मार्खेज़ की चर्चित कहानी A Very Old Man with Enormous Wings (1955) का हिंदी में बहुत अच्छा अनुवाद सुशांत सुप्रिय ने
किया है. कहानी के बारे में पढ़ कर खुद राय बनाइए. मुझे तो कहानी उम्दा लगी.
गैब्रिएल गार्सिया मार्खे़ज़
विशाल पंखों वाला बहुत बूढ़ा आदमी
अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
बारिश के तीसरे दिन उन्होंने घर के भीतर इतने केकड़े मार
दिए थे कि पेलायो को अपना भीगा आँगन पार करके उन्हें समुद्र में फेंकना पड़ा. दरअसल नवजात शिशु को सारी रात बुख़ार रहा था और उन्हें लगा
कि ऐसा मरे हुए केकड़ों की सड़ाँध की वजह से था. मंगलवार से ही
पूरी दुनिया उदास थी. समुद्र और आकाश धूसर
राख़ के रंग के हो गए थे और तट पर पड़ी रेत, जो मार्च की रातों में रोशनी के चूरे-सी चमकती थी.
अब सड़ी हुई मछलियों और कीचड़ का लोंदा बन कर रह गई थी.
दोपहर के समय भी रोशनी इतनी कम थी कि जब पेलायो केकड़े फेंक कर वापस घर में घुस
रहा था तो वह ठीक से यह नहीं देख पाया
कि आँगन के पिछवाड़े में जो चीज़ हिल-डुल रही और कराह रही थी वह क्या थी. बहुत पास
जा कर देखने पर उसने पाया कि दरअसल वह एक बहुत बूढ़ा आदमी था जिसका चेहरा कीचड़
में धँसा था और जो बहुत कोशिश करने के बाद भी उठ नहीं पा रहा था क्योंकि उसकी पीठ
पर विशाल पंख उगे हुए थे जो उसके उठने में बाधक थे.
उस दु:स्वप्न से डर कर पेलायो भाग कर अपनी पत्नी एलिसेंडा
के पास पहुँचा. वह बीमार शिशु के माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ रख रही थी. पेलायो
एलिसेंडा को आँगन के पिछवाड़े में ले आया. दोनों ने कीचड़ में गिरे हुए उस बूढ़े
को चुपचाप हैरानी से देखा. बूढ़े ने किसी
कबाड़ी जैसे कपड़े पहने हुए थे. उसके गंजे सिर पर केवल कुछ ही सफ़ेद बाल बचे हुए
थे और उसके मुँह में उस से भी कम दाँत रह गए थे. किसी बुरी तरह भीगे हुए दादाजी
जैसी उसकी दयनीय हालत ने उसकी शान के वे सारे अवशेष ख़त्म कर दिए थे जो कभी उसका
हिस्सा रहे होंगे. ऐसा लगता था जैसे उसके गंदे, नुचे हुए, विशाल पंख सदा के
लिए कीचड़ में धँस गए थे. पेलायो और एलिसेंडा ने उस बूढ़े को इतनी देर तक और इतने
क़रीब से देखा कि जल्दी ही उनकी हैरानी जाती रही और अंत में उन्हें वह बूढ़ा
पहचाना-सा लगा. तब उन्होंने उससे बात करने की हिम्मत की लेकिन उसने किसी न समझ आने
वाली भाषा में जवाब दिया. उसकी आवाज़ सुन कर उन्हें लगा जैसे वह कोई नाविक था. इसलिए उन्होंने उसके तकलीफ़देह पंखों की अनदेखी
कर दी और बेहद अक़्लमंदी से वे इस नतीजे पर पहुँचे कि ज़रूर वह समुद्री तूफ़ान में
डूब गए किसी विदेशी जहाज़ का बचा हुआ भटकता नाविक होगा. फिर भी उन्होंने उसे देखने
के लिए एक पड़ोसी महिला को भी बुला लिया जो जीवन और मृत्यु के बारे में सब कुछ
जानती थी. उस महिला ने बूढ़े को देखते ही उन्हें उनकी ग़लती का अहसास दिला दिया.
