कुछ नहीं । सब कुछ : निधीश त्यागी

कुछ नहीं । सब कुछ (कविताएं)
कवि और प्रकाशकः निधीश त्यागी
डिजाइनरः रूबी जागृत
मूल्यः 499/-
































वरिष्ठ पत्रकार और कवि निधीश त्यागी के पहले कविता संग्रह ‘कुछ नहीं । सब कुछ’ का विमोचन कल दिल्ली में है. समालोचन की तरफ से बधाई. इस संग्रह से कुछ कविताएँ आपके लिए.

व्यापक मानवीय संवेदना की ओर कविता खींचती है, रोजाना के कामकाजी गद्य में अगर आप डूबे हों तो और भी. निधीश त्यागी की इन कविताओं में शब्दों का ममत्व है.  




निधीश त्यागी की कविताएँ                                   





जैसे मौसम पहनता है

जैसे मौसम पहनता है पृथ्वी
उसकी प्रकृति को पहनना था उसे

देर रात वह अपनी साड़ी
उतार तह बनाती है
उसे छूती है सहलाती है
देर रात वह अपना श्रृंगार
उतारती है जो किया गया था
जा चुके पल और प्यार के लिए

देर रात वह आईने में
शक्ल देखती है
ख़ाली, थकी और अपरिचित
घुप होता चुप उसका
चेहरा टटोलता है
बीच में कई बार

देर रात वह उस लम्बे दिन
को फिर से पलटती है और
उसकी जघन्यता पर
चकित होती है

देर रात वह 
पलंग के किनारे बैठ कर
हथेलियों में चेहरा लिए
घुटनों पर कुहनियां टिका
बहुत देर बैठी रहती है

शरीर से ज्यादा आत्मा पर दर्ज
हुए उन हरे होते ज़ख़्मों पर
देर रात फाहा रखती है

देर रात वह सबको माफ़
करती है ईश्वर को भी

पलंग की बग़ल की मेज़ पर
पानी का गिलास रख
देर रात वह बत्ती बुझाती है

जघन्यताओं और पहचान के बाहर

बहुत देर रात तक अंधेरे अकेले
में बची हुई साँस लेती है.





चिलमनों के उस तरफ

नाम पुकारता है
नई जगह से
हर बार
सुनाई पड़ता है
नई जगह पर

उठा डालता है आसमान
हरी कर देता है ज़मीन
परिँदो का झुंड
एक साथ उड़ान भरता है
हरी पत्ती वाली टहनी
हिलती है
एक नये सूर्य की तरफ़

स्मृति के मुहाने से
कल्पना के दहाने तक
नाम उसे बाँधता है
खोलता है
एक नई पहचान में
नई उजास छाया में

भाषा और अर्थों के आरपार
नाम एक मंत्र की तरह
सिद्ध होता जाता है
प्राण में प्रतिष्ठा में

बहुत सारी रंगीन मछलियाँ
एक साथ मुड़ती है
करवटें बदलती हुई
उन तिलिस्मी तालों को खोलती हुई
जिनके होने का पता ही नही था
तर्क और कारणों और दुनियादारियों को.

नाम मना करता है नाम लेने को
पर साँस है
अटकी हुई
अगली पुकार की टोह लेती
ज़िंदा हो उठने की

नाम है कि लेता है
नाम को
अकेले मे, चुप में, अपने घुप में
धमनियों से गुज़रते संगीत में
उसे पुकारता हुआ

जहां वह ग़ुमशुदा तो है
जहां वह लापता तो नहीं.




उस एक दिन

एक दिन
एक राग उसे छेड़ेगा
एक पत्ता उसे हिला देगा
एक कविता उसे लिखेगी
एक दीवार उससे बात करेगी
एक जुराब़ उसे ढूंढ निकालेगी
एक सपना उसे देखेगा
कई झरोखे झांकेंगे उसमें
एक दिन

एक दिन
एक किताब उसका अध्याय पढ़ेगी

बहुत दिनों तक
एक देहरी उसके साथ चलेगी
एक बेड़ी की तरह

उस एक दिन के लिए.


अभी यहीं


अगर जीने का एक ही पल बचा हो बहुत सारे स्थगित और रिक्त और वीतराग समय में अगर एक ही खिड़की हो दीवार में रौशनी के आने और अपने हरे में झाँकने के लिए अगर एक ही पुकार हो और गूँजते रहने के लिए अगर एक ही ख़याल गा रहा हो आत्मा के आरपार अगर एक ही फफक एक ही आँसू एक ही उच्छवास एक ही मौक़ा एक ही चाँद एक ही जंगल एक ही मृदंग एक ही थाप एक ही नाच एक ही आलम्बन, एक बारिश एक शाम एक पार्किंग एक ही स्पंदन एक ही पहला और अंतिम अपने आपमें एक ही आसमान और सूरजमुखी, अगर एक ही जादू हो एक ही मनुष्यता एक ही ब्रह्मांड, अंतरिक्ष, खगोल सपनों और स्मृति को लाँघने की एक ही देहरी, अगर दिल पर रखने को एक ही हाथ हो, एक हू कम्पन, एक ही फुदक, ललक, सिसक, एक ही लहर, एक ही सीपी, एक ही अभी और यहाँ का आदि और अंत

