देस - वीराना : देवरिया-१ : विवेक कुमार शुक्ल और परितोष मणि




जहाँ हम पले- बढ़े, उस नगर में हमारी यादों की स्थाई नागरिकता रहती है, चाहे हम दर- बदर हों या जिला-बदर. कभी फीकी नहीं पड़ती उन गलियों की चमक. ऐसी बस्तिओं से ही हम सब आते हैं. हम सब के अंदर एक उजाड़ है. छूट हुए चाय-घर, साइकिल की वह घूमती हुई तीलियां, रंग-बिरंगे रिबन.

बिछड गये 'देस' की अंतर-कथाओं और गाथाओं की यह श्रृंखला 'देवरिया' से शुरू हो रही ही है. परितोष और विवेक ने बड़े ही लगाव से इसे लिखा है, भाषा की गलियाँ भी क्या बा-मज़ा होती हैं.


देवरिया : (एक)
अजब शहर था ख्यालों का                                           
विवक  कुमार शुक्ल और परितोष मणि                



किसी शहर में हो और ग़र ज़्यादतर  मोटरसाईकिलों के पीछे या आगे अध्यक्ष / छात्र नेता / पत्रकार  लिखाखुदा देखे और गौर करने पर मलूम हो कि इनमें से अधिकतर की नंबर प्लेट कोरी स्लेट है या उन पर एक अबूझ सी लिपि में कुछ लिखा है तो मान ले कि आप पूर्वांचल या पूर्वी  उत्तर प्रदेश के किसी शहर में है और ये वाहन किसी शेरे-पूर्वांचल या शेर-A- पूर्वांचल का है. ऐसा ही एक शहर है देवरिया. ये बनारस है इलाहाबाद लखनऊ, गोरखपुर और बलिया भी नही . बनारस इलाहबाद इसलिये नही कि गंगा मैया कि कृपा इस शहर पर  हुई नही, लखनऊ राजधानी है, गोरखपुर ठहरा महानगर और कोई अध्यक्ष जी यहाँ है नहीं कि यह बलिया हो जाये.  ले देकर नदी वगैरह के नाम पर एक कुरना नाला है जिसके किनारे सब्जी मन्डी बनने की बात सालो से होती रहती है और अध्यक्ष के नाम पर एक  अदद नगर पालिका अध्यक्ष है इस शहर के पास. नगर पालिका देवरिया जिसके लगाये बिज़ली के खम्भों पर इसका शार्टकट .पा.दे. देखकर स्कूल आते जाते बच्चे हँसते है अच्छा है नगर पालिका बिज़ली पानी की वयव्स्था करे करे कम से कम बच्चों के चेहरे पर हँसी तो लाती है.

इस शहर का नाम देवरिया क्यों हुआ इसके पीछे अनेक कथायें है. मसलन कुछ का मानना है कि देवरहा बाबा के नाम पर यह देवरिया हुआ पर देवरहा बाबा राजीव गाँधी के समकालीन थे और शहर उससे बहुत पहले का है, कुछ का मानना है कि शहर के कोने पर स्थित देवरही माता के नाम पर यह हुआ, कुछ मानते है कि प्राचीन काल में यह बहुत पवित्र शहर था और माना जाता कि यहाँ देवों का निवास है इसलिये देवरिया हुआ. किसी ज़माने में यहाँ कुछ शिलालेख मिले थे जिनमें इसे देवरिया कहा गया था, कुरना नाला दरअसल कुरना नदी है पर ये बात शहर के कुछेक बुद्धिजीवियों और देवरिया की सरकारी वेबसाईट बनाने वालों के अलावा कोई नही जानत . कौन जाने  देवरिया का नाम देवरिया क्यूँ हुआ हाँ ये जरूर है कि अरसा पहले किसी स्थानीय प्रकाशक ने देवरिया का इतिहास नाम की किताब भी छापी थी जिसमें इस पर बिन्दुवार चर्चा थी और साथ ही देवरिया शहर का मानचित्र अर्थात नक्शा भी. कुछ समय तक यह स्कूलों में पाठ्यक्रम का हिस्सा  भी रही. आज भी कुछ आएसाये और पीसीयसाये कैन्डिडेट इस किताब को खोजते दिख जाते है कि मान इंटरव्यू  में पूछ लेलस तब

पुराने लोग बताते है कि शहर बनने कि पहले असल में कुछ गाँव थे जैसे देवरिया खास या लँगड़ी देवरिया, रामनाथ देवरिया, बाँस देवरिया वगैरह और बाज़ार नुमा जगह थी आज के हनुमान मंदिर से रामलीला मैदान तक की जगह. देवरिया खास खास शायद इसिलिये था कि बाज़ार से सबसे करीब था हाँ लँगड़ी क्यों था मालूम नही.

