कथा - गाथा : सईद अय्यूब













सईद अय्यूब : १-जनवरी,१९७८. कुशीनगर (उत्तर-प्रदेश)

उच्च क्षिक्षा जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से
अमेरिकन इंस्टीट्यूट आफ इंडियन स्टडीज में अध्यापन
संस्थापक, सह-निदेशक S.A. Zabaan Pvt. Ltd
पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशन
ई-पता: sayeedayub@gmail.com



समाज के कुछ बदरंग यथार्थ हैं. अक्सर धर्म और मजहब से जुड़ कर ये और काले हो जाते हैं, इनपर एक पर्दा पड़ जाता है. साहित्य का धर्म है मनुष्यता और उसने समय-समय पर जलालत और शोषण के इन गोपन से पर्दा उठा कर अपने इस धर्म का निर्वाह भी किया है.अपनी इस मानवीय जिम्मेदारी के निर्वहन के लिए जिस साहस की जरूरत है वह युवा कहानीकार सईद अय्यूब में है. किस्सागोई का अंदाज दिलचस्प है.



Salman Toor/CLERIC UNDRESSING




जिन्नात



            अच्छे मियाँ ने जब पाँच साल की उम्र से ही अच्छे-अच्छे लक्षण दिखाने शुरू कर दिये, तो उनके बाप परेशान हो गये. माँ-बहन की अच्छी-अच्छी गालियाँ न सिर्फ़ याद थीं बल्कि गाँव के हाफ़ीजी जिस तरह से क़ुरान की तिलावत करते थे, उसी अंदाज़ में अच्छे मियाँ इन गालियों की तिलावत करने लगे थे. पहला कलमा याद करके नहीं दिया लेकिन ‘चोली के पीछे....’ इतने लय सुर में गाते थे कि बस सुबहान अल्लाह! एक दिन तो अपनी माँ रज़िया बी से ही ठुमक-ठुमक कर यही सवाल पूछने लगे और रज़िया बी ने शरमा कर अपना मुँह दूसरी तरफ़ कर लिया और शाम को अच्छे मियाँ के बाप जब घर आये तो शिकायत कर बैठीं.
           
            “आप को तो कुछ दिखाई देता नहीं. लड़का हाथ से निकला जा रहा है. पढ़ाई-लिखाई के नाम पर कोरा लेकिन दिन भर सिनेमा के गाने...”

            बाप ने बेटे को बुलाकर एक थप्पड़ लगाया लेकिन यह थप्पड़ उनको और रज़िया बी को भी लगा क्योंकि अच्छे मियाँ उनके इकलौते बेटे थे और बड़ी मुरादों से मिले थे. अब अच्छे मियाँ की किस्मत. बाप जान को उसी वक़्त से अच्छे मियाँ को सुधारने की फ़िक्र लग गई. शायद वे कुछ दिन और सब्र कर लेते लेकिन सातवाँ साल शुरू होते न होते अच्छे मियाँ के अच्छे कारनामे मशहूर होने लगे और जब पिछले हफ़्ते अपने एक और हम उम्र दोस्त के साथ मिलकर उन्होंने पड़ोसी नूर मियाँ की बकरी का दूध निकालए उसकी थनों में लकड़ी की पतली-पतली सींकियाँ घुसेड़ दीं, जिससे बकरी की थनों में हवा भर गई और.... लेकिन उनका दोस्त कच्चा था, और जल्द ही पूरे गाँव को अच्छे मियाँ का यह कारनामा पता चल गया और तब उनके बाप ने उनको सुधारने की पूरी योजना बना डाली और हफ़्ते भर के अंदर, अच्छे मियाँ अपने बाप के साथ अपने गाँव से पचास किलोमीटर दूर, एक दूसरे गाँव के नामी मदरसे के एक नामी मौलाना के सामने खड़े थे.

            वह मदरसा पाँच-छ: फूस की बनी झोंपड़ियों से आरास्ता था. बीच में एक और झोंपड़ी थी, जो मस्जिद का काम देती थी. बाँस की कपच्चियों से बना एक गेट था जिसको बकरियाँ, कुत्ते वग़ैरह आसानी से ठेलकर मदरसे में आते-जाते रहते थे. गेट से अंदर जाते ही, एक थोड़ी बड़ी झोंपड़ी थी जो एक ही साथ आफ़िस भी थी और मदरसे के संचालक मौलाना साहब का कमरा भी. वैसे सब लोग उसे दफ़्तर कहते थे. दफ़्तर के बग़ल में नहाने और वज़ू करने के लिये दो हैंडपंप थे जिनके चारों ओर पक्का चबूतरा बना दिया गया था और उसके पीछे टाट से घेर कर बनाये गये दो इस्तिंजा ख़ाने. बड़ी ज़रूरत के लिये मदरसे के लोग बधना लेकर मदरसे के पीछे दूर.दूर तक फैले हुए घने बगीचे की सैर करते थे.

