कवि के जीवन का साठवां वसंत
स्वप्निल श्रीवास्तव
विमल कुमार नौवें दशक के महत्वपूर्ण कवि हैं. विमल के हमराह कवियों में देवी प्रसाद मिश्र, कुमार अम्बुज, अष्टभुजा शुक्ला और हरिश्चंद्र पांडेय जैसे कवि भी हैं जिन्होंने हिंदी कविता के परिदृश्य को सघन बनाया है. इन सारे कवियों के बीच विमल ने अपनी राह अलग बनाई है. वे जटिल से जटिल यथार्थ को अभिव्यक्त करने के लिये आसान भाषा का उपयोग करते हैं. वे अपने कथ्य और कहन में अलग दिखते हैं. उन्होने अपनी कविता को बौद्धिक होने से बचाया है. जीवन के छोटे-छोटे विवरण और घटनाओं को कविता बनाने का हुनर उनके पास है. उनकी कविता में खिलंदडपन और तंज की बराबर की हिस्सेदारी है. दिल्ली जैसे महानगर में रहते हुये अपने साथ अपनी भाषा को प्रदूषण से बचाना कठिन काम है. बड़े शहर मनुष्य की संवेदना के क्षरण का काम बखूबी करते हैं, कवि भी उनके निशाने पर होते है. इसका एहसास विमल को है. वे अरुण देव से बातचीत में कहते हैं– ‘दिल्ली में एक कवि का रहना, अकेलेपन के अंधेरे में छटपटाने जैसा है. लेखको का जमघट जरूर लगा रहता है पर आपसी संवाद और आत्मीयता की कमी है.
दिल्ली एक शहर नहीं देश की राजधानी है, वहां सत्ता और साहित्य के कई केंद्र हैं, उनके अलग–अलग रहनुमा है. वे निर्णय भी देते हैं और सजायें भी मुकर्रर करते हैं. ऐसी स्थिति में रचनात्मकता को बनाये रखना कम चुनौती पूर्ण नहीं है. विमल ने कविता को शरणस्थली बना लिया है इसलिये वे बचे हुए हैं. कविता विपरीत परिस्थितियों में हमें बचाती है, वह एक थेरेपी का काम करती है. जब सभ्यताएं संकट में होती हैं कलायें उनकी रक्षा करती है. हालांकि हमारे जैसे समाज में वे न्यूनतम स्थिति में हैं. लेकिन हमें उनके अस्तित्व पर भरोसा है.
विमल कुमार मेरे प्रिय कवि रहे हैं,
जब
भी उनका ध्यान आता है उनकी कविता– सपने में एक औरत से बातचीत दिमाग में कौंध जाती है. इस
कविता पर उन्हें भारत भूषण अग्रवाल सम्मान दिया गया था. इस सम्मान के निर्णायक विष्णु खरे ने कहा
था-
'सपने में एक औरत से बातचीत' इसलिए एक विलक्षण रचना है कि उसमें एक और फन्तासी की रहस्यमयता और जटिलता की रूढ़ि को तोड़ा गया है तो दूसरी ओर सपने की रूमानियत और वायवीयता की रूढ़ि को. कविता सुपरिचित भारतीय निम्न मध्यवर्गीय प्रेम प्रसंग जैसे दृश्य से शुरू होती है लेकिन धीरे-धीरे परिवार, जीवन और समाज में प्रवेश कर जाती है. फिर जो मानवीय छुअन उससे पैदा होती है वह कई कोनों और छोरों तक पहुँचती है. संबंध कथा परिवार कथा में बदलती हुई, सपने की बातचीत यथार्य की एक हमेशा उपस्थित स्मृति बन जाती है. हिंदी में जटिल सादा कविताएँ न तो अधिक हैं और न ज्यादा लोग लिख पा रहे हैं, युवा कवि तो और भी कम.”
विमल कुमार नौ दिसम्बर २०२० को अपने जीवन के साठवें
वर्ष में दाखिल हो रहे हैं. कवि के जीवन में सिर्फ बसंत का मधुर संगीत नहीं, पतझड़
की धीमी आवाजें भी होती हैं. इन्हीं के बीच रचनात्मकता का विकास होता है और काव्य
यात्रा आगे बढ़ती
है.
