कथा-गाथा : सफारी : दी जंगल यात्रा : नरेश गोस्वामी





प्राची अपनी सहेलियों शालिनी और सौम्या के साथ जंगल-यात्रा पर सपरिवार निकलती तो है, पर ये लोग कहाँ फंस जाते हैंताकत, पूंजी और मनोविज्ञान के इस खेल में क्या ये खुद आखेट नहीं बन जाते ?

नरेश गोस्वामी की कहानी सफारी : दी जंगल यात्रा अंत तक अपनी दिलचस्पी बनाये रखती है और सबल ढंग से सफारी के नाम पर हो रहे खेल का गणित सामने लाती है. और एक बड़ा सवाल छोड़ जाती है कि यह प्रकृति और जीव-जानवर मनुष्यों के लिए नहीं बने हैं, इनका अपना खुद का जीवन है. 



सफारी :  दी   जंगल   यात्रा                          
नरेश गोस्‍वामी






भी तक यह होता आ रहा था कि वैभव और प्राची अपने बेटी अप्‍पी के साथ साल में दो बार पहाड़ पर जाया करते थे. एक बार गर्मी के अंत और दूसरी बार सर्दियों की शुरुआत में. उनके चलने का कार्यक्रम तब बनता जब ज्‍यादातर परिचित, रिश्‍तेदार और दोस्‍त मई-जून की छुट्टियों में घूम घाम कर टूर की बातें भूलने लगते थे. प्राची से उसकी फ्रेंड शालिनी अक्‍सर कहा करती थी, ‘यार, तुम लोगों का कुछ समझ नहीं आता... जब जाने का पीक टाइम होता है तो तुम दिल्‍ली में सड़ते हो और जब ख़ुद यहां बारिश होने लगती है तो तुम लोग पहाड़ का प्रोग्रैम बना रहे होते हो’. इस पर सौम्‍या कान के पास तर्जनी को ख़ास गोल-गोल ढंग से घुमाते हुए ठहाका लगाकर कहती, ‘बेबी, हस्‍बैंड आर्टिस्‍ट हो तो बीवी भी थोड़ा खिसक जाती है’. और प्राची गुस्‍सा दिखाते हुए हंस कर रह जाती.

इसलिए, एक दिन जब शालिनी और सौम्‍या ने प्राची से कॉमन टूर बनाने के लिए कहा तो प्राची ने वैभव से बात किए बिना ही कह दिया कि, ‘ठीक है, अब की बार तुम लोगों के साथ पक्‍का रहा’. हालांकि रात के खाने के बाद उन दोनों के साथ सोसायटी के पार्क में घूमते हुए प्राची ने कॉमन टूर के प्रस्‍ताव पर हां तो भर दी थी, लेकिन अपने भीतर उसे कुछ बुरा भी लगा था कि वह वैभव की राय जाने बिना हां कर रही है. वह जानती है कि वैभव अपने तमाम अनगढ़पन, समाज के स्‍वीकृत मूल्‍यों के प्रति अपने विद्रोही स्‍वभावख़ास तौर पर नव-धनिकों के प्रति लगभग असहनीय घृणा के बावजूद रोज़मर्रा के व्‍यवहार में लोगों से बोलचाल का रिश्‍ता बनाए रखता है. लेकिन, फिर भी वह किसी के इतना नजदीक नहीं जाता कि कोई उसके जीवन में दखल करने लगे और घर में सास-बहू या आर्ट ऑफ़ लिविंग टाइप माहौल बनने लगे. उसने अलग तरह का जीवन चुना है तो उसे बनाए रखने के लिए सजग भी रहता है. वह यह भी जानती थी कि वैभव कभी यह नौबत नहीं आने देता कि उसे शर्मिंदा होना पड़े.
       
घर लौटते ही प्राची सीधे वैभव के कमरे की ओर दौड़ गयी. वह यूट्यूब पर कोई डॉक्‍यूमेंट्री देख रहा था. प्राची ने एक क्षण के लिए वैभव के मूड का जायज़ा लिया और जब आश्‍वस्‍त हो गयी तो बिना भूमिका के सारी बात कह डाली: ‘वैभव, थोड़ी गड़बड़ हो गयी यार. मैंने तुमसे पूछे बिना ही कमिट कर लिया’. वैभव अभी उसकी बात सुनने के लिए व्‍यवस्थित नहीं हो पाया था. उसने फिल्‍म को पॉज करते हुए पूछा: सॉरी, फिर से बताओ. मैं ठीक से सुन नहीं पाया’. प्राची को लगा कि वह बात कहने से पहले जो भूमिका नहीं बांध पाई, वह शायद अब खुद ही बंध गयी है.



