ख़रीद फ़रोख़्त का जो यह ऑन लाइन व्यवसाय है, जो हर
जगह पसरा है यहाँ तक कि आप दिवंगत के लिए शोक संदेश लिख रहे थे और बगल में किसी
नामी कम्पनी का उत्पाद अच्छे खासे डिस्काउंट पर चमकने लगता है और इसी बीच आप वहां
भी घूम आते हैं. इस सदी ने संवेदना में दरारे डाली हैं इसकी शुरुआत टीवी पर
विज्ञापनों ने की थी. अगर आप आन लाइन हैं तो एक साथ तमाम लाइनों पर आप चल क्या दौड़
रहें हैं. ज्यों ही आप कोई उत्पाद देखते हैं, संभावित खरीददार बन बैठते हैं और वह आप पर नज़र रखता है ठीक शिकारी जैसे अपने शिकार पर.
इस विषय पर क्या आपने कोई कहानी पढ़ी है ? नरेश
गोस्वामी की यह कहानी इसी विषय पर है, आकार में छोटी है पर प्रभावी है.
आखेट से पहले
नरेश गोस्वामी
वे दोनों अलग-अलग साइटों के निवासी हैं. लेकिन उन्होंने आपस में बात करना सीख लिया हैं. जब भी कोई खिन्न या उदास होता है तो दोनों अपनी-अपनी साइट के अज्ञात स्पेस में कुछ अदृष्य तंतुओं को जोड़ कर आपस में बात करने लगते हैं. चूंकि आदमी हमेशा मुंह से बात करता है, इसलिए उसे यक़ीन नहीं होता कि बिन मुंह की चीज़ें भी आपस में बोल-बतिया सकती हैं. स्क्रीन के सामने बैठे आदमी को लगता है कि सामने आती जाती चीज़ों को केवल वही देख रहा है, जबकि इधर यह हुआ है कि चीज़ें उस व्यक्ति की एक एक क्लिक और हरकत का हिसाब रखने लगी हैं.
दूसरा देखता है कि पहले वाले का फ्रेम इतना चौड़ा हो गया है कि दोनों अपनी-अपनी साइटों से उठ कर अचानक एक दूसरे के बाजू में आकर बैठ गए हैं. अब दोनों एक साथ मुस्कुरा रहे हैं. उनके पीछे दुनिया के किसी महानगर की इकतालिसवीं मंजिल पर अपने ऑफि़स में बैठा सुशील कृपलानी टॉप मैनेजमेंट को मेल लिख रहा है: ‘हैप्पी टू शेअर विद यू दैट चोपड़ाज हैव एग्रीड टू मर्ज विद अस, फ़ायनली’. मेल भेजने के बाद उसने यह सूचना निचले स्टाफ़ को फॉरवर्ड कर दी है, और दो मिनट बाद ही साइट पर ख़बर दमकने लगी है:
‘जूतों की प्रसिद्ध कंपनी चोपड़ा शूज का लकार्ट में विलय’. कृपलानी के चेहरे पर विजय की तिरछी मुस्कान उभरी है.
वह ख़ुशी में चुटकी बजा रहा है. चुटकी के साथ उसके मुंह से शायद ‘यस, वी कैन’ भी निकला है, लेकिन वह चुटकी की आवाज़ में दब गया है. अभी तक पहला और दूसरा सिर्फ़ जूते की तरह मुस्कुरा रहे थे. अब दोनों आदमी की तरह हंसने लगे हैं.
वे दोनों अलग-अलग साइटों के निवासी हैं. लेकिन उन्होंने आपस में बात करना सीख लिया हैं. जब भी कोई खिन्न या उदास होता है तो दोनों अपनी-अपनी साइट के अज्ञात स्पेस में कुछ अदृष्य तंतुओं को जोड़ कर आपस में बात करने लगते हैं. चूंकि आदमी हमेशा मुंह से बात करता है, इसलिए उसे यक़ीन नहीं होता कि बिन मुंह की चीज़ें भी आपस में बोल-बतिया सकती हैं. स्क्रीन के सामने बैठे आदमी को लगता है कि सामने आती जाती चीज़ों को केवल वही देख रहा है, जबकि इधर यह हुआ है कि चीज़ें उस व्यक्ति की एक एक क्लिक और हरकत का हिसाब रखने लगी हैं.
उस दिन दोनों फिर बात कर रहे थे. पहला विकट उत्साह में और
दूसरा निराश बैठा था.
