सहजि सहजि गुन रमैं : गीत चतुर्वेदी




                                                            (pic. by neelesh sen)



गीत चतुर्वेदी
२७ नवम्बर १९७७, मुंबई.
कवि, कथाकार, अनुवादक और पत्रकार
अंग्रेजी दैनिक इन्डियन एक्सप्रेस द्वारा भारत के वर्ष २०११ के १० श्रेष्ठ रचनाकारों मे से एक.

आलाप में गिरह (कविता संग्रह) राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली,२०१०
सावंत आंटी की लड़कियां ( कहानी संग्रह), राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, २०१०
पिंक स्लिप डैडी (कहानी संग्रह), राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, २०१०
चिली के जंगलों से (नेरूदा के संस्मरणों व लेखों का अनुवाद), संवाद प्रकाशन, मेरठ
चार्ली चैपलिन की जीवनी,संवाद प्रकाशन, मेरठ

लोर्का, नेरूदा, यानिस रित्सोस, एडम ज़गायेव्स्की, अदूनिस, तुर्की युवा कवि आकग्यून आकोवा और इराक़ी कवयित्री दून्या मिख़ाइल आदि की कविताओं के अनुवाद
इनके अलावा मराठी से हिंदी में भी कई अनुवाद

मदर इंडिया कविता के लिए वर्ष 2007 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार

सावंत आंटी की लड़कियां, सौ किलो का सांप, साहिब है रंगरेज़, गोमूत्र, सिमसिम और पिंक स्लिप डैडी आदि लंबी कहानियां पहल, नया ज्ञानोदय, तद्भव, प्रगतिशील वसुधा और अकार में प्रकाशित
छह से ज़्यादा भाषाओं में कविताएं अनूदित.

सिनेमा, संगीत और विश्व कविता में गहरी दिलचस्पी
सम्प्रति : दैनिक भास्कर, भोपाल में बतौर संपादक (मैग्ज़ीन्स) कार्यरत
ई पता : geetchaturvedi@gmail.com
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from Krzysztof Kieślowski film




गीत की कविताएँ काव्यत्व से भरी हैंअर्थ के एकार्थी रास्ते पर इनके चिह्न शायद स्पष्ट न हों. अर्थान्तर के चौराहे पर खड़ी ये अपनी उजली रौशनी हर दिशा में फेंकती हैं. बने बनाए रास्ते पर ये न चलती हैं न अपना कोई निश्चित पता  छोडती हैं. बदलते चित्रों के दृश्यपट से श्लोक की तरह वाक्यांश चमकते हैं जो दूर तक पीछा करते हैं. आज जब कलाओं पर सब कुछ साफ-साफ और स्पष्ट कहने का उपयोगितावादी दृष्टिकोण हावी होता जा रहा हैगीत दुर्गम और असहज होने का साहस रखते हैं. ये कविताएँ हिंदी के समकालीन मुहावरे और अब तक के अर्जित सौंदर्यबोध में नहीं अटती हैं. गीत चतुर्वेदी हिंदी कविता के अगले सराय हैं. प्रस्तुत हैं उनकी पांच नई कविताएँ 

चंपा  के  फूल 

(दो अजीब और अविश्वसनीय चीज़ों को जोडऩे का काम
करते हैं उम्मीद और स्वप्न 
बुनियाद में बैठा भ्रम विश्वास का सहोदर है
उस कु़रबत का आलिंगन 
जो तमाम दूरियों से भी ताउम्र निराश नहीं होती)
                  *

कहा था, कांच हूं, पार देख लोगे तुम मेरे 
मेरी पीठ पर क़लई लगाकर ख़ुद को भी देखोगे बहुत सच्चा 
जिस दिन टूटूंगा, गहरे चुभूंगा, किरचों को बुहारने को ये उम्र भी कम लगेगी 
तुमसे प्रेम करना हमेशा अपने भ्रम से खिलवाड़ करना रहा 

स्वप्न में हुए एक सुंदर प्रणय को उचक कर छू लेना चाहता हूं
लेकिन चंपा मेरी उचक से परे खिलती है
मैं उसकी छांव में बैठा उसके झरने की प्रतीक्षा करता हूं

एक अविश्वसनीय सुगंध 
उम्मीद की शक्ल में मेरे सपने में आती है 
मुझे देखो, मैं एक आदमक़द इंतज़ार हूं