            अच्छे मियाँ के बाप ने मौलाना साहब को घर से लाये हुए एक-एक मन चावल और गेंहूँ देते हुए बड़ी अक़ीदत से कहा.

            “मौलाना साहबए यही एक लड़का है लेकिन मालूम नहीं किसी की नज़र लगी है या किसी जिन्नात का साया हो गया है. पढ़ने लिखने में मन बिल्कुल नहीं लगता है लेकिन दुनिया भर को दिक करने में इसको बहुत मजा आता है. दिन भर छुट्टा साँड की तरह इधर-उधर डोलता रहता है. कई बार तो मन किया कि बहनचो.....” और अच्छे मियाँ के बाप को अचानक याद आ गया कि वे अपने घर में रजिया बी से बात नहीं कर रहे हैं बल्कि मौलाना साहब से बात कर रहे हैं और वे सकपका कर चुप हो गये.

            मौलाना साहब ने एक नज़र अच्छे मियाँ पर डाली और दूसरी नज़र उनके बाप के लाये हुए चावल और गेँहू के बोरों पर डालते हुए बोले.

            “आप फ़िक्र मत कीजिए. अच्छा किया जो आप इसको यहाँ ले आये. यहाँ अच्छे.अच्छों के जिन्नात उतार दिये जाते हैं. आप आराम से घर जाइये, इंशा अल्लाह ये बहुत जल्दी सुधार दिये जायेंगे. मौलाना ने फिर गर्दन घुमाकर अच्छे मियाँ की तरफ़ देखा. सात साल से कुछ निकलती हुई उम्र, गोरा रंग, मुलायम ख़दो-ख़ाल, चमकती हुई आँखे जिनमें अब शरारत की जगह डर ने ले ली थी, पतले-पतले रसीले होंठ, फूले-फूले लाल हो रहे गाल.

            मौलाना ने पूछा. “क्या नाम है”

            मौलाना की काली दाढ़ी और रोबदार चेहरा, नमाज़ से बना हुआ माथे पर का निशान और झक्क सफ़ेद लिबास, सर पर कछुए की तरह बैठी हुई टोपी के अलावा और भी बहुत कुछ था जिसने अच्छे मियाँ को अंदर तक डरा दिया. मौलाना की आवाज़ अच्छे मियाँ को कुछ अजीब लगी. गाँव के हाफ़ीजी से कुछ-कुछ मिलती लेकिन ज़्यादा डरावनी. वे घबरा कर अपने बाप की तरफ़ देखने लगे. बाप ने बेटे की नज़र पकड़ ली. मौलाना से बोले.

            मौलाना साहब! शरारत तो यह बहुत करता है लेकिन डरता भी बहुत है. ख़ास कर जिन्न-शैतान, भूत-प्रेत से बहुत डरता है, पता नहीं किससे उनके बारे में बहुत सारी कहानियाँ सुन ली है और समझता है कि वे इसके आस-पास ही हैं और मौक़ा मिलते ही और तो और किसी के सामने बोलने में इसको बहुत शर्म आती है.”

            मौलाना की आँखों में एक चमक आ गयी. वे मुस्कराते हुए बोले.

            देखिए जिन्न वग़ैरह मख़लूकें तो बरहक़ हैं. अल्लाह ने इनको पैदा किया है, ठीक जैसे हमको और आपको पैदा किया है. अगर यह समझता है कि जिन्न, भूत-प्रेत वग़ैरह इसके आस-पास ही हैं तो यह तो ईमान की अलामत है. बड़ा प्यारा बच्चा है, उम्मीद है जल्दी ही आप इसके मुतअल्लिक अच्छी ख़बर सुनेंगे.