‘‘देख लेना, वह फिर लौट कर आएगा’’. पहले ने दूसरे से कहा.
‘तुम इतने यक़ीन से कैसे कह सकते हो’ ? दूसरे ने पूछा.
‘‘यक़ीन-वकीन की बात छोड़ो, मैं जो कह रहा हूं उस पर ध्यान दो’’.
‘फिर भी, कोई तो कारण होगा’.
‘‘हां, है ना... तुमने देखा उसे... शुरु में वह मुझ पर सरसरी नज़र डाल कर गुजर गया.
लेकिन थोड़ी ही देर में वापस लौट आया. दस-पंद्रह सैकेंड तक मुझे देखता रहा. और तुम
जानते हो कि मेरे लिए इतना वक़्त काफ़ी होता है उसके भीतर उतरने के लिए... हां, पंद्रह सेकेंड बहुत होते है जनाब किसी का मन
पढ़ने के लिए... देख, अगर कोई बंदा किसी
प्रोडक्ट पर इतनी देर रुक जाता है तो इसका मतलब है कि प्रोडक्ट ने उसके मन में
जगह बना ली है. अगर किसी वजह से उस समय वह प्रोडक्ट का पूरा प्रोफाइल नहीं भी देख
पाता तो यक़ीन मानो कि वह जल्दी ही लौटेगा. अब यह मेरा काम है कि मैं बार-बार
उसके सामने आता रहूं....
‘मुझे तुम्हारी बात कुछ जम नहीं रही... मुझ पर
तो किसी की नज़र नहीं गयी तीन महीनों से’
‘‘तुम्हें जमेगी भी नहीं... तुम्हें यहां बिना
तैयारी के बैठा दिया गया है...पर वह बात बाद में करेंगे’’.
‘मतलब’
‘‘फिलहाल मतलब यही है कि अगर किसी बंदे ने मुझे एक
बार रुककर देख लिया तो फिर ये मेरी जि़म्मेदारी है कि मैं हमेशा उसकी आंखों के
सामने रहूं... यू नो, वी शुड रिगार्ड दी
कस्टूमर ऐज़ गॉड.... वह मुझे देखे न देखे, लेकिन यह मेरा फ़र्ज है कि मैं उसे हमेशा देखता रहूं... इंतज़ार करता रहूं कि
कभी न कभी तो मुझ पर उसकी कृपा होगी’’.
‘लेकिन, अगर बंदे के पास ऑलरेडी कई जूते हों तो वह नये क्यों खरीदेगा’. दूसरे की जिज्ञासा देर तक शांत नहीं हुई.
‘‘तो, इससे क्या ! मुझे इससे क्या मतलब कि उसके पास और कितने जूते हैं. मेरा मतलब
केवल इस बात से है कि मैं उसके कलेक्शन में कब आ रहा हूं’’. पहले ने आत्मविश्वास से कहा.
‘लेकिन, तुमने अभी तक मुझे यह नहीं बताया कि तुम्हें यह कैसे पता चल जाता है जो बंदा
तुम्हें अभी देखकर गया है, वह दुबारा लौट कर आएगा’
‘‘वैसे यह बहुत सिंपल है गुरु, पर जैसा कि मैंने अभी कहा, तुम्हें बिना तैयारी के बिठा दिया गया है. तुम लोग अपडेट नहीं करते... जैसे
अभी जो यह बंदा पलट कर गया है, उसकी कोई प्रॉब्लम है. हो सकता है कि उसका कद छोटा हो और वह ऊंची हील वाला
जूता ढूंढ रहा हो. या अगर वह अभी तय नहीं कर पा रहा है तो इसका मतलब है कि वह कुछ
और चाहता है. वह डील के लिए तैयार है पर उसे कुछ एक्सट्रा चाहिए... हो सकता है कि
उसके पास वाक़ई कई जोड़ी जूते हों और उसे नये जूतों की बिल्कुल भी ज़रूरत न हो तो
ऐसे में मुझे उसे कुछ एक्सट्रा ऑफ़र करना चाहिए...’’. पहले ने दूसरे की तरफ़ पहेली बूझने की निगाह
से देखा है.
‘मैं समझा नहीं’ . दूसरे ने पहले के पास सरकते हुए पूछा.