मैं सुबह की उस किरण को सांत्वना देता हूं
जो तमाम हरियाली पर गिरकर भी कोई फूल न खिला सकी
चंपा के फूलों की पंखुडिय़ां सहलाता हूं 
उनकी सुगंध से ख़ुद को भरता तुम्हारे कमरे के कृष्ण से पूछता हूं 
चंपा के फूल पर कभी कोई भंवरा क्यों नहीं बैठता

दो पहाडिय़ों को सिर्फ़ पुल ही नहीं जोड़ते, खाई भी जोड़ती है



चंपा के फूल - 2

गिटार को गुमान में रख दो कहीं  
तो भी एकाध तार बज उठता है उसका 
तुम वैसे ही बजी थी हौले से 
जब उस चबूतरे पर बिठाया था तुम्‍हें 

तुम उस कंपन की तरह थी जिसने पहले अपनी आवाज़ खोई कि अपनी कांप 
स्थिरता एक अदृश्‍य कंपन है खाई एक उल्‍टा पहाड़ 
दुख यानी बेरौनक़ सुख और सुख यानी महराबदार दुखों के बीच उगती-बीतती 
उस पेड़ के नीचे सूखी पत्तियों बेनाम घासों गुमनाम टहनियों का अस्‍त-व्‍यस्‍त व्‍याकरण था 
अपने नियमों से टूटकर अलग हुआ 
रीत गई अभिनेत्रियों की तरह तुम तिनका तोड़ रही थीं 

चंपा राधा का रूप होती है भंवरे कृष्‍ण के शिष्‍य 
इसलिए नहीं भटकते भंवरे चंपा पर कि 
गुरु के साथ छल होगा 
जबकि चंपा का फूल अब भी कृष्‍ण की प्रतीक्षा कर रहा 

मुझे तुम पर झरना था 
छूने की इच्‍छा करना भी तुम्‍हें छूना ही है 
पैरों से तुमने पत्तियां बुहारीं 
पत्तियों के बीच ख़ुद को बुहारा 

मैं सुगंधों का ज्ञानी हूं 
प्रेम से बड़ा कोई तर्क नहीं मेरे पास 

फूल प्रेम में डूबी प्रतीक्षारत स्त्रियों की तरह हैं 
उनकी मादकता उनकी निजता है 
भीनापन कभी सार्वजनीन नहीं होता 

तुम मुझे चूमना चाहती थीं 
इच्‍छा की चंपा झरी थी तुम्‍हारे बाएं 
जाते हुए तुमने फूल को हाथ में थाम रखा था 
जाते हुए तुम फूल के हाथों में थमी थी 

चंपा प्रतीक्षा की सुगंधित संज्ञा है 

मैं कृष्‍ण से छल ना कर पाया. 



आषाढ़ पानी का घूंट है

तुम्‍हारी परछाईं पर गिरती रहीं बारिश की बूंदें 
मेरी देह बजती रही जैसे तुम्‍हारे मकान की टीन 
अडोल है मन की बीन 

झरती बूंदों का घूंघट था तुम्‍हारे और मेरे बीच 
तुम्‍हारा निचला होंठ पल-भर को थरथराया था 

तुमने पेड़ पर निशान बनाया 
फिर ठीक वहीं एक चोट दाग़ी 
प्रेम में निशानचियों का हुनर पैबस्‍त था 

तुमने कहा प्रेम करना अभ्‍यास है 
मैंने सारी शिकायतें अरब सागर में बहा दीं

धरती को हिचकी आती है 
जल से भरा लोटा है आकाश 
वह एक-एक कर सारे नाम लेती है 
मुझे भूल जाती है 
मैं इतना पास था कि कोई यक़ीन ही नहीं कर सकता 
जो इतना पास हो वह भी याद कर सकता है 

स्‍वांग किसी अंग का नाम नहीं 

आषाढ़ पानी का घूंट है 
छाती में उगा ठसका है पूस.



