वरिष्ठ
कवि लीलाधर मंडलोई इधर आप्रवासी कविताओं पर कार्य कर रहें हैं. उन्होंने विश्व के
कई कवियों का हिंदी में अनुवाद किया है. चीन की अमेरिका में रहने वाली कवयित्री ‘वांग
पिंग’ की ये कविताएँ लेखक अनुवादक यादवेन्द्र की टिप्पणी के साथ यहाँ प्रस्तुत हैं.
इन कविताओं
में अपने मूल से कट कर बिखर जाने वालों की वेदना और विडम्बना की मार्मिकता साहित्य
के अपने आस्वाद के साथ देर तक विचलित करती रहती है.
_______________
'हम
अपने साथ अपनी मातृ भाषा लिए जा रहे हैं
मैं
वहाँ से आया हूँ
मैं
यही का हूँ
मैं
न वहाँ हूँ, न यहाँ हूँ
मेरे
दो नाम हैं
जो
कभी आपस में मिल जाते हैं
कभी
जुदा हो जाते हैं
मैं
बोलता भी दो भाषाओं में हूँ
पर
यह नहीं याद
कि
सपना किस भाषा में देखता हूँ .....
महमूद
दरवेश की ये पंक्तियाँ भले ही तकनीकी रूप
से वांग पिंग जैसे आप्रवासी कवि पर लागू न होती हों लेकिन एक संस्कृति से उखड़कर
दूसरी संस्कृति में समान स्तर पर अपनी जड़े जमाना कभी आसान नहीं रहा- इसकी प्राथमिक शर्त अनिवार्य रूप
से पुरानी स्मृतियों को पूरी तरह से धो पोंछ देना होगा....पर मानव प्रवृत्ति ऐसी
है नहीं कि सहज रूप में इसे साधने दे.
इन
दिनों लॉक डाउन के चलते घर परिवार की सीमाओं में कैद संवेदनशील कवि अपनी स्मृतियों
में न लौटें यह मुमकिन नहीं...खास तौर पर लीलाधर मंडलोई जैसा स्वयं अपने जंगल, पहाड़ और भूमि से विस्थापित स्मृतियों की गट्ठर खुशी-खुशी साथ लेकर चलने वाला कवि अपनी मिट्टी पानी हवा और जनों को याद करते
आप्रवासी कवियों के सान्निध्य में आत्मीयता महसूस करें तो कोई अचरज नहीं. मंडलोई
जी को निकट से जानने वालों को मालूम है कि दिल्ली में इतने सालों से रहने के
बावजूद न उनसे सतपुड़ा के जंगल पहाड़ छूटे
और न ही स्मृतियाँ .... और इसको लेकर वे किसी तरह का अभिजात्य भी नहीं पालते.
957 में चीन में जन्मी वांग पिंग 26 वर्ष की उम्र में
अमेरिका जाकर बस गईं और वहीँ सृजनात्मक लेखन के प्रति उनका रुझान हुआ. वे कविताएँ,
कहानी, उपन्यास और कथेतर गद्य लिखती हैं. उनकी कई किताबें अंग्रेजी में
प्रकाशित हैं जिनमें से कुछ को पुरस्कार भी मिले. अमेरिकी और चीनी संस्कृतियों के
अतः संबंधों पर उनका मुख्य लेखन केंद्रित है. साहित्य के अलावा चीन का पर्यावरण
संरक्षण भी उनकी चिंता में शामिल है.
वांग
पिंग की कुछ कविताएँ, अनुवाद किये हैं हिंदी के अनूठे कवि, गद्यकार,
फिल्मकार और छायाकार लीलाधर
मंडलोई ने.'
यादवेन्द्र
हम
आँसू भरी आँखों से विदा होकर जा रहे हैं
अलविदा
पिता, अलविदा माँ
हम
अपने छोटे से झोले में यहाँ की मिट्टी ले जा रहे हैं
ताकि
हमारे घर हमारे हृदय से धूमिल न हों
हम
अपने साथ
गाँव
के नाम, कथाएं, स्मृतियाँ, खेत, नाव ले जा रहे हैं
हम
लोभ के लिए छेड़े गए छद्म युद्धों के
घाव
साथ लेकर जा रहे हैं
हम
खनन, अकाल, बाढ़, नर संहारों की
दुखद
स्मृतियाँ साथ ले जा रहे हैं
हम
अपने परिवारों और पड़ोसियों की
उस
राख को भी साथ ले जा रहे हैं
जो
कुकुरमुत्ता मेघों के बीच स्वाहा हो गए थे
हम
समुद्र में डूबते अपने द्वीपों को ले जा रहे हैं
हम
नयी ज़िंदगियों के लिये हाथ, पाँव, हड्डियाँ और
सर्वश्रेष्ठ
मस्तिष्क ले जा रहे हैं
हम
मेडिसिन, इंजीनियरिंग, नर्सिंग, शिक्षा, गणित व
कविता
के डिप्लोमा साथ ले जा रहे हैं
भले
ही दूसरे तट पर उनका कोई अर्थ न हो
तब
भी
हमारे
पुरखों की पीठों पर निर्मित
रेलमार्ग, बाग बगीचे, कपडा धुलाई के तामझाम, भंडारा, मालवाहक ट्रक,
खेत, कारखाने, नर्सिंगहोम, अस्पताल,
स्कूल, मंदिर
सब
के सब लेकर जा रहे हैं
हम
अपने पुराने घरों को उनकी रीढ़ सहित
अपने
सीनों में नये सपनों के साथ चिपकाए लिए ले जा रहे हैं
हम
कल, आज और कल को साथ-साथ ले जा रहे हैं
हम
जबरन थोपे गए युद्ध की
अनाथ
संतानें हैं
हम
औद्योगिक कचरों से छिछले होते जा रहे
समुद्र
के शरणार्थी हैं
और
हम अपने साथ अपनी मातृ भाषा लिए जा रहे हैं
प्यार
प्यार प्यार
अमन
अमन अमन
उम्मीद
उम्मीद उम्मीद
(चीनी भाषा में लिखे अक्षर)
हम
अपनी रबर की नाव से चले
इस
तट से ...अगले तट....