‘अरे, हुआ क्‍या कि अभी जब मैं, शालिनी और सौम्‍या पार्क में घूम रहे थे तो दोनों कहने लगी कि चलो इस बार कॉर्बेट चलते हैं. इससे पहले कि मैं कुछ सोच पाती दोनों ने सब कुछ फिक्‍स ही कर दिया...’. प्राची ने वैभव की प्रतिक्रिया देखने के लिए अपनी बात में बीच में छोड़ दी.   वैभव कुछ क्षण चुप बैठा रहा और फिर उसके बाएं होठों से एक मुस्‍कान चलकर पूरे चेहरे पर फैल गयी. प्राची जानती थी कि वैभव जब किसी तर्क, प्रस्‍ताव या किसी की बात को ध्‍वस्‍त करना शुरु करता है तो उसके चेहरे पर ठीक ऐसी ही मुस्‍कान उभरती है.



‘यानी मोहतरमा’, वैभव ने शब्‍दों को चबाते हुए कहा, ‘आखिर आप भी इस टाइगर के खेल में फंस गयी’. यह सुनते ही प्राची के माथे की नसें खिंच आईं.
‘टाइगर का खेल... मैं कुछ समझ नहीं पाई’. प्राची असमंजस में खड़ी थी.
‘अरे, पहले तुम बैठो. ये कोई रहस्‍यमय बात नहीं है’. वैभव ने प्राची की बेचैनी दूर करने की गरज से कहा.
‘मिसेज शालिनी और मिसेज सौम्‍या का परिवार वहां टाइगर देखने के लिए ही जा रहे हैं ना ’!. वैभव ने अपने अनुमान को सवाल की शक़्ल में रखते हुए कहा.



प्राची को पूरी बात समझ आई तो वह बेधड़क होकर बोली: हां, और किस बात के लिए कॉर्बेट जाते हैं लोग... सारा चार्म तो टाइगर का ही होता है’. उसकी बात ख़त्‍म होते ही वैभव लगभग विजयी भाव से ताली बजाते हुए बोला: ‘देखो! हुई न वही बात. मैं ठीक यही सोच रहा था... कॉर्बेट का मतलब टाइगर’. और वह ठठाकर हंस दिया.



प्राची को लगा कि बात फिर घूम गयी है. ‘यार, तुम पहेली मत बुझाओ. सीधे बताओ कि ये कॉर्बेट और टाइगर का चक्‍कर क्‍या है’. प्राची ने खीझते हुए कहा.



‘भई, कहा ना कि कोई ख़ास चक्‍कर नहीं है. बस इतना पूछना चाहता हूं कि क्‍या तुम भी सिर्फ टाइगर को देखने के लिए ही जा रही हो?



‘नहीं, तुम्‍हें पता है कि मैं कोई ख़ास टाइगर-प्रेमी नहीं हूं... और हुजूर के साथ इतने साल रहने के बाद किस की हिम्‍मत है कि टाइगर में दिलचस्‍पी ले सके’. प्राची ने वैभव को चिढ़ाते हुए कहा.



‘तो फिर एक काम और कर लो. अप्‍पी खेल कर आ जाए तो उससे पूछ लो कि वह इस टूर में कितनी इंटे‍रेस्टिड हैं’. वैभव ने पूरा कार्यक्रम प्राची के हाथों में सौंप दिया.

प्राची ने राहत की सांस ली कि वैभव को कम से कम शालिनी और सौम्‍या के परिवारों के साथ जाने में कोई मानसिक या सैद्धांतिक दिक़्क़त नहीं है. फिर भी वह एक बार और पक्‍का करना चाहती थी कि वैभव को शालिनी के वकील और सौम्‍या के सीए पति के साथ एडजस्‍ट करने में कोई समस्‍या तो नहीं होगी. प्राची जानती है कि वैभव उस तरह का भी नकचढ़ा नहीं है. सोसायटी में होली और लोहड़ी जैसे त्‍योहारों पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में बहुत खिलंदड़ अंदाज़ में न सही, लेकिन शामिल ज़रूर होता है. और इन मौकों पर उन लोगों के साथ एक दो ड्रिंक भी मार लेता है.

लेकिन किसी टूर में साथ जाने का यह पहला अवसर है. किसी को एक दो घंटों के लिए झेलना एक बात है लेकिन किसी के साथ पूरे दो दिन रहना और बात होती है. पता नहीं कौन कब किससे सनक खा जाए! इसलिए वह वैभव से सब कुछ स्‍पष्‍ट जानना चाहती थी.

‘जहां तक मेरी बात है तो तुम यह जानती हो कि एक बार जब मैं समझ जाता हूं कि मुझे फलां  आदमी के साथ निभानी है तो मैं ख़ुद को ढीला छोड़ देता हूं. इसलिए मेरी ओर से बेफिक्र रहो’, और मेरा तो यह सौभाग्‍य होगा कि इस उम्र में दो सुंदरियों की संगत का अवसर मिलेगा...’ वैभव ने आखि़री बात प्राची की तरफ़ दाईं आंख दबाते हुए की थी और दोनों इस तरह हंसे थे जिस तरह कॉलेज जाने वाले लड़के सेक्‍स की किसी बात पर ठहाके लगाते हुए दोहरे हो जाते हैं.