प्रहसन

जब भी जल गिरता है
खिड़की के पल्‍ले मेरा स्‍पर्श पाते हैं

मैं सारी यात्राओं का नामकरण विराम करता हूं 

मैं हर सुबह उठकर मन को खोदता हूं 
उपेक्षा के पौधे क्‍यारी में उगते हैं 

मैं अपने इंजन से कभी यह नहीं कहता 
जब तुम शंटिंग करते हो 
धक्‍का लगने से मैं अपनी जगह से हिल जाता हूं

प्रेमियों और पतियों और पिताओं ने नफ़रत की मुझसे 
उनकी स्त्रियों ने उनसे नज़रें चुराईं
अंत में सभी के हंसने की आवाज़ आई
जीवन एक प्रहसन है
चलो, यह भी अब ख़त्‍म हुआ

सतह पर काई नहीं
बेतरतीब तैरता मौन है मेरा 
आंसू आंख की मुस्‍कान हैं 



नीली अनुगूंज

हर ओट का इस्‍तेमाल छिपने के लिए किया 
यह देह भी महज़ छिपने की एक जगह है 
खिड़कियों ने दीवारों में रहना छोड़ दिया है 
आलमारी में किताबें शरणार्थियों की तरह हैं 

तुमने सांपों को मारे डर के मारा 
तुम्‍हारा भय निर्दोषों को भयभीत करता है

तुम्‍हारे हाथ पर उभरी नीली नसें
तुमसे टकराकर ना लौट पाईं आसमान की आवाज़ें हैं
तुम नीली अनुगूंजों से बुने गए हो.

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  1. अपनी समझ में इतनी सुंदर और सूक्ष्म प्रेम कविताएँ पहले नहीं पढ़ी कभी ..
    कविताएँ क्या हैं .. अलग-अलग कैनवास पर बोलते चित्र . कमाल की हैं .
    अरुण को बधाई और गीत जी का आभार की उन्होंने ये रचनाएँ देकर पाठक वर्ग को लाभान्वित किया .

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  2. अद्भुत प्रेम कवितायेँ हैं ,अनुभूति की गहराई से आते और देर तक गूंजते संगीत की तरह ! अद्भुत चित्रमयी संवेदनाएं शब्दों में अनूदित हुई हैं ! आभार अरुण देव जी और गीत चतुर्वेदी जी को इन रचनाओं के लिए बधाई !

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  3. शानदार...प्रेम की संवेदनाओ का microscopic विश्लेषण है!
    बधाई हो.....

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  4. शब्द शब्द बेजोड़ ...वाह...बधाई बधाई बधाई...

    नीरज

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  5. kuchh panktiyaan jo man ko chhoo gayiN..
    ...तुमसे प्रेम करना हमेशा अपने भ्रम से खिलवाड़ करना रहा..waah

    ..मुझे देखो, मैं एक आदमक़द इंतज़ार हूं..bahut khoob

    ..दो पहाडिय़ों को सिर्फ़ पुल ही नहीं जोड़ते, खाई भी जोड़ती है...:)
    "फूल प्रेम में डूबी प्रतीक्षारत स्त्रियों की तरह हैं

    उनकी मादकता उनकी निजता है
    भीनापन कभी सार्वजनीन नहीं होता "..kya baaat hai :)

    "सतह पर काई नहीं
    बेतरतीब तैरता मौन है मेरा
    आंसू आंख की मुस्‍कान हैं " :)

    ....यह देह भी महज़ छिपने की एक जगह है ...adbhut :)
    bahut khoobsurat..

    "

    जवाब देंहटाएं
  6. khuv likha,bezod shbdh,bhavnayo kaa phuhaar pr asliyat bhaag kr prysi ke paas zaa rhi,aapki socchni mn mein kyi biklp vna rhi hain,dost hmne nhi socha tha geet ptrkaar bhi unchkoti kaa poet ho skta...hmye pasand.

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  7. अद्भुत! असाधारण! हर बार की तरह लाजवाब! इन कविताओं को पढ़ना मोहब्बत की नयी राहों से गुज़रना है...

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  8. Beautiful mesmerizing symbolic allegory. Sentient touching and true to heart poetry.

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  9. बेहतरीन कवितायें, समझ और गहनता में पगी।

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  10. गीत की इन प्रेम कविताओं में ताजगी है जो उम्मीद और स्वप्न के मेल से आई है.इनमें चंपा के फूल की खुशबू है. एक दूरस्थ प्रेम की कल्पना में गिटार की तरह बजता मन है.बरसात में निकट आये प्रेमी हैं और देह को छिपने की ओट भी बना दिया गया है.सबसे बहुअर्थी कविता प्रहसन है जिसमें प्रेम, इच्छाओं और जीवन सबको उदासीन भाव से देखा गया है.

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  11. wonderful poems. i will not forget चंपा के फूल for a long time. i think i will never forget it. hats off to geet ji.