"यह एक देव-दूत है," महिला ने उन्हें बताया." ज़रूर वह शिशु के लिए यहाँ आ रहा होगा लेकिन बेचारा इतना बूढ़ा है कि कि वह
तेज़ बारिश के थपेड़े नहीं सह पाया होगा और गिर गया होगा."
अगले दिन सब यह बात जान गए कि हाड़-माँस का बना एक देव-दूत पेलायो के मकान में क़ैद था. उस बुद्धिमान पड़ोसी महिला की राय में उस ज़माने में देव-दूत एक खगोलीय षड्यंत्र में शामिल बचे हुए भगोड़े थे और उन्हें दंड दिया जाना चाहिए था. पर वे दोनों पति-पत्नी उस देव-दूत को पीट-पीट कर मार डालने की क्रूरता नहीं कर सके. हालाँकि पूरी दोपहर पेलायो एक डंडा लिए हुए रसोई में से उस पर नज़र रखे रहा और रात में सोने के लिए जाने से पहले उसने उस देव-दूत को कीचड़ में से घसीट कर बाहर निकाला और उसे मुर्ग़ियों के साथ बाड़े में बंद कर दिया. बीच रात में जब बारिश रुक गई थी, पेलायो और एलिसेंडा तब भी केकड़े मार रहे थे. कुछ देर बाद शिशु जाग गया. अब उसे बुखार नहीं था और उसे भूख लगी थी. तब उन्हें दरियादिली महसूस हुई और उन्होंने निश्चय किया कि वे उस देव-दूत को बीच समुद्र में एक बेड़े पर तीन दिनों के खाना-पानी के साथ छोड़ देंगे. बाक़ी उसकी क़िस्मत. लेकिन पौ फटने के साथ ही जब वे आँगन में गए तो उन्होंने पाया कि उनके सारे पड़ोसी मुर्ग़ियों के बाड़े के सामने जमा थे. वे सब उस देव-दूत का मज़ाक़ उड़ा रहे थे. उनमें उसके प्रति ज़रा भी सम्मान नहीं था बल्कि वे तो बाड़े के तारों के बीच से उसकी ओर इस तरह खाने के टुकड़े फेंक रहे थे जैसे वह कोई अलौकिक प्राणी न हो , सर्कस का जानवर हो.
उस अजीब ख़बर से चौंक कर पादरी गौनज़ैगा वहाँ सुबह सात बजे
से पहले पहुँच गया. उस समय तक सुबह तड़के मौजूद दर्शकों की तुलना में थोड़े कम
छिछोरे लोग वहाँ पहुँच चुके थे
और वे सभी उस बंदी के भविष्य के बारे में तरह-तरह की अटकलें लगा रहे थे. उन में से सबसे सीधे-सादे लोगों का मानना था कि
उस बूढ़े देव-दूत को विश्व का महापौर बना देना चाहिए. उनसे अलग अन्य सख़्त मिज़ाज
वाले लोगों ने कहा कि उसे पदोन्नति दे कर सेनापति बना दिया जाए ताकि उसकी कमान में
सभी युद्ध जीते जा सकें. कुछ स्वप्नदर्शियों का विचार तो यह था कि उसके माध्यम से
पृथ्वी पर पंखों वाली एक अक़्लमंद प्रजाति के मनुष्यों को विकसित किया जा सकता था जो बाद में पूरे ब्रह्मांड की देख-रेख
की ज़िम्मेदारी ले सकते थे.
किंतु पादरी बनने से पहले फ़ादर गौनज़ैगा जो एक लकड़हारे के
रूप में कड़ी मेहनत किया करता था. बाड़े के तारों के पास खड़े हो कर उसने पल भर
में ही अपने धर्मशिक्षण पर पुनर्विचार कर डाला. उसने बाड़े के तार खोलने का आदेश
दिया ताकि वह उस बेचारे आदमी को क़रीब से देख सके जो मंत्रमुग्ध मुर्ग़ियों के बीच
एक बड़े आकार की कमज़ोर मुर्ग़ी-सा लग रहा था. सुबह तड़के आए लोगों द्वारा फेंके
गए फलों के छिलकों और खाने के टुकड़ों के बीच कोने में पड़ा वह बूढ़ा धूप में अपने
खुले पंख सुखा रहा था.