आज के देवरिया को देखे तो मालूम होता है कि गोरखपुर देवरिया रोड शहर को दो हिस्सों में बाँटती है पूरब तरफ़ न्यू कालोनी, सिविल लाईन्स, गरुलपार, खरजरवा वगैरह तो इस तरफ़ देवरिया खास, भुजौली, रामनाथ देवरिया वगैरह. पूरब तरफ़ के मोहल्लों में ज्यादतर देवरिया के पाश इलाकों की श्रेणी में आते है. न्यू कालोनी को देवरिया का सबसे मार्डन मोहल्ला कहा जा सकता है. शहर के ज्यादतर स्कूल इस मोहल्ले में है . एक गुरुद्वारा और एक छोटा चर्च भी इसी मोहल्ले की सीमा में है . देवरिया शहर का एक मात्र पार्क, (अर्थात मोहल्ले के बीच में छोड़ा गया ज़मीन का बड़ा टुकड़ा , जो बच्चों के क्रिकेट खेलने, गायों के आराम और डेटिंग करने और लगन के महिनों में तम्बू , शामियाना लगा कर लोगों को खाना खिलाने के काम आये) , इसी मोहल्ले में है. देवरिया में कुछ और पार्क भी हैं जैसे टाउन हाल के सामने का पार्क जहाँ अतीत में गर्मियों में फ़व्वारा चला करता था और जो आज माध्यमिक शिक्षा संघ से लेकर व्यापारी मंडल के धरनों- प्रदर्शनों के काम आता है. आचार्य रामचंद्र शुक्ल नगर में भी एक पार्क था लेकिन आज कल वो पार्क की उपरोक्त परिभाषा के अन्तर्गत आता है फ़र्क केवल इतना है कि यहाँ समय समय पर सौ रूपया प्रति टीम लेकर पाँच सौ के ईनाम वाले गोल्डेन कप टाईप नाम के क्रिकेट टूर्नामेंट भी होते है . खैर.. न्यू कालोनी का यह पार्क औसतन हमेशा टीप टाप ही रहता है. पार्क में फ़व्वारा भी है और अगर आपके दिन की शुरुआत नीलकंठ पक्षी देखकर हुई हो तो ये आपको चलता हुआ दिखाई देता है. 

पार्क के किनारे पर एक गोल छतरी बनी है जिसके नीचे बैठने की भी जगह है इसे गोलाम्बर कहा जाता है . अक्सर शिवाजी और महाराणा प्रताप स्कूल के लड़के यहाँ बैठकर रघुवंश मिश्र कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की लड़कियों को देखने का प्रयास करते मिलते है . ऐसा नहीं है कि ये मोहल्ले आज़ादी के बाद पाश हुए, अंग्रेजो के ज़माने का सिविल लाईन्स भी पूरब तरफ़ ही है . गोरखपुर रोड डी.एम. बंगले के बाद सिविल लाईन्स में बदल जाती है . सिविल लाईन्स की सड़क देवरिया की कुछ उन चुनिन्दा सड़को में है जहाँ सड़क के बीच डिवाईडर है हालाँकि देवरिया के लोग आज तक डिवाईड नहीं हुए और हिन्दुत्व का उभरता गढ़ कहे जाने वाले गोरखपुर के ठीक बगल में होने के बावजूद यहाँदो समुदायों के बीच तनावजैसी खबरें अखबार के तीसरे पन्ने पर नही मिलती, बाँटने वाली हर चीज का विरोध करते हुए देवरिया के लोग डिवाईडर को अनदेखा कर सड़क के दोनों हिस्सों को भी एक ही मानते है.