उनकी नयी कविता ‘जीवन के साठ बसंत’ सोलह खंडों में विभाजित है और जीवन का लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है. यह कविता ही नहीं उनकी आत्मस्वीकृतियां भी हैं. इसमें कोई दुराव-छिपाव नहीं है और न किसी तथ्य को महिमा मंडित करने का ढोंग ही है. इस कविता को पढ़ते हुए फैज़ का यह शेर याद आता है –
कर
रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज
तुम याद बे-हिसाब आए
कवि जीवन भर प्रेम की खोज में लगा रहता है, यह
एक तरह से जीवन की तलाश है. प्रेम केवल स्मृति भर नहीं है, उसका
अर्थ व्यापक है. हमारा जीवन स्मृतियों का आख्यान है जिसे हम अपने जीवन से चुराते रहते हैं
और उसे कविता की शक्ल देते हैं. विमल की
कविता में बेशुमार स्मृतियां और स्वप्न हैं. विमल को पढ़ते और याद करते हुये मुझे मायकोव्स्की का यह कथन याद आता
है- ‘मैं कवि हूं, यह बात
मुझे बहुत दिलचस्प बनाती
है.’ अपने हमसफर कवि विमल को उम्र के साठवें बसंत पर दिल से मुबारकबाद
स्वप्निल श्रीवास्तव
जीवन के साठ वसंत
विमल कुमार
ये
महज साठ वसंत नहीं हैं
जीवन
के
इसमें
कुछ पतझर भी शामिल हैं
कुछ
आंधियां
कुछ
टूटी हुई टहनियां भी
केवल
सितंबर की शाम नहीं है
इसमें
जून
की गर्मी
जुलाई
की उमस भी
हैं
शामिल
जुकाम
और बुखार
बदन
दर्द तो है ही
अंधेरे
और रौशनी की मिली जुली तस्वीरें
लटकी
हैं
घर
की सभी दीवारों पर
यह
जीवन है
किसी
किताब में लिखा हुआ
शब्द
वसंत
नहीं.
2.
साठ
खम्भे कम नहीं होते
किसी
पुल को पार करने में
बीच-बीच
कई पहाड़ भी आ जाते हैं
कई
गुफाएं
कई
सुरंग
कई
सांप
कई
बिच्छू
कई
शेर, घड़ियाल
पुल
भी कुछ टूटे हुए
नदियों
में रेत ही रेत
कितनी
तेजी से गुजर गई
यह रेलगाड़ी
उसकी
खिड़की से देखते हुए
ये
साठ खम्भे !
कितनी
तेजी से गुजर गया
बचपन
...
कितनी
तेजी से जवानी .....
3.
कई दुर्गम
रास्तों से होते हुए
कई
सीढ़ियों को चढ़ते हुए
कई
जंगल पार करते हुए
यह
वसंत भी आया है
कुछ
फूल खिले भी हैं
कुछ
हैं इंतज़ार में
अगले
वसंत के...
4.
तुम्हारी
याद का ही
एक
नाम है
यह
वसंत भी
यह फूल
भी
जिस
पर से यह जीवन
एक
रेलगाड़ी की तरह गुजरता रहा
सीटी
बजाता हुआ.....
5.
एक
पुराने रजिस्टर में
मेरा
चेहरा
मेरी
उम्र दर्ज है
मेरी
आवाज खो गयी है
उसके
पन्नों में.....
अभी
भी पुकारता हूँ जीवन को
उस
से कुछ सवाल पूछने हैं बाकी
बाकी
है अभी मृत्यु से भी प्रश्न
अब बाकी
है दोनों के बीच
मेरी
बची हुई उम्र
मेरी
उम्मीद
मेरा
स्वप्न
मेरी
नींद
6.
इन
साठ सालों में
बहुत
कुछ छूटा मेरा
जो
बचा वह भी सुरक्षित नहीं
जो
घर में छोड़ आया
उसमें
आग लगी हुई है
जिस स्कूल
में मैं पढ़ा था
उसकी
छत गिर गई है
जिस
कॉलेज में वह पहली बार मिली थी उसकी कैंटीन भी बन्द हो गई है
इस
उम्र में एक घर बनाना कितना मुश्किल है
अब
वह स्कूल भी मुझे नहीं पहचानता
कालेज
पूछता है
कब
पढ़ते थे तुम यहाँ ....
वह
लड़की जो कैंटीन में मिली थी
वह
बूढ़ी होकर एक पेड़ में बदल गयी है
शुक्र
है
उसके
हाथों में मेरे दिए हुए फूल
अभी
भी जिंदा हैं...
7.
मैं
भी मुड़ कर देखता हूं ...
पीछे
जो बीत गया
जैसे
तुमने भी अपने जीवन में मुड़कर देखा होगा
मैं
भी डायरी में कुछ लिखता हूं....
जिस
के पन्ने अब थोड़े बहुत बचे रह गए हैं तुम
भी लिखते होगे
मेरी
तरह डायरी में
कुछ
न कुछ
कुछ
लोगों के पास
कोई
डायरी नहीं
वे
कहां लिखते होंगे अपना दुख
यह
सोचते ही
मैं
पीछे मुड़कर देखता हूँ
डायरी
के पन्ने.....
अब
एक पत्थर में बदल गए हैं
8.