जब पादरी गौनज़ैगा ने मुर्ग़ियों के बाड़े में जा कर लातिनी
भाषा में उसका अभिवादन किया तो विश्व की ढिठाई से बेख़बर उसने केवल अपनी प्राचीन
आँखों की पलकें उठाईं और फिर वह अपनी ज़बान में कुछ बुदबुदाया. पादरी को पहले-पहल
उस बूढ़े के ढोंगी होने की शंका तब हुई जब उसने पाया कि वह न तो ईश्वर की भाषा (
लैटिन) समझ सकता था, न ही उसे एक पादरी का अभिवादन करने का शिष्टाचार आता था.
फिर उसने पाया कि क़रीब से देखने पर वह बूढ़ा बिल्कुल इंसान जैसा लगता था. बाहर
पड़े रहने से उसकी देह से एक असहनीय दुर्गन्ध आ रही थी. उसके पंखों के उल्टे
हिस्से परजीवियों से भरे थे. तेज़ हवा ने उसके पंखों को कई जगह नुक़सान पहुँचाया
था. देव-दूतों की शानदार गरिमा के अनुरूप उसमें कहीं कुछ नहीं था.
फिर पादरी मुर्ग़ियों के बाड़े में से बाहर निकल आया और
अपने एक संक्षिप्त प्रवचन में उसने जिज्ञासुओं को अधिक भोले और सीधे होने के
ख़तरों के बारे में बताया. उसने उन्हें याद दिलाया कि शैतान धोख़ा देने के लिए कई
युक्तियाँ इस्तेमाल करता है ताकि असतर्क लोग भ्रम में पड़ जाएँ. उसने दलील दी कि
यदि एक हवाई जहाज़ और एक बाज़ में फ़र्क तय करते समय पंखों को आवश्यक हिस्सा नहीं
माना जा सकता तो देव-दूतों को पहचानने में पंखों की भूमिका उससे भी कम है. इसके
बावजूद पादरी ने वादा किया कि वह अपने वरिष्ठ पादरी को एक पत्र लिखेगा ताकि वह
सर्वोच्च पादरी को एक पत्र लिख कर इस विषय में अंतिम निर्णय प्राप्त कर सके.
किंतु सावधान रहने के पादरी के उपदेश का लोगों पर कोई असर
नहीं हुआ .बंदी देव-दूत की ख़बर इतनी तेज़ी से फैली कि कुछ ही घंटों में उस आँगन
मे बाज़ार जितनी चहल-पहल हो गई और अधिकारियों को संगीन वाली बंदूक़ों से लैस सैनिक
बुलाने पड़े ताकि उस बेक़ाबू भीड़ को तितर-बितर किया जा सके जो पूरा मकान गिरा
देने पर आमादा थी. भीड़ ने जो गंदगी वहाँ फैलाई थी , उसे झाड़ू से बुहार कर साफ़ करने की वजह से एलिसेंडा की पीठ
में दर्द होने लगा. तब उसके मन में यह विचार आ़या कि आँगन में बाड़ लगा कर क्यों न
देव-दूत को देखने आने वालों के लिए कुछ रुपयों का प्रवेश-शुल्क लगा दिया जाए.
जिज्ञासु लोग दूर-दूर से आने लगे. तरह-तरह के खेल-तमाशों से
लैस, उत्सव का माहौल लिए एक
घुमंतू दल वहाँ आ पहुँचा. उड़ने की कलाबाज़ी दिखाने वाला इस दल का एक कलाकार कई
बार भीड़ के ऊपर से गुज़रा , किंतु लोगों ने
उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि उसके पंख किसी देव-दूत के नहीं थे बल्कि किसी चमगादड़ जैसे थे. धरती पर मौजूद
सबसे ज़्यादा बीमार लोग भी स्वास्थ्य-लाभ करने की आशा लिए वहाँ पहुँचने लगे. इनमें
एक ग़रीब महिला थी जिसने बचपन से अपने दिल
की धड़कनों को गिना था और अब उसे गिनती की सही संख्या का अंदाज़ा भी नहीं रहा था.
पुर्तगाल का एक आदमी था जिसका कहना था कि सितारों का शोर उसे सोने नहीं देता.
