुष्यता का बल और तेज़ हैं.   

Jeff Soto - The Corruption of Mankind


चित्रपट

नगरपालिका की टोंटी पर
नागरिकों का जमघट है
बूँद-बूँद के लिए हाहाकार है
और लम्बी कतार है
खाली डब्बा, खाली बाल्टी
खाली कनस्तर, खाली घट है
और बस जीने का हठ है

यह भीड़ है, वोट बैंक है
शहर की तलछट है
रोज़-रोज़ का यह दृश्य
देश का चित्रपट है.




तस्वीर

एक चुटकी नमक
दो फाँक प्याज
और थरिया भर भात
यही मजूर की औकात

कमल खिले या
लहराए हाथ छाप
या गद्दी पर बैठे
माया मेम साब

साठ बरस में नहीं बदली
तो अब क्या बदलेगी
तकदीर जनाब

झूठी हैं सारी तस्वीरें
जो देखते हैं
टीवी पर आप.



इंडिया इंटरनैशनल

फास्टफूड की
चमचमाती पैकों में
है ताजगी बंद
कार कंप्यूटर कास्मेटिक्स पर
छूट बड़ी
दाल खरीदें चंद

प्यास लगे तो पियें पेप्सी
भूख लगे तो खाएँ बर्गर
पैसे कम पड़ जाएँ तो
है कर्जे का प्रबंध

विदर्भ कालाहांडी नंदीग्राम
के किसानों के लिए है
कर्ज़ माफी का इंतजाम

सबको रोटी सबको काम
के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम.



तंत्र

अभिनव प्रयोगों से गुजरता लोकतंत्र
और संभावनाओं से भरा मंच

कंपनियाँ आश्वस्त

वे कभी घाटे में नहीं रहेंगी
जब तक उनके साथ है तंत्र
और इतना बड़ा गणतंत्र.




न्यूनतम साझा कार्यक्रम

साल में कम से कम एक बार बाकायदा घोषणा
की जाए हमारी सरकार की उपलब्धियों की
ध्यान रहे उसमें भूख से हुई मौतों का ज़िक्र न हो
हाँ, हमारे खाद्यानों के  बफर स्टॉक का विस्तृत ब्यौरा हो

हर साल छब्बीस जनवरी या पंद्रह अगस्त के  दिन
शहीदों के नाम बाँटे जाएँ तमगे
(और फिर उनके बेवा बीवी-बच्चों की
कोई खोज़-ख़बर न ली जाए)

लक्ष्य की जाए ऊँची से ऊँची विकास दर
गाँव-गाँव तक पहुँचायी जाए
फोन, बिजली, पक्की सड़कें
और उनके  पीछे-पीछे कोक और पेप्सी की बोतलें

पेयजल की समस्या से कहीं ज्यादा
घातक बतायी जाए एड्स की बीमारी
रोटी की जगह कंडोम बाँटे जाएँ मुफ्त
और साथ में सुरक्षित यौन संबंध की सलाह

भूरे लिफाफे और सूटकेसों के चलन में
थोड़ी फेरबदल की जाए और बताया जाए
कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ तेज कर दी गई है मुहिम 

कम से कम साल में एक बार तो हो ही
न्यायपालिका से भिड़ंत
कम से कम दो  बार किया जाए मंत्रिमंडल का विस्तार
और कम से कम तीन बार बदले जाएँ मंत्रियों के कार्यभार

निजीकरण के नाम पर की जाती रहे छँटनी लगातार
और तकनीकीकरण के नाम पर
शिक्षित बेरोजगारों उर्फ़ सस्ते श्रमिकों की विशाल फौज़
की जाए हर साल तैयार

राजधानी में सरेआम हो  रहे बलात्कार और
बच्चों  की किताबों  पर हो  रहे विवादों के बावजूद
घोषित किया जाए हरेक वर्ष को
महिला सशक्तिकरण वर्ष, पुस्तक वर्ष या
इसी तर्ज पर कुछ-कुछ

चुनाव के ठीक पहले तक
सुराज के मुद्दे पर कतई न छेड़ी जाए बहस
हाँ, गाँधी पर कराये जाएँ शोध  पर शोध
पूरे साल संसद में चलायी जाए एक-दूसरे के ख़िलाफ़
नारेबाजी और इस्तीफे की माँग
धर्म और अल्पसंख्यक जैसे संवेदनशील मुद्दों पर
आते रहें नेताओं के उलटे-सीधे बयान
और गुपचुप किए जाते रहें घोटाले

पूरे पाँच बरस की जाए अगले चुनाव की तैयारी
भूमिका में बाँधे जाएँ लोकलुभावनी योजनाओं के पुल
अयोध्या से अमेठी तक किया जाए घृणा का विस्तार
और तब भी बहुमत न पाने का डर हो तो 
गर्म कर दिया जाए अफवाहों  का बाज़ार.



सलूक

पता नहीं
हिटलर को पता था कि नहीं
कि पूरे विश्व में अपना कब्जा जमाने का
फितूर पालने वाला एक दिन खुद ही
खत्म कर लेगा अपने आप को
एक बंद कोठरी में

पता नहीं
सद्दाम को पता था कि नहीं
कि पूरे इराक में अपनी तानाशाही जमाने वाला
एक दिन धर दबोचा जाएगा
किसी सुरंग में

पता नहीं
लादेन को पता था कि नहीं
कि जो  हश्र हुआ सद्दाम का
वही हश्र होना  था उसका भी
एक न एक दिन

पता नहीं
उन्हें पता है कि नहीं
कि जो  सलूक आज वे
कर रहे हैं दुनिया के साथ
वही सलूक दुनिया भी
एक दिन करेगी उनके साथ .


