जापानी भाषा के ख्यात
कथाकार हारुकी मुराकामी की कहानी ‘The Seventh Man’ का हिंदी अनुवाद सुशांत
सुप्रिय ने किया है. यह हिंदी अनुवाद ‘फ़िलिप गैब्रिएल’ और ‘जे रूबिन’ के जापानी
से अंग्रेज़ी में किए गए अनुवाद पर आधारित है.
‘The Seventh Man’ मुराकामी के कहानी संग्रह ‘Blind
Willow, Sleeping Woman’ में संकलित है जिसका अंग्रेजी में प्रकाशन 2006 में
हुआ था, इसमें 1981 से 2005 के बीच की लिखी कहानियां संग्रहीत हैं.
हारुकी मुराकामी बेहद पठनीय हैं और विश्व के कुछ बहुत लोकप्रिय कथाकारों में शामिल
हैं. यह कहानी उस आदमी की है जिसका प्रिय मित्र ‘क’ समुद्र किनारे दैत्याकार लहरों में गुम हो गया था और फिर कथा- वाचक के जीवन के
बेशकीमती साल उस घटना से पैदा हुए उतने ही डरावने दैत्याकार भावनाओं के ज्वार से
उबरने में लगे.
सातवाँ
आदमी
हारुकी
मुराकामी
अनुवाद
: सुशांत सुप्रिय
"एक ऊँची लहर मुझे लगभग बहा कर ले गई,”
सातवें आदमी ने तक़रीबन फुसफुसाते हुए कहा. “यह घटना मेरे साथ सितम्बर की एक दोपहर में घटी जब मैं दस साल का था."
(By Sougwen Chung) |
"एक ऊँची लहर मुझे लगभग बहा कर ले गई,”
सातवें आदमी ने तक़रीबन फुसफुसाते हुए कहा. “यह घटना मेरे साथ सितम्बर की एक दोपहर में घटी जब मैं दस साल का था."
वह उस रात वहाँ कहानी सुनाने वाला अंतिम आदमी था. घड़ी की सुइयाँ दस से ऊपर
बजा रही थीं. एक छोटे घेरे में सिकुड़ कर बैठे लोग बाहर अँधेरे में पश्चिम दिशा की
ओर बहने वाली तेज़ हवा का चलना सुन सकते थे. वह तेज़ हवा पेड़ों को झकझोर रही थी, खिड़कियों को बजा रही थी और एक अंतिम सीटी की आवाज़ में घर को
चीरती हुई गुज़र रही थी.
"मैंने अपने जीवन में उससे बड़ी समुद्री लहर नहीं देखी थी ," उसने कहा.
"वह एक अजीब लहर थी. एक दैत्याकार लहर." इतना कह कर वह रुका .
"मैं उस लहर की चपेट में आने से बाल-बाल बचा. लेकिन मेरे लिए जो कुछ भी
बेहद महत्त्वपूर्ण था, मेरे बदले वह लहर उस सब
को समेट कर किसी और ही दुनिया में ले गई. अपने जीवन में संतुलन पाने और इस अनुभव
से उबरने में मुझे बरसों लग गए-- वे मेरे जीवन के बेशक़ीमती बरस थे जिसकी भरपाई
क़तई सम्भव नहीं."
उस सातवें आदमी की उम्र पचपन साल के आस-पास रही होगी. वह एक दुबला-पतला और
लम्बा व्यक्ति था. उसकी मूँछें थीं और उसकी दाईं आँख की बगल में एक छोटा किंतु
गहरा लगने वाला निशान था. सम्भवत: वह निशान किसी चाकू के लगने से बना था. उसके
छोटे बाल कड़े थे और चुभने वाले सफ़ेद गुच्छों में मौजूद थे. उसके चेहरे पर ऐसा
भाव था जैसा आप उन लोगों के चेहरों पर देखते हैं जिन्हें अपने विचार व्यक्त करने
के लिए सही शब्द नहीं मिल रहे होते. हालाँकि उसके मामले में यह भाव बहुत पहले से
उसके चेहरे पर मौजूद था, जैसे वह उसके व्यक्तित्व
का अभिन्न अंग हो. उस आदमी ने धूसर ऊनी कोट के नीचे नीले रंग की एक साधारण क़मीज़
पहन रखी थी, और हर थोड़ी देर के बाद वह अपने हाथ को अपने
कॉलर तक ले जाता था. वहाँ एकत्र लोगों में से कोई भी उसका नाम नहीं जानता था,
न ही कोई यह जानता था कि उसकी आजीविका क्या थी.
उसने अपना गला साफ़ किया और पल-दो-पल के लिए उसके शब्द जैसे गहन शांति में खो
गए. सभी उसके बोलने की प्रतीक्षा करने लगे .
"मेरे मामले में वह एक दैत्याकार लहर थी ," उसने कहा. "हालाँकि आप सब के
मामले में वह चीज़ क्या होगी, यह मैं बिल्कुल नहीं बता
पाऊँगा. लेकिन मेरे मामले में उसने एक विशाल लहर का रूप ले लिया था. बिना किसी
चेतावनी के वह एक भीमकाय लहर के रूप में एक दिन अचानक ही मेरे सामने आ गई . और वह
लहर विध्वंसक थी.”
मैं समुद्र के किनारे बसे शहर 'स'
में पला-बढ़ा. वह इतना छोटा शहर था कि यदि मैं आपको उसका नाम बता भी
दूँ तो भी आपने वह नाम कभी नहीं सुना होगा. मेरे पिता वहाँ के स्थानीय चिकित्सक थे,
इसलिए मेरा बचपन आरामदेह रहा. जब से मुझे याद है, मेरा एक अभिन्न मित्र था जिसे मैं 'क' का नाम दूँगा. उसका मकान हमारे मकान के पास ही था, और
वह विद्यालय में मुझसे एक जमात पीछे था. हम लगभग भाइयों जैसे थे जो इकट्ठे घर से
विद्यालय आते-जाते थे, और हमेशा एक साथ खेलते-कूदते थे. अपनी
लम्बी मित्रता के दौरान हममें कभी एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ. हालाँकि मुझसे छह साल
बड़ा मेरा एक सगा भाई भी था, लेकिन उम्र में अंतर के अलावा
हमारे व्यक्तित्व भी अलग क़िस्म के थे. इसलिए हममें आपस में कभी भी घनिष्ठता नहीं
रही. भाई जैसा मेरा वास्तविक अनुराग अपने मित्र 'क' के प्रति ही रहा.
'क'
छोटी क़द-काठी वाला कमज़ोर-सा लड़का था. उसकी त्वचा पीले रंग की थी,
हालाँकि उसका चेहरा लगभग किसी लड़की के चेहरे जैसा सुंदर था. बोलते
समय वह थोड़ा हकलाता भी था. इसलिए जो लोग उसे नहीं जानते थे, उन्हें यह संदेह हो सकता था कि वह मंद-बुद्धि था. और क्योंकि वह बेहद
कमज़ोर-सा था, इसलिए मैं हमेशा स्कूल में या मोहल्ले में
उसके रक्षक की भूमिका निभाता था. मैं तो बड़े डील-डौल वाला, बलिष्ठ
लड़का था और सारे बच्चे मेरा आदर करते थे. लेकिन 'क' के साथ अधिक समय बिताने का मेरा मुख्य कारण यह था कि वह बेहद प्यारे और
साफ़ दिल का लड़का था. मंद-बुद्धि तो वह बिलकुल नहीं था, लेकिन
हकलाने की वजह से स्कूल में वह ज़्यादा अच्छा विद्यार्थी नहीं माना जाता था. अधिकांश
विषयों मे वह मुश्किल से ही उत्तीर्ण होता था. किंतु चित्रकला की कक्षा में उसका
कोई सानी नहीं था. पेंसिल या रंग मिलते ही वह इतने बढ़िया चित्र बनाता था कि स्वयं
शिक्षक भी चकित रह जाते थे. कई चित्र-कला प्रतियोगिताओं में उसने एक-के-बाद-एक कई
पुरस्कार जीते थे. मुझे पक्का यक़ीन है कि यदि उसने वयस्क होने तक अपनी चित्रकला
की यात्रा जारी रखी होती तो वह ज़रूर एक प्रसिद्ध चित्रकार बन गया होता.