इन्हीं में नींद में चलने की बीमारी वाला एक आदमी भी था जो दिन में जागृत अवस्था
में किए गए अपने सारे काम रात में उठ कर मिटा देता था. इनके अलावा कई और रोगी भी
वहाँ आए जिनकी बीमारियाँ इतनी गम्भीर नहीं थीं. थकान के बावजूद पेलायो और एलिसेंडा
ख़ुश थे क्योंकि एक हफ़्ते से भी कम समय में उनके कमरे रुपयों से ठसाठस भर गए थे
जबकि भीतर आ कर उस बूढ़े को देखने वाले तीर्थ-यात्रियों की क़तार क्षितिज के भी
आगे तक फैली हुई थी.
वह बूढ़ा देव-दूत ही वहाँ मौजूद एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो
अपने लिए आयोजित उस पूरे तमाशे में कोई भूमिका नहीं निभा रहा था. अपने उधार के
रहने की उस जगह में वह किसी तरह आराम से रहने की कोशिश कर रहा था, हालाँकि तार के पास जलाई गई पवित्र मोमबत्तियों
और दीयों और लालटेनों में पड़े तेल के जलने से उठती असह्य गर्मी उसे पीड़ित कर रही
थी.
शुरू में लोगों ने उसे नैप्थलीन की गोलियाँ खिलाने की कोशिश
की क्योंकि पड़ोस में रहने वाली अक़्लमंद महिला ने बताया कि देव-दूत यही खाते थे.
लेकिन बूढ़े ने इसे खाने से इंकार कर दिया. उसने तीर्थ-यात्रियों द्वारा दिया गया
पवित्र भोजन भी ठुकरा दिया. अंत में उसने केवल बैगन का गूदा ही खाया. क्या इसकी
वजह यह थी कि वह एक देव-दूत था या यह कि वह बूढ़ा था, यह बात लोग कभी नहीं जान पाए. उसकी एकमात्र अलौकिक ख़ूबी यह
थी कि वह सहनशील था .ख़ास करके शुरुआती दिनों में, जब उसके पंखों में मौजूद खगोलीय परजीवियों की तलाश में
उद्धत मुर्ग़ियाँ उसे अपने चोंचों से मार रही थीं और किसी चमत्कार की उम्मीद में
अपंग और बीमार लोग उसके पंखों को नोच-नोच कर अपने रुग्ण और बेकार अंगों से लगा रहे
थे. यहाँ तक कि उन में से सबसे दयालु लोग भी उसे पत्थरों से मार रहे थे क्योंकि वे
देखना चाहते थे कि उठ कर खड़े होने पर वह कैसा दिखता है. वह केवल एक बार तभी
हिला-डुला जब लोगों ने एक गरम सलाख़ से उसे दाग़ दिया.
दरअसल वह बूढ़ा कई घंटों तक बिना हिले-डुले बैठा रहा था और
लोगों को लगा था कि वह मर चुका है. गरम सलाख़ से दागे जाने पर उसने तीव्र
प्रतिक्रिया दिखाई. वह चौंक कर उठा और अपनी अजनबी भाषा में न जाने क्या प्रलाप
करने लगा. उसकी आँखों में आँसू छलक आए. फिर उसने अचानक अपने पंखों को तेज़ी से
फड़फड़ाया जिससे मुर्ग़ियों के मल और खगोलीय धूल की उठी आँधी ने चारो ओर भगदड़ मचा
दी. हालाँकि कई लोगों को यह लगा कि उसकी प्रतिक्रिया क्रोध से नहीं बल्कि पीड़ा से
उपजी थी, फिर भी इस घटना के बाद
लोग उससे सावधानी से पेश आने लगे . अधिकांश लोग अब समझ गए कि उसकी निष्क्रियता
किसी नायक के आराम की क्रिया नहीं है बल्कि महाप्रलय लाने वाली किसी तबाही का रुका
हुआ होना है.
पादरी गौनज़ैगा ने इधर-उधर की प्रेरक कहानियाँ सुना कर
छिछोरेपन पर उतारू भीड़ को किसी तरह रोक रखा था. दरअसल बंदी के साथ आगे क्या किया
जाना है, वह इस बारे में
धर्माचार्यों के अंतिम फ़ैसले के आने की प्रतीक्षा कर रहा था.