‘लेकिन अप्‍पी से बात ज़रूर कर लेना’. हंसी की लहर गिरते ही वैभव ने कहा.



प्राची वैभव की ओर से तो आश्‍वस्‍त हो गयी. लेकिन अप्‍पी जिस तूफानी दौर से गुजर रही है, उसमें उसके जिद्दीपन से निपटना मुश्किल है. एक दम बाप पर गयी है. अभी पंद्रहवें साल में चल रही है लेकिन रस्किन बांड को पूरा चाट चुकी है. एक बार वैभव ने कहा था कि प्रेमचंद को पढ़े बिना हमारी संवेदनशीलता विकसित नहीं हो सकती तो एक हफ़्ते में प्रेमचंद की तीस कहानियां चट कर गयी. पहाड़ पर जाते हैं तो प्राची देर तक सोई रहती है और ये मोहतरमा अपने पापा के साथ सुबह-सुबह सैर पर निकल जाती है. लौट कर आती है तो हाथों में और जेबों में तरह-तरह के फूल, पत्तियां, सूखी टहनियां और छोटे-छोटे पत्‍थर भरे रहते हैं. 



एक बार तो सुबह के निकले दोपहर एक बजे गेस्‍ट हाउस पहुंचे. प्राची चिंतित हो गयी. उसने कई बार फ़ोन किया, लेकिन मिल नहीं पाया. आखि़र में अप्‍पी का ही फ़ोन आया. वह कुछ खाते हुए फ़ोन कर रही थी. प्राची चिल्‍लाने को हुई लेकिन फिर फोन पर स्‍थानीय बोली बोलते बच्‍चों और औरतों की आवाज़ें सुनाई दी तो संभल गयी. गुस्‍से में सिर्फ इतना कह पाई कि ये क्‍या तरीका होता है. लेकिन मोहतरमा खाए जा रही थी और बताती जा रही थी कि, ‘ममा, सुबह जब पापा के साथ जा रही थी तो रास्‍ते में घसियारिनें मिल गयीं. पापा उनसे बातें करने लगें. बात करते करते उनमें एक महिला ने बताया कि उनका गांव वहीं नीचे है. बस पापा ने कहा कि चाय नहीं पिलाओगे और उनके साथ गांव में पहुंच गए. और अब यहीं बैठकर खिचड़ी खा रहे हैं’. अप्‍पी हंसती जा रही थी.




अप्‍पी की रूचियों को देखकर प्राची थोड़ा शंकित थी. जैसे वैभव परिचित जगहों या हिल स्‍टशनों पर जाने की बात पर नाक-भौं सिकोड़ने लगता है, वैसे ही अप्‍पी भी कहने लगी है कि  ‘ममा, अगर यहां से निकल कर भी शोर शराबे में ही जाना है तो यहीं क्‍या बुरा है. अगर कहीं जा ही रहे हो तो ऐसी जगह जाओ जहां रात को आसमान में तारे देख सकें’.







(दो)
अगले हफ़्ते शुक्रवार के दिन जब सुबह पांच बजे ‘ला ग्‍लोरिया’ से तीन गाडि़यां निकली तो उनमें सबसे आगे वैभव-प्राची की वैगन आर, उससे पीछे शालिनी की डस्‍टर और सबसे पीछे सौम्‍या की होंडा सिटी थी. प्राची ने वैभव को तैयारी के दौरान ही आगाह कर दिया था कि वह टाइगर वाली बात पर मज़ाक का माहौल न बनाए. उसे पता था कि वैभव और अप्‍पी की जब जुगलबंदी होती है तो वे किसी का भी विकेट उखाड़ सकते हैं. इसलिए रामनगर पहुंचने तक वैभव कभी जिम कॉर्बेट के बचपन के बारे में बताता रहा. कभी दि मैनईटिंग लेपर्ड ऑफ़ रूद्रप्रयाग की रोमांचक कथाएं सुनाता रहा, कभी तराई और पहाड़ों के भूगोल और वन‍स्‍पतियों का अंतर बताता रहा और बीच में ड्रार्इविंग की जि़म्‍मेदारी प्राची को सौंपकर पिछली सीट पर खर्राटे भरता रहा.