'क'
को समुद्र के चित्र बनाना अच्छा लगता था. वह घंटों तक समुद्र-तट पर
बैठ कर समुद्र के चित्र बनाया करता था. अकसर मैं भी उसके साथ बैठ जाता और उसकी
कूची की तेज़ और सटीक क्रिया को देखता. मैं हैरान हो कर सोचता कि कुछ ही पलों में
वह कैसे बिल्कुल ख़ाली सफ़ेद काग़ज़ पर चटख रंगों से इतनी जीवंत आकृतियाँ बना लेता
था. अब मुझे यह अहसास होता है कि उस लड़के में चित्रकला के लिए ख़ालिस योग्यता
मौजूद थी.
एक साल सितम्बर के महीने में हमारे इलाक़े में एक भयानक समुद्री-तूफ़ान आया.
रेडियो पर बताया गया कि यह तूफ़ान पिछले दस वर्षों की तुलना में सर्वाधिक भयावह था.
सारे विद्यालयों की छुट्टियाँ हो गईं और शहर की सारी दुकानें इस समुद्री-तूफ़ान की
आशंका की वजह से बंद कर दी गईं. सुबह तड़के उठ कर मेरे पिता और बड़े भाई ने सभी
खिड़कियाँ, दरवाज़ों आदि को अतिरिक्त कीलें लगा
कर अच्छी तरह बंद कर दिया. उधर मेरी माँ रसोई में आपातकाल के लिए अतिरिक्त भोजन
तैयार करती रही. हमने घर में मौजूद सभी बोतलों में पीने का पानी भर कर रख लिया.
अपनी सबसे बेशक़ीमती चीज़ों को भी हमने बोरियों में भर कर रख लिया, ताकि ज़रूरत पड़ने पर हम उन्हें भी अपने साथ ले कर कहीं और जा सकें.
वयस्कों के लिए समुद्री-तूफ़ान मुसीबत और भय का कारण था जो उन्हें लगभग हर
वर्ष झेलना पड़ता था. लेकिन हम बच्चे व्यावहारिक चिंताओं से दूर थे, इसलिए हमारे लिए समुद्री-तूफ़ान महज़ एक सर्कस जैसा था,
उत्तेजना के एक अद्भुत स्रोत जैसा था.
दोपहर के बाद आकाश का रंग अचानक बदलने लगा. उसे देखकर कुछ अजीब और
अवास्तविक-सा लग रहा था. मैं बाहर ड्योढ़ी में खड़ा हो कर आकाश को देखता रहा.
थोड़ी ही देर में तूफ़ानी हवा शोर मचाने लगी और तेज बारिश एक अजीब सूखी आवाज़ के
साथ हमारे मकान से टकराने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे रेत की बारिश हो रही हो. तब हम
भाग कर घर के अंदर चले गए और हमने मकान के सभी खिड़की-दरवाज़े कस कर बंद कर लिए.
हम सब रेडियो सुनते हुए एक अँधेरे कमरे में सहम कर बैठे रहे. रेडियो पर बताया जा
रहा था कि इस समुद्री-तूफ़ान के साथ ज़्यादा तेज़ बारिश नहीं आई थी. लेकिन तूफानी
हवा क़हर ढा रही थी. कई घरों की छतें उड़ गई थीं और इस तूफ़ान में फँस कर कई जहाज़
समुद्र में डूब गए थे. उड़ते हुए मलबे की वजह से कई लोग हताहत हुए थे. रेडियो पर
बार-बार लोगों से अपने घरों के भीतर ही रहने की अपील की जा रही थी.
बीच-बीच में मकान चर्र-मर्र की आवाज़ के साथ हिल उठता जैसे कोई विशाल हाथ उसे
पकड़ कर हिला रहा हो. कभी-कभी किसी भारी चीज़ के किसी बंद खिड़की-दरवाज़े से
टकराने की भयंकर आवाज़ आती. मेरे पिता को लगता था कि ये आवाज़ें पड़ोसियों के घरों
की छतों से उड़ कर आई खपड़ैलों की थीं. दोपहर के भोजन में हम सब ने माँ का बनाया
हुआ चावल और ऑमलेट खाया. अपने मकान के एक कमरे में दुबके हम सब रेडियो पर ख़बरें
सुनते रहे और समुद्री-तूफ़ान के गुज़र जाने की प्रतीक्षा करते रहे.
समुद्री-तूफ़ान का क़हर जारी रहा, हालाँकि
रेडियो बता रहा था कि हमारे इलाक़े से गुज़रते हुए इस तूफ़ान की गति धीमी हो गई थी,
और अब यह किसी धीमी गति के धावक-सा उत्तर-पूर्व दिशा की ओर बढ़ रहा
था. किंतु तूफ़ानी हवा का हिंसक शोर थमने का नाम नहीं ले रहा था. तीव्र वेग वाली
यह हवा ज़मीन पर मौजूद हर चीज़ को जड़ से उखाड़ कर धरती के सुदूर कोनों की ओर ले
जाने का प्रयास कर रही थी.
तूफ़ानी हवा को अपने सर्वाधिक वेग पर बहते हुए शायद घंटा-भर बीता होगा जब
अचानक चारो ओर निस्तब्धता छा गई. चारो ओर इतना सन्नाटा छा गया कि दूर कहीं से आ
रही किसी चिड़िया के बोलने की आवाज़ भी साफ़ सुनाई दी. मेरे पिता ने एक दरवाज़ा
थोड़ा-सा खोला और बाहर झाँका. हवा का चलना बिल्कुल बंद हो गया था और अब बारिश भी
नहीं हो रही थी. घने, धूसर बादल आकाश में
धीरे-धीरे खिसक रहे थे, और यहाँ-वहाँ नीले आसमान के टुकड़े
दिखाई पड़ रहे थे. अहाते में खड़े पेड़ों से अब भी बारिश का पानी चू रहा था.
“अभी हम समुद्री-तूफ़ान के केंद्र में स्थित शांत इलाक़े में हैं," मेरे पिता ने मुझे बताया. "यहाँ कुछ देर तक सब कुछ इसी तरह शांत बना
रहेगा. शायद पंद्रह या बीस मिनटों का अंतराल रहेगा. उसके बाद तूफ़ानी हवा पहले की
तरह ही तीव्र वेग के साथ वापस लौट आएगी."
मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं बाहर जा सकता था. उन्होंने कहा कि मैं घर के
आस-पास टहल सकता था पर घर से ज़्यादा दूर न जाऊँ. "लेकिन जैसे ही पता चले कि तूफ़ानी हवा
दोबारा शुरू हो रही है , तुम फटाफट लौट आना."
मैं बाहर जा कर छान-बीन करने लगा. चारो ओर मौजूद शांति देखकर सहसा यह विश्वास
करना मुश्किल था अभी कुछ देर पहले यहाँ प्रचंड वेग से तूफ़ानी हवा चल रही थी.
मैंने आकाश की ओर देखा. मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे इस समुद्री तूफ़ान का केंद्र वहाँ
ऊपर आकाश में मौजूद था, और इस इलाक़े में यहाँ
नीचे रहने वाले सभी प्राणियों पर वह अपनी कोप-दृष्टि डाल रहा था. हालाँकि वास्तव
में ऐसा कुछ भी नहीं था. हम सब केवल कुछ देर के लिए समुद्री-तूफ़ान के केंद्र में
स्थित शांत इलाक़े में थे.