            अच्छे मियाँ के बाप को मौलाना साहब की इतनी गाढ़ी छनी हुई बातें ठीक से समझ में नहीं आयीं, फिर भी वे अपना सर हिलाते रहे. मौलाना ने कुछ और बातों के लिये भी उनका सर हिलवाया जैसे अगले रमज़ान में मदरसे के लिये चंदा देने, कुर्बानी का चमड़ा इसी मदरसे में भेजने और कभी-कभी जब अच्छे मियाँ से मिलने आना हो तो कुछ मन गेँहू. चावल लेते आने के लिये. अच्छे मियाँ के बाप सर हिलाते-हिलाते ही वहाँ से विदा हो गये, हाँ विदा होते वक़्त जब अच्छे मियाँ ने रोना शुरू किया तो उनके हिलते हुये सर के साथ-साथ आँखों में कुछ पानी भी दिखायी देने लगा. वे एक ही साथ दुखी भी थे और सुखी भी.

            बाप के जाने के बाद मौलाना ने अच्छे मियाँ को पास बुलाया. अलमारी से निकाल कर दो बिस्कुट खाने को दिया और मुस्करा कर बड़े प्यार से बोले.

            “देखो बेटा! तुम्हारे माँ.बाप तुमको कितना प्यार करते हैं. वे चाहते हैं कि तुम पढ़-लिख कर एक नेक आदमी बनो और दीन की खिदमत करो. इसी लिये तुमको यहाँ लेकर आये हैं. तो अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है कि ख़ूब पढ़-लिख कर माँ-बाप के ख़्वाब पूरे करो. समझे..”

            अच्छे मियाँ बिस्कुट का एक टुकड़ा मुँह में डाले, मौलाना के पीछे लगे बाँस के खंबे पर धीरे-धीरे रेंगती हुई छिपकली को देख रहे थे. ऐसा लगता था जैसे छिपकली मौलाना के ऊपर कूदने के लिये आ रही है. अगर यह छिपकली मौलाना के पाजामे में घुस जाये तो अच्छे मियाँ ने सोचा, और यह सोचते ही उनकी आँखों का रंग बदल गया और डर की जगह वही पुरानी चमक ने ले ली. लेकिन वे छिपकली की तरफ़ या मौलाना साहब की तरफ़ देर तक नहीं देख सके और उनकी आँखें अपने-आप ही फ़र्श की तरफ़ जो मदरसे के खुलने के 15 साल बाद भी कच्चा ही था, देखने लगीं और मौलाना साहब, इसको अपनी बात के लिये सहमति समझते हुये आगे थोड़ा गंभीर होकर बोले.

            “तो बेटाए जाओ और ईमानदारी से अपना काम करो. जो भी उस्ताद करने को बोलें, उसे पूरी ज़िम्मेदारी से पूरा करो. उस्तादों की जितनी ख़िदमत करोगे उतना ही तरक़्क़ी करोगे. इल्म पढ़ने से ज़्यादाए उस्तादों की ख़िदमत करने से आती है. और सुनो! कोई बदमाशी नहीं होनी चाहिये और ना ही यहाँ से भागने की कोशिश करना, वर्ना..

            मौलाना की इस वर्ना में कुछ था, जिसने अच्छे मियाँ की आँखों के रंग को फिर बदल दिया. रात की नमाज़ और खाने से फ़ारिग़ होने के बादए मौलाना ने अच्छे मियाँ को अपने पास बुलाया और बोले.
                                                             
            देखो! तुम्हारे वालिद साहब चाहते हैं कि जब तक तुम्हारा दिल यहाँ न लग जाये मैं तुम्हारा ख़ास ख़्याल रखूँ. तो अभी तुम मेरे कमरे में ही सोओगे. दो.चार दिन में जब तुम्हारा मन यहाँ लग जायेगा, तुम्हें दूसरे कमरे में भेज दिया जायेगा. फिलहाल मैंने तुम्हारे लिये एक चारपाई उधर कोने में डलवा दी है.”

            अच्छे मियाँ ने कोने की तरफ़ देखा. वहाँ एक चारपाई रखी थी और चारपाई के ऊपर एक दरी और दरी के ऊपर उनके कपड़ों की गठरी जिसमें एक नई लुंगी और दो नये सिलवाये गये कुर्ते. पाजामें के अलावा, एक अदद क्रोशिये की टोपी और कुछ और सामान थे. कमरे के दूसरे कोने में एक तख़्त बिछा था, तख़्त के ऊपर मोटा बिस्तर, साफ़ तकिये और चारों कोने में लगे बाँस के सहारे टँगी मच्छर-दानी. ज़ाहिर सी बात है, यह मौलाना साहब का बिस्तर था. अच्छे मियाँ का शरारती दिमाग कुलबुलाया. अगर मौलाना साहब के सोने के बाद, मैं कुछ मच्छर पकड़ कर उनकी मच्छर-दानी में डाल दूँ, तो... अभी उनके दिमाग़ की कुलबुलाहट कुछ तेज़ होनी शुरू ही हुई थी कि मौलाना की आवाज़ ने उस पर ब्रेक लगा दिये.