‘तुम भी अजीब हो यार... अरे, बात साफ़ है कि बंदा थोड़ा स्मार्ट है. वह
इंतज़ार करना चाहता है. अपनी जेब में वह तभी हाथ डालेगा जब उसे लगेगा कि यह
प्रोडक्ट उसे फ्री बराबर मिल रही है. वह इस पर तभी हाथ रखेगा जब उसे पचास पर्सेंट
से ऊपर का डिस्कांउट दिया जाएगा और उसके कार्ट में यह मैसेज फ़्लैश किया जाएगा कि
यह डील कल सुबह ग्यारह बजे तक ख़त्म हो जाएगी... अच्छा, चलो तुम्हें एक बंदे का किस्सा सुनाता हूं. वह
शायद ऐसा ही कोई आदमी रहा होगा जो अभी हमारे सामने सारी डीटेल्स पढ़कर लॉग आउट कर
गया है... तो ख़ैर वो बंदा कई दिनों से स्वेड के जूते देख रहा था. साइज और कलर सब
कुछ सलेक्ट कर लेता था, लेकिन आखिर में ऑर्डर करने के बजाय कार्ट में डाल कर फुर्र हो जाता था. जूता
ज़रा हाई-ऐंड था. मैं उसे कई दिनों तक लगातार देखता रहा. मैं उसकी हरकतें देख रहा
था. वह फिदा तो इसी प्रोडक्ट पर था पर शायद कीमत पर आकर अटक जाता था. वह बीसियों
दिन इसी तरह खेलता रहा रहा. मैं हर दिन सोचता कि आज तो वह ज़रूर फाइनल कर देगा, लेकिन बंदा पांच दस मिनट ऊपर नीचे स्क्रॉल करता
और फिर सब फुस्स.
मैं जानता था कि बंदा ख़ुद को कुछ ज़्यादा ही स्मार्ट समझ
रहा है. उसे लगा होगा कि बीस पच्चीस दिनों में कभी तो कीमत नीचे आएगी ही. कई कस्टूमर
दिमाग़ की दही बना देते हैं. ऐसे लोग कई साइटों पर एक साथ सैर करते रहते हैं. और
जहां सस्ता मिलता है झट से क्लिक कर देते हैं. इसे वे रिसर्च करना कहते हैं. पर
ये तो हम ही जानते हैं बेटा कि ये रिसर्च-विसर्च कुछ नहीं होती. सारी सूचनाएं तो
पहले से तय रहती हैं. ख़ैर, हमने भी ठान रखा था कि बच्चू तुम्हें हम कहीं और तो नहीं जाने देंगे... तो
हुआ यूं कि छब्बीसवें दिन साइट ने एक मैसेज तैयार किया: स्वेड सीरीज़ में पेश है
आपके लिए स्टाइल और कंफ़र्ट का नया स्टेटमेंट... चुनिये और भूल जाईये ! उस दिन
हमने उसके सामने इतने मॉडल रख दिए थे कि वह बचकर नहीं जा सकता था. मतलब आखिरकार
हमने बंदे से एक जूता फाइनल करवा ही लिया’’.
अपनी सफलता की कहानी सुनाते हुए पहला मोर नृत्य करने लगा
था. दूसरा उसे निष्चेष्ट देखे जा रहा था. उसके पूरे वजूद पर रिरियाहट तारी थी.
‘लेकिन, मेरा क्या होगा... मेरी तरफ़ तो कोई आता ही नहीं’. दूसरा कातर होता जा रहा था.
‘हां...हां तुम्हारा भी नंबर लगवाते हैं’. पहला इतना प्रमुदित है कि फिलहाल कोई भी वादा
कर सकता है.
तभी पहले को अपने आसपास एक नयी हरकत महसूस हुई. एक सेकेंड
बीता होगा कि वह ख़ुशी से झूमने लगा है. वह एक के बाद एक पहलू बदलने लगा है. कभी
सामने से आता है, कभी साइड से आता है.
कभी पट लेट जाता है. कभी एकदम उल्टा हो जाता है. बिल्कुल इस तरह कि जैसे रैंप पर
कोई मॉडल चल रहा हो और अंधेरे में फ़ोटाग्राफ़र्स के फ़्लैश दमक रहे हों.
दूसरा उसे अवाक् देखे जा रहा है.