हर शहर कि तरह यहाँ भी मोहल्लों के नाम बदलते रहते है या नये मोहल्ले बनते रहते है और कुछ साल बेनाम रहने के बाद उन्हें भी नये नाम मिलते रहते है जैसे  देवरिया खास का एक हिस्सा काफ़ी साल खाली रहने के बाद बसा और बसने के बाद कुछेक साल बेनामी रहने के बाद नाम हो गया कृष्णा नगर कालोनी , कृष्णा नगर इसलिये कि इस मोहल्लें में वृन्दावन वालों ने एक सत्संग भवन या गीता भवन बना दिया जो सुबह शाम अपने लाउड्स्पीकर से लोगों का भ्रम दूर कर उन्हे  भक्ति क्षेत्रे खींचता रहता है. ऐसे ही भुजौली इलाके के किनारे विकास प्राधिकरण ने एक कालोनी बनायी नाम रखा आचार्य रामचंद्र शुक्ल नगर  जो कालान्तर में RC कालोनी के नाम से जाना गया,जानकारों का कहना है कि जो सज्जन उस समय प्राधिकरण के मुखिया थे वे बड़े साहित्यानुरागी जीव थे,. अब मसला ये हो गया कि इस कालोनी की सीमा के पहले जो इलाके थे उन्हे क्या कहा जाये क्योंकि रामचंद्र शुक्ल कालोनी कहे तो रिक्शावाला उतनी दूर जाने को तैयार होता नहीं था, भुजौली कहे तो इतना बड़ा इलाका है कि घर की location बतानें से कम समय में आदमी पैदल पहुँच जाये  खैर एकाध साल के बाद इस इलाके का नाम हो गया भुजौली कालोनी.

इस शहर की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर है. देवरिया उत्तर प्रदेश का आखिरी शहर है और इसके बाद सीवान से  बिहार शुरु हो जाता है. गोरखपुर वाले और गोरखपुर ही क्या लखनऊ तक के लोग देवरिया को बिहार में धकेल देते है, जब देवरिया वाला मासूमियत से कहता है कि देवरिया यू.पी में है तो सामने वाला कहता हैअरे खाली कहे के यूपी में बाऔर इस तर्क के आगे देवरिया वाला ढ़ेर हो जाता है . जब तक कुशीनगर देवरिया में था तब तक देवरिया दुनिया के नक्शे पर था पर जब से कुशीनगर अलग ज़िला बन गया देवरिया यूँ कह लीजिये बिना दुकान की बाज़ार हो गया . अब आलम यह है कि देवरिया का आदमी परदेस में, परदेस जो दिल्ली से अमरीका तक फैला है, खुद को गोरखपुर  का कहता है. गोरखपुर में कहाँ ? के उत्तर में धीरे से बोलेगा, “देवरिया.
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इसका अगला भाग यहाँ पढ़ सकते है.देवरिया-२.

यहाँ भी देखें- देवरिया-३ 

परितोष मणि-
देवरिया से दिल्ली होते हुए अब गाजियाबाद में.
'अज्ञेय की काव्य- दृष्टि' प्रकाशित.
ई-पता : dr.paritoshmani@gmail.com

विवेक कुमार शुक्ल-
देवरिया से दिल्ली अब अमेरिका
हिंदी अनुवाद में शोध कार्य 
ई- पता : vivekkumarjnu@gmail.com  

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  1. बहुत ही सुन्दर पोस्ट....सम्पूर्ण देवरिया के दर्शन करा दिए. प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए प्रयासरत दिखा "देवरिया".
    लेखन शैली अद्वितीय!
    शुभकामनाएँ........

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  2. मेरा शहर…मेरा घर…जहाँ ज़िंदगी के शुरुआती 16 साल ग़ुज़रे…मां-पापा अब भी वहीं है…देवरिया एक धड़कता हुआ शहर है…आज तक कोई ऐसी यात्रा नहीं ग़ुज़री जब एक-दो गोष्ठियाँ न अटेंड करने को मिली हों…पहले चुपचाप पीछे जाकर बैठ जाता था…अब लोग कई बार मुख्य वक्ता वगैरह बना देते हैं तो पराया सा लगता है…स्कूल-कालेज़ों का ज़िक्र छूट गया है…राजकीय इंटर कालेज़, बी आर डी पी जी और इंटर कालेज़, कस्तूरबा गर्ल्स इंटर कालेज़, संत विनोबा डिग्री कालेज़, मारवाड़ी इंटर कालेज़्…सबकी अपनी-अपनी पहचानें, अपना-अपना क़िस्सा…इस प्रस्तुति का बहुत आभार्…

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  3. देवरिया का बहुत रोचक वर्णन किया है|
    घुघूती बासूती

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  4. Bahut achchha, devaria ke bare me jankarian dene wala , atyant marmik aur jane kya kya yaad dilata post.