            जाओं अपने कपड़े बदल कर, दुआ पढ़ कर सो जाओ. और सुनो, मुझे सुबह देर से उठने वाले लड़के पसंद नहीं हैं. सुबह, नमाज़ के बाद ही सबक़ शुरु हो जायेगा, इसलिये जल्दी उठकरए तैयार हो जाना.

            यह कहकर मौलाना ने अपनी आँखें बन्द कर लीं. कुछ देर तक उनका हाथ तस्बीह से उलझा  रहा. अच्छे मियाँ ने अपनी चारपाई पर जाकर, अपना पाजामा उतार कर, घर से लायी हुई नई लुंगी पहन ली. लुंगी पहनते वक़्त, उनको घर की बहुत याद आयी, और उनकी आँखों में पानी आ गया. घर पर क्या मज़े से चड्डी पहने ही सो जाते थे. पाजामा तक तो ग़नीमत था, लेकिन यह नामुराद लुंगी. पहनते हुए दो बार गिरते.गिरते बचे. किसी तरह सँभाल करए उसको लपेटा और पाजामे का नाड़ा खोलकर उसको नीचे सरका दिया. लेकिन हाय री लुंगी! वह ऊपर से खुल गयी. अब ना पाजामे को सँभाले बनता है, ना लुंगी को. क़रीब-क़रीब नंगा हो चुके थे. ग़नीमत थी कि मौलाना अपनी तस्बीह में डूबे हुये थे.  अच्छे मियाँ ने पाजामे को नीचे गिर जाने दिया और जल्दी से दोनों हाथों से पकड़ करए लुंगी को किसी तरह सँभाल कर बाँधने में कामयाब हो गये. लेकिन अभी भी उनको डर लग रहा था कि लुंगी किसी भी वक़्त खुल सकती थी. मौलाना ने अपनी आँखें खोली और इशारे से अच्छे मियाँ को अपने पास बुलाया. उनके ऊपर तीन बार फूँक कर और उतनी ही बार थूक गिराते हुए जब मौलाना बोले, तो उनकी आवाज़ अजीब सी थी, जैसे कि नींद में बोल रहे हों, एक फुसफुसाहट जैसी.

            सुनो! मैंने तुम्हारे ऊपर दम कर दिया है. तुम भी सब दुआएँ पढ़ कर सोना. तुम्हारे अब्बा बता रहे थे कि तुम जिन्नातों से बहुत डरते हो. तो मैं तुम्हें बता दूँ कि कभी-कभी जिन्नात यहाँ आते हैं. इस कमरे में. मैंने उनको कई बार देखा है. तुम अगर उनको देखना, तो बिल्कुल घबराना मत. मैंने तुम्हारे ऊपर दम कर दिया हैए वे तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे. लेकिन हाँ, वे जो कुछ भी करते हों, चुपचाप उनको करने देना. बीच में मत बोलना, वर्ना वे नाराज़ हो जायेंगे और फिर मेरी दुआएँ भी काम नहीं करेंगी, और बाद में किसी को बताना भी मत. और सुनों, वे किसी भी शक्ल में आ सकते हैं, तुम्हारी अपनी शक्ल में भी और मेरी शक्ल में भी. तो अगर वे किसी जान-पहचान वाले की शक्ल में आयें तो उनको देखकर पुकारना मत. चुपचाप, वे जो भी करते हैंए उनको करने देना. ठीक है