चूंकि बुकिंग पहले ही करा ली गयी थी इसलिए सभी लोग सीधे कॉर्बेट पहुंचे. लेकिन दो बजे सारे लोग पस्‍त हो चुके थे. वैसे भी कॉर्बेट के अंदर जिप्सियों से यात्रा कराने वाले लोग इस समय आमतौर पर आराम फरमा रहे होते हैं. इसलिए रिसोर्ट में पहुंचते ही सब लोग अपने-अपने कमरों में चित्‍त हो गए. टाइगर के बारे में वैभव ने पहली टिप्‍पणी यहीं की. प्राची और अप्‍पी जब अपना सामान रखकर बैड पर धराशायी हुए तो वैभव अपने जूते खोलते हुए कह रहा था: तो अब शुरु होगा आदमी और टाइगर का मुकाबला! ढणटणण...

अप्‍पी बहुत थकी हुई लग रही थी लेकिन वैभव की बात सुनते ही खिलखिला पड़ी. अप्‍पी की हंसी सुनकर प्राची एक क्षण के लिए असहज हो गयी. उसे लगा कि अगर वैभव और अप्‍पी की यह जुगलबंदी कल सफ़ारी के वक़्त शुरु हो गयी तो पता नहीं कौन नाराज़ हो जाए. इसलिए प्राची ने बिस्‍तर पर लेटे लेटे फरमान जारी कर दिया: ‘तुम दोनों लोग एक बात ध्‍यान से सुन लो. कल कुछ ऐसी खुसर-पुसर शुरु मत कर देना कि किसी का मूड बिगड़ जाए’.

‘जी, हुजूरे आला’. वैभव ने एक हाथ को लंबा झुलाते हुए दरबारी अंदाज़ में कहा तो कमरे में थकान और उनींदेपन के बावजूद ठहाका गूंज गया.

उस दिन शाम का और कोई कार्यक्रम संभव नहीं था. रिसोर्ट के मैनेजर और बाक़ी लोगों से पूछताछ के बाद पता लगा कि इस समय केवल गर्जिया माता के मंदिर में जाया जा सकता है. रिसोर्ट में काम करने वाले एक पहाड़ी लड़के ने बताया कि गर्जिया माता की मान्‍यता बहुत दूर-दूर तक है. इस सिलसिले में उसने कई किस्‍से ऐसे सुनाए जिन्‍हें आप किसी भी धार्मिक स्‍थल पर सुन सकते हैं. मसलन, फलां दिल्‍ली का बहुत बड़ा उद्योगपति है, लेकिन बंदा हर सीजन में मां की मनौती के लिए आता है या फलां मुंबई का बड़ा बिल्‍डर है लेकिन गर्जिया माता पर बहुत आस्‍था रखता है, और साल में दो बार जरूर यहां आता है.

मंदिर जाने और वहां से लौटने के दौरान यह लगभग तय हो चुका था कि सब लोग खुले में एक साथ डिनर करेंगे ताकि इस बहाने अगले दिन के कार्यक्रम पर भी बात हो जाए. सामने लॉन में सबके लिए कुर्सियां डाल दी गयी. एक कोने में ड्रिंक का साजोसामान तैयार था.

वकील साहब, सीए, शालिनी, सौम्‍या और उनके बच्‍चे कल की सफ़ारी को लेकर बेहद उत्‍सुक थे. थोड़ी देर बाद पूरा माहौल टाइगरमय हो गया. कोई उसकी दौड़ने की गति पर टिप्‍पणी कर रहा था, कोई उसके शिकार के तरीके का एक्‍सपर्ट बना हुआ था. अगर लॉन से दूर खड़ा व्‍यक्ति उनकी बात सुनता तो फौरन समझ जाता कि यहां कोई जंगल देखने नहीं सब टाइगर देखने आए हैं.




(तीन)



अगले दिन सुबह ग्‍यारह बजे जब तीनों परिवार जिप्सियों पर सवार होकर बिजरानी जोन में दाखिल होने के लिए तैयारी कर रहे थे तो वैभव ने अपनी जिप्‍सी जानबूझकर सबसे पीछे रखवाई. प्राची वैभव की हरकत को तुरंत ताड़ गयी कि वह और अप्‍पी अपनी जुगलबंदी से बाज नहीं आएगा. लेकिन प्राची यह सोचकर चिंतामुक्‍त हो गयी थी कि सब लोग अलग-अलग जिप्सियों में हैं. इसीलिए उनकी बात किसी के कानों में नहीं पड़ेंगी.