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  12. ..बेतरतीब तैरता मौन... मन को खोदता हूं ...पानी का घूंट..एक अविश्वसनीय सुगंध...एकाध तार बज उठता है ..उस कंपन की तरह .. जिसने पहले अपनी आवाज़ खोई....आसमान की आवाज़ें....अनुगूंजों से बुने गए...सूखी पत्तियों बेनाम घासों गुमनाम टहनियों का अस्‍त-व्‍यस्‍त व्‍याकरण ..जो तमाम हरियाली पर गिरकर भी कोई फूल न खिला सकी..हर ओट का इस्‍तेमाल छिपने के लिए ... .प्रहसन..महज़ छिपने की एक जगह है...कभी सार्वजनीन नहीं होता ....मैं एक आदमक़द इंतज़ार हूं....किरचों को बुहारने को ये उम्र भी कम लगेगी...हमेशा अपने भ्रम से खिलवाड़...///////बहुअर्थी...अद्भुत! असाधारण!..बेहतरीन .... लाजवाब!.. ..सुंदर और सूक्ष्म ...शब्द शब्द बेजोड़ ...... ...वाह...बधाई

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  13. कवियों की बड़ी इज्ज़त हे मेरे दिल में ,क्योकि कविताओ से प्रेम है ,मज़ा आता है पड़ने में ,मगर समझ में सब नहीं आती तो मायूसी होती है , तब कवियों पर नहीं अपनी नासमझी पर गुस्सा आता है और तरस भी, मगर गीत जी की कविताये वास्तव में चित्र है , हर अगली पंक्ति व्याख्या सी हे पिछली पंक्ति की .मगर चंपा के फूल नहीं समझा mai और पडूंगा जरूर कोई बात होगी, कविता के नाम पर सब्दो का पज़ल मुझे अच्छा नहीं लगता, ये सचमुच वे कविताये है जिन्हें pathak समझ सके मुझे गीत जी किस्म के कवी भाते है,

    आंसू आंख की मुस्‍कान हैं wah wah dhanyawad

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  14. "जिस दिन टूटूंगा, गहरे चुभूंगा, किरचों को बुहारने को ये उम्र भी कम लगेगी"
    बहुत खूब...
    गीत का अंदाज़ निराला है। महीन भाव और बारीक बुनावट।

    समालोचना को शुभकामनाएँ

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  15. gahri samvedanaon ko shabdon me ukera hai geet ne....adbhut......anmol.....BADHAAI.....

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  16. अच्छी कविताएं गीत जी ने लिखी हैं। बधाई।

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  17. अति सुन्दर लेखन. कविता का योवन आ गया है.

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  18. कमाल है.. !!!
    हर ओट का इस्‍तेमाल छिपने के लिए किया
    यह देह भी महज़ छिपने की एक जगह है
    खिड़कियों ने दीवारों में रहना छोड़ दिया है
    आलमारी में किताबें शरणार्थियों की तरह हैं

    और ये तो जादू है... !!
    चंपा राधा का रूप होती है भंवरे कृष्‍ण के शिष्‍य
    इसलिए नहीं भटकते भंवरे चंपा पर कि
    गुरु के साथ छल होगा
    जबकि चंपा का फूल अब भी कृष्‍ण की प्रतीक्षा कर रहा


    चंपा प्रतीक्षा की सुगंधित संज्ञा है

    मैं कृष्‍ण से छल ना कर पाया.

    जवाब देंहटाएं
  19. तुमने पेड़ पर निशान बनाया
    फिर ठीक वहीं एक चोट दाग़ी
    प्रेम में निशानचियों का हुनर पैबस्‍त था

    तुमने कहा प्रेम करना अभ्‍यास है
    मैंने सारी शिकायतें अरब सागर में बहा दीं


    तुम्‍हारे हाथ पर उभरी नीली नसें
    तुमसे टकराकर ना लौट पाईं आसमान की आवाज़ें हैं
    तुम नीली अनुगूंजों से बुने गए हो......एक-एक कविता मानो एक काव्य -ग्रन्थ हैं......प्रेम की उदात्त भावनाएं और उनकी सीमायें सभी कुछ तो परिभाषित है इन कविताओं में.....सुंदर कविताओं के लिए समालोचन और अरुण जी को धन्यवाद और Geet Chaturvedi ji को ढेर सी बधाई......