            जिन्नात का नाम सुनते ही अच्छे मियाँ की हालत ख़राब होने लगी. मौलाना के ठीक  है के जवाब में उन्होंने जल्दी-जल्दी अपना सर हिलाया और अपनी चारपाई के ऊपर बिछी दरी पर जाकर लेट गये. डर के मारे बुरा हाल था. लगता था जिन्नात अब आया कि तब. अरबी में तो कोई दुआ याद नहीं कर पाये थे, इसलिये मन ही मन अपनी ज़ुबान में अल्लाह को याद करके जिन्नातों से बचाने कि दुआ माँगी लेकिन अजीब बात थी कि जितनी बार भी उन्होंने अल्लाह को याद करने की कोशिश की, हर बार उन्हें अपनी माँ का चेहरा याद आया. दुआ ख़त्म करने के बाद उन्होंने कनखियों से मौलाना की तरफ़ देखा. मौलाना अपनी तस्बीह में अभी भी डूबे हुये थे. तस्बीह के दानों के साथ-साथ मौलाना की हिलती हुई दाढ़ी ने उनके रोबदार चेहरे को कुछ और रोबदार बना दिया था. मौलाना को देखते ही अच्छे मियाँ के दिल में ख़्याल पैदा हुआ. इत्ते बड़े मौलाना के सामने जिन्नात कैसे आ सकता है. अगर आयेगा तो मौलाना उसे पकड़ कर बोतल में बंद कर देंगे जैसे गाँव वाले हाफ़ीजी ने नजमुन ख़ाला पर आने वाले जिन्नात को पकड़ कर बोतल में बंद कर दिया था.

            यह ख़्याल आते ही अच्छे मियाँ का डर गायब हो गया और वे फिर से मौलाना की मच्छर-दानी में मच्छरों को घुसाने की योजना बनाने लगे. उन्हें ये योजना बनाने में बहुत मज़ा आ रहा था. उनके दिमाग़ में कई योजनाएँ आईं और चली गयीं और इसी तरह योजनाएँ बनाते-बिगाड़ते ना जाने कब वे गहरी नींद में सो गये.

            गहरी नींद में सो रहे अच्छे मियाँ को लगा कि किसी ने उनकी लुंगी खोल कर नीचे सरका दी है. कुछ देर तक वे इसे एक ख़्वाब समझते रहे लेकिन जब उन्होंने अपनी रानों पर किसी के हाथ को सरकते हुए महसूस किया तो वे पूरी तरह जाग गये और जागते ही उनको मौलाना की बातें याद आ गईं कि कभी-कभी जिन्नात इस कमरे में भी आते हैं. डर के मारे उनकी घिघ्घी बँध गई. एक पल के लिये ख़्याल आया कि मौलाना को आवाज़ देकर बुलाएँ लेकिन दूसरे ही पल मौलाना की दूसरी बात उन्हें याद आ गयी कि जिन्नात जो भी करें, चुपचाप उनको करने देना, शोर मत मचाना. यह बात याद आते ही उन्होंने अपनी साँस रोक ली और मन ही मन अल्लाह को याद करने लगे. कुछ देर बाद उन्होंने महसूस किया कि अब हाथ के बजाए कोई और चीज़ उनकी रानों पर फिसल रही थी और धीरे-धीरे उनकी दोनों जाँघों से होते हुए ऊपर की ओर बढ़ रही थी. अचानक, उनको मौलाना की दूसरी बात याद आई कि जिन्नात अक्सर किसी की शक्ल में आते हैं. यह याद आते ही उन्होंने सोचा कि ठीक है, मैं कुछ बोलूँगा नहीं, लेकिन मुझे एक बार देखना चाहिये कि यह जिन्नात किस की शक्ल में है. यह सोचते ही उन्होंने अपनी सारी हिम्मत इकट्ठा की, धीरे से अपना सर पीछे की ओर घुमाया और अपनी आँखों को थोड़ा सा खोल दिया. जिन्नात मौलाना की शक्ल में था लेकिन पूरा नंगा.
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सईद अय्यूब की नई कहानी शबेबरात का हलवा

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  1. ek achchhi kahani ...
    vishay ki naveenta aur shilp ka kasaav kathanak ke saath baandhe rahata hai ..

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  2. अच्छी कहानी ..आगे पढने का लय बनता रहा ....अब .... संस्कार बनाये रखना या आगे लेजाना उनको, ये भी एक तरह का प्रयास ...पर उसके साथ साथ कई दरवाजे भी खुले ....मिया जी द्वारा ..कुछ सत्यता को भी दिखाती साहसिक प्रयास !!!

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  3. vary good story written by Mr.SYED AYUB. Worth reading. congrats! Mr.Ayub.

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  4. हालांकि हिन्दी मेरी मातृभाषा नहीं है यह कहानी मुझे बहुत पसंद है विषय,अंदाज,शब्दावली...सब कुछ बधाई हो!!! Im waiting for more!