लेकिन रोम से संदेश आने में देरी होती जा रही थी. वहाँ जमा
हुए लोग अब तरह-तरह की बातें करके अपना समय गुज़ार रहे थे. जैसे -- बंदी की नाभि
है या नहीं. उसकी बोली किसी ज्ञात भाषा से मिलती-जुलती है या नहीं. वह सुई में
धागा डाल सकता है या नहीं. कहीं वह नार्वे का एक ऐसा नागरिक तो नहीं जिसके पंख उग
आए हैं. वग़ैरह. पादरी को रोम से आने वाले संदेश की प्रतीक्षा शायद अनंतकाल तक
करनी पड़ जाती , किंतु सही समय पर
घटी एक घटना ने उसे इस मुसीबत से मुक्ति दिला दी.
हुआ यह कि उन्हीं दिनों आकर्षित करने वाले दूसरे बहुत सारे
खेल-तमाशों के साथ-साथ शहर में एक ऐसा तमाशा दिखाने वाला समूह भी आ पहुँचा जिस में
अपने माता-पिता की बात न मानने के कारण मकड़ी बन गई एक युवती भी थी. इस तमाशे को
देखने के लिए लगाया गया प्रवेश-शुल्क देव-दूत को देखने के लिए लगाए गए
प्रवेश-शुल्क से कम था. न केवल यह बल्कि लोग मकड़ी बन गई युवती से उसकी दुर्दशा के
बारे में तरह-तरह के प्रश्न भी पूछ सकते थे और उसकी जाँच-पड़ताल कर सकते थे ताकि
किसी को भी उसकी डरावनी हालत के बारे में कोई संदेह न रहे. वह भेड़ के आकार की एक
डरावनी टैरेनटुला मकड़ी थी जिसका सिर एक उदास युवती का था. सबसे ज़्यादा
हृदय-विदारक बात उसका विचित्र आकार नहीं था बल्कि वह सच्ची वेदना थी जिस में डूब
कर वह लोगों को विस्तार से अपने दुर्भाग्य की कथा सुनाती थी. इस कथा के अनुसार जब
वह अभी बच्ची ही थी तब एक दिन वह अपने माता-पिता की आज्ञा के बिना एक नृत्य-समारोह
में भाग लेने के लिए अपने घर से निकल भागी थी . वहाँ सारी रात वह नाचती रही थी .
बाद में जब वह जंगल के रास्ते घर लौट रही थी तब अचानक बादलों की भीषण गर्जना के
साथ आकाश दो हिस्सों में बँट गया , बिजली कड़की और
गंधक के साथ हुए उस वज्रपात ने उसे एक मकड़ी में बदल दिया. उसका एकमात्र पौष्टिक
आहार मांस के वे टुकड़े थे जो उदार लोग उसके मुँह में डाल दिया करते थे.
यह एक ऐसा तमाशा था जो मानवीय सच्चाई और डरावने सबक़ से
भरपूर था. बिना प्रयास के ही यह तमाशा उस तमाशे पर भारी पड़ा जिसमें एक घमंडी
देव-दूत लोगों की ओर देखता तक नहीं था. इसके अलावा देव-दूत के नाम पर प्रचारित किए
गए थोड़े-से चमत्कार लोगों को किसी मानसिक बीमारी जैसे लगे. जैसे -- बूढ़े देव-दूत
की संगति में भी एक अंधे आदमी की आँखों की रोशनी तो वापस नहीं आई लेकिन उसके तीन
नए दाँत उग आए. इसी तरह वहाँ आया एक अपाहिज चलने-फिरने में सक्षम तो नहीं हो पाया
पर वह लाटरी का इनाम लगभग जीत ही गया था. ऐसे ही एक और मामले में वहाँ आए एक कोढ़ी
के घावों में से सूरजमुखी के फूल उगने लगे. खिल्ली उड़ाने जैसे इन
सांत्वना-चमत्कारों ने पहले ही देव-दूत की ख्याति को धक्का पहुँचाया था. उसकी
रही-सही प्रसिद्धि को पूरी तरह नष्ट करने का काम मकड़ी बन गई युवती ने कर दिया. इस
तरह पादरी गौनज़ैगा रात भर जगे रहने की अपनी मजबूरी से मुक्त हो गया और पेलायो का
आँगन पहले के उस समय की तरह ही ख़ाली हो गया जब तीन दिनों तक लगातार बारिश होती
रही थी और केकड़े घर के सोने वाले कमरों में घूमने लगे थे.