उनकी जिप्‍सी में ड्राईवर के अलावा दो और लड़के थे. लड़कों की उम्र बमुश्किल बीस-इक्‍कीस साल रही होगी. गोरे रंग और इकहरे बदन वाले इन लड़कों ने कारगो और टीशर्ट पहन रखी थी. देखने-भालने में किसी टूरिस्‍ट से कम नहीं लग रहे थे. अच्‍छी बात ये थी कि मैदानी लड़कों की तरह वे जिप्‍सी में बैठी सवारियों में कोई दिलचस्‍पी नहीं दिखा रहे थे. पक्‍के प्रोफ़ेशनल. जब आपस में बोलते तो पहाड़ी में बात करते लेकिन एकदम शहरी हिंदी-हिंगलिश में भी जवाब के लिए तैयार रहते थे. दो नाकों पर चैकिंग और वन-अधिकारियों के निर्देश सुनने के बाद जब जिप्‍सी वाक़ई जंगल में दाखिल हुई तो वैभव ने गहरी सांस खींचते हुए इन लड़कों की ओर सवाल उछाल दिया: ‘गुरु, एक बात बताओ यहां आमतौर पर टाइगर मिलने की पॉसिबिलिटी कितनी रहती है’.



लड़के शायद इतनी जल्‍दी सवालबाजी के लिए तैयार नहीं थे. शुरू में ड्राईवर कुछ कहना चाहता था, लेकिन फिर वह चुप लगा गया. कुछ नापतौल के बाद एक लड़के ने कहना शुरू किया:         



‘सर, सारा चांस का गेम है. कभी एक ही राउंड में दो बार मिल जाता है और कभी कई महीने दिखाई नहीं देता’.



‘पर क्‍या तुम लोगों को कुछ आइडिया रहता है कि टाइगर कब-कब या कहां मिल सकता है?’     
लड़कों से इस तरह के सवाल कम ही लोग पूछते होंगे. इसलिए उनमें से एक ने बहुत संकोच के साथ कहा: सर, ये हम कैसे जान सकते हैं. जंगली जानवर है. उसकी मर्जी, पता नहीं कहां मिल जाएं’.



जिप्‍सी जैसे-जैसे आगे बढ़ती जा रही थी जंगल गहराता जा रहा था. दो-तीन किलोमीटर संकरे रास्‍ते पर चलने के बाद अचानक एक खुला मैदान आया तो ड्राईवर ने गाड़ी एक तरफ़ कर ली. प्राची ने ध्‍यान दिया कि शालिनी और सौम्‍या का परिवार जिन गाडि़यों में था, वे भी आसपास खड़ी थीं. उस खुली जगह के टीले वाले हिस्‍से में एक मचान सा बना था. अप्‍पी ने प्राची का हाथ पकड़ते हुए बताया कि शालिनी और सौम्‍या आंटी ऊपर मचान पर खड़ी हाथ हिला कर उन्‍हें ऊपर आने के लिए कह रही हैं. वकील और सीए साहब भी वहीं नज़र आ रहे थे. हां, बच्‍चे वहीं मचान के आधार के पास खड़े दोस्‍तो से फ़ोन पर बतियाने और सेल्‍फ़ी लेने में व्‍यस्‍त थे.



प्राची ने अभ्‍यस्‍त नज़र से एक बार वैभव की तरफ़ देखा. वैभव ने उसी अभ्‍यस्‍त नजर से संकेत में कहा कि वह ख़ुद ऊपर चली जाए और अप्‍पी को वहीं रहने दे. प्राची मचान की ओर बढ़ी तो वैभव और अप्‍पी टूरिस्‍टों की भीड़ से कुछ दूर जाकर खड़े हो गए.



‘तुम कुछ देख रही हो?’ वैभव ने अप्‍पी से पूछा.
‘क्‍या’



‘यह खुलापन, खुली हवा, जंगल की असंख्‍य आवाज़ें, हिरण, लंगूर, बारहसिंगा, जंगली सूअर, इतने अलग-अलग रंगों की चिडि़यां और इनके अलावा अनाम और दिखाई न देने वाले जीव-जंतु— बस यही है जंगल... जंगल का मतलब टाइगर नहीं होता बाबू!’.



अप्‍पी अपने बाइनॉक्‍यूलर से कहीं ओर देख रही थी. उसने ऐसे ही कहा, ‘हां, पापा! वह देखो, हिरण के उस बच्‍चे को... उसकी पूंछ कैसे हिल रही है... बिल्‍कुल ऐसे जैसे कार के पिछले शीशे का टुन्‍नू सा वाईपर गोल-गोल घूमता रहता है’.



वैभव को लगा कि उसे अप्‍पी को कुछ बताने की ज़रूरत नहीं रह गयी है.



थोड़ी देर बाद हलचल सी शुरु हुई. जिप्‍सी वाले बंदे लोगों को चलने का संकेत कर रहे थे. मचान पर चढ़े लोग धीरे-धीरे नीचे उतरने लगे. चूंकि सबसे पास उन्‍हीं की गाड़ी खड़ी थी इ‍सलिए वैभव और अप्‍पी सबसे पहले बैठे.



गाडि़यों का कारवां फिर आगे सरकने लगा.  रास्‍ते के एक तरफ़ पलाश के पेड़ों की कतार चली गयी थी. नीचे दूर तक लाल फूलों का गलीचा बिछा था. हवा थोड़ा अब भी गर्म थी लेकिन खुलेपन और जब तब रास्‍ते के बीच पड़ती छांव के कारण असहनीय महसूस नहीं  हो रही थी.



