हिंदी साहित्य में हरियाणा प्रदेश आज भी अधिकतर उपेक्षित ही है, हालाँकि इसकी शुरुआत बहुत दमदार थी. बाबू बालमुकुंद गुप्त यहीं से थे. ‘देस हरियाणा’ और ‘सत्यशोधक फाउंडेशन’ ने हरियाणा की साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने के निमित्त सृजन यात्रा की शुरूआत की है. पानीपत में प्रख्यात शायर हाली पानीपती, रेवाड़ी के गांव गुडिय़ानी में बालमुकुंद गुप्त की हवेली, झज्झर जिला के गांव छुड़ानी में संत गरीबदास के धाम और हांसी में चार कुतुब में सूफी कवि बाबा फरीद की साधना स्थली पर ये यात्री पहुंचे. देस-हरियाणा के उप संपादक अरुण कुमार कैहरबा ने रुचिकर रपट लिखी है देखें.
हरियाणा सृजन यात्रा-वृत्तांत
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अरुण कुमार कैहरबा
घुमक्कड़ी एक बेहतरीन शौक है. यात्रा
समाज को कुएं का मेंढक बनने के विरूद्ध किया गया शंखनाद है. एक स्थान से दूसरे
स्थान पर जाना केवल यात्रियों को ही लाभान्वित नहीं करता, बल्कि ज्ञान के प्रसार के जरिये पूरे समाज को लाभ
पहुंचाता है. हमारे समाज में तीर्थ यात्राएं, साहसिक
यात्राएं, प्राकृतिक सहित अनेक प्रकार की यात्राएं निकाली
जाती हैं. कितने ही लोगों ने यात्राओं के जरिये समाज को अनेक प्रकार की देन दी है.
साहित्य में यात्रा साहित्य की एक पूरी धारा है. हिन्दी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन
ने तो पूरा घुमक्कड़ शास्त्र रच कर
घुमक्कड़ी को प्रतिष्ठित किया.
इधर साहित्यिक-सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद शुष्क माने जाने वाले प्रदेश हरियाणा से एक नए प्रकार की यात्रा की धमक सुनाई दी. देस हरियाणा और सत्यशोधक फाउंडेशन ने इसका आगाज किया. हरियाणा सृजन यात्रा नाम की इस यात्रा में हरियाणा की साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत की खोज करने का सार्थक प्रयास किया गया. यात्रा साहित्य, सृजन, विचार-विमर्श पर केन्द्रित थी. सृजन यात्रा में प्रदेश भर के 18 रचनाकारों व कलाकारों ने हरियाणा की चार नामचीन साहित्यिक शख्सियतों-प्रख्यात शायर मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली, प्रसिद्ध पत्रकार, संपादक व साहित्यकार बाबू बालमुकुंद गुप्त, कबीर परंपरा के संत कवि गरीबदास और सूफी कवि बाबा फरीद से जुड़े स्थानों का भ्रमण किया. उनकी स्मृतियों से जुड़े स्थानों व वस्तुओं को करीब से देखा. उनकी साहित्यिक विरासत को जानने के लिए संगोष्ठियां आयोजित करके उन पर गहरा अध्ययन-मंथन किया. यात्रा में सृजन यात्रियों का जोश व उत्साह देखते ही बनता था. विभिन्न स्थानों पर यात्रा के स्वागत और संगोष्ठियों में शिरकत के जरिये प्रदेश के सैकड़ों साहित्यकार सृजन यात्रा से जुड़े.