    जवाब देंहटाएं
  20. कवि और कविताओं का अपना संसार होता है | और आपकी बिरादरी वाले बातआपकी बात आसानी से समझ ही लेते है | बड़ी बात जब होती है जब इस ज्ञान के संसार से कोई वास्ता नहीं रखने वाले भी खिंचे चले आये | गीत जी की कविताओं की तासीर भी ऐसी ही है | ये उन लोगो को भी खींचती है जो कविताओं की समझ नहीं रखते | गीत जी की कवितायें आपको आवाज देती है | मुस्कुराती है | आप पलटते है लेकिन रुकते नहीं वो फिर कहती हैं -बिलकुल गीत जी के अंदाज में -सुनो , तुम मुझे पढ़ लों वरना मैं तुम्हारे जहन में गूंजती ही रहूंगी इक़ अफ़सोस बन कर --और फिर वो कविताएं आपका हाथ पकड़ कर इक़ दूसरी दुनिया में आपको लिए जाती है|
    मुझे तो कविताओं की समझ नहीं लेकिन फिर भी कहुगी की - उनके कहने के अंदाज अनोखे है | जैसे हर बात में इक़ गहरी बात छुपी हो | जैसे हर वाक्य में इक़ पूरी जिन्दगी | कोई भी वाक्य उठा कर उसपर इक़ किताब लिखी जा सकती है लेकिन बात फिर भी अधूरी ही रहेगी ...हर बात पूरी फिर भी अधूरी | हर कविता पूरी लेकिन ना जाने क्यों मुझे लगता है जैसे इस कवीता का दूसरा हिस्सा उनके पास सुरक्षित रखा है उन्होंने | और अवसर मिलते ही जिन्दगी के हामी भरते ही वो उसे चुपके से पेश कर देंगे | ये कुछ भी कर सकते है | ये दर्द के पहाड़ को उल्टा कर दे उसे प्रेम की नदी में डूबा दे | ये चाहे तो प्रेम की खाई को उलटा करके दर्द का पहाड़ बना दे | ये किसी पत्थर को रुई पुकार ले | ये चाहे तो जिन्दगी भर चम्पा के झरने की प्रतीक्षा करे| उसके बिखरने की दुआ करे | कहीं जब चम्पा अपने सारे फूल गिरा दे तो ये झट कह उठे ------ना --तुम्हे गिरना नहीं था सिर्फ बिखरना था | मैं खुशबुओं का ज्ञानी हूँ | भंवरा नहीं | ये चाहे तो मन के जहर को , दर्द को अपनी हंसी बना ले और आसूँ को आखं की मुस्कान कह डाले | ये अपनी सारी शिकायते अरब सागर में बहाकर उसे हमेशा के लिए खारा बना दे | ये अपने प्रेम को भ्रम का नाम दे दे ये कवि कुछ भी कर सकते है | ये देह की ओट में छिपकर कवीता में उजागर हो जाये | ये अपने मन को खोदता है और उसमे आसूँ बोता है दर्द के पौधे उगाता है और ठसक तो देखीये उन्हें मुस्कान नाम से बुलाता है | ये वो कवि है जो हाथ में लिए सभी रंगबिरंगे गुब्बारों को इक़ इक़ करके आसमान में उड़ा देता है और फिर उनके वापस आने की प्रतीक्षा में कविताये गढ़ता है -कमाल ये है .साहब की इन कविताओं के पुकारने पर वो सभी गुब्बारे वापस आ जाते है | और खुद ही कच्ची डोर से बंध कर कवि की हथेलियों में सिमट जाते है | ये कमाल है गीत जी का |

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  21. बेहतरीन कवितायें, समझ और गहनता में पगी।

    जवाब देंहटाएं
  22. जिंदगी का उल्लास हैं कल्पनाएँ और जब कल्पनाएँ प्रेम का ऐसा संसार रच दे जहाँ जिंदगी बड़ी सयानी और महकती हवा सी लगने लगे तो ऐसी कल्पनाओं को मेरा सलाम है ! गीत जी एवं अरुण जी को बहुत बहुत बधाइयाँ ....

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  23. "एक अविश्वसनीय सुगंध, उम्मीद की शक्ल में मेरे सपने में आती है ... मुझे देखो, मैं एक आदमक़द इंतज़ार हूं" मन के कैनवास पर गहन प्रेम का सजीव चित्रण । अद्_भुत है ! अभिभूत कर गया ।

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  24. उफ़! अप्रतिम. शब्द कितने नाकाफ़ी हैं.