जब बड़े लोग मकान को हुए नुक़सान का जायज़ा ले रहे थे, मैं समुद्र-तट की ओर चल पड़ा. पूरी सड़क पेड़ों की टूटी हुई
टहनियों और शाखाओं से भरी हुई थी. उनमें से कुछ तो देवदार की इतनी मोटी शाखाएँ थीं
जिन्हें कोई वयस्क आदमी भी अकेले नहीं उठा सकता था. चारो ओर छतों की टूटी हुई
खपड़ैलों पड़ी थीं. वहाँ खड़ी कारों के शीशे टूट चुके थे. कुत्तों के रहने का एक
घर भी दूर कहीं से उड़ कर वहाँ बीच सड़क पर आ गिरा था. ऐसा लगता था जैसे आकाश में
मौजूद किसी सर्वशक्तिमान हाथ ने अपने रास्ते में आई हर चीज़ को तहस-नहस कर दिया था.
' क ' ने मुझे सड़क पर जाते हुए देखा और मेरे पास आ
गया.
"तुम कहाँ जा रहे हो ? " उसने पूछा .
"बस , समुद्र-तट पर निगाह डालने जा रहा हूँ
, " मैंने कहा.
बिना एक और शब्द कहे वह मेरे साथ हो लिया. उसका छोटा-सा सफ़ेद कुत्ता भी हमारे
पीछे-पीछे चलने लगा.
"जैसे ही हमें तूफ़ानी हवा के लौटने की आशंका होगी, हम वापस अपने घर चले जाएँगे ," मैंने
कहा और 'क' ने स्वीकृति में अपना सिर
हिलाया.
मेरे घर से समुद्र-तट की दूरी लगभग दो सौ गज़ की थी. समुद्र-तट पर
पत्थरों से बनी एक ठोस दीवार-सी मौजूद थी -- दरअसल यह एक बाँध जैसा था जिसकी ऊँचाई
लगभग मेरे जितनी थी. पानी के किनारे पहुँचने के लिए हमें कुछ सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती
थीं. यही वह जगह थी जहाँ हम प्रतिदिन खेलने के लिए आया करते थे. इसलिए हम दोनों उस
जगह के चप्पे-चप्पे से भली-भाँति परिचित थे. लेकिन उस समय उस तूफ़ान के बीचों बीच
के शांत इलाक़े में पड़ने की वजह से वहाँ सब कुछ बिल्कुल अलग ही क़िस्म का लग रहा
था -- चाहे वह आकाश था, समुद्र का रंग था,
लहरों का शोर था, ज्वार-भाटे की गंध थी या
समुद्र-तट का पूरा परिदृश्य था.
कुछ देर तक हम बिना एक-दूसरे से कोई बातचीत किए पत्थरों की उस दीवार पर बैठ कर
उस पूरे दृश्य को अपनी आँखों से सोखते रहे. हम एक तथाकथित भयावह समुद्री-तूफ़ान के
मध्य में थे, किंतु शांत लहरों में जैसे कुछ
अजीब-सा छिपा हुआ था. और उस दिन लहरें समुद्र-तट को बहुत पीछे स्पर्श कर रही थीं,
उस बिंदु से भी पीछे जहाँ वे उथले ज्वार-भाटे के समय समुद्र-तट को
छूती थीं. इसलिए समुद्र-तट पर बहुत दूर तक केवल सफ़ेद रेत नज़र आ रही थी. यदि हम
ध्वस्त जहाज़ों के किनारे पर आ लगे टुकड़ों को छोड़ दें तो वह पूरी जगह बिना
मेज-कुर्सियों वाले किसी बड़े कमरे जैसी लग रही थी. हम उस पत्थरों की दीवार के
दूसरी ओर नीचे उतर गए और लहरों द्वारा वहाँ ला फेंकी गई चीज़ों को देखते हुए उस
चौड़े समुद्र-तट की रेत पर चलने लगे. वहाँ रेत पर प्लास्टिक के खिलौने, चप्पलें, शायद कभी किसी मेज-कुर्सी का हिस्सा रहे
लकड़ी के टुकड़े , कपड़ों के चिथड़े, अजीब
लगने वाली बोतलें और टूटी हुई टोकरियाँ थीं जिन पर विदेशी भाषा में कुछ लिखा था.
रेत पर पड़ी कई अन्य चीज़ों के मलबे को देखने से यह पता नहीं चल पा रहा था कि दरअसल वह किन चीज़ों का अवशेष था. ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ ध्वस्त चीज़ों की बहुत बड़ी दुकान मौजूद हो. वह समुद्री-तूफ़ान इन सभी चीज़ों को बहुत दूर से उठा कर यहाँ ले आई होगी. समुद्र-तट की रेत पर चलते हुए जब भी हमारी निगाह किसी असामान्य चीज़ पर पड़ती तो हम उसे उठा कर हर कोण से देखते. जब हम उसे वापस रेत पर रख देते तो 'क' का कुत्ता आ कर उस चीज़ को अच्छी तरह सूँघता.
रेत पर पड़ी कई अन्य चीज़ों के मलबे को देखने से यह पता नहीं चल पा रहा था कि दरअसल वह किन चीज़ों का अवशेष था. ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ ध्वस्त चीज़ों की बहुत बड़ी दुकान मौजूद हो. वह समुद्री-तूफ़ान इन सभी चीज़ों को बहुत दूर से उठा कर यहाँ ले आई होगी. समुद्र-तट की रेत पर चलते हुए जब भी हमारी निगाह किसी असामान्य चीज़ पर पड़ती तो हम उसे उठा कर हर कोण से देखते. जब हम उसे वापस रेत पर रख देते तो 'क' का कुत्ता आ कर उस चीज़ को अच्छी तरह सूँघता.
हमें यह करते हुए पाँच मिनट से ज़्यादा नहीं हुए होंगे जब मुझे यह अहसास हुआ
कि अब लहरें हमारे पास तक पहुँचने लगी थीं. बिना किसी आवाज़ या चेतावनी के अचानक
समुद्र ने अपनी लम्बी, चिकनी जीभ वहाँ तक फैला
दी थी, जहाँ मैं खड़ा था. ऐसा नज़ारा मैंने इससे पहले कभी
नहीं देखा था. हालाँकि मैं बच्चा था, पर मैं समुद्र-तट को
देखते हुए बड़ा हो रहा था. समुद्र कितना भयावह हो सकता है, यह
बात मैं अच्छी तरह जानता था. समुद्र बिना किसी घोषणा के कभी भी बेहद बर्बर तरीक़े
से वार कर सकता था. इसलिए सावधानीवश मैं लहरों के समुद्र-तट पर पहुँचने वाली जगह
से काफ़ी पीछे था. इसके बावजूद लहरें सरकती-सरकती मेरे खड़े होने की जगह से कुछ ही
इंच दूर तक पहुँच गई थीं. और फिर अचानक बिना किसी आवाज़ के पानी वापस समुद्र में
बहुत पीछे लौट गया -- और वहीं रहा.
जो लहरें मुझ तक आई थीं , वे निरंतर आ रही
थीं -- जैसे रेतीले समुद्र-तट को वे हल्के-से धो रही हों. लेकिन मैं यह महसूस कर
सकता था कि उन लहरों में कुछ अनिष्ट-सूचक था -- जैसे उन में किसी सरी-सृप की त्वचा
की छुअन जैसा कुछ था. और इससे मेरी देह में सिहरन-सी दौड़ गई. जैसे मेरा डर पूरी
तरह आधारहीन होते हुए भी पूरी तरह वास्तविक हो. अपने सहज ज्ञान से मैं जान गया कि
ये लहरें जैसे जीवित और सक्रिय थीं. जी हाँ, ये लहरें जीवित
और सक्रिय थीं. वे जानती थीं कि मैं वहाँ मौजूद था और वे मुझे पकड़ लेना चाहती थीं.
मुझे ऐसा लगा जैसे कोई विशाल आदमखोर जंगली जानवर किसी घास के मैदान में घात लगाए
बैठा हो, उस पल की प्रतीक्षा करते हुए जब वह छलाँग लगा कर
मुझे दबोच लेगा और अपने पैने दाँतों से मेरे टुकड़े-टुकड़े कर देगा. मेरा वहाँ से
भाग जाना ज़रूरी था.
"मैं यहाँ से जा रहा हूँ ," मैंने
चिल्ला कर 'क' से कहा. वह समुद्र-तट पर मुझसे शायद दस गज दूर रहा होगा.