इधर साहित्यिक-सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद शुष्क माने जाने वाले प्रदेश हरियाणा से एक नए प्रकार की यात्रा की धमक सुनाई दी. देस हरियाणा और सत्यशोधक फाउंडेशन ने इसका आगाज किया. हरियाणा सृजन यात्रा नाम की इस यात्रा में हरियाणा की साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत की खोज करने का सार्थक प्रयास किया गया. यात्रा साहित्य, सृजन, विचार-विमर्श पर केन्द्रित थी. सृजन यात्रा में प्रदेश भर के 18 रचनाकारों व कलाकारों ने हरियाणा की चार नामचीन साहित्यिक शख्सियतों-प्रख्यात शायर मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली, प्रसिद्ध पत्रकार, संपादक व साहित्यकार बाबू बालमुकुंद गुप्त, कबीर परंपरा के संत कवि गरीबदास और सूफी कवि बाबा फरीद से जुड़े स्थानों का भ्रमण किया. उनकी स्मृतियों से जुड़े स्थानों व वस्तुओं को करीब से देखा. उनकी साहित्यिक विरासत को जानने के लिए संगोष्ठियां आयोजित करके उन पर गहरा अध्ययन-मंथन किया. यात्रा में सृजन यात्रियों का जोश व उत्साह देखते ही बनता था. विभिन्न स्थानों पर यात्रा के स्वागत और संगोष्ठियों में शिरकत के जरिये प्रदेश के सैकड़ों साहित्यकार सृजन यात्रा से जुड़े.
हरियाणा सृजन यात्रा के लिए
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर व देस हरियाणा के संपादक
डॉ. सुभाष चन्द्र की अगुवाई में रचनाकार 29 फरवरी को कुरुक्षेत्र में इकट्ठे हुए. इनमें पंचकूला से लोक संस्कृति
लेखक सुरेन्द्र पाल सिंह, कुरुक्षेत्र से सत्यशोधक फाउंडेशन
की प्रबंधक विपुला सैनी, शोधार्थी अंजू, विकास साल्यान, ब्रजपाल, हिसार
से कवि राज कुमार जांगड़ा, इन्द्री कस्बे से कवि दयालचंद
जास्ट, शायर मंजीत भोला, टोहाना से
सामाजिक कार्यकर्ता बलवान सत्यार्थी, विक्रम वीरू, कॉलेज अध्यापक राजेश कासनिया, कवि कपिल भारद्वाज,
योगेश शर्मा, नरेश दहिया और लेखक अरुण कैहरबा
स्वयं शामिल थे.
कुरुक्षेत्र में शहीद उधम सिंह मूर्ति
पर सृजन यात्रियों ने श्रद्धांजलि अर्पित
की. समाजशास्त्री प्रो. टी.आर. कुंडू, कवि ओमप्रकाश करुणेश व डॉ. विजय विद्यार्थी आदि रचनाकारों ने सृजन
यात्रियों को फूलमालाएं डाल कर विदाई दी और यात्रा के लिए शुभकामनाएं दी. करनाल
में लघु कथाकार डॉ. अशोक भाटिया की अगुवाई में साहित्यकारों ने सृजन यात्रा का
जोरदार स्वागत किया. यहीं से डॉ. भाटिया भी यात्रा का हिस्सा बन गए. घरौंडा में
पंजाबी अध्यापक नरेश सैनी यात्रा में शामिल हुए. सृजन यात्रा का पहला मुख्य पड़ाव
हाली पानीपती के नाम से प्रसिद्ध मौलाना अल्ताफ हुसैन हाली की पानीपत स्थित मज़ार
रही.
हाली की मजार सूफी हजरत बू अली शाह
कलंदर की दरगाह के प्रांगण में ही बनाई गई हैं. हाली पानीपती उर्दू शायरी का बहुत
मकबूल नाम है. उन्हें उर्दू-फारसी शायरी के बेताज बादशाह मिर्ज़ा ग़ालिब की शागिर्दी करने का मौका मिला. ग़ालिब के इंतकाल के बाद हाली ने यादगारे गालिब ग्रंथ लिख कर अपने उस्ताद का नाम भी
चमकाया और खुद भी प्रसिद्धि हासिल की. हाली से पहले शायरी में अक्सर हुस्नो-इश्क
और अमीर-उमरा की चापलूसी भरी पड़ी थी. उन्होंने शायरी को नई राह दिखाई. उन्होंने
अपने साहित्य में जनभाषा का प्रयोग किया. हाली ने हुब्बे वतन (देश प्रेम), चुप की दाद, बरखा रूत व निशाते
उम्मीद सहित अनेक प्रसिद्ध नज्में दी हैं.