उस घर के मालिकों के लिए शोक मनाने का कोई कारण न था. इस
पूरे तमाशे के दौरान उन्होंने बहुत रुपया कमा लिया था जिससे उन्होंने एक भव्य
दोमंज़िला मकान बना लिया. इस आलीशान मकान में कई छज्जे और बग़ीचे थे और एक ऊँची
बाड़ थी ताकि सर्दियों में केकड़े भीतर न आ सकें. इस मकान की खिड़कियों में लोहे
की सलाखें भी थीं ताकि देव-दूत भी अंदर न आ सकें. पेलायो ने ज़मींदार के कारिंदे
की नौकरी छोड़ दी और शहर के पास ही ज़मीन ख़रीद कर वहाँ ख़रगोशों को पालने का
व्यवसाय शुरू कर दिया. दूसरी ओर एलिसेंडा ने भी साटन कपड़े के ऊँची एड़ी वाले कुछ
ऐसे पंप-जूते और रेशम की कुछ ऐसी सतरंगी पोशाकें ख़रीद लीं जैसी उस ज़माने में
रविवार के दिन वहाँ की संभ्रांत महिलाएँ पहनती थीं.
मुर्ग़ियों का बाड़ा ही एकमात्र ऐसी चीज़ थी जिस ओर कोई
ध्यान नहीं दिया गया. यदि वे इसे फ़ेनाइल से साफ़ करते थे और वहाँ धूप-बत्ती जलाते
थे तो वह सब देव-दूत के सम्मान में नहीं किया जाता था बल्कि वहाँ इकट्ठा होने वाले
कूड़े के ढेर से आने वाली उस दुर्गन्ध से बचने के लिए किया जाता जो किसी प्रेत की
तरह हर कोने में घुस जाती और उस नए मकान को किसी पुरानी बदबूदार इमारत में बदल
देती. शुरू-शुरू में जब बच्चे ने चलना शुरू किया तो वे बेहद सावधानी से यह
सुनिश्चित करने की कोशिश करते कि वह मुर्ग़ियों के बाड़े के ज़्यादा क़रीब न जाए.
लेकिन धीरे-धीरे उनका डर जाता रहा और वे बदबू के आदी हो गए. अपना दूसरा दाँत
निकलने से पहले बच्चा वहाँ से मुर्ग़ियों के बाड़े में जा कर खेलने लगा था जहाँ
बाड़ की तारें उखड़ गई थीं. बच्चे के प्रति भी बूढ़े देव-दूत का रवैया वैसा ही रहा
जैसा अन्य लोगों के प्रति था , किंतु वह धीरज के
साथ हर प्रकार की नीचता सह लेता था जैसे वह एक कुत्ता हो जिसे अपने बारे में कोई
भ्रम न हो. उस बच्चे और बूढ़े देव-दूत -- दोनों को एक ही समय में छोटी माता निकल
आई . जिस डाॅक्टर ने बच्चे का इलाज किया वह देव-दूत की छाती पर आला लगा कर सुनने
के लोभ से ख़ुद को न रोक सका. डॉक्टर को देव-दूत के सीने में ऐसी घड़घड़ाहट सुनाई
दी और उसके गुर्दे में से इतनी ज़्यादा आवाज़ें आती हुई सुनाई दीं कि उसे देव-दूत
के जीवित बचे होने पर आश्चर्य हुआ. लेकिन उसे सबसे ज़्यादा हैरानी देव-दूत के
पंखों की मौजूदगी पर हुई. किसी भी आम आदमी जैसे लगने वाले उस देव-दूत पर वे पंख
इतने सहज लग रहे थे कि डॉक्टर यह नहीं समझ पाया कि दूसरे इंसानों के शरीर पर भी
पंख क्यों हीं थे.