उसकी पीठ मेरी ओर थी, वह पाल्थी मार कर रेत पर बैठा हुआ था
और किसी चीज़ को देख रहा था. मुझे पक्का यक़ीन था कि मैंने बहुत ज़ोर से चिल्ला कर
उसे आवाज़ दी थी, पर लगता था जैसे मेरी आवाज़ उस तक नहीं
पहुँच पाई थी. यह भी हो सकता है कि कुछ देखने में वह इतना मगन हो गया था कि मेरी
आवाज़ का उस पर कोई असर नहीं हुआ. 'क' तो
ऐसा ही था. वह किसी भी काम में इतना डूब जाता था कि बाक़ी सब कुछ भूल जाता था. या
यह भी हो सकता है कि मैं उतनी ज़ोर से नहीं चीख़ पाया हूँगा जितना मैंने सोचा था.
अब मुझे याद आ रहा है कि मुझे अपनी ही आवाज़ बेहद अजीब-सी लगी थी, जैसे वह मेरी आवाज़ न होकर किसी और की रही हो.
फिर मुझे एक तेज गर्जन सुनाई दिया. ऐसा लगा जैसे धरती थरथरा रही हो. दरअसल इस
गर्जन को सुनने से ठीक पहले मुझे एक और आवाज़ सुनाई दी. यह एक विचित्र गड़गड़ाहट
थी, जैसे ज़मीन के किसी छेद में से बहुत सारा
पानी तेज़ी से ऊपर आ रहा हो. यह आवाज़ कुछ देर तक सुनाई देती रही, फिर बंद हो गई. इसके बाद मुझे वह तेज़ गर्जन सुनाई दिया. लेकिन उन आवाज़ों
को सुनकर भी 'क' ने मुड़कर नहीं देखा.
वह अभी भी रेत पर पाल्थी मारे बैठा था और अपने पैरों के पास पड़ी किसी चीज़ को
गहरी एकाग्रता से देख रहा था. शायद उसे वह गर्जन सुनाई ही नहीं दिया. मुझे पता
नहीं कैसे वह धरती को हिला देने वाला ऐसा भयावह गर्जन भी नहीं सुन पाया. यह अजीब
लगता है, पर सम्भवत: वह ऐसी आवाज़ रही होगी जिसे केवल मैं ही
सुन पाया हूँगा -- कोई विशेष प्रकार की आवाज़. 'क' के कुत्ते ने भी उस आवाज़ का कोई संज्ञान नहीं लिया, हालाँकि आप जानते हैं कि कुत्ते कितने संवेदनशील होते हैं.
मैंने खुद से कहा कि मुझे 'क' के पास जा कर, उसे पकड़ कर वहाँ से दूर ले जाना
चाहिए. अब केवल यही काम किया जा सकता था. मुझे यह अहसास हो गया था कि एक विशाल लहर
हमारी ओर आ रही थी, जबकि 'क' इस बात से अनभिज्ञ था. हालाँकि मेरे ज़हन में यह बात स्पष्ट थी कि ऐसे समय
में मुझे क्या करना चाहिए था, पर मैंने खुद को अकेले ही पूरी
गति से उल्टी दिशा में भागता हुआ पाया -- पत्थरों की दीवार की ओर. मुझे पक्का
यक़ीन है कि मैंने डर जाने की वजह से ऐसा
काम किया होगा -- एक ऐसा डर जिसने मेरे ज़हन को जकड़ कर मेरी आवाज़ मुझ से छीन ली
थी और मेरे पैरों को अपने-आप गतिमान बना दिया था. मैं तट की नरम रेत में
धँसते-गिरते किसी तरह पत्थरों की दीवार तक पहुँच गया. वहाँ पहुँच कर मैं पीछे
मुड़ा और मैंने चिल्ला कर 'क' का ध्यान
अपनी ओर खींचना चाहा.
"भाग 'क' ! वहाँ से
जल्दी निकल ! एक बहुत बड़ी लहर आ रही है !" इस बार मेरी आवाज़ की तीव्रता सही थी. मैंने
पाया कि गर्जन अब बंद हो चुका था , और अब अंत में 'क' ने मेरे चिल्लाने की आवाज़ सुन ली और ऊपर देखा.
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. डँसने के लिए अपना फ़न काढ़े किसी विशाल सर्प
जैसी एक बड़ी लहर समुद्र-तट की ओर दौड़ी चली आ रही थी. मैंने अपने जीवन में ऐसी
भयावह चीज़ पहले कभी नहीं देखी थी. वह लहर किसी तिमंज़िला इमारत जितनी ऊँची थी.
बिना किसी आवाज़ के (कम-से-कम मेरी स्मृति में उसकी छवि बेआवाज़ है) वह विशाल लहर 'क' के पीछे उठ खड़ी हुई और उसने आकाश को ढँक लिया. 'क' कुछ पलों तक मेरी ओर देखता रहा, जैसे उसे कुछ भी समझ नहीं आया हो. फिर , जैसे उसे
कुछ महसूस हुआ हो, वह लहर की ओर मुड़ा. उसने विपरीत दिशा में
दौड़ने की कोशिश की पर अब दौड़ने का समय नहीं बचा था. अगले ही पल वह दैत्याकार लहर
उसे साबुत निगल चुकी थी. वह लहर उससे इतनी तेज़ गति से टकराई जैसे वह पूरी रफ़्तार
से दौड़ रही किसी रेल-गाड़ी का इंजन हो.
वह लहर समुद्र-तट से टकरा कर लाखों छोटी-छोटी लहरों में बदल गई . वे
लहरें हवा में उछलीं और पत्थरों की दीवार के ऊपर वहाँ से निकल गईं जहाँ मैं खड़ा
था. लहरों की मार से बचने के लिए मुझे नीचे झुककर उस दीवार से चिपकना पड़ा. मेरे
सारे कपड़े भीग गए, पर और कुछ नहीं हुआ. मैं
उठ कर पत्थरों की उस दीवार पर चढ़ गया. और मैंने दूर तक समुद्र-तट का मुआयना किया.
तब तक वह लहर मुड़ चुकी थी और एक वहशी आवाज़ के साथ वापस समुद्र में लौट रही थी.
यह सब ऐसा था जैसे धरती के दूसरे कोने पर मौजूद किसी अति-शक्तिशाली हाथ ने किसी
बहुत बड़ी क़ालीन को झटक कर अपनी ओर खींच लिया हो. मुझे समुद्र-तट पर कहीं भी 'क' या उसके कुत्ते का कोई चिह्न नज़र नहीं आया. वहाँ
केवल भीगी हुई ख़ाली रेत पड़ी थी. वापस लौटती हुई उस लहर ने इतना ज़्यादा पानी
अपने साथ पीछे खींच लिया था कि ऐसा लग रहा था जैसे समुद्र का पूरा तल नज़र आ रहा
हो. मैं पत्थरों की उस दीवार पर भौंचक्का-सा खड़ा था.
पूरे परिदृश्य पर स्तब्धता छा गई थी
-- चारों ओर एक भयंकर चुप्पी थी, जैसे किसी ने सारी
आवाज़ों को धरती से उखाड़ फेंका हो . वह दैत्याकार लहर 'क'
को निगल कर दूर कहीं ग़ायब हो गई थी. मैं वहाँ सन्न-सा खड़ा था.
