शोभा सिंह का दूसरा कविता संग्रह 'यह मिट्टी दस्तावेज़ हमारा' प्रकाशित होने वाला
है. उनकी राजनीतिक भंगिमाओं वाली कविताओं का व्यक्तित्व और सुदृढ़ हुआ है, स्त्रियाँ
और उनकी विडम्बनाएँ मुखर हुईं हैं. वीरेन डंगवाल पर लिखी उनकी कविता ‘कवि
मित्र से मिलकर लौटते हुए’ विचलित
करती है.
उनकी कुछ कविताएँ प्रस्तुत हैं.
शोभा सिंह की कविताएँ
बारिश से पूर्व की शाम(एक पेटिंग देखते हुए)
समय के सूरज की
दहकती आंख
मूंदने-मूंदने को
ढक लिया है
धुएं के बादल और
अनर्गल पत्तियों ने उसे
दिशाओं में
गूंजती है
रथ के घोड़ों की चिंघाड़
अपनी अधूरी समझ के
दस्तावेज
पागल हवा को
सुपुर्द कर
ईमानदारी से
समंदर में उतरने की
कोशिश में
शाम
ठहर-सी जाती
बारिश की
बूंदों के स्पर्श की
लहक
फिसली
गालों पर
नमूदार हुई सुंदरता.
पालो बोराचो
उसकी ढलान पर
देखती हूं
अंदर धंसते
फिर दहते
ढेर सारे फूल
तरुण मुस्कान
हवा के झोंके से
झूम उठता
पालो बोराचो
गठा हुआ पेड़
गुलाबी नाज़ुक-सी पंखुड़ियां
झर उठतीं
पंखुरियों की चादर पर
ठिठक जाती रात
दूर से पास आता
क्षणभंगुरता का राग
गुलाबी रेशमी आब को
बेरहमी से उधेड़ देती
हवा-बारिश के थपेड़े. 󠇁
(पालो
बोराचो, अर्जेंटीना
(दक्षिण अमेरिका) में पाया जाने वाला पेड़. गुलाबी फूलों से खिला हुए इस पेड़ को
ड्रंकन ट्री भी कहते हैं, क्योंकि इसका
तना फूला रहता है)
कवि मित्र से मिलकर लौटते हुए
(वीरेन डंगवाल के लिए)
दोसा
खूब करारे
खाना
खूब
फिर हंसे
नाक में नली
वे अपना स्वाद
दे रहे थे साथी को
कॉफ़ी हाउस जाओ यार
क्या उदासी में
चेहरा -हटाओ
अस्पताल का यह कमरा
जीवन्तता से भरने लगा
धीरे-धीरे
कवि बतियाता रहा
तमाम सूचनाएं सुन
जैसे पी लेना एकबारगी
हां, लिख रहा हूं
कीमो के अवकाश में
जैसे बांध टूट गया
इन दिनों
वजन कुछ ज्यादा ही
कम हो गया
लेकिन देखो यह अस्पताल का
भ्रष्ट तंत्र
लूट का केंद्र
फिर चेहरे पर हल्की उदासी
रोड़ा बन गया हूं
बच्चों के लिए
लेकिन आते हैं सब प्यार से
कोई गिला नहीं
बात भारी थी
हृदय में अटक गई
वे दखल नहीं देते
अल्प विराम - सुस्ताता हुआ
फिर कहीं
धुंधली पड़ती आंखों में
झिलमिलाए अच्छे दिन
अनदिखी कसक
गहरी
उसांस
ठीक हो जाउंगा
हां