‘ममा, वहां देखो’. अप्‍पी ने प्राची का हाथ दबाते हुए इशारा किया. सामने के मोड़ से दायीं ओर ढलान से नीचे हाथियों का एक झुण्‍ड नदी में नहा रहा था. हाथी का एक बहुत छोटा बच्‍चा शायद पानी में नहीं जाना चाहता था जबकि उसकी मां उसे पीछे से धकेले जा रही थी. अप्‍पी इस दृश्‍य से इतनी आह्लादित थी कि प्राची से गाड़ी रुकवाने के लिए कहने लगी.



‘ममा, थोड़ी देर यहीं रुककर देखते हैं ना’. अप्‍पी जिद कर रही थी.



‘और उस पहाड़ से हाथी को तो देखो, उसने अपना एक कान कैसे हमारी तरफ़ कर रखा है’    यह आवाज़ वैभव की थी.



‘तुम्‍हें पता है अप्‍पी, वह शायद हाथियों के इस झुण्‍ड का लीडर है. वह जिस तरह खड़ा है, उसका मतलब ये है कि वह आसपास की चीज़ों पर नज़र रखे हुए है’. वैभव ने जैसे अप्‍पी को और प्रोत्‍साहित करते हुए कहा.



प्राची ने देखा कि बाकी दोनों गाडि़यां आगे निकल गयी हैं. और ड्राईवर उनका इंतज़ार कर रहे हैं. वे हाथियों को नहाता छोड़ आगे बढ़ गए हैं. अप्‍पी शायद इस दृश्‍य को अभी और देखना चाहती थी. ‘क्‍या उन लोगों को यह दृश्‍य अच्‍छा नहीं लगा’. अप्‍पी ने प्राची को खीझ भरी निगाह से देखते हुए कहा. ‘बेटा, सबके अपने-अपने इंटेरेस्‍ट होते हैं’. प्राची ने अप्‍पी को समझाने की कोशिश करते हुए कहा. वैभव बहुत देर से हर गतिविधी पर नज़र रखे हुए था. वह अचानक बोल उठा: बाबू, वे यहां हाथी देखने नहीं आए हैं, उन्‍हें सिर्फ टाइगर चाहिए. मैंने तुम्‍हारी ममा को पहले भी बताया था’. लेकिन वैभव की बात में कोई उलाहना नहीं था.



वैभव की जिप्‍सी बाक़ी गाडि़यों के पास पहुंची तो वकील और सीए साहब सफारी कराने वाले लड़कों से कह रहे थे: अबे यार, एक घंटा हो चुका है धूल फांकते हुए... कहीं कुछ दिखाई भी देगा या इन्‍हीं चिडि़यों, हिरण और हाथियों को ही देखते रहेंगे’. वैभव ने देखा कि उनके चेहरों पर धूल के अलावा खीझ भी चिपकी हुई है. तुनकमिजाज़ टूरिस्‍टों से निपटना लड़कों के लिए रोज का काम था. वे इस काम में कब के दक्ष हो चुके थे.



‘सर, ऐसा है कि सब कुछ भाग्‍य पर डिपेंड करता है. अभी पिछले महीने इसी ट्रैक से गुजर रहे थे. कोई सोच भी नहीं सकता था कि वहां बीच वाले नाले से अचानक टाइगर उछला और जिप्‍सी के ऊपर से छलांग मारता हुआ गुजर गया’. वकील वाली जिप्‍सी पर खड़ा लड़का कह रहा था.



‘अबे, रावत, तुझे पिछले साल की याद है जब हम कलकत्‍ता वाली पार्टी के साथ जा रहे थे...बॉस, पूरी ट्रिप खाली जा रही थी. यूं मानों की आखिरी नाके पर पहुंच लिए थे कि तभी वह पेड़ो के बीच दिखाई दिया. और बॉस गाड़ी के पीछे पड़ गया. वो तो आशीष ने स्‍पीड पर पूरा पंजा गड़ा दिया. यूं मानों कि गाड़ी तीन सेकंड में दो सौ की रफ़्तार में पहुंचा दी वर्ना उस दिन तो खेल ख़त्‍म था भाई’. सीए वाली जिप्‍सी पर खड़े लड़के ने पिछला किस्‍सा लपक कर बात आगे बढ़ा थी.



लड़कों ने थोड़ी देर के लिए टाइगर की अनुपस्थिति को उसके किस्‍से से पूरा कर दिया था. सारे लोग उनकी तरफ़ ठगे से देखे जा रहे थे. अभी कुछ क्षण पहले जिन चेहरों पर ऊब और खीझ झलक रही थी, उन पर अचानक रोमांच उतर आया था.