क्या करूँ, कुछ सूझ ही नहीं रहा था . क्या मैं दोबारा
समुद्र-तट पर जाऊँ ? सम्भवत: ' क '
वहीं कहीं रेत में दबा पड़ा हो ... पर मैंने पत्थरों की दीवार के उस
पार नहीं जाने का फ़ैसला किया. अपने अनुभव से मैं जानता था कि दैत्याकार लहरें
अक्सर दो या तीन के समूहों में आती थीं. मुझे नहीं पता, कितना
समय बीता होगा -- शायद वे भयावह ख़ालीपन के दस या बीस सेकेंड रहे होंगे. तभी जैसा
मैंने अनुमान लगाया था, अगली दैत्याकार लहर आ गई. एक और
भयावह आवाज़ से समुद्र-तट काँप उठा, और उस आवाज़ के मंद
पड़ते ही सर्प जैसी एक दैत्याकार लहर डँसने के लिए उठ खड़ी हुई. उस बेहद ऊँची लहर
ने आकाश को ढँक लिया, गोया वह कोई भयावह, खड़ी चट्टान हो. लेकिन इस बार मैं भागा नहीं. मैं जैसे सम्मोहित-सा उस लहर
के हमले की प्रतीक्षा में पत्थरों की उस दीवार से चिपका खड़ा रहा. अब भागने से
क्या फ़ायदा होने वाला था, मैंने सोचा , जबकि मेरे मित्र 'क' को साबुत
निगल लिया गया था. या शायद मैं भय की वजह से वहीं जड़ हो गया था. मुझे पक्का पता
नहीं कि वह क्या चीज़ थी जिसने मुझे वहीं खड़ा रखा.
दूसरी लहर भी पहली लहर जैसी दैत्याकार थी -- शायद वह पहली लहर से भी बड़ी थी.
मेरे सिर के बहुत ऊपर से वह नीचे गिरने लगी . वह अपना आकार ऐसे खोने लगी जैसे
ईंटों की कोई बहुत ऊँची दीवार धीरे-धीरे ढहने लगती है. वह लहर इतनी विशाल थी कि अब
वह किसी वास्तविक लहर जैसी नहीं लग रही थी. जैसे वह कोई और ही चीज़ हो --
दूर-दराज़ की किसी और ही दुनिया से आई हुई कोई और ही चीज़, जिसने एक विराट् लहर का रूप धारण कर लिया था. मैं खुद को उस
पल के लिए तैयार करने लगा जब अँधेरा मुझे अपने आगोश में ले लेगा. मैंने अपनी आँखें
भी बंद नहीं की. मुझे याद है , एक अविश्वसनीय स्पष्टता के
साथ मैं अपने हृदय की धमक को सुन सकता था.
जिस पल वह दैत्याकार लहर मेरे सामने आई, वह
अचानक जैसे रुक-सी गई. ऐसा लगा जैसे उस लहर ने अपनी सारी ऊर्जा खो दी थी, आगे बढ़ने की अपनी गति खो दी थी, और अब वह केवल वहाँ
मँडराते हुए चुपचाप ढह रही थी. और उस लहर के शिखर पर, उसकी
क्रूर, पारदर्शी जीभ पर मुझे 'क' मौजूद
दिखा.
आप में से कुछ इसे अविश्वसनीय और असम्भव कहेंगे. यदि ऐसा हुआ तो मैं आपको दोष
नहीं दूँगा. स्वयं मेरे लिए आज भी इस सच्चाई को स्वीकार कर पाना मुश्किल है. मैं
इससे ज़्यादा अच्छी तरह से आपको नहीं बता सकता कि मैंने उस लहर में क्या देखा.
लेकिन वह मेरा भ्रम क़तई नहीं था. उस पल वहाँ क्या हुआ था यह मैं आपको पूरी
ईमानदारी से बता रहा हूँ. यह वाकई हुआ था. उस लहर की जिह्वा के आगे के हिस्से पर 'क' की एक ओर झुकी हुई देह उतरा रही थी.
ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी पारदर्शी खोल में पड़ा हुआ था. लेकिन केवल यही बात
नहीं थी. 'क' जैसे मुस्कराते हुए सीधा
मेरी ओर ही देख रहा था. वहाँ , ठीक मेरे सामने -- इतने करीब
कि मैं हाथ बढ़ा कर उसे छू लूँ -- मेरा मित्र, मेरा प्रिय
मित्र 'क' मौजूद था. वह 'क' जिसे कुछ ही पल पहले एक दैत्याकार लहर निगल कर
अपने साथ ले गई थी. और मेरा वह मित्र मेरी ओर देखकर जैसे मुस्करा रहा था. लेकिन वह
सामान्य मुस्कान नहीं थी. वह एक बेहद चौड़ी मुस्कान थी. और उसकी ठंडी, जमी हुई आँखें मुझ पर केंद्रित थीं. वह जैसे मेरा परिचित मित्र 'क' नहीं था. और उसके दोनों हाथ मेरी दिशा में फैले
हुए थे, जैसे वह मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास खींच लेता.
लेकिन मुझे पकड़ने से चूक जाने पर उसने मुझे एक बार और पहले से भी ज़्यादा चौड़ी
मुस्कान दी .
लगता है, यह देखकर मैं बेहोश हो गया था. जब
मुझे होश आया तो मैं अपने पिता के चिकित्सालय में बिस्तर पर पड़ा था. जैसे ही मुझे
होश आया, नर्स मेरे पिता को बुलाने के लिए भागी. मेरे पिता
दौड़ते हुए मेरे पास आए. उन्होंने मेरी नब्ज़ जाँची, मेरी
आँखों की पुतलियाँ का मुआयना किया और मेरे माथे पर अपना हाथ रखा. मैंने अपनी बाँह
गिलानी चाही पर मैं ऐसा नहीं कर सका. मुझे तेज़ बुखार था और मेरा मन-मस्तिष्क उस
भयावह घटना के आघात से संतप्त था. ज़ाहिर है, तेज़ बुखार से
जूझते हुए मुझे कुछ दिन हो चुके थे .
"तुम पिछले तीन दिनों से सोए हुए थे ," मेरे
पिता ने मुझसे कहा. उस पूरे दृश्य को देखने वाले हमारे एक पड़ोसी ने मुझे
समुद्र-तट से उठा कर घर पर पहुँचाया था. बहुत ढूँढ़ने पर भी उन्हें 'क' का कोई नामो-निशान नहीं मिला. मैं अपने पिता से
कुछ कहना चाहता था. मुझे उनसे कुछ कहना ही था. लेकिन मेरी सुन्न और सूजी हुई जीभ
शब्दों को स्वर नहीं दे सकी. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा मुँह किसी जीव की गिरफ़्त में
था. मेरी यह हालत देख कर मेरे पिता ने
मुझसे मेरा नाम पूछा. लेकिन इससे पहले कि मैं वह याद कर पाता, अँधेरे ने मुझे अपने आगोश में ले लिया. मैं फिर से बेहोश हो गया.
मैं लगभग एक हफ़्ते तक बिस्तर पर पड़ा रहा. इस दौरान मुझे केवल द्रव वाला पथ्य
ही दिया गया. मुझे कई बार उल्टी हुई और
मुझे प्रलाप के दौरे पड़ते. बाद में मेरे पिता ने बताया कि मेरी हालत बहुत ख़राब
थी. वे डर गए थे कि कहीं इस सदमे और तेज बुखार की वजह से मेरी तंत्रिकाएँ स्थायी
रूप से क्षति-ग्रस्त न हो जाएँ. जैसे-तैसे मैं शारीरिक रूप से दोबारा ठीक हो गया.
पर मेरा जीवन अब पहले जैसा नहीं रहा. इस घटना ने मुझे बुरी तरह हिला दिया .
उन्हें 'क' का शव कभी
नहीं मिला. न ही उन्हें उसके कुत्ते की लाश ही मिली. आम तौर पर जब उस इलाक़े में
डूबने से किसी की मौत हो जाती तो कुछ दिनों के बाद समुद्र-तट पर पूर्व की ओर मौजूद
खाड़ी के मुहाने के पास उसका शव उतराता हुआ दिख जाता. किंतु 'क' का शव वहाँ कभी नहीं पहुँचा. दरअसल वे दैत्याकार
लहरें उसके शव को दूर कहीं गहरे समुद्र में ले गई थीं. इतनी दूर कि वहाँ से वह शव
समुद्र-तट तक नहीं लौट सकता था. ज़रूर उसकी देह डूब कर समुद्र-तल पर पहुँच गई होगी
जहाँ वह मछलियों का निवाला बन गई होगी. स्थानीय मछुआरों की मदद से 'क' के शव की खोज बहुत समय तक चलती रही, पर अंत में सब थक-हार कर बैठ गए. शव के बिना कभी उसे विधिवत दफ़्न नहीं
किया जा सका. अर्द्ध-विक्षिप्त हो गए उसके माता-पिता हर दिन समुद्र-तट पर इधर-उधर
भटकते रहते. या फिर वे कई-कई दिनों तक अपने घर में बंद हो कर निरंतर बौद्ध-सूत्रों
का पाठ करते रहते.