अगले
तट.....
अगले
तट.....
आप्रवासी कविता नहीं लिख सकते
'ओह ना, तुम्हारी वाक्य संरचना में यह नहीं है संभव'
एच.व्ही.
ने अपनी चीनी पुत्रवधु से कहा
जो
अंग्रेज़ी में कविता लिख रही थी
वह
मेज़ की ओर चलती है
वह
एक मेज़ की ओर चलती है
वह
अब मेज़ की ओर चलती है
वह
अब एक मेज़ की ओर चल रही है
इससे
क्या फ़र्क पड़ता है
आख़िरकार
इससे क्या फ़र्क पड़ता है
प्रकृति
में कुछ भी संपूर्ण नहीं
कैसे
भी वाक्य में नहीं व्यक्त हो सकता संपूर्ण विचार
भाषा
हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
और
अभिशाप भी, साथ में
आप्रवासी
वाक्य संरचना को इतना भाव देने की जरूरत नहीं
कविता
एक पशु की तरह जन्म लेती है
सर्वश्रेष्ठ
तब होती है
जब
वह आज़ाद और नग्न होती है.
1
खटमलों
ने मुझे
पेरिस, सेनफ्रांसिस्को और ओकलाहोमा शहर में काटा
काव्य
उत्सवों के दौरान
वे
सभ्य, सुसंस्कृत, रक्त पिपासु और
खूंखार थे
ख़ून, कविता और सेक्स के लिये
वे
आज़ाद होकर कहाँ-कहाँ तक
यात्रा
कर लेते थे
2
खटमल-
सुगंध
में तर और गरमागरम रक्त
से
भरी औरतों से प्यार करते हैं
वे
थके-मांदे, अवसादग्रस्त और खब्तियों को
स्पर्श
नहीं करते
भूल
कर भी
3
हम
कहते हैं, हम सत्य को प्यार करते हैं
हमारा
दावा सत्य के रंगीन चेहरों के लिये
रहता है हरदम
हमें
गुमान है कि सत्य पर सिर्फ़ हमारा हक़ है
लेकिन
सत्य है कि
मुट्ठी
में कसकर भींचने के बाद भी
रेत
की मानिंद फिसलता जाता है
4
अरस्तु
विश्वास करते थे
खटमल
से
सर्पदंश
का इलाज हो सकता है
कान
के संक्रमण
अथवा
उन्माद का भी
5
देखना
ही विश्वास करना है
अथवा
हम देखते सिर्फ़ वही हैं
जिसका
विश्वास करते हैं
आँखों
को चुंधियाते प्रकाश में
झालर
और गोटे ही
बन
जाते हैं पहचान
6
खटमल
पसंद की कद काठी चुनते हैं
सेक्स
के लिये
सहवास
के लिये उन्हें मानसिक आघात चाहिये होता हैं
ईर्ष्या
की हदों को पार करते
नर
और मादा
पेट
के अंदर पेट घुसेड़ डालने को होते हैं उन्मत्त
7
तीन
चक्र के बाद
अरब, चीनी, अफ्रीकी और मेक्सिकन
प्रतियोगिता
से बाहर हो गये
केवल
पाँच ही डटे हैं अब
ईनाम
के लिए
जिस
से बन सकता है घर
रामल्ला
के एक कवि का
जिसे
न अपना जन्मदिन मालूम है
न ही
अपना जन्मस्थान
अथवा
वह चीनी लेखिका
जो
अपने गठिया से सिकुड़ते हाथों
और
बुदबुदाते हृदय से
अवाँ
गार्द उपन्यास रचती है
8
ओकलाहोमा
शहर में
अभी
तापमान ८० डिग्री फॉरेनहाइट है
फिर
भी मैं केंपस संग्रहालय के अंदर
बुरी
तरह काँप रही हूँ
पिकासो, मानेट, रेम्बरां की कलाकृतियों
कांसे
के पंख ..... प्रार्थना
और
रक्त के बीच रहते हुए भी
9
"वे तुम्हें नहीं काट रहे हैं
यह
भला कैसा न्याय हुआ ?",
मैं
अपनी देह से १८ पीढ़ियों के
खटमलों
को झाड़ते हुए चीखी
जार्ज
के बिस्तर पर लेटे लेते लुइस ठहाका लगा कर हँसा
उसे
एक भी खटमल ने नहीं काटा था
वह
कटाक्ष करते हुए बोला:
"सुनो, अब यह न कहना
कि
खटमल भी नस्ली होते हैं"
10
लाल
चकत्तों भरे चेहरे पर आग सी जलन लिए
मैं
पेरिस से मुसकुराते हुए लौटी
यदि
ज्वायस, पाउंड, स्टीन और गिंसबर्ग को
इन्हीं
खटमलों ने काटा है
तो
इसका अर्थ यही हुआ न
कि
अब मैं उनके ख़ून, डी.एन.ए., सच, झूठ
और
सृजनात्मक प्रतिभा की वाहक बन गयी हूँ?