‘तो सर जंगल में कुछ भी पहले से तय नहीं होता’. इस बार वैभव की जीप वाले लड़के ने बात का समाहार करते हुए कहा. ज्ञान और रोमांच की इस खुराक के बाद वकील और सीए साहब शांत हो गए थे और गाडि़यां फिर आगे बढ़ने लगी थीं.



प्राची ने देखा कि वैभव के होटों पर एक टेढ़ी मुस्‍कान उभर रही है. वह जानती है कि वैभव के चेहरे पर इस तरह की मुस्‍कान तब आती है जब वह कुछ भविष्‍यवाणी के लहजे़ में कहना चाहता है. जैसे ही उनकी और अगली गाड़ी में थोड़ा फासला बढ़ा वैभव प्राची के कान के पास जाकर फुसफुसाने लगा: ‘अभी देखना, पांच-‍दस मिनट बाद गाडि़या फिर रोकी जाएंगी. जिप्‍सी वाले अचानक होटों पर उंगली रखकर सबको चुप हो जाने का इशारा करेंगे. सबको लगेगा कि टाइगर यहीं आसपास है. हकीकत ये है कि टाइगर कहीं नहीं होगा, लेकिन उनके पास रोमांच पैदा करने का आखिरी मौक़ा यही होता है’.



‘तुम ये चीज़ें कहां से सोच कर लाते हो’? प्राची की हंसी छूटते-छूटते बची. उसने हंसी रोकने के लिए अपने निचले होट पर दांत गड़ा दिए.



‘नहीं, मैं मज़ाक नहीं कर रहा... देखना अब कुछ-कुछ ऐसा ही होने वाला है’. वैभव ने अपना मुंह प्राची के कान से हटा कर गर्दन सीधी करते हुए और इस बीच सो चुकी अप्‍पी को दुबारा कंधे से लगाते हुए कहा.



इसके बाद बमुश्किल पांच मिनट बीते होंगे कि सामने चल रही गाडि़यां रुकने लगीं. प्राची ने वैभव की तरफ़ देखा. वह विस्मित थी और वैभव के चेहरे पर वही टेढ़ी मु‍स्‍कान उतर आई.



‘अभी तो पूरे दस मिनट भी नहीं हुए’. अब प्राची भी मुस्‍कुरा रही थी.



जिप्‍सी वाले लड़कों ने एक दूसरे को गाडि़यों के इंजन बंद करने का इशारा किया. इंजन बंद होते ही जंगल का सन्‍नाटा बोलने लगा. लड़़के बड़े-बड़े कद्दावर पेड़ों और झाडि़यों के बीच टकटकी लगाए थे. पत्तियों पर किसी जानवर के दबे पांव चलने की आवाज़ हुई. सब लोग दम साध कर बैठ गए. पांच मिनट के लिए सब कुछ निस्‍पंद हो गया. सब की निगाहें उस अजूबे पर लगी थी जिसकी प्रत्‍याशा में लोगबाग पिछले दो घंटों से टेढ़े-मेढ़े रास्‍ते नापते आ रहे थे. अंदर अचानक किसी पक्षी ने पंख फड़फ़डाए तो झाडि़यों में खड़ा हिरण कूदकर बाहर की ओर दौड़ गया. इस आवाज़ से सारे लोग अचानक सिहर गए थे. लेकिन जब उन्‍होंने हिरण को कुदान भरते देखा तो चेहरों पर तना रोमांच पल भर में फुर्र हो गया. गाडि़यां दुबारा आगे बढ़ीं तो वैभव प्राची के कान में फिर टेढ़ी मुस्‍कान के साथ फुसफुसाया: ‘शायद गलत आइटम की डिलिवरी हो गयी है’. 



रास्‍ता पूरा होने के बाद जिप्स्यिों ने जैसे ही आखिरी मोड़ लिया तो सामने बिजरानी जोन का प्रवेश द्वार दिखाई दे रहा था. मतलब सफारी समाप्‍त हो गयी थी.



द्वार पर पहुंचकर जब लोग गाडि़यों से उतरे तो लग रहा था जैसे कहीं लुट पिट कर आ रहे हैं. वकील साहब शायद पहले से जले-भुने बैठे थे. वे टांग सीधी करते हुए बड़बड़ा रहे थे: साला, पांच हज़ार रूपयों में आग लग गयी और भैं... टाइगर की पूंछ तक दिखाई नहीं दी’. सीए साहब मुंह पर पानी के छींटे मारते हुए वैभव से कह रहे थे: ‘सब साला फुद्दू बनाने का खेल है’. शालिनी टिश्‍यू पेपर से अपने गॉगल्‍स की धूल साफ़ कर रही थी. सौम्‍या वॉशरूम के लिए पूछ रही थी और उनके बच्‍चे नीचे उतरते ही अपने-अपने फ़ोन पर पिल पड़े थे. अप्‍पी अभी थोड़ी देर पहले जगी थी. इसलिए सुस्‍ती के कारण प्राची के कंधे से लगी सब कुछ निर्विकार भाव से देख रही थी.