हालाँकि 'क' के माता-पिता
के लिए उसकी मृत्यु एक असहनीय आघात थी, उन्होंने कभी मुझे इस
बात के लिए नहीं डाँटा कि मैं उनके बेटे को समुद्री-तूफ़ान के बीच में समुद्र-तट
पर क्यों ले गया था. वे जानते थे कि मैं हमेशा 'क' को मुसीबतों से बचाता था, और उससे इतना प्यार करता
था जैसे वह मेरा सगा छोटा भाई हो. लेकिन मुझे तो सच्चाई पता थी. मैं जानता था कि
यदि मैं कोशिश करता तो उसे बचा सकता था. सम्भवत: मैं दौड़ कर उसे पकड़ सकता था और
घसीट कर उसे उस दैत्याकार लहर के चंगुल से दूर किनारे पर सुरक्षित ला सकता था.
हालाँकि यह काफ़ी नज़दीकी मामला होता, लेकिन मैं जब उस पूरे
घटना-क्रम की समयावधि को स्मृति में दोहराता तो मैं हमेशा इसी नतीजे पर पहुँचता कि
मैं 'क' को बचा सकता था. जैसा मैंने
पहले भी कहा था, बहुत ज़्यादा डर जाने के कारण मैंने उसे
मरने के लिए वहीं छोड़ दिया और केवल ख़ुद को बचाने पर ही पूरा ध्यान दिया. मुझे इस
बात से और भी दुख पहुँचता कि 'क' के
माता-पिता ने मुझे दोषी नहीं ठहराया था. बाक़ी लोगों ने भी सावधानी बरतते हुए कभी
भी मुझसे इस बात का ज़िक्र नहीं किया कि उस दिन समुद्र-तट पर क्या हुआ था. इस
भावनात्मक आघात से उबरने में मुझे बरसों लग गए. कई हफ़्तों तक मैं स्कूल भी नहीं
जा पाया. इस दौरान मैं बहुत कम खाता-पीता था, और सारा दिन
बिस्तर पर पड़े हुए छत को घूरता रहता था.
'क'
की वह अंतिम छवि मेरे मन-मस्तिष्क में सदा के लिए अंकित हो गई -- उस
दैत्याकार लहर की जिह्वा के आगे के हिस्से पर लेटा, मेरी ओर
देख कर मुस्कुराता और मेरी दिशा में अपने दोनों हाथ फैला कर इशारा करता 'क'. मैं ज़हन पर दाग दी गई उस छवि से कभी मुक्त नहीं
हो पाया. और बड़ी मुश्किल से जब मुझे नींद आती तो वह छवि सपनों में भी मुझे पीड़ित
करती. बल्कि मेरे सपनों में 'क' उस
दैत्याकार लहर से कूद कर मेरी कलाई पकड़ लेता ताकि वह मुझे घसीट कर अपने साथ वापस
उस लहर में ले जा सके.
और फिर एक और सपना आया. मैं समुद्र में तैर रहा हूँ. वह ग्रीष्म ऋतु का एक
संदर दिन है और तट से दूर मैं आसानी से तैर रहा हूँ. मेरी पीठ पर धूप पड़ रही है, और मुझे पानी में तैरने में मज़ा आ रहा है. तभी अचानक पानी
में कोई मेरा दायाँ पैर पकड़ लेता है. मुझे अपने टखने पर एक बर्फ़ीली जकड़ महसूस
होती है. वह जकड़ इतनी मज़बूत होती है कि मैं उससे नहीं छूट पाता हूँ . अब कोई मुझे पानी में नीचे
घसीट कर लिए जा रहा है. और वहाँ मुझे 'क' का चेहरा दिखाई देता है. उसके चेहरे पर वही चौड़ी मुस्कान है और वह मुझे
घूर रहा है. मैं चीख़ना चाहता हूँ पर मेरे गले से कोई आवाज़ नहीं निकल रही. घबराहट
में मैं ढेर-सा पानी निगलने लगता हूँ जिससे मेरे फेफड़ों में समुद्र का पानी भरने
लगता है. ठीक इसी समय मेरी नींद खुल जाती है. अँधेरें में मैं पसीने से लथपथ हूँ
और मेरी साँस चढ़ी हुई है. डर के मारे मैं चीख़ रहा हूँ.
आख़िर साल के अंत के समय मैंने अपने माता-पिता से गुहार लगाई कि वे मुझे किसी
दूसरे शहर में जा कर बसने की इजाज़त दें. मैं लगातार उस समुद्र-तट को देखते हुए
नहीं जी सकता था जहाँ वह दैत्याकार लहर 'क'
को लील गई थी. मेरे दु:स्वप्न रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. यदि मैं
वहाँ से कहीं और नहीं जाता तो मेरे दु:स्वप्न मुझे पागल बना देते. मेरे माता-पिता
मेरी स्थिति को समझ गए और मेरा कहीं और रहने का बंदोबस्त कर दिया. जनवरी में मैं
कोमोरो इलाक़े के नगाना शहर के पास स्थित एक पहाड़ी गाँव में अपने पिता के परिवार
के पास रहने के लिए चला आया. मैंने प्राथमिक स्कूल की अपनी शिक्षा नगानो में ही
पूरी की. मैं अपने माता-पिता के पास वापस कभी नहीं गया, छुट्टियों
में भी नहीं. बल्कि अक्सर मेरे माता-पित ही मुझसे मिलने मेरे पास चले आते.
आज भी मैं नगानो में ही रहता हूँ. मैंने नगानो शहर के एक शिक्षण संस्थान से ही
अभियान्त्रिकी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. मैं इसी इलाक़े में सूक्ष्म औज़ार
और उपकरण बनाने के एक कारख़ाने में काम करने लगा. आज भी मैं यहीं नौकरी करता हूँ.
जैसा कि आप देख सकते हैं, मेरे जीवन में कुछ भी
असामान्य नहीं. हालाँकि मैं ज़्यादा लोगों से नहीं घुलता-मिलता हूँ, लेकिन मेरे भी कुछ मित्र हैं जिनके साथ मैं घूमने के लिए पहाड़ पर जाता
हूँ. जब मैं अपने बचपन के शहर से दूर चला गया तो मुझे निरंतर आने वाले दु:स्वप्न
बेहद कम हो गए, हालाँकि वे मेरे जीवन का हिस्सा बने रहे. अब
ये दु:स्वप्न मुझे यदा-कदा ही आते, जैसे वे दरवाज़े पर खड़े
कारिंदे हों. जब मैं उस त्रासद घटना को लगभग भूलने लगता, तभी
यह दु:स्वप्न मुझे फिर से उस घटना की याद दिला जाता. और हर बार वही सपना होता,
अपने एक-एक ब्योरे में बिल्कुल पहले जैसा. और पसीने से लथपथ मैं उसी
तरह चीख़ता हुआ नींद से जग जाता.
शायद इसी वजह से मैंने कभी शादी नहीं की. मैं अपने बगल में सोने वाली किसी
युवती को बीच रात में अपनी चीख़ों की वजह से जगा कर परेशान नहीं करना चाहता था. इन
बरसों के दौरान मुझे कई युवतियों से प्यार हुआ, किंतु
मैंने कभी उनमें से किसी के साथ भी रात नहीं बिताई. उस घटना से उपजा भय तो मेरी
हड्डियों में बस गया था. यह एक ऐसी बात थी जिसे मैं कभी किसी से साँझा नहीं कर सका.