मैं
भी सुबह सुबह उठता हूं
चादर फेंक कर
जाते
हुए सीधे गुसलखाने में
मैं
भी लड़ ही रहा हूं
जिस
तरह तुम लड़ते आए हो
और
तुम्हारी दाढ़ी पक गई है
तुम्हारे
बाल सफेद हो गए हैं
मेरी
भी दाढ़ी सफेद
बाल
झड़ गए
अपने
में चेहरे में तुम्हारा चेहरा देखता हूँ
क्या
तुम अपने आईने में
मुझे
देखते हो?
9.
तुमको
इस जीवन के बारे में क्या बताऊं तुमको इस दुनिया के बारे में क्या बताऊं
क्या
बताऊं तुमको मैं
पेड़, चिड़िया, आसमान, तारे
चंद्रमा
के बारे में
जब
तुम मेरी उम्र तक पहुंच जाओगे सारे अर्थ जान जाओगे
इस
कायनात का
तुम
मुझे बताओगे तब
समुद्र
के बारे में
एक
घड़ी के बारे में
एक
मछली के बारे में
जिसके
भीतर से
आती
रहती है
टिक-टिक
की आवाज़ .....
10.
यहां
तक आते-आते मैं भी थक गया हूं
यहां
तक चलते-चलते मैं भी सुस्ताने लगा हूं यहां तक कि यहां तक आने के बारे में
मैं
सोचने लगा हूं
कि
यहां तक पहुंचने में
क्या
कसर रह गई बाकी
क्यों
मेरी आवाज़ अब तक सुनाई नहीं दे रही है
मैं
बार-बार अपनी भाषा और मुहावरे बदल रहा हूँ
बदल
रहा हूँ अपना शिल्प
अपनी
आवाज़
11.
नहीं
चाहिए था मुझे
खोजना
तुम्हारा प्रेम
इस
जीवन में
नहीं
चाहिए था मुझे
पाना
कुछ तुमसे
मुझे
तुम्हारे जुड़े में
एक
फूल खोंसना नहीं चाहिए था
नहीं
चाहिए था कभी मुझे
तुम्हारे
हाथों को चूमना
आलिंगनबद्ध
तो बिल्कुल नहीं
एक
फ़िल्म की तरह गुजर जाते हैं दृश्य
सांय-सांय
हवा बहती है
बहुत
देर तक कोई पीटता रहता है
सांकल
रात
के सन्नाटे में
12.
एक
फूल भी मुझसे कहता है
मैं
मुरझाना नहीं चाहता हूं
एक
चिड़िया भी मुझसे कहती है
मैं
अभी और जीना चाहती हूं
एक
वृक्ष मुझसे कहता है
मैं
भी आंधी में उखड़ना नहीं चाहता हूँ
एक
तारा भी मुझसे कहता है
मैं
टूट कर अंतरिक्ष में
गिर
जाना नहीं चाहता हूं
एक
बुढ़िया रास्ते में मुझसे कहती है
बेटा
तुम मेरी क्या मदद करोगे
मैं
अभी और कई साल जीना चाहती हूं
यह
सवाल मेरे जीवन का सबसे बड़ा सवाल है
जो
मेरे सीने में धंसा है
एक
तीर की तरह
13.
कम
नहीं होते साठ साल
पर
कम से कम दस साल तो गुजर गए नौकरी खोजने में
कई
साल दफ्तर जाने और वहां से लौटने में
कई
साल गुजरे
एक
मकान बनाने की तैयारी में
कई
साल तो उनके झूठे वादों में गुजर गए
कई
साल तो बीत गए
इस
दुनिया को ही समझने में
कई महीने
दातुन करने
नहाने
में
गुजरे
कई
साल तो नींद पूरी करने में
कई
साल कुछ सोचते विचारने में
गुजर
गए
किसी
का इंतजार करने में भी कई महीने तो गुजरे ही होंगे
अंत
में बचा कुछ समय जीने के लिए
लेकिन
अब तो फिर से नौकरी खोजने का समय आ गया है
अब
फिर आवेदन कर रहा हूँ
उधर
एक-एक कर टूट रहे हैं दांत मेरे!
14.
इस
पार्क में फूल ही फूल खिले थे
कुछ
बेंचें थी
उनमें
एक आध टूटी हुई
थोड़ी
सी दीवार गिरी हुई
थोड़ी
धूप आ जाती थी
तितलियां
भी चली आती थीं
अब
जिस बेंच पर बैठता हूँ
कोई
तेज कांटा चुभ जाता है
की
बार सांप में निकल जाते है
अब
पार्क में
15.
इस
मुल्क के भूगोल से मेरा भी भूगोल जुड़ा हुआ है
इस
मुल्क के इतिहास से मेरा भी इतिहास जुड़ा हुआ है
इस
मुल्क को सांस लेने में तकलीफ़ हो रही है
मुझे
भी रात में
सांस
लेने में
बहुत
तकलीफ़ होने लगी है
16.