उनकी नज्म मुसद्दस-ए-हाली को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की भारत-भारती की प्रेरणा
मानी जाती है. इसके अलावा हाली ने संयुक्त पंजाब में लड़कियों के लिए पहला स्कूल
पानीपत में खोला. यहीं पर उनकी बेटी ने भी शिक्षा प्राप्त की. हाली ने महिलाओं के
हको-हुकूक की आवाज को अपनी रचनाओं में बुलंद किया. उन्होंने अपनी नज़्म चुप की दाद
में लिखा-ऐ मांओ बहनों बोटियों, दुनिया की ज़ीनत तुम से है,
मुल्कों की बस्ती हो तुम्हीं, कौमों की इज्ज़त
तुमसे है. हाली साम्प्रदायिक सौहार्द्र और भाईचारे के पक्षधर थे. हुब्बे वतन में
उन्होंने लिखा-तुम अगर चाहते हो मुल्क की खैर. न समझो किसी हम वतन को गैर.
हाली पानीपती ट्रस्ट के महासचिव राम
मोहन राय, लेखक रमेश चन्द्र
पुहाल पानीपती, डॉ. शंकर लाल, सामाजिक
कार्यकर्ता राजेन्द्र छोक्कर, शिक्षा अधिकारी सरोजबाला गुर,
भगत सिंह से दोस्ती मंच के जिला संयोजक दीपक कथूरिया, पायल, सुनीता आनंद, मुख्याध्यापिका
प्रिया लूथरा सहित अनेक रचनाकारों ने सृजन यात्रा का स्वागत किया. सभी ने बू अली
शाह कलंदर और हाली की मज़ार पर चादर चढ़ाई. संगोष्ठी में रमेश चन्द्र पुहाल की
पुस्तक यादगारे हाली पानीपती का विमोचन किया गया. हाली की विरासत विषय पर संगोष्ठी
में वक्ताओं ने उर्दू शायरी व शिक्षा में हाली के योगदान को रेखांकित किया. सृजन
यात्रा के अगुवा डॉ. सुभाष चन्द्र ने कहा कि सृजन यात्रा सिखाने की बजाय सीखने के
लिए है. हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत बहुत समृद्ध है, इससे
सभी को सीखने की जरूरत है.
रिमझिम बरसात में सृजन यात्री अगले
सफर के लिए रवाना हुए. अगला लघु पड़ाव रोहतक था. यहां पर संस्कृतिकर्मी अविनाश
सैनी, डॉ. रणबीर दहिया, डॉ. संतोष मुद्गिल, डॉ. राजेन्द्र सिंह सहित साथियों
ने यात्रियों का फूलमालाओं के साथ स्वागत किया. इसके बाद शाम को देश के जाने-माने
पत्रकार, संपादक व साहित्यकार बाबू बालमुकुंद गुप्त के
जन्मस्थान रेवाड़ी जिला के गुडिय़ानी गांव में यात्रा पहुंची तो बरसात की रिमझिम
बूंदें यहां भी यात्रा का स्वागत कर रही थी.
14 नवंबर 1865 को गुडिय़ानी में
जन्मे बाबू बालमुकुंद गुप्त के उस घर को देखना सृजन यात्रा टीम के लिए किसी तीर्थ
से कम नहीं था. गुप्त जी की वह हवेली देखने का जोश ही था कि शाम के बढ़ते अंधेरे व
बरसात के बावजूद पूरी टीम आगे बढ़े जा रही थी. हवेली पर पहुंचे तो बालमुकुंद गुप्त
ट्रस्ट व पत्रकारिता एवं साहित्य परिषद सहित विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारियों व
साहित्यकारों ने यहां भव्य आयोजन की तैयारियां कर रखी थी. हवेली के बीचो-बीच खुले
आंगन में बैनर लगाए गए थे. मैट बिछाकर कुर्सियां लगा रखी थी. अंधेरा घिर आया था.
वर्षा की रिमझिम हो रही थी. गुप्त जी की हवेली के आंगन में बरसात के बीच ही
साहित्यकारों ने फूलमालाओं के साथ यात्रियों का स्वागत किया. देस हरियाणा के बाल
मुकुंद गुप्त विशेषांक का विमोचन किया गया. बरसात और अंधेरे के कारण यहां का
कार्यक्रम संक्षिप्त रहा.