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  5. सबको सादर बहुत बहुत धन्यवाद। आप लोगों के ये शब्द मेरे लिये बहुत प्रेरणादायक हैं। अरूणदेव जी को भी कोटिश: धन्यवाद कि उन्होंने मेरी कहानी आप लोगों तक पहुँचाई।
    सईद अय्यूब

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  6. बेनामी के नाम से जो मैसेज है वह मागदलीना (संक्षेप में मागदा) का है, जो पोलैंड में रहती हैं। हिंदी और उर्दू उनकी मातृभाषाएँ नहीं हैं किंतु उनका इन भाषाओं पर ज़बरदस्त अधिकार है। अभी आप ग़ालिब की शायरी पढ़ रही हैं। इस मैसेज के लिये उन्हें आभार!
    सईद अय्यूब

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  7. अच्छी कहानी। रुचिकर भाषा। ग्रामीण परिवेश का बढ़िया खाका खींचा है। बधाई।

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  8. बहुत सुंदर कहानी है अयूब। कथा शैली बहुत रोचक है और बिना किसी भारी-भरकम लफ्फ़ाजी के इतनी जटिल बात कह दी गई है जो तारीफ-ए-काबिल है। उम्मीद है भविष्य में भी ऐसी ही उम्दा रचनाएं पढ़ने को मिलती रहेंगी। शुभकामनाएं।

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  9. Very good story well written, Very few people have courage to write something like this. These kind of things are happening in the society and no one speaks about these things.
    Congrates Sayeed wel done

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  10. वैष्णवी सिकरवार
    बहुत अच्छी कहानी है बल्कि कहानी कहना ठीक नहीं है ये तो एक कड़वा सच है और हम चाहेंगे की भविष्य में भी आप के ऐसे लेख 'जो की समाज में छिपी इस तरह की बुराईयों को उजागर कर सके'हमारे बीच अवश्य आये और पूरे लेख ने आखिर तक हमें बाँध के रक्खा

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  11. यह समाज का एक वीभत्स सच है इस क्रूरता के शिकार अनेक बच्चे पूरी जिंदगी के लिए मानसिक रोगी हो जाते हैं.. और जीवन को सहज ही नही जी पते.. सईद ने ये कहानी लिख कर इस समस्या को रेखांकित किया है.. यह एक बहुत साहसिक कहानी है.. कथन और शिल्प भे मंजा हुआ है.. और एक क्षण को भी बोरियत नही हुई.. बहुत बधाई.

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  12. Bahut Khub Sayeed sb...
    Abdul Hai

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  13. जिन्नात आदमी में ही बसते हैं. मौलाना यह जानते हैं इसलिए जिन्नात से इंकार नहीं किया. जिन्ना का भय दिखाकर आदमी जब चाहे जिन्न बन सके और फिर आदमी बनाने का ढोंग भी. अपनी सुविधा के लिए ही ज्न्नात्की रचना की है और मासूमों के मन में भर दिया है... क्या? शायद.... सुन्दर कहानी ! बाल यौन शोषण और शिक्षा व्यवस्था. शिक्षक आदम के सांचे गढ़ते हैं या आदम की संतानों को बर्बाद करते हैं ? कभी कभी.... ऐसा ही करते हैं...

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  14. आपका अंदाज़ ए बयां काफी दिलचस्प है और यही बात आपकी कहानी को लगातार पढ़ते चले जाने के लिए आतुरता पैदा करती है। ऐसे ही लिखते रहिए।

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  15. Sayeed bhai... bahut umda kahaani... bahut umdaa... itni ki aadaab kahne se pahle tareef kar raha hun...... aapka kahani kahne ka andaaz itne wit se bhara hai ki ruchi poori tarah bani rahti hai... wit bhi utni hi jitni ruchikar ho aur vishay ko halka na hone de... kis sahajta se apne kahani me dikha diya hai ki is tarah ke apradhi kis tarah se apne bachaav kee dhaal banaate hain...

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  16. छिपे हुए यथार्थ को व्यक्त करती एक बेमिसाल कहानी। बच्चे पुराने समय से ऐसी दरिदंगी का शिकार होतै आए है सईद जी की कहानी ने इसे उजागर किया है।मनुष्य अपनी हवस मे जिन्न बन जाता है। बहुत बहुत बधाई।
    मनीषा जैन

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