मैं चालीस बरस से ज़्यादा समय तक अपने बचपन के शहर से दूर रहा. मैं उस या अन्य
किसी भी समुद्र-तट पर फिर कभी नहीं गय. मैं डरता था कि यदि मैंने ऐसा किया तो मेरा
दु:स्वप्न कहीं हक़ीक़त में न बदल जाए. तैराकी मुझे हमेशा से अच्छी लगती थी लेकिन
बचपन की उस घटना के बाद मैं कभी किसी तरण-ताल में भी नहीं गया. नदियों और गहरी
झीलों में जाने का सवाल ही नहीं उठता था. मैं नाव पर चढ़ने से भी कतराता था. यहाँ
तक कि मैंने विदेश जाने के लिए कोई विमान-यात्रा भी नहीं की. सभी तरह के बचाव करने
के बाद भी मैं दु:स्वप्न में आते अपने डूबने की छवि से मुक्त नहीं हो पाया . 'क' के ठंडे हाथों की तरह ही इस भयावह
पूर्वाभास ने मेरे ज़हन को जकड़ लिया और छोड़ने से इंकार कर दिया.
फिर पिछली वसंत ऋतु में मैं अंतत: उस समुद्र-तट पर दोबारा गया जहाँ बरसों पहले
दैत्याकार लहर ने 'क' को
मुझसे छीन लिया था.
एक साल पहले कैंसर की वजह से मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी और मेरे भाई ने
हमारा वह पुश्तैनी घर बेच दिया था. कुछ बंद संदूकों को खोलने पर उसे मेरे बचपन की
कई चीज़ें मिली थीं, जिन्हें उसने मेरे पास
नगानो भेज दिया था. अधिकांश चीज़ें तो बेकार का कबाड़ थीं, लेकिन
उसमें ख़ूबसूरत चित्रों का एक गट्ठर भी था जिन्हें 'क'
ने बनाया था और मुझे तोहफ़े में दिया था. शायद मेरे माता-पिता ने
उसे 'क' की निशानी के रूप में मेरे लिए
सँजो कर रखा. किंतु उन चित्रों ने मेरे पुराने भय को पुन: जीवित कर दिया. उन
चित्रों को देखकर मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे 'क' की आत्मा मुझे सताने के लिए लौट आएगी. इसलिए मैंने उन तसवीरों को दोबारा
बाँध कर रख दिया. मेरा इरादा उन्हें कहीं फेंक देने का था. हालाँकि, मैं ऐसा नहीं कर सका. कई दिनों तक अनिश्चितता के भँवर में उतराते रहने के
बाद मैंने उन तसवीरों को दोबारा खोलकर उन्हें ध्यान से देखने का मन बनाया.
उन में से अधिकांश तसवीरें तो जाने-पहचाने भू-दृश्यों की थीं. इनमें समुद्र-तट
और देवदार के जंगल भी थे. सभी तसवीरें स्पष्टता से एक विशिष्ट रंग-चयन को दर्शाती
थीं , जो 'क' की चित्रकारी की ख़ासियत थी. बरसों बीत जाने के बाद भी उनका चटख रंग
बरक़रार था और उन्हें बेहद बारीकी और कुशलता से बनाया गया था. जैसे-जैसे मैं ये
तसवीरें पलटता गया , 'क' की स्निग्ध
यादों ने मुझे घेर लिया. ऐसा लग रहा था जैसे 'क' अब भी अपनी तसवीरों में मौजूद था और अपनी स्नेहिल आँखों से दुनिया को देख
रहा था. जो चीज़ें हम साथ-साथ करते थे, जिन जगहों पर हम
साथ-साथ घूमते थे -- ये सारे पल बड़ी शिद्दत से मुझे दोबारा याद आने लगा. और मैं
समझ गया कि मैं भी दुनिया को वैसी ही स्नेहिल आँखों से देखता था जैसी मेरे मित्र 'क' के पास थीं.
अब मैं हर रोज़ काम के बाद शाम को घर लौटने पर 'क'
की एक तसवीर का अपनी मेज पर ध्यान से अध्ययन करता. मैं उस की बनाई
किसी तसवीर को देखते हुए घंटों बैठा रहता. उन में से हर तसवीर में मुझे अपने बचपन
के वे सुंदर भू-दृश्य दिखाई देते थे जिन्हें अब मैं भूल चुका था. 'क' की बनाई उन तसवीरों को देखते हुए मुझे ऐसा अहसास
होने लगा था जैसे कोई जानी-पहचानी चीज़ मेरी धमनियों और शिराओं में घुलती जा रही
है.
शायद एक हफ़्ता ऐसे ही निकल गया होगा जब एक शाम अचानक मेरे ज़हन में यह विचार
कौंधा कि कहीं इतने बरसों में मैं एक बहुत बड़ी ग़लती तो नहीं कर रहा था . जब 'क' उस दैत्याकार लहर की जिह्वा पर लेटा
था, तो वह निश्चित ही घृणा या क्रोध से मुझे नहीं देख रहा था.
वह मुझे अपने साथ घसीट कर नहीं ले जाना चाहता था. और मुझे घूरते हुए उसने जो चौड़ी
मुस्कान दी थी, वह भी सम्भवत: प्रकाश और छाया के किसी कोण का
नतीजा थी. यानी 'क' जानबूझकर ऐसा नहीं
कर रहा था. तब तक तो शायद वह बेहोश हो चुका था, या यह भी
सम्भव है कि वह हमारी चिरकालिक जुदाई की वजह से मुझे एक उदास मुस्कान दे रहा था.
मैंने उसकी आँखों में जिस गहरी घृणा की कल्पना की थी, वह
ज़रूर उस अथाह भय का नतीजा थी जिसने उस पल मुझे जकड़ लिया था.
उस शाम मैंने जितना ज़्यादा 'क' के चित्रों का अध्ययन किया, उतने ही अधिक विश्वास से
मैं अपनी नई सोच में यक़ीन करने लगा. ऐसा इसलिए था क्योंकि 'क'
के चित्रों को देर तक देखते रहने के बाद भी मुझे उनमें केवल एक
बच्चे की कोमल और मासूम आत्मा ही नज़र आई.
मैं बहुत देर तक बैठ कर मेज पर पड़े 'क'
के चित्रों को उलटता-पलटता रहा. मैं और कुछ नहीं कर सका. बाहर सूर्यास्त
हो गया और शाम का फीका अँधेरा कमरे में भरने लगा. उसके बाद रात का गहरा सन्नाटा
आया, जैसे वह सदा के लिए हो. पर आख़िर रात बीत गई और पौ फटने
लगी. नए दिन के सूर्योदय ने आकाश को गुलाबी रंग में रंग दिया और चिड़ियाँ जग कर
गीत गाने लगीं.
तब मैं जान गया कि मुझे ज़रूर वापस जाना चाहिए .
मैंने एक थैले में अपनी कुछ चीज़ें डालीं, अपने
दफ़्तर को अपनी अनुपस्थिति के बारे में सूचित किया , और अपने
बचपन के शहर जाने वाली रेलगाड़ी में जा बैठा.
वहाँ पहुँचने पर मुझे अपनी स्मृति में मौजूद समुद्र-तट पर बसा शांत शहर नहीं
मिला. साठ के दशक के तेज विकास के दौरान पास में ही एक औद्योगिक शहर बस गया था, जिससे पूरे इलाक़े में बहुत से बदलाव आ गए थे. उपहार का सामान
बेचने वाली एक छोटी-सी दुकान अब एक बड़े मॉल में परिवर्तित हो चुकी थी. शहर का
एकमात्र सिनेमा-घर अब एक बड़े बाज़ार में बदल चुका था. मेरे मकान का अस्तित्व
समाप्त हो चुका था. कुछ माह पहले उसे ध्वस्त कर दिया गया था, और अब वहाँ नाम-मात्र के अवशेष रह गए थे. अहाते में उगे सारे पेड़ काट दिए
गए थे और अब वहाँ झाड़-झंखाड़ ही बचे थे. 'क' का पुराना मकान भी अपना अस्तित्व खो चुका था और अब वहाँ कारें रखने की जगह
बना दी गई थी. ऐसा नहीं है कि मैं बेहद भावुक हो गया था. यह शहर तो बरसों पहले से
मेरा नहीं रहा था.