इसके बाद गुडिय़ानी में ही स्थित न्यू इरा पब्लिक स्कूल में संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी का संचालन साहित्यकार सत्यवीर नाहडिय़ा ने किया और अध्यक्षता जिला शिक्षा अधिकारी एवं कवि राजेश कुमार ने की. प्रो. सुभाष चन्द्र, डॉ. अमित मनोज व डॉ. सिद्धार्थ शंकर राय ने बाबू बालमुकुंद गुप्त की विरासत पर प्रकाश डाला. विपिन सुनेजा, मुकुट अग्रवाल, अंजू, ब्रजपाल, योगेश शर्मा ने गुप्त जी की रचनाएं सुनाई. परिषद के संरक्षक नरेश चौहान व ऋषि सिंहल ने आए अतिथियों का आभार व्यक्त किया. स्कूल में ही रात्रि ठहराव हुआ. लेकिन बालमुकुंद गुप्त की हवेली देखने की इच्छा सभी के मन में थी. सुबह उठते ही सभी निकल गए हवेली देखने.
इसके बाद गुडिय़ानी में ही स्थित न्यू इरा पब्लिक स्कूल में संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी का संचालन साहित्यकार सत्यवीर नाहडिय़ा ने किया और अध्यक्षता जिला शिक्षा अधिकारी एवं कवि राजेश कुमार ने की. प्रो. सुभाष चन्द्र, डॉ. अमित मनोज व डॉ. सिद्धार्थ शंकर राय ने बाबू बालमुकुंद गुप्त की विरासत पर प्रकाश डाला. विपिन सुनेजा, मुकुट अग्रवाल, अंजू, ब्रजपाल, योगेश शर्मा ने गुप्त जी की रचनाएं सुनाई. परिषद के संरक्षक नरेश चौहान व ऋषि सिंहल ने आए अतिथियों का आभार व्यक्त किया. स्कूल में ही रात्रि ठहराव हुआ. लेकिन बालमुकुंद गुप्त की हवेली देखने की इच्छा सभी के मन में थी. सुबह उठते ही सभी निकल गए हवेली देखने.
पता चला कि कभी बालमुकुंद गुप्त
ट्रस्ट का कार्यालय यहीं पर चलता था, जोकि अब रेवाड़ी में चला गया है. गुप्त जी के वंशज कोलकाता में रहते हैं.
हवेली में बालमुकुंद और उनके पिता जी का चित्र लगा है. यहां पर उनकी वह अलमारी भी
रखी है, जिसमें कभी वे अपनी किताबें रखते होंगे. उनके लिखने
की संदूक नुमा मेज भी रखी है. लेकिन ये सभी चीजें पूरी तरह उपेक्षित हैं.
दो-मंजिला हवेली देखने पर भी लगा जैसे कई दिनों से हवेली की सफाई तक नहीं की गई है.
जिन बाल मुकुंद गुप्त के नाम पर हरियाणा साहित्य अकादमी हर साल पुरस्कार देती है
और हरियाणा ही नहीं देश भर में अपनी लेखनी के लिए जाने जाते हैं, उनकी हवेली की यह उपेक्षा अंदर तक हिला गई. भारतमित्र अखबार के संपादक
बालमुकुंद गुप्त अंग्रेजी सरकार के दमन के खिलाफ आग उगलते थे. अपने शिवशंभु के
चिट्टे शीर्षक व्यंग्य में उन्होंने अंग्रेजी शासन के आकाओं की तानाशाही व
स्वेच्छाचारिता पर जमकर कलम चलाई. गुप्त जी हिन्दी भाषा के स्वरूप निर्माण के
स्तम्भ हैं. उन्होंने हिन्दी भाषा के स्वरूप, राजकाज की भाषा,
लिपि संबंधी समस्याओं पर स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान होने वाली
बहसों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया. वे भारतीय नवजागरण के आधार स्तंभों में से
एक हैं. अंग्रेजी शासन के जुल्मो-सितम पर उन्होंने कहा था-
आज का सारा परिवेश वह परिवेश है, जिसमें कोई भी देश अपमान और पतन के कष्टों को भोगने के लिए विवश होता है. परंतु इस अमावस्या में भी साहित्यकार रूपी दीपक अपनी ज्योति फैलाकर इस अपमान से मुक्ति दिलाने में अत्यधिक समर्थ सिद्ध होता है.