यह
दुनिया कहाँ जा रही है
मुझसे कुछ पूछ भी नहीं रही है
मैं
दुनिया से पूछ रहा हूँ
क्या
अपने साथ मुझे ले चलोगी
दुनिया
कुछ बोलती नहीं
कुछ
जवाब देती नहीं
वह
चली जा रही अपनी धुन में
दुनिया
मुझे बदल नहीं सकी
हम
भी उसे लाख चाह कर बदल नहीं सका
रात
में एक स्वप्न जरूर देखता हूँ
चाँद
धरती के बिल्कुल करीब आ गया है
इतना
करीब
रह
गई बस एक
दूरी
चुम्बन
भर की.
जीवन का हिसाब
एक
दिन हिसाब किया
अपने
जीवन का
तो
पाया कई साल तक तो मैं कछुआ ही रहा
इसलिए
पिछड़ता रहा सबसे
कुछ
साल चूहा बन कर भी पड़ा रहा किसी बिल में
थरथराता
रहा भय से
कई
रात भेड़िये की तरह बिस्तर पर रहा
सुख
की तलाश में
लोमड़ी
का तरह घूमता रहा बाज़ार में
सांप
की तरह डंसा भी कई लोगों को
कुत्ते
की तरह काट खाया किसी न किसी को
सभी
परेशां रहे मुझसे
नहीं
पहचान पाए मुझको
नहीं
बनना चाहता था कभी चूहा या सांप या भेडिया
किसी
ने नहीं देखा
कितना
लहूलुहान होता रहा अपने भीतर.
बाहर
निकला तो नहीं किया प्रदर्शन
अपने
त्याग का
विवादास्पद ही रहा
संदेहास्पद
भी
पेड़
बनना चाहा तो आंधी में उखाड़ गया
नदी
बन नहीं सका
सूख
गया सब पानी
फूल
की तरह नहीं दे सका किसी को खुशबू
तारों
की तरह चमका नहीं
हाय
यह कैसा जीवन जीया
आदमी
की तरह जीने चला था
पर
किस तरह जीता रहा
खुद
को कहाँ समझ पाया
मिली
बद दुआएं सबकी
जानवर
ही कहलाया
क्या
चाहता था मैं इस दुनिया से
दुनिया
क्या मुझसे करती रही उम्मीद
यह
आज तक नहीं जान सका
सपने
जरूर देखता रहा
कि
बदले दुनिया
पर
खुद को कहाँ बदल पाया
नहीं
उतर सका खरा
अपनी
ही उम्मीदों से.
तो
फिर कैसे उतरता खरा ?
_____
हिंदी के वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार विमल कुमार पिछले चार दशकों से साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं. 9 दिसम्बर 1960 को बिहार के पटना में जन्मे विमल कुमार के पांच कविता-संग्रह, एक उपन्यास, एक कहानी-संग्रह और व्यंग्य की दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं.
9968400416.
बेहतरीन कविताये। सरल और सटीक भाषा में जीवन के जटिल यथार्थ और सुख दुख को रेखांकित करती। स्वप्निल जी की टिप्पणी भी सारगर्भित। कवि को हार्दिक शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंकवि विमलजी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंयह कइयों की जीवन गाथा होगी। कुछ न हो पाने और बहुत कुछ न कर पाने का अफ़सोस।
सहज ढंग से कही गई बातें सहज ही कविता हो जाती हैं। अच्छा लगा पढ़कर।
बधाई हो विमल जी। बहुत अच्छी कविताएं पढ़ने को मिलीं।
जवाब देंहटाएंजिनके पास नहीं होती कोई डायरी वे कहां लिखते हैं अपना दुःख
वाक़ई
नए से नए लोगों को लगातार पढ़ने वाले, स्त्री रचनाकारों को नए ढंग से परिभाषित करने वाले, यथा नाम तथा गुण वाले, तमाम भूले बिसरे लोगों को खींच खींच कर केंद्र में लाने वाले, युवाओं को मात देने वाले उर्जा से लबालब भरे हम सबके प्रिय साथी Vimal Kumar जी को जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंविमल कुमार अपनी पीढ़ी के कवियों में सब से अलग, मंजे हुए व विशेष महत्व के कवि हैं। आज से बीस साल पहले मैंने उनकी कविताओं के अँग्रेज़ी अनुवाद, केदारनाथ सिंह व मंगलेश डबराल की कविताओं के साथ, वर्ष 2000 में हिन्दी साहित्य पर अँग्रेज़ी पत्रिका Hindi: Language, Discourse, Writing में प्रकाशित किये थे, जिसका मैं सम्पादक था। यह पत्रिका महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के लिए श्री अशोक वाजपेयी और मैंने शुरू की थी। जन्मदिन की शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
लाजवाब अभिव्यक्तियां।
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार कविताएं ।
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