ठीक होना ही है
उनकी अदम्य जिजीविषा को
सलाम करने को जी चाहा
बार-बार
वह जरूर
दमन के ख़िलाफ़ के गीत
गाये जाएंगे
कैंसर को चकमा देना
जानता हूं
आसान नहीं
दर्द की दरारें भर लूंगा
उड़े बाल
फिर वैसे ही घने
आएंगे
थे जैसे - मेरे
अभी सब चलता है
रूप - अरूप
दर्द की अनकही तपिश में
तपी-ठिठकी हंसी
चलो कुछ फोटो-वोटो
वही बेहद परिचित जिंदादिली
चहकी
बेसिक-यारबाश फितरत
विनम्र प्यार
बेझिझक सबको
झुक कर गले लगाते
हाथ मिलाते
स्नेह दाब
सम भाव
इशारा करते
दीवार की दूसरी ओर नर्स है
भावनाओं का शोर नहीं
खिड़की के पार
गतिमान दुनिया
उस भीड़ का
हिस्सा बनना है मुझे
घुसपैठ करनी है फिर
स्वस्थ जीवन में
सरलतम प्रेम में
कितना कुछ लिखा जाना है
अभी
अस्पताल में हूं
हमेशा भला है
अपने घर में बसना
चट्टानें दिखती नहीं
चट्टानों से टकराना है
जर्जर है देह
मन की ऊर्जा
दिन रात पर खर्च होती
तेजी से
अपनी
जीवन साथी की चिंता
बांधती
असहाय बनाती है
काश
दुख दूर हो
या रास्ता भूल जाए
डर है
उस दुःस्वप्न का
न आए या ऽ ऽ ऽ खुदा
यूं
संवेदित मन
तन कर खड़ा होता
नकार की मुद्रा में
दोस्त की औपचारिकता
पीकर
मुस्कुराते हैं
हां चलो
वक्त कम है तुम्हारे पास
थोड़ा अधिक प्यार
ढेर सारा ख्याल
जरूरी है
आज
अस्पताल से लौटते
देखती हूं
चलती पगडंडी से
उतर गई
पीली फुदकन
खुशबहार
चिड़िया
सूखी घास में
सुंदर दृश्य सी.
मिसफिट
मैं से
हम का
सफ़र तय करते
दशकों की सीढ़ियां
फलांगते
पहुंचे
बेरहम वक्त में
मिसफिट होकर
जबरन घटाए जाते हादसों की
खूनी छीटों से
दंगों से घायल
जीवन मूल्य और नई किस्म की नैतिकता में
गोल गोल घूमते
नई पथरीली अनुभूतियों
शब्दों के नए अर्थ
की तलछट में
खुलती आंख
चकित
सब उलट पुलट
बेईमान ईमानदार की जगह
दूसरों का हक़ छीनने वाले
सत्ता की कुर्सी पर
गलत को सही ठहराने का
बुद्धि विलास
जुमलों के आवरण में सच्चाई छुपा
नफ़रत के कैनवास पर खूनी रंग
और खुद को ही देश घोषित करते
बेहया प्रेम का महिमा मंडन
विकास के नाम पर
खूब दाद मिली
उसी दौरान
खंडित हुई
सरलता की कई मूर्तियां
बेआवाज़ कठिन दिनों में
उम्मीद का सितारा
क्या टूट गया
या मिसफिट होकर
अपने पीछे
ढेर सारे सवाल
छोड़ गया
नई सुबह के लिए.