उनके जन्मदिन व पुण्य-तिथियों पर फूलमालाएं चढ़ाकर रस्म तो जरूर पूरी की जाती होगी. लेकिन उनकी विरासत को संजोने की तरफ किसी भी सरकार का आज तक ध्यान नहीं गया, यह देखकर सभी दुखी हुए.
सुबह सृजन यात्रियों ने गांव के पास ही स्थित पहाड़ी का भ्रमण किया, जहां पर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 114 लोगों को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था. वहां पर एक पत्थर पर ये पंक्तियां लिखी हैं-
हमारा खून भी शामिल है तजईने गुलिस्तां में,
हमें भी याद कर लेना चमन में जब बहार
आए.
ये पंक्तियां कितने ही अनाम शहीदों की
शहादत पर सोचने को मजबूर करती हैं. क्या अब हमें उन शहीदों को याद करने फुर्सत है, जिन्होंने देश के लिए हंसते-हंसते प्राणों की आहुति
दे दी. क्या गुडिय़ानी व आस-पास के 114 शहीदों के बारे में
स्कूलों के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है. आखिर क्यों नहीं ये शहादतें व ऐसे स्थान
शैक्षिक भ्रमण का हिस्सा बनते. शहीदों के स्मारक की स्थिति अत्यंत खराब है. यही
नहीं स्मारक तक जाने का कोई रास्ता भी नहीं है. सभी ने उन अनाम क्रांतिकारियों को
श्रद्धांजलि अर्पित की.
नाश्ता करने और साथियों से विदाई लेने
के बाद एक मार्च को सृजन यात्रा का अगला पड़ाव झज्झर जिला का गांव छुड़ानी था.
छुड़ानी में संत गरीबदास का धाम है. कबीर परंपरा के संत गरीबदास ने अपनी लेखनी के
माध्यम से सामाजिक बुराईयों का विरोध किया और साम्प्रदायिक सद्भाव व भाईचारे की
पक्षधरता की. धार्मिक पाखंडों व अंधविश्वासों के खिलाफ तंज कसे. यहां पर संत
गरीबदास की विरासत को देखते हुए धाम के महंत दयासागर जी के साथ भेंट की. संत
दयासागर ने देस हरियाणा के संपादक डॉ. सुभाष चन्द्र व साथियों को कुछ किताबें भी
भेंट की.
इसके बाद सृजन यात्रा का अगला
महत्वपूर्ण पड़ाव हांसी शहर में स्थित चार कुतुब था. इसका चार कुतुब नाम-चार सूफी
संतों के नाम पर रखा गया है. यहां पर उनकी दरगाह भी है. यही वह स्थान है, जहां पर सूफी कवि बाबा फरीद ने लगातार 12 साल चिंतन-मनन व साहित्य साधना की थी. यहां पर चार कुतुब की देखरेख कर
रहे चांद मियां जमाली ने बताया कि भारत में हांसी एकमात्र स्थान है, जहां पर एक ही गुंबद के नीचे चार कुतुब हैं. बाबा फरीद के शिष्यों में शेख कुतुब जमालुद्दीन
हांसवी साहब हुए, जिनकी दरगाह चार कुतुब में ही स्थित है.
इसके अलावा शेख कुतुब बुरहानुद्दीन, शेख कुतुब मुनव्वरूद्दीन
और नुरूद्दीन के कुतुब इसी चार कुतुब में ही हैं.
हांसी में साहित्य साधना करने वाले महान सूफी संत हज़रत ख्वाजा फरीदुद्दीन गंजशकर को लोग बाबा फरीद के नाम से जानते हैं. महान सूफी निजामुद्दीन औलिया (दरगाह दिल्ली में है) और साबिर साहब (दरगाह उत्तराखंड में है) उनके चेले हुए हैं, जिन्होंने सूफी मत में काफी नाम कमाया. अपने गुरू शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के देहांत के बाद बाबा फरीद चिश्ती मत के खलीफा नियुक्त हुए. लेकिन सत्ता के केन्द्रों से दूर रह कर शांति और संतोष का जीवन व्यतीत किया. उन्होंने कहा- रूखी-सूखी खाय के ठंडा पाणी पीय, देख पराई चोपड़ी मत तरसाय जीय. वे लहंदी या सरायकी में लिखते थे. बाबा फरीद का पंजाबी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण स्थान है. उन्हें पंजाबी का पहला कवि कहा जाए तो गलत ना होगा. बाबा फरीद की वाणी को गुरू ग्रंथ साहिब में भी स्थान दिया गया है.