एक नाम. एक हाँ
हर बार. अलग. पहली बार.
एक ही तुम.
एक साँस में तुम्हें लेता हुआ
___________________


निधीश त्यागी का जन्म 1969 में जगदलपुर, बस्तर में हुआ और बचपन छत्तीसगढ़ के विभिन्न कस्बोंजगदलपुर, नारायणपुर, डौंडी अवारी, जशपुरनगर, गरियाबंद, नगरी सिहावा के सिविल लाइंस के खपरैल वाले सरकारी मकानों में बीता. मध्यप्रदेश के सैनिक स्कूल, रीवा के चंबल हाउस में कैशोर्य, जहां से फौज में चाहकर भी नहीं जा सके. बाद में राजधानी बनने से पहले वाले रायपुर के शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय में बीएससी करते हुए डेढ़ साल फेल (एक साल पूरा फेल, एक बार कंपार्टमेंटल). पास होने के इंतज़ार में देशबंधु अख़बार में नौकरी की और विवेकानंद आश्रम की आलीशान लाइब्रेरी की किताबों में मुंह छिपाया. बाद में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में स्नातकोत्तर करने की नाकाम कोशिश. दिल्ली में आईआईएमसी (भारतीय जनसंचार संस्थान) में दाख़िला मिला, वहां होस्टल नहीं मिला. बहुत बाद में लंदन की वेस्टमिन्स्टर यूनिवर्सिटी में बतौर ब्रिटिश स्कॉलर चीवनिंग फेलोशिप. वहां पहुंच कर लगा कि बहुत पहले आना चाहिए था किसी ऐसी जगह पर. डेबोनयेर हिंदी में नौकरी मिली, वह चालू ही नहीं हुई. इस बीच नवभारत नागपुर, राष्ट्रीय सहारा, ईस्ट वेस्ट टीवी, जैन टीवी, इंडिया टुडे, बिज़नेस इंडिया टीवी, देशबंधु भोपाल, दैनिक भास्कर चंडीगढ़ और भोपाल में काम किया. बीच में गुजराती सीख कर दिव्य भास्कर के अहमदाबाद और बड़ौदा संस्करणों की लॉन्च टीम में रहा. बेनेट कोलमेन एंड कंपनी लिमिटेड के अंग्रेज़ी टैबलॉयड पुणे मिरर के एडिटर. फिर चंडीगढ़ के अंग्रेज़ी द ट्रिब्यून में चीफ न्यूज़ एडिटर. आजकल बीबीसी हिंदी में संपादक. तमन्ना तुम अब कहाँ हो’ नाम  से एक किताब पेंग्विन से प्रकाशित.

nidheeshtyagi@gmail.com

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  1. सारंग उपाध्याय9 अक्तू॰ 2019, 11:19:00 am

    Nidheesh Tyagi सर को बहुत सारी शुभकामनाएं। कविताओं पर बात आगे बढ़ेगी☺️

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  2. बाबुषा कोहली9 अक्तू॰ 2019, 11:20:00 am

    'तमन्ना..' के बाद से ही मैंने निधीश की अगली किताब का इन्तज़ार किया था। वे कितने धीमे-धीमे मन की परतदार तह खोलते हैं। कहीं कोई जल्दबाज़ी नहीं, कोई अधीरता नहीं, कोई आक्रामकता नहीं। उनके लिखे से मैं हमेशा जुड़ाव महसूस करती हूँ।

    यह नयी किताब बहुत मुबारक हम जैसे उनके पढ़क्कुओं को।

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  3. अतुल अरोरा9 अक्तू॰ 2019, 11:28:00 am

    Kavitaayein to apni jagah, Parichay aur nimantran ke raastey jo utarti hain chhoti chhoti kavitaayein , ve chaundh mein atirikt jhapka deti hain ...inhein padhna vyaakul karta hai..

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.10.19 को चर्चा मंच पर चर्चा -3484 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  5. डॉ विधुल्लता10 अक्तू॰ 2019, 7:54:00 am

    निधीश त्यागी की कविताएं और गध्य एक राग, एक आलाप के मध्ययम और मंद गति का आत्मा का सरल आरोह-अवरोह है, जितना उन्हें पढ़ा अब तक ,उन्हें पढ़ना आत्मसात करना अद्भुत है ,उनकी कहानियां भी गद्य कविता की ही तर्ज़ है,उनके शब्द शब्द में इक ठहराव है,उनकी सम्पन्न भाषा में सबसे अच्छी बात कोई चमकीलापन नही ,उत्तेजित करते शब्द नही,इक सहजता सौंधापन है भाषा में - आहिस्ता जिसमे विचार घुमक्कड़ी करते हुए शब्दों को लुभाते अपनी ही शर्त पर कमाल करते हैं,किताब का ले आउट डिज़ाइन भी बेहद आकर्षक है वे एक सधे हुए फोटोग्राफर भी हैं चीजों को बारीकी से आहिस्ता पकड़ना फिर लिखना बिना हड़बड़ी के आदतन उनमें अच्छी बात है
    बाकि तो पूरी कविताएं पढ़ने पर पता चलेगा ,जो बेहतरीन होगी बिलाशक
    उन्हें बधाई ढेर सी

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