मैं चल कर समुद्र-तट पर पहुँचा. फिर मैं पत्थरों की दीवार पर जा चढ़ा. हमेशा
की तरह दूसरी ओर विशाल अबाधित समुद्र दूर तक फैला था जहाँ क्षितिज एक अटूट सीधी
रेखा था. समुद्र-तट भी पहले जैसा ही था -- ढेर-सी रेत , छोटी-बड़ी लहरें, और पानी के किनारे
टहलते हुए बहुत-से लोग . दोपहर बाद के चार बज रहे थे, और
पश्चिमी क्षितिज की ओर बढ़ते ध्यानस्थ सूर्य की कोमल रोशनी उस ढलती दुपहरी में जैसे
सब को गले लगा रही थी. मैंने अपना थैला रेत पर रखा और उस शांत परिदृश्य को सराहते
हुए वहीं बगल में बैठ गया. इस शांत भू-दृश्य को देखते हुए यह कल्पना करना कठिन था
कि कभी यहाँ एक भयावह समुद्री-तूफ़ान आया था, कि एक
दैत्याकार लहर यहीं मेरे प्रिय मित्र 'क' को निगल गई थी. निश्चित ही उस त्रासद घटना को याद रखने वाला कोई और नहीं
बचा था. ऐसा लगने लगा जैसे यह सारी घटना भ्रामक थी जिसे मैंने अपने सपने में
विस्तार से देखा था.
और तब मैंने महसूस किया कि इस घटना से जुड़ी मेरे भीतर मौजूद सारी नकारात्मक
कालिमा जैसे सदा के लिए ग़ायब हो गई थी. यह अचानक हुआ था. वह नकारात्मकता जैसे
अचानक आई थी, वैसे ही अचानक चली गई थी. मैं रेत पर
से उठ खड़ा हुआ. बिना अपने जूते उतारे या नीचे से अपनी पतलून मोड़े, मैं फेन भरे पानी में चला गया ताकि लहरें मेरे टखनों को धो सकें. ऐसा लगा
जैसे मेरे बचपन में समुद्र-तट पर आने वाली लहरें ही अब मेल-मिलाप के माहौल में
मेरे पैरों, जूतों और पतलून के निचले हिस्से को स्नेह से
भिगो रही थीं. एक लहर धीमी गति से आती, फिर एक लम्बा विराम
होता, जिसके बाद एक और लहर उसी धीमी गति से आती. बगल से
गुज़रते लोग मुझे मुझे अजीब निगाहों से देख रहे थे, पर मुझे
इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा. आख़िरकार मेरे मन को दोबारा शांति मिल गई थी.
मैंने ऊपर आकाश की ओर देखा. कपास के टुकड़ों जैसे कुछ सफ़ेद बादल वहाँ
बिना-हिले-डुले लटके हुए थे. मुझे ऐसा लगा जैसे वे मेरे लिए ही वहाँ पड़े हुए थे, हालाँक मैं यह नहीं जानता कि मुझे ऐसा क्यों लगा. मुझे वह
घटना याद आई जब बरसों पहले मैंने इसी तरह अपनी आँखें ऊपर उठा कर आकाश में उस भयावह
समुद्री-तूफ़ान के केंद्र को ढूँढ़ना चाहा था . और तब जैसे मेरे भीतर समय का अक्ष
तेज़ी से हिल उठा. चालीस लम्बे साल किसी खंडहर हो चुकी इमारत-से नष्ट हो गए. ऐसा
लगा जैसे अतीत और वर्तमान आपस में गुँथकर गड्ड-मड्ड हो गए. सभी आवाज़ें मंद पड़
गईं और मेरे चारो ओर मौजूद रोशनी जैसे थरथराई. मैं अपना संतुलन खो बैठा और लहरों
में गिर गया. मेरे दिल की धड़कन धौंकनी-सी चल रही थी, पर
मेरे हाथ-पैरों में कोई अनुभूति नहीं रही. मैं बहुत देर तक औंधे मुँह लहरों में
गिरा पड़ा रहा और नहीं उठ पाया . लेकिन मैं भयभीत नहीं था. नहीं, बिलकुल नहीं. अब मैं किसी चीज़ से नहीं डर रहा
था. वह समय अब जा चुका था.
अब मुझे वे दु:स्वप्न आने बंद हो गए हैं. अब मैं बीच रात में चीख़ते हुए नहीं
उठता हूँ. और अब मैं बिना किसी भय के अपना जीवन नए सिरे से दोबारा जीने का प्रयास
कर रहा हूँ. नहीं , मैं जानता हूँ कि शायद
अब नए सिरे से दोबारा जीवन जीने के लिए बहुत देर हो चुकी है. शायद अब मेरे जीने के
लिए ज़्यादा बरस भी नहीं बचे हों. देर से ही सही, पर मैं
कृतज्ञ हूँ कि अंत में मैं अपने भय से मुक्त हो सका, दोबारा
सँभल सका. हाँ, मैं कृतज्ञ हूँ : यह भी हो सकता था कि बिना
भय-मुक्ति के ही मेरे जीवन का अंत हो जाता और अन्धकारमय भय की कुंडली में मैं
चीख़ता-चिल्लाता रह जाता.
इतना कह कर सातवाँ आदमी चुप हो गया और बारी-बारी से उसने हम सब की ओर देखा. हम
सब बिना हिला-डुले, बिना कुछ बोले बैठे रहे,
जैसे हम सब साँस लेना भी भूल गए हों. हम सब कहानी के पूरे होने की
प्रतीक्षा में बैठे थे. बाहर हवा थम गई थी और कहीं कुछ भी हिल-डुल नहीं रहा था.
सातवाँ आदमी दोबारा अपने हाथ को अपनी क़मीज़ के कॉलर तक ले गया जैसे वह बोलने के
लिए शब्द ढूँढ़ रहा हो.
फिर उसकी आवाज़ हवा में गूँज उठी -- "वे कहते हैं कि आपको केवल अपने भय
से डरना चाहिए , लेकिन मैं यह नहीं मानता." एक
पल रुक कर वह फिर बोला - "डर तो लगता ही है. वह अलग-अलग समय पर कई रूपों में
हम पर हावी हो जाता है. लेकिन ऐसे समय में जो सबसे डरावनी बात हम कर सकते हैं वह
यह है कि हम अपनी आँखें मूँद लें या उसे पीठ दिखा कर भाग खड़े हों. तब हम अपने
भीतर की सबसे क़ीमती चीज़ को 'कुछ और' के
हवाले कर देते हैं. मेरे मामले में 'कुछ और 'वह दैत्याकार लहर थी."
( Sougwen Chung, is a Canadian-born, Chinese-raised artist)
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( Sougwen Chung, is a Canadian-born, Chinese-raised artist)
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सुशांत सुप्रिय
कथाकार, कवि, अनुवादक
A-5001, गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड, इंदिरापुरम,
ग़ाज़ियाबाद - 201010
8512070086/ई-मेल : sushant1968@gmail.com
शानदार कहानी। अनुवाद के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमेरे ख़्याल से बहुत अच्छा अनुवाद है। इस कहानी में एक छोटा फ़्रेम नैरेटिव है जिसके अंदर कहानी को रखा गया है। सामान्य कहानियों की तुलना में इसमें प्रतीकात्मक तत्त्व भी अधिक हैं।अनुवादक ने कहानी की तकनीक और प्रतीकों को बहुत सफ़ाई से हिंदी में आयात किया है। मेरी बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी, बढ़िया अनुवाद। लेकिन कहानी में सम्पादन की गुंजायश है। यानी मुराकामी इसे छोटा कर सकते थे। इस वक्त यह अपनी ज़रूरत से ज़्यादा लम्बी है। कहानी में एक छोटी सी गलती भी है।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद एक अच्छी कहानी पढ़ने का सुख मिला । समुंद्री तूफानों को लेकर इस तरह की कल्पना जापानी लेखक ही कर सकते है । इस कहानी की पठनीयता गज़ब की है । सुप्रिय अच्छे कवि नही उम्दा अनुवादक है । उनके अनुवाद में मूल रचना की आत्मा बची रहती है । आप दोनों को बधाई ।
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