हांसी में साहित्य साधना करने वाले महान सूफी संत हज़रत ख्वाजा फरीदुद्दीन गंजशकर को लोग बाबा फरीद के नाम से जानते हैं. महान सूफी निजामुद्दीन औलिया (दरगाह दिल्ली में है) और साबिर साहब (दरगाह उत्तराखंड में है) उनके चेले हुए हैं, जिन्होंने सूफी मत में काफी नाम कमाया. अपने गुरू शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के देहांत के बाद बाबा फरीद चिश्ती मत के खलीफा नियुक्त हुए. लेकिन सत्ता के केन्द्रों से दूर रह कर शांति और संतोष का जीवन व्यतीत किया. उन्होंने कहा- रूखी-सूखी खाय के ठंडा पाणी पीय, देख पराई चोपड़ी मत तरसाय जीय. वे लहंदी या सरायकी में लिखते थे. बाबा फरीद का पंजाबी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण स्थान है. उन्हें पंजाबी का पहला कवि कहा जाए तो गलत ना होगा. बाबा फरीद की वाणी को गुरू ग्रंथ साहिब में भी स्थान दिया गया है.
सृजन यात्रा के दौरान चार कुतुब के
प्रांगण में बाबा फरीद, सूफी परंपरा और हमारा
समाज विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी में पंजाब से आए जाने-माने
संस्कृतिकर्मी सुमेल सिंह सिद्धू ने बाबा फरीद के जीवन और साहित्य के विभिन्न
पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला. सृजन
यात्रा में शामिल साहित्यकारों के अलावा यहां पर स्थानीय मा. रोहताश, श्रद्धानंद राजली, बलवान सिंह दलाल, सुशीला, ऋषिकेश, धर्मबीर सिंह,
मा. हनुमान प्रसाद सहित अनेक साहित्य प्रेमी शामिल रहे.
सृजन यात्रा अपने आप में अनोखी थी.
बौद्धिक-साहित्यिक जगत में हरियाणा की चारों शख्सियतें महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.
लेकिन प्रदेश में ही इन पर चर्चाएं बहुत कम ही सुनाई देती हैं. ऐसे समय में जब लोग
अपनी विरासत से कटते जा रहे हैं. प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर की पहचान करते हुए
उससे जुडऩा अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है. देस हरियाणा के संपादक डॉ. सुभाष
चन्द्र ने कहा कि मानवता की यात्रा सृजन की यात्रा के साथ जुड़ी हुई है. हाली
पानीपती, हज़रत बू अली शाह
कलंदर, बाबू बालमुकुंद गुप्त, संत
गरीबदास व बाबा फरीद जैसी शख्सियतों ने अपनी कलम व संदेशों के जरिये मानवता के
पक्ष को मजबूत किया. उन्होंने मानवता के पक्षधर साहित्यकारों को अपनी विरासत की
पहचान करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि लोग अपने महापुरुषों और उनके विचारों को
भूल गए हैं. उन विचारों को पुन: याद करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि जिस तरह
मानवता के दुश्मन सडक़ों पर घूम रहे हैं. मानवता के पक्षधर लोग अपने घरों में ही
क्यों रहें. इसीलिए यह यात्रा निकाली गई है.
________
अरुण कुमार कैहरबा
सह-संपादक, देस हरियाणा
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जि़ला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-09466220145
________
अरुण कुमार कैहरबा
सह-संपादक, देस हरियाणा
वार्ड नं.-4, रामलीला मैदान, इन्द्री,
जि़ला-करनाल, हरियाणा
मो.नं.-09466220145
हरियाणा सृजन यात्रा के प्रति समालोचन की तत्परता सराहनीय है। इसे पत्रिका और ब्लॉग पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंअरुण जी कितना बढ़िया लिखते हैं आप
जवाब देंहटाएंऔर भी विधाओ में हाथ आज़माते रहे
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