लक्ष्य-निर्धारण

एक बहुत ही महत्वपूर्ण और गोपनीय बैठक में
अंतर्राष्ट्रीय पूँजी-बाज़ार के सबसे बड़े रहनुमा ने कहा-

मित्रों, यह तो तय है
कि हमने ऐसी एक भी संभावना नहीं छोड़ी
जिन पर हमारे विज्ञापन-तन्त्र ने न किया हो  शोध

उनके दिमाग में बहुत बड़ी सुराख कर चुके हैं हम
साबुन की झाग में लिपटी देह से लेकर
नायाब सूचनाओं के ब्रह्मांड पार हो जाने तक

मित्रों, हमारा भय यह नहीं है
कि यह सुराख हमारी थोड़ी-सी शिथिलता से भर जाएगी
यह तो  ब्लैक-होल  है, ब्लैक-होल
बढ़ता ही जाएगा .

पर अफसोस, अब भी, हाँ अब भी कम पड़ रहा है
हमारे अंतरिक्ष अनुसंधान और परमाणु कार्यक्रम पर
होना चाहिए जो  ज़रूरी खर्च

अतः बहुत सोच-समझकर हमने
निर्धारित किया है अपना लक्ष्य

नींद, सपने, स्वाद और सम्बन्ध,
माँ, बहू और बच्चे,
नीम, हरड़ और कंद पर तो  हम कर चुके

आइए, अब करें मानव गुणसूत्रों  पर घात.



11/Post a Comment/Comments

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  1. राहुल राजेश की कवितायेँ अलग अंदाज की हैं. वह हमारे दफ्तर में साल भर रह चुके हैं. सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिस दिन उन्होंने ज्वाइन किया,कविता प्रतियोगिता चल रही थी और राहुल को प्रथम पुरस्कार मिला. उनकी कवितायेँ पढवाने के लिए शुक्रिया.

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  2. नए तेवर और सलीके की कवितायेँ हैं।पहली कविता तो बेहद तीखी है।हिंदी में ऐसे कम ही कवि हैं।बधाई एवम आभार .

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  3. राहुल राजेश की कविताओं की विशेषता यह है कि ये जितनी सीधी और सरल हैं उतनी ही मारक हैं ! राजनीति की पर्तों को उधेड़ती ,पाठक को सहज ही जोड़ लेने वाली इन कविताओं के लिए उन्हें बधाई और अरुणदेव जी को धन्यवाद !

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  4. धारदार कविताएँ हैं .कविताओं की सादगी में समय की आयरनी भी छिपी है . अच्छी कविताओं के लिए कवि को शुभकामनाएँ ..अहमदाबाद को समालोचन पर देखना भी सुखद रहा .

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  5. कविता का यह तीखा राजनैतिक व्‍यंग्‍य वाला मुहावरा मुझे तो बहुत अच्‍छा लगा। राजनैतिक कविताओं को असल में ऐसा ही होना चाहिए, बेलाग और सहज... मुझे इन कविताओं में जो सबसे महत्‍वपूर्ण बात लगी, वह यह कि इन कवितओं के पीछे बहुत गहरी और स्‍पष्‍ट राजनैतिक समझ है जो नारेबाजी को किनारे करते हुए विद्रूप के मूल कारणों और कारकों तक जाती है। राहुल जी को बधाई और अरुण जी को धन्‍यवाद।

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  6. आज इन्हीं तेवरों और ऐसी ही अभिव्यक्ति की अपेक्षा है । राष्ट्र हित में कवि का तन्त्र से विरोध सशक्त रूप से मुखरित हुआ है ।

    राहुल और अरुण जी का धन्यवाद ।

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  7. राहुल राजेश जी बधाई आप को इन कविताओं के लिए

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  8. राहुल राजेश की कविताएं पढ़ता रहा हूँ। राहुल की कविताओं में अपने ढंग का ताजापन या कहें टटकापन है। इसीलिए वे अपने समय की चुनौतियों का न केवल सीधा सामना करती हैं बल्कि उनको पूरी कटाक्ष के साथ संबोधित भी करती हैं। शायद यही वज़ह हो कि वे कहीं से फैशनेबल नहीं दिखते। उनमें रचाव के स्तर पर बार-बार सायास दुहरती हुई कोई शैली या कोई स्वर नहीं दिखता।

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  9. Dwijendra Nath Saigal
    Kash ki AAP ki ye sari kavitayen ek VIRAT ANTI-VIRUS ban kar SHASAN TANTRA ki GLUCOMA AFFECTD VISION ke JALE saf karne ka PUNYAA KARYAA sampadit karen. No FOCUS can give a better sharpness to the scene at the National Platform Drama as your adjustment provide and no dialogues written -- as plainly as you wrote -- can provoke the dire necessity for uprooting " WHAT IS POISONOUS TO NATION'S GROWTH. Keep wrutuing Doctor Sb. 125 coror people need this tonic .

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  10. इन कविताओं में एडम गोंडवी और धूमिल की परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य श्री राहुल राजेश जी ने किया है। समकालीन 'समय से मुठभेड़' के लिए 'संसद से सड़क तक' की खबर लेने के लिए जोश के साथ-2 जिस संयम की जरूरत है, इन कविताओं के फॉर्म और कंटैंट का संतुलन उसकी अच्छी बानगी है। राहुल जी को साधुवाद, अरुण जी के प्रति आभार

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  11. सधा हुआ व्यंग्य इन कविताओं की धार को पैनी बनाता है. सब कुछ सुपरिचित और सामान्य-सा लगता है है, पर कवि इन्हें अपने अंदाज़ से एक खास तरह की लय में ढाल देता है, और सुग्राह्य बना देता है. ऐसी राजनीतिक कविताएं बड़े काम की साबित होती हैं.

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