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  5. आपका लेख काफी अच्छा लगा ... जानकारी भी है... कल मैं यह लेख चर्चामंच पर रखूंगी .. आपका आभार .. http://charchamanch.blogspot.com .. on dated 17-12-2010

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  6. बहुत ही खुब लिखा है आपने......आभार....मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित नई रचना है "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद

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  7. परितोष ऊपर से खिलंदड़ मार्का लगते हैं। लेकिन मैं उन्हें 20-22 सालों से जानता हूँ; उनमें एक लेखक हमेशा से मौज़ूद रहा है। वे मोहक अंदाज में जीते हैं। व्यवस्थाओं से अतिक्रमण से उनके व्यक्तित्व की आधारशिलाएँ रचित हैं। उनकी चौकस निगाहें जीवन में शिल्पों से ज्यादा उसके खुरदरे यथार्थ को ढूँढ़ती रहती हैं। इसलिए वे अपने इर्द-गिर्द फुटकर में फैली ज़िदग़ी की किस्तों को मिलाकर हर बार एक नई कहानी गढ़ देते हैं। उनका पात्र ज़रूरी नहीं कि कोई बिछड़ी हुई प्रेमिका हो या बार-बार मिलने वाली महिला मित्र वे अपने शहर पर भी कमाल का लिख सकते हैं। देवरिया पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसी भी जिले का प्रतिनिधि चेहरा हो सकता है। एक मुकम्मल दस्तावेज़...एक असमाप्य स्मृति-यात्रा। सपनों का एक रूमानी दस्तावेजट। बीते बचपन और जवानी की कहानियों का रोमांचक दस्तावेज़।

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  8. परितोष जी के बारे में सुशील के माध्यम सुनता रहा हूँ। लेकिन देवरिया पर आपकी लेखनी देखकर एक अजीब-से अपनापन का , कुछ छूटती हुई यादों का , कुछ भूले-बिसरे चेहरों की स्मृतियाँ सज़ग हो उठती हैं। देवरिया के बारे में पढ़ते हुए कुछ देर के लिए ही सही, मुझे भी लौरिया (आपकी देवरिया की तरह का ही मेरा अपना शहर/कस्बा/गाँव जो कह लीजिए) की यात्रा करा लाए आप। वह लौरिया, जो अब शायद केवल सपनों में आने लगा है। और सपने भी ऐसे जो जल्दी ही टूट जाते हैं और जिनके टूटते ही एक बड़े खालीपन का, कुछ छूटते जाने का अहसास होता है। लौरिया, जो एक सोंधी महक की तरह सुदूर बचपन से ही मेरे मन-प्राणों में समाया हुआ है , रचा-बसा है, सही में अब शायद वैसा नहीं रह गया होगा.....बदलते समय के कसैलेपन ने शायद उसे भी नहीं छोड़ा होगा। यहाँ एक रूसी कहानी मुझे बहुत याद आती है। कहानी में सुदूर परदेश में बसा बूढ़ा नायक हमेशा अपने गृहनगर की याद करता हुआ, अपने बचपन के घर-गाँव-खेल के मैदान, उस छोटे स्कूल -माता-पिता-छोटे भाई-बहनों की याद में खोया-खोया प्रतिदिन फूलों का एक गुच्छा किसी रेलयात्री से भेजने के लिए प्रतिदिन रेलवे स्टेशन जाता है और अपने गाँव की जाने वाली हर आती-जाती ट्रेन में बैठे यात्री से पूछता है कि क्या वह उसका संदेश उसके गाँव वाले घर के पास रहने वाले मित्र के पास पहुँचा देगा। लेकिन उसका पसंदेश कभी नहीं पहुँच पाता और नायक उक दिन अंतिम साँसे लेते हुए अपने बचपन के गाँ की यादों को सीने में समेटे सदा के लिए सो जाता है। अपने बचपन के घर-गाँव के प्रति सहज खिंचाव और उसकी यादों में एक अज़ीब तरह के सुकून की तलाश मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है। लेकिन जब बचपन के वे घर-गाँव बदलते हुए समय की गिरफ्त में अपनी स्वप्निलता-कोमलता खो देते हैं और वास्तविकता की कड़वाहट उसकी सच्चाई व्यक्त करने लगती है तो एक पीड़ा-सी होती है। कड़वाहट भरा यह सच उस समय हथौड़े की तरह चोट करता है, जब हम मुंबई की आपाधापी, निर्ममता और आदमी को गुम कर देने वाली भीड़ से बचने के लिए 'लौरिया या देवरिया ' की मिसरीघुली यादों के शीतल रोमांच और स्नेह भरे आँचल की घनी छाँव, सरसराती बहकी-बहकी पुरवाई के झोंकों में खो जाने की आस लगाए अपने मुलुक की ओर जाने के लिए ट्रेन पकड़ रहे होते हैं। सच कहूँ तो वहाँ की बदलती हवाओं में अब सोंधी मादक मिठास की जगह शायद एक अजनबी बारूदी गंध ने ले ली है, अब शायद उन कहकहों की जगह साजिशों से भरी एक गुमसुम-सी चालाकी ने ले ली है जो हमें अपने बचपन के लौरिया और देवरिया से नहीं मिलने देती, व्यथित होना जैसे हम 'प्रवासियों' की नियति बन गयी है - हम मुंबई-दिल्ली में रहें या लौरिया -देवरिया में। चलिए बहुत अच्छा लगा आपकी भावनाओं को महसूस करके। मेरी तरफ से अभिवादन और शुभकामनाएँ !-कुमार परिमलेन्दु सिन्हा, मुंबई