रुकैया बानो
एक शहर के भीतर
कई शहर की तरह
एक साथ कई किरदारों में जीती
कई घर और कई घरों की
लाडली
रुकैया बानो
परंपरागत छवि में कैद औरत को
नकारती
अंधेरे में रोशनी की तरह
एक नए तेवर के साथ
हमें लंबे सपनों से
बाहर निकालती
कहती - देखो
दुनिया, हकीकत में बदलती है
रिश्ते एहसास से चलते हैं
समाज के आखिरी सोपान पर
हाशिये की तय जगह पर
खड़ी थी मैं
अपनी खूबसूरती का दंश
बचपन से जवानी तक भोगा
गरीबी और खूबसूरती पर बस न था
बेची और खरीदी जाती रही
प्रेम बर्फ का ठोस गोला
जिसे चाह कर भी पिघला न सकी
बदहाल किया काली खौलती रातों ने
अंगार बरसते दिनों ने
बदलते हालात के ताने-तिश्नों ने
बहुत बार हैरान परेशान किया
भागते रहना
काम की तलाश
बच्चे थे
सिर्फ मेरी जिम्मेदारी में
उनकी बेहतरी सोचते
तरकीब लगाते
मेरी दुनिया में ढेर सारे बच्चे
कब शामिल हो गए
उनकी यातना की छटपटाहट
कब मेरी बन गई
मजलूम औरतें
उनके वजूद में धंसे कांटे
उनसे संवाद का रिश्ता बनाना
उनकी मदद करना
संगठन की सीख
प्रयोग में उतारना
बस-जूझ जाना
स्नेह का जल
धीरे-धीरे रिसता हुआ
सूखी धरती को
फिर हरा भरा करेगा
मुझे विश्वास था
स्वाभिमान की लौ को
जिन्दा रखने में कामयाबी मिलेगी
यूं - कई बार पंख
परवाज भरते जले भी
चट्टानें टूटी
गर्द गुबार से
दम भी घुटा
लड़ाई जारी रही
दिनों का हिसाब रखती धरती ने
आसमान में रंग भरा
ऋतुओं में बहार
और
मन में नई फसल की आमद का सुख
लम्हा-लम्हा वक्त
कहां-से-कहां पहुंच गया
एक सवाल
क्या एक आम औरत की तरह
तुम्हारा जीवन रहा
रुकैया बानो
वे काम जो तुम्हें
बहुत खास बनाता था
वो अपने हिस्से की धूप
जिसे
पसार दिया था तुमने सबके लिए
और जब तपन बहुत बढ़ी
तुमने अपनी छांव भी बांट दी
दुख के हथियारों का वार झेलती
शीतल चांदनी के सुकून को
रखा अपने पास
संकट में खर्च करने के लिए
सांस लेना-जीना
सिर्फ अपने लिए नहीं
सब के बीच
बीज की तरह बंट गई तुम
खुले दिल
दिलों को जोड़ते जाना
नफरत की राजनीति से बहुत दूर
मजबूती से खड़ी
रुकैयाबानो
तुम्हें सलाम!
_____________________________
कविता संग्रह ‘अर्द्ध-विधवा’ २०१४ में ‘गुलमोहर क़िताब’ प्रकाशन से प्रकाशित.
२०२० का पहला 'पथ के साथी' सम्मान प्राप्त.
शोभा सिंह
कवि-कथाकार, संस्कृतिकर्मी
जन्म - ९जून, १९५२: इलाहाबाद
शोभा सिंह को लम्बे समय तक शमशेर बहादुर सिंह का साथ और आशीष मिला.
शोभा सिंह को लम्बे समय तक शमशेर बहादुर सिंह का साथ और आशीष मिला.
कविता संग्रह ‘अर्द्ध-विधवा’ २०१४ में ‘गुलमोहर क़िताब’ प्रकाशन से प्रकाशित.
२०२० का पहला 'पथ के साथी' सम्मान प्राप्त.
सुन्दर कविताएं। वीरेन डंगवाल जी की याद ताजा कर गयी कविता।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक कविताएं।
जवाब देंहटाएंमैं से
हम का
सफ़र तय करते
दशकों की सीढ़ियां
फलांगते
पहुंचे
बेरहम वक्त में
मिसफिट होकर
पंक्तियां बहुत सारगर्भित और की लोगों के सच का बयान हैं। और भी ऐसी कुछ पंक्तियाँ हैं। शोभा सिंह की कविताएं पहली बार पढ़ी। अच्छा लगा। बधाई।
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार कविताएं ।
जवाब देंहटाएंसभी में भाव प्रधानता ।
अपने समय को कोमल खुरदरे भावों व विकल शब्दों सेअभिव्यक्ति करती गझिन अनुभवों की सरल कवितायें।
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.