_________
लीलाधर मंडलोई
"वैसे अपना छिंदवाड़ा 1970 में छोड़ कर पढ़ने के लिए
बाहर निकला और दुनिया जहान घूमता हुआ 1997 से दिल्ली में रह
रहा हूं पर क्या सचमुच मुझसे अपना छिंदवाड़ा और सतपुड़ा कभी छूट पाया?
अनुवाद के माध्यम से दुनियाओं को जाना. अनुवाद किये भी- अनातोली पारपरा और ताहा ख़लील के, शकेब जलाली की शायरी का लिप्यंतरण किया. विस्थापन की कविताओं के कुछ अनुवाद अंग्रेजी से किये. अब यह नयी पारी है."
leeladharmandloi@gmail.com
अनुवाद के माध्यम से दुनियाओं को जाना. अनुवाद किये भी- अनातोली पारपरा और ताहा ख़लील के, शकेब जलाली की शायरी का लिप्यंतरण किया. विस्थापन की कविताओं के कुछ अनुवाद अंग्रेजी से किये. अब यह नयी पारी है."
leeladharmandloi@gmail.com
इन कविताओं में जड़ों से कट जाने की जहाँ गहरी पीड़ा है वहीं अपने विस्मृत आत्म की तलाश भी है। कवि और अनुवादक इसे महसूस करके व्यक्त करने में सफल रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआभार बंधु
जवाब देंहटाएंअपनी जमीन, भाषा, संस्कृति से अलग हुए हर आदमी का दुख है कवि का दुख। इतनी संवेदनशील कविताओं के चयन और खूबसूरत अनुवाद के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मित्र
जवाब देंहटाएंविस्थापन उनके जीवन के केंद्र में रहा है। लिहाजा वे विस्थापित और स्थाई हुई कौमों की पीड़ा से वाबस्ता रहे हैं । कविताएँ अप्रवासी जीवन के संतापों का मार्मिक भाष्य हैं।
जवाब देंहटाएंअपने निहितार्थ में बहुत गहन कविताएँ हैं. विस्थापन की आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक पीड़ा की विश्वव्याप्ति को उद्घाटित करती हुईं. चयन ही नहीं अनुवाद भी उतना ही सटीक और असरदार है.
जवाब देंहटाएं"हम जिन चीजों को समुद्र पार ले जाना चाहते हैं " बेहद मार्मिक । सशक्त अनुवाद । बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ इस महत्वपूर्ण कार्य हेतु । अन्य रचनाएं भी पढ़ूंगी जल्दी ही ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कविताएँ हैं। अनुवाद भी जीवंत हैं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया बंधु ।
जवाब देंहटाएंविस्थापन- न हवा का, न हवा में। देह से देह और जान से जान के कट जाने की तकलीफ़ झेलते तो सभी (विस्थापित) हैं, मगर यूँ कहने वाले कम!
जवाब देंहटाएंअनुवाद ? वो कहाँ ? ये तो हिंदी की कविताएँ हैं। कमाल किया है आपने!
आपके समकालीन हैं।
जवाब देंहटाएंआभार।
जवाब देंहटाएंलेकिन सत्य है कि
जवाब देंहटाएंमुट्ठी में कसकर भींचने के बाद भी
रेत की मानिंद फिसलता जाता है
सुन्दर कविताएँ
सुन्दर अनुवाद
विस्थापन और इससे जुड़े संत्रास से उपजी कविताएँ। समय को मार्मिकता से परिभाषित करतीं। अनुवाद सुंदर लग रहे।
जवाब देंहटाएंकविताएँ बहुत अच्छी हैं और उनके अनुवाद भी। बधाई
जवाब देंहटाएंहर शब्द जैसे एक गहराई से निकला हो बेहद मर्मस्पर्शी और सहज अनुवाद सर शुक्रिया बेहतरीन कविताओं के लिए
जवाब देंहटाएंBahut heart touching hai.
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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