‘‘देख, वो बंदा फिर इधर आ रहा है. वह फिर ऊपर-नीचे, आगे-पीछे दौड़ लगा रहा है... लो देखो, वह नये मैसेज पर रुक गया है: ‘जूते की हील बाहर से देखने में भले ही छोटी लगे
लेकिन उसका एक हिस्सा अंदर छुपा हुआ है... शान से पहनिये, मस्त रहिये’
... अरे, अरे देखो, उसने तो ऑर्डर भी कर
दिया है! ’’.
दूसरा उसकी ख़ुशी में शामिल होना चाहता है लेकिन वह नहीं
जानता कि इसकी शुरुआत कहां से करे. उसे यह सब जादू का खेल लग रहा है. वह चकित है
कि पहला कस्टूमर की इच्छा के बारे में इतनी आसानी से कैसे जान लेता है.
लेकिन अभी वह सोच ही रहा था कि अब दंग रह गया है. उसके भीतर
कोई नन्हीं सी घंटी बजी है और उसका यह ख़याल ख़ुद ब ख़ुद पहले तक पहुंच कर और
वहां से जवाब लेकर लौट आया है. दूसरा चौंक कर देखता है कि वह पहले के बिल्कुल
नजदीक पहुंच गया है. उसके भीतर फिर वही नन्हीं घंटी बजती है:
‘‘हमसे मुक़ाबला करोगे तो मार्केट में टिक नहीं
पाओगे... बेहतर होगा कि हमारे साथ मिल जाओ’’.
दूसरा देखता है कि पहले वाले का फ्रेम इतना चौड़ा हो गया है कि दोनों अपनी-अपनी साइटों से उठ कर अचानक एक दूसरे के बाजू में आकर बैठ गए हैं. अब दोनों एक साथ मुस्कुरा रहे हैं. उनके पीछे दुनिया के किसी महानगर की इकतालिसवीं मंजिल पर अपने ऑफि़स में बैठा सुशील कृपलानी टॉप मैनेजमेंट को मेल लिख रहा है: ‘हैप्पी टू शेअर विद यू दैट चोपड़ाज हैव एग्रीड टू मर्ज विद अस, फ़ायनली’. मेल भेजने के बाद उसने यह सूचना निचले स्टाफ़ को फॉरवर्ड कर दी है, और दो मिनट बाद ही साइट पर ख़बर दमकने लगी है:
‘जूतों की प्रसिद्ध कंपनी चोपड़ा शूज का लकार्ट में विलय’. कृपलानी के चेहरे पर विजय की तिरछी मुस्कान उभरी है.
वह ख़ुशी में चुटकी बजा रहा है. चुटकी के साथ उसके मुंह से शायद ‘यस, वी कैन’ भी निकला है, लेकिन वह चुटकी की आवाज़ में दब गया है. अभी तक पहला और दूसरा सिर्फ़ जूते की तरह मुस्कुरा रहे थे. अब दोनों आदमी की तरह हंसने लगे हैं.
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naresh.goswami@gmail.com
naresh.goswami@gmail.com
आज के कथा-समय को समृद्ध करती हुई कहानी।
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी। पर अब फेसबुक और गूगल को पता है कि नरेश गोस्वामी ने यह कहानी लिखी है!! उनकी तीखी नज़र आप पर रहेगी!! वे यह भी जानते हैं किन लोगों ने इसे पढ़ा है!! अब वो मोबाइल आने वाले हैं जो, जब भी हम सोशल मीडिया पर होंगे वे हमारा वीडियो बनाते रहेंगे जिसे ये कम्पनियां या उनके अल्गोरिथम उसी वक्त देख पायेंगे। इस तरह उस वक्त वे हमारे चेहरे के हावभाव भी देख पायेंगे और उनका उपयोग करेंगे। गूगल के satellite हमें हमारे घर में कमरों के अन्दर भी देख सकते हैं। इन्हीं चीज़ों से तंग आकर 2012 में मैंने एक कविता लिखी थी जो शायद "समालोचन" में भी छपी है:
जवाब देंहटाएंचहुँ ओर आँखे हैं।
मैं छिपता फिरता हूँ।
वे सब मुझे देख रही हैं।
चाहें तो
वे सड़क पर भी
मुझे नग्न कर सकती हैं,
झाँक सकती हैं
मेरी आत्मा में।
अब
घर में भी
मैं ढँका हुआ नहीं हूँ।
वे छत को चीर सकती हैं।
तीख़ी है उनकी नज़र
और उनकी पहुँच
लम्बी है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 09 नवम्बर 2019 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
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