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  25. I liked this one a lot, "दो पहाडिय़ों को सिर्फ़ पुल ही नहीं जोड़ते, खाई भी जोड़ती है"

    एक निराला एवं अनूठा विचार है

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  26. सतह पर काई नहीं ,
    बेतरतीब तैरता मौन है मेरा
    आँसू आंख की मुस्कान हैं ...

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  27. कविताओं में सजावट के लिये प्रतीकों का प्रयोग लगभग सभी करते हैं पर गीत उन रचनाकारों में है जो प्रतीकों के अंदर से ही एक कविता निकाल देते हैं । शब्द प्रतीक बनते हैं और प्रतीक पंक्तियाँ .. अंततः एक मुक्म्मिल कविता । भाव एक सरिता सा शुरुआत से अंत तक बहता रहता है । उनकी कविताऐं एक कोलाज की तरह है जिसके हिस्से इतने सफाई से चिपके होते हैं कि ना अलग नजर आते हैं .. ना एक प्रचलित पेंटिंग विधा के लगते हैं । उनका लेखन भीड़ में भी स्पस्ट पहचाना जा सकता है ।

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  28. जल भरा लोटा है आकाश ...साँपों को मारे dar के मारा तुम्हारा भय निर्दोषों को भयभीत करता है ...कविता के आकाश में प्रकाश ही प्रकाश ...आंखे फटी जा रही है मन उत्साह से उद्वेलित हो रहा है ...इस कविता को कविता के दुश्मनों पर एटम की तरह दाग दो सब बेजुवां हो जायेंगे .यह कविता दिखाकर कविता का अंत घोषित करने वालों के चेहरे के हावभाव किसी कैमरे में जरुर बंद कर लेना ताकि वो अपनी बात से बदल न सकें ...मैं किसी अन्धविश्वास को नहीं मानता लेकिन तो भी कहता हूँ कविता के इस जादूगर को बुरी नज़र न लगे .आमीन .

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  29. आपकी पाँचों कवितायेँ पढ़ीं . एक से बढकर एक है और
    सर्वोत्तम छांटना निर्विवाद रूपेण कठिन है ............ मुझे जिस चीज़ ने आकर्षित किया , वह है उपमा अलंकार का बेजोड़ प्रयोग ! और ये भी के आप का पूरा ध्यान प्रकृति की ओर रहता है :))))
    कुछ पंक्तियाँ जिन पर नजर बार-बार जाती है -
    (१)मेरी पीठ पर क़लई लगाकर ख़ुद को भी देखोगे बहुत सच्चा....
    (२)मैं एक आदमक़द इंतज़ार हूं..............
    (३)स्थिरता एक अदृश्‍य कंपन है खाई एक उल्‍टा पहाड़ ..............
    (४)भीनापन कभी सार्वजनीन नहीं होता .............
    (५)मेरी देह बजती रही जैसे तुम्‍हारे मकान की टीन .........
    (६)धरती को हिचकी आती है
    जल से भरा लोटा है आकाश ..............
    (७) देह भी महज़ छिपने की एक जगह है ......

    (८)तुम्‍हारे हाथ पर उभरी नीली नसें
    तुमसे टकराकर ना लौट पाईं आसमान की आवाज़ें हैं.......
    अब आप ही बताईये, क्या सराहें और क्या छोड़ें !!!!!! :)))))))

    (८)

    सच्चा ..............

    sarvottam

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  30. गीत की कविताएँ पढ़ना हमेशा एक ही साथ भीतर से भर जाना और खाली हो जाना होता है। ऐसी सघन राग में पगी कविताएँ गीत ही लिख सकते हैं... उन्हें और समालोचन दोनों को बधाई

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  31. kuchh panktiyaan jo man ko chhoo gayiN..
    ...तुमसे प्रेम करना हमेशा अपने भ्रम से खिलवाड़ करना रहा..waah

    ..मुझे देखो, मैं एक आदमक़द इंतज़ार हूं..bahut khoob

    ..दो पहाडिय़ों को सिर्फ़ पुल ही नहीं जोड़ते, खाई भी जोड़ती है...:)
    "फूल प्रेम में डूबी प्रतीक्षारत स्त्रियों की तरह हैं

    उनकी मादकता उनकी निजता है
    भीनापन कभी सार्वजनीन नहीं होता "..kya baaat hai :)

    "सतह पर काई नहीं
    बेतरतीब तैरता मौन है मेरा
    आंसू आंख की मुस्‍कान हैं " :)

    ....यह देह भी महज़ छिपने की एक जगह है ...adbhut :)
    bahut khoobsurat..

    "

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