(चार)
उस दिन शाम को अपने स्‍वीट की बाल्‍कनी में बैठी प्राची वैभव से कह रही थी: मुझे यक़ीन नहीं हो रहा... तुम इतने श्‍योर कैसे थे... ये तुम्‍हारा पहले का अनुभव बोल रहा था या ?

वैभव ने प्राची की बात बीच में काटते हुए कहा: सिर्फ अनुभव की बात नहीं है यार. दरअसल, यह एक खेल बन चुका है. टाइगर मतलब ताकत, आक्रामकता और बला की तेज़ी... टूरिज्‍म, जंगल सफारी और रिसोर्ट्स के इस खेल को ध्‍यान से देखो तो टाइगर अब जानवर नहीं मर्द बन चुका है. यह पूंजी और मनोविज्ञान का बड़ा महीन खेल है जो चुपके-चुपके यह सिखाता है कि शिकार पर नज़र रखो और उसे प्रोफेशनली एग्‍ज़ीक्‍यूट करो. हमें रात दिन टाइगर की तस्‍वीरें दिखाई जाती हैं. कभी शिकार पर कूदने से पहली उसकी आंखों में चमकती ठंड़ी निर्णायकता दिखाई जाती है, कभी जमीन से ऊपर हवा में उसकी खिंची और तनी हुई देह दिखाई जाती है, कभी उसके पंजों के निशान छापकर टीशर्ट तैयार की जाती हैं... और मजे़ की बात ये है कि जिस टाइगर के इर्दगिर्द यह खेल रचा गया है, उसे इससे कोई मतलब नहीं है. जिस समय लोग टाइगर की झलक पाने के लिए जंगल में घूम रहे होते हैं, वह कहीं सोया पड़ा रहता है. कुल बात ये है कि लोगबाग टाइगर की छवि, उसके बारे में सुनी हुई बातों और किस्‍सों में जीते हैं. लोगों को लगता है कि हमने सफारी के पैसे दे दिए हैं तो हमें टाइगर दिख ही जाएगा. लेकिन वे यह बात भूल जाते हैं कि टाइगर हो या कोई और जानवर, वह उनके लिए नहीं अपने लिए पैदा होता है....


बात करते हुए दोनों को ध्‍यान ही नहीं रहा कि सूरज डूबने लगा है और जंगल चिडियों और अनाम जीव-जंतुओं की आवाज़ों से भरने लगा है.

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नरेश गोस्‍वामी  

समाज विज्ञान विश्वकोश (सं. अभय कुमार दुबे, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली)  में पैंसठ प्रविष्टियों का योगदान; भारतीय संविधान की रचना-प्रक्रिया पर केंद्रित ग्रेनविल ऑस्टिन की क्लासिक कृति द इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन: कॉर्नरस्टोन ऑफ़ अ नेशन  का हिंदी अनुवाद-- भारतीय संविधान: राष्ट्र की आधारशिला .
सम्प्रति: सीएसडीएस, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित समाज विज्ञान की पूर्व-समीक्षित पत्रिका प्रतिमान  में सहायक संपादक.
naresh.goswami@gmail.com 

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  1. रुस्तम सिंह5 नव॰ 2018, 1:14:00 pm

    अच्छी कहानी। इस समय जंगलों और जंगली जानवरों को मनुष्य ने लगभग खत्म कर दिया है। इसलिए इस तरह की सफारियाँ बन्द कर दी जानी चाहिए और जंगली जानवरों को अकेले छोड़ दिया जाना चाहिए। हर तरह का टूरिज्म बन्द होना चाहिए, तथाकथित "इको-टूरिज्म" भी। पर व्यापारी सोच ऐसा नहीं करने देती। लोगों में भी समझ की कमी है । यह कहानी इन्हीं चीजों पर प्रकाश डालती लगती है।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-10-2018) को "इस धरा को रौशनी से जगमगायें" (चर्चा अंक-3147) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. Tewari Shiv Kishore6 नव॰ 2018, 3:40:00 pm

    कथ्य में आकर्षण होता यदि वह कहानी की स्थितियों और वार्तालाप में प्रकट होता। चूंकि वह एक चरित्र के एडिटोरियल कमेंटों के माध्यम से व्यक्त हुआ है, इसलिए उसका आकर्षण कम हो गया।

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  4. रवीन्द्र चौधरी12 नव॰ 2018, 11:30:00 pm

    नरेशजी ने जंगल और जानवरों के प्रति समाज के अधिसँख्य लोगों की सोच को बहुत अच्छे ढंग से बयान किया है.

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