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  9. देवरिया नगर पर केन्द्रित यह रचना नए परिवेश में लिपटने को तैयार एक छोटे शहर के अतीत को सामने रखता है |पूरे वृतांत में गो थ्रू होने पर मजा आया |

    मनीष मोहन गोरे

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  10. नमस्कार!
    "देवरहा बाबा के नाम पर यह देवरिया हुआ पर देवरहा बाबा राजीव गाँधी के समकालीन थे"
    नमस्कार!
    बात कुछ जमी नहीं .
    देवरहा बाबा के बारे में कुछ और जानकारी दें.

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  11. देवरिया से मेरा बहुत गहरा नाता है .. मेरा ननिहाल और ददिहाल वहीँ का है .. लेकिन देवरिया के बारे में विस्तार से जानने को मिला आपके लेख के माध्यम से .. शुक्रिया !!!

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  12. अपने नौकरी के दौरान उ.प्र के कई शहरों में रहा हूं . लेकिन देवरिया की बात ही अलग हैं
    यहां के छोटे छोटे कस्बों में अदभुत लोकजीवन हैं बशर्ते इसे दिल से देखा जाय इस शहर के नाम से
    मेरा दिल धडकता हैं आप लोगों ने क्या याद दिला दिया मेरी नींद खतरे में पड गई खुदा खैर करे
    स्वप्निल श्रीवास्तव फैज़ाबाद

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  13. विवेक जी बहुत बहुत धन्यवाद रूलाने के लिएँ आपका पोस्ट पढकर रुका हुआ आँसू गतिमान होगया. लेकिन आपसे एक शिकायत हैँ वो ये कि आपने मेरा स्वर्ग रामगुलाम टोला का वर्णन नहीँ कियाँ. मेरा पहला प्यार देवरियाँ.

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  14. ...अंग्रेजो के ज़माने का सिविल लाईन्स भी पूरब तरफ़ ही है.......पच्चीस वर्षों से बाहर लहने के बावजूद, देवरिया का हाटा मेरे सपनों में बना हुआ है। अपनी माटी और जन्मभूमि तो शरीर के प्रतिरोधक क्षमता में घुल जाती है और सदैव हमारी जीवन संघर्ष में साथ होती है। परितोष जी और अरूण भाई का ऋणी हो गया।-प्रदीप मिश्र,इन्दौर

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