माया संस्कृति की कविताएँ : यादवेन्द्र











हुम्बरतो अकाबल ग्वाटेमाला के प्रमुख कवि हैं जो करीब दस लाख लोगों द्वारा बोली जाने  माया मूल की किचे भाषा में लिखते हैं. उनकी कविताओं के अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच ,जर्मन, इटालियन, स्पैनिश सहित विश्व की कई प्रमुख भाषाओँ में प्रकाशित किये गये है.

"गार्डनर ऑफ़ द वाटरफॉल" अंग्रेजी में अनूदित कविताओं का पुरस्कृत संकलन है. इसी में
से उनकी कुछ कविताओं का अनुवाद यादवेन्द्र ने किया है. 


माया संस्कृति की कविताएं                  






पीछे की ओर चलना

   
समय समय पर
मैं पीछे मुड़ कर चलता हूँ --
स्मृतियों को जगाने का मेरा यही ढंग है.
यदि मैं आगे ही आगे चलता जाऊंगा
तो मैं बता नहीं पाउँगा
कैसा होता है इतिहास से
विस्मृत हो जाना.




शिलाएं 

ऐसा बिलकुल नहीं है
कि शिलाएं गूंगी होती हैं
बात बस इतनी है
कि वे ख़ामोशी से अपना मुँह बंद रखती हैं.



मुझे मालूम नहीं 

मेरे गाँव ने देखा
चुपचाप मेरा वहाँ से निकल जाना
शहर अपने प्रपंचों में इतना फंसा रहा
कि उसको सुध नहीं
कौन आया कौन गया...
मैं किसान बने रहने से तो वंचित हुआ
और जाहिर था मजदूर बन गया.
मुझे मालूम नहीं इसको क्या कहेंगे
तरक्की...या पिछड़ जाना.



कवि

कवियों की जमात
पैदा तो होती है बुड्ढी
पर सालों साल के दरम्यान
हम खुद को बना लेते हैं
निहायत बच्चा.


 नृत्य 

हम सब नाच रहे होते  हैं
बिलकुल स्टेज  के हाशिये पर
गरीब-- अपनी गरीबी की वजह से 
लड़खड़ा देते हैं अपने कदम
और औंधे मुँह गिर पड़ते हैं नीचे...
और बाकी बचे लोग
गिरते हैं तो भी
गिरते हैं उपरली  सीढ़ी पर.



प्रार्थना 

चर्च के अंदर
आपको सुनाई देती  है सिर्फ प्रार्थना
वह भी उन दरख्तों की
जिन्हें काट कर बना दिया गया है
बेंच.



सुबह सुबह

रात के अंतिम  घंटों में
सितारे उतारते हैं अपने कपड़े
और नंग धडंग नहाते हैं नदी में.
उल्लुओं की लोलुप निगाहें उनपर होती हैं
और उनके सिर के ऊपर उगे हुए नन्हे नन्हे पंख
सितारों को ऐसी दशा में  देख के
उठ खड़े होते हैं.



आज़ादी

चील,बाज और कबूतर
उड़ते उड़ते बैठ कर सुस्ताते हैं
गिरिजा और महलों पर
बेखबर बेपरवाह
बिलकुल उसी तरह जैसे
वे बैठते हैं चट्टानों पर
वृक्षों ...या ऊँची दीवारों पर...
इतना ही नहीं उनपर गिराते हैं 
पूरी आजादी से अपनी बीट भी
उन्हें मालूम है
कि खुदा और इन्साफ दोनों का
ताल्लुक ऊपरी दिखावे से नहीं
दिल से है...



हँसी

लहरों की हँसी है
पानी के ऊपर तैरता
झाग.



उस दिन

उस दिन
वह ऐसे वेग से आयी
कि तहस नहस हो गया
मेरा अकेलापन।.


चन्द्रमा और पंख

चन्द्रमा ने थमा दिया
मेरे हाथ एक पंख
लगा मेरे हाथ
आ गया गाने जैसा कुछ
चन्द्रमा हँसा
फिर बोला :
पहले सीखो

कैसे गाते हैं गाना।.
_____________________


यादवेन्द्र
बिहार से स्कूली और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1980 से लगातार रुड़की के केन्द्रीय भवन अनुसन्धान संस्थान में वैज्ञानिक.

रविवार,दिनमान,जनसत्तानवभारत टाइम्स,हिन्दुस्तान,अमर उजाला,प्रभात खबर इत्यादि में विज्ञान सहित विभिन्न विषयों पर प्रचुर लेखन.

विदेशी समाजों की कविता कहानियों के अंग्रेजी से किये अनुवाद नया ज्ञानोदयहंस, कथादेश, वागर्थ, शुक्रवार, अहा जिंदगी जैसी पत्रिकाओं और अनुनाद, कबाड़खानालिखो यहाँ वहाँख़्वाब का दर जैसे साहित्यिक ब्लॉगों में प्रकाशित.


मार्च 2017 के स्त्री साहित्य पर केन्द्रित  "कथादेश"  का अतिथि संपादन.  साहित्य के अलावा सैर सपाटा, सिनेमा और फ़ोटोग्राफ़ी  का शौक.
yapandey@gmail.com

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  1. बहुत अपनी सी लगीं सभी कविताएं। समालोचन का शुक्रिया।
    अपर्णा

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  2. छोटी-छोटी, प्यारी, जानदार कवितायें।
    शानदार अनुवाद भी।

    -राहुल राजेश
    कोलकाता।

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  3. So deep , so moving and so artlessly articulated. This must be the shape of primal truth . That which we search for as poets and readers but come across only rarely. Thank you for translating them and for sharing. The translation -though one doesn't know what the original would be liike- is delightful.For reading these poems was so smooth and so uplifting!! Congratulations!!

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14-09-17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2727 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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