आख़िर धूप और बारिश का आघात सहते-सहते एक दिन मुर्ग़ियों का
बाड़ा गिर गया. इस घटना के कुछ समय बाद बच्चे ने स्कूल जाना शुरू कर दिया. देव-दूत
किसी भटकते हुए मरणासन्न व्यक्ति-सा ख़ुद को घर में इधर-उधर घसीटता फिरता. वे
झाड़ू ले कर उसे सोने वाले कमरे से भगाते लेकिन पल भर बाद ही वे उसे रसोईघर में
पाते. वह बूढ़ा देव-दूत एक साथ इतनी सारी जगहों पर मौजूद रहता कि वे चकरा जाते और
सोचते कि उसने अपने प्रतिरूप तैयार कर लिए हैं. उन्हें संदेह होता कि उसने पूरे घर
में अपने जैसे कई और देव-दूत बना लिए हैं और तब खीझी हुई एलिसेंडा घबरा कर
चिल्लाने लगती कि देव-दूतों से भरे उस जहन्नुम में रहना बेहद डरावना था.
वह बूढ़ा देव-दूत अब बहुत मुश्किल से ही कुछ खा पाता और
उसकी प्राचीन आँखों की रोशनी अब इतनी धुँधली हो गई थी कि वह अक्सर चीज़ों से
टकराता रहता. परों के नाम पर अब उसके शरीर पर उसके अंतिम बचे पंखों के नग्न ढाँचे
ही रह गए थे. उसकी हालत पर तरस खा कर पेलायो ने उस पर एक कंबल डाल दिया और उदारता
दिखाते हुए उसे अड़ाते में सोने दिया. तब जा कर उन्होंने पाया कि रात में उसे तेज़
बुखार हो गया था, जिस हालत में किए
जा रहे अपने प्रलाप में वह नार्वे की भाषा के कठिन शब्द बड़बड़ाता हुआ-सा लग रहा
था. ऐसा कभी-कभार ही हुआ था कि वे उस बूढ़े के बारे में भयभीत हुए हों, लेकिन उस बार ऐसा-ही हुआ. दरअसल उन्हें लगा कि
वह बूढ़ा देव-दूत मरने वाला था और वह अक़्लमंद पड़ोसी महिला भी उन्हें नहीं बता
पाई थी कि मर गए देव-दूतों के साथ क्या किया जाता था.
इसके बावजूद वह न केवल भीषण ठंड झेल कर बच गया बल्कि अच्छे
मौसम के शुरू होते ही उसकी हालत में सुधार भी हुआ. आँगन के दूर के कोने में वह कई
दिनों तक बिना हिले-डुले बैठा रहा. वहाँ
उसे कोई नहीं देख सकता था. अगले माह के
शुरू में उसके पंखों पर कुछ बड़े और खड़े बालों के गुच्छे उगने लगे. ये किसी
बिजूका के परों-से थे. जैसे ये दोबारा जर्जरता का दुर्भाग्य ले कर आए हों. लेकिन
बूढ़े को शायद इस परिवर्तन का कारण पता था क्योंकि वह पूरी तरह सतर्क था कि कोई
इसके बारे में न जान पाए. कभी-कभी वह रात में छिप कर सितारों तले समुद्री गीत
गुनगुनाता था. उसने इसकी भनक भी किसी को नहीं लगने दी.
एक सुबह एलिसेंडा दोपहर के भोजन के लिए प्याज काट रही थी जब
बीच समुद्र से बह कर आई हवा रसोईघर में पहुँची. तब वह खिड़की तक गई और उसने
देव-दूत को उड़ने का पहला प्रयास करते हुए पाया. वह कोशिश इतनी बेढंगी थी कि उसके नाखूनों ने सब्ज़ियों के खेत में
खाँचा डाल दिया. उसके पंखों की अनाड़ियों जैसी भद्दी फड़फड़ाहट ने अहाते को भी
लगभग गिरा ही दिया था. उसके पंख हवा का ठीक से जायज़ा नहीं ले पा रहे थे, लेकिन किसी तरह वह हवा में ऊपर उठ गया.
जब एलिसेंडा ने उसे अंतिम मकानों के ऊपर से उड़ कर जाते हुए
देखा तो उसने अपने लिए और उसके लिए चैन की साँस ली. वह किसी बूढ़े गिद्ध की तरह
ख़तरनाक ढंग से अपने पंख फड़फड़ाते हुए किसी तरह ख़ुद को हवा में रखे हुए था.
एलिसेंडा प्याज काट लेने के बाद भी उसे देखती रही. वह तब तक
उसे जाता हुआ देखती रही जब तक उसके लिए ऐसा करना संभव नहीं रह गया, क्योंकि तब वह बूढ़ा देव-दूत उसके जीवन में खीझ
का कारण नहीं रह गया बल्कि समुद्री क्षितिज पर एक काल्पनिक बिंदु मात्र रह गया था.
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सुशांत सुप्रिय
A-5001, गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड,
इंदिरापुरम,
ग़ाज़ियाबाद – 201010 (उ.प्र.)
ग़ाज़ियाबाद – 201010 (उ.प्र.)
मो: 8512070086/ sushant1968@gmail.com
अरसा पहले इस कहानी को पढ़ा था जो करीब करीब भूल सी गई थी, हिन्दी अनुवाद मुझे भी अच्छा लगा! सुशांत जी इन दिनों लगातार अनुवाद कर रहे है, मैं समालोचन पर उनकी कोई कहानी भी देखना चाहूंगी! उनके दोनों कहानी संग्रह 'हत्यारे' और 'हे राम' मुझे बेहद पसंद आए! सुशांत जी को हार्दिक बधाई, शुक्रिया समालोचन ........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सहज अनुवाद है ,कहानी पढ़ सके ,अनुवाद की लय ने अजनबी भाषा की दुरूहता कम कर दी !
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद एक अच्छी कथा पढने को मिली।लोक कथा और जीवन यथार्थ का नायाब सम्मिलन है ।सुशांत का अनुवाब बढियां है । ऐसे अनुवाद जरूर दे ।कोई खराब हिंदी कथा को पढने से तो बेहतर है हम किसी अन्य भाषा को पढे ।
जवाब देंहटाएंसटीक अनुवाद
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत कहानी. मार्केज नकारात्मकता से भरी मानव जाति की कथा बुनते हुए अद्भुत कल्पना लोक में ले जाते हैं. सामान्य से माहौल में इतनी हलचल मचा देते हैं कि पाठक उत्सुकता से साँस थामे पढता जाता है. मैंने कुछ दिन पहले इनकी कहानी 'दुनिया के सबसे सुन्दर आदमी की मौत' अनुवाद की थी जिसमें दर्शाया गया है कि समुद्र किनारे बसे गाँव में बह कर आयी हुई लाश कैसे बदलाव लाती है. मौत, बीमारी और बदहाली के बीच उम्मीद की लौ जली रहती है जो मार्केज को महान कथाकार बनाती है.
जवाब देंहटाएंअनुवाद शानदार है। आस-पास की विसंगतियों और अपने डरावने चेहरे को जादुई आईना दिखाने का काम मार्खेज ही कर सकते थे। जैसे फनी मिरर इमेज के बहाने सचमुच की हंसी (खुद पर और दुनिया पर ) में सचमुच का रुदन।
जवाब देंहटाएंमार्खे़ज़ की कहानी का मेरे द्वारा किए गए अनुवाद को सराहने वाले सभी पाठकों का आभारी हूँ ।
जवाब देंहटाएं--- सुशांत सुप्रिय ।
शानदार कहानी का उतना ही बेहतरीन अनुवाद ।
जवाब देंहटाएंअभी-अभीफेसबुक के न्यूज फीड में स्वाति श्वेता की पोस्ट में देखा और पढ़ गया। सुन्दर और सहज प्रवाहमय अनुवाद के लिए सुशांत को और प्रकाशन के लिए समालोचन को बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छा अनुवाद है कहानी का. अच्छी कहानी का सुघड़ अनुवाद अपनी और खींचता है.
जवाब देंहटाएंबधाई आपको.
मदन पाल सिंह
बेहतरीन अनुवाद .
जवाब देंहटाएंअद्भुत कहानी है। सुन्दर अनुवाद भी
जवाब देंहटाएंसहज अनुवाद कहानी की संपूर्णता के साथ ।सुशांत